प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज चित्रकूट में तुलसी पीठ के दर्शन किये। उन्होंने कांच मंदिर में पूजा और दर्शन किये। उन्होंने तुलसी पीठ के जगद्गुरु रामानंदाचार्य का आशीर्वाद प्राप्त किया और एक सार्वजनिक समारोह में भाग लिया, जहां उन्होंने तीन पुस्तकों - 'अष्टाध्यायी भाष्य', 'रामानंदाचार्य चरितम' और 'भगवान श्री कृष्ण की राष्ट्रलीला' का विमोचन किया।
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कई मंदिरों में श्री राम की पूजा और दर्शन करने तथा कई संतों, विशेष रूप से जगद्गुरु रामानंदाचार्य का आशीर्वाद पाने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने 'अष्टाध्यायी भाष्य', 'रामानंदाचार्य चरितम्' और 'भगवान श्रीकृष्ण की राष्ट्रलीला' नामक तीन पुस्तकों के विमोचन का भी उल्लेख किया और कहा कि इससे भारत की ज्ञान परंपराएं और मजबूत होंगी। उन्होंने जोर देकर कहा, "मैं इन पुस्तकों को जगद्गुरु के आशीर्वाद का एक प्रतिरूप मानता हूं।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "अष्टाध्यायी भारत के भाषा विज्ञान का, भारत की बौद्धिकता का और हमारी शोध संस्कृति का हजारों साल पुराना ग्रंथ है।" उन्होंने अष्टाध्यायी की उत्कृष्टता पर प्रकाश डाला, क्योंकि यह पुस्तक भाषा के व्याकरण और विज्ञान को सारगर्भित सूत्रों में समाहित करती है। उन्होंने कहा कि कई भाषाएं आईं और गईं, लेकिन संस्कृत शाश्वत है। उन्होंने कहा, ''समय ने संस्कृत को परिष्कृत किया, लेकिन इसे कभी प्रदूषित नहीं किया जा सका।'' उन्होंने कहा कि इस स्थायित्व के आधार में संस्कृत का परिपक्व व्याकरण निहित है। मात्र 14 महेश्वर सूत्रों पर आधारित यह भाषा शास्त्र और सहस्त्र (उपकरण और विद्वत्ता) की जननी रही है। उन्होंने कहा, "आप भारत में जिस भी राष्ट्रीय आयाम को देखें, आप उनमें संस्कृत का योगदान पायेंगे।"
हजारों साल पुराने गुलामी के दौर में भारत की संस्कृति और विरासत को नष्ट करने के प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए श्री मोदी ने संस्कृत भाषा से विलगाव का जिक्र किया। उन्होंने उस गुलामी की मानसिकता की ओर इशारा किया, जिसे कुछ व्यक्तियों द्वारा आगे बढ़ाया गया, जिसके परिणामस्वरूप संस्कृत के प्रति वैर-भाव पैदा हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने उस मानसिकता पर अफसोस जताया, जहां मातृभाषा जानना विदेशों में सराहनीय माना जाता है लेकिन यही बात भारत में मान्य नहीं है। श्री मोदी ने देश में संस्कृत भाषा को मजबूत करने के प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा, "संस्कृत न केवल परंपराओं की भाषा है, बल्कि यह हमारी प्रगति और पहचान की भी भाषा है।" उन्होंने आगे कहा, "आधुनिक समय में सफल प्रयासों की दिशा में अष्टाध्यायी भाष्य जैसे ग्रंथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।"
प्रधानमंत्री मोदी ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य का अभिवादन किया और उनके विशाल ज्ञान और योगदान का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा, "बुद्धिमत्ता का यह स्तर कभी व्यक्तिगत नहीं होता, यह बुद्धिमत्ता राष्ट्रीय निधि है।" स्वामी जी को 2015 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया था। स्वामी जी के राष्ट्रवादी और सामाजिक पहलुओं का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने नौ प्रमुख राजदूतों में से एक के रूप में स्वच्छ भारत अभियान में उनके सक्रिय योगदान को याद किया।
श्री मोदी ने प्रसन्नता व्यक्त की कि स्वच्छता, स्वास्थ्य और स्वच्छ गंगा जैसे राष्ट्रीय लक्ष्य अब साकार हो रहे हैं। उन्होंने बताया, ''जगदगुरु रामभद्राचार्य जी ने हर देशवासी के एक और सपने को पूरा करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री ने अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा दिए गए निमंत्रण का उल्लेख करते हुए कहा, “जिस राम मंदिर के लिए आपने अदालत के अंदर और बाहर इतना योगदान दिया है, वह भी तैयार होने जा रहा है।“
प्रधानमंत्री ने इस बात को रेखांकित किया कि अमृत काल में देश विकास और विरासत को साथ लेकर चल रहा है। श्री मोदी ने तीर्थ स्थलों के विकास पर जोर देने का उल्लेख करते हुए कहा, "चित्रकूट में आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता भी है।" उन्होंने केन-बेतवा लिंक परियोजना, बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस-वे और रक्षा गलियारे का जिक्र किया और कहा कि इससे क्षेत्र में नये अवसर पैदा होंगे। संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि चित्रकूट विकास की नई ऊंचाइयों को छूएगा। इसके साथ ही उन्होंने जगद्गुरु रामानंदाचार्य को नमन किया।
इस अवसर पर तुलसी पीठ के जगद्गुरु रामानंदाचार्य, मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान व अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
तुलसी पीठ, मध्य प्रदेश के चित्रकूट में एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान है। इसकी स्थापना 1987 में जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा की गई थी। तुलसी पीठ हिंदू धार्मिक साहित्य के अग्रणी प्रकाशकों में से एक है।
अष्टाध्यायी भारत के भाषा विज्ञान का, भारत की बौद्धिकता का और हमारी शोध संस्कृति का हजारों साल पुराना ग्रंथ है। pic.twitter.com/QEGGVaNNDj
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संस्कृत आज भी अक्षुण्ण है, अटल है। pic.twitter.com/XSG9fDMaWW
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संस्कृत केवल परम्पराओं की भाषा नहीं है, ये हमारी प्रगति और पहचान की भाषा भी है। pic.twitter.com/77np0QAA5l
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