मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार! ‘मन की बात’ का ये बारहवां एपिसोड है और इस हिसाब से देखें तो एक साल बीत गया। पिछले वर्ष, 3 अक्टूबर को पहली बार मुझे ‘मन की बात’ करने का सौभाग्य मिला था। ‘मन की बात’ - एक वर्ष, अनेक बातें। मैं नहीं जानता हूँ कि आपने क्या पाया, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ, मैंने बहुत कुछ पाया।
लोकतंत्र में जन-शक्ति का अपार महत्व है। मेरे जीवन में एक मूलभूत सोच रही है और उसके कारण जन-शक्ति पर मेरा अपार विश्वास रहा है। लेकिन ‘मन की बात’ ने मुझे जो सिखाया, जो समझाया, जो जाना, जो अनुभव किया, उससे मैं कह सकता हूँ कि हम सोचते हैं, उससे भी ज्यादा जन-शक्ति अपरम्पार होती है। हमारे पूर्वज कहा करते थे कि जनता-जनार्दन, ये ईश्वर का ही अंश होता है। मैं ‘मन की बात’ के मेरे अनुभवों से कह सकता हूँ कि हमारे पूर्वजों की सोच में एक बहुत बड़ी शक्ति है, बहुत बड़ी सच्चाई है, क्योंकि मैंने ये अनुभव किया है। ‘मन की बात’ के लिए मैं लोगों से सुझाव माँगता था और शायद हर बार दो या चार सुझावों को ही हाथ लगा पाता था। लेकिन लाखों की तादाद में लोग सक्रिय हो करके मुझे सुझाव देते रहते थे। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी शक्ति है, वर्ना प्रधानमंत्री को सन्देश दिया, mygov.in पर लिख दिया, चिठ्ठी भेज दी, लेकिन एक बार भी हमारा मौका नहीं मिला, तो कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगा।
हाँ... मुझे इन लाखों पत्रों ने एक बहुत बड़ा पाठ भी पढ़ाया। सरकार की अनेक बारीक़ कठिनाइयों के विषय में मुझे जानकारी मिलती रही और मैं आकाशवाणी का भी अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इन सुझावों को सिर्फ एक कागज़ नहीं माना, एक जन-सामान्य की आकांक्षा माना। उन्होंने इसके बाद कार्यक्रम किये। सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों को आकाशवाणी में बुलाया और जनता-जनार्दन ने जो बातें कही थीं, उनके सामने रखीं। कुछ बातों का निराकरण करवाने का प्रयास किया। सरकार के भी हमारे भिन्न-भिन्न विभागों ने, लोगों में इन पत्रों का analysis किया और वो कौन-सी बातें हैं कि जो policy matters हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो person के कारण परेशानी हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो सरकार के ध्यान में ही नहीं हैं? बहुत सी बातें grass-root level से सरकार के पास आने लगीं और ये बात सही है कि governance का एक मूलभूत सिद्धांत है कि जानकारी नीचे से ऊपर की तरफ जानी चाहिए और मार्गदर्शन ऊपर से नीचे की तरफ जाना चाहिये। ये जानकारियों का स्रोत, ‘मन की बात’ बन जाएगा, ये कहाँ सोचा था किसी ने? लेकिन ये हो गया।
और उसी प्रकार से ‘मन की बात’ ने समाज- शक्ति की अभिव्यक्ति का एक अवसर बना दिया। मैंने एक दिन ऐसे ही कह दिया था कि सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और सारी दुनिया अचरज हो गयी, शायद दुनिया के सभी देशों से किसी-न-किसी ने लाखों की तादाद में सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और बेटी को क्या गरिमा मिल गयी। और जब वो सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) करता था, तब अपनी बेटी का तो हौसला बुलंद करता था, लेकिन अपने भीतर भी एक commitment पैदा करता था। जब लोग देखते थे, उनको भी लगता था कि बेटियों के प्रति उदासीनता अब छोड़नी होगी। एक Silent Revolution था।
भारत के tourism को ध्यान में रखते हुए मैंने ऐसे ही नागरिकों को कहा था, “Incredible India”, कि भई, आप भी तो जाते हो, जो कोई अच्छी तस्वीर हो, तो भेज देना, मैं देखूंगा। यूँ ही हलकी-फुलकी बात की थी, लेकिन क्या बड़ा गज़ब हो गया! लाखों की तादाद में हिन्दुस्तान के हर कोने की ऐसी-ऐसी तस्वीरें लोगों ने भेजीं। शायद भारत सरकार के tourism ने, राज्य सरकार के tourism department ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि हमारे पास ऐसी-ऐसी विरासतें हैं। एक platform पर सब चीज़ें आयीं और सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। लोगों ने काम को बढ़ा दिया।
मुझे ख़ुशी तो तब हुई कि पिछले अक्टूबर महीने के पहले मेरी जो पहली ‘मन की बात’ थी, तो मैंने गाँधी जयंती का उल्लेख किया था और लोगों को ऐसे ही मैंने प्रार्थना की थी कि 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी की जयंती हम मना रहे हैं। एक समय था, खादी फॉर नेशन (Khadi for Nation). क्या समय का तकाज़ा नहीं है कि खादी फॉर फैशन (Khadi for Fashion) - और लोगों को मैंने आग्रह किया था कि आप खादी खरीदिये। थोडा बहुत कीजिये। आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूँ कि पिछले एक वर्ष में करीब-करीब खादी की बिक्री डबल हुई है। अब ये कोई सरकारी advertisement से नहीं हुआ है। अरबों-खरबों रूपए खर्च कर के नहीं हुआ है। जन-शक्ति का एक एहसास, एक अनुभूति।
एक बार मैंने ‘मन की बात’ में कहा था, गरीब के घर में चूल्हा जलता है, बच्चे रोते रहते हैं, गरीब माँ - क्या उसे gas cylinder नहीं मिलना चाहिए? और मैंने सम्पन्न लोगों से प्रार्थना की थी कि आप subsidy surrender नहीं कर सकते क्या? सोचिये... और मैं आज बड़े आनंद के साथ कहना चाहता हूँ कि इस देश के तीस लाख परिवारों ने gas cylinder की subsidy छोड़ दी है - और ये अमीर लोग नहीं हैं। एक TV channel पर मैंने देखा था कि एक retired teacher, विधवा महिला, वो क़तार में खड़ी थी subsidy छोड़ने के लिए। समाज के सामान्य जन भी, मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग जिनके लिए subsidy छोड़ना मुश्किल काम है। लेकिन ऐसे लोगों ने छोड़ा। क्या ये Silent Revolution नहीं है? क्या ये जन-शक्ति के दर्शन नहीं हैं?
सरकारों को भी सबक सीखना होगा कि हमारी सरकारी चौखट में जो काम होता है, उस चौखट के बाद एक बहुत बड़ी जन-शक्ति का एक सामर्थ्यवान, ऊर्जावान और संकल्पवान समाज है। सरकारें जितनी समाज से जुड़ करके चलती हैं, उतनी ज्यादा समाज में परिवर्तन के लिए एक अच्छी catalytic agent के रूप में काम कर सकती हैं। ‘मन की बात’ में, मुझे सब जिन चीज़ों में मेरा भरोसा था, लेकिन आज वो विश्वास में पलट गया, श्रद्धा में पलट गया और इसलिये मैं आज ‘मन की बात’ के माध्यम से फिर एक बार जन-शक्ति को शत-शत वन्दन करना चाहता हूँ, नमन करना चाहता हूँ। हर छोटी बात को अपनी बना ली और देश की भलाई के लिए अपने-आप को जोड़ने का प्रयास किया। इससे बड़ा संतोष क्या हो सकता है?
‘मन की बात’ में इस बार मैंने एक नया प्रयोग करने के लिए सोचा। मैंने देश के नागरिकों से प्रार्थना की थी कि आप telephone करके अपने सवाल, अपने सुझाव दर्ज करवाइए, मैं ‘मन की बात’ में उस पर ध्यान दूँगा। मुझे ख़ुशी है कि देश में से करीब पचपन हज़ार से ज़्यादा phone calls आये। चाहे सियाचिन हो, चाहे कच्छ हो या कामरूप हो, चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी हो। हिन्दुस्तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से लोगों ने phone calls न किये हों। ये अपने-आप में एक सुखद अनुभव है। सभी उम्र के लोगों ने सन्देश दिए हैं। कुछ तो सन्देश मैंने खुद ने सुनना भी पसंद किया, मुझे अच्छा लगा। बाकियों पर मेरी team काम कर रही है। आपने भले एक मिनट-दो मिनट लगाये होंगे, लेकिन मेरे लिए आपका phone call, आपका सन्देश बहुत महत्वपूर्ण है। पूरी सरकार आपके सुझावों पर ज़रूर काम करेगी।
लेकिन एक बात मेरे लिए आश्चर्य की रही और आनंद की रही। वैसे ऐसा लगता है, जैसे चारों तरफ negativity है, नकारात्मकता है। लेकिन मेरा अनुभव अलग रहा। इन पचपन हज़ार लोगों ने अपने तरीके से अपनी बात बतानी थी। बे-रोकटोक था, कुछ भी कह सकते थे, लेकिन मैं हैरान हूँ, सारी बातें ऐसी ही थीं, जैसे ‘मन की बात’ की छाया में हों। पूरी तरह सकारात्मक, सुझावात्मक, सृजनात्मक - यानि देखिये देश का सामान्य नागरिक भी सकारात्मक सोच ले करके चल रहा है, ये तो कितनी बड़ी पूंजी है देश की। शायद 1%, 2% ऐसे फ़ोन हो सकते हैं जिसमें कोई गंभीर प्रकार की शिकायत का माहौल हो। वर्ना 90% से भी ज़्यादा एक ऊर्जा भरने वाली, आनंद देने वाली बातें लोगों ने कही हैं।
एक बात और ध्यान में मेरे आई, ख़ास करके specially abled - उसमें भी ख़ासकर के दृष्टिहीन अपने स्वजन, उनके काफी फ़ोन आये हैं। लेकिन उसका कारण ये होगा, शायद ये TV देख नहीं पाते, ये रेडियो ज़रूर सुनते होंगे। दृष्टिहीन लोगों के लिए रेडियो कितना बड़ा महत्वपूर्ण होगा, वो मुझे इस बात से ध्यान में आया है। एक नया पहलू मैं देख रहा हूँ, और इतनी अच्छी-अच्छी बातें बताई हैं इन लोगों ने और सरकार को भी संवेदनशील बनाने के लिए काफी है।
मुझे अलवर, राजस्थान से पवन आचार्य ने एक सन्देश दिया है, मैं मानता हूँ, पवन आचार्य की बात पूरे देश को सुननी चाहिए और पूरे देश को माननी चाहिए। देखिये, वो क्या कहना चाहते हैं, जरुर सुनिए – “मेरा नाम पवन आचार्य है और मैं अलवर, राजस्थान से बिलॉन्ग करता हूँ। मेरा मेसेज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से यह है कि कृपया आप इस बार ‘मन की बात’ में पूरे भारत देश की जनता से आह्वान करें कि दीवाली पर वो अधिक से अधिक मिट्टी के दियों का उपयोग करें। इस से पर्यावरण का तो लाभ होगा ही होगा और हजारों कुम्हार भाइयों को रोज़गार का अवसर मिलेगा। धन्यवाद।”
पवन, मुझे विश्वास है कि पवन की तरह आपकी ये भावना हिन्दुस्तान के हर कोने में जरुर पहुँच जाएगी, फैल जाएगी। अच्छा सुझाव दिया है और मिट्टी का तो कोई मोल ही नहीं होता है, और इसलिए मिट्टी के दिये भी अनमोल होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी उसकी एक अहमियत है और दिया बनता है गरीब के घर में, छोटे-छोटे लोग इस काम से अपना पेट भरते हैं और मैं देशवासियों को जरुर कहता हूँ कि आने वाले त्योहारों में पवन आचार्य की बात अगर हम मानेंगे, तो इसका मतलब है, कि दिया हमारे घर में जलेगा, लेकिन रोशनी गरीब के घर में होगी।
मेरे प्यारे देशवासियो, गणेश चतुर्थी के दिन मुझे सेना के जवानों के साथ दो-तीन घंटे बिताने का अवसर मिला। जल, थल और नभ सुरक्षा करने वाली हमारी जल सेना हो, थल सेना हो या वायु सेना हो – Army, Air Force, Navy. 1965 का जो युद्ध हुआ था पाकिस्तान के साथ, उसको 50 वर्ष पूर्ण हुए, उसके निमित्त दिल्ली में इंडिया गेट के पास एक ‘शौर्यांजलि’ प्रदर्शनी की रचना की है। मैं उसे चाव से देखता रहा, गया था तो आधे घंटे के लिए, लेकिन जब निकला, तब ढाई घंटे हो गए और फिर भी कुछ अधूरा रह गया। क्या कुछ वहाँ नही था? पूरा इतिहास जिन्दा कर के रख दिया है। Aesthetic दृष्टि से देखें, तो भी उत्तम है, इतिहास की दृष्टि से देखें, तो बड़ा educative है और जीवन में प्रेरणा के लिए देखें, तो शायद मातृभूमि की सेवा करने के लिए इस से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है। युद्ध के जिन proud moments और हमारे सेनानियों के अदम्य साहस और बलिदान के बारे में हम सब सुनते रहते थे, उस समय तो उतने photograph भी available नहीं थे, इतनी videography भी नहीं होती थी। इस प्रदर्शनी के माध्यम से उसकी अनुभूति होती है।
लड़ाई हाजीपीर की हो, असल उत्तर की हो, चामिंडा की लड़ाई हो और हाजीपीर पास के जीत के दृश्यों को देखें, तो रोमांच होता है और अपने सेना के जवानों के प्रति गर्व होता है। मुझे इन वीर परिवारों से भी मिलना हुआ, उन बलिदानी परिवारों से मिलना हुआ और युद्ध में जिन लोगों ने हिस्सा लिया था, वे भी अब जीवन के उत्तर काल खंड में हैं। वे भी पहुँचे थे। और जब उन से हाथ मिला रहा था तो लग रहा था कि वाह, क्या ऊर्जा है, एक प्रेरणा देता था। अगर आप इतिहास बनाना चाहते हैं, तो इतिहास की बारीकियों को जानना-समझना ज़रूरी होता है। इतिहास हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इतिहास से अगर नाता छूट जाता है, तो इतिहास बनाने की संभावनाओं को भी पूर्ण विराम लग जाता है। इस शौर्य प्रदर्शनी के माध्यम से इतिहास की अनुभूति होती है। इतिहास की जानकारी होती है। और नये इतिहास बनाने की प्रेरणा के बीज भी बोये जा सकते हैं। मैं आपको, आपके परिवारजनों को - अगर आप दिल्ली के आस-पास हैं - शायद प्रदर्शनी अभी कुछ दिन चलने वाली है, आप ज़रूर देखना। और जल्दबाजी मत करना मेरी तरह। मैं तो दो-ढाई घंटे में वापिस आ गया, लेकिन आप को तो तीन-चार घंटे ज़रूर लग जायेंगे। जरुर देखिये।
लोकतंत्र की ताकत देखिये, एक छोटे बालक ने प्रधानमंत्री को आदेश किया है, लेकिन वो बालक जल्दबाजी में अपना नाम बताना भूल गया है। तो मेरे पास उसका नाम तो है नहीं, लेकिन उसकी बात प्रधानमंत्री को तो गौर करने जैसी है ही है, लेकिन हम सभी देशवासियों को गौर करने जैसी है। सुनिए, ये बालक हमें क्या कह रहा है:
“प्रधानमंत्री मोदी जी, मैं आपको कहना चाहता हूँ कि जो आपने स्वच्छता अभियान चलाया है, उसके लिये आप हर जगह, हर गली में डस्टबिन लगवाएं।”
इस बालक ने सही कहा है। हमें स्वच्छता एक स्वभाव भी बनाना चाहिये और स्वच्छता के लिए व्यवस्थायें भी बनानी चाहियें। मुझे इस बालक के सन्देश से एक बहुत बड़ा संतोष मिला। संतोष इस बात का मिला, 2 अक्टूबर को मैंने स्वच्छ भारत को लेकर के एक अभियान को चलाने की घोषणा की, और मैं कह सकता हूँ, शायद आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि संसद में भी घंटों तक स्वच्छता के विषय पर आजकल चर्चा होती है। हमारी सरकार की आलोचना भी होती है। मुझे भी बहुत-कुछ सुनना पड़ता है, कि मोदी जी बड़ी-बड़ी बातें करते थे स्वच्छता की, लेकिन क्या हुआ ? मैं इसे बुरा नहीं मानता हूँ। मैं इसमें से अच्छाई यह देख रहा हूँ कि देश की संसद भी भारत की स्वच्छता के लिए चर्चा कर रही है।
और दूसरी तरफ देखिये, एक तरफ संसद और एक तरफ इस देश का शिशु - दोनों स्वच्छता के ऊपर बात करें, इससे बड़ा देश का सौभाग्य क्या हो सकता है। ये जो आन्दोलन चल रहा है विचारों का, गन्दगी की तरफ नफरत का जो माहौल बन रहा है, स्वच्छता की तरफ एक जागरूकता आयी है - ये सरकारों को भी काम करने के लिए मजबूर करेगी, करेगी, करेगी! स्थानीय स्वराज की संस्थाओं को भी - चाहे पंचायत हो, नगर पंचायत हो, नगर पालिका हो, महानगरपालिका हो या राज्य हो या केंद्र हो - हर किसी को इस पर काम करना ही पड़ेगा। इस आन्दोलन को हमें आगे बढ़ाना है, कमियों के रहते हुए भी आगे बढ़ाना है और इस भारत को, 2019 में जब महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती हम मनायेंगे, महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने की दिशा में हम काम करें।
और आपको मालूम है, महात्मा गांधी क्या कहते थे? एक बार उन्होंने कहा है कि आज़ादी और स्वच्छता दोनों में से मुझे एक पसंद करना है, तो मैं पहले स्वच्छता पसंद करूँगा, आजादी बाद में। गांधी के लिए आजादी से भी ज्यादा स्वच्छता का महत्त्व था। आइये, हम सब महात्मा गांधी की बात को मानें और उनकी इच्छा को पूरी करने के लिए कुछ कदम हम भी चलें। दिल्ली से गुलशन अरोड़ा जी ने MyGov पर एक मेसेज छोड़ा है।
उन्होंने लिखा है कि दीनदयाल जी की जन्म शताब्दी के बारे में वो जानना चाहते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, महापुरुषों का जीवन सदा-सर्वदा हमारे लिए प्रेरणा का कारण रहता है। और हम लोगों का काम, महापुरुष किस विचारधारा के थे, उसका मूल्यांकन करना हमारा काम नहीं है। देश के लिये जीने-मरने वाले हर कोई हमारे लिये प्रेरक होते हैं। और इन दिनों में तो इतने सारे महापुरुषों को याद करने का अवसर आ रहा है, 25 सितम्बर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय, 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण जी, 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल - कितने अनगिनत नाम हैं, मैं तो बहुत कुछ ही बोल रहा हूँ, क्योंकि ये देश तो बहुरत्ना वसुंधरा है।
आप कोई भी date निकाल दीजिये, इतिहास के झरोखे से कोई-न-कोई महापुरुष का नाम मिल ही जाएगा। आने वाले दिनों में इन सभी महापुरुषों को हम याद करें, उनके जीवन का सन्देश हम घर-घर तक पहुंचायें और हम भी उनसे कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करें।
मैं विशेष करके 2 अक्टूबर के लिए फिर से एक बार आग्रह करना चाहता हूँ। 2 अक्टूबर पूज्य बापू महात्मा गांधी की जन्म-जयन्ती है। मैंने गत वर्ष भी कहा था कि आपके पास हर प्रकार के fashion के कपड़े होंगे, हर प्रकार का fabric होगा, बहुत सी चीजें होंगी, लेकिन उसमें एक खादी का भी स्थान होना चाहिये। मैं एक बार फिर कहता हूँ कि 2 अक्टूबर से लेकर के एक महीने भर खादी में रियायत होती है, उसका फायदा उठाया जाए। और खादी के साथ-साथ handloom को भी उतना ही महत्व दिया जाये। हमारे बुनकर भाई इतनी मेह्नत करते हैं, हम सवा सौ करोड़ देशवासी 5 रूपया, 10 रुपया, 50 रूपया की भी कोई हैंडलूम की चीज़, कोई खादी की चीज़ ख़रीद लें, ultimately वो पैसा, वो गरीब बुनकर के घर में जायेगा। खादी बनाने वाली ग़रीब विधवा के घर में जायेगा। और इसलिए इस दीवाली में हम खादी को ज़रुर अपने घर में जगह दें, अपने शरीर पर जगह दें। मैं कभी ये आग्रह नहीं करता हूँ कि आप पूर्ण रूप से खादीधारी बनें! कुछ – बस, इतना ही आग्रह है मेरा। और देखिये, पिछली बार क़रीब-क़रीब बिक्री को double कर दिया। कितने ग़रीबों का फ़ायदा हुआ है। जो काम सरकार अरबों-खरबों रूपये के advertisement से नहीं कर सकती है, वो आप लोगों ने छोटे से मदद से कर दी। यही तो जनशक्ति है। और इसलिए मैं फिर से एक बार उस काम के लिए आपको आग्रह करता हूँ।
प्यारे देशवासियो, मेरा मन एक बात से बहुत आनंद से भर गया है। मन करता है, इस आनंद का आपको भी थोड़ा स्वाद मिलना चाहिये। मैं मई महीने में कोलकाता गया था और सुभाष बोस के परिवारजन मिलने आये थे। उनके भतीजे चंद्रा बोस ने सब organize किया था। काफी देर तक सुभाष बाबू के परिवारजनों के साथ हंसी-खुशी की शाम बिताने का मुझे अवसर मिला था। और उस दिन ये तय किया था कि सुभाष बाबू का वृहत परिवार प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आये। चंद्रा बोस और उनके परिवारजन इस काम में लगे रहे थे और पिछले हफ्ते मुझे confirmation मिला कि 50 से अधिक सुभाष बाबू के परिवारजन प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आने वाले हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, मेरे लिए कितनी बड़ी खुशी का पल होगा! नेताजी के परिवारजन, शायद उनके जीवन में पहली बार सबको मिलकर के एक साथ प्रधानमंत्री निवास जाने का अवसर आया होगा। लेकिन उससे ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री निवास-स्थान में ऐसी मेहमाननवाज़ी का सौभाग्य कभी भी नहीं आया होगा, जो मुझे अक्टूबर में मिलने वाला है। सुभाष बाबू के 50 से अधिक - और सारे परिवार के लोग अलग-अलग देशों में रहते हैं - सब लोग खास आ रहे हैं। कितना बड़ा आनंद का पल होगा मेरे लिए। मैं उनके स्वागत के लिए बहुत खुश हूँ, बहुत ही आनंद की अनुभूति कर रहा हूँ।
एक सन्देश मुझे भार्गवी कानड़े की तरफ से मिला और उसका बोलने का ढंग, उसकी आवाज़, ये सब सुन करके मुझे ये लगा, वो ख़ुद भी लीडर लगती है और शायद लीडर बनने वाली होगी, ऐसा लगता है।
“मेरा नाम भार्गवी कानड़े है। मैं प्रधानमंत्री जी से ये निवेदन करना चाहती हूँ कि आप युवा पीढ़ी को voters registration के बारे में जागृत करें, जिससे आने वाले समय में युवा पीढ़ी का सहभाग बढ़े और भविष्य में युवा पीढ़ी का महत्वपूर्ण सहयोग सरकार चुनने में हो और चलाने में भी हो सके। धन्यवाद।”
भार्गवी ने कहा है कि मतदाता सूची में नाम register करवाने की बात और मतदान करने की बात। आपकी बात सही है। लोकतंत्र में हर मतदाता देश का भाग्यविधाता होता है और ये जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। मतदान का परसेंटेज भी बढ़ रहा है। और मैं इसके लिए भारत के चुनाव आयोग को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूँ। कुछ वर्ष पहले हम देखते थे कि हमारा Election Commission एक सिर्फ़ regulator के रूप में काम कर रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसमें बहुत बड़ा बदलाव आया है। आज हमारा Election Commission सिर्फ़ regulator नहीं रहा है, एक प्रकार से facilitator बन गया है, voter-friendly बन गया है और उनकी सारी सोच, सारी योजनाओं में मतदाता उनके केंद्र में रहता है। ये बहुत अच्छा बदलाव आया है। लेकिन सिर्फ़ चुनाव आयोग काम करता रहे, इससे चलने वाला नहीं है। हमें भी स्कूल में, कॉलेज में, मोहल्ले में, ये जागृति का माहौल बनाये रखना चाहिये - सिर्फ़ चुनाव आये, तब जागृति हो, ऐसा नहीं। मतदाता सूची अपग्रेड होती रहनी चाहिये, हमें भी देखते रहना चाहिये। मुझे अमूल्य जो अधिकार मिला है, वो मेरा अधिकार सुरक्षित है कि नहीं, मैं अधिकार का उपयोग कर रहा हूँ कि नहीं कर रहा हूँ, ये आदत हम सबको बनानी चाहिये। मैं आशा करता हूँ, देश के नौजवान अगर मतदाता सूची में register नहीं हुए हैं, तो उन्हें होना चाहिये और मतदान भी अवश्य करना चाहिये। और मैं तो चुनावों के दिनों में publicly कहा करता हूँ कि पहले मतदान, फिर जलपान। इतना पवित्र काम है, हर किसी ने करना चाहिये।
परसों मैं काशी का भ्रमण करके आया। बहुत लोगों से मिला, बहुत सारे कार्यक्रम हुए। इतने लोगों से मिला, लेकिन दो बालक, जिनकी बात मैं आपसे करना चाहता हूँ। एक मुझे क्षितिज पाण्डेय करके 7वीं कक्षा का छात्र मिला। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में केंद्रीय विद्यालय में वो 7वीं कक्षा में पढ़ता है। वैसे है बड़ा तेजतर्रार। उसका confidence level भी बड़ा गज़ब है| लेकिन इतनी छोटी आयु में Physics के अनुसंधान में उसकी रूचि मैंने देखी। मुझे लगा कि बहुत-कुछ वो पढ़ता होगा, internet surfing करता होगा, नये-नये प्रयोग देखता होगा, Rail Accidents कैसे रोके जाएँ, कौन सी technology हो, energy में खर्चा कैसे कम हो, Robots में feelings कैसे आये, न-जाने क्या-क्या बातें बता रहा था। बड़ा गज़ब का था, भाई! खैर, मैं बारीकी से उसका ये तो नहीं देख पाया कि वो जो कह रहा है, उसमें कितनी बारीकी है, क्या है, लेकिन उसका confidence level, उसकी रुचि, और मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के बालकों की विज्ञान के प्रति रुचि बढ़नी चाहिये। बालक के मन में लगातार सवाल उठने चाहिये - क्यों? कैसे? कब? ये बालक मन से पूछना चाहिये।
वैसे ही मुझे सोनम पटेल, एक बहुत ही छोटी बालिका से मिलना हुआ। 9 साल की उम्र है। वाराणसी के सुन्दरपुर निवासी सदावृत पटेल की वो एक बेटी, बहुत ही गरीब परिवार की बेटी है। और मैं हैरान था कि बच्ची, पूरी गीता उसको कंठस्थ है। लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी कि जब मैंने उसको पूछा, तो वो श्लोक भी बताती थी, अंग्रेजी में interpretation करती थी, उसकी परिभाषा करती थी, हिन्दी में परिभाषा करती थी। मैंने उनके पिताजी को पूछा, तो बोले, वो पांच साल की उम्र से बोल रही है। मैंने कहा, कहाँ सीखा? बोले, हमें भी मालूम नहीं है। तो मैंने कहा, और पढ़ाई में क्या हाल है, सिर्फ़ गीता ही पढ़ती रहती है और भी कुछ करती है? तो उन्होंने कहा, नहीं जी, वो Mathematics एक बार हाथ में ले ले, तो शाम को उसको सब मुखपाठ होता है। History ले ले, शाम को सब याद होता है। बोले, हम लोगों के लिए भी आश्चर्य है, पूरे परिवार में कि कैसे उसके अंदर है। मैं सचमुच में बड़ा प्रभावित था। कभी कुछ बच्चों को celebrity का शौक हो जाता है, ऐसा ही सोनम में कुछ नहीं था। अपने आप में ईश्वर ने कोई शक्ति ज़रूर दी है, ऐसा लग रहा था मुझे।
खैर इन दोनों बच्चे, मेरी काशी यात्रा में एक विशेष मेरी मुलाक़ात थी। तो मुझे लगा, आपसे भी बता दूं। TV पर जो आप देखते हैं, अखबारों में पढ़ते हैं, उसके सिवाय भी बहुत सारे काम हम करते हैं। और कभी-कभी ऐसे कामों का कुछ आनंद भी आता है। वैसा ही, इन दो बालकों के साथ, मेरी बातचीत मेरे लिए यादगार थी।
मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ में कुछ लोग मेरे लिए काफी कुछ काम लेकर के आते हैं। देखिये, हरियाणा के संदीप क्या कह रहे हैं – “संदीप, हरियाणा। सर, मैं चाहता हूँ कि आप जो ‘मन की बात’ ये महीने में एक बार करते हैं, आपको वीकली करनी चाहिए, क्योंकि आपकी बात से बहुत प्रेरणा मिलती है।”
