अंग्रेजी शासक उन लोगों से डरते थे जो अखबार के माध्यम से अपने विचारों को सबके सामने लाते थे: प्रधानमंत्री
मीडिया में कुछ ही ऐसे लोग थे जिन्होंने आपातकाल को चुनौती दी और गोयनका जी ने उनका नेतृत्व किया था: प्रधानमंत्री
तकनीक मीडिया के लिए एक चुनौती बन गया है। पहले जो खबर 24 घंटे में प्रचारित होती थी अब वह 24 सेकेंड में हो जाती है: प्रधानमंत्री

सभी वरिष्ठ महानुभाव,

आज जिन लोगों को Award प्राप्त हुआ है, उन सबको मेरी तरफ से बहुत – बहुत बधाई। और बहुत से लोग होंगे जो शायद Award तक नहीं पहुंचे होंगे लेकिन बहुत करीब होंगे। मैं उनको भी बधाई देता हूं। ताकि ये सिलसिला चलता रहे। हर किसी की कलम, हर किसी की सोच और उसकी मेहनत देश को आगे बढ़ाने में किसी न किसी प्रकार से योगदान देती रहे।

बहुत लोग होते हैं जो अपने जीवनकाल में अपने क्षेत्र में जगह बनाते हैं। कुछ लोग होते हैं, जो अपने जीवनकाल में अपने कार्य क्षेत्र से भी बाहर अपनी जगह बनाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग होते हैं, जो अपने जीवनकाल के बाद भी अपने क्षेत्र में, अपने क्षेत्र की परिधी में अपना स्थान बनाते हैं अमरत्व को प्राप्त करते हैं। और वो नाम है रामनाथ गोयनका जी का।

ये मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे रामनाथ जी के दर्शन करने का अवसर मिला था। वे गुजरात आए थे। अब वो जिस स्थान पर थे, तो स्वाभाविक है कि उनके मिलने का दायरा किसी पोलिटिकल पार्टी के अध्यक्ष हो सकते हैं या मुख्यमंत्री हो सकते हैं या मीडिया को लगा हो कि भविष्य में ये बड़े एडिटर हो सकते हैं। मैं कुछ भी नहीं था। शायद वो शहर के किसी एडिटर से मैं टाइम मांगता वो भी महीने भर नहीं देता। लेकिन रामनाथ जी के दर्शन का मुझे सौभाग्य मिला था। जयप्रकाश जी के आंदोलन का वो काल था। और रामनाथ जी के भीतर जो आग थी। वो आग अनुभव कर सकते थे। और वो इंडियन एक्सप्रेस एक अखबार और उसके लिए थी ऐसा नहीं था। उनको जो अखबार के माध्यम से अभिव्यक्त होता था, उससे भी संतोष नहीं होता था। उनकी भावनाओं के लिए अखबार भी छोटा पड़ता था। और इसलिये वो अखबार की परिधी के बाहर भी कुछ करना चाहते थे और करते रहते थे। और जयप्रकाश जी के पीछे एक ताकत बनकर खड़े रहने का काम उस समय किसी ने किया तो गोयनका जी ने किया था। अपने उसूलों के इतने पक्के रहे इस हद में रहे की जिस परिवार के संबंध में सब लोग जानते हैं। उनके साथ अगर निकट संबंध हो तो पता नहीं कहां से कहां व्यक्ति वो पहुंच जाता है। क्या कुछ पा लेता है। उस परिवार के कृपा के लिए कोशिश करने वालों की कोई कमी नहीं रही। उसूलों के आधार इस परिवार के साथ निकटता थी। लेकिन उसूलों के आधार पर परिवार से नाता तोड़ने का साहस किसी ने दिखाया था तो श्रीमान गोयनका जी ने दिखाया था और उसूलों पर और आदर्शों पर।

और इसलिये पत्रकारिता कलम के माध्यम से जो प्रकट होता है। जो दूसरे दिन अखबार में जो लोग पढ़ते हैं। वहां तक सीमित नहीं रही। और भारत का पूरा इतिहास देखें, मुझे मालूम नहीं कि आज journalism के student के syllabus क्या – क्या होता है। लेकिन अगर हम भारत की पत्रकारिता के इतिहास को हम देखें। उसकी पूरी विकास यात्रा आजादी के आंदोलन की विकास यात्रा से जुड़ी हुई थी। इस देश का आजादी का कोई आंदोलन ऐसा नहीं था, जो किसी न किसी अखबार से जुड़ा हुआ न हो। और हर किसी को लगता था कि अंग्रेज़ सलतनत के खिलाफ लड़ना है, तो मेरे पास ये भी एक साधन है, वो लड़ते थे। और ज्यादातर पत्रकारिता के क्षेत्र के द्वारा सेवा के भाव से देश के आजादी के आंदोलन को चलाने वाले लोगों को कई वर्षों तक जेलों में जिन्दगी काटनी पड़ी। लेकिन उन्होंने लड़ना नहीं छोड़ा। और हमारे देश के हर बड़े व्यक्ति का नाम चाहे तिलक जी लें, गांधी जी लें, हर किसी का नाम, even श्री अरविन्दो, हर कोई अपने जीवन के कालखंड में अखबार के माध्यम से आजादी के आंदोलन में बहुत बड़ी ताकत बनकर रहे। हिन्दुस्तान की एक और विशेषता हम अनुभव करते हैं कि हमारे जो माता सरस्वती की संतान हैं। कविता जिनकी सहज होती है, साहित्य जिनके सृजन और सहज होता है। मां सरस्वती उनके आशीर्वाद उनके विराजमान रहते हैं। लेकिन एक कालखंड था कि भारत के करीब करीब सभी बड़े साहित्यकार पत्रकारिता से जुड़ना पसंद करते थे। और पत्रकारिता सीखा नहीं जाता है। वो कविता से भाव को जगाते थे। लेकिन पत्रकारिता से जो जोश भरते थे, आंदोलन के लिए प्रेरित करते थे। कविता की ताकत से ज्यादा उनको उस समय पत्रकारिता की ताकत की अनुभूति होती थी। और इससे कविता का मार्ग अपने आनन्द के लिए। लेकिन राष्ट्र कल्याण के लिए पत्रकारिता का मार्ग ये साहित्यिक जीवन की पूरी पीढ़ी हमारे लिये पड़ी है। यानी एक प्रकार से भारत की यात्रा है। और अंग्रेज़ सलतनत ने भी जो संकट के लिए कुछ क्षेत्र देखे थे। उसमें एक क्षेत्र था। ये लिखने पढ़ने वाले लोग। और उनको लगता था कि ये है तो उनके खिलाफ कोई न कोई व्यवस्थाएं करनी चाहिए लड़ाई करनी चाहिए।

देश आजाद हुआ। आजादी के बाद भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने में, लोकतंत्र सही दिशा में चले उसके लिए भारत की पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। किसी की आलोचना के लिए नहीं। किसी को बुरा भला कहने के लिए नहीं। लेकिन हम जानते हैं कि मान लीजिये कोई बड़ा epidemic आ गया। बीमारी आ गई कोई, तो हर कोई पहले वाली बड़ी बीमारी को याद करता है कोई उस समय ऐसा हुआ था। क्योंकि From Known to Unknown जाना सरल होता है। और इसीलिये लोकतंत्र पर क्या खतरे हो सकते हैं और कैसे महत्व रखते हैं। इसको समझने के लिए भारत में Emergency का काल बहुत उपयोगी है। अगर Emergency की बात कहते हैं तो लोगों को बुरा लगता है। उसको राजनीतिक तराजू से देखा जाता है। मैं समझता हूं राजनीतिक का खेल समाप्त हो चुका है। आज निष्पक्ष भाव से उसकी विमानसा मैं आलोचना शब्द उपयोग नहीं कर रहा विमानसा शब्द का उपयोग कर रहा हूं। ये हर पीढ़ी में होते रहने चाहिए ताकि इस देश में ऐसा राजपुरुष पैदा न हो कि जिसको इस प्रकार का पाप करने की इच्छा तक पैदा हो। ये हमलोगों को हम जिस बिरादरी के लोग हैं उनको बार – बार चौकन्ना रखने के लिए भी आपात्काल याद रखवाना बहुत जरूरी है। ये भी सही है कि उस समय जिस मीडिया से दुनिया डटी थी ऐसे कहते हैं। जब मीडिया की सामर्थ की चर्चा होती थी। लेकिन उस कालखंड ने दिखा दिया था की नहीं ये जो सुनते ते देखते थे ऐसा नहीं है कुछ और है। बहुत कम विरले निकले थे, बहुत कम। जिन्होंने आपातकाल को चुनौती देने का रास्ता चुना था। और उसका नेतृत्व रामनाथ गोयनका जी ने किया था, इंडियन एक्सप्रेस ने किया था और बहुत बेफिक्र हो कर किया था। मैं समझता हूं कि ये इतिहास के पन्ने लोकतंत्र की आवश्यकता के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र को हर समय हर युग में sharpen करने की आवश्यकता होती है।

आज अपनी-अपनी जगह पर मैं समझता हूं शायद पिछली पूरी शताब्दी में मीडिया को जो चुनौतियां नहीं थीं। वो चुनौतियां आज है। शायद पिछली पूरी शताब्दी में किसी नहीं रही। और उस मूल कारण टेक्नॉलॉजी है। टेक्नॉलॉजी ने बहुत बड़ी चुनौती खासकर के मीडिया के लिए पैदा की है। पहले खबरे 24 घंटे के बाद भी आती थी तो भी खबरें खबर लगती थी। आज 24 सैकेंड भी बीत जाए अच्छा – अच्छा तुझे पता नहीं है। अरे ऐसा हो गया, उसके हाथ में टेलीफोन में मोबाइल फोन में है। दुनिया के किसी कोने का पता होता है कि हां ये कब आया है। मैं नहीं मानता हूं । जब टीवी मीडिया आया, तो सरकारें बड़ी परेशान थीं कि एक जगह पर टीवी पर खबर आ जाए। सरकार को response time चाहिए। मनो epidemic आया तो लोगों को मोबलाइज़ करना होगा कहीं कोई दंगा हो गया तो पुलिस को भेजना होगा। मीडिया उतना टाइम नहीं देता है। उसके लिए तो खबर – खबर है। breaking news। क्या मालूम, नहीं। लेकिन उसको भी cop-up करने के लिए सरकार का सामर्थय नहीं बना उसके पहले सोशल मीडिया आ गया जो fraction of Seconds….. पहले पत्रकारिता कोई पढ़ाई लिखाई करके आए हुए लोग किसी व्यवस्था में जुड़े हुए लोग आज कुछ नहीं साहब गांव का आदमी भी उसको ठीक लगा फोटो निकाल देता है, तक देता है। और इसके कारण लोगों के पास खोबरें बहुत होती हैं। और इसको इस स्थिति में Credibility बहुत बात है। आदतन रोज सुबह लोग अखबार उठाते हैं। ये आदत है चाय पीने की जैसा आदत होती है ऐसी आदत है। वो कितना ही टीवी पर खबर देखते हैं लेकिन एक बार तो पेपर उठा ही लेते हैं। लेकिन अब खबर पढ़ता नहीं है, वो Verify करता है कि कल मोबाइल में देखा था वो आ रहा है कि दूसरा है। और फिर वो हिसाब लगाता है कि अच्छा है भाई चलीए दो रुपये गया आजका और इसलिये मैं समझता हूं चुनौती बहुत बड़ी है। और इस चुनौती को हम कैसे cop-up करेंगे। लेकिन इसके साथ-साथ हमें अनुभव भी आता है कि देश में कैसी कैसी टैलेंट है कैसी-कैसी संवेदनाओं से भरा हुआ मानव समूह है। हर छोटी चीज को कितनी बारीकी से वो Analysis करके देखता है।

मुझे बराबर याद है । मैं गुजरात का सीएम था, तो कभी – कभी नेता लोगों की बात तो अखबार में छपते रहते थे। हर किसी की छपती है साल एक बार किसी एक बार तो किसी की दो बार ये छपती है। ये VIP Culture इतना गाड़ियां लेकर के जाते हैं, ढिकना-फलाना बहुत बड़ा interesting विषय रहता है और कुछ खबर नहीं हो तो ready-made तो मिली ही जाती है। हम भी पढ़ते थे। मैं भी हमारे अफसरों से कहता था कि क्या यार, ये क्या चीज लेकर के चलते हो। बोले नहीं साहब ये Blue Book में लिखा हुआ है, हम भी उसको Compromise नहीं कर सकते। हम भी उनको समझा नहीं पा रहे थे। लेकिन एक बार मैं जब अहमदाबाद से, मेरा convoy गुजर रहा था शाम का समय था। किसी नौजवान ने अपने मोबाईल में recording शुरू किया। और जैसे गाड़ियां जा रही थी, एक दो तीन गिनता रहता था गाड़ियां जा रही थी। और उसको upload किया। मैं खुद सोशल मीडिया में बड़ा active था तो मुझे दो तीन घंटो में मेरे पास गया वो। अखबारों में आलोचना होकर के जितना प्रभाव हुआ था उससे ज्यादा मुझे हुआ था। एक नौजवान ने जो upload किया था उसका प्रभाव हुआ था। मैं अपनी बात इसलिये बताता हूं कि कितनी ताकत हो गई है इसकी। Empowerment of people अच्छी चीज है। और ऐसे समय Credibility इसको बनाए रखना ये मैं समझता हूं समय की बड़ी मांग है।

दो चीजें ऐसी हैं, वैसे ये ऐसा वर्ग है और ये क्षेत्र ऐसा है जिसको सबको कहने का हक है। किसी को उनको कहने का कोई हक नहीं है। और कह दिया तो फिर क्या होगा। वो मैं भी जानता हूं आप भी भली भांति जानते हैं। वैसे मैं मीडिया का जीवन भर शुक्रगुजार रहूँगा, वरना मुझे कौन जानता था। आजादी के बाद अगर किसी भी राजनेता को ऐसा सौभाग्य मिला हो तो मैं अकेला हूं। इसलिये दो चीजें हमेशा मेरे मन में रहती है। और मैं चाहूंगा कि कोई सोचे। देखिये, दुनिया बदल चुकी है। सिर्फ Economy Globalize हो ऐसा नहीं पूरी जिन्दगी Globalize हो चुकी है। पूरी दुनिया inter-connected है Inter-dependent है। क्या कारण है कि पूरी दुनिया का जो Media World है उसमें भारतीय मूल का कोई स्थान नहीं है। आज भी कुछ लोग मिलते हैं। अरे मैंने BBC में सुना अब अलजजीरा तक पहुंचा है मामला CNN, BBC, अलजजीरा । इस field के लोगों ने इस चुनौती को समझना चाहिए। भारतीय मूल का एक विश्व स्तर का और हम दुनिया में अगर player हैं, तो हमारे हर पहलु का प्रभाव विश्व में पैदा होना चाहिए सपना होना चाहिए, किसी को बुरा लगे या न लगे मुझे नहीं लगता है। मुझे लगता है मेरे देश का प्रभाव होना ही चाहिए। हमारे यहां पर बहुत ताकत है जैसे मैंने अभी Environment पर Award मिला था मैंने विवेक को पूछा। मैंने कहा विवेक ये Pollution पर reporting है कि Environment पर है। ऐसे मैं मजाक में पूछ रहा था।

आज पूरी दुनिया को Global Warming और Environment की चर्चा करती है। भारत की रगों में प्राकृति के साथ जीना कैसे, प्राकृति का महत्वमय क्या है, प्राकृति के सामर्थय को स्वीकार करना ये हमारी रगों में है। अगर हमारे पास इस लेवल को कोई मीडिया होता तो विश्व को समझा देते कि बर्बादी का कारण आप हैं बचाने के लिए हमने अपने आपको बर्बाद किया है। हमने अपने आपको नुकसान दिया है। ये तो महात्मा गांधी साबरमती के तट पर रहते थे। नदी उस समय तो पानी भरा रहता था 1930s में। लेकिन साथ गांधी जी को पानी ग्लास देता था वो कहते थे की भाई आधा लाओ, आधा उस मटके में वापस डालो, पानी बर्बाद मत करो। नदी बह रही नदी के किनारे पर बैठे थे। प्राकृतिक संसाधनों की चर्चा ये हमारी रगों में है। ये देश ऐसा है जो बचपन में बच्चों को सिखाता है कि बेटे बिस्तर से पैर नीचे रखते हो पृथ्वी मां की क्षमा मांगो कि तुम अपना पैर पृथ्वी पर रख रहे हो। ये हमारे संस्कार मां कितनी पढ़ी लिखी हो बच्चे को कहती है ये सूरज है तेरा दादा है ये चांद है तेरा मामा है, पूरा ब्रह्माण्ड तेरा परिवार है। ये हमारे यहां रगों में भरा गया है। क्यों न हम दुनिया को Global Warming से बचाने के लिए हमारे पास पत्रकारिता की वो ताकत हो हमारे पास कोई Global Institution, हो के हम दुनिया को कहें कि भई रास्ता यही है। लेकिन ये बहुत मुश्किल है। उस दिशा में हम कुछ कर सकते हैं क्या।

और मैं मानता हूं कि शायद कोई न कोई तो निकलेगा और ये सरकारी नहीं होना चाहिए। सरकार तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। और जैसे विनोवा जी कह रहे थे कि हमेशा जो मंत्र मुझे वैसा अच्छा लगा। विनोवा जी शब्दों के खेल खेलने में बड़े माहिर थे। और मुझे बहुत अच्छा लगता था विनोवा जी को पढ़ना। उन्होंने एक जगह पर लिखा था अ-सरकारी- असरकारी शब्द वही है, अ-सरकारी-असरकारी (Effective), ऐसा हमारा एक सपना होना चाहिए कि दुनिया में हम भी उस level के Media World में जगह होनी चाहिए। और शायद जो Media World जो लोग research करते होंगे उनको मालूम होगा, दुनिया के जो सभी Top Countries हैं वे आजकल के काम में लगे हुए हैं Finance, Budget, व्यवस्था करते हुए कि इस level की communication agencies कैसे तैयार हो। सरकारों की सरकारें लगी हुई हैं। हरेक को लगता है कि भई ये Globalised Economy, सिर्फ नहीं है ये सारी दुनिया इस प्रकार से shape रही है। उसमें हमारा दिखना बहुत जरूरी है। एक अवसर भी है चुनौती भी है। उस पर हमें सोचना चाहिए।

दूसरा सरकारों की आलोचना जितनी हो उतनी ज्यादा अच्छी है, तो उसमें मुझे कोई problem नहीं है। तो कोई reporting में गलती मत करना। लेकिन भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। विशेषताओं से भरा हुआ देश है। देश की एकता आपके लिए खबर है और छपने के तुरंत बाद आप दूसरी खबर की खोज में लगे हो। लेकिन कभी-कभी वो ऐसे गहरे घाव देती है। इसका मतलब ये नहीं है कि ये पाप और लोग नहीं करते हो सकता है कि आप लोगों से ज्यादा हम करते हैं, हमारे बिरादरी वाले। लेकिन ये चिंता का विषय है कि हम देश की एकता को बढ़ाने वाले चीजों पर बल कैसे दें। मैं उदाहरण देता हूं। और मैं गलत हूं तो यहां पर काफी लोग ऐसे बैठे हैं कि अभी तो नहीं कहेंगे, लेकिन महीने के बाद कहेंगे। पहले कोई accident होता था तो खबर आती थी कि फलाने गांव में accident हुआ एक truck और साइकल में, साइकल वाला injure हो गया, expire हो गया। धीरे –धीरे बदलाव आया। बदलाव ये आया फलाने गांव में दिन में rash driving के द्वारा, शराब पिया हुआ ड्राइवर, निर्दोष आदमी को कुचल दिया। धीरे – धीरे रिपोर्टिंग बदला। बीएमडब्ल्यू कार ने एक दलित को कुचल दिया। सर मुझे क्षमा करना वो बीएमडब्ल्यू वाले कार को मालूम नहीं था कि वो दलित थे जी। लेकिन हम आग लगा देते थे। Accidental reporting होना चाहिए होना चाहिए? होना चाहिए। अगर हैडलाइन बनाने जैसा है तो हैडलाइन बना दो।

बजट आता है बजट का reporting क्या करना है कि भई सरकार का बजट आया deficit है या नहीं है। दो हजार करोड़ का टैक्स लगाया, हजार करोड़ का लगाया। ये न्यूज है। लेकिन हमें न्यूज नहीं पढ़ने को मिला। न्यूज मिलता है मोदी सरकार का कमरतोड़ बजट! मोदी सरकार का उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रखकर के बजट! खैर ये बातें तो आप भी समझते हैं मैं भी समता हूं। लेकिन ये कोई आलोचना के लिए नहीं है। हमारे लिये बहुत आवश्यक है।

इतने बड़े देश को सरकारों से नहीं चलता है जी। जितनी संस्थाएं देश को एकजुट रख सकती हैं। जितनी संस्थाएं देश को आगे बढ़ा सकती हैं। हम सब मिलकर करेंगे। कोई कारण नहीं है। हमारा देश पीछे रह सकता है। कोई कारण नहीं है दुनिया को हम कुछ दे नहीं सकते। और ऐसे नौजवान जिन्होंने पत्रकारिता को अपना धर्म मानकर के उत्तम से उत्तम प्रकार से अपने जीवन की शुरुआत की है। उनको मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। और उनसे प्रेरणा पाकर के नई पीढ़ी भी तैयार होगी। उनको भी मेरी शुभ कामनाएं है। भाई विवेक ने मुझे बुलाया। परिवारजनों के साथ मेरा नाता बहुत पुराना है। लेकिन आज इस अवसर पर आने का सौभाग्य मिला। मैं परिवार को बहुत – बहुत आभारी हूं। धन्यवाद।

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