प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज एक सार्वजनिक कार्यक्रम 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' में हिस्सा लिया और स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने धूनी दर्शन किए और गोविंद गुरु की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मानगढ़ की पवित्र भूमि में आना हमेशा प्रेरक होता है जो हमारे जनजातीय वीरों की तपस्या, त्याग, बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है। उन्होंने कहा, "मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है।" प्रधानमंत्री ने गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी पुण्यतिथि 30 अक्टूबर को थी।
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, प्रधानमंत्री ने मानगढ़ के क्षेत्र के प्रति अपनी सेवा को याद किया जो गुजरात का हिस्सा है और बताया कि गोविंद गुरु ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष यहां बिताए, और उनकी ऊर्जा व उनकी शिक्षाएं अभी भी इस भूमि की मिट्टी में महसूस की जा सकती हैं। प्रधानमंत्री ने याद किया कि वन महोत्सव के मंच के माध्यम से सभी से आग्रह करने के बाद पूरा क्षेत्र हरा-भरा हो गया, जो पहले वीरान भूमि था। प्रधानमंत्री ने अभियान के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने के लिए आदिवासी समुदाय को धन्यवाद दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास से न केवल स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बल्कि गोविंद गुरु की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार भी हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा, "गोविंद गुरु जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे।” उन्होंने कहा, “गोविंद गुरु ने अपना परिवार खो दिया लेकिन कभी अपना हौसल नहीं खोया और हर आदिवासी को अपना परिवार बनाया।" प्रधानमंत्री ने कहा कि एक और यदि गोविंद गुरु ने जनजातीय समुदाय के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, तो दूसरी ओर, उन्होंने अपने समुदाय की बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाया, क्योंकि वे एक समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु, एक संत और एक लोक-नेता थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका बौद्धिक व दार्शनिक पहलू उनके साहस और सामाजिक सक्रियता की तरह ही जीवंत था।
मानगढ़ में 17 नवंबर, 1913 के नरसंहार को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा अत्यधिक क्रूरता का एक उदाहरण था। श्री मोदी ने कहा, "एक तरफ हमारे पास निर्दोष आदिवासी थे जो आजादी की मांग कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने मानगढ़ की पहाड़ियों को घेरकर दिन-दहाड़े एक हजार पांच सौ से अधिक निर्दोष युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों का नरसंहार किया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण स्वतंत्रता संग्राम की इतनी महत्वपूर्ण और प्रभावशाली घटना को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिल पाई। प्रधानमंत्री ने कहा, "इस आजादी का अमृत महोत्सव में, भारत उस कमी को पूरा कर रहा है और दशकों पहले की गई गलतियों को सुधार रहा है।"
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि "भारत का अतीत, इतिहास, वर्तमान और भारत का भविष्य जनजातीय समुदाय के बिना कभी भी पूरा नहीं होता। हमारे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी का हर पन्ना आदिवासी समुदाय की वीरता से भरा है।” प्रधानमंत्री ने 1780 के दशक के उस गौरवशाली संघर्ष को याद किया जब तिलका मांझी के नेतृत्व में संथाल संग्राम लड़ा गया था। उन्होंने 1830-32 के बारे में बताया जब देश ने बुधु भगत के नेतृत्व में लरका आंदोलन देखा। 1855 में सिद्धू-कान्हू क्रांति ने देश को ऊर्जा से भर दिया। भगवान बिरसा मुंडा ने अपनी ऊर्जा और देशभक्ति से सभी को प्रेरित किया। प्रधानमंत्री ने कहा, "आपको सदियों पहले गुलामी की शुरुआत से लेकर 20वीं सदी तक का कोई समय नहीं मिलेगा, जब जनजातीय समुदाय ने आजादी की लौ नहीं जलाई थी।" उन्होंने आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू का जिक्र किया। राजस्थान में इससे पहले भी आदिवासी समाज महाराणा प्रताप के साथ खड़ा था। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम जनजातीय समुदाय के बलिदान के लिए उनके ऋणी हैं। इस समाज ने प्रकृति, पर्यावरण, संस्कृति और परंपराओं में भारत के चरित्र को संरक्षित किया है। आज देश के लिए उनकी सेवा करके उन्हें धन्यवाद देने का समय है।”
प्रधानमंत्री ने बताया कि 15 नवंबर को देश भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने जा रहा है। उन्होंने कहा, "जनजातीय गौरव दिवस स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के इतिहास के बारे में जनता को शिक्षित करने का एक प्रयास है।" श्री मोदी ने कहा कि जनजातीय समाज के इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देश भर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष संग्रहालय बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह शानदार विरासत अब विचार प्रक्रिया का हिस्सा बनेगी और युवा पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगी।
प्रधानमंत्री ने देश में जनजातीय समाज की भूमिका का विस्तार करने के लिए समर्पित भावना के साथ काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश राजस्थान व गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर और उड़ीसा तक देश के सभी हिस्सों में विविध जनजातीय समाज की सेवा के लिए स्पष्ट नीतियों के साथ काम कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वनबंधु कल्याण योजना के माध्यम से जनजातीय आबादी को पानी और बिजली कनेक्शन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, "आज देश में वन आवरण-क्षेत्र भी बढ़ रहा है और संसाधनों का संरक्षण किया जा रहा है। साथ ही, जनजातीय क्षेत्रों को भी डिजिटल इंडिया से जोड़ा जा रहा है।" प्रधानमंत्री ने एकलव्य आवासीय विद्यालयों के बारे में भी चर्चा की, जो पारंपरिक कौशल के साथ जनजातीय युवाओं को आधुनिक शिक्षा के अवसर प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि वे गोविंद गुरु जी के नाम पर विश्वविद्यालय के भव्य प्रशासनिक परिसर का उद्घाटन करने के लिए जांबूघोडा जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने याद करते हुए कहा कि कल शाम ही उन्होंने अहमदाबाद-उदयपुर ब्रॉड गेज लाइन पर एक ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी। उन्होंने राजस्थान के लोगों के लिए 300 किलोमीटर की लाइन के महत्व के बारे में बताया क्योंकि यह गुजरात के कई जनजातीय क्षेत्रों को राजस्थान के जनजातीय क्षेत्रों से जोड़ेगी और इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास एवं रोजगार को बढ़ावा देगी।
मानगढ़ धाम के संपूर्ण विकास की चर्चा पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने मानगढ़ धाम के भव्य विस्तार की प्रबल इच्छा व्यक्त की। प्रधानमंत्री ने चार राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों से एक साथ मिलकर काम करने और एक रोडमैप तैयार करने के बारे में विस्तृत चर्चा करने का अनुरोध किया ताकि गोविंद गुरु जी के इस स्मारक स्थल को दुनिया के नक्शे पर जगह मिल सके। अंत में प्रधानमंत्री ने कहा, "मुझे विश्वास है कि मानगढ़ धाम का विकास इस क्षेत्र को नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का एक जागृत स्थल बना देगा।”
इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल, केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल, केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद, विधायक आदि उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में, सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों को याद करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें 15 नवंबर (जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती) को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित करना, समाज में जनजातीय लोगों के योगदान को मान्यता देने और स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश भर में जनजातीय संग्रहालयों की स्थापना करना आदि शामिल हैं। इस दिशा में एक और कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों के बलिदान के लिए उन्हें नमन करने के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ हिल में एक सार्वजनिक कार्यक्रम - 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ में भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री ने भील स्वतंत्रता सेनानी श्री गोविंद गुरु को नमन किया तथा भील आदिवासियों और क्षेत्र के अन्य जनजातीय आबादी की एक सभा को भी संबोधित किया।
मानगढ़ पहाड़ी भील समुदाय और राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की अन्य जनजातियों के लिए विशेष महत्व रखती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां भील और अन्य जनजातियों ने अंग्रेजों के साथ लंबे समय तक संघर्ष किया, 17 नवंबर, 1913 को श्री गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1.5 लाख से अधिक भीलों ने मानगढ़ हिल पर रैली की। इस सभा पर अंग्रेजों ने गोलियां चलाईं, जिससे मानगढ़ नरसंहार हुआ जहां लगभग 1500 आदिवासी शहीद हुए।