पीएम मोदी ने उत्तराखंड की टनल दुर्घटना में सकुशल रेस्क्यू किए गए श्रमिकों से टेलीफोन पर बातचीत करते हुए कहा, "मैं इस बचाव अभियान में शामिल सभी लोगों के दृढ़ संकल्प को सैल्यूट करता हूं। उनके साहस और संकल्प ने हमारे साथी श्रमिकों को एक नया जीवन दिया है। इस मिशन में शामिल सभी लोगों ने मानवता के मूल्‍यों और मिलकर काम करने का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।"

सिल्कयारा टनल में पिछले 17 दिनों से 41 श्रमिक फंसे हुए थे। एडवांस मशीनरी और निपुण मैनुअल कौशल, दोनों से लैस यह बचाव अभियान, 400 घंटे से अधिक समय तक चला। फंसे हुए श्रमिकों, समर्पित बचाव दल और व्यापक प्रशासनिक प्रयासों द्वारा प्रदर्शित अभूतपूर्व दृढ़ता और धैर्य मिलकर, एक बेजोड़ परिणाम लेकर आए।

केंद्र और राज्य बचाव टीमों के नेतृत्व में यह व्यापक अभियान, संघवाद के सिद्धांतों के प्रति मोदी सरकार की गहरी प्रतिबद्धता का एक और उदाहरण है। यह संकटपूर्ण परिस्थितियों का सामना कर रहे नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधनों को प्रभावी और समय पर जुटाने में एक मास्टरक्लास भी है।

ऑपरेशन गंगा: यूक्रेन से 22,000 से अधिक भारतीय छात्रों को सुरक्षित बाहर निकालना
हालांकि, यह कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसे हम पहली बार देख रहे हैं। युद्ध के बीच ‘ऑपरेशन गंगा’ के माध्यम से, यूक्रेन से 22,000 से अधिक भारतीय छात्रों की सुरक्षित निकासी; एक महत्वपूर्ण प्रयास और उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में हमारे सामने है। इस अभियान में पर्याप्त संसाधनों का एकत्रीकरण, मानवीय सहायता प्रदान करना और छात्रों के घर लौटने के लिए एक सुरक्षित मार्ग का निर्माण शामिल था। प्रधानमंत्री मोदी, लॉजिस्टिक से लेकर डिप्लोमेटिक पहुंच तक, ऑपरेशन की हर बारीक डिटेलिंग में शामिल थे। इसके अलावा, पूरे बचाव अभियान को व्यक्तिगत रूप से कोऑर्डिनेट करने के लिए, चार केंद्रीय मंत्रियों को यूक्रेन के पड़ोसी चार देशों में भेजा गया था। यह सुनिश्चित करते हुए कि छात्रों की शीघ्र और सकुशल वापसी होगी, सरकार ने घरेलू मोर्चे पर उनके अभिभावकों की चिंताओं को भी दूर करने का प्रयास किया।

यह मोदी सरकार का 'समग्र-सरकार' दृष्टिकोण है, जहां विभिन्न मंत्रालयों, सरकारी विभागों और एजेंसियों के बीच त्वरित समन्वय से असाधारण परिणाम देने वाली सुसंगत कार्रवाई होती है।

1979 की मच्छु डैम आपदा
सामूहिक जन-एकता के महत्त्व को लेकर पीएम मोदी का दृष्टिकोण, सार्वजनिक जीवन में उनके आगमन के साथ ही दृढ़ हो गया था। इस दृष्टिकोण का एक उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण उदाहरण, गुजरात में मच्छु डैम बर्स्ट होने के बाद सामने आया, जिसे आमतौर पर मोरबी आपदा के रूप में जाना जाता है। इसे इतिहास की सबसे बड़ी डैम से जुड़ी आपदा के रूप में भी जाना जाता है, जिससे 1979 में मोरबी शहर में बाढ़ आ गई, जिससे 25,000 से अधिक लोग हताहत हुए तथा इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार सबसे भीषण डैम बर्स्ट का दुर्भाग्यपूर्ण गौरव प्राप्त हुआ।

उस समय, गुजरात में आरएसएस कार्यकर्ता नरेन्द्र मोदी ने जमीन पर प्रभावित लोगों की सहायता के लिए असाधारण प्रयास किए। उन्होंने संकट के समय में कार्यकर्ताओं को संगठित करके आरएसएस की संगठनात्मक ताकत का लाभ उठाया। वह यहीं नहीं रुके, नीरस परिणाम के बाद, नरेन्द्र मोदी ने अपनी अनूठी शैली में, मोरबी की युवा जनता को उनके जीवन के पुनर्निर्माण की दिशा में प्रेरित करने के लिए प्रेरणादायक पत्र लिखा।

मोरबी में राहत कार्यों का दौर लगभग दो महीने तक चला, जिसके दौरान नरेन्द्र मोदी, जो गुजरात में आरएसएस के संगठक थे, ने अनुकरणीय नेतृत्व का प्रदर्शन किया, व्यक्तिगत रूप से जवाबदेही संभाली और स्वयंसेवकों को घर ले जाने वाली आखिरी बस के रवाना होने तक सबसे आगे डटे रहे। आरएसएस स्वयंसेवकों के साथ, उन्होंने स्थिति का आकलन किया और एक विस्तृत योजना बनाई, जिसके माध्यम से टीमों को आपदा से उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी कार्य सौंपे गए। सरकारें, बेशक एक्शन लेने में अपने तौर-तरीकों से काम करती हों, लेकिन 29 वर्षीय स्वयंसेवक नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहले लोगों तक पहुंचने और उनकी पीड़ा को तत्काल कम करने के उपायों पर काम किया।

2001 गुजरात भूकंप
तेज और प्रभावी समाधान के लिए हर उपलब्ध संसाधन जुटाने की नरेन्द्र मोदी की प्रतिबद्धता का एक और कारगर उदाहरण 2001 के विनाशकारी भूकंप से निपटना है जिसने गुजरात राज्य को हिलाकर रख दिया था। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका संभालने से पहले ही, नरेन्द्र मोदी, जो उस समय भाजपा कार्यकर्ता थे, प्रभावितों की सहायता के लिए तुरंत ग्राउंड जीरो पर पहुंच गए।

भुज में भीषण भूकंप के बाद, जब नरेन्द्र मोदी की गुजरात सरकार या पार्टी पदानुक्रम में कोई आधिकारिक भूमिका नहीं थी, उन्होंने संघ में अपने निजी नेटवर्क का लाभ उठाया और भूकंप पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के लिए भाजपा के कैडर को एकजुट किया। सभी ने देखा कि कैसे उन्होंने नुकसान का आकलन करने और संभावित निवारण उपायों पर काम करने के लिए, प्रभावित क्षेत्र का, मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर दौरा किया। एनजीओ के साथ सहयोग करना, राहत शिविरों का आयोजन करना, भोजन वितरित करना और देश भर में तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने के लिए कोआर्डिनेशन के प्रयासों से नरेन्द्र मोदी ने दिखाया कि वह किसी भी औपचारिक पावर या पद के बावजूद जरूरतमंदों की सहायता के लिए कितना आगे जा सकते हैं।

2001 में मुख्यमंत्री का पद संभालने के कुछ समय बाद ही नरेन्द्र मोदी ने, भूकंप पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, भुज में दीपावली मनाने का निर्णय किया। इसके कुछ समय बाद, सीएम मोदी ने संवेदनशील नेतृत्व का एक और प्रदर्शन किया, जब उन्होंने भूकंप से उत्पन्न भय को दूर करने के लिए धरती माता की सामूहिक पूजा का आयोजन किया।

जब बड़े पैमाने पर पुनर्वास के लिए काम करने का चुनौतीपूर्ण अवसर आया, तो मुख्यमंत्री मोदी ने राज्य की सरकारी मशीनरी को एकजुट करने और उसके अधिकतम उपयोग में कोई कसर नहीं छोड़ी। अधिकारियों द्वारा पुनर्वास के टास्क में कम से कम तीन साल की अवधि का अनुमान लगाने के बावजूद, नरेन्द्र मोदी, गुजरात में जमीनी सच्चाई से अपरिचित नहीं थे और बेघर तथा बेसहारा हो चुके लोगों की पीड़ा को समझते हुए, उन्होंने एक सीधा निर्देश दिया: कच्छ को तीन महीने में फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। और जब 26 जनवरी 2002 में भूकंप की पहली बरसी नजदीक आई, कच्छ न केवल अपने पैरों पर खड़ा हो गया, बल्कि प्रगति की रफ्तार को भी हासिल कर लिया।

उत्तराखंड टनल रेस्क्यू केवल निर्णायक नेतृत्व के कारण ही सफल हो सका, जिसने जमीनी स्तर पर लोगों के लिए गहरी चिंता का प्रदर्शन किया। देश को प्रधानमंत्री के अनुभवों से लाभ हुआ, जिन्होंने आरएसएस स्वयंसेवक, भाजपा कार्यकर्ता और बाद में गुजरात तथा भारत के प्रशासनिक मुखिया के रूप में कई आपदाओं एवं संकटों को देखा तथा उन्हें कुशलतापूर्वक संभाला।

आज, हम देखते हैं कि पीएम मोदी की यह व्यक्तिगत क्षमता, संस्थागत शक्ति में बदल गई है। 'समग्र सरकार' के उनके विजन ने, भारत में गवर्नेंस में आमूलचूल बदलाव किया है, और आज कोई भी गर्व से कह सकता है कि यह समग्र सरकार और समग्र भारत का अभियान था।

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