पीटीआई के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के साक्षात्कार का मूल पाठ :
प्रश्न 1: आपकी सरकार का एक साल पूरा हुआ है, संक्षेप में अपना अनुभव बतायें।
उत्तर: जब मैंने अपना कार्यभार संभाला था, प्रशासनिक अधिकारी पूरी तरह से हतोत्साहित थे और फैसले लेने में डरते थे। वहीं कैबिनेट व्यवस्था भी बेहाल हो चुकी थी, अतिरिक्त संवैधानिक संस्थाएं सरकार के बाहर होने के बाद भी सरकार पर हावी थी। राज्य और केंद्र के बीच तनातनी का माहौल था, विदेशियों के साथ-साथ देश के लोगों का भी देश की सरकार पर से भरोसा उठ गया था। ऐसे में इस माहौल को बदलना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी और लोगों में एक बार फिर से भरोसा और आशा लाने का मैंने पूरा प्रयास किया है।
प्रश्न 2: आप जब प्रधानमंत्री बने थे तो आपने कहा था कि मैं दिल्ली में नया हूं और इसे समझने की कोशिश कर रहा हूं, क्या आप दिल्ली को समझ गये हैं?
उत्तर: जब मैंने दिल्ली कहा था तो मेरा तात्पर्य था केंद्र सरकार, मेरा मानना है कि दिल्ली उसी तरह से काम करती है जैसे यहां के नेता चाहते हैं। मेरी सरकार ने दिल्ली में काम का माहौल बनाया है और सरकार अब कहीं ज्यादा सक्रिय और पेशेवर है। जब मैंने कार्यभार संभाला था तो सत्ता के गलियारे लॉबिंग की गिरफ्त में थे और ऐसे में मेरा उद्देश्य इस गलियारे को साफ करना था। यह प्रक्रिया थोड़ा समय जरूर लेगी लेकिन इसका फायदा लोगों को लंबे समय तक होगा।
प्रश्न 3: तो अब तक आपने क्या समझा है?
उत्तर: मुझे यह अभी भी नहीं समझ आया कि जो पार्टियां पहले राज्यों में भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन की पक्षधर थीं वो दिल्ली में बैठने के बाद अचानक इसका विरोध कैसे करने लगी।
प्रश्न 4: पिछले एक साल के बाद क्या आपको ऐसा लगता है कि आपने जो किया, उससे बेहतर या अलग किया जा सकता था या होना चाहिए था?
उत्तर: मेरे पास दो विकल्प थे, एक तो यह कि क्रमबद्ध तरीके से मैं सरकारी तंत्र को सही करता, इसकी कमियों को दूर करता जिससे कि देश के लोगों को लंबे समय तक इसका लाभ हो। जबकि दूसरा विकल्प यह था कि मैं सरकार को मिले प्रचंड बहुमत के बाद लोकलुभावनी योजनाएं शुरु कर जनता को बेवकूफ बना मीडिया की सुर्खियों में बना रहता। दूसरा विकल्प काफी आसान था और जनता इसकी आदि हो चुकी थी लेकिन मैंने पहले विकल्प को चुना और सरकारी तंत्र को दुरुस्त और मजबूत करने का काम शुरु किया। लेकिन अगर मैंने लोकलुभावन वाला रास्ता चुना होता तो मैंने निःसंदेह जनता का भरोसा तोड़ा होता।
प्रश्न 5: एक साल के कार्यकाल के दौरान आपने कई योजनाएं जैसे स्वच्छ भारत, स्कूलों के लिए शौचालय, जनधन, गरीबों के लिए बीमा, पेंशन योजना आदि शुरु की। अब भविष्य के लिए आपकी क्या योजना है?
उत्तर: पहले तो मैं कहना चाहूंगा कि स्वच्छ भारत और स्कूलों में शौचालय सिर्फ सफाई के लिए नहीं हैं। बल्कि शौचालय की व्यवस्था होना महिलाओं के लिए सम्मान से जीने के लिए न्यूनतम आवश्यकता है जिसे पूरा करना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन दुर्भाग्यवश आजादी के इतने साल बाद भी हम इसे नहीं कर पाए हैं।
हमारा आने वाला समय महिलाओं, किसानों शहरी गरीबों और बेरोजगारी पर केंद्रित होगा। जो भी हमने शुरु किया है उसे आगे ले जाने के साथ-साथ इसे गांवों और निकायों तक पहुंचाने की जरूरत है। हमने अहम मुद्दों जैसे बिजली, स्वच्छ शहर, स्वच्छ नदियां, पानी आदि की समस्याओं को खत्म करना है। हमें अपने सुधार जारी रखने होंगे क्योंकि हम पांच करोड़ लोगों को घर देने की योजना को साकार करना चाहते हैं। हमें देश के हर क्षेत्र के लोगों, मुख्य रुप से पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को विकास के समान पैमाने पर लाना होगा।
हमें शैक्षणिक संस्थायों, कर्मचारियों और काम करने वाले लोगों की क्षमता का विकास करना है। हमें शोध के क्षेत्र में विकास करना है, हमारे देश के लड़के और लड़कियां अन्य देशों में बहुत बेहतर काम कर रहे हैं लेकिन हम उन्हें अपने देश में रोकने में विफल हुए हैं। हमने इसके लिए अटल इनोवेश मिशन और सेल्फ इंफ्लायमेट और टैलेंट यूटीलाइजेशन की योजना शुरु की है जिससे ऐसे युवाओं को मदद मिल सके।
प्रश्न 6: आप आर्थिक सुधारों में तेजी लाना चाहते थे, लेकिन सुधारों से जुड़े भूमि अधिग्रहण बिल, जीएसटी को पास कराने में आपको समस्याएं आ रही हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसी बाधाओं से देश का नुकसान हो रहा है? ऐसे में जो लोग इसका विरोध कर रहे, उन्हें आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: जीएसटी और भूमि अधिग्रहण बिल देश के लिए बहुत फायदेमंद हैं। सभी पार्टियों को इसका मुख्य उद्देश्य समझना चाहिए और अपने राजनैतिक मकसद को किनारे रखकर इसका समर्थन करना चाहिए। देश को लंबे विकास के लिए तैयार करना है। राज्य जीएसटी के पक्ष में हैं जोकि हमारे संघीय ढांचे की मजबूती को दिखाता है और इसे लोकसभा में पास भी कर दिया गया है। ऐसे में बस कुछ समय की ही बात है जब ये बिल पास हो जाएंगे।
प्रश्न 7: अगर ये सुधार तेजी से आगे नहीं बढ़ाये गए तो इससे खासकर उन विदेशी निवेशकों को क्या संदेश जाएगा, जिन्हें आप देश में लाने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं?
उत्तर: दिल्ली में लोगों की एक अनूठी सोच है कि विकास संसद में नये कानूनों के बनने से जुड़ा है। जबकि हकीकत यह है कि विकास मुख्य रूप से उनसे जुड़ा है जिन्हें इसकी जरूरत है और इसे कई स्तर पर बिना नया कानून बनाये सरकार के बेहतर कामकाज के जरिए पहुंचाया जा सकता है। हमने सुधार के लिए कई अहम कदम उठाये हैं जैसे डीजल के दामों से नियंत्रण हटाना, एलपीजी की डायरेक्ट सब्सिडी, एफडीआई की सीमा बढ़ाना, रेलवे में विकास आदि। हकीकत यह है कि विकास को काफी रफ्तार के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है, बल्कि एफडीआई मे 39 फीसदी की बढ़ोत्तरी इसका सूचक है कि विकास की रफ्तार में तेजी आई है। अप्रैल 2014 की तुलना में फरवरी 2015 में एफडीआई में निवेश 39 फीसदी बढ़ा है।
प्रश्न 8: भविष्य में आप किन सुधारों की योजना बना रहे हैं?
उत्तर: हमने जो सुधारात्मक फैसले पिछले एक साल में लिये हैं, उस पर हमें देशभर की जनता से अच्छा जवाब मिल रहा है, भारत अब निवेश के लिए बेहतर स्थान बनकर उभरा है जिसने हमें ऐसे कदम उठाने का भरोसा दिया है। हमारा अगला फोकस होगा, प्रो एक्टिव, प्रो पीपुल और गुड गवर्नेंस रिफॉर्म। वहीं हमारा मुख्य एजेंडा यह रहेगा कि केंद्र और राज्यों के बीच और बेहतर समन्वय स्थापित करके विकास के लिए मिलकर काम कर सके।
प्रश्न 9: आपने पहले ही कई क्षेत्रों में एफडीआई के दरवाजे खोल रखे हैं और किन क्षेत्रों में आप एफडीआई की इजाजत देने की योजना बना रहे हैं?
उत्तर: हमने जो कदम पिछले एक साल में उठाये हैं उसने देश के प्रति दुनिया का नजरिया बदला है और निवेश बढ़ा है। हमारे देश में रोजगार की क्षमता बहुत अधिक है और स्थानीय प्रतिभा भी बहुत है, देश में ऐसे में एफडीआई को बढ़ावा देने वाला क्षेत्र शोध और विकास का क्षेत्र होगा। हमने राष्ट्रीय अवसंरचना निवेश फंड की शुरुआत की है। यह कदम विदेशी निवेशकों को इंफ्रास्ट्रक्टर के क्षेत्र में निवेश के लिए आकर्षित करेगा।
प्रश्न 12: आर्थिक नीति के मामले में, क्या भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच तालमेल है? मैं यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि रिजर्व बैंक के गवर्नर द्वारा कभी-कभी ऐसी टिप्पणियां की जाती हैं जो वित्त मंत्रालय के साथ अलगाव को दिखाता है।
उत्तर: मैं इस बात से हैरान हूँ कि पीटीआई जैसी महत्वपूर्ण और विश्वसनीय मीडिया एजेंसी अलग-अलग संदर्भों में की गई टिप्पणी के आधार पर उसका गलत निष्कर्ष निकाल रही है। भारतीय रिजर्व बैंक की अपनी कार्यात्मक स्वायत्तता है जिसका सरकार और वित्त मंत्रालय हमेशा सम्मान करते हैं।
प्रश्न 11: इस वित्तीय वर्ष में आपने क्या लक्ष्य निर्धारित कर रखा है?
उत्तर: पिछले एक साल का मेरा अनुभव काफी उत्साहवर्धक और हिम्मत देने वाला था। देश के सवा सौ करोड़ लोगों ने मुझमें भरोसा दिखाया है जिसके चलते सभी आर्थिक सूचकों ने उम्मीद से अच्छा संकेत दिया है। मैं अपनी सरकार की क्षमता को कम नहीं आंकना चाहता हूं और मुमकिन है मैं जो भी आंकड़ा दूं उससे कहीं अधिक हम लक्ष्य को हासिल करें।
प्रश्न 12: विपक्ष आरोप लगा रहा है कि भूम अधिग्रहण बिल कॉर्पोरेट की मदद करेगा और आप इसे गरीब किसानों एवं ग्रामीणों के हित में बता रहे हैं। लेकिन विपक्ष अभी भी अड़ा हुआ है। क्या आपको लगता है कि विपक्ष इसका विरोध करके सही कर रहा है?
