अक्षरधाम मंदिर में पूजा और दर्शन किए
"भारत की आध्यात्मिक परंपरा और विचार का शाश्वत और सार्वभौमिक महत्व है"
"इस शताब्दी समारोह में आज वेद से विवेकानंद तक की यात्रा देखी जा सकती है"
"किसी के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य सेवा होना चाहिए"
राजकोट से काशी तक स्वामी जी महाराज से नामांकन के लिए कलम लेने की परंपरा चली आ रही है
"हमारी संत परंपराऐं केवल संस्कृति, पंथ, नैतिकता और विचारधारा के प्रसार तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि भारत के संतों ने 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना को मजबूत करके दुनिया को एक सूत्र में बांधा है"
"प्रमुख स्वामी महाराज जी देव भक्ति और देश भक्ति में विश्वास करते थे"
"व्यक्ति को राजसी' या 'तामसिक' नहीं अपितु 'सात्विक' रहकर जीवन मार्ग पर चलते रहना है"


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज अहमदाबाद में प्रमुख स्वामी महाराज शताब्दी महोत्सव के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के वैश्विक मुख्यालय बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर, शाहीबाग द्वारा आयोजित 'प्रमुख स्वामी महाराज शताब्दी महोत्सव' में वर्ष भर चलने वाले विश्वव्यापी समारोहों का समापन, 15 दिसंबर 2022 से 15 जनवरी 2023 तक अहमदाबाद में दैनिक कार्यक्रमों, विषयगत प्रदर्शनियों और उत्कृष्ट विचार मंडपों के साथ हो रहा है।

इस महत्वपूर्ण अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने प्रमुख स्वामी महाराज के प्रति समर्पण के साथ सभी का स्वागत करते हुए अपने संबोधन का शुभारंभ किया। उन्होंने देवत्व की उपस्थिति और संकल्पों की भव्यता एवं विरासत के प्रति गर्व की भावना व्यक्त करते हुए कहा कि परिसर में भारत का हर रंग देखा जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने इस भव्य सम्मेलन के लिए अपनी कल्पना शक्ति को महत्व देने के प्रयासों के लिए प्रत्येक संत को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह भव्य आयोजन न केवल दुनिया को आकर्षित करेगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित और प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि इतने भव्य और इतने व्यापक स्तर पर कार्यक्रम के बारे में विचार करने के लिए वह संतों और साधुजनों की सराहना करना चाहते हैं। पूज्य प्रमुख स्वामी महाराज को अपने लिए पिता तुल्य बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान में जारी इस कार्यक्रम के लिए लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने आएंगे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि संयुक्त राष्ट्र ने भी शताब्दी समारोह मनाया जो भारत की आध्यात्मिक परंपरा और विचार के शाश्वत और सार्वभौमिक महत्व को सिद्ध करता है। स्वामी महाराज सहित भारत के महान संतों द्वारा स्थापित 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस शताब्दी समारोह में आज वेद से विवेकानंद तक की यात्रा देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि यहां भारत की समृद्ध संत परंपराओं के दर्शन किए जा सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी संत परंपराएं केवल संस्कृति, पंथ, नैतिकता और विचारधारा के प्रसार तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि भारत के संतों ने 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना को मजबूत करके दुनिया को एक सूत्र में बांधा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्वामी जी के साथ अपने जुड़ाव को भाव-विभोर होकर याद करते हुए कहा कि उनका बचपन से ही एचएच प्रमुख स्वामी महाराज जी के आदर्शों के प्रति आकर्षण रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह अपने जीवन में कभी उनसे मिल पाएगें। शायद 1981 में एक सत्संग के दौरान उनसे मुलाकात हुई थी। उन्होंने केवल सेवा की बात की। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी जी का एक-एक शब्द उनके हृदय पर अंकित हो गया। उनका संदेश बहुत स्पष्ट था कि किसी के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य सेवा होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने स्वामी जी की कृपा का भी उल्लेख किया जो अपने संदेश को ग्रहणकर्ता की क्षमता के अनुरूप ढालते थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह उनके व्यक्तित्व की विशालता थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि हर कोई उन्हें एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में जानता है लेकिन वह सही मायनों में एक समाज सुधारक भी थे। प्रधानमंत्री ने स्वामी जी की आधुनिक अवसरों की सहज समझ और उनकी समस्याओं का ध्यान रखने के लिए व्यक्ति की क्षमता के अनुसार उनके स्वाभाविक संचार को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका मुख्य जोर समाज के कल्याण पर था। एचएच प्रमुख स्वामी महाराज जी एक सुधारवादी थे। वह खास थे क्योंकि उन्होंने हर व्यक्ति में अच्छाई देखी और उन्हें इन खूबियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति की मदद की। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह मोरबी में मच्छू बांध आपदा के दौरान उनके प्रयासों को कभी नहीं भुला सकते। प्रधानमंत्री ने अपने जीवन की कई प्रमुख घटनाओं को याद किया जब वे पूज्य स्वामी जी से मिलने गए थे।

