भारत सरकार मछुआरों के सशक्तिकरण की दिशा में कदम उठा रही है: प्रधानमंत्री मोदी
जीएसटी परिषद में लिए गए निर्णयों के परिणामस्वरूप देशवासियों की दिवाली पहले ही आ गई है: पीएम मोदी
जब नीतियां लोगों के हितो को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, तो यह स्वाभाविक है कि लोग हमें समर्थन देंगे: प्रधानमंत्री
भारत का आम नागरिक चाहता है कि विकास का फल उन तक पहुंचे: प्रधानमंत्री मोदी

विशाल संख्‍या में पधारे हुए मेरे प्‍यारे भाईयो और बहनों

आज मैंने द्वारका का मूड ही कुछ और देखा, चारो तरफ उत्‍साह, उमंग, जैसे एक नई चेतना द्वारका में मैं अनुभव कर रहा हूं। मैं द्वारकावासियों का ह्दय से अभिनंदन करता हूं। उनका धन्यवाद करता हूं। आज द्वारिका नगरी में जिस काम का आरंभ हो रहा है वो सिर्फ बैट द्वारिका में पहुचने के लिए एक सिर्फ बृज नहीं हैं। सिर्फ एक ईंट, पत्‍थर, लोहे से बनने वाली एक structural व्‍यवस्‍था है ऐसा नहीं है। ये बृज बैट द्वारिका की सांस्‍कृतिक विरासत के साथ उस हजारों साल पुराने नातों को जोड़ने की कड़ी के रूप में आज उसका कार्य हो रहा है।

जब भी मैं बैट आया करता था। और वहां के बृज को देखता था। निर्मल जल देखता था। tourism की अपार संभावनाएं देखता था। लेकिन भारत सरकार की तरफ से, आप तो जानते हैं भूतकाल में भारत सरकार का गुजरात के प्रति प्‍यार कैसा था। कितनी कठिनाइयों से हम समय बि‍ताते थे। मुझे बराबर याद है। जब बैट के लोगों की मैं स्थिति देखता था। सूरज ढलने से पहले ही सारे काम पूरे करने पड़ते थे। रात को आवागमन बंद हो जाता था। और वो भी पानी के मार्ग से ही आना-जाना पड़ता था। मजबूरन जिंदगी गुजारनी पड़ती थी। अगर कोई अचानक बीमार हो जाए और उसे अस्‍पताल पहुंचाना है और अगर वो रात का समय हो तो कितनी दिक्‍कत होती थी वो मेरे बैट के प्‍यारे भाई-बहनें भली-भांति जानते है और इसलिए एक ऐसी व्‍यवस्‍था जो देशभर से आने वाले यात्रियों के लिए एक बहुत बड़ी सौगात हो।

एक ऐसी व्‍यवस्‍था जो बैट के नागरिकों के लिए जो सामान्‍य उनकी जरूरतें हैं उनको पूरे करने वाली हो। एक ऐसी व्‍यवस्‍था जो बैट से जुड़े हुए समुद्री तट के beach को एक बहुत बड़े tourism के क्षेत्र के रूप में विकसित करने की संभावनाओं को बल दें। और अगर एक बाद यात्री आए तो ठाकुर जी के चरणों में सर झुकाकर के भाग जाए। तो उससे द्वारका की economy को ज्‍यादा लाभ नहीं होता। लेकिन अगर वो रात को रूकता है। दो दिन रूकता है तो हजार दो हजार रूपये खर्च करता है। तो द्वारका की आर्थिक व्‍यवस्‍था में गरीब से गरीब को रोजगार मिलता है। लोग द्वारिका आते हैं वो भगवान द्वारिकाधीश की कृपा से। लेकिन लोग द्वारिका में रूकेगें वो अगर हम व्‍यवस्‍थाएं खड़ी करेगें तो रूकेगें। और इसलिए हमनें विकास को वो प्राथमिकता दी है। जहां यात्री आएं, उनको रूकने का मन कर जाए। एक दो दिन बिताने का मन कर जाए। समुद्र की लह‍रों के सामने शाम बिताने का मन कर जाए। ढलते हुए सूरज को देखकर के मन प्रफुलित हो जाए। ये वातावरण पैदा करने के लिए निरंतर ये सरकार प्रयास कर रही है।

आज से आठ-दस साल पहले के द्वारिका की कल्‍पना कीजिए और आज के द्वारिका की कल्‍पना कीजिए। कितना बदलाव आया है। और tourism एक कोने में विकास होने से नहीं होता है। उसको connectivity चाहिए। एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा, तीसरे से चौथा जुड़ा हुआ होना चाहिए। सारी दुनिया Gir lion देखने के लिए आ जाती है। लेकिन अगर Gir lion देखने के बाद पोरबंदर और द्वारिका जाने के लिए अगर छ: लाइन, चार लाइन, दो लाइन के बड़े रोड मिल जाते हैं। तो यात्री को सुविधा रहती है। tourist का मन ललचाता है। और जो Gir lion देखने आएगा। वो द्वारिकाधीश के चरणों में भी आएगा। ये स्थिति पैदा होनी चाहिए। और जो द्वारिकाधीश के चरणों में आएगा उसको भी गीर के शेर देखने का मन कर जाए ऐसी व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। और इसलिए भारत सरकार ने नेशनल हाईवे का नेटवर्क उस प्रकार से बनाने की दिशा में modification किया है। कि रोड तो बने, सुविधा तो बने, गति तो आए लेकिन साथ-साथ आर्थिक गतिविधि के साथ उसका सीधा नाता होना चाहिए। उस व्‍यवस्‍था से आर्थिक गतिविधि को ताकत मिलनी चाहिए।

आज जो नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण का काम है। घणुतक और जब भी मैं घणु को याद करता हूं तो मेरे मेरे बच्‍चों का याद आ जाता हैं। बहुत पुराने हमारे कार्यकर्ता हैं। किसान लेकिन उनको इन सारी बातों का विचार उनके मन में रहा करता था। कि ऐसा किया जाए तो अच्‍छा होगा, ऐसा किया जाए अच्‍छा होगा। वो लगातार सोचते रहते थे। आज उस घणु तक इस रोड को, कि चौड़ाई की दिशा में नेशनल हाईवे के लिए एक भारी मात्रा में हम खर्च करने जा रहे हैं। आज इस एक कार्यक्रम में और एक जिला मुख्‍यत: और वैसे जामनगर जूनागढ़ जिले को जोड़ता हुआ पोरबंदर जिले को जोड़ता हुआ करीब-करीब छ: हजार करोड़ रूपयों की लागत का project आप कल्‍पना कर सकते हैं। वो दिन याद कीजिए जब माधव सिंह सोलंकिया मुख्‍यमंत्री हुआ करते थे। तो अखबार में पहले पन्‍ने पर एक तस्‍वीर छपी थी। वो तस्‍वीर मुझे आज भी याद है तब तो मैं राजनीति में नहीं था। मैं सामाजिक क्षेत्र में काम करता था। जामनगर में, जामनगर या जामनगर जिले में एक पानी की टंकी का उद्घाटन करने के लिए उस समय के मुख्‍यमंत्री मांधव सिंह आए थे। अब ये उस समय की सरकारों की कल्‍पना और आज ये सरकार की कल्‍पना देखिए कि कैसा बृज बनाते हैं, कैसे रोड बनाते हैं। एक पानी की टंकी का उद्घाटन करके पूरे पेज के advertisement के अंदर आप पहले पेज पर तस्‍वीर छपना उनके लिए विकास की सोचने की सीमा भी इतनी मर्यादित थी।

दुनिया बदल चुकी है और इस बदली हुई दुनिया में विकास को नई ऊंचाईयों पर ले जाना हर भारतीय दुनिया के सामने सीना तान के खड़ा हो सके। ऐसा हिन्‍दुस्‍तान बनाने का सपना हर हिन्‍दुस्‍तानी का है। ये सपना सिर्फ नरेन्‍द्र मोदी का नहीं है। सवा सौ करोड़ देशवासियों का सपना है। मैं तो सिर्फ आपके सपनों को रंग भरने के लिए उसको चरितार्थ करने के लिए प्रयास कर रहा हूं। मेहनत कर रहा हूं। अभी नितिन जी बता रहे थे। blue economy के संबंध में एक ऐसा क्षेत्र है। कि जो सामुद्रिक संपदा को गुजरात की ओर देश की अर्थव्‍यवस्‍था में एक बहुत बड़ी ताकत देने का सामर्थ्‍य है। 1600 किलोमीटर का समुद्री तट गुजरात के पास है। हमारे मछुआरे भाई-बहन समुद्री तट पर रहते हैं। blue economy की पूरी संभावना हमारे समुद्री तट पर है। हम बंदरों का विकास करना चाहते हैं लेकिन हम बंदर आधारित विकास भी करना चाहते हैं। हम वो infrastructure बनाना चाहते हैं कि जो बंदरों को रोड से जोड़, रेल से जोड़े, हवाई पटरी से जोड़े, ware housing, cold storage हो दुनिया के बाजार में भारत के किसानों द्वारा उत्‍पादित चीजें विश्‍व के बाजार में कम से कम समय में पहुंचे। देश के किसान को ज्‍यादा से ज्‍यादा कीमत मिलें। इसके लिए इन व्‍यवस्‍थाओं को विकसित करने के लिए एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। हमनें एक योजना बनाई है। और वो भी मेरे मछुआरे भाईयो-बहनों के लिए और blue economy के तहत बनाई है। और वो योजना है आज हमारा मछुआरा, माछीमार जिसके पास छोटी-छोटी बोट है। वो लेकर के समुद्र में फिशिंग के लिए जाता है। दस बारह नोटीकल माइल्‍स से आगे जा नही पाता है और इतने इलाके में जितनी चाहिए उतनी मात्रा में उसको मछली मिलती नहीं है। वो घंटों तक मेहनत करता है फिर बाद में आधा-अधूरा भरकर के वापिस आ जाता है। क्‍या मेरे माछीमार भाई-बहनों को ऐसी जिंदगी जीने के लिए मजबूर कंरू। क्‍या मैं उनको उनके नसीब पर छोड़ दूं। क्‍या मेरे माछीमार भाई-बहनों को जिंदगी में आगे बढ़ने की इच्‍छा नहीं होती क्‍या? क्‍या मेरे माछीमार भाई-बहनों को अच्‍छी शिक्षा-दीक्षा देने का मन नहीं करेगा क्‍या? क्‍या मैं मेरे माछीमार भाई-बहनों को झुग्‍गी-झोंपड़ी वाली जिंदगी से बाहर निकल करके अच्‍छी जिंदगी जीने का मन करेगा कि नहीं करेगा। अगर वो करना है तो उसकी आर्थिक ताकत बढ़ानी पड़ेगी। उसका empower करना पड़ेगा। उसका सशक्तिकरण करना पड़ेगा। और इसलिए हम एक ऐसी योजना लाए कि कुछ मछुआरे भाई-बहन हमारे इकट्ठे हो जाएं, माछीमार भाई-बहन हमारे इकट्ठे हो जाएं। सरकार उनको लोन देगी। कम ब्‍याज से लोन देगी। और डेढ़ करोड़, दो करोड़ की बड़ी बोट वो ला सके। उसका प्रबंध करवाएगी। और अगर वो डेढ़ करोड़, दो करोड़ की बड़ी बोट रखेगा तो दस-बारह नोटिकल माइल्‍स से भी अंदर समुद्र में जा करके वहां तो समुद्र के भीतर भी मछलियों का सागर होता है। deep see में वो अगर वहां चला जाएगा, जो काम उसको तीन दिन में करना होता है वो आधे-एक में पूरा करके के तीनगुणा चारगुणा कमाई करने वाली व्‍यवस्‍था करके अपने किनारे पर वापिस आ सकता है। और उसमें cold storage समेत सभी व्‍यवस्‍था रहे। इस प्रकार का प्रबंध हम हमारे माछीमारों को ये व्‍यवस्‍था देना चाहते हैं। हर माछीमार भाई इसका फायदा उठा सके इसके लिए हम इसको आगे बढ़ा रहे हैं। जो माछीमार की जिंदगी बदलेगा कंडला पोर्ट कहो जिस प्रकार से उसका ग्रोथ हुआ है।

जब मैं गुजरात का मुख्‍यमंत्री था तब भी कंडला पोर्ट था। और हालत क्‍या थी वो मुझे पूरा पता है। हम भारत सरकार को कहते थे इसको प्राथमिकता दीजिए। एक अवसर है। लेकिन उनकी लिस्‍ट में कंडला बंदर नहीं था। जब से भारत सरकार में हमें काम करने का अवसर मिला है। हमनें गुजरात के बंदरों के विकास पर भी उतना ही ध्‍यान दिया है और जिसके कारण आज कंडला का ग्रोथ पिछले 25 साल में नहीं हुआ। इतना ग्रोथ तेजी से आज कंडला का हो रहा है। और उसके कारण लोगों को रोजी-रोटी मिलती है। हमारा अलंग कितने सालों से अलंग की शिकायत रहती थी। अलंग के विकास की चर्चा रहती है। अलंग के hygiene की चर्चा रहती है। भावनगर का अलंग एक प्रकार से दुनिया में हमारी पहचान भी था। लेकिन साथ-साथ environment के नाम पर सैंकड़ों सवालिया निशान भी थे। राष्‍ट्रीय अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍थाएं नई-नई सवाल उठाती रहती थीं। ये भारत सरकार का दायित्‍व था कि उसमें कुछ चिंता करे मदद करे। अलंग में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी में कुछ बदलाव आए उसके लिए कुछ करे। लगातार कोशिश करने के बाद भी उस समय की भारत सरकार की नींद मैं नहीं उड़ा पाया। लेकिन आज जब हमें सेवा करने का मौका मिला है। तो हमनें भी जापान के साथ, लोगों को जापान सिर्फ बुलेट ट्रेन के लिए याद रहता है। वो लोग भूल जाते हैं कि जापान के साथ हम अलंग के विकास के लिए भी बड़ी योजना बना कर के आगे बढ़ रहें हैं। और उसके कारण अलंग के मेरे मजदूर भाईयो-बहनों की जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है।

ये जो बदलाव की दिशा हमनें पकड़ी है। विकास को जो नए-नए क्षेत्रों में सामान्‍य मानवी के जीवन में बदलाव के लिए हम कोशिश कर रहे हैं। उससे ये परिणाम आने वाला है। मांगरोल और वेरावल हमारे परंपरागत फिशिंग हब रहे हैं। अभी भारत के हमारे राष्‍ट्रपति जी आए थे। मैं उनका बहुत आभारी हूं। कि उन्‍होंने मांगरोल के अंदर इस काम को गति देने का एक बहुत बड़ा शिलान्‍यास किया बहुत बड़ी योजना को आकार दिया है। ये फिशिंग हब आने वाले दिनों में इस पूरे बैट के हमारे मतस्‍य उद्योग के लिए एक बहुत बड़ी नई ताकत के रूप में उभरने वाला है। इस पूरा हमारा समुद्रीतट blue economy के द्वारा, tourism की economy के द्वारा infrastructure के द्वारा आगे बढ़ रहा है। उसके साथ-साथ human resource development मानव संसाधन विकास।

मैं गुजरात वासियों से एक भेंट सौगात देने की आज घोषणा करना चाहता हूं। ये सिर्फ गुजरात को नहीं हिन्‍दुस्‍तान को काम आने वाली बात है। लेकिन हमारे समुद्री तट पर होगा और देव भूमि द्वारिका में होगा। हमारे समुद्री तट की सुरक्षा के लिए मरीन पोलिस एक ऐसा क्षेत्र है कि जिसको भारत बहुत ही आधुनिक बनाने की दिशा में काम कर रहा है। सामान्‍य पुलिस से वहां की ट्रेनिंग अलग होगी क्‍योंकि समुद्र में, समुद्री तट पर पांच किलोमीटर की पूरी सुरक्षा की व्‍यवस्‍था से वो जुड़े होंगे तो ऐसे देश भर के marine police training के institute research institute देश की सबसे बड़ी और सबसे पहली institute ये देव भूमि द्वारिका में मोजप के पास बनाई जाएगी। देश भर से जैसे जामनगर कें अंदर हवाई अड्डे पर हमारी एक training institute है। air force के लिए देश भर से लोग उसका लाभ लेते हैं। उसी प्रकार से ये देव भूमि द्वारिका में ये marine police institute हिन्‍दुस्‍तान भर के पुलिस के लोगों की ट्रेनिंग का और ये भी अपने आप में एक ऐसी institute जहां हजारों लोग रहते होंगे, आना-जाना चलता होगा। कितनी बड़ी आर्थिक व्‍यवस्‍था भी इसके साथ जुड़ी होगी। इसका आप भली-भांति अंदाज कर सकते हैं।

भाईयो-बहनों आप सब दीवाली की तैयारियों में लगे हुए हैं। और गुजरात में दीवाली का पर्व बड़ा विशेष होता है। व्‍यापारियों के लिए और विशेष होता है। और मैंने आज देशभर के अखबार देखे उसमें हेडलाइन है कि दीवाली पंद्रह दिन पहले आ गई है। चारों तरफ एक दीवाली का माहौल बन गया है। जब कल हमनें जीएसटी के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण निर्णय किए। और हमनें पहले दिन कहा था कि एक बार लागू करने के बाद तीन महीने उसका अध्‍ययन करेंगें और तीन महीने में जहां-जहां दिक्‍कतें आती हैं। व्‍यवस्‍था की कमियां होंगी, technology की कमियां होंगी। नियमों की कठिनाईयां होंगी। रेट के समझ में शिकायतें होंगी, व्‍यापारी आलम के practical अनुभव में दिक्‍कत आती होगी। क्‍योंकि हम नहीं चाहते हैं कि देश का व्‍यापारी आलम रेड टैपिजाम में फंस जाए। फाइलों में फंस जाए, बाबूओं, साहबलोगगिरी फंस जाए। ये हम कभी हिन्‍दुस्‍तान में नहीं चाहेंगे। और इसलिए तीन महीने में जो भी जानकारी आई उसके आधार पर कल हमारे वित्‍त मंत्री जी ने जीएसटी काउंसिल में सबको मनवा करके बहुत बड़े अहम फैसले लिए और मुझे खुशी है। कि एक-एक स्‍वर में हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में इसका स्‍वागत हुआ है और यही तो देश की ताकत है। जब एक सरकार पर विश्‍वास होता है। नियमों के पीछे ईमानदारी नजर आती है। तो देश कठिनाईयों के बावजूद भी जी-जान से साथ जुड़ जाता है। वो मैं अनुभव कर रहा हूं। और इसलिए मैं देशवासियों का आभारी हूं। कि जीएसटी में जो हमने और अधिक simple tax को और अधिक simpler करने का प्रयास किया है। उसका जो स्‍वागत हुआ है। उसके लिए मैं उनका आभार और अभिनंदन व्‍यक्‍त करता हूं।

द्वारका के भाईओ और बहनो,

भूगर्भ में श्रीकृष्ण की द्वारका, देशवासियों और दुनिया के लोगो की इच्‍छा थी कि महासागर के अंदर जाकर मूल द्वारका थी उसका स्पर्श करके पावन हो जाये| मैनें कुछ निष्णात विद्वानों  को इस कार्य को शक्य बनाने के लिये कार्य सुपरत किया है| भगवान श्रीकृष्ण जहां रहे, जहां  से शासन किया, उस प्राचीनतम नगर के पत्थर को स्पर्श करके वापस आ सके| फिर देखें, पूरा हिंदुस्तान यहां द्वारका में कतार में खडा पायेंगे |

विकास सिर्फ बातों से नहीं होता| इसके लिये दृष्‍टि चाहिये, दीर्घदृष्टि!  इसके लिये संकल्प चाहिये और संकल्प का साकार करने के लिये, चरितार्थ करने के लिये जी-जान से कर्म करना पडता है, पूरी ताकत लगा देनी पड़ती है | और आज देश के किसी भी कोने में सामान्य नागरिक की हमारी सरकार में आस्था है, हमसे अपेक्षा है कि विकास हो, विकास के लाभ उन तक पहुंचे| वो चाहते हैं कि उनकी भावी पीढ़ियां गरीबी के विषचक्र में फंस न जाये, गरीबी में जिंदगी बसर न करनी पडे| हमारा प्रयास है कि भले वर्तमान पीढी गरीबी में जिंदगी जीने के लिये मजबूर हो, पर उनके संतानो को गरीबी में जिंदगी बसर न करनी पडे| इस प्रकार की विकास यात्रा आज चल रही है और हम विकास के नये मापदंड बना रहे है| आज पूरे विश्व का ध्यान भारत ने आकर्षित किया है| दुनिया के लोग यहां मूडीरोकाण करने के लिये आगे आये हैं और इसके परिणामस्वरुप देश के नौजवानों के लिये रोजगारी की नए नए अवसर पैदा होंगे| इससे देश के किसानों के जीवन में परिवर्तन की संभावना पैदा हुई है| गुजरात के गांव सक्षम बने इसके लिये अलग-अलग किस्म की पहल हो रही है| विकास की इस सफर में गुजरात आज महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है, देश के विकास में गुजरात आज बडी जिम्मेदारी निभा रहा है और इसके बदले मैं गुजरात के कोटि-कोटि जन को वंदन करता हूं, उनका शुक्रिया अदा करता हूं एवं गुजरात सरकार को भी इस विकास प्रक्रिया को और आगे बढाने के लिये सहृदय शुभेच्छा दे रहा हूं।

जय द्वारकाधीश।

जय द्वारकाधीश।

जय द्वारकाधीश।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!