महाभारत से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, गीता ने हर बिंदु पर हमारे राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है: प्रधानमंत्री
जब भी हम अपने अधिकारों की बात करते हैं, हमें अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों को भी याद रखना चाहिए : प्रधानमंत्री
श्रीमद्भगवद्गीता हमें सिखाती है कि दुनिया और लोगों की सेवा कैसे करें : प्रधानमंत्री मोदी
ज्ञान साझा करना भारत की संस्कृति में है : प्रधानमंत्री मोदी

कार्यक्रम में मेरे साथ उपस्थित जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्रीमान मनोज सिन्हा जी, धर्मार्थ ट्रस्ट के चेयरमैन ट्रस्टी डॉ कर्णसिंह जी, इस कार्यक्रम में उपस्थित अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

आज हम श्रीमद भगवत गीता की 20 व्याख्याओं को एक साथ लाने वाले 11 संस्करणों का लोकार्पण कर रहे हैं। मैं इस पुनीत कार्य के लिए प्रयास करने वाले सभी विद्वानों को, इससे जुड़े हर व्यक्ति को और उनके हर प्रयास को आदरपूर्वक नमन करता हूँ और उनको मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। आपने ज्ञान का इतना बड़ा कोष आज के युवाओं, और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुलभ करने का एक बहुत ही महान काम किया है। मैं डॉ कर्ण सिंह जी का भी विशेष रूप से अभिनंदन करता हूँ, जिनके मार्गदर्शन में, ये कार्य सिद्ध हुआ है। और जब भी मैं उनसे मिला हूँ एक प्रकार से ज्ञान और संस्‍कृति की धारा अविरल बहती रहती है, ऐसे बहुत कम विरले मिलते हैं। और आज ये भी बहुत शुभ अवसर है कि कर्ण सिंह जी का जन्मदिवस भी है और 90 साल की एक प्रकार से उनकी एक सांस्‍कृतिक यात्रा है। मैं उनका हृदय से अभिनंदन करता हूँ। मैं आपके दीर्घायु होने, अच्छे स्वास्थ्य की बहुत ही कामना करता हूं। डॉ कर्ण सिंह जी ने भारतीय दर्शन के लिए जो काम किया है, जिस तरह अपना जीवन इस पवित्र कार्य के लिये समर्पित किया है, भारत के शिक्षा जगत पर उसका प्रकाश और प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। आपके इस प्रयास ने जम्मू कश्मीर की उस पहचान को भी पुनर्जीवित किया है, जिसने सदियों तक पूरे भारत की विचार परंपरा का नेतृत्व किया है। कश्मीर के भट्ट भाष्कर, अभिनवगुप्त, आनंदवर्धन, अनगिनत विद्वान, जिन्होंने गीता के रहस्यों को हमारे लिए उजागर किया। आज वो महान परंपरा एक बार फिर देश की संस्कृति को समृद्ध करने के लिए तैयार हो रही है। ये कश्मीर के साथ-साथ पूरे देश के लिए भी गर्व का विषय है।

साथियों,

किसी एक ग्रंथ के हर श्लोक पर ये अलग-अलग व्याख्याएँ, इतने मनीषियों की अभिव्यक्ति, ये गीता की उस गहराई का प्रतीक है, जिस पर हजारों विद्वानों ने अपना पूरा जीवन दिया है। ये भारत की उस वैचारिक स्वतन्त्रता और सहिष्णुता का भी प्रतीक है, जो हर व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण, अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है। किसी के लिए गीता ज्ञान का ग्रंथ है, किसी के लिए सांख्य का शास्त्र है, किसी के लिए योग सूत्र है, तो किसी के लिए कर्म का पाठ है। अब मैं जब गीता को देखता हूँ तो मेरे लिए ये उस विश्वरूप के समान है जिसका दर्शन हमें 11वें अध्याय में होता है- मम देहे गुडाकेश यच्च अन्यत् द्रष्टुम इच्छसि। अर्थात्, मुझमें जो कुछ भी देखना चाहो देख सकते हो। हर विचार, हर शक्ति के दर्शन कर सकते हो।

साथियों,

गीता के विश्वरूप ने महाभारत से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक, हर कालखंड में हमारे राष्ट्र का पथप्रदर्शन किया है। आप देखिए, भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले आदि शंकराचार्य ने गीता को आध्यात्मिक चेतना के रूप में देखा। गीता को रामानुजाचार्य जैसे संतों ने आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में देखा। स्वामी विवेकानंद जी के लिए गीता अटूट कर्मनिष्ठा और अदम्य आत्मविश्वास का स्रोत रही है। गीता श्री अरबिंदो के लिए तो ज्ञान और मानवता की साक्षात अवतार थी। गीता महात्मा गांधी की कठिन से कठिन समय में पथप्रदर्शक रही है। गीता नेताजी सुभाषचंद्र बोस की राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की प्रेरणा रही है। ये गीता ही है जिसकी व्याख्या बाल गंगाधर तिलक ने की और आज़ादी की लड़ाई को एक नई ताकत दी, नई ऊर्जा दी थी। मैं समझता हूँ कि ये सूची इतनी लंबी हो सकती है कि कई घंटे भी इसके लिए कम पड़ेंगे। आज जब देश आज़ादी के 75 साल मनाने जा रहा है, तो हम सबको गीता के इस पक्ष को भी देश के सामने रखने का प्रयास करना चाहिए। कैसे गीता ने हमारी आज़ादी की लड़ाई को ऊर्जा दी, कैसे हमारे स्वाधीनता सेनानियों को देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने का साहस दिया, कैसे गीता ने देश को एकता के आध्यात्मिक सूत्र में बांधकर रखा, इस सब पर भी हम शोध करें, लिखें और अपनी युवा पीढ़ी को इससे परिचित कराएं।

साथियों,

गीता तो भारत की एकजुटता, समत्व की भावना का मूल पाठ है, क्योंकि गीता कहती है- ‘समम् सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तम् परमेश्वरम्’। अर्थात्, प्राणी मात्र में ईश्वर का निवास है। नर ही नारायण है। गीता हमारी ज्ञान और शोध की प्रवत्ति की प्रतीक है, क्योंकि गीता कहती है- ‘न हि ज्ञानेन सदृशम् पवित्रम् इह विद्यते’। अर्थात्, ज्ञान से पवित्र और कुछ भी नहीं है। गीता भारत के वैज्ञानिक चिंतन की, scientific temperament की भी गीता ऊर्जा स्रोत है, क्योंकि गीता का वाक्य है- ‘ज्ञानम् विज्ञानम् सहितम् यत् ज्ञात्वा मोक्ष्यसे अशुभात्’। अर्थात, ज्ञान और विज्ञान जब साथ मिलते हैं, तभी समस्याओं का, दुःखों का समाधान होता है। गीता सदियों से भारत की कर्म निष्ठा का प्रतीक है, क्योंकि गीता कहती है- ‘योगः कर्मसु कौशलम्’। अर्थात्, अपने कर्तव्यों को कुशलतापूर्वक करना ही योग है।

साथियों,

गीता एक ऐसा आध्यात्मिक ग्रंथ है जिसने ये कहने का साहस किया कि- ‘न अनवाप्तम् अवाप्तव्यम् वर्त एव च कर्मणि’। अर्थात सभी हानि-लाभ और इच्छाओं से मुक्त ईश्वर भी बिना कर्म किए नहीं रहता है। इसीलिए, गीता पूरी व्यावहारिकता से इस बात को कहती है कि कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता। हम कर्म से मुक्त नहीं हो सकते। अब ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपने कर्मों को क्या दिशा दें, कैसा स्वरूप दें। गीता हमें मार्ग दिखाती है, हम पर कोई आदेश नहीं थोपती। गीता ने अर्जुन पर भी कोई आदेश नहीं थोपा था और अभी डॉक्‍टर साहब भी कह रहे थे, गीता कोई उपदेश नहीं देती। श्रीकृष्ण ने पूरी गीता के उपदेश के बाद अंतिम अध्याय में अर्जुन से यही कहा, यानि सब कुछ करने के बाद, जितना जोर लगाना था, लगा लिया लेकिन आखिर में क्‍या कहा- ‘यथा इच्छसि तथा कुरु’। यानी, अब मैंने जितना कहना था कह दिया, अब तुम्हें जैसा ठीक लगे वैसा तुम करो। ये अपने आप में शायद इससे ज्‍यादा liberal thinker कोई हो सकता है। कर्म और विचारों की ये स्वतन्त्रता ही भारत के लोकतन्त्र की सच्‍ची पहचान रही है। हमारा लोकतन्त्र, हमारे विचारों की आज़ादी देता है, काम की आज़ादी देता है, अपने जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है। हमें ये आज़ादी उन लोकतान्त्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो हमारे संविधान की संरक्षक हैं। इसलिए, जब भी हम अपने अधिकारों की बात करते हैं, तो हमें अपने लोकतान्त्रिक कर्तव्यों को भी याद रखना चाहिए। आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसी कोशिश में रहते हैं कि कैसे संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा पर, उनकी विश्वसनीयता पर चोट की जाए! हमारी संसद हो, न्यायपालिका हो, यहाँ तक कि सेना भी, उस पर भी अपने राजनीतिक स्वार्थ में, हमले करने की कोशिश होती रहती है। ये प्रवत्ति देश को बहुत नुकसान पहुंचाती है। संतोष की बात है कि ऐसे लोग देश की मुख्यधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करते। देश तो आज अपने कर्तव्यों को ही संकल्प मानकर आगे बढ़ रहा है। गीता के कर्मयोग को अपना मंत्र बनाकर देश आज गाँव-गरीब, किसान-मजदूर, दलित-पिछड़े, समाज की हर वंचित व्‍यक्‍तियों की सेवा करने में, उनका जीवन बदलने के लिये प्रयास कर रहा है।