संदीप जी, आप क्या-क्या करवाओगे मेरे पास? महीने में एक बार करने के लिए भी मुझे इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, समय का इतना adjust करना पड़ता है। कभी-कभी तो हमारे आकाशवाणी के सारे हमारे साथियों को आधा-आधा पौना-पौना घंटा मेरा इंतजार करके बैठे रहना पड़ता है। लेकिन मैं आपकी भावना का आदर करता हूँ। आपके सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ। अभी तो एक महीने वाला ही ठीक है।
‘मन की बात’ का एक प्रकार से एक साल पूरा हुआ है। आप जानते हैं, सुभाष बाबू रेडियो का कितना उपयोग करते थे? जर्मनी से उन्होंने अपना रेडियो शुरू किया था। और हिन्दुस्तान के नागरिकों को आज़ादी के आन्दोलन के सम्बन्ध में वो लगातार रेडियो के माध्यम से बताते रहते थे। आज़ाद हिन्द रेडियो की शुरुआत एक weekly News Bulletin से उन्होंने की थी। अंग्रेजी, हिन्दी, बंगाली, मराठी, पंजाबी, पश्तो, उर्दू - सभी भाषाओं में ये रेडियो वो चलाते थे।
मुझे भी अब आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ करते-करते अब एक साल हो गया है। मेरे मन की बात आपके कारण सच्चे अर्थ में आपके मन की बात बन गयी है। आपकी बातें सुनता हूँ, आपके लिए सोचता हूँ, आपके सुझाव देखता हूँ, उसी से मेरे विचारों की एक दौड़ शुरू हो जाती है, जो आकाशवाणी के माध्यम से आपके पास पहुँचती है। बोलता मैं हूँ, लेकिन बात आपकी होती है और यही तो मेरा संतोष है। अगले महीने ‘मन की बात’ के लिए फिर से मिलेंगे। आपके सुझाव मिलते रहें। आपके सुझावों से सरकार को भी लाभ होता है। सुधार की शुरुआत होती है। आपका योगदान मेरे लिए बहुमूल्य है, अनमोल है।
फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें। धन्यवाद।
जय जगन्नाथ!
जय जगन्नाथ!
केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।
ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।
मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।
ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।
साथियों,
ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।
साथियों,
ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।
साथियों,
उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।
साथियों,
ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।
साथियों,
इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।
साथियों,
ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।
साथियों,
एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।
साथियों,
ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।
साथियों,
ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।
साथियों,
हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
साथियों,
ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।
साथियों,
ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।
साथियों,
हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।
साथियों,
ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।
साथियों,
हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।
साथियों,
ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।
साथियों,
हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।
साथियों,
कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।
साथियों,
आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।
आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।
जय जगन्नाथ!