प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 17 मार्च, 2016 गुरूवार की शाम को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में विश्व सूफी मंच को संबोधित किया। ऑल इंडिया उलेमा-ए-मशाएख बोर्ड द्वारा आयोजित इस चार दिवसीय कार्यक्रम में 20 देशों के अनेक गणमान्य शामिल हुए। इसमें मिस्र, जॉर्डन, तुर्की, ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा, पाकिस्तान और अन्य देशों के धार्मिक नेता, विद्धान, शिक्षाविद और धर्मशास्त्री शामिल हुए।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने व्यापक संबोधन में सूफीवाद के समृद्ध और भव्य इतिहास, सहिष्णुता और सहानुभूति की जीवन शक्ति तथा आतंकवाद और घृणा की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए सभी मानवतावादी बलों के एकजुट होने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से धर्म और आतंक के बीच किसी भी प्रकार के संबंध को नकारा। उन्होंने कहा कि जो धर्म के नाम पर आतंक फैला रहे है, वे सिर्फ धर्म विरोधी है। कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों और जानेमाने टिप्पणीकारों ने प्रधानमंत्री के भाषण की सराहना की।
प्रधानमंत्री ने विश्व सूफी मंच को ऐसे लोगों की सभा बताया ‘जिनका जीवन ही शांति, सहिष्णुता और प्रेम का संदेश है।’ प्रधानमंत्री ने एकत्रित सूफी विद्धानों और धार्मिक नेताओं की सभा में कहा, ‘आज जब हिंसा की काली परछाई बड़ी होती जा रही है, ऐसे में आप उम्मीद का नूर या किरण हैं। जब बंदूकों से सड़कों पर नौजवानों की हंसी खामोश कर दी जाती है, तब आप मरहम की आवाज हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सूफीवाद खुलेपन और जानकारी, संपर्क और स्वीकृति तथा विविधता के प्रति सम्मान के जरिए मानव इतिहास की चिरस्थायी सीख पर जोर देता है। इससे मानवता का प्रसार होता है, राष्ट्र तरक्की करता है और विश्व समृद्ध बनता है।
विस्तार से बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सूफी के लिए ईश्वर की सेवा का अर्थ मानवता की सेवा करना है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शब्दों में सभी प्रार्थनाओं में से सर्वशक्तिमान सबसे अधिक प्रसन्न तब होते है जब आप दीन-दुखियों की मदद करते हैं।’
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि सूफीवाद का संदेश हिंदू परंपरा के भक्ति संतों के इस कथन कि ‘पहाडि़यों से बहने वाली सरिताएं चारों तरफ से आकर एक बड़े समुद्र में समा जाती है’ से मेल खाता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘जब हम अल्लाह के 99 नामों के बारे में सोचते हैं तो कोई भी बल या हिंसा का संदेश नहीं देता है तथा पहले दो नाम करूणा और दया का पर्याय है। अल्लाह, रहमान और रहीम हैं।’ उन्होंने कहा कि सूफीवाद शांति, सह-अस्तित्व, करुणा और समानता की आवाज है, जो सार्वभौमिक भाईचारे का आह्वान करता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट किया कि समावेशी संस्कृति को सुदृढ़ करने में सूफीवाद ने कैसे मदद की और यह विश्व के सांस्कृतिक पटल पर भारत का महान योगदान है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत विविध लेकिन अखंड राष्ट्र में सभी धर्मों के प्रत्येक सदस्यों के संघर्ष, बलिदान, साहस, ज्ञान, कौशल, कला और गौरव के बल पर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
आतंकवाद की वैश्विक चुनौती के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘जब आतंकवाद का हिंसा बल नहीं, बल्कि सूफीवाद का धार्मिक प्रेम सीमाओं के पार पहुंचेगा तो यह क्षेत्र भूमि पर वह स्वर्ग बन जाएगा जिसके बारे में अमीर खुसरो ने बताया है।’ उन्होंने कहा कि आज जब आतंकवाद और अलगाववाद सबसे अधिक विनाशकारी शक्ति बन गई है, ऐसे में सूफीवाद के संदेश की वैश्विक प्रासंगिकता है। आतंकवादियों द्वारा विश्व में फैलाये जा रहे आतंक के बारे में उन्होंने कहा कि आतंकवाद के प्रभाव को केवल आंकड़ों से नहीं आंका जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘कुछ ऐसी ताकतें और गुट हैं जो सरकार की नीति और मंशा के माध्यम है। कुछ अन्य भी हैं जो भ्रामक विश्वासरस के कारण भर्ती किए गए हैं।’
आतंकवाद के खिलाफ मानवता की लड़ाई के बारे में उन्होंने कहा कि ‘यह किसी धर्म के खिलाफ लड़ाई नहीं है। यह हो भी नहीं सकती। यह मानवता के मूल्यों और अमानवीय ताकतों के बीच टकराव है।’ उन्होंने कहा कि ‘यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे हमारे दृढ़ मूल्यों और धर्मों के वास्तविक संदेश के जरिए जीतनी ही होगी।’
उन्होंने कहा कि सूफीवाद का संदेश केवल आतंकवाद का मुकाबला करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ‘’सबका साथ सबका विकास’’ का सिद्धांत भी शामिल है।
पवित्र ग्रंथों और महान मनीषियों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने हिंसात्मक बलों की चुनौतियों का मुकाबला ‘हमारे प्रेम की सहृदयता और सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों’ से करने का आह्वान किया।
इससे पहले ऑल इंडिया उलेमा-ए-मशाएख बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष हजरत सैयद मोहम्मद अशरफ ने कहा कि भारत के मुसलमान देश में अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं और वे राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा संप्रभुता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला भी उपस्थित थी।
Welcome to a land that is a timeless fountain of peace and an ancient source of traditions and faiths: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 17, 2016
Welcome to the ancient city of Delhi- built by the genius of diverse peoples, cultures and faiths: PM @narendramodi https://t.co/Iy8hu3Nre5
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This is an extraordinary event of great importance to the world, at a critical time for humanity: PM @narendramodi
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At a time when the dark shadow of violence is becoming longer, you are the noor or the light of hope: PM @narendramodi
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You have come from different lands and cultures, but you are united by a common faith: PM @narendramodi https://t.co/Iy8hu3vQmx
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For the Sufis, service to God meant service to humanity: PM @narendramodi
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Sufism is the voice of peace, co-existence, compassion and equality; a call to universal brotherhood: PM @narendramodi
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Sufism blossomed in India’s openness & pluralism. It engaged with her spiritual tradition and evolved its own Indian ethos: PM @narendramodi
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Sufism’s contribution to poetry in India is huge. Its impact on the development of Indian music is profound: PM @narendramodi
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All our people, Hindus, Muslims, Sikhs, Christians, Jains, Buddhists, Parsis, believers, non-believers, are an integral part of India: PM
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Just as it once came to India, today Sufism from India has spread across the world: PM @narendramodi https://t.co/Iy8hu3Nre5
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Let me paraphrase what I have said before: Terrorism divides and destroys us: PM @narendramodi https://t.co/Iy8hu3Nre5
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Terrorism uses diverse motivations and causes, none of which can be justified: PM @narendramodi
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The fight against terrorism is not a confrontation against any religion. It cannot be: PM @narendramodi
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Diversity is a basic reality of Nature and source of richness of a society; and, it should not be a cause of discord: PM @narendramodi
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At the beginning of a new century, we are at yet another point of transformation on a scale rarely seen in human history: PM @narendramodi
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