हमारा विश्व कई सारे परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है और हम यह भी देख रहे हैं कि ये परिवर्तन किस गति से हो रहे हैं। इस परिवर्तन में एक प्रतिबद्धता के साथ जोखिम भी है। विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास और लगातार विकसित होती प्रौद्योगिकी ने हमें पहले की तुलना में कहीं ज्यादा बुद्धिमान बनाने और एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया है। चौथी औद्योगिक क्रांति ने विश्व को एक बिल्कुल अलग मोड़ पर लाकर खड़ा किया है। स्मार्ट इनोवेशन से हमें सटीक जानकारियां मिल रही हैं, साथ ही सूचना के प्रवाह में तेजी आई है।

इसके साथ ही, मौजूदा वक्त में हम कई अहम वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इनमें पुरानी और नई दोनों तरह की चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों में आय में बढ़ती असमानता, जॉबलेस ग्रोथ का दौर, दुनिया भर में हिंसा और संघर्ष में आई तेजी, सरकारों के अस्थिर होने का खतरा, संघीय सरकारों में गिरता जनता का विश्वास और लगातार बढ़ते क्षेत्रीय संघर्ष शामिल हैं। निश्चित रूप से इनके अलावा पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियां भी हमारे सामने हैं।

हालांकि इन सबके साथ-साथ हम नई तरह की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणालियों के उद्भव को भी देख रहे हैं जिनका क्षेत्रीय से लेकर वैश्विक स्तर तक दूरगामी प्रभाव है। एकध्रुवीय वैश्विक शासन प्रणाली से आज हम एक बहुध्रुवीय और बहुवैचारिक सामाजिक व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं जहां अनिश्चितताएं भी कम नहीं।

अपनी ही जटिलताओं के बोझ के नीचे दबकर हमारी दुनिया खंडित अवस्था में पहुंच गई है और उथल-पुथल भरे सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रही है। हमारा भविष्य और हमारे विश्व का अस्तित्व हमारी क्षमताओं पर निर्भर करता है। व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हम इन परिवर्तनों और वैश्विक चुनौतियों के साथ कैसे आगे बढ़ते हैं, कैसे इन्हें अपने हित में ढालते हैं, आगे की स्थिति इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगी।      

तमाम तरह बदलावों के बीच भारत एक आशा और प्रतिबद्धता की तस्वीर पेश करता है। भारत का अनूठा जनसांख्यिकी विभाजन, बढ़ती हुई उद्यमशीलता की भावना, सभी क्षेत्रों में सफल इनोवेशन, और संरचनात्मक सुधार के लिए उठाए गए बोल्ड कदमों की वजह से यहां व्यापक आर्थिक आधारों को गति मिली है। इससे भारत का दीर्घकालीन इकोनॉमिक आउटलुक भी मजबूत हुआ है।

इसके साथ ही भारत कई वैश्विक पहल में नेतृत्व की अपनी भूमिका को बढ़ाने में लगा है। पेरिस जलवायु समझौता और इंटरनेशनल सोलर अलायंस में अग्रणी भूमिका के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होने के प्रयास ये दर्शाते हैं कि भारत वैश्विक राजनीति में और अहम भूमिका तलाश रहा है। निरंतर अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान और प्रभाव को और पुख्ता करते हुए भारत एक प्रमुख ग्लोबल प्लेयर के रूप में खुद को स्थापित करने में लगा हुआ है।

जटिल संघीय ढांचे और बेहद बहुलवादी, विविधिताओं से भरे समाज के बावजूद भारत की आसाधारण उपलब्धियां यह साबित करती हैं कि इस देश के पास एक मजबूत संस्थागत तंत्र है। यही वह तंत्र है जो व्यापक स्तर पर फैली विविधिता के बीच सामंजस्यता की भारत की छवि को उभारता है। दरअसल यह पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो विभिन्न वैचारिकता वाले लोगों के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष कर रही है। भारत में सब सबका साथ, सबका विकास का दर्शन ही इसे संभव बना रहा है।

भारत के लिए यही सही वक्त है कि वो अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाए और सुदृढ़ एवं लचीली अर्थव्यवस्था, सामाजिक और राजनीतिक आधार को मजबूती दे। हालांकि भारत के लिए अपने सुधारों के कदमों का फायदा उठाने के लिए जरूरी है कि वो अपनी कुछ घरेलू चुनौतियों से निपटते हुए उन्हें दूर करे। 

आर्थिक और सामाजिक तौर पर महत्वपूर्ण विकास के बावजूद, स्थानीय स्तर पर आय और लैंगिक असमानता अभी भी कायम है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में प्रमुख सार्वजनिक सेवाओं की पहुंच एकसमान हो, इस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। ऊंचे स्तर के वायु प्रदूषण से जुड़ी चिंता दूर करने के साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने की भी जरूरत है। इनमें से कई चुनौतियों को लेकर सरकार पहले ही कदम उठा चुकी है और काम कर रही है।

23-26 जनवरी तक स्विट्जरलैंड के दावोस-क्लोस्टर्स में 2018 की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक मीटिंग होने जा रही है, जिसका विषय “Creating a Shared Future in a Fractured World” है। इस बैठक में दुनिया भर से व्यापार, सरकार, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, सिविल सोसाइटी, शिक्षा, मीडिया और कला जगत से जुड़े 3,000 से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल होंगे। ये सभी प्रतिनिधि मौजूदा समय की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों का एजेंडा तय करने की कोशिश करेंगे। इस बैठक में हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेजबानी करने को लेकर काफी खुश हैं। पिछले दो दशकों में पहली बार भारत का कोई प्रधानमंत्री इस बैठक में शिरकत कर रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि परिवर्तन के दौर से गुजर रहा भारत जल्द ही एक ऐसी ताकत बनकर उभरेगा जिसका दुनिया लोहा मानेगी। वैश्विक नीतियों को लेकर होने वाली बहस को कारगर बनाकर भविष्य को आकार देने में नि:संदेह भारत की बड़ी भूमिका होने वाली है। एक समृद्ध विश्व के लिए बेहतर नीतियों को डिजाइन और विकसित करने में भारत का अहम योगदान रहने वाला है। पारस्परिक हित और सामूहिक चिंतन से पैदा हुआ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग ही एकमात्र वह तरीका है जो हमें हमारी चुनौतियों से सही तरह से निपटने और अधिक न्यायसंगत, समृद्ध और सामंजस्यता से पूर्ण वैश्विक समाज बनाने की अनुमति देगा।

(क्लॉस श्वाब वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष हैं।)

ऊपर व्यक्त की गई राय लेखक की अपनी राय है। यह आवश्यक नहीं है कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी ऐप इससे सहमत हो।