विश्व अर्थव्यवस्था के सुस्त विकास के बीच भारत ने विकास के बैटन को थाम लिया है और वैश्विक विकास के दिशा निर्देशक के रूप में उभरा है। अगले दशक में, बढ़ती हुई पीपीपी जीडीपी की वृद्धि के संदर्भ में, भारत का योगदान चीन के योगदान का 60 प्रतिशत और अमेरिका के मुकाबले 180 प्रतिशत हो सकता है। इतना ही नहीं भारत के आर्थिक विकास का मॉडल अपनी प्राकृतिक संपदा, कार्बन और पूंजी के उपयोग में मितव्ययी है। भारत में जो उत्पाद और सेवाएं भारतीयों के लिए हैं, उनका विकासशील दुनिया में व्यापक तौर पर उपयोग होने वाला है जहां बड़ी आबादी रहती है। इस तरह भारत का विकास मॉडल वैश्विक विकास में न सिर्फ परिमाणात्मक तरीके से योगदान करने जा रहा है बल्कि दुनिया में टिकाऊ प्रक्षेप वक्री विकास (sustainable growth trajectory) को परिभाषित करने वाला है।
क्रय शक्ति के आधार पर (आर्थिक मामलों में सर्वश्रेष्ठ पैमाना - और विश्व बैंक के डाटा के आधार पर) दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं चीन (18 ट्रिलियन डॉलर), अमेरिका (17.4 ट्रिलियन) और भारत (7.4 ट्रिलियन डॉलर)। यदि, अगले एक दशक के लिए, चीन की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत सालाना के औसत आर्थिक विकास दर से विकसित होती है तो यह विश्व की जीडीपी में 14.3 ट्रिलियन डॉलर का अतिरिक्त योगदान करेगी। यदि भारतीय अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत सालाना के औसत आर्थिक विकास दर से विकसित होती है तो यह 8.6 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करेगी; वहीं 2.5 प्रतिशत सालाना के औसत आर्थिक विकास दर से, अमेरिका की अर्थव्यवस्था सालाना मात्र 4.9 ट्रिलियन डॉलर ही विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान करेगी।
आंकड़े कहानी का एक ही हिस्सा बताते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण है कि भारत का आर्थिक विकास गुणात्मक रूप से विश्व के विनिर्माण और पूंजीनिवेश के मानदंडों पर आधारित विकास के मॉडल से अलग होगी। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे मॉडल को बहुत कम ऊर्जा, प्राकृतिक संपदा, कार्बन उत्सर्जन और पूंजी प्रति यूनिट जीडीपी की जरूरत होगी।
भारत संपदाओं का संरक्षण करता है और सावधानी से उनका उपयोग करता है क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नही है। हमारे पास विश्व की कुल भूमि का 2.5 प्रतिशत, ताजे पानी का 4 प्रतिशत और उसके ऊपर जनसंख्या वैश्विक आबादी और पशुधन का 17 प्रतिशत है। हमारी भूमि की जरूरत खेती के लिए है, यह महंगा ही रहता है और रीयल इस्टेट की कीमतें ऊंची रहती हैं। हम उच्चतम कार्बन टैक्स लगाते हैं और हमारे ज्यादातर संसाधनों की कीमत उचित हैं। चीन की विनिर्माण संचालित अर्थव्यवस्था में संसाधनों का सघन उपयोग होता है। वर्ल्ड बैंक एण्ड रिसोर्से फॉर द फ्यूचर डाटा के अनुसार वर्तमान में चीन प्रति इकाई पीपीपी जीडीपी के लिए भारत से 52 प्रतिशत अधिक ऊर्जा का उपयोग करता है। इसके अतिरिक्त, आंकड़े बताते हैं कि चीन प्रति इकाई पीपीपी जीडीपी के लिए भारत से 3-4 गुना ज्यादा स्टील और सीमेंट का उपयोग करता है। चीन का कार्बन उत्सर्जन प्रति इकाई पीपीपी जीडीपी भारत के उत्सर्जन से 78 प्रतिशत अधिक है।
भारत में पूंजी उत्पादकता भी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से बहुत ऊंची है। जबकि भारतीय व्यापारिक समूह के पास जरूरत से अधिक कर्ज है, भारतीय कंपनियां आमतौर पर कर्ज लेने में सतर्क रहती हैं। सरकार और वित्तीय संस्थानों का कर्ज भी अधिकतर ब्रिक्स (BRICS) देशों के मुकाबले कम है। भारत का कर्ज, जीडीपी के अनुपात में (जैसा कि McKinsey Global Institute के विश्लेषण में बताया गया है और वित्तीय संस्थानों को भी समावेशित किया है) 135 %; चीन के लिए यह 282%; 160% ब्राजील के लिए; 154% दक्षिण आफ्रीका के लिए; और 88% रूस के लिए है। अमेरिका के लिए यह 269% है।
विशाल और युवा आबादी के लिए सस्ते उत्पाद और सेवाओं की तलाश ही भारत के मितव्ययी विकास मॉडल का संचालन करता है। भारत में मुक्त और बाजार संचालित अर्थव्यवस्था है जो महत्वाकांक्षी उपभोक्ताओं के लिए कम दाम पर कई प्रकार के उत्पादों का निर्माण करती है: मोबाइल, वित्तीय सेवाएं, आइसक्रीम, शैम्पू, मोटरसाइकिल, छोटी कारें, दिल का ऑपरेशन और अल्ट्रासाउंड की मशीनें, उपभोक्ता उपकरण, जेनरिक दवाएं, एयरलाइन सेवाएं इत्यादि। ऐसे सस्ते उत्पादों और सेवाओं को विश्व स्तरीय कंपनियों ने बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से बनाया है जो भारतीय उपभोक्ताओं की जरूरत के हिसाब से हो और उनकी विश्वसनीयता या अनिवार्य क्रियात्मकता पर भी कोई असर न पड़े।
भारत के पास जोशपूर्ण उद्यमिता का पारिस्थितिकतंत्र है जो निरंतर प्रवाह से नये उद्योगों का निर्माण करता रहता है। उदाहरण के लिए, ई-कॉमर्स कंपनियों ने एक अभिनव और बाजार उन्मुख व्यापार मॉडल विकसित किया है जो कैश ऑन डिलेवरी पर आधारित है न कि क्रेडिट कार्ड से किए गये अग्रिम भुगतान पर। इसने लाखों छोटे उत्पादकों और व्यापारियों को इनवेंटरी मैनेजमेंट, लॉजिस्टिक, भुगतान और वित्तीय सेवाओं की सुविधा देकर ऑनलाइन व्यापार से जोड़ा है। इसी प्रकार पेमेंट बैंक भी पड़ोस की दुकान और डाकघर से संचालित होने वाले आसान और सस्ते अकाउंट्स के जरिए वित्तीय परिद्श्य को बदलने जा रहे हैं।
भारत इन मितव्ययी उत्पादों और सेवाओं का निर्यात करता है। यह पहले से ही विश्व में जेनरिक दवाओं, छोटी कारों और मोटरसाइकिल उत्पादन करने वाले प्रमुख देशों में से एक है। यह जल्दी ही इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा उपकरणों के उत्पादन का हब बनने वाला है। जब भारत अपने मितव्ययी उद्योगों को विश्व के विकासशील देशों को निर्यात करेगा तो इससे अन्य देशों में भी वृद्धि और विकास को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। ऐसा आर्थिक विकास खपत संचालित और मांग प्रेरित कहलाता है। इस प्रकार का विकास आपूर्ति के नजरिए से अलग होता है जहां कमोडिटी बूम ने विकासशील दुनिया में हाल के विकास को ताकत दी है।
(जयंत सिन्हा भारत के नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री है और हजारीबाग, झारखंड से संसद के सदस्य हैं. ये उनके अपने व्यक्तिगत विचार हैं।)
जो विचार ऊपर व्यक्त किए गए हैं, वो लेखक के अपने विचार हैं और ये जरूरी नहीं कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो।