प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि दी
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम “राष्ट्रपति” से पहले “'राष्ट्र-रत्न” थे: प्रधानमंत्री मोदी
भारत सरकार रामेश्वरम, तमिलनाडु में डॉ कलाम के लिए एक स्मारक का निर्माण करेगी: प्रधानमंत्री
डॉ कलाम जीवन में हमेशा नई चुनौतियों की तलाश में रहते थे: प्रधानमंत्री मोदी
डॉ कलाम हमेशा चाहते थे कि उन्हें एक शिक्षक के रूप में याद किया जाए: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
डॉ कलाम ने गरीबों और किसानों के कल्याण के लिए काम किया: प्रधानमंत्री मोदी
डॉ कलाम की जयंती के अवसर पर हमें यह सोचना चाहिए कि हम भारत में नवाचार को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं: प्रधानमंत्री
डॉ कलाम का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में डीआरडीओ भवन में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिमा का अनावरण किया
प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ कलाम पर स्मारक डाक टिकट जारी किये

 

आज 15 अक्‍तूबर, श्रीमान अब्‍दुल कलाम जी की जन्‍म जयंती पर आप सब इकट्ठे हुए है। आज DRDO के परिसर में उनकी एक प्रतिमा का अनावरण करने का मुझे सौभाग्‍य मिला। यह बात सही है कि कलाम साहब का जीवन इतना व्‍यापक, विशाल और गहरा रहा है कि उनको याद करने का गर्व होता है, लेकिन साथ में एक कसक भी रहती है कि काश! वो हमारे साथ होते तो। तो ये जो कमी महसूस होती है, इसको कैसे भरना है, ये हम सब के लिए एक चुनौती है और मुझे विश्‍वास है कि अब्‍दुल कलाम जी के आशीर्वाद से उन्‍होंने हम देशवासियों को जो शिक्षा-दीक्षा दी है, उससे हम अवश्‍य उसको पूरा करने का भरपूर प्रयास करेंगे और वही उनको सबसे बड़ी अंजलि होगी।

वे राष्‍ट्रपति बने, मैं समझता हूं कि उससे पहले वे राष्‍ट्र रत्‍न थे। ऐसा बहुत कम होता है कि एक व्‍यक्‍ति पहले राष्‍ट्र रत्‍न बने और बाद में राष्‍ट्रपति पद को स्‍वीकार करे और वह उनके जीवन की ऊंचाइयों से जुड़ा हुआ था। भारत सरकार ने तय किया है कि जहां पर उनका जन्‍म हुआ और जहां पर उनकी अंत्‍येष्‍टि हुई, उस गांव में एक आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दे, ऐसा स्‍मारक बनाया जाएगा। सरकार ने already वो जमीन acquire कर ली है। मैंने मंत्रियों की एक कमेटी भी बनाई है जो आने वाले दिनों में इसका आखिरी रूप तय करके, ऐसा कैसा स्‍मारक हो जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहे और कलाम साहब का जीवन हमेशा-हमेशा हम सबके लिए मार्गदर्शक बनता रहे।



दो बातें जो कलाम साहब की स्‍वाभाविक नजर आती हैं – एक तो उनके बाल। दूर से भी किसी को पता चलता है कि अब्‍दुल कलाम जी जा रहे हैं। और कुछ न बनाया हो, सिर्फ उनके बालों को किसी ने पेंट किया तो कह देगा कि हां, बाकी चेहरा कलाम साहब का होगा। लेकिन साथ-साथ एक और भी बात थी। जैसे उनके बाल थे, वैसा उनके भीतर एक बालक था। तो उनके बाल और उनके भीतर का बालक, ये दोनों, मैं समझता हूं हमेशा-हमेशा जो उनके निकट गए हैं उनको याद रहता है। इतनी सहजता, इतनी सरलता।

आमतौर पर वैज्ञानिकों के विषय में एक सोच ऐसी रहती है कि वो बड़े गंभीर चेहरा, उदासीन, Lab में ही डूबे रहने वाले, साल में कितनी बार मुस्‍कुराए वो भी शायद हिसाब लगाना पड़े। लेकिन कलाम साहब, हर पल एक बड़े जीवंत व्‍यक्‍तिव नज़र आता था। मुस्‍कुराते रहना, दौड़ते रहना और। दो प्रकार के लोग होते हैं, एक वो होते हैं जो Opportunity खोजते हैं, एक वो होते हैं जो Challenge खोजते हैं। कलाम साहब Challenges की तलाश में रहते थे। कौन-से नए Challenge है? उस Challenge को कैसे उठा ले और उस Challenge को पार कैसे करे और यही उनके हर पल जीवन में रहता था। आखिर तक!

जब भी मेरा बहुत निकट संबंध रहा क्‍योंकि जब मैं मुख्‍यमंत्री था तब भी उनका गुजरात बार-बार आना होता था। अहमदाबाद से उनका विशेष लगाव था क्‍योंकि उनके career की पहली शुरूआत उन्‍होंने अहमदाबाद में शुरू की थी और विक्रम साराभाई के साथ उन्‍होंने काम किया। तो उसके कारण उनका लगाव भी गुजरात के साथ बहुत था। तो मेरा भी उस समय उनसे संबंध बहुत रहता था। कच्‍छ का भूकंप हो या आपत्‍ति की इतनी बड़ी घटना हो, वो आना, छोटी-छोटी चीजों में guide करना और उस समय भूकंप की परिस्‍थिति के पुनरनिर्माण के काम में विज्ञान और technology का सहारा कैसे लिया जाए ताकि relief तेज गति से हो, rehabilitation तेज गति से हो, reconstruction तेज गति से हो, ऐसी हर बारीक चीज में वो मार्गदर्शन करते थे वो सहायता करते थे।

जीवन भर उनकी एक विशेषता रही है और किसी ने उनको पूछा था कि आपको कैसे याद रखा जाए और उन्‍होंने जवाब में कहा था कि मुझे शिक्षक के रूप में याद रखा जाए। ये शिक्षक का तो सम्‍मान है लेकिन साथ-साथ उनके जीवन का conviction क्‍या था, commitment क्‍या था, उसका भी परिचायक था। उनