Nandan Nilekani Govt. & PSU

भारत की वर्तमान वित्तीय स्थिति को स्वर्ण युग माना जा रहा है और न्यूनतम नकदी अर्थव्यवस्था की दिशा में किये गये प्रयास ही इसे इस दिशा में आगे ले जा रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक हाल-फिलहाल तक देश में लगभग 95 प्रतिशत लेन-देन नकद में होते थे और यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का जीवन रक्षक खून नकद ही रहा है। 8 नवंबर, 2016 को भारत सरकार ने भ्रष्टाचार, आतंकवादी वित्तपोषण और बेहिसाब धन के नकद भंडारों से निपटने के लिए विशिष्ट मुद्रा को विमुद्रीकृत करने की अपनी योजना की घोषणा की। लेकिन, विमुद्रीकरण के अन्य प्रभाव भी थे। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को नकद लेन-देन से डिजिटल लेन-देन की ओर ले जाने में सबसे बड़े प्रोत्साहक का कार्य किया है।

कहना यह नहीं है कि पहले से ही इस क्रांति के लिए सफलता पूर्वक आधार नहीं रखा गया। न्यूनतम-नकदी अर्थव्यवस्था की नींव जेएएम (जन धन-आधार-मोबाइल) में रखी गई थी। वित्तीय समावेशन के लिए एक उपकरण के तौर पर अगस्त, 2014 में शुरू किये गये प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत अब तक 22 करोड़ से अधिक गैर-खाताधारक नागरिकों के बैंक खाते खोले गये हैं। दुनिया की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पहचान संख्या परियोजना ‘आधार’ ने 18 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र (1) के लगभग 99 प्रतिशत भारतीयों को जोड़ा है। बायोमेट्रिक आइडेन्टिफिकेशन वाले आधार के साथ जनधन बैंक खाते और मोबाइल फोन के जरिए सीधे गरीबों के खातों में फंड ट्रांसफर हो रहे हैं। पिछली सरकारों ने डिजिटल मार्केटिंग के लिए आधारभूत संरचना तैयार की थी। हालांकि डिजिटल पेमेन्ट्स को पसंदीदा ट्रांजेक्शन मोड में बदलने के लिए JAM अकेले पर्याप्त नहीं था। इसके लिए अन्य तकनीक जैसे यूनिफाइड पेमेन्ट्स इंटरफेस (यूपीआई) और वैलेट्स की जरूरत पड़ी जो विमुद्रीकरण के बाद वैकल्पिक मोड के तौर पर उपलब्ध दिखे और जिसने देश के लोगों में अपनी पहचान बनायी।

डिजिटल माध्यमों से भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने दो योजनाएं भी पेश की हैं। पहला, लकी ग्राहक योजना, जिसमें उपभोक्ताओं को नकदी रहित लेनदेन करने के लिए दैनिक और साप्ताहिक पुरस्कार का वादा किया गया और दूसरा है डिजि-धन व्यापारी योजना, जिसमें नकदी रहित लेनदेन करने वाले व्यापारियों को पुरस्कार दिए जाते हैं।

पिछले एक साल में, सरकार आधारभूत संरचना को मजबूत बनाने में जुटी हुई है ताकि डिजिटल भुगतान को सभी भारतीयों के लिए न केवल संभव बल्कि सुविधाजनक भी बनाया जा सके। इस दिशा में नये कदम के तौर पर सरकार ने भीम (BHIM) प्लेटफार्म का शुभारंभ और विस्तार किया, जिसकी 2 अभिव्यक्तियां हैंः

स्मार्टफोन और इंटरनेट एक्सेस के साथ लगभग 25 करोड़ नागरिकों के लिए ऐप्स।

अनुमानित 35 करोड़ नागरिकों के लिए *99# जो बिना इंटरनेट वाले फीचर फोन या अन्य फोन का इस्तेमाल करते हैं।

भीम (BHIM) के उपयोग का तीसरा तरीका है- वाया एईपीएस (आधारयुक्त भुगतान प्रणाली)। यह बिना फोन वाले नागरिकों के लिए उपयोगी होगा, जिसमें करीब शेष 35 करोड़ भारतीय आते हैं। ऐप्स और *99# के माध्यम से BHIM प्लेटफॉर्म वर्तमान में उन लोगों की जरूरतें पूरी कर रहा है जिनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट एक्सेस हैं। साथ ही उनकी भी, जिनके पास फीचर फोन हैं और जो बिना इंटरनेट एक्सेस के बाधारहित डिजिटल ट्रांजेक्शन करते हैं।

