- हम धीरे-धीरे एक पोस्ट कोविड व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं।
- एक अधिक बहुध्रुवीय विश्व की ओर रुझान है और वैश्विक अर्थव्यवस्था का शक्ति केंद्र एशिया की ओर स्थानांतरित हो रहा है।
- इस नए युग में भारत विश्व स्तर पर निरंतर विकास और प्रभाव के लिए आर्थिक विस्तार और स्थिरता को प्राथमिकता देगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 को महामारी घोषित किए जाने के लगभग दो साल बाद, दुनिया वायरस के कारण होने वाली दिक्कतों से जुझती नजर आ रही है।
महामारी का सबसे गहरा और अहम प्रभाव हेल्थकेयर सिस्टम पर महामारी का रहा है और फिर इसके बाद इसका प्रभाव आर्थिक गतिविधियों पर पड़ा है।
महामारी का मुकाबला करने और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सरकार के एक्शन के कारण ग्लोबल सप्लाई को झटका लगा, विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में और लॉकडाउन और अन्य रोकथाम उपायों के कारण कारोबार में व्यापक व्यवधान उत्पन्न हुआ।
अब यह स्पष्ट है कि महामारी ने दुनिया को 21वीं सदी के दूसरे बड़े आर्थिक और वित्तीय संकट में ला दिया है और इसके दीर्घकालिक संरचनात्मक नतीजों की संभावना है। इसके अलावा, इसने वैश्विक, आर्थिक और भू-राजनीतिक व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है।
हालांकि इंटरनेशनल ऑर्डर में मंथन महामारी से पहले ही शुरू हो गया था; भू-राजनीतिक बदलावों के कारण सत्ता समीकरण पहले ही बदलने लगे थे। एक अधिक बहुध्रुवीय दुनिया की ओर एक स्पष्ट रुझान था और वैश्विक अर्थव्यवस्था का पॉवर सेंटर एशिया में स्थानांतरित होने लगा।
वर्तमान विश्व व्यवस्था को काफी हद तक बदल दिया गया है और यह एक नई पोस्ट-कोविड व्यवस्था को जन्म देने के लिए बाध्य है। बदलाव की इस स्थिति में आकांक्षी और उभरती शक्तियों को केंद्र स्तर पर ले जाने और सभी के बेहतर भविष्य के साथ एक नई दुनिया को आकार देने में मदद करने के लिए जगह बनाई गई है।
दरअसल, हमारी अर्थव्यवस्थाओं में रिकवरी की किरणें उभरने लगी हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 6% बढ़ेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5% की वृद्धि का अनुमान है। साथ ही दुनिया, डिजिटल सर्विसेज और इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से वृद्धि देख रही है, जिसमें बड़े पैमाने पर वर्क फॉर्म होम की व्यवस्था को अपनाने से लेकर क्लाउड सर्विसेज और वीडियो कांफ्रेंसिंग के उपयोग तक शामिल हैं।
कई तकनीक दिग्गजों ने अनुभव किया है कि डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में प्रगति जो कुछ महीनों के भीतर हासिल की गई, उसमें आम तौर पर दो से तीन साल लग जाते। ये आशावादी संकेत हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
अपनी आबादी को सुरक्षित करने के साथ भारत ने दुनिया भर में 150 से अधिक देशों को चिकित्सा आपूर्ति और उपकरण प्रदान करके और विश्व बाजार में कोविड-19 वैक्सीन की महत्वपूर्ण सप्लाई करके दुनिया के सर्वोत्तम हित में काम किया है।
वैश्विक स्तर पर भारत का भविष्य
वायरस के कारण हुई आर्थिक तबाही के बावजूद भारत का त्वरित और चुस्त रिस्पांस सराहनीय रहा है, विशेष रूप से देश ने 2021 की शुरुआत में वायरस की दूसरी घातक लहर का सामना करने के लिए जो तैयारी की। भारत पहला देश था जिसने संक्रामक डेल्टा वेरिएंट के प्रभाव को महसूस किया, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि अधिक से अधिक लोगों को टीका लगाया गया था, भारत जल्द एक्शन में जुट गया। वैक्सीन की एक अरब खुराक पहले ही दी जा चुकी है।
अपनी आबादी को सुरक्षित करने के साथ भारत ने दुनिया भर में 150 से अधिक देशों को चिकित्सा आपूर्ति और उपकरण प्रदान करके और विश्व बाजार में कोविड-19 वैक्सीन की महत्वपूर्ण आपूर्ति करके दुनिया के सर्वोत्तम हित में काम किया है। वास्तव में महामारी भारत के लिए एक वर्ल्ड लीडर के रूप में अपनी क्षमता पर आत्मनिरीक्षण करने का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष मना रहा है।
भारत वर्षों से वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण दवाओं की सप्लाई करता रहा है, हाल ही में दुनिया भर में समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कोविड-19 वैक्सीन की सप्लाई में निवेश किया है।
कोविड संकट की शुरुआत में भारत के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की पहल ने पहला बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित किया, जिसने जी-20 और अन्य को भी इसका पालन करने के लिए प्रेरित किया। देश के दिसंबर 2022 में जी-20 अध्यक्ष बनने के साथ, यह निश्चित रूप से पोस्ट कोविड ग्लोबल रिकवरी प्रोसेस में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
महामारी के अलावा भारत अपने जलवायु शमन (Climate Mitigation) वादों को पूरा करने सहित अन्य वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा कर रहा है। यह अन्य महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लक्ष्य से भी काफी आगे है जैसे कि 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा को अपने ऊर्जा मिश्रण का 40% बनाना और 2.5 बिलियन टन कार्बन का प्रबंधन करना।
ग्लासगो, स्कॉटलैंड में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को एक महत्वाकांक्षी पंचामृत प्रतिज्ञा के लिए प्रतिबद्ध किया, जो देश को अपनी अर्थव्यवस्था के पांच प्रमुख क्षेत्रों को अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के साधन के रूप में काम करेगा। पांच सेक्टर- एनर्जी, मोबिलिटी, इंडस्ट्री, इंफ्रास्ट्रक्चर एंड सिटीज और एग्रीकल्चर, ग्लोबल 1.5-डिग्री सेल्सियस वार्मिंग टारगेट को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक हालिया रिपोर्ट 'मिशन 2070: ए ग्रीन न्यू डील फॉर ए नेट-जीरो इंडिया' बताती है कि कैसे भारत के नेट-जीरो की दिशा पर चलने पर 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक और 2070 तक लगभग 15 ट्रिलियन डॉलर का अनुमानित आर्थिक प्रभाव होगा। इसके अलावा, भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उपलब्धि का समर्थन करने के अपने प्रयासों के हिस्से के रूप में सहयोग, टेक्नोलॉजी और डिजिटलीकरण को प्राथमिकता दी है।
ग्लासगो, स्कॉटलैंड में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को एक महत्वाकांक्षी पंचामृत प्रतिज्ञा के लिए प्रतिबद्ध किया, जो देश को अपनी अर्थव्यवस्था के पांच प्रमुख क्षेत्रों को अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के साधन के रूप में काम करेगा।
चुनौतियां और अवसर
भारत अपनी अर्थव्यवस्था के डिरेगुलेशन के 30 साल पूरे कर रहा है, जो इसके इतिहास में एक और महत्वपूर्ण मोड़ है और खुद को फिर से स्थापित करने की क्षमता का एक वसीयतनामा (टेस्टामेंट) है। न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी समावेशी विकास और आत्मनिर्भरता हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन डिजिटल सशक्तिकरण और अंतिम छोर तक वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के वर्तमान प्रशासन के प्रयास विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सरकार द्वारा समर्थित डिजिटल पेमेंट सिस्टम के तत्वावधान में, लाखों गरीबों ने (बिना बैंक वाले परिवार) इनफॉर्मल इकोनॉमी में प्रवेश किया है और अब वे बुनियादी वित्तीय सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं।
वैश्विक मंच पर भारत के राजनयिक प्रयास वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन से प्रेरित हैं यानी दुनिया एक परिवार है। ऐसे समय के लिए दुनिया को इस तरह की नैरेटिव की जरूरत है। वास्तव में, भारत का नवीकृत और सुधारित बहुपक्षवाद का आह्वान वैश्विक नेताओं और नीति-निर्माताओं के साथ प्रतिध्वनित हो रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख संरचनात्मक सुधार शुरू किए गए हैं। भारत के ट्रांसफॉर्मेशन को उत्प्रेरित करने के लिए सरकार का विजन गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान और आत्मनिर्भर भारत मिशन सहित कई पहलों के शुभारंभ में स्पष्ट है।
सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन और राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना की भी घोषणा की है। यह व्यापक विकास एजेंडा कई क्षेत्रों में पहल का समर्थन करता है, जिसमें कई और अलग-अलग श्रम कानूनों को समेकित करने के लिए सुधार, इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड का मसौदा तैयार करना और बैंकिंग सुधार शामिल हैं। भारत को इन प्रशंसनीय पहलों की गति को बनाए रखना चाहिए और अपनी अर्थव्यवस्था की मजबूती और उत्साह को बढ़ाना जारी रखना चाहिए। साथ ही, इन और अन्य संरचनात्मक सुधारों का उद्देश्य समान और समावेशी विकास सुनिश्चित करना होना चाहिए।
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि महामारी ने मौजूदा असमानताओं और कमजोर समूहों पर उनके प्रभाव को उजागर और बढ़ा दिया है जो मुख्य रूप से इनफॉर्मल सेक्टर में कार्यरत हैं। ये असमानताएँ हैं जिन्हें भारत सरकार समावेशी और समान विकास के माध्यम से महामारी के आने से पहले ही समाधान कर रही थी, जिसने किसानों के लिए आय सहायता, सुरक्षित और किफायती आवास, सुरक्षित पेयजल और सभी के लिए बिजली प्रदान की।
भारत के पास जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक) लाभ, स्किल्ड वर्कफोर्स, तकनीकी जानकारी और वैश्विक बाजार में अपने लिए एक मजबूत जगह बनाने के लिए आवश्यक रिसर्च एंड डेवलपमेंट क्षमता है।
भारत को आगे बढ़ते हुए ग्रोथ और प्रभाव के पथ को बनाए रखने के लिए आर्थिक विस्तार और स्थिरता को प्राथमिकता देनी होगी। देश को तेजी से विकास का समर्थन करने वाली आर्थिक नीति को आकार देने के लिए वृद्धिशील परिवर्तन (Incremental change) के बजाय ट्रांसफॉर्मेशनल को अपनाना जारी रखना चाहिए। इसके लिए राजकोषीय संतुलन को बहाल करने और बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए मजबूत उपायों के साथ व्यापक और प्रणालीगत क्षेत्रीय सुधारों के लिए निरंतर प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी।
भारत को प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए भी निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता होगी। देश को न केवल सड़कों और पुलों के लिए, बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए भी अपने इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रयासों को तेज करना होगा। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है कि भारत का डेमोग्राफिक लाभ एक डिविडेंड बन जाए और इससे प्रत्येक वर्ष वर्कफोर्स में शामिल होने वाले लाखों युवा रोजगार प्राप्त हो।
हाल ही में लॉन्च किए गए इंडिनय स्पेस एसोसिएशन के माध्यम से स्पेस सेक्टर पर भारत के नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने का भी उल्लेख करना चाहिए। वापस यहां भी भारत सरकार मैन्युफैक्चरिंग पर उचित जोर दे रही है। ग्लोबल सप्लाई चेन को फिर से शुरू करने और उनके पुनर्वितरण में भौगोलिक विविधीकरण के साथ, भारत एक सुरक्षित और स्थिर डेस्टिनेशन प्रदान करता है और ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर सकता है। भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभ, कुशल कार्यबल, तकनीकी जानकारी और वैश्विक बाजार में अपने लिए एक मजबूत जगह बनाने के लिए आवश्यक रिसर्च और डेवलपमेंट क्षमता है।
आखिरी पर अंतिम नहीं, भारत भी अपनी एनर्जी ट्रांजिशन जर्नी में तेजी से आगे बढ़ रहा है: नेशनल हाइड्रोजन मिशन स्थापित करने की सरकार की योजना सही दिशा में एक कदम है। दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में भारत के पास एक अनूठा अवसर और एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जिससे विकास और समृद्धि के नए अवसर पैदा होते हैं।
जारी अस्थिरता और परिवर्तन के बीच, भारत के पास न केवल शॉर्ट-टर्म पब्लिक हेल्थ चुनौतियों का समाधान करने के लिए बल्कि कोविड के बाद की दुनिया में शक्ति और प्रभाव की एक महत्वपूर्ण धुरी बनने के लिए कई नीतिगत बदलाव करने का दुर्लभ अवसर है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम मंच नई भूमिकाओं के नेतृत्व को संभालने और दुनिया को सभी के लिए एक बेहतर, उज्ज्वल और अधिक सस्टेनबल भविष्य बनाने में मदद करने के प्रयासों में भारत के साथ खड़ा है।
(बोर्ज ब्रेंडे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के प्रेसिडेंट हैं।)
ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक (लेखकों) के हैं और नरेन्द्र मोदी वेबसाइट और नरेंद्र मोदी ऐप आवश्यक रूप से व्यक्त किए गए विचारों का समर्थन नहीं करते हैं।