अतीत को याद करते हुए जब 2002 में प्रधानमंत्री राजकोट से उम्मीदवार थे, उन्होंने याद किया कि चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें दो संतों से एक कलम मिली थी जिसमें कहा गया था कि प्रमुख स्वामी महाराज जी ने उनसे इस पेन का उपयोग करके नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि वहाँ से काशी चुनाव तक, यह प्रथा जारी है। एक पिता और पुत्र के बीच के संबंध का उदाहरण देते हुए, प्रधानमंत्री ने उस समय को याद किया जब वह कच्छ में एक स्वयंसेवक के रूप में काम कर रहे थे, जब प्रमुख स्वामी महाराज ने उनके लिए भोजन की व्यवस्था की थी। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 40 वर्षों में उन्हें हर वर्ष पूज्य स्वामी जी से कुर्ता पायजामा प्राप्त हुआ है। प्रधानमंत्री ने भावविभोर होते हुए कहा कि यह आध्यात्मिक संबंध है, पिता-पुत्र का संबंध है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि पूज्य स्वामी जी देश सेवा में उनके हर कार्य पर नजर रख रहे हैं।

प्रमुख स्वामी महाराज के साथ अपने संबंधों का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने याद किया कि स्वामी महाराज जी 1991 में डॉ. एम एम जोशी के नेतृत्व में प्रतिकूल परिस्थितियों में की गई एकता यात्रा के दौरान जम्मू पहुंचने के बाद लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद प्रमुख स्वामी महाराज जी उन्हें फोन करने वाले पहले व्यक्ति थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें सबसे पहले फोन प्रमुख स्वामी महाराज जी का आया और स्वामी जी ने उनकी कुशलक्षेम पूछी। प्रधानमंत्री ने अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकवादी हमले के दुर्भाग्यपूर्ण समय को भी याद किया और ऐसे अशांत समय के दौरान भी शांत बने रहते हुए प्रमुख स्वामी महाराज के साथ अपने वार्तालाप को याद किया। यह संतुलन पूज्य स्वामी जी की आंतरिक आध्यात्मिक शक्ति के कारण ही संभव हो सका।

