प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि आयुर्वेद को सबसे बड़ी चुनौती उन लोगों से मिल रही है जिन्होंने अपना जीवन इसे समर्पित कर दिया है। उन्होंने कहा कि ये लोग भी आयुर्वेद पर पूर्ण भरोसा नहीं करते हैं। आयुर्वेद और एलोपैथी को चिकित्सा विज्ञान की प्रतिद्वंदी धाराएं मानने की धारणा को निराधार बताते हुए प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद को जिंदगी जीने का तरीका बताया। उन्होंने कहा कि एलोपैथी से किसी बीमारी का इलाज हो सकता है और अगर कोई व्यक्ति आयुर्वेद को अपनाता है, तो वह यह सुनिश्चित कर सकता है कि वह लगातार स्वस्थ रहने के साथ-साथ बीमारियों से मुक्त भी रहेगा।
प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद के चिकित्सकों से महज एक पेशे के तौर पर नहीं, बल्कि मानव जाति की सेवा के लिए आयुर्वेद के प्रति समर्पित रहने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री छठी विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि योग ने उन लोगों के लिए वैश्विक पहचान हासिल कर ली है जो तनाव मुक्त जीवन जीना चाहते हैं और समग्र स्वास्थ्य रक्षा की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। इसी तरह अगर आयुर्वेद को भी सही भावना के साथ जिंदगी जीने के तरीके के रूप में पेश किया जाएगा, तो यह भी स्वीकार्यता हासिल कर सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद के लिए यह आवश्यक है कि वह सरल एवं कारगर तरीके से लोगों तक पहुंचे। इसके लिए उपचार के तरीकों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘आयुर्वेद पर लेखों के लिए चिकित्सा एवं विज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में स्थान सृजित करना पड़ेगा। हालांकि, इसके लिए आयुर्वेद के चिकित्सकों एवं शोधकर्ताओं की ओर से ही प्रयास किये जाने चाहिए।’
Just spoke at World Ayurveda Congress. Talked about our commitment towards promoting Ayurveda & increasing awareness about its uniqueness.— Narendra Modi (@narendramodi) November 9, 2014