Mukul Asher Professorial Fellow, National University of Singapore

सरकारी व्यय से हासिल अत्यंत महत्त्वपूर्ण नतीजों को निम्न तरीके से रोशनी में लाया गया है। India’s Public Finance Statistics के अनुसार (अद्यतन आंकड़ा 2015-16) सभी स्तरों पर भारत का कुल सरकारी व्यय (नकद गणना के आधार पर) 380 खरब रुपये था, (GDP के 27.9 % के बराबर)। इसी साल सभी स्तरों पर राजस्व प्राप्ति और टैक्स राजस्व 284 खरब रुपये (जीडीपी का 20.9% के  बराबर) और 242 खरब रुपये (जीडीपी का 17.8% के बराबर) रहा। 

जीडीपी का इतना बड़ा हिस्सा खर्च करने के बावजूद नतीजे नहीं मिले। संसाधनों के विस्तार के अनुरूप तो यह बिल्कुल नहीं रहा। जीवन स्तर की गुणवत्ता में सुधार को छोड़ भी दें तो आधारभूत सार्वजनिक सुविधाओं और सेवाओं के रूप में भी नतीजे नहीं रहे। चूंकि सरकारी गतिविधियों में घरेलू बोझ पहले से ही ज्यादा है इसलिए व्यय के दोबारा आवंटन में बदलाव किए बिना या 'पहले की तरह कारोबार' जारी रखते हुए सरकारी व्यय बढ़ाने से उल्टे नतीजे मिलेंगे। इस तरह बेहतर नतीजे हासिल करने के लिए भविष्य में निरंतर प्रयास भारत के शासन और विकास के लिए महत्वपूर्ण है। 

इस पर जोर देने की जरूरत है कि अच्छे नतीजे पाने के लिए यह जरूरी है कि सरकार की इकाइयों के सभी स्तरों पर प्रासंगिक डाटा संग्रह में महत्त्वपूर्ण सुधार किए जाएं, संग्रहित डाटा के प्रबंधन और विश्लेषण की व्यवस्था की जाए, योजनाओं व कार्यक्रमों को तैयार करने में डाटा विश्लेषण के इस्तेमाल को जरूरी बनाया जाए और निर्णय लेने वालों और प्रशासन के लोगों में प्रोत्साहन व क्षमता का विकास किया जाए।   

संघवाद की  सहयोगात्मक पहल को  शुरू करते हुए GST (Goods and Services Tax), 25 अक्टूबर, 2016 को Benami Transactions Prohibition Act, 1988, the Real Estate Regulation Act, 2017, the  Insolvency and Bankruptcy Act, 2016, बजट की संरचना में बदलाव (केवल चालू और पूंजीगत खर्च का वर्गीकरण), राजस्व वर्ष को कैलेंडर वर्ष में संभावित बदलाव, PFMS (Public Financial Management System)में जरूरी बदलाव हो रहे हैं ताकि केंद्र से राज्य को दिए जाने वाले Track fund-flows को बेहतर किया जा सके।  

Centrally Sponsored Schemes (CSS) और  National Institution of Transforming India (NITI) आयोग के निर्माण से राज्यों में एक नयी गतिशीलता आएगी, जिसके लिए उन्हें इन योजनाओं को लागू करने और प्रभावी तरीके से उसका इस्तेमाल करने की जरूरत है। 

नीति आयोग 1 जनवरी, 2015 को बनाया गया। इसने योजना आयोग (एक अतिरिक्त संवैधानिक संस्था, जो 1950 से अस्तित्व में थी) और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति की जगह ली। चूंकि 12वीं पंचवर्षीय योजना जो मार्च 2017 में खत्म हो गयी, भारत के पास राज्यों और कई सेक्टरों को राजस्व आवंटन की आधिकारिक योजना नहीं रह गयी। 

NITI आयोग के नाम में ‘transformation’ पद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मतलब होता है भारत की सोच में बदलाव। शासन से लेकर सरकारी कार्यक्रमों एवं योजनाओं के निर्माण और प्रशासन सभी स्तरों पर इसकी जरूरत है। इसका मकसद यही है कि सार्वजनिक सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करने के लिहाज से अच्छे नतीजे सामने आएं।  इसमें आंतरिक सुरक्षा और न्याय प्रक्रिया भी शामिल हैं। जहां तक हो सके इनकी आसानी से उपलब्धता और पहुंच बनाना देशभर (सभी राज्यों) में समान रूप से जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की सोच 'सबका साथ सबका विकास' में इसे जगह मिली है। 

नीति आयोग के बड़े कामों में शामिल हैं सरकारी योजनाओं से बेहतर नतीजे निकालने के लिए मानदंड सुझाना और पहल करना। इसके अलावा  उन मुद्दों पर थिंक टैंक के रूप में कार्य करना, जिन्हें केंद्र सरकार और राज्य की सरकारें महत्त्वपूर्ण समझती हैं। 

इससे ये बात पुख्ता होती है कि सरकार के सभी स्तरों पर अच्छे नतीजे हासिल करने और शासन में सुधार के लिए ज्ञान एवं दक्षता जरूरी है, लेकिन ये चीजें दुर्लभ हैं। एक निकाय, जिसके पास शासन या इससे जुड़ी विकास की चुनौतियों का विश्लेषण करने  के लिए संसाधन और क्षमता हैं और जो कदम उठाने में भी मदद करता है, उसकी सेवा न सिर्फ केंद्र सरकार के लिए बल्कि राज्यों, उनके जिले, शहरी निकाय और ग्रामीण निकायों के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाती है।    

मुख्यमंत्रियों के उप समूहों की तीन संबंधित रिपोर्ट सौंपी जा चुकी हैं (अप्रैल, 2017 तक) जिनके नाम हैं केंद्र प्रायोजित योजनाएं (CSS),स्वच्छ भारत और स्किल डेवपलपमेंट। इन्हें नीति आयोग ने बनाया है। उनकी सिफारिशों से इन कार्यक्रमों और योजनाओं में सुधार हुआ है। 

नीति आयोग ने स्वास्थ्य, शिक्षा और जलापूर्ति में नतीजों के मॉनिटरिंग पर उपयोगी अध्ययन का काम हाथ में लिया है। खासकर हरियाणा के इलाकों में खास दिलचस्पी दिखायी है। यह राज्य के लिए फोरम और बैठक की जगह भी उपलब्ध कराता है जिससे वे एक-दूसरे के बारे में और एक-दूसरे से सीख सकें। आयोग के पास राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी क्षमता भी है और संसाधन भी।

सांस्थानिक संरचना और राज्यों एवं शहरी व ग्रामीण निकायों के साथ केंद्र के संवाद की संभावनाओं में बुनियादी बदलाव को उपरोक्त बातें व्यक्त करती हैं।  राज्यों और उनके शहरी व ग्रामीण निकायों के लिए नीति आयोग के थिंक टैंक की, एक विशेषज्ञ समूह  के रूप में अच्छी प्रासंगिकता है जो शासन में सुधार और खास क्षेत्रों में बेहतर नतीजों के लिए उचित मानदंड सुझाता है। 

हालांकि राज्यों को और उनके शहरी और ग्रामीण निकायों को अपनी सोच में (वित्त या धन से नतीजों के लिए) बदलाव लाना होगा और बाहर की विशेषज्ञता और नये संदर्भों के महत्व को समझना होगा। उन्हें नीति आयोग से संपर्क में रहने के लिए औपचारिक व्यवस्था विकसित करने की भी जरूरत होगी। कभी-कभी महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात समेत कुछ राज्यों ने पहले ही नीति आयोग का इस्तेमाल थिंक टैंक के रूप में शुरू कर दिया है। नीति आयोग का यह उपयोग  “Co-operative Federalism” का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। 

भारत की संघीय राजनीति में संवैधानिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार, राज्य, जिले, शहरी निकाय और ग्रामीण निकायों में बटी हैं जिनमें इकट्ठी नीतियां (समानता से दिग्भ्रमित ना हों) और संघीय ढांचे में विभिन्न एजेंसियों के बीच सांगठनिक समन्वय बेहतर नतीजों के लिए आवश्यक हैं। नीति आयोग बेहतर समन्वय और एकजुटता में अपनी भूमिका निभा सकता है और इस तरह अच्छे नतीजे पाने में मदद कर सकता है। 

उन राज्यों में, जिन्होंने अब तक यह नहीं किया है, यह उपयोगी होगा कि वे नीति आयोग के साथ सम्पर्क तंत्र को विकसित करें जिसमें खास व्यक्ति और बिंदु तय हों। प्राथमिकता में वे हों, जो राज्य में मुख्यमंत्री के दफ्तर से जुड़े हो। ऐसा इसलिए कि अच्छे नतीजों के लिए यह जरूरी है कि इसके लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता को मुख्यमंत्री के दफ्तर की ओर से सभी विभागों को बताया जाए ताकि वे संपर्क तंत्र विकसित कर सकें। 

अधिकारियों का छोटा समूह बनाना भी उपयोगी होगा, जो राज्य में जरूरी चुनौतियों की पहचान करे, जहां नीति आयोग की दक्षता शासन और परिणाम में सुधार में मदद कर सके।

इसके साथ-साथ नीति आयोग के साथ लगातार संपर्क में रहना भी जरूरी होगा। केवल राज्य के अधिकारियों के लिए ही नहीं, बल्कि जिले, शहरी और ग्रामीण निकायों के चुनिंदा अधिकारियों के लिए भी ऐसा करना जरूरी होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कई सेवाएं और सुविधाएं जिले, शहरी और ग्रामीण निकाय उपलब्ध कराते हैं। उनके पास संवाद व संपर्क में बने रहने के लिए अवसर कम होते हैं। खास चुनौतियों के लिए खास मानदंड के संदर्भ में उनके पास ज्ञान और विशेषज्ञ मदद के लिए उपलब्ध नहीं रहते। 

(मुकुल जी अशर, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में शिक्षाविद, पब्लिक फिनान्स मैनेजमेंट में विशेषज्ञता। वे हरियाणा के 5वें राज्य वित्त आयोग में चेयरमैन के रूप में सेवा दे रहे हैं।) 

(ऊपर जो राय व्यक्त की गई है वो लेखक (लेखकों) की अपनी राय है। यह आवश्यक नहीं है कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो। )