चीन ने गरीबी और अभाव की मार झेलने वाली अपनी जनता के जीवन में बेहतरी लाकर उसे मध्यवर्गीय समाज का हिस्सा बनाया। सहस्राब्दी विकास लक्ष्य के मापदंड पर निश्चय ही चीन की ये बड़ी उपलब्धि है..लेकिन सतत विकास का लक्ष्य (SDG)2030 को हासिल करने की दिशा में अब दुनिया भारत की कहानी नए अंदाज़ और नये संदर्भ में देखेगी। ये वो लक्ष्य है जिसे हासिल करने के लिए दुनिया 2015 में सहमत हो चुकी है। सतत विकास का लक्ष्य (SDG) तभी हासिल होगा, जब भारत अपने 27 करोड़ से ज़्यादा नागरिकों को भीषण गरीबी से बाहर निकालकर उन्हें बेहतर जीवनयापन देने में कामयाब होगा। दुनिया में एक बड़ी ताकत बनने की इच्छा रखने वाले देश को इसके लिए जरूरी कदम उठाना होगा। भारत एक ऐसी जगह बने जहां आसान जीवनयापन उसी तरह से स्वभाव का हिस्सा हो जैसे व्यापार करने में आसान स्थितियों का होना। देश के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और इसके लिए सबसे जरूरी है मानवीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना..मानवीय सुरक्षा को भूख, बीमारी, कुपोषण, शिशु मृत्यु खत्म करने के साथ सभी के लिए मातृत्व और बच्चों को देखभाल प्रदान करने के दृढ़ संकल्प के साथ हासिल किया जा सकता है।
SDG का समीकरण बहुत ही सामान्य है। अगर भारत सतत विकास का लक्ष्य (SDG ) हासिल नहीं कर पाया, तो वैश्विक SDG भी नाकाम हो जाएगा। अगर भारत सफल होता है, जो होना ही है, तभी विश्व समुदाय को सफलता मिलेगी। विकास का जो ‘India Model’ है वो दुनिया के बड़े हिस्से में अनुकरण करने का ब्लूप्रिंट बन जाएगा। बड़ी शक्तियां यही करती हैं: वो दूसरों को समाधान और रोडमैप देती हैं। भारत को भी एक बड़ी शक्ति के तौर पर इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए और पूरा करके दिखाना चाहिए। ये अपने लिए भी और बेहतर दुनिया की वैश्विक महत्वाकांक्षा में मदद के लिए भी जरूरी है।
अपनी संरचनात्मक कमियों को सुलझाने की खुद की क्षमता से भारत दुनिया को सार्वजनिक वस्तु मुहैया कराने वाले अग्रणी देश के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है। एक अगुआ शक्ति के रूप में भारत को वैश्विक विकास के लिए विचारों एवं समाधानों और वित्तीय संसाधनों, दोनों का स्रोत बनना पड़ेगा। वित्तीय संसाधनों का स्रोत बनने की क्षमता हासिल करना अनिवार्य है क्योंकि अगर अर्थव्यवस्था विकसित होगी, तभी विकास की साझीदारी वाले कार्यक्रम का विस्तार होगा। जहां तक विचार और समाधान का स्रोत बनने की बात है तो इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व और संस्थागत पुनर्निर्माण की आवश्यकता होती है। भारतीय नेतृत्व की वैश्विक आवश्यकता बहुत महत्वपूर्ण है। अगले एक दशक में भारत का कायाकल्प होगा। उन क्षेत्रों के हालात भी बदलेंगे जहां पारंपरिक ग्राहक दुविधा में हैं और कुछ मामलों में अपने दायित्वों से भागना चाह रहे हैं। ये लगातार उभरती हुई ऐसी दुनिया है जहां विकासशील विश्व के लिए पूंजी का प्रवाह और लाभकारी व्यापार अतीत की यादें रह गई हैं। अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और OECD (द ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) के अन्य सदस्य, सभी इस जिम्मेदारी का बोझ उठाने में थकान महसूस कर रहे हैं। इसीलिए भारत को आगे बढ़ना चाहिए।

पीएम मोदी का नेतृत्व

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों से ही भारत के विकास के इस पहलू पर जोर दिया है। उन्होंने गरीबी खत्म करने के लिए समुचित रोजगार और सामाजिक कार्यक्रमों की मजबूती की आवश्यकता पर भी बल दिया है। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, स्किल इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्टार्टअप इंडिया, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP), दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, मिशन इंद्रधनुष और उज्ज्वला योजना जैसी पहल भारत के बदलाव की कहानी में अहम भूमिका निभाएगी।
उत्तरप्रदेश और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के दो ताजा बयानों से पारंपरिक रूप से सामाजिक सूचकांकों पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में भी केंद्र के नेतृत्व का अनुकरण करने को लेकर आशा की एक किरण जगी है। पहला एलान हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर की ओर से ये किया गया कि हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात 2015 के 850 की तुलना में सुधरकर 2016 में 938 हो गया। यह महत्वपूर्ण है कि पिछले दशक में हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात 762 से 860 के बीच था। ये सकारात्मक अंतर प्रधानमंत्री द्वारा हरियाणा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP) की शुरुआत करने के चलते आया। इससे बच्चियों की रक्षा के लिए चौतरफा कवायद शुरू हुई। यह सराहनीय है कि हरियाणा वर्ष 2000 में जन्म के समय पंजीकरण के स्तर को 76% से सुधार कर 2011 तक 100% करने में सफल रहा। इससे सरकार जिला और उप-जिला स्तर पर लिंगानुपात पर मासिक आधार पर नजर रखने में सक्षम हो गई है। अब एक दशक में होने वाली जनगणना या ऐसे ही दूसरे सर्वे का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।

इसी तरह यूपी के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान भी बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने वादा किया है कि कुपोषण या रोकी जा सकने वाली बीमारियों से होने वाली मौतों के लिए संबंधित जिले के जिलाधिकारियों और चीफ मेडिकल ऑफिसर्स को जिम्मेदार माना जाएगा। उत्तरप्रदेश भारत की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, जहां कुल जनसंख्या का छठा भाग रहता है। अगर ये एक देश होता, तो जनसंख्या की दृष्टि से ये विश्व में पांचवें स्थान पर होता। दुनिया के 76.7 करोड़ गरीबों में से 27 करोड़ गरीब भारत में हैं, जिसमें अकेले यूपी में उनकी संख्या 6 करोड़ या उससे ज्यादा है। उत्तरप्रदेश में सालाना 14,500 से अधिक माताओं की मौत प्रसव के दौरान या उसके बाद हो जाती है, जो देश की कुल मातृ मृत्यु का एक-तिहाई है। स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े अधिकांश मानकों में उत्तर प्रदेश भारतीय औसत से काफी पीछे है। इसके लिए जिम्मेदारी तय करने का फ्रेमवर्क तैयार करने की दिशा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रस्ताव को वैचारिक पूर्वाग्रहों को भुलाकर पूरे भारत में अपनाया जाना चाहिए।

दो मुख्यमंत्रियों द्वारा की गई घोषणाओं को एक साथ रखें, तो दोनों में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के बदलाव के लिए दो महत्वपूर्ण पहलुओं को छुआ गया है। पहला, डाटा पर आधारित चौतरफा कार्रवाई की शक्ति और दूसरा, जवाबदेही की अनिवार्यता। इन दोनों ने प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुकूल प्रतिक्रिया दी है और शायद अब इसमें दूसरों को भी शामिल करने और मानवीय सुरक्षा को देश की प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर रखने का उपयुक्त समय है। यह वास्तव में ‘जीवन का अधिकार’ जैसे संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए ऊंची राजनीति और उम्दा अर्थशास्त्र के जरिए पवित्र सेवा किए जाने का मौका है।

क्या किया जा सकता है?

हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने स्वास्थ्य और लिंग को प्राथमिकता वाला क्षेत्र बनाया है। दो प्रमुख राज्यों द्वारा इन क्षेत्रों में उठाए गए उल्लेखनीय कदमों से भारत की सफलता तय होगी। इसे और विस्तार देकर मुख्यधारा में बनाए रखने की जरूरत है, ताकि 2030 आते-आते इससे दुनिया की भी सफलता तय हो जाए। केंद्र सरकार को वार्षिक SDG (Sustainable Development Goals) रिपोर्ट कार्ड बनाने में मदद करने पर विचार करना चाहिए। ये जिला स्तर पर (और उससे नीचे भी) इन दोनों क्षेत्रों से जुड़े और दूसरे SDG को ट्रैक कर सकते हैं। सांसदों, विधायकों, डीएम, सीएमओ और खास इलाके के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार अन्य अधिकारियों को इन उपलब्धि पत्रों को अपनाना चाहिए और हर किसी को उसमें प्रवीण होना चाहिए।

समूचे भारत के लिए एक साथ समाधान ढूंढ़ते हुए अटकने के बजाय, क्षेत्र विशेष की समस्याओं का हल तलाशने के लिए वहां के संदर्भ वाले इनपुट पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है। अपनी कुछ अहम चुनौतियों के निदान के लिए भारत को कम से कम जिला स्तर पर अलग-अलग तरीके से काम करने की आवश्यकता है। हरियाणा की सफलता और योगी आदित्यनाथ के हस्तक्षेप से एक अवसर मिला है। इससे जीवन का अधिकार और गरिमा का अधिकार दिलाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष की शुरुआत की जा सकती है। इस प्रक्रिया में हम अपने जनसांख्यिकी के फायदे का भी एहसास कर सकते हैं। पांच कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं जिन पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है:

1• राजनीतिक उद्यमियों के बीच से स्वास्थ्य के सूरमाओं की आवश्यकता है: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 जारी होने के बाद अपने पहले मन की बात में प्रधानमंत्री ने मानसिक स्वास्थ्य के अलावा मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की चर्चा करके एक बहुत ही सकारात्मक संकेत दिया है। स्वतंत्रता के बाद भारत में मोदी शायद पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो वास्तव में एनीरिन बेवन, लिंडन जॉनसन, ओटो वैन बिस्मार्क और टॉमी डगलस की लीग में एक स्वास्थ्य चैंपियन बन सकते हैं। भारत की विशालता और अपार चुनौतियों को देखते हुए हमें ऐसे कई स्वास्थ्य सूरमाओं की आवश्यकता है। यह महत्वपूर्ण है कि सभी राजनीतिज्ञ और खासकर जिनमें इस क्षेत्र में मदद करने की क्षमता है उन्हें योजनाओं के निर्माण में विशिष्ट योगदान का प्रयास करना चाहिए।

2• अंतर-क्षेत्रीय कार्रवाई और साझा-शासन की आवश्यकता: ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’जैसी पहल से सीख लेते हुए राज्य स्तर पर अधिकार प्राप्त अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-संस्थागत एकजुटता की आवश्यकता है। सामाजिक नीति के पारितंत्र से एकाकी और विखंडित दृष्टिकोण को खत्म करना होगा। इसने परिणामों के व्यापक निर्धारण में नीति निर्माण की प्रक्रिया को दिशाहीन बना दिया है।

3• वित्त व्यवस्था के नये स्रोतों की आवश्यकता: हालांकि, पिछले बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्रीय आवंटन में खास बढ़ोत्तरी की गई है, लेकिन खर्च के बेहद निचले स्तर को देखते हुए नए स्रोतों को तलाशने की जरूरत है। भारत की मानवीय संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रधानमंत्री की पहल में निजी क्षेत्र को निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण योगदान करना चाहिए। साथ ही समाजसेवियों को राष्ट्र नियोजन की प्रक्रिया का हिस्सा बनाना चाहिए।

4• परिणामों पर चौतरफा नजर रखने की जरूरत: हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियमित रूप से परिणामों को ट्रैक करने के लिए हमारे पास विश्वसनीय डाटा स्रोत हों।हरियाणा में 100% जन्म और मृत्यु का पंजीकरण हो रहा है, जबकि यूपी में अभी भी जन्म पंजीकरण 68% और मृत्यु पंजीकरण 46% ही हो पा रहा है। इसकी प्रगति को ट्रैक करने में प्रशासन की मौजूदा क्षमता एक बहुत बड़ी बाधा है। इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है और इस ओर यूपी के नए मुख्यमंत्री का पूरा ध्यान है, ये बहुत ही सराहनीय है। अन्य राज्यों को भी इसका पालन करना चाहिए।

5• बड़े पैमाने पर नई तकनीक का लाभ उठाने की जरूरत : तकनीक में व्यवधान ने नीति निर्माण में ढेर सारी बाधाएं खड़ी की हैं और कई पेशे को नापसंद का बना दिया है। चाहे वह उन क्षेत्रों में सेवाएं ले रहा हो जिसमें बहुत कम काम हुए हों या डाटा एकत्र करने से लेकर सूचना अभियानों के माध्यम से जनता तक पहुंचने में मदद का काम, नई तकनीक एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाएगी। लेकिन तकनीक एक उपकरण और एक उत्प्रेरक की तरह है, जिसके लिए संस्थागत क्षमता विकसित करने की आवश्यकता होगी।

अगर हम इन पांच कदमों को आगे बढ़ाएं तो प्रधानमंत्री मोदी की विरासत सिर्फ भारत को ताकत ही नहीं देगी। बल्कि, मजबूत संस्थागत रूपरेखा तैयार करने के साथ-साथ यथा-स्थिति तोड़कर दोबारा इसके पतन होने से बचायेगी भी। यह औषधि निगलने का समय है और ये आश्वस्त करता है कि SDG अपनों की सेवा करने के साथ-साथ बदलाव की वैश्विक बयार में योगदान देने वाले भारत की एक कहानी है। यह एक नई शक्ति का नए रास्ते की खोज का समय है।

(समीर सरन ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वाइस प्रेसिडेंट हैं)
(जो विचार ऊपर व्यक्त किए गए हैं, वो लेखक के अपने विचार हैं और ये जरूरी नहीं कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो।)