साथियों,

गीता के माध्यम से भारत ने देश और काल की सीमाओं से बाहर पूरी मानवता की सेवा की है। गीता तो एक ऐसा ग्रंथ है जो पूरे विश्व के लिए है, जीव मात्र के लिए है। दुनिया की कितनी ही भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया, कितने ही देशों में इस पर शोध किया जा रहा है, विश्व के कितने ही विद्वानों ने इसका सानिध्य लिया है। ये गीता ही है जिसने दुनिया को निःस्वार्थ सेवा जैसे भारत के आदर्शों से परिचित कराया। नहीं तो, भारत की निःस्वार्थ सेवा, ‘विश्व बंधुत्व’ की हमारी भावना, ये बहुतों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं होती।

आप देखिए,

कोरोना जैसी महामारी दुनिया के सामने आई, उस समय जैसे पूरा विश्व इस खतरे से अंजान था, एक unknown enemy था। दुनिया तैयार नहीं थी, मानव तैयार नहीं था और वैसी ही स्थिति भारत के लिए भी थी। लेकिन भारत ने खुद को भी संभाला, और विश्व की सेवा के लिये जो भी कर सकता है, पीछे नहीं रहा। दुनिया के देशों को दवाइयाँ पहुंचाईं, जरूरत जिन सामग्री की थी उसको पहुंचाया। आज दुनिया के कई ऐसे देश जिनके पास वैक्सीन के लिए साधन-संसाधन नहीं थे, भारत ने उनके लिए बिना किसी बंध-अनुबंध और शर्त के, कोई शर्त नहीं, हमने वैक्सीन पहुंचाई। वहाँ के लोगों के लिए भी ये सेवा किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं है। उनके लिए, ये अलग ही अनुभव है।

साथियों,

इसी तरह दूसरे देशों के भी जो लोग दुनिया में अलग अलग जगह फंसे थे, भारत ने उन्हें भी सुरक्षित निकाला, हमने उनके देश पहुंचाया। इसमें भारत ने नफा-नुकसान का कोई गणित नहीं लगाया। मानव मात्र की सेवा को ही कर्म मानकर भारत ने ये कर्तव्य निभाया। जब दुनिया के लोग, विश्व के नेता इसे भारत द्वारा की गई सहायता बताते हैं, भारत के प्रति मुझे धन्यवाद देते हैं, तो मैं कहता हूँ कि भारत के लिए ये सहायता नहीं, संस्कार हैं। भारत की दृष्टि में ये महानता नहीं, मानवता है। भारत सदियों से इसी निष्काम भाव से मानव मात्र की सेवा कैसे करते आ रहा है, ये मर्म दुनिया को तब समझ आता है जब वो गीता के पन्ने खोलती है। हमें तो गीता ने पग-पग पर यही सिखाया है- ‘कर्मणि एव अधिकारः ते मा फलेषु कदाचन’। यानी, बिना फल की चिंता किए निष्काम भावना से कर्म करते रहो। गीता ने हमें बताया है- ‘युक्तः कर्म फलं त्यक्त्वा शान्तिम् आप्नोति नैष्ठिकीम्‌’। अर्थात, फल या लाभ की चिंता किए बिना कर्म को कर्तव्य भाव से, सेवा भाव से करने में ही आंतरिक शांति मिलती है। यही सबसे बड़ा सुख है, सबसे बड़ा अवार्ड है।

साथियों,

गीता में तामसिक, राजसिक और सात्विक, तीन प्रवत्तियों का वर्णन भगवान कृष्ण ने किया है। यहाँ कोई, यहां जब आप एक प्रकार से गीता से जुड़े हुए मर्मज्ञ के लोग भी मेरे सामने हैं। आप सब जानते ही हैं कि गीता के 17वें अध्याय में इस पर कई श्लोक हैं और मेरे अनुभव के हिसाब से अगर हम सरल भाव में इन तामसिक, राजसिक और सात्विक प्रवत्तियों को कहें तो, जो कुछ भी सबके पास है, वो मेरा हो जाए, हमें मिल जाए, यही तामसिक प्रवत्ति है। इसके कारण दुनिया में युद्ध होते हैं, अशांति होती है, षड्यंत्र होते हैं। जो मेरा है, वो मेरे पास रहे। जो किसी और का वो उसका है, वो उसी में अपना गुजारा करे। ये राजसिक यानी सामान्य दुनियावी सोच है। लेकिन, जो मेरा है वो उतना ही सबका है, मेरा सब कुछ मानव मात्र का है, ये सात्विक प्रवत्ति है। इसी सात्विक प्रकृति पर भारत ने हमेशा से अपने मानवीय मूल्यों को आकार दिया है, समाज का मापदंड बनाया है। हमारे यहाँ परिवारों में भी बच्चों को भी सबसे पहले यही सिखाते हैं, कुछ भी मिले पहले सबको दो, बाद में खुद रखो। मैं मेरा नहीं करते, मिलकर चलते हैं। इन्हीं संस्कारों के कारण भारत ने कभी अपनी पूंजी को, अपने ज्ञान को, आने और अपने आविष्कारों को केवल आर्थिक आधार पर नहीं देखा। हमारा गणित का ज्ञान हो, textile हो, metallurgy हो जैसे कई प्रकार के व्यापारिक अनुभव हों, या फिर आयुर्वेद का विज्ञान हो, हमने इन्हें मानवता की पूंजी माना। आयुर्वेद का विज्ञान तो उन युगों से मानवता की सेवा कर रहा है जब आधुनिक मेडिकल साइन्स इस रूप में नहीं थी। आज भी जब दुनिया एक बार फिर से हर्बल और नैचुरल की बात कर रही है, treatment से पहले healing की ओर देख रही है, आज जब आयुर्वेद पर अलग अलग देशों में शोध हो रहे हैं, तो भारत उसे प्रोत्साहित कर रहा है, अपनी मदद भी दे रहा है। अतीत में भी, हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्र आए, विदेशी यात्री आए, हर किसी को हमने अपना ज्ञान-विज्ञान पूरी उदारता से दिया। हमने जितनी ज्यादा प्रगति की, उतना ही मानव मात्र की प्रगति के लिए और प्रयास हम करते रहे हैं।

साथियों,

हमारे यही संस्कार, हमारा यही इतिहास आज ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प के रूप में एक बार फिर जाग्रत हो रहा है। आज एक बार फिर भारत अपने सामर्थ्य को संवार रहा है ताकि वो पूरे विश्व की प्रगति को गति दे सके, मानवता की और ज्यादा सेवा कर सके। हाल के महीनों में दुनिया ने भारत के जिस योगदान को देखा है, आत्मनिर्भर भारत में वही योगदान और अधिक व्यापक रूप में दुनिया के काम आयेगा। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए आज देश को गीता के कर्मयोग की जरूरत है। सदियों के अंधकार से निकलकर एक नए भारत के सूर्योदय के लिए, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए, हमें अपने कर्तव्यों को पहचानना भी, उनके लिए कृतसंकल्प भी होना है। जैसे भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था- ‘क्षुद्रम् हृदय दौर्बल्यम् त्यक्तवा उत्तिष्ठ परंतप’! अर्थात्, छोटी सोच, छोटे मन और आंतरिक कमजोरी को छोड़कर अब खड़े हो जाओ। भगवान कृष्ण ने ये उपदेश देते हुये गीता में अर्जुन को ‘भारत’ कहकर संबोधित किया है। आज गीता का ये सम्बोधन हमारे ‘भारतवर्ष’ के लिए है, 130 करोड़ भारतवासियों के लिए है। आज इस आवाहन के प्रति भी नई जागृति आ रही है। आज दुनिया भारत को एक नए नजरिए से देख रही है, एक नए सम्मान से देख रही है। हमें इस बदलाव को भारत की आधुनिक पहचान, आधुनिक विज्ञान के शिखर तक लेकर जाना है। मुझे विश्वास है कि हम मिलकर ये लक्ष्य हासिल करेंगे। आज़ादी के 75 साल देश के एक नए भविष्य की शुरुआत का आधार बनेंगे। मैं फिर एक बार डॉक्‍टर साहब को, इस ट्रस्‍ट को चलाने वाले सभी महानुभावों को और इस काम को करने के लिये आपने जो मेहनत की उसके लिये मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ और मुझे विश्‍वास है कि इस किताब से जो लोग reference के रूप में किताब का उपयोग करने के आदि होते हैं, उनके लिये ये ग्रंथ बहुत अधिक काम आऐंगे क्‍योंकि हम जैसे लोग हैं उनको जरा ज्‍यादा जरूरत पड़ती है। तो इसमें reference के लिये सुविधा बहुत रहती है और इसके लिये भी मैं मानता हूँ कि एक अनमोल खजाना आपने दिया है और मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ शायद विश्‍व की ये पहली चिंतन धारा ऐसी है, ये विश्‍व का पहला ऐसा ग्रंथ है, विश्‍व का पहला ऐसा माध्‍यम है जो युद्ध की भूमि में रचा गया है, शंखनाद के बीच रचा गया है। जहां जय-पराजय दरवाजे पर दस्‍तक दे रहा था, उस समय कहा गया है। ऐसी प्रतिकूल वातावरण, अशांत वातावरण में, उसमें इतना शांत चित्त विचारधारा निकलना, ये इस अमृत प्रसार के सिवाय और कुछ नहीं हो सकता है। ऐसा गीता का ज्ञान आने वाली पीढ़ियों को, वो जो भाषा में समझें, जिस रूप में समझें, उस रूप में देते रहना हर पीढ़ी का काम है। डॉक्‍टर कर्ण सिंह जी ने, उनके पूरे परिवार ने, उनकी महान परंपरा ने इस काम को हमेशा जीवित रखा है। आगे की भी पीढ़ियां जीवित रखेंगी, ये मुझे पूरा विश्‍वास है और डॉक्‍टर कर्ण सिंह जी की सेवाएं हम हमेशा याद रखेंगे। इस महान कार्य के लिये मैं आदरपूर्वक उनका नमन करता हूँ और वो आयु में इतने वरिष्‍ठ हैं, सार्वजनिक जीवन में इतने वरिष्‍ठ हैं कि उनका आर्शीवाद हम पर बना रहे ताकि हम भी इन आदर्शों को लेकर कुछ न कुछ देश के लिए करते रहें।

बहुत-बहुत धन्यवाद!

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Text of PM Modi's address at the Parliament of Guyana
November 21, 2024

Hon’ble Speaker, मंज़ूर नादिर जी,
Hon’ble Prime Minister,मार्क एंथनी फिलिप्स जी,
Hon’ble, वाइस प्रेसिडेंट भरत जगदेव जी,
Hon’ble Leader of the Opposition,
Hon’ble Ministers,
Members of the Parliament,
Hon’ble The चांसलर ऑफ द ज्यूडिशियरी,
अन्य महानुभाव,
देवियों और सज्जनों,

गयाना की इस ऐतिहासिक पार्लियामेंट में, आप सभी ने मुझे अपने बीच आने के लिए निमंत्रित किया, मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। कल ही गयाना ने मुझे अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है। मैं इस सम्मान के लिए भी आप सभी का, गयाना के हर नागरिक का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। गयाना का हर नागरिक मेरे लिए ‘स्टार बाई’ है। यहां के सभी नागरिकों को धन्यवाद! ये सम्मान मैं भारत के प्रत्येक नागरिक को समर्पित करता हूं।

साथियों,

भारत और गयाना का नाता बहुत गहरा है। ये रिश्ता, मिट्टी का है, पसीने का है,परिश्रम का है करीब 180 साल पहले, किसी भारतीय का पहली बार गयाना की धरती पर कदम पड़ा था। उसके बाद दुख में,सुख में,कोई भी परिस्थिति हो, भारत और गयाना का रिश्ता, आत्मीयता से भरा रहा है। India Arrival Monument इसी आत्मीय जुड़ाव का प्रतीक है। अब से कुछ देर बाद, मैं वहां जाने वाला हूं,

साथियों,

आज मैं भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आपके बीच हूं, लेकिन 24 साल पहले एक जिज्ञासु के रूप में मुझे इस खूबसूरत देश में आने का अवसर मिला था। आमतौर पर लोग ऐसे देशों में जाना पसंद करते हैं, जहां तामझाम हो, चकाचौंध हो। लेकिन मुझे गयाना की विरासत को, यहां के इतिहास को जानना था,समझना था, आज भी गयाना में कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें मुझसे हुई मुलाकातें याद होंगीं, मेरी तब की यात्रा से बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं, यहां क्रिकेट का पैशन, यहां का गीत-संगीत, और जो बात मैं कभी नहीं भूल सकता, वो है चटनी, चटनी भारत की हो या फिर गयाना की, वाकई कमाल की होती है,

साथियों,

बहुत कम ऐसा होता है, जब आप किसी दूसरे देश में जाएं,और वहां का इतिहास आपको अपने देश के इतिहास जैसा लगे,पिछले दो-ढाई सौ साल में भारत और गयाना ने एक जैसी गुलामी देखी, एक जैसा संघर्ष देखा, दोनों ही देशों में गुलामी से मुक्ति की एक जैसी ही छटपटाहट भी थी, आजादी की लड़ाई में यहां भी,औऱ वहां भी, कितने ही लोगों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया, यहां गांधी जी के करीबी सी एफ एंड्रूज हों, ईस्ट इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष जंग बहादुर सिंह हों, सभी ने गुलामी से मुक्ति की ये लड़ाई मिलकर लड़ी,आजादी पाई। औऱ आज हम दोनों ही देश,दुनिया में डेमोक्रेसी को मज़बूत कर रहे हैं। इसलिए आज गयाना की संसद में, मैं आप सभी का,140 करोड़ भारतवासियों की तरफ से अभिनंदन करता हूं, मैं गयाना संसद के हर प्रतिनिधि को बधाई देता हूं। गयाना में डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए आपका हर प्रयास, दुनिया के विकास को मजबूत कर रहा है।

साथियों,

डेमोक्रेसी को मजबूत बनाने के प्रयासों के बीच, हमें आज वैश्विक परिस्थितियों पर भी लगातार नजर ऱखनी है। जब भारत और गयाना आजाद हुए थे, तो दुनिया के सामने अलग तरह की चुनौतियां थीं। आज 21वीं सदी की दुनिया के सामने, अलग तरह की चुनौतियां हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी व्यवस्थाएं और संस्थाएं,ध्वस्त हो रही हैं, कोरोना के बाद जहां एक नए वर्ल्ड ऑर्डर की तरफ बढ़ना था, दुनिया दूसरी ही चीजों में उलझ गई, इन परिस्थितियों में,आज विश्व के सामने, आगे बढ़ने का सबसे मजबूत मंत्र है-"Democracy First- Humanity First” "Democracy First की भावना हमें सिखाती है कि सबको साथ लेकर चलो,सबको साथ लेकर सबके विकास में सहभागी बनो। Humanity First” की भावना हमारे निर्णयों की दिशा तय करती है, जब हम Humanity First को अपने निर्णयों का आधार बनाते हैं, तो नतीजे भी मानवता का हित करने वाले होते हैं।

साथियों,

हमारी डेमोक्रेटिक वैल्यूज इतनी मजबूत हैं कि विकास के रास्ते पर चलते हुए हर उतार-चढ़ाव में हमारा संबल बनती हैं। एक इंक्लूसिव सोसायटी के निर्माण में डेमोक्रेसी से बड़ा कोई माध्यम नहीं। नागरिकों का कोई भी मत-पंथ हो, उसका कोई भी बैकग्राउंड हो, डेमोक्रेसी हर नागरिक को उसके अधिकारों की रक्षा की,उसके उज्जवल भविष्य की गारंटी देती है। और हम दोनों देशों ने मिलकर दिखाया है कि डेमोक्रेसी सिर्फ एक कानून नहीं है,सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है, हमने दिखाया है कि डेमोक्रेसी हमारे DNA में है, हमारे विजन में है, हमारे आचार-व्यवहार में है।

साथियों,

हमारी ह्यूमन सेंट्रिक अप्रोच,हमें सिखाती है कि हर देश,हर देश के नागरिक उतने ही अहम हैं, इसलिए, जब विश्व को एकजुट करने की बात आई, तब भारत ने अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान One Earth, One Family, One Future का मंत्र दिया। जब कोरोना का संकट आया, पूरी मानवता के सामने चुनौती आई, तब भारत ने One Earth, One Health का संदेश दिया। जब क्लाइमेट से जुड़े challenges में हर देश के प्रयासों को जोड़ना था, तब भारत ने वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड का विजन रखा, जब दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हुए, तब भारत ने CDRI यानि कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रज़ीलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर का initiative लिया। जब दुनिया में pro-planet people का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करना था, तब भारत ने मिशन LiFE जैसा एक global movement शुरु किया,

साथियों,

"Democracy First- Humanity First” की इसी भावना पर चलते हुए, आज भारत विश्वबंधु के रूप में विश्व के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहा है। दुनिया के किसी भी देश में कोई भी संकट हो, हमारा ईमानदार प्रयास होता है कि हम फर्स्ट रिस्पॉन्डर बनकर वहां पहुंचे। आपने कोरोना का वो दौर देखा है, जब हर देश अपने-अपने बचाव में ही जुटा था। तब भारत ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के साथ दवाएं और वैक्सीन्स शेयर कीं। मुझे संतोष है कि भारत, उस मुश्किल दौर में गयाना की जनता को भी मदद पहुंचा सका। दुनिया में जहां-जहां युद्ध की स्थिति आई,भारत राहत और बचाव के लिए आगे आया। श्रीलंका हो, मालदीव हो, जिन भी देशों में संकट आया, भारत ने आगे बढ़कर बिना स्वार्थ के मदद की, नेपाल से लेकर तुर्की और सीरिया तक, जहां-जहां भूकंप आए, भारत सबसे पहले पहुंचा है। यही तो हमारे संस्कार हैं, हम कभी भी स्वार्थ के साथ आगे नहीं बढ़े, हम कभी भी विस्तारवाद की भावना से आगे नहीं बढ़े। हम Resources पर कब्जे की, Resources को हड़पने की भावना से हमेशा दूर रहे हैं। मैं मानता हूं,स्पेस हो,Sea हो, ये यूनीवर्सल कन्फ्लिक्ट के नहीं बल्कि यूनिवर्सल को-ऑपरेशन के विषय होने चाहिए। दुनिया के लिए भी ये समय,Conflict का नहीं है, ये समय, Conflict पैदा करने वाली Conditions को पहचानने और उनको दूर करने का है। आज टेरेरिज्म, ड्रग्स, सायबर क्राइम, ऐसी कितनी ही चुनौतियां हैं, जिनसे मुकाबला करके ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार पाएंगे। और ये तभी संभव है, जब हम Democracy First- Humanity First को सेंटर स्टेज देंगे।

साथियों,

भारत ने हमेशा principles के आधार पर, trust और transparency के आधार पर ही अपनी बात की है। एक भी देश, एक भी रीजन पीछे रह गया, तो हमारे global goals कभी हासिल नहीं हो पाएंगे। तभी भारत कहता है – Every Nation Matters ! इसलिए भारत, आयलैंड नेशन्स को Small Island Nations नहीं बल्कि Large ओशिन कंट्रीज़ मानता है। इसी भाव के तहत हमने इंडियन ओशन से जुड़े आयलैंड देशों के लिए सागर Platform बनाया। हमने पैसिफिक ओशन के देशों को जोड़ने के लिए भी विशेष फोरम बनाया है। इसी नेक नीयत से भारत ने जी-20 की प्रेसिडेंसी के दौरान अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल कराकर अपना कर्तव्य निभाया।

साथियों,

आज भारत, हर तरह से वैश्विक विकास के पक्ष में खड़ा है,शांति के पक्ष में खड़ा है, इसी भावना के साथ आज भारत, ग्लोबल साउथ की भी आवाज बना है। भारत का मत है कि ग्लोबल साउथ ने अतीत में बहुत कुछ भुगता है। हमने अतीत में अपने स्वभाव औऱ संस्कारों के मुताबिक प्रकृति को सुरक्षित रखते हुए प्रगति की। लेकिन कई देशों ने Environment को नुकसान पहुंचाते हुए अपना विकास किया। आज क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी कीमत, ग्लोबल साउथ के देशों को चुकानी पड़ रही है। इस असंतुलन से दुनिया को निकालना बहुत आवश्यक है।

साथियों,

भारत हो, गयाना हो, हमारी भी विकास की आकांक्षाएं हैं, हमारे सामने अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन देने के सपने हैं। इसके लिए ग्लोबल साउथ की एकजुट आवाज़ बहुत ज़रूरी है। ये समय ग्लोबल साउथ के देशों की Awakening का समय है। ये समय हमें एक Opportunity दे रहा है कि हम एक साथ मिलकर एक नया ग्लोबल ऑर्डर बनाएं। और मैं इसमें गयाना की,आप सभी जनप्रतिनिधियों की भी बड़ी भूमिका देख रहा हूं।

साथियों,

यहां अनेक women members मौजूद हैं। दुनिया के फ्यूचर को, फ्यूचर ग्रोथ को, प्रभावित करने वाला एक बहुत बड़ा फैक्टर दुनिया की आधी आबादी है। बीती सदियों में महिलाओं को Global growth में कंट्रीब्यूट करने का पूरा मौका नहीं मिल पाया। इसके कई कारण रहे हैं। ये किसी एक देश की नहीं,सिर्फ ग्लोबल साउथ की नहीं,बल्कि ये पूरी दुनिया की कहानी है।
लेकिन 21st सेंचुरी में, global prosperity सुनिश्चित करने में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। इसलिए, अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान, भारत ने Women Led Development को एक बड़ा एजेंडा बनाया था।

साथियों,

भारत में हमने हर सेक्टर में, हर स्तर पर, लीडरशिप की भूमिका देने का एक बड़ा अभियान चलाया है। भारत में हर सेक्टर में आज महिलाएं आगे आ रही हैं। पूरी दुनिया में जितने पायलट्स हैं, उनमें से सिर्फ 5 परसेंट महिलाएं हैं। जबकि भारत में जितने पायलट्स हैं, उनमें से 15 परसेंट महिलाएं हैं। भारत में बड़ी संख्या में फाइटर पायलट्स महिलाएं हैं। दुनिया के विकसित देशों में भी साइंस, टेक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स यानि STEM graduates में 30-35 परसेंट ही women हैं। भारत में ये संख्या फोर्टी परसेंट से भी ऊपर पहुंच चुकी है। आज भारत के बड़े-बड़े स्पेस मिशन की कमान महिला वैज्ञानिक संभाल रही हैं। आपको ये जानकर भी खुशी होगी कि भारत ने अपनी पार्लियामेंट में महिलाओं को रिजर्वेशन देने का भी कानून पास किया है। आज भारत में डेमोक्रेटिक गवर्नेंस के अलग-अलग लेवल्स पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है। हमारे यहां लोकल लेवल पर पंचायती राज है, लोकल बॉड़ीज़ हैं। हमारे पंचायती राज सिस्टम में 14 लाख से ज्यादा यानि One point four five मिलियन Elected Representatives, महिलाएं हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, गयाना की कुल आबादी से भी करीब-करीब दोगुनी आबादी में हमारे यहां महिलाएं लोकल गवर्नेंट को री-प्रजेंट कर रही हैं।

साथियों,

गयाना Latin America के विशाल महाद्वीप का Gateway है। आप भारत और इस विशाल महाद्वीप के बीच अवसरों और संभावनाओं का एक ब्रिज बन सकते हैं। हम एक साथ मिलकर, भारत और Caricom की Partnership को और बेहतर बना सकते हैं। कल ही गयाना में India-Caricom Summit का आयोजन हुआ है। हमने अपनी साझेदारी के हर पहलू को और मजबूत करने का फैसला लिया है।

साथियों,

गयाना के विकास के लिए भी भारत हर संभव सहयोग दे रहा है। यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश हो, यहां की कैपेसिटी बिल्डिंग में निवेश हो भारत और गयाना मिलकर काम कर रहे हैं। भारत द्वारा दी गई ferry हो, एयरक्राफ्ट हों, ये आज गयाना के बहुत काम आ रहे हैं। रीन्युएबल एनर्जी के सेक्टर में, सोलर पावर के क्षेत्र में भी भारत बड़ी मदद कर रहा है। आपने t-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप का शानदार आयोजन किया है। भारत को खुशी है कि स्टेडियम के निर्माण में हम भी सहयोग दे पाए।

साथियों,

डवलपमेंट से जुड़ी हमारी ये पार्टनरशिप अब नए दौर में प्रवेश कर रही है। भारत की Energy डिमांड तेज़ी से बढ़ रही हैं, और भारत अपने Sources को Diversify भी कर रहा है। इसमें गयाना को हम एक महत्वपूर्ण Energy Source के रूप में देख रहे हैं। हमारे Businesses, गयाना में और अधिक Invest करें, इसके लिए भी हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

साथियों,

आप सभी ये भी जानते हैं, भारत के पास एक बहुत बड़ी Youth Capital है। भारत में Quality Education और Skill Development Ecosystem है। भारत को, गयाना के ज्यादा से ज्यादा Students को Host करने में खुशी होगी। मैं आज गयाना की संसद के माध्यम से,गयाना के युवाओं को, भारतीय इनोवेटर्स और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने के लिए भी आमंत्रित करता हूँ। Collaborate Globally And Act Locally, हम अपने युवाओं को इसके लिए Inspire कर सकते हैं। हम Creative Collaboration के जरिए Global Challenges के Solutions ढूंढ सकते हैं।

साथियों,

गयाना के महान सपूत श्री छेदी जगन ने कहा था, हमें अतीत से सबक लेते हुए अपना वर्तमान सुधारना होगा और भविष्य की मजबूत नींव तैयार करनी होगी। हम दोनों देशों का साझा अतीत, हमारे सबक,हमारा वर्तमान, हमें जरूर उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएंगे। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं, मैं आप सभी को भारत आने के लिए भी निमंत्रित करूंगा, मुझे गयाना के ज्यादा से ज्यादा जनप्रतिनिधियों का भारत में स्वागत करते हुए खुशी होगी। मैं एक बार फिर गयाना की संसद का, आप सभी जनप्रतिनिधियों का, बहुत-बहुत आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।