उत्तर: मैं राजनैतिक कीचड़ उछालने में नहीं पड़ना चाहता हूं। हालांकि मैं यह पूछना चाहता हूँ कि जिन लोगों ने कोयला खानों और खनिज संसाधनों से समृद्ध वन भूमि को अपने पसंदीदा कंपनियों को आवंटित कर दिया, क्या उनके पास उस सरकार पर सवाल खड़े करने का नैतिक अधिकार है जो समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए निरंतर काम कर रही है। मैं आश्चर्यचकित हूं देश को 60 सालों तक चलाने के बाद लोग ऐसे सवाल पूछते हैं, जो लोग इस बिल पर सवाल उठा रहे हैं उन्हें सरकार के कामकाज और प्रशासन की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है। हर कोई जानता है कि जमीन का मामला केंद्र सरकार का नहीं है और केंद्र को जमीन की कोई जरूरत नहीं होती है। जमीन राज्यों का मामला होता है जिसपर केंद्र का कोई अधिकार नहीं होता है। पिछली सरकार ने 120 साल पुराने भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन किया था जिसपर संसद में 120 मिनट तक भी चर्चा नहीं हुई थी। हमने सोचा था कि यह बिल किसानों के लिए लाभदायक होगा इसलिए हमने उस वक्त भी इस बिल का समर्थन किया था, लेकिन उसके बाद कई जगहों से इस बिल को लेकर शिकायत आई। हम राज्यों की इच्छाओं का अपमान नहीं कर सकते हैं। किसी को अपनी गलती सुधारने में अभिमानी नहीं होनी चाहिए। हम इस बिल की खामियों में सुधार करना चाहते हैं वो भी राज्यों की सलाह पर। लेकिन बावजूद इसके अगर कोई राजनीति लाभ न देखकर किसानों के हित से जुड़े सुझाव देगा तो हम उसे स्वीकार करेंगे।
प्रश्न 13: भूमि अधिग्रण विधेयक पर अभी भी टकराव बना हुआ है। क्या आप विधेयक पर विपक्ष के विचारों को समायोजित करने के लिए तैयार हैं? इस पर आप विपक्ष की किन-किन मांगों को स्वीकार करेंगे?
उत्तर: गांव, गरीब, किसान: अगर इनसे जुड़े कोई भी सुझाव होगें और राष्ट्रहित में होंगे तो हम उन सुझावों को स्वीकार करेंगे।
प्रश्न 14: पिछले एक साल में जब भी अल्पसंख्यक समुदाय या संस्थाओं पर हमला हुआ है तो आपकी सरकार और संघ परिवार को कई बार निशाना बनाया गया है। यहाँ तक कि व्यक्तिगत रूप से आपको भी निशाना बनाया गया है? इसपर आपको क्या कहना है?
उत्तर: किसी भी संस्था या व्यक्ति के खिलाफ कोई भी आपराधिक कृत्य स्वीकार नहीं किया जाएगा और उसकी निंदा होगी। हमलावरों को हर हाल में सजा मिलेगी। मैंने पहले भी कहा है और फिर से कहता हूँ: किसी भी संप्रदाय के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस पर मेरा मत बिल्कुल साफ है: सबका साथ सबका विकास। हम बिना किसी जातिगत या सांप्रदायिक भेदभाव के 1.25 अरब भारतीयों के साथ खड़े हैं और हम उनमें से हर एक की प्रगति के लिए काम करेंगे।
प्रश्न 15: आपने पिछले एक वर्ष में कई देशों की यात्रा की है। विपक्ष यह कहकर आपकी आलोचना करता है कि आप शायद ही देश में रहते हैं। इस आलोचना पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
उत्तर: हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। हम एक ऐसा भारत नहीं चाहते हैं जो सबसे अलग रहे। किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का 17 वर्षों में नेपाल का दौरा नहीं करना कोई अच्छी स्थिति नहीं है। क्योंकि हम बड़े देश हैं, सिर्फ इसलिए हम अभिमान करें और सोचें कि हम दूसरों को अनदेखा कर सकते हैं, यह नहीं हो सकता। हम एक अलग समय में रह रहे हैं। आतंकवाद एक वैश्विक मुद्दा है और दूरदराज के देशों से भी आ सकता है। अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों और संगठनों, जैसे - विश्व व्यापार संगठन निर्णय लेते हैं जो हमें आपस में बांधते हैं और अगर हम ऐसे सम्मेलनों में शामिल नहीं होंगे तो तो वहां लिए गए निर्णयों से हमारा नुकसान हो सकता है।
लोकतंत्र में हर किसी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है। आम तौर पर, विपक्ष को मीडिया में ज्यादा तवज्जो मिलती है और यहां तक कि लोग भी सरकार के खिलाफ चीजें सुनने में दिलचस्पी लेते हैं। जब से मैंने अपना कार्यभार संभाला है, विपक्ष में मेरे दोस्त मेरी विदेशी यात्राओं के बारे में बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। अगर मेरी यात्राएं असफल रहती या हमसे कोई गलती होती तो वे विशिष्ट मुद्दों पर अपनी टिप्पणी करते। चूंकि कोई विशेष मुद्दा नहीं है इसलिए वे दिनों की संख्या और देशों की संख्या जोड़ रहे हैं। लोगों की परिपक्वता देखिये: हाल के सभी सर्वेक्षणों में हमारी विदेश नीति को सबसे ज्यादा सराहा गया है। जब विरोधी एक ही मुद्दे पर लगातार ध्यान दे रहे हैं तो यह सफलता का एक निश्चित संकेत है!
प्रश्न 16: एक तरफ विपक्ष आप पर कॉरपोरेट्स का समर्थन करने का आरोप लगा रही है, वहीँ कुछ उद्योगपति, जैसे दीपक पारेख यह कह रहे हैं कि उद्योग के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा है। इसपर आपका क्या कहना है?
उत्तर: इसका जवाब आपके प्रश्न में ही निहित है। अगर विपक्ष हम पर कॉर्पोरेट का समर्थन करने का आरोप लगा रहा है लेकिन उद्योगपति कह रहे हैं कि हम उनकी मदद नहीं कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि हमारे निर्णय और पहल लोगों के हित में हैं और इससे देश को लंबे समय तक फायदा होगा।
प्रश्न 17: राहुल गांधी हाल में सक्रिय हुए हैं और उन्होंने किसानों के मुद्दों के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण विधेयक का मुद्दा उठाया है। उन्होंने आपकी सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ कहा है। इस पर आपकी क्या टिप्पणी है?
उत्तर - कांग्रेस को जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा है और वह 50 से कम सीटों पर सीमित हो गई है। एक वर्ष के बाद भी वे अपनी इस हार को पचा नहीं पा रहे हैं। जनता ने उन्हें उनके पापों और कार्यों की सजा दी है। हमने सोचा कि वे इससे सीखेंगे लेकिन ऐसा लग रहा है कि वे उस कहावत को साबित कर रहे हैं कि अगर “pro” का उल्टा “con” है तो “Progress” का उल्टा “Congress” है।
प्रश्न 18: हाल ही में कैग ने देश की सुरक्षा तैयारियों पर सवाल खड़े किये हैं। यह बात सामने आई है कि अगर युद्ध हुआ तो देश के पास सिर्फ 10-12 दिन के हथियार हैं। यह रिपोर्ट 2013 के आंकड़ों पर आधारित थी। आप इस पर क्या कहेंगे?
उत्तर: राष्ट्रीय सुरक्षा एक गंभीर मामला है और यह सही माध्यम नहीं है ऐसे मामलों पर चर्चा का। हालांकि मैं देश के लोगों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हमारा देश जल, थल और वायु सेना और तटरक्षक बल के वीर जवानों के सुरक्षित हाथ में है।
प्रश्न 19: चुनाव अभियान के दौरान एक वादा यह भी किया गया था कि नई सरकार काले धन पर कड़ी कार्रवाई करेगी। इस मामले में अभी तक क्या कोई प्रगति हुई है?
उत्तर: सत्ता में आने के बाद इस सरकार ने जो सबसे पहला निर्णय लिया, वह था काले धन पर विशेष जांच दल का गठन। वर्षों से यह अटका पड़ा था और हमने इसे मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में कार्यान्वित किया। बाद में हम नया विधेयक लेकर आए जिसके अंतर्गत विदेश में काला धन रखने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाई होगी और इसमें कठोर दंड का प्रावधान भी है। नवंबर 2014 में जी-20 शिखर सम्मेलन में हमारी सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप एक समझौता हुआ जिसके अंतर्गत कर चोरी पर अंकुश लगाने एवं खासकर देशों के बीच जानकारी का आदान-प्रदान करने की बात निर्धारित है। इससे हमें काले धन का पता लगाने में मदद मिलेगी। ये बहुत ही मजबूत और ठोस कदम हैं।
प्रश्न 20: सरकार के कार्य करने के तरीके में बदलाव लाने के लिए आपने क्या प्रयास किये?
उत्तर: हमने सरकारी कर्मचारियों को यह याद दिलाने की कोशिश की है कि वे जनता के सेवक हैं। हम केन्द्र सरकार के कार्यालयों में अनुशासन लेकर आये हैं। मैंने एक छोटा सा काम किया, बाहर से देखने पर बहुत छोटा दिखता है। मैं चाय पर अधिकारियों के साथ नियमित रूप से बातचीत करता हूँ; यह मेरे काम करने की शैली का हिस्सा है। मैं मानता हूँ कि देश की प्रगति तभी होगी जब हम एक टीम के रूप में काम करेंगे। प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक टीम है। कैबिनेट मंत्रियों और राज्य मंत्रियों की एक टीम है। केन्द्र और राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम है। देश का सफलतापूर्वक विकास करने का यही एकमात्र तरीका है। हमने इसके लिए कई कदम उठाए हैं और योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग का निर्माण इस दिशा में एक बड़ा कदम है जिसमें सभी राज्यों की पूर्ण भागीदारी है।
प्रश्न 21: इस बात की भी आलोचना हो रही है कि सभी शक्तियां प्रधानमंत्री कार्यालय तक ही सीमित हो गई हैं? इस बात में कितनी सच्चाई है?
उत्तर: आपका यह प्रश्न करना तब ठीक होता जब एक असंवैधानिक प्राधिकरण संवैधानिक प्राधिकरण के ऊपर होता और प्रधानमंत्री कार्यालय के ऊपर उसका अधिकार होता। प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय संवैधानिक योजना का ही भाग है, न कि इससे बाहर है। हमने अलग-अलग मंत्रालयों को प्रदत्त अधिकारों को और बढ़ा दिया है ताकि कई निर्णय जो इससे पहले प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के समक्ष आते थे, उसे अब मंत्रालय स्वयं भी ले सकते हैं। मंत्रालयों के लिए वित्तीय प्रतिनिधिमंडल को तिगुना कर दिया गया है। राज्यों के अधिकारों को बढ़ा दिया गया है और नीति आयोग के माध्यम से राज्य शासन में पूर्ण भागीदार बन गए हैं। विभिन्न मंत्रालयों में सभी सफल और परिवर्तनकारी प्रशासनों में घनिष्ठ समन्वय की जरूरत है और इसमें कुछ भी अलग नहीं है। हमने सरकार के कार्यात्मक नियमों में कोई बदलाव नहीं किया है और निर्णय वही लेते हैं जिन्हें इसके लिए अधिकृत किया गया है।
प्रश्न 22: यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्षों में शासन की बदतर स्थिति के बाद लोगों ने बदलाव के लिए आपको एक भारी जनादेश दिया। एक साल के बाद अभी यह बातें हो रही हैं कि आप सही तरीके से ‘अच्छे दिन’ नहीं ला पाए हैं। क्या आप मानते हैं कि लोग शायद जल्दबाजी कर रहे हैं?
उत्तर: 21वीं सदी को भारत की सदी होना चाहिए था लेकिन 2004 से 2014 तक गलत सोच और गलत निर्णयों ने देश को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। हर दिन एक नई बुरा दिन था और नए-नए घोटाले सामने आ रहे थे। लोग गुस्से में थे। आज एक वर्ष के बाद, यहां तक कि हमारे विरोधी भी यह नहीं कहते कि हमने बुरा काम किया है। आप ही बतायें कि एक भी घोटाला नहीं हुआ है, क्या ये अच्छे दिन नहीं है?
प्रश्न 23: देश में कृषि संकट है। किसानों की आत्महत्या का मुद्दा राजनीतिक परिदृश्य पर छाया हुआ है। सरकार ने किसानों की इस स्थिति से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। इस संबंध में सरकार की और क्या योजनाएं हैं?
