प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज तेलंगाना के रामागुंडम में 9500 करोड़ रुपये से अधिक की कई परियोजनाओं का शिलान्यास किया और उन्हें राष्ट्र को समर्पित किया। इससे पहले आज प्रधानमंत्री ने रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) संयंत्र का दौरा किया।
सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया है और जिनके लिए आज आधारशिला रखी गई, वे कृषि और कृषि विकास दोनों को बढ़ावा देंगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना महामारी से निपट रही है और दूसरी तरफ युद्ध तथा सैन्य कार्रवाइयों की विकट स्थितियों से प्रभावित हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि "लेकिन इन सबके बीच विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि विशेषज्ञ ये भी कह रहे हैं कि 90 के दशक से 30 वर्षों में जितना विकास हुआ है, उसके बराबर विकास अगले कुछ वर्षों में हो जाएगा। उन्होंने कहा, "इस धारणा का मुख्य कारण है बीते 8 वर्षों के दौरान देश में हुआ बदलाव। भारत ने पिछले 8 वर्षों में काम करने के अपने दृष्टिकोण को बदल दिया है। इन 8 वर्षों में गवर्नेंस की सोच के साथ-साथ नजरिए में भी बदलाव आया है।" उन्होंने कहा कि इस तब्दीली को बुनियादी ढांचे, सरकारी प्रक्रियाओं, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस और बाकी परिवर्तनों में देखा जा सकता है जो कि भारत के आकांक्षी समाज से प्रेरित हो रहे हैं।
उन्होंने कहा, "एक नया भारत खुद को आत्मविश्वास और विकास की आकांक्षाओं के साथ दुनिया के सामने पेश कर रहा है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास लगातार जारी रहने वाला मिशन है जो देश में साल के 365 दिन चलता रहता है। उन्होंने कहा कि जब एक परियोजना को समर्पित कर दिया जाता है तो उसके साथ-साथ नई परियोजनाओं पर काम शुरू हो जाता है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि जिन परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई है, उनके विकास को गति देने के प्रयास किए जा रहे हैं और रामागुंडम परियोजना इसका स्पष्ट उदाहरण है। रामागुंडम परियोजना की आधारशिला 7 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई थी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी का भारत अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करके आगे बढ़ सकता है। प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि "जब हमारा उद्देश्य महत्वाकांक्षी है तो हमें नई पद्धतियों का इस्तेमाल करना होता है और नई सुविधाओं का निर्माण करना होता है।" श्री मोदी ने कहा कि भारत का उर्वरक क्षेत्र केंद्र सरकार के ईमानदार प्रयासों का प्रमाण है। जब भारत उर्वरकों की मांग पूरी करने के लिए विदेशों पर निर्भर करता था, उस समय को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि रामागुंडम संयंत्र सहित पहले जो कई उर्वरक संयंत्र स्थापित किए गए थे, वे अप्रचलित प्रौद्योगिकियों के कारण बंद होने के लिए मजबूर हो गए थे। उन्होंने कहा कि यूरिया जो अत्यधिक ऊंची कीमत पर आयात किया जाता था, उसकी किसानों तक पहुंचने के बजाय अन्य उद्देश्यों के लिए कालाबाजारी कर दी जाती थी।
उर्वरक उपलब्धता में सुधार के उपाय
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2014 के बाद केंद्र सरकार ने जो सबसे पहले कदम उठाए उनमें से एक था यूरिया की 100% नीम कोटिंग सुनिश्चित करना और कालाबाजारी रोकना। उन्होंने कहा कि सॉयल हेल्थ कार्ड अभियान ने किसानों के बीच उनके खेतों की इष्टतम जरूरतों के बारे में ज्ञान सुनिश्चित किया। कई बरसों से बंद पड़े पांच बड़े उर्वरक संयंत्रों को फिर से शुरू किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर संयंत्र ने उत्पादन शुरू कर दिया है, और रामागुंडम संयंत्र भी राष्ट्र को समर्पित किया गया है। जब ये पांच संयंत्र पूरी तरह से काम करने लगेंगे तो देश को 60 लाख टन यूरिया मिलेगा, जिससे आयात में भारी बचत होगी और यूरिया की उपलब्धता आसान होगी। उन्होंने बताया कि रामागुंडम उर्वरक संयंत्र तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में किसानों को सेवाएं देगा। ये संयंत्र आसपास के क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को गति देगा और इस इलाके में लॉजिस्टिक्स से जुड़े व्यवसायों को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार द्वारा निवेश किए गए 6000 करोड़ रुपये तेलंगाना के युवाओं को कई हजार रुपये का लाभ देंगे।" प्रधानमंत्री ने उर्वरक क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के बारे में भी बात की और कहा कि नैनो यूरिया इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाएगा। प्रधानमंत्री ने कृषि के महत्व पर जोर दिया और ज़िक्र किया कि कैसे महामारी और युद्ध के कारण बढ़ी उर्वरकों की वैश्विक कीमतों का भार किसानों पर नहीं पड़ने दिया गया है। किसान को 2000 रुपये की यूरिया की बोरी 270 रुपये में उपलब्ध कराई जा रही है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में 4000 रुपये की कीमत वाले डीएपी के एक बैग पर 2500 रुपये की सब्सिडी दी जाती है।
प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि "बीते 8 वर्षों में केंद्र सरकार तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है ताकि किसानों पर उर्वरकों का बोझ न पड़े।" उन्होंने कहा कि भारत के किसानों के लिए सस्ती खाद उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने इस साल अब तक 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। प्रधानमंत्री ने बताया कि केंद्र सरकार ने पीएम किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के बैंक खातों में लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपये ट्रांसफर किए हैं। प्रधानमंत्री ने बाजार में उपलब्ध उर्वरकों के ढेर सारे ब्रांडों का जिक्र किया जो दशकों से किसानों के लिए चिंता का विषय बने हुए थे। उन्होंने कहा, “यूरिया का अब भारत में केवल एक ब्रांड होगा और ये भारत ब्रांड कहलाएगा। इसकी गुणवत्ता और कीमत पहले से ही निर्धारित है।" ये इस बात का एक स्पष्ट उदाहरण है कि सरकार किस प्रकार इस क्षेत्र में सुधार कर रही है, खासकर छोटे किसानों के लिए।
प्रधानमंत्री ने कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौती के बारे में भी बात की। मौजूदा सरकार हर राज्य को आधुनिक राजमार्ग, हवाई अड्डे, जलमार्ग, रेलवे और इंटरनेट राजमार्ग उपलब्ध कराकर इस चुनौती से निपटने के लिए काम कर रही है। पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान से इसे नई ऊर्जा मिल रही है। उन्होंने कहा कि समन्वय और जानकारी पूर्ण कार्यशैली से परियोजनाओं के लंबे समय तक लटकने की संभावना अब खत्म हो रही है। उन्होंने कहा कि भद्राद्री कोठागुडेम जिले और खम्मम को जोड़ने वाली रेलवे लाइन 4 साल में तैयार हुई है और इससे स्थानीय आबादी को बहुत फायदा मिलेगा। इसी तरह आज जिन तीन राजमार्गों पर काम शुरू हुआ है जिससे इस इंडस्ट्रियल बेल्ट, गन्ना और हल्दी उत्पादकों को लाभ होगा।
देश में जब विकास कार्य गति पकड़ते हैं तब जो अफवाहें उठती हैं उनका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ ताकतें हैं जो राजनीतिक फायदे के लिए अड़ंगा लगाती हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में तेलंगाना में 'सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड-एससीसीएल' और विभिन्न कोयला खदानों को लेकर ऐसी ही अफवाहें फैलाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि “तेलंगाना सरकार की एससीसीएल में 51% हिस्सेदारी है, जबकि केंद्र सरकार की 49% हिस्सेदारी है। केंद्र सरकार अपने स्तर पर एससीसीएल के निजीकरण से संबंधित कोई भी निर्णय नहीं ले सकती है।" उन्होंने दोहराया कि केंद्र सरकार के पास एससीसीएल के निजीकरण का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कोयला खदानों से जुड़े हज़ारों करोड़ रुपयों के अनगिनत घोटालों को याद किया जिन्होंने देश की नाक में दम कर दिया था। उन्होंने बताया कि हमारे देश के साथ-साथ श्रमिकों, गरीबों और उन क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ जहां ये खदानें स्थित थीं। उन्होंने कहा कि देश में कोयले की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पूरी पारदर्शिता के साथ कोयला खदानों की नीलामी की जा रही है। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने डीएमएफ यानी जिला खनिज कोष भी बनाया है ताकि जहां से खनिज निकाले जाते हैं उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को लाभ दिया जा सके। इस फंड के तहत राज्यों को हजारों करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।"
अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा, "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास – इस मंत्र का पालन करके हम तेलंगाना को आगे ले जाना चाहते हैं।"
इस अवसर पर तेलंगाना की राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी, सांसद और विधायक उपस्थित थे। इस आयोजन से 70 विधानसभा क्षेत्रों के किसान जुड़े थे।
पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री ने रामागुंडम में उर्वरक संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया जिसकी रामागुंडम परियोजना की आधारशिला भी 7 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई थी। इस उर्वरक संयंत्र के पुनरुद्धार के पीछे की प्रेरक शक्ति दरअसल प्रधानमंत्री का विजन है कि यूरिया के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करनी है। रामागुंडम संयंत्र स्वदेशी नीम-कोटेड यूरिया का 12.7 एलएमटी उत्पादन प्रति वर्ष उपलब्ध कराएगा।
ये परियोजना रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) के तत्वावधान में स्थापित की गई है, जो कि नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (एनएफएल), इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (ईआईएल) और फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआईएल) की एक संयुक्त उद्यम कंपनी है। आरएफसीएल को 6300 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से नया अमोनिया-यूरिया संयंत्र स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आरएफसीएल संयंत्र को गैस की आपूर्ति जगदीशपुर-फूलपुर-हल्दिया पाइपलाइन के माध्यम से की जाएगी।
ये संयंत्र तेलंगाना राज्य के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में किसानों को यूरिया उर्वरक की पर्याप्त और समयबद्ध आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। ये संयंत्र न सिर्फ उर्वरक की उपलब्धता में सुधार करेगा बल्कि इससे इस क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा जिसमें सड़क, रेलवे, सहायक उद्योगों जैसे बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है। इसके अलावा, इस कारखाने के लिए विभिन्न सामानों की आपूर्ति से एमएसएमई विक्रेताओं का विकास होगा जिससे इस क्षेत्र को लाभ होगा। आरएफसीएल का 'भारत यूरिया' न केवल आयात को कम करेगा बल्कि उर्वरकों और विस्तार सेवाओं की समय पर आपूर्ति के जरिए स्थानीय किसानों को प्रोत्साहन देकर अर्थव्यवस्था को जबरदस्त बढ़ावा देगा।
प्रधानमंत्री ने लगभग 1000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित भद्राचलम रोड-सत्तुपल्ली रेल लाइन भी राष्ट्र को समर्पित की। उन्होंने 2200 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न सड़क परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी। ये परियोजनाएं हैं: - एनएच-765डीजी का मेडक-सिद्दीपेट-एलकाठुर्ति खंड; एनएच-161बीबी का बोधन-बसर-भैंसा खंड; एनएच-353सी का सिरोंचा से महादेवपुर खंड।
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