जलवायु पर
अपने आरंभिक संबोधन को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने बहुत ही सरल तरीके से कहा कि उन्होंने न्यू इंडिया के लिए दृष्टि और 5000 वर्ष पूर्व लिखे गए वेदों के बारे में बात की है। उन्होंने कहा कि वेदों में कहा गया है कि प्रकृति के दोहन के लिए अनुमति है लेकिन प्रकृति के शोषण के लिए नहीं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि तीन दिन पहले जर्मनी में उनसे यह सवाल पूछा गया था और उस समय उन्होंने कहा था कि चाहे पेरिस समझौता हो अथवा नहीं, भारत में हमारे बच्चों को स्वच्छ हवा के साथ स्वच्छ धरती सौंपने की परंपरा रही है ताकि वे भी अच्छी तरह से रह सकें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यहां मुद्दा एक तरफ अथवा दूसरे तरफ होने का नहीं है, बल्कि उन पीढि़यों के पक्ष में सोचने की जरूरत है जिन्हें पैदा होना अभी बाकी है।
भारत-रूस संबंध और चीन पर
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया अब द्विध्रुवीय नहीं है जैसा वह कुछ दशक पहले तक थी। उन्होंने कहा कि जब हम वैश्विक संबंधों पर चर्चा करते हैं तो हमें अवश्य समझना चाहिए कि पूरी दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी और एक-दूसरे पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि हरेक देश कुछ मायने में दूसरे से जुड़ा है और उनके बीच सहयोग के साथ-साथ मतभेद के भी कई मुद्दे हो सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने दोहराते हुए कहा कि भारत एवं रूस के बीच संबंध मजूबत हैं और इस संबंध को समझने के लिए, और यह देखने के लिए कि हम किस प्रकार आगे बढ़ते हैं, पूरी दुनिया सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा को ध्यानपूर्वक पढ़ेगी।
चीन के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद है लेकिन पिछले चालीस वर्षों में सीमापार से एक भी गोली नहीं चली। प्रधानमंत्री ने कहा कि आर्थिक संबंधों का विस्तार हो रहा है। उन्होंने कहा कि दो देशों के बीच संबंध को किसी तीसरे के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स में सभी सदस्य देश साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इस संदर्भ में उदाहरण के रूप में उन्होंने ब्रिक्स बैंक का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सबका साथ, सबका विकास के मूलमंत्र में विश्वास करता है। उन्होंने यह भी कहा कि हम विकास की राह पर सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं।
आतंकवाद पर
प्रधानमंत्री ने कहा कि अस्सी और नब्बे के दशक में दुनिया आंतकवाद और इसके खतरे को पूरी तरह नहीं समझ पाई थी। उन्होंने कहा कि भारत पिछले चालीस वर्षों से सीमापार आतंकवाद का शिकार होता रहा है। उन्होंने कहा कि 9/11 के बाद ही दुनिया ने आतंकवाद की भयावहता और इस तथ्य को समझा कि उसकी कोई सीमा नहीं होती।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समय की जरूरत है कि आतंकवाद के खतरों से दुनिया को बचाने के लिए सभी मानवतावादी ताकत एकजुट हों।
प्रधानमंत्री ने खेद जताते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र चालीस साल में भी आतंकवाद की परिभाषा को लेकर कोई ठोस समझौते तक नहीं पहुंच पाया। उन्होंने कल राष्ट्रपति पुतिन के इस तर्क का स्वागत किया कि वह इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाएंगे।
आतंकवादी हथियारों का उत्पादन नहीं कर सकते और न ही वे मुद्रा की छपाई कर सकते हैं। इस बात का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जाहिर तौर पर आतंकवादी इन वस्तुओं को कुछ खास देशों से हासिल करते हैं। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया को अवश्य एहसास होना चाहिए कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो मानवता के लिए चिंताजनक है और उसके बाद ही हम आतंकवाद से निपटने में समर्थ होंगे।
वैश्विक व्यापार पर
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत एक खुली अर्थव्यवस्था में विश्वास करता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यापार में सभी देश एक-दूसरे के लिए समायोजन करते हैं और उन्हें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।