उत्तर: किसानों की आत्महत्या कई वर्षों से गंभीर चिंता का विषय रहा है। लेकिन ऐसी तुलना करना कि किस सरकार के अंतर्गत कितनी आत्महत्याएं हुईं, इससे समस्या का हल नहीं निकलेगा। किसी भी पार्टी की सरकार के लिए, और हम में से हर एक के लिए, यहाँ तक कि एक आत्महत्या भी चिंताजनक है। मैंने बहुत दुख के साथ संसद में कहा था कि सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से कुछ भी नहीं होगा और संसद की पवित्रता का सम्मान करते हुए हमें सामूहिक रूप से इस समस्या का हल ढूंढने की जरूरत है। हमें यह देखना होगा कि हमसे क्या गलती हुई है और इतने वर्षों से इस समस्या को हल करने में हम सक्षम क्यों नहीं हैं। किसानों के संतोष और उनकी सुरक्षा के लिए मैंने सभी दलों से उनके सुझाव मांगे हैं। मैं हमारे किसानों को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि यह सरकार उनके कल्याण के लिए सबकुछ करेगी और उसमें कभी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
प्रश्न 24: लोकसभा चुनाव में भारी शिकस्त मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी बहुत देर बाद सक्रिय हुई है जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों ने सरकार पर हमला किया है। श्रीमती गांधी ने आपकी सरकार पर संसद में ‘जिद्दी अहंकार’ दिखाने और प्रशासनिक पारदर्शिता बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है। उन्होंने कहा कि आपकी सरकार ‘व्यक्ति-विशेष’ द्वारा चलाई जा रही है। इसपर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर: शायद वह इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि पहले अतिरिक्त संवैधानिक अधिकारियों के पास सत्ता की शक्तियां थीं जबकि अब सत्ता केवल संवैधानिक साधनों के माध्यम से चलाई जाती हैं। अगर आरोप यह है कि हम संवैधानिक माध्यमों से काम कर रहे हैं और किसी भी अतिरिक्त संवैधानिक अधिकारियों की नहीं सुन रहे हैं तो मैं इस आरोप के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
प्रश्न 25: गैर-सरकारी संगठनों पर ‘शिकंजा कसने के लिए’ भी आपकी सरकार की आलोचना की जा रही है। अमेरिका ने कहा है कि इस तरह के कार्यों से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘नकारात्मक’ प्रभाव पड़ सकता है। क्या इसे एक चेतावनी समझा जाए?
उत्तर: मौजूदा विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम 2010 में यूपीए सरकार द्वारा पारित किया गया था, न कि इस सरकार द्वारा। पिछली सरकार द्वारा पारित कानून को लागू करने के लिए ही ये कदम उठाये गए हैं। कानून के विपरीत कोई कार्रवाई नहीं की गई है। कोई देशभक्त नागरिक इस पर आपत्ति नहीं कर सकता है।
प्रश्न 26: आप सहकारी संघवाद के बारे में बात करते रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मुख्यमंत्रियों के साथ काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा है? वे इस सहकारी संघवाद को मजबूत बनाने में कितना सहयोग कर रहे हैं?
उत्तर: कई वर्षों से केंद्र के साथ राज्यों के मुख्यमंत्रियों का जो अनुभव रहा है उससे अविश्वास का माहौल बन गया है। “दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है।” पिछले दशकों से जो परंपरा चली आ रही है उस वजह से अभी भी केंद्र और राज्यों के बीच आपसी संदेह बना हुआ है। फिर भी मैं यह कह सकता हूँ कि विश्वास बनाने की दिशा में एक अच्छी शुरुआत हुई है। देश को आगे ले जाने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच एक जीवंत भागीदारी के निर्माण में नीति आयोग एक अहम भूमिका निभा रहा है। भागीदारी और समूह में काम करने की यह भावना धीरे-धीरे बढ़ रही है और आने वाले समय में हमें इसका परिणाम देखने को अवश्य मिलेगा।