तीसरी श्रेणी के लोग हैं जिनके पास फोन नहीं हैं, ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, गरीब हैं और सामाजिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं और इसलिए जिन्हें वित्तीय सेवाओं तक आसान पहुंच की सबसे अधिक आवश्यकता है। निश्चित रूप से यह उपयोग के मामले में सबसे मुश्किल श्रेणी है, जहां ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन उन तक पहुंचने के लिए हमारे पास बैंक की सहायता से एईपीएस हैं।

प्रस्तावित योजना ये है कि कारोबारी संवाद वाले खास जगहों पर (साझा सेवा केंद्र, स्व सहायता समूह, स्वयंसेवक समूह, किराना स्टोर आदि) बैंक खाते खोल कर (अगर उनके पास नहीं हों - जैसा कि उम्मीद है) और माइक्रो एटीएम (एक एईपीएस टूल) के जरिए रकम जमा कर या निकाल कर ऐसे लोगों की मदद की जाए जो इस सुविधा से दूर हैं। ये माइक्रो-एटीएम आधार का उपयोग करते हुए ईकेवाईसी (इलेक्ट्रॉनिक-अपने ग्राहक को जानें) को सत्यापित कर सकते हैं और स्वत: बैंक खाता खोल सकते हैं जिससे उनकी बैंकिंग की जरूरतें एक ही जगह पूरी हो जाएं। जल्द ही आधार भुगतान (फिंगरप्रिंट स्कैनर्स के साथ Aadhaar enabled Point of Sale devices) स्थापित किए जाएंगे और खुदरा केंद्रों पर उन्हें सक्षम बनाया जाएगा।

इससे ग्राहक के आधार-लिंक्ड बैंक खाते से खुदरा कारोबारियों तक सीधे लेन-देन हो सकेगा। सत्यापन के लिए जरूरत सिर्फ ग्राहक के आधार नंबर और बायोमेट्रिक डाटा (फिंगर प्रिंट/आयरिस स्कैन) की होगी।

इस बजट में, वर्ष 2017-18 के लिए भीम (BHIM) प्लेटफॉर्म (यूपीआई, यूएसएसडी, आधार वेतन), आईएमपीएस (तत्काल भुगतान सेवा) और डेबिट कार्ड के माध्यम से 2,500 करोड़ के डिजिटल लेनदेन का लक्ष्य रखा गया था। अब तक देश की प्रारम्भिक उपलब्धियों को देखकर लगता है कि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है, खासकर इसलिए कि जबसे भीम (BHIM) तैयार हुआ है इसकी पहुंच और स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है। निकट भविष्य के लिए सबसे पहला लक्ष्य नकद टच प्वाइंट वाले सभी बड़े मर्चेंट {जैसे कि रेलवे, तेल विपणन कंपनियां (एलपीजी, पेट्रोल और डीजल), कृषि, खाद्य, एफएमसीजी, आदि} को डिजिटल भुगतान स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करना है। दूसरा लक्ष्य सभी व्यवसायियों को डिजिटल तरीके से अपने कर्मचारियों और ठेकेदारों को भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करना होना चाहिए। तीसरा लक्ष्य है सूक्ष्म और छोटे खुदरा भुगतान को व्यापारी स्वीकृति प्वाइंट्स में गुणात्मक वृद्धि के माध्यम से दायरे में लाना है ताकि वे भीम (BHIM) के माध्यम से भुगतान स्वीकार करें।

अंततः, भारत पूर्ण रूप से जवाबदेह, पारदर्शी डिजिटल लेन-देन में विश्व का अगुआ होने के शिखर पर है; हमारे पास इस स्थान के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, उचित नियामक वातावरण और डिजिटल बुनियादी ढांचा है!

 

  • 28 फरवरी 2017 के अनुसार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अनुसार।

 

(नंदन नीलेकणी एकस्टेप फाउंडेशन के अध्यक्ष और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम के मानद सलाहकार हैं। वह भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के संस्थापक अध्यक्ष थे और इन्फोसिस के सहसंस्थापक थे। नंदन इमेजिंग इंडिया के लेखक और रिबूटिंग इंडिया के सह-लेखक हैं।)

जो विचार ऊपर व्यक्त किए गए हैं, वो लेखक के अपने विचार हैं और ये जरूरी नहीं कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो।