पीएम मोदी ने अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ के '29वें द्विवार्षिक अखिल भारतीय शिक्षा संघ अधिवेशन' को संबोधित किया। अपने संबोधन में, उन्होंने शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया और बताया कि कैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति; भारत में 21वीं सदी के लिए लर्निंग को बदल देगी और बढ़ावा देगी।
पीएम मोदी ने कहा कि रटंत विद्या से प्रैक्टिकल लर्निंग के व्यवस्थात्मक परिवर्तन को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21 वीं सदी की विशेष जरूरतों को पूरा करती है। ऐसी व्यवस्था, जहाँ एक छात्र के समग्र व्यक्तित्व विकास के लिए टीचिंग के बजाय लर्निंग पर अधिक जोर दिया जाता है और समय-समय पर सीखने के तरीकों में इनोवेशन किया जाता है।
इसके बारे में विस्तार से बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सुझाव दिया कि भारत में मिट्टी के बारे में समझने या अध्ययन करने के लिए, एक शिक्षक; छात्रों को कुम्हार के घर ले कर जा सकता है। यहाँ, छात्र को मिट्टी के बर्तनों की दुनिया के बारे में पता चलेगा, उन्हें भारत में मिट्टी को समझने का पहला व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त होगा साथ ही एक कुम्हार के कठिन परिश्रम को देखना; उन्हें सहनशीलता, सततता, सहानुभूति और साहस जैसे मूल्यों को अपनाने की सीख प्रदान कर सकता है।
सीखने के व्यावहारिक अनुभव पर पीएम मोदी ने बचपन का एक किस्सा सुनाया, जब उनके शिक्षक; छात्रों से उनके घर से अलग-अलग अनाज के दस-दस दाने लाने के लिए कहते थे। फिर शिक्षक उन सभी को एक साथ मिलाते और छात्रों को सीखने का एक अनूठे व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के लिए उन्हें अनाज के उस मिश्रण से अलग-अलग दाने चुनने के लिए कहते। इसी तरह का प्रयोग अगली कक्षा में फिर से किया जाता, लेकिन आँखों पर पट्टी बाँधकर 'स्पर्श वाली इन्द्रियों का सामर्थ्य' जागृत करने के लिए। इस प्रकार सीखने के एक शानदार तरीके को प्रोत्साहित किया जाता।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक और प्रमुख पहलू स्थानीय भाषा में सीखने को बढ़ावा देना है जो भारत की सामाजिक पहचान का प्रतीक है। शिक्षा के साधन के रूप में अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा देने वाले ब्रिटिश शासन ने भारतीय आबादी के केवल एक छोटे वर्ग के हितों की रक्षा की जो हाल तक बनी रही। उन्होंने कहा कि इस शिक्षा नीति के माध्यम से ही हमने स्थानीय भाषाओं और शिक्षकों की गरिमा को बढ़ावा देने की कोशिश की है ताकि उनके आसन्न और दूरस्थ भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।