पिछले कई दिन राजनीति और मीडिया जगत के लोगों के लिए बहुत व्यस्त रहे हैं...अभी-अभी लोकसभा चुनाव संपन्न हुए हैं और अब हम लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारियों में जुटे हैं। ऐसे समय में मुझे रामोजी राव गारू के निधन की दुखद खबर मिली। हमारे बीच अत्यंत घनिष्ठ संबंध होने के कारण यह क्षति बेहद निजी है।
जब मैं रामोजी राव गारू के बारे में सोचता हूं, तो मुझे एक बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व की याद आती है, जिनकी प्रतिभा का कोई सानी नहीं था। वे एक किसान परिवार से थे और उन्होंने सिनेमा, मनोरंजन, मीडिया, कृषि, शिक्षा और शासन-व्यवस्था जैसे विविध क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई। लेकिन उनके पूरे जीवन में जो बात समान रही, वह थी उनकी विनम्रता और जमीनी स्तर से जुड़ाव। इन गुणों ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया।
रामोजी राव गारू ने मीडिया जगत में क्रांति लाने का काम किया। उन्होंने ईमानदारी, इनोवेशन और उत्कृष्टता के लिए नए मानक स्थापित किए। वे समय के साथ आगे बढ़े और समय से आगे भी बढ़े। ऐसे समय में जब समाचार पत्र, समाचार का सबसे प्रचलित स्रोत थे, उन्होंने ईनाडु की शुरुआत की। 1990 के दशक में, जब भारत ने टीवी की दुनिया को अपनाया, तो उन्होंने ईटीवी के साथ शुरुआत की। गैर-तेलुगु भाषाओं में भी चैनलों में प्रवेश करके, उन्होंने 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना को बढ़ावा देने के लिए उल्लेखनीय प्रतिबद्धता दिखाई।
अपनी कारोबारी कामयाबी से परे, रामोजी राव गारू भारत के विकास के प्रति भावुक थे। उनके प्रयास न्यूज़रूम से आगे बढ़कर शैक्षिक, व्यावसायिक और सामाजिक मुद्दों को प्रभावित करते थे। वे लोकतांत्रिक सिद्धांतों में दृढ़ विश्वास रखते थे और उनकी यह जुझारू भावना तब सबसे अच्छी तरह से देखी गई जब कांग्रेस पार्टी ने महान एनटीआर को परेशान किया और 1980 के दशक में उनकी सरकार को बेवजह बर्खास्त कर दिया। उस समय कांग्रेस केंद्र और आंध्र प्रदेश में सत्ता में थी, लेकिन वे डरने वाले व्यक्ति नहीं थे... उन्होंने इन अलोकतांत्रिक प्रयासों का डटकर विरोध किया।
मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे उनसे बातचीत करने और उनके ज्ञान से लाभ उठाने के कई अवसर मिले। मैं विभिन्न मुद्दों पर उनके विचारों को बहुत महत्व देता हूं। मुख्यमंत्री के रूप में अपने दिनों से ही, मुझे उनसे बहुमूल्य जानकारी और फीडबैक प्राप्त होता रहा है। वे हमेशा गुजरात में विशेष रूप से कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में सुशासन के प्रयासों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते थे। साल 2010 के दौरान, उन्होंने मुझे रामोजी फिल्म सिटी में आमंत्रित किया। उस बातचीत के दौरान, वे गुजरात में चिल्ड्रन यूनिवर्सिटी स्थापित करने के प्रयासों के बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक थे, क्योंकि उन्हें लगा कि इस तरह की अवधारणा पहले कभी नहीं सुनी गई थी। उनका प्रोत्साहन और समर्थन हमेशा अटूट रहा। वे हमेशा मेरा हालचाल पूछते थे। 2012 में, जब मुझे चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला, तो उन्होंने मुझे एक बहुत ही मार्मिक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी खुशी व्यक्त की थी।
जब हमने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की, तो वे इस प्रयास के सबसे प्रबल समर्थकों में से एक थे, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से और अपने मीडिया नेटवर्क के माध्यम से इसका समर्थन किया। यह रामोजी राव गारू जैसे दिग्गज ही थे जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हम महात्मा गांधी के सपने को रिकॉर्ड समय में पूरा कर सकें और करोड़ों साथी भारतीयों को सम्मान भी दिला सकें।
मैं इसे बहुत गर्व की बात मानता हूं कि हमारी सरकार ने ही उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित करने का गौरव हासिल किया। उनका साहस, दृढ़ता और समर्पण पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उनके जीवन से, युवा पीढ़ी सीख सकती है कि बाधाओं को अवसरों में कैसे बदला जाए, चुनौतियों को जीत में कैसे बदला जाए और असफलताओं को सफलता की सीढ़ी कैसे बनाया जाए।
पिछले कुछ दिनों से रामोजी राव गारू अस्वस्थ थे और चुनाव संबंधी गतिविधियों के बीच भी मैं उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछता रहता था। मुझे यकीन है कि वे हमारी सरकारों को शपथ लेते और काम करते हुए देखकर बहुत खुश होते, चाहे वह केंद्र में हो या आंध्र प्रदेश में मेरे मित्र चंद्रबाबू नायडू गारू के नेतृत्व में। हम अपने देश और समाज के लिए उनके सपने को पूरा करने के लिए काम करते रहेंगे। रामोजी राव गारू के निधन पर हम शोक संतप्त हैं, मेरी हार्दिक संवेदनाएं उनके परिवार, दोस्तों और अनगिनत प्रशंसकों के साथ हैं। रामोजी राव गारू हमेशा प्रेरणा के स्तम्भ बने रहेंगे।
यह ‘ईनाडु’ में प्रकाशित मूल लेख का अनुवाद है।