कुछ हफ्ते पहले बेंगलुरु के एक युवा उद्यमी आकाश जैन ने अपनी बहन की शादी का कार्ड स्वच्छ भारत के लोगो के साथ ट्वीट किया। देखते ही देखते मुख्यधारा की मीडिया ने उसे भुनाना शुरू कर दिया।
जैन का ये ट्वीट हर मिनट होने वाले 3,00,000 नए ट्वीट्स में सिर्फ एक ट्वीट था। उनके 25,000 फॉलोअर्स हैं जिनमें से एक हमारे प्रधानमंत्री भी हैं।
क्या आकाश जैन एक खबर हैं?
अगर ऐसा है, तो क्या अब वो मुख्यधारा की मीडिया के किसी व्यक्ति से कम प्रभावशाली हैं?
कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है अगर जैन केस को प्रभाव डालने वाला बताया जाए, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि डिजिटल सत्ता संतुलन को तेजी से बदल रहा है जो आम नागरिक को वो ‘मीडिया’ उपलब्ध करा रहा है. जिसे वो अपना कह सकते हैं।
3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री का ये ट्वीट बहुत ही सूक्ष्म अवलोकन पर आधारित है कि, “आज के दिन और समय में सोशल मीडिया पेशे का एक सक्रिय माध्यम बनकर उभरा है, जिससे प्रेस की आजादी को और शक्ति मिली है।” उसी दिन, उनको भेजे गए एक ट्वीट “बिल्कुल सर, सोशल मीडिया ने उन ढेर सारे लोगों को एक प्लेटफॉर्म दिया है जिन्हें पत्रकारिता और लिखने में रुचि तो है, लेकिन मौका नहीं मिला...” के जवाब में प्रधानमंत्री ने लिखा, “उचित तथ्य। मैंने सोशल मीडिया पर कई उभरते हुए लेखकों को देखा है।”
वे महत्वपूर्ण विषय उठा रहे थे जो आज के भारत की वास्तविकता है, जिसे प्रधानमंत्री न्यू इंडिया कहते हैं। संचार के नए माध्यम ने नागरिकों को किसी मामले को जानने, उसमें शामिल होने, उस पर विचार-विमर्श करने और यहां तक कि बहस करने की भी शक्ति दी है।
सूचनाओं से अवगत और उससे जुड़े हुए लोग न्यू इंडिया के मजबूत आधार हैं। उनकी मुख्यधारा डिजिटल है, जो मतदान बूथों पर भी उम्मीदों की लावा बन कर फूट रही हैं।
विश्व स्तर पर भारत इन 1.2 अरब आवाज को कैसे बुलन्द कर सकता है, जिससे आइडिया ऑफ इंडिया और अधिक प्रभावशाली तरीके से चुनौतीपूर्ण दुनिया में सामने आए। ये कहना सुरक्षित है कि सूरज पूरब में उगता है, पर इस आधार पर वह चीजों को तय करने नहीं लग जाए।
समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के संपादकों को एक आसान जवाब मिल गया है। "यदि 'भारतीय दृष्टिकोण' को और आगे बढ़ना है, " तो मैंने मीडिया संपादकों की मांग सुनी है, "एक 'भारतीय' अल जजीरा - या एक चाइनीज टीवी और रूसी टीवी की रचना एक आवश्यक कदम है।" नीति तय करने वाले कुछ दिग्गज इससे सहानुभूति रखते हैं। आखिरकार, पिछले 25 सालों तक टेलीविजन ने उनके अपने पेशे पर गहरा असर डाला है।
अगला सवाल ये उठेगा कि भारतीय अल-जजीरा को कौन चलाएगा, क्योंकि निजी टीवी चैनलों के पास बर्बाद करने के लिए पैसे नहीं हैं।
इस तरह का भार अक्सर दूरदर्शन पर थोपा जाता है, जो न ही व्यावहारिक होगा और न ही वांछनीय।
कतर, चाइनीज या रूसी सरकारी टीवी से इस तरह की कट-कॉपी-पेस्ट वाली प्रेरणा नहीं ली जा सकती क्योंकि वो इसकी डाउनलिंकिंग, मैनिंग (Manning) और मार्केटिंग पर आने वाले विशाल लागतों पर लगने वाली करदाताओं की गाढ़ी कमाई पर ध्यान नहीं देते।
इसके बजाय, हमारी सोशल मीडिया सबसे प्रभावशाली वर्ल्ड लीडर है, ये कैसे हमारी चमकती हुई संपत्ति है, #NewIndiacommunication mission, इसका अपने घर में ही पैदा होने का उदाहरण है। क्लिक करते-करते आधे दशकों में स्थापित खिलाड़ियों का डिजिटल होमपेज भी स्लॉट मशीन की तरह दिखने लगा है। वर्डप्रेस पेज का विस्तार उन श्रोताओं से मिलने की तरह नहीं है जहां से वो हैं। एक कदम आगे बढ़कर लोगों पर बातें करना एक जंग लगी हुई पुरानी चाल है। ऐसा तब होता है जब हम वार्तालाप में लोगों को सूचनाओं को जानने और उस पर अपने विचार साझा करने के लिए सशक्त बनाते हैं। ये लीनियर टीवी पर नहीं हो रहा है, लेकिन हमारे स्मार्टफोन्स पर धड़ल्ले से चल रहा है।
प्रेस से जुड़े तथ्य : बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार “भारत अब 250 अरब डॉलर का एक डिजिटल ज्वालामुखी है, जो अब निष्क्रिय नहीं रहा।” ( https://www.bcg.com/en-in/perspectives/151007). 39.1 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ताओं के साथ हम पहले ही विश्व के दूसरे नंबर के देश बन चुके हैं। इसमें हाई-स्पीड इंटरनेट उपयोग करने वालों की संख्या पहले से ही ~56 प्रतिशित है। हाई स्पीड मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या ~55 करोड़ तक पहुंचने वाली है, जो कुल मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ताओं का 85 प्रतिशत है।
इस परिप्रेक्ष्य, हमें डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत प्रयासों का ध्यान अवश्य रखना पड़ेगा। पीएम के द्वारा इसे दिशा देने के कई उदाहरण हैं। प्रधानमंत्री ने संचार के इस नए और अभिनव साधन का व्यक्तिगत, राजनीतिक और नीतिगत दायरे में लाभ उठाया। इसे ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के विस्तार, सरकारी कार्यालयों में अधिक इंटरनेट कनेक्टिविटी और प्रौद्योगिकी के माध्यम से देखा जा रहा है।
यह 'नरेंद्र मोदी मोबाइल एप' के प्रसार से भी देखा जा सकता है जो नीति और राजनीति, कनेक्टिविटी एवं क्रिएटिविटी का एक आदर्श मेल प्रस्तुत करता है। एक तरफ समाचार और विचारों का प्रसार होता है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री सीधे लोगों से संवाद करते हैं और व्यापक मामलों पर उनसे आइडिया और जानकारी लेते हैं।
जैसा कि BCG (Boston Consulting Group) का अनुमान है, हाई-स्पीड इंटरनेट का उपयोग बढ़ने से ऑनलाइन पर गुजरने वाले समय में 3-4 गुना की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। अनुमानों के अनुसार डाटा का औसत उपयोग 10-14x ~ 7-10 GB / उपभोक्ता / प्रति माह तक हो जाएगा। भारतीय इंटरनेट अर्थव्यवस्था 12,500 करोड़ से दोगुना बढ़कर 25,000 करोड़ होने की संभावना है। ये वृद्धि वर्तमान में हमारी जीडीपी के 5 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत की गति से हो रही है। दूससे तरीके से कहें तो एक मेंढक की तरह फुदकने से बढ़कर ये एक मखमली शक्ति वाली नवीन कक्षा में छलांग लगाने के लिए सक्षम हो चुकी है।
तीन गुप्त प्रस्तावों का दोहन :
1)उबर की तरह संचार – केवल हमारी अपनी सामग्री बनाने और उसके पहिए को फिर से बदलने के बजाय, क्या हम उबर एग्रीगेटर की तरह अपना लक्ष्य तय नहीं कर सकते? क्योंकि, उसके पास न तो अपनी कार हैं और न ही ड्राइवर। एक #NewIndia डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाने के लिए अंदर के ही, जैसे- NaMo app को भारत में ही नहीं, बल्कि उसमें बढ़ती रुचियों को देखते हुए user-generated content (UGC) की तरह उपयोग किया जा सकता है।
2)डिजिटल इस्तेमाल करने वाले अग्रणी देशों के नागरिकों को #NewIndia में शामिल करना: स्पष्ट रूप से, NaMo App में अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं को जोड़ा जा सकता है और फ्रेंच, स्पैनिश, अरबी और चाइनीज को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। मुझे बताया गया है कि इसका प्रयास एक बड़े पैमाने पर चल रहा है, जो कि एक अच्छा संकेत है।
3)डिजिटल की समझ रखने वाले नागरिकों पर भरोसा रखें: हमारे संपादकों और पत्रकारों को आम नागरिकों के हाथों में User-Generated Content, जैसे - प्रतिष्ठित NaMo app या , 'भारत के लिए एक फेसबुक पेज' रखने को लेकर आशंका हो सकती है। यहां एप ही अपने आप में Naysayers के लिए बेहतरीन खंडन है।
नागरिकों की प्रतिक्रिया लगातार पीएम के Podcasts में अपना रास्ता खोजती है और वास्तव में, एप और व्यक्तित्व को लीन हो जाने की अनुमति देती है। ऐसा तब होता है जब हमारे पास User-Generated Content नहीं होती है, जो लोग और उत्पादों की सतहों के कार्बन कॉपी संस्करण होते हैं।
ये सब चीजें नागरिकों और सरकार को पास लाती हैं और शासन को सच में अधिक भागीदार बनाती है।
प्रधानमंत्री ने आगे बढ़कर अगुआई की है और एक अच्छी शुरुआत दी है।
एक मंच पा लिया गया है, अब इसमें कोई शक नहीं है कि पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ #NewIndia दुनिया के साथ साझा करने के लिए एक शक्तिशाली कहानी है।
इसके लिए रणनीति यह जानने में है कि क्या नहीं करना है। अब डिजिटल ज्वालामुखी को संभालना है। 2017 उपभोक्ताओं का साल है- Pole Vault के लिए तेजी वाला अच्छा समय है।
(लेखक हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं, ये मीडिया पर प्रभाव रखने वाले और पूर्व संपादक हैं। वह RIL के साथ काम करते हैं। ये उनके निजी विचार हैं। Twitter @therohitbansal )
(जो विचार ऊपर व्यक्त किए गए हैं, वो लेखक के अपने विचार हैं और ये जरूरी नहीं कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो।)