प्रधानमंत्री ने श्री संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग और श्री संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग के प्रमुख खंडों को चार लेन में निर्मित करने के कार्य का का शिलान्यास किया
प्रधानमंत्री ने पंढरपुर से आवागमन संपर्क बढ़ाने के लिए विभिन्न सड़क परियोजनाओं का लोकार्पण किया
"यह यात्रा दुनिया की सबसे प्राचीन जनयात्राओं में एक है और इसे बड़ी संख्या में लोगों द्वारा एक साथ यात्रा करने के रूप में देखा जाता है; यह भारत की उस शाश्वत शिक्षा का प्रतीक है, जो हमारी आस्था को बांधती नहीं, बल्कि मुक्त करती है"
भगवान विट्ठल का दरबार हर किसी के लिए समान रूप से खुला है; सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास के पीछे भी यही भावना है
"समय-समय पर, अलग-अलग क्षेत्रों में, ऐसी महान विभूतियां अवतरित होती रहीं, देश को दिशा दिखाती रहीं"
"पंढरी की वारी, अवसरों की समानता का प्रतीक हैं; वारकरी आंदोलन भेदभाव को अमंगल मानता है और यही इसका महान ध्येय वाक्य है"
भक्तों से आशीर्वाद स्वरूप तीन चीजें मांगना चाहता हूं- वृक्षारोपण, पेयजल की व्यवस्था और पंढरपुर को सबसे स्वच्छ तीर्थ बनाना
"धरती पुत्रों ने भारतीय परंपरा और संस्कृति को जीवित रखा है; एक सच्चा 'अन्नदाता' समाज को जोड़ता है और समाज के लिए जीता है; आपसे ही समाज की प्रगति है और आप ही समाज की प्रगति के प्रतिबिंब भी हैं"

रामकृष्ण हरी।

रामकृष्ण हरी।

कार्यक्रम में हमारे साथ उपस्थित महाराष्ट्र के गवर्नर श्रीमान भगत सिंह कोशियारी जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्रीमान उद्धव ठाकरे जी, मंत्री परिषद के मेरे साथी श्री नितिन गडकरी जी, मेरे अन्य सहयोगी नारायण राणे जी, रावसाहिब दानवे जी, रामदास अठावले जी, कपिल पाटिल जी, डॉक्टर भागवत कराड जी, डॉक्टर भारती पवार जी, जनरल वीके सिंह जी, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री श्री अजीत पवार जी, महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और मेरे मित्र श्री देवेन्द्र फडणवीस जी, legislative काउंसिल के चेयरमैन रामराजे नाइक जी, महाराष्ट्र सरकार के सभी सम्मानित मंत्रीगण, संसद में मेरे सहयोगी सांसदगण, महाराष्ट्र के विधायकगण, सभी अन्य जनप्रतिनिधि, यहाँ हमें आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित हमारे सभी पूज्य संतगण, और श्रद्धालु साथियों!

दो दिन पहले ईश्वर कृपा से मुझे केदारनाथ में आदि शंकराचार्य जी की पुनर्निर्मित समाधि की सेवा का अवसर मिला और आज भगवान विट्ठल ने अपने नित्य निवास स्थान पंढरपुर से मुझे आप सब के बीच जोड़ लिया। इससे ज्यादा आनन्द का, ईश्वरीय कृपा के साक्षात्कार का सौभाग्य और क्या हो सकता है? आदि शंकराचार्य जी ने स्वयं कहा है-

महा-योग-पीठे,

तटे भीम-रथ्याम्,

वरम् पुण्डरी-काय,

दातुम् मुनीन्द्रैः।

समागत्य तिष्ठन्तम्,

आनन्द-कन्दं,

परब्रह्म लिंगम्,

भजे पाण्डु-रंगम्॥

अर्थात्, शंकराचार्य जी ने कहा है- पंढरपुर की इस महायोग भूमि में विट्ठल भगवान साक्षात् आनन्द स्वरूप हैं। इसलिए पंढरपुर तो आनंद का ही प्रत्यक्ष स्वरूप है। और आज तो इसमें सेवा का आनंद भी साथ में जुड़ रहा है। मला अतिशय आनंद होतो आहें की, संत ज्ञानोबा माऊली आणि संत तुकोबारायांच्या पालखी मार्गाचे आज उदघाटन होते आहे. वारकर्‍यांना अधिक सुविधा तर मिळणार आहेतच, पण आपण जसे म्हणतो की, रस्ते हे विकासाचे द्वार असते. तसे पंढरी-कडे जाणारे हे मार्ग भागवतधर्माची पताका आणखी उंच फडकविणारे महामार्ग ठरतील. पवित्र मार्गाकडे नेणारे ते महाद्वार ठरेल।

साथियों,

आज यहां श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग, का शिलान्यास हुआ है। श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग का निर्माण अभी आपने विडियो में भी देखा है, नितिन जी के भाषण में भी सुना है, पांच चरणों में होगा और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का निर्माण तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। इन सभी चरणों में 350 किलोमीटर से ज्यादा लंबाई के हाईवे बनेंगे और इस पर 11 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का खर्च किया जाएगा। इसकी सबसे खास बात ये है कि इन हाईवेज के दोनों तरफ, पालखी यात्रा के लिए पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं के लिए, वारकरियों के लिए विशेष मार्ग बनाए जाएंगे। इसके अलावा आज पंढरपुर को जोड़ने वाले करीब सवा दो सौ किलोमीटर लंबे नेशनल हाईवे का भी शुभारंभ हुआ है, लोकार्पण हुआ है। इनके निर्माण पर करीब 12 सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। सतारा, कोल्हापुर, सांगली, बीजापुर, मराठवाड़ा का क्षेत्र, उत्तरी महाराष्ट्र का क्षेत्र, इन सभी स्थानों से पंढरपुर आने वाले श्रद्धालुओं को ये नेशनल हाईवे, बहुत मदद करेंगे। एक तरह से ये महामार्ग भगवान विट्ठल के भक्तों की सेवा के साथ साथ इस पूरे पुण्य क्षेत्र के विकास का भी माध्यम बनेंगे। विशेष रूप से इसके जरिए दक्षिण भारत के लिए connectivity और बेहतर होगी। इससे अब और ज्यादा श्रद्धालु यहाँ आसानी से आ सकेंगे, और क्षेत्र के विकास से जुड़ी अन्य गतिविधियों को भी गति मिलेगी। मैं इन सभी पुण्य कार्यों से जुड़े हुए हर एक व्यक्ति का अभिनंदन करता हूँ। ये ऐसे प्रयास हैं जो हमें एक आत्मिक संतोष प्रदान करते हैं, हमें जीवन की सार्थकता का आभास कराते हैं। मैं भगवान विट्ठल के सभी भक्तों को, इस क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों को पंढरपुर क्षेत्र के इस विकास अभियान के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। मी सर्व वारकर्‍यांना नमन करतो, त्यांना कोटी-कोटी अभिवादन करतो। मैं इस कृपा के लिए भगवान विट्ठलदेव जी के चरणों में अपना नमन करता हूँ, उन्हें साष्टांग प्रणाम करता हूँ। मैं सभी संतों के चरणों में भी अपना नमन करता हूँ।

साथियों,

अतीत में हमारे भारत पर कितने ही हमले हुये हैं! सैकड़ों साल की गुलामी में ये देश जकड़ा गया। प्राकृतिक आपदाएँ आईं, चुनौतियाँ आईं, कठिनाइयाँ आईं, लेकिन भगवान विट्ठल देव में हमारी आस्था, हमारी दिंडी वैसे ही अनवरत चलती रही। आज भी ये यात्रा दुनिया की सबसे प्राचीन और सबसे बड़ी जन-यात्राओं के रूप में, people मूवमेंट के रूप में देखी जाती है। 'आषाढ एकादशी' पर पंढरपुर यात्रा का विहंगम दृश्य कौन भूल सकता है। हजारों-लाखों श्रद्धालु, बस खिंचे चले आते हैं, खिंचे चले आते हैं। हर तरफ 'रामकृष्ण हरी', 'पुंडलिक वरदे हारि विठ्ठल' और 'ज्ञानबा तुकाराम' का जयघोष होता है। पूरे 21 दिन तक एक अनोखा अनुशासन, एक असाधारण संयम देखने को मिलता है। ये यात्राएं अलग अलग पालखी मार्गों से चलती हैं, लेकिन सबका गंतव्य एक ही होता है। ये भारत की उस शाश्वत शिक्षा का प्रतीक है जो हमारी आस्था को बांधती नहीं, बल्कि मुक्त करती है। जो हमें सिखाती है कि मार्ग अलग अलग हो सकते हैं, पद्धतियाँ और विचार अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य एक होता है। अंत में सभी पंथ 'भागवत पंथ' ही हैं और इसलिये हमारे यहां तो बड़े विश्वास के साथ शास्त्रों में कहा गया है- एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति॥