प्रमुख स्वामी महाराज की यमुना तट पर अक्षरधाम बनाने की इच्छा के बारे में जानकारी देते हुए, प्रधानमंत्री ने महंत स्वामी महाराज के दृष्टिकोण का उल्लेख किया, जो प्रमुख स्वामी महाराज के तत्कालीन शिष्य थे। उन्होंने कहा कि भले ही लोग महंत स्वामी महाराज को एक गुरु के रूप में देखते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री स्वामी महाराज जी के प्रति एक शिष्य के रूप में भी उनके समर्पण से परिचित हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह उनकी दृष्टि और समर्पण का परिणाम है कि अक्षरधाम मंदिर का निर्माण यमुना के तट पर किया गया। अक्षरधाम मंदिर में हर वर्ष आने वाले लाखों लोग भारतीय संस्कृति और परंपराओं को इसकी भव्यता के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के किसी भी हिस्से में चले जाइए, आपको प्रमुख स्वामी महाराज जी की दूरदर्शिता का परिणाम दिखाई देगा। उन्होंने सुनिश्चित किया कि हमारे मंदिर आधुनिक हैं और वे हमारी परंपराओं को व्यक्त करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके जैसे महान लोगों और रामकृष्ण मिशन ने संत परंपरा को फिर से परिभाषित किया। पूज्य स्वामी जी ने आध्यात्मिक उत्थान से परे सेवा की परंपरा को बनाने में एक बड़ी भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी जी ने यह सुनिश्चित किया कि एक संत, त्याग के अलावा, सक्षम और कुशल भी होना चाहिए। जैसा कि स्वामी जी ने समग्र आध्यात्मिक प्रशिक्षण के लिए एक संस्थागत तंत्र की स्थापना की। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आने वाली कई पीढ़ियों के लिए राष्ट्र को लाभान्वित करेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने 'देव भक्ति' और 'देश भक्ति' अर्थात देश के प्रति समर्पण के बीच कभी अंतर नहीं किया। जो 'देव भक्ति' के लिए जीते हैं और जो 'देश भक्ति' के लिए जीते हैं, वे उनके लिए 'सत्संगी' थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे संतों ने संकीर्ण संप्रदायों से आगे बढ़कर वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को मजबूत करने और दुनिया को एक करने का काम किया है।

संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने अपनी अंतरात्मा की यात्रा पर भी विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे हमेशा ऐसी संत और उन्नत परंपराओं से जुड़े रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज की तरह एक प्रति हिंसाशील और प्रतिशोधी दुनिया में, वह सौभाग्यशाली रहे हैं कि उन्हें प्रमुख स्वामी महाराज और महंत स्वामी महाराज जैसे संतों के निकट रहने का अवसर मिला, जो एक पुण्य वातावरण का निर्माण करते हैं। यह एक विशाल बरगद वृक्ष की छाया में आश्रय लिए एक थके हुए व्यक्ति की तरह था। प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यक्ति को 'राजसी' अथवा 'तामसिक' नहीं अपितु 'सात्विक' रहते हुए जीवन पथ पर चलते रहना है।

इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल, गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत, परम पावन महंत स्वामी महाराज और पूज्य ईश्वरचरण स्वामी सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

परम पावन प्रमुख स्वामी महाराज एक मार्गदर्शक और गुरुवर थे आपका भारत और दुनिया भर में अनगिनत लोगों के साथ आत्मिक जुड़ाव था। एक महान आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में उन्हें व्यापक रूप से सम्मान और प्रशंसा मिली। उनका जीवन अध्यात्म और मानवता की सेवा के लिए समर्पित था। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के प्रमुख के रूप में, उन्होंने लाखों लोगों की सहायता और कल्याण करते हुए असंख्य सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलों को प्रेरित किया।

एचएच प्रमुख स्वामी महाराज के जन्म शताब्दी वर्ष में दुनिया भर के लोग उनके जीवन और शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए महोत्सव मना रहे हैं। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के वैश्विक मुख्यालय बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर, शाहीबाग द्वारा आयोजित 'प्रमुख स्वामी महाराज शताब्दी महोत्सव' में वर्ष भर चलने वाले विश्वव्यापी समारोहों के समापन 15 दिसंबर 2022 से 15 जनवरी 2023 तक अहमदाबाद में दैनिक कार्यक्रमों, विषयगत प्रदर्शनियों और उत्कृष्ट विचार मंडपों के साथ हो रहा है

बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था की स्थापना 1907 में शास्त्रीजी महाराज ने की थी। वेदों की शिक्षाओं के आधार पर और व्यावहारिक आध्यात्मिकता के स्तंभों पर स्थापित, बीएपीएस आज की आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए दूर-दूर तक पहुंच रखता है। बीएपीएस का उद्देश्य विश्वास, एकता और निःस्वार्थ सेवा के मूल्यों को संरक्षित करना है और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, शारीरिक और भावनात्मक आवश्यकताओं को पूर्ण करना है। यह अपनी वैश्विक पहुँच जैसे प्रयासों के माध्यम से मानवीय गतिविधियों का निष्पादन करता है।

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