अब विकास संस्थानों की गुणवत्ता और विचारों पर निर्भर: पीएम मोदी
अब हम उस दौर में हैं जहाँ परिवर्तन लगातार हो रहा है और हम परिवर्तनशील हैं। हमें आंतरिक व बाह्य दोनों कारणों के लिए बदलाव लाना होगा: पीएम
आज देश एक दुसरे पर निर्भर है और परस्पर जुड़े हुए भी। कोई भी देश विकास को लेकर अधिक दिनों तक अलग-थलग नहीं रह सकता है: पीएम
यदि भारत को बदलाव की चुनौतियों से निपटना है तो वृद्धिशील प्रक्रिया मात्र काफी नहीं होगी। इसका कायापलट किये जाने की आवश्यकता है: पीएम मोदी
शासन में बदलाव किये बिना भारत में बदलाव नहीं लाया जा सकता है: प्रधानमन्त्री
सोच में बदलाव किये बिना शासन में बदलाव नहीं लाया जा सकता है: पीएम
विचारों में बदलाव किये बिना सोच में बदलाव नहीं लाया जा सकता है: पीएम मोदी
हमें कानूनों में परिवर्तन करना होगा, अनावश्यक प्रक्रियाओं को हटाना होगा, प्रक्रियाओं में तेजी लानी होगी और प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा: पीएम
हमारे समय के सबसे बड़े और महान सुधारक व व्यवस्थापक Lee Kuan Yew हुए। जिन्होंने कि वर्तमान सिंगापुर को बनाने के लिए बदलाव किये थे: पीएम मोदी

श्रीमान थर्मन शनमुगरत्नम, सिंगापुर के उप प्रधानमंत्री

मेरे साथी मंत्रियों

मुख्यमंत्रियों

आमंत्रित वक्ताओं और दोस्तों,

एक समय था जबविकास को पूंजी और श्रम की मात्रा पर निर्भर माना जाता था। आज हम जानते हैं कि यह संस्थाओं और विचारों की गुणवत्ता पर अधिक निर्भर करता है। पिछले वर्ष की शुरूआत में, भारत के रूपांतरण के लिए एक नई संस्था अर्थात राष्ट्रीय संस्थान या नीति (NITI) को बनाया गया था। नीति का निर्माण भारत के रूपांतरण में मार्गदर्शन देने के लिए साक्ष्य आधारित थिंक टैंक के रूप में किया गया था।

नीति के मुख्य कार्यों में से कुछ कार्य हैं :-

- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ सहयोग के माध्यम से सरकार की नीतियों की मुख्यधारा में बाहरी विचारों को शामिल करना;

- बाहर की दुनिया, बाहर के विशेषज्ञों और पेशेवरों और सरकार के बीच सेतू बनना;

- एक ऐसा साधन बनना जिसके माध्यम से बाहर के विचारों को नीति निर्माण में सम्मिलित किया जा सके;

भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक लंबी प्रशासनिक परंपरा रही है। यह परंपरा भारत के अतीत को स्वदेशी और बाहरी विचारों से जोड़ती है। इस प्रशासनिक परंपरा ने भारत की कई मायनों में अच्छी तरह से सेवा की है। इससे भी अधिक, इस प्रशासनिक परंपरा ने शानदार विविधता के इस देश में लोकतंत्र और संघवाद, एकता और अखंडता को संरक्षित रखा है। ये छोटी उपलब्धियां नहीं हैं। फिर भी, हम अब एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहां परिवर्तन सतत है और हम घटक हैं।

हम आंतरिक और बाह्य दोनों कारणों के लिए कारणों से बदलना ही होगा। प्रत्येक देश के पास उसके स्वयं के अनुभव, संसाधन और अपनी ताकत होती है। तीस साल पहले, एक देश अपने अंदर की ओर देखने के लिए और अपने स्वयं के समाधान खोजने के लिए सक्षम हो सकता था। आज, सभी देश एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अब कोई भी देश अलग-थलग होकर अपना विकास नहीं कर सकता है। हर देश अपने क्रियाकलापों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना होता है या पीछे रह जाना पड़ता है।

आतंरिक कारणों के लिए भी बदलाव आवश्यक है। हमारे अपने देश में युवा पीढ़ीपूरी तरह से अलग सोच और महत्वकाक्षांए रख रही है कि सरकार अब लंबे समय तक अतीत के आधार पर नहीं चल सकती । यहां तक परिवारों में भी, युवाओं और वृद्धों के बीच रिश्ता बदल गया है। एक समय था जब परिवार के बड़े लोग छोटे लोगों से अधिक जानकारी रखते थे। आज, नई तकनीक के प्रसार के साथ स्थिति उलट हो गई है। यह स्थिति सरकार के लिए संवाद स्थापित करने और बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा करने में सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ाती हैं।

यदि भारत को परिवर्तन की चुनौती का सामना करना है तो इसके लिए क्रमिक विकास पर्याप्त नहीं है बल्कि एक कायापलट की जरूरत है।

यही कारण है कि मेरी सोच भारत के लिए तीव्र रूपांतरण विकास की है न कि क्रमिक विकास की

• भारत का रूपांतरण शासन प्रणाली में परिवर्तन के बिना नहीं हो सकता है।

• शासन प्रणाली का रूपांतरण मानसिकता में परिवर्तन के बिना नहीं हो सकता है।

• मानसिकता में परिवर्तन परिवर्तनकारी विचारों के बिना संभव नहीं हो सकता है।

हमें कानूनों को बदलना, अनावश्यक प्रक्रियाओं को समाप्त करना, प्रक्रियाओं में तेजी लाना और प्रौद्योगिकी को अपनाना है। हम उन्नीसवीं सदी की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ इक्कीसवीं सदी में नहीं चल सकते।

प्रशासनिक मानसिकता में मौलिक परिवर्तन आमतौर पर अचानक झटके या संकट के माध्यम से होते हैं। भारत को एक स्थिर लोकतांत्रिक राजव्यवस्था होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस तरह के झटकों के अभाव में, हमें रूपांतरकारी बदलाव करने के लिए अपने आप को मजबूर करने के लिए विशेष प्रयास करना होगा । व्यक्तियों के रूप में, हम किताबों या लेखों को पढ़कर के द्वारा नए विचारों को ग्रहण कर सकते हैं। पुस्तकें हमारे मस्तिष्क की खिड़कियां खोलती हैं। बहरहाल, जब तक हम सामूहिक मंथन नहीं करते, विचार कुछ व्यक्तियों के मस्तिष्क तक ही सीमित रहते हैं। हम अक्सर नए विचारों के बारे में सुनते हैं और उन्हें समझते हैं। लेकिन हम उन पर कार्य नहीं करतें है, क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत क्षमता से परे है। अगर हम एक साथ बैठते हैं, तो हमारे पास विचारों को कार्यों में परिवर्तित करने का सामूहिक बल होगा। नए वैश्विक परिदृश्य में जाने के लिए हमेंसामूहिक तौर पर हमारे दिमागों को खोलने की जरूरत हैहै। ऐसा करने के लिए, हमें नए विचारों को सामूहिक रूप से अवशोषित करना है न कि व्यक्तिगत तौर पर। इसके लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है।

जैसा कि आप में से कई लोग जानते हैं, जब से मैंने कार्यालय संभाला है, तब से मैंने बैंकरों, पुलिस अधिकारियों,सरकार के सचिवों और अन्य लोगों के साथ व्यक्तिगत तौर पर सुसंरचित विचार-विमर्श कार्यक्रमों में भागीदारी की है। इन सत्रों से आने वाले विचारों को सरकारी नीतियों में शामिल किया जा रहा है।

ये प्रयास अंदर से विचारों का दोहन करने के लिए किए गए हैं। अगला कदम बाहर से विचारों को अंदर लाने के लिए है। सांस्कृतिक तौर पर, भारतीय लोग हमेशा कहीं से भी विचारों को स्वीकार करने में सक्षम रहे हैं। यह ऋग्वेद में कहा गया है - "आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः", जिसका अर्थ है, सभी दिशाओं से आ रहे महान विचारों का स्वागत है।

यही भारत रूपांतरण व्याख्यानमाला का उद्देश्य है। यह एक ऐसी व्याख्यानमाला है जिसमें हम व्यक्तिगत तौर पर नहीं बल्कि एक टीम के हिस्से की तरह भाग लेंगे, जो सामूहिक तौर पर परिवर्तन को संभव बना सकता हैं।

हम ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों की सर्वश्रेष्ठ बुद्धि और ज्ञान से सिखेंगें, जिन्होंने अपने देश को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान बनाने के लिए अनेक लोगों का जीवन परिवर्तन किया होगा या अनेक लोगों को जीवन परिवर्तन के लिए प्रभावित किया।

यह व्याख्यान इस श्रृंखला का पहला व्याख्यान होगा। आप सभी को एक Feedback form दिया गया है। इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए मैं आपसे विस्तृत और खुली प्रतिक्रिया की उम्मीद करता हूं। मैं भारत के अंदर और भारत के बाहर से विशेषज्ञों और पैनल के नामों पर सुझाव देने का आपसे अनुरोध करता हूँ। मैंसरकार के सभी सचिवोंसे भी उनके मंत्रालयों से प्रतिभागियों के साथ एक सप्ताह के समय में आगे एक अनुवर्ती चर्चा के संचालन का अनुरोध करता हूँ। इसका उद्देश्य आज के सत्र में सभी संबंधित समूहों से उभर कर आए विचारों को विशिष्ट कार्ययोजना में परिवर्तित करना है। जहाँ भी संभव हो, मैं मंत्रियों से भी इन सत्रों में भाग लेने का अनुरोध करता हूं।

हमारे समय के सबसे बड़े सुधारकों और प्रशासकों में ली कुआन यू थे, जिन्होंने सिंगापुर को आज के सिंगापुर में बदल डाला था। इसलिए यह संयोग ही है कि हम श्री थर्मन शनमुगरत्नम, सिंगापुर के उप प्रधानमंत्री के साथ इस व्याख्यानमाला का उद्घाटन कर रहे हैं। श्री थर्मन एक सफल विद्वान और सार्वजनिक नीति निर्माता हैं। उप प्रधानमंत्री होने के अलावा, वह आर्थिक और सामाजिक नीतियों के लिए समन्वय मंत्री, वित्त मंत्री और सिंगापुर के मौद्रिक प्राधिकरण के अध्यक्ष भी हैं। इससे पहले , इन्होंने श्रमशक्तिमंत्री, द्वितीयवित्त मंत्री और शिक्षा मंत्री के रूप में भी कार्य किया है।

श्री शनमुगरत्नम का जन्म 1957 में हुआ था और वह श्रीलंकाई तमिल मूल के हैं। इन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में एक और मास्टर डिग्री प्राप्त की है। हार्वर्ड में इन्हें इनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए Littauer Fellow Award से सम्मानित किया गया था।

श्रीशनमुगरत्नम दुनिया के अग्रणी बुद्धिजीवियों में से एक हैं। मैं आपकों उनके विचारों की व्याप्ति और प्रभाव क्षेत्र का एक उदाहरण देना चाहूंगा। आज, सिंगापुर की अर्थव्यवस्था काफी हद तक Transshipment पर निर्भर करती है। लेकिन अगर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से ध्रुवीय बर्फ टोपियां जलमग्न हो जाती हैं तो नए नेविगेशन मार्गों को खोल सकती है और संभवतः सिंगापुर की प्रासंगिकता को कम कर सकती है। मुझे बताया गया है कि उन्होंने पहले से ही इस संभावना और इसके लिए योजना बनाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है।

दोस्तों। श्री शनमुगरत्नम जी को प्राप्त उपलब्धियों और सम्मान की सूची काफ़ी लंबी है। लेकिन हम उन्हें सुनने के लिए उत्सुक हैं। इसलिए, आगे बिना किसी देरी के,ये बहुत खुशी की बात है कि मैं इस मंच पर श्री थर्मन शनमुगरत्नम का स्वागत करता हूं और अनुरोध करता हूं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत विषय पर हमें अपने विचारों से अभिभूत करें।

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Prime Minister Shri Narendra Modi paid homage today to Mahatma Gandhi at his statue in the historic Promenade Gardens in Georgetown, Guyana. He recalled Bapu’s eternal values of peace and non-violence which continue to guide humanity. The statue was installed in commemoration of Gandhiji’s 100th birth anniversary in 1969.

Prime Minister also paid floral tribute at the Arya Samaj monument located close by. This monument was unveiled in 2011 in commemoration of 100 years of the Arya Samaj movement in Guyana.