साथियों,

संत तुकाराम महाराज जी उन्होंने हमें मंत्र दिया है और तुकाराम महाराज जी ने कहा है- 

विष्णूमय जग वैष्णवांचा धर्म, भेदाभेद भ्रम अमंगळ अइका जी तुम्ही भक्त भागवत, कराल तें हित सत्य करा। कोणा ही जिवाचा न घडो मत्सर, वर्म सर्वेश्वर पूजनाचे॥ 

यानी, विश्व में सब कुछ विष्णु-मय है। इसलिए जीव जीव में भेद करना, भेदभाव रखना ही अमंगल है। आपस में ईर्ष्या न हो, द्वेष न हो, हम सभी को समान मानें, यही सच्चा धर्म है। इसीलिए, दिंडी में कोई जात-पात नहीं होता, कोई भेदभाव नहीं होता। हर वारकरी समान है, हर वारकरी एक दूसरे का 'गुरुभाऊ' है, 'गुरु बहिण' है। सब एक विट्ठल की संतान हैं, इसलिए सबकी एक जाति है, एक गोत्र है- 'विट्ठल गोत्र'। भगवान विट्ठल का दरबार हर किसी के लिए समान रूप से खुला है। और जब मैं सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास कहता हूं, तो उसके पीछे भी तो इसी महान परंपरा की प्रेरणा है, यही भावना है। यही भावना हमें देश के विकास के लिए प्रेरित करती है, सबको साथ लेकर, सबके विकास के लिए प्रेरित करती है।

साथियों,

पंढरपुर की तो आभा, पंढरपुर की अनुभूति और पंढरपुर की अभिव्यक्ति सब कुछ अलौकिक है। आपण म्हणतो ना! माझे माहेर पंढरी, आहे भिवरेच्या तीरी। वाकई, पंढरपुर मां के घर की तरह है। लेकिन मेरे लिए पंढरपुर से दो और भी बहुत ख़ास रिश्ते हैं और मैं संत जनों के सामने कहना चाहता हूं, मेरा विशेष रिश्ता है। मेरा पहला रिश्ता है गुजरात का, द्वारिका का। भगवान द्वारिकाधीश ही यहाँ आकर विट्ठल स्वरूप में विराजमान हुये हैं। और मेरा दूसरा रिश्ता है काशी का। मैं काशी से हूँ, और ये पंढरपुर हमारी 'दक्षिण काशी' है। इसलिए, पंढरपुर की सेवा मेरे लिए साक्षात् श्री नारायण हरि की सेवा है। ये वो भूमि है, जहां भक्तों के लिए भगवान आज भी प्रत्यक्ष विराजते हैं। ये वो भूमि है, जिसके बारे में संत नामदेव जी महाराज ने कहा है कि पंढरपुर तबसे है जब संसार की भी सृष्टि नहीं हुई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि पंढरपुर भौतिक रूप से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से हमारे मनों में भी बसती है। ये वो भूमि है जिसने संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत तुकाराम और संत एकनाथ जैसे कितने ही संतों को युग-संत बनाया है। इस भूमि ने भारत को एक नई ऊर्जा दी, भारत को फिर से चैतन्य किया। और भारत भूमि की ये विशेषता है कि समय-समय पर, अलग-अलग क्षेत्रों में, ऐसी महान विभूतियां अवतरित होती रहीं, देश को दिशा दिखाती रहीं। आप देखिए, दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभचार्य, रामानुजाचार्य हुए, पश्चिम में नरसी मेहता, मीराबाई, धीरो भगत, भोजा भगत, प्रीतम, तो उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास हुए, पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे अनेक संतों के विचारों ने देश को समृद्ध किया अलग-अलग स्थान, अलग अलग कालखंड, लेकिन एक ही उद्देश्य! सबने भारतीय जनमानस में एक नई चेतना फूंकी, पूरे भारत को भक्ति की शक्ति का आभास कराया। इसी भाव और इसी भाव में हम ये भी देखते हैं कि मथुरा के कृष्ण, गुजरात में द्वारिकाधीश बनते हैं, उडुपी में बालकृष्ण बनते हैं और पंढरपुर में आकर विट्ठल रूप में विराजित हो जाते हैं। वही भगवान विट्ठल दक्षिण भारत में कनकदास और पुरंदरदास जैसे संत कवियों के जरिए जन-जन से जुड़ जाते हैं और कवि लीलाशुक के काव्य से केरल में भी प्रकट हो जाते हैं। यही तो भक्ति है जिसकी शक्ति जोड़ने वाली शक्ति है। यही तो 'एक भारत- श्रेष्ठ भारत' के भव्य दर्शन हैं।

साथियों,

वारकरी आंदोलन की और एक विशेषता रही और वह है पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर वारी में चलने वाली हमारी बहनें, देश की मातृ शक्ति, देश की स्त्री शक्ति ! पंढरी की वारी, अवसरों की समानता का प्रतीक हैं। वारकरी आंदोलन का ध्येय वाक्य हैं, 'भेदाभेद अमंगळ'! ये सामाजिक समरसता का उद्घोष है और इस समरसता में स्त्री और पुरुष समानता भी अंतर्निहित है। बहुत सारे वारकरी, स्त्री और पुरुष भी एक दूसरे को 'माऊली' नाम से पुकारते हैं, भगवान विट्ठल और संत ज्ञानेश्वर का रूप एक दूसरे में देखते हैं। आप भी जानते हैं कि 'माऊली' का अर्थ है मां। यानि ये मातृशक्ति का भी गौरवगान है।

साथियों,

महाराष्ट्र की भूमि में महात्मा फुले, वीर सावरकर जैसे अनेक पुरोधा अपने कार्य को सफलता के जिस मुक़ाम तक पहुँचा पाए, उस यात्रा में वारकरी आंदोलन ने जो ज़मीन बनायी थी उस का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वारकरी आंदोलन में कौन नहीं थे? संत सावता महाराज, संत चोखा, संत नामदेव महाराज, संत गोरोबा, सेन जी महाराज, संत नरहरी महाराज, संत कान्होपात्रा, समाज का हर समुदाय वारकरी आंदोलन का हिस्सा था। 

साथियों,

पंढरपुर ने मानवता को न केवल भक्ति और राष्ट्रभक्ति का मार्ग दिखाया है, बल्कि भक्ति की शक्ति से मानवता का परिचय भी कराया है। यहाँ अक्सर लोग भगवान से कुछ मांगने नहीं आते। यहाँ विट्ठल भगवान का दर्शन, उनकी निष्काम भक्ति ही जीवन का ध्येय है। काय विठु माऊलीच्या दर्शनाने डोळ्याचे पारणे फिटते की नाही? तभी तो भगवान यहाँ खुद भक्तों के आदेश पर युगों से कमर पर हाथ रखकर खड़े हैं। भक्त पुंडलीक ने अपने माता पिता में ईश्वर को देखा था, 'नर सेवा नारायण सेवा' माना था। आज तक वही आदर्श हमारा समाज जी रहा है, सेवा-दिंडी के जरिए जीव मात्र की सेवा को साधना मानकर चल रहा है। हर वारकरी जिस निष्काम भाव से भक्ति करता है, उसी भाव से निष्काम सेवा भी करता है। 'अमृत कलश दान-अन्नदान' से गरीबों की सेवा के प्रकल्प तो यहाँ चलते ही रहते हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आप सभी की सेवा समाज की शक्ति का एक अद्वितीय उदाहरण है। हमारे यहाँ आस्था और भक्ति किस तरह राष्ट्रसेवा और राष्ट्रभक्ति से जुड़ी है, सेवा दिंडी इसका भी बहुत बड़ा उदाहरण है। गाँव का उत्थान, गाँव की प्रगति, सेवा दिंडी इसका एक बहुत बड़ा माध्यम बन चुका है। देश आज गाँव के विकास के लिए जितने भी संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, हमारे वारकरी भाई-बहन उसकी बहुत बड़ी ताकत हैं। देश ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया, तो आज विठोवा के भक्त 'निर्मल वारी' अभियान के साथ उसे गति दे रहे हैं। इसी तरह, बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान हो, जल संरक्षण के लिए हमारे प्रयास हों, हमारी आध्यात्मिक चेतना हमारे राष्ट्रीय संकल्पों को ऊर्जा दे रही है। और आज जब मैं अपने वारकरी भाई-बहनों से बात कर रहा हूं, तो आपसे आशीर्वाद स्वरूप तीन चीजें मांगना चाहता हूं, मांग लूं क्या? हाथ ऊपर कर के बताइये, मांग लूं क्या? आप देंगे? देखिये, जिस प्रकार से आप सब ने हाथ ऊंचा करके एक प्रकार से मुझे आशीर्वाद दिये हैं, आपका हमेशा मुझ पर इतना स्नेह रहा है, कि मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। मुझे पहला आशीर्वाद वो चाहिये कि एक श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग का निर्माण होगा, जिस संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का निर्माण होगा, उसके किनारे जो विशेष पैदल मार्ग बन रहा है, उसके दोनों तरफ हर कुछ मीटर पर छायादार वृक्ष जरूर लगाए जाएं। ये करेंगे क्या आप काम? मेरा तो सबका प्रयास मंत्र ही है। जब ये मार्ग बनकर तैयार होंगे, तब तक ये पेड़ भी इतने बड़े हो जाएंगे कि पूरा पैदल मार्ग छायादार हो जाएगा। मेरा इन पालखी मार्गों के किनारे पड़ने वाले अनेक गांवों से इस जनआंदोलन का नेतृत्व करने का आग्रह है। हर गांव, अपने क्षेत्र से होकर गुजरने वाले पालखी मार्ग की जिम्मेदारी संभाले, वहां पेड़ लगाए, तो बहुत जल्द ये काम किया जा सकता है।

साथियों,

मुझे आपका दूसरा आशीर्वाद चाहिए और दूसरा आशीर्वाद मुझे ये चाहिए इस पैदल मार्ग पर हर कुछ दूरी पर पीने के पानी की और वो भी शुद्ध पीने का जल, इसकी भी व्यवस्था की जाए, इन मार्गों पर अनेकों प्याऊ बनाए जाएं। भगवान विट्ठल की भक्ति में लीन श्रद्धालु जब पंढरपुर की तरफ बढ़ते हैं, तो 21 दिन तक अपना सब कुछ भूल जाते हैं। पीने के प्याऊ, ऐसे भक्तों के बहुत काम आएंगे। और तीसरा आशीर्वाद मुझे आज आपसे जरूर लेना है और मुझे आप निराश कभी नहीं करोगे। तीसरा आशीर्वाद जो मुझे चाहिए वो पंढरपुर के लिए है। मैं भविष्य में पंढरपुर को भारत के सबसे स्वच्छ तीर्थ स्थलों में देखना चाहता हूं। हिन्दुस्तान में जब भी कोई देखे कि भई सबसे स्वच्छ तीर्थ स्थल कौन सा है तो सबसे पहले नाम मेरे विट्ठोबा का, मेरे विट्ठल की भूमि का, मेरे पंढरपुर का होना चाहिये, ये चीज मैं आपसे चाहता हूं और ये काम भी जनभागीदारी से ही होगा, जब स्थानीय लोग स्वच्छता के आंदोलन का नेतृत्व अपनी कमान में लेंगे, तभी हम इस सपने को साकार कर पाएंगे और मैं हमेशा जिस बात की वकालत करता हूं सबका प्रयास कहता हूं, उसकी अभिव्यक्ति ऐसे ही होगी।

साथियों,

हम जब पंढरपुर जैसे अपने तीर्थों का विकास करते हैं, तो उससे केवल सांस्कृतिक प्रगति ही नहीं होती, पूरे क्षेत्र के विकास को बल मिलता है। जो सड़कें यहाँ चौड़ी हो रही हैं, जो नए हाइवेज स्वीकृत हो रहे हैं, उससे यहाँ धार्मिक पर्यटन बढ़ेगा, नए रोजगार आएंगे, और सेवा अभियानों को भी गति मिलेगी। हम सभी के श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी मानते भी थे कि जहां हाईवे पहुंच जाते हैं, सड़कें पहुंच जाती हैं, वहां विकास की नई धारा बहने लगती है। इसी सोच के साथ उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज की शुरुआत कराई, देश के गांवों को सड़कों से जोड़ने का अभियान शुरू किया। आज उन्हीं आदर्शों पर देश में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर तेज गति से काम हो रहा है। देश में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिए वेलनेस सेंटर खोले जा रहे हैं, नए मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं, डिजिटल व्यवस्था को बढ़ाया जा रहा है। देश में आज नए हाईवेज, वॉटरवेज, नई रेल लाइनें, मेट्रो लाइनें, आधुनिक रेलवे स्टेशन, नए एयरपोर्ट, नए एयर रूट्स का एक बड़ा विस्तृत नेटवर्क बन रहा है। देश के हर गांव तक ऑप्टिल फाइवर नेटवर्क पहुंचाने के लिए भी तेजी से काम हो रहा है। इन सारी योजनाओं में और तेजी लाने के लिए, समन्वय लाने के लिए पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान की भी शुरुआत की गई है। आज देश शत प्रतिशत coverage के विज़न के साथ आगे बढ़ रहा है। हर गरीब को पक्का मकान, हर घर में शौचालय, हर परिवार को बिजली कनैक्शन, हर घर को नल से जल, और हमारी माताओं-बहनों को गैस कनेक्शन, ये सपने आज सच हो रहे हैं। समाज के गरीब वंचित, दलित, पिछड़े, मध्यम वर्ग को इनका सबसे ज्यादा लाभ मिल रहा है।

साथियों,

हमारे अधिकांश वारकरी गुरुभाऊ तो किसान परिवारों से आते हैं। गाँव गरीब के लिए देश के प्रयासों से आज सामान्य मानवी के जीवन में कैसे बदलाव आ रहे हैं, आप सब इसे देख रहे हैं। हमारे गाँव गरीब से, जमीन से जुड़ा अन्नदाता ऐसा ही होता है। वो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भी सारथी होता है, और समाज की संस्कृति, राष्ट्र की एकता को भी नेतृत्व देता है। भारत की संस्कृति को, भारत के आदर्शों को सदियों से यहाँ का धरती पुत्र ही जीवित बनाए हुये है। एक सच्चा अन्नदाता समाज को जोड़ता है, समाज को जीता है, समाज के लिए जीता है। आपसे ही समाज की प्रगति है, और आपकी ही प्रगति में समाज की प्रगति है। इसलिए, अमृत काल में देश के संकल्पों में हमारे अन्नदाता हमारी उन्नति का बड़ा आधार हैं। इसी भाव को लेकर देश आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

संत ज्ञानेश्वर जी महाराज ने एक बहुत बढि़या बात हम सबको कही है, संत ज्ञानेश्वर महाराज जी ने कहा है- 

दुरितांचे तिमिर जावो । विश्व स्वधर्म सूर्यें पाहो । जो जे वांच्छिल तो तें लाहो, प्राणिजात। 

अर्थात्, विश्व से बुराइयों का अंधकार नष्ट हो। धर्म का, कर्तव्य का सूर्य पूरे विश्व में उदय हो, और हर जीव की इच्छाएँ पूरी हों। हमें पूरा विश्वास है कि हम सबकी भक्ति, हम सबके प्रयास संत ज्ञानेश्वर जी के इन भावों को जरूर सिद्ध करेंगे। इसी विश्वास के साथ, मैं फिर एक बार सभी संतों को नमन करते हुए विट्ठोबा के चर्णों में नमन करते हुए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं!

जय जय रामकृष्ण हरी।

जय जय रामकृष्ण हरी।

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प्रधानमंत्री 23 दिसंबर को नई दिल्ली के सीबीसीआई सेंटर में कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित क्रिसमस समारोह में शामिल होंगे
December 22, 2024
प्रधानमंत्री कार्डिनल और बिशप सहित ईसाई समुदाय के प्रमुख नेताओं से बातचीत करेंगे
यह पहली बार होगा, जब कोई प्रधानमंत्री भारत में कैथोलिक चर्च के मुख्यालय में इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेंगे

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 23 दिसंबर को शाम 6:30 बजे नई दिल्ली स्थित सीबीसीआई सेंटर परिसर में कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) द्वारा आयोजित क्रिसमस समारोह में भाग लेंगे।

प्रधानमंत्री ईसाई समुदाय के प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत करेंगे, जिनमें कार्डिनल, बिशप और चर्च के प्रमुख नेता शामिल होंगे।

यह पहली बार होगा, जब कोई प्रधानमंत्री भारत में कैथोलिक चर्च के मुख्यालय में इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेंगे।

कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) की स्थापना 1944 में हुई थी और ये संस्था पूरे भारत में सभी कैथोलिकों के साथ मिलकर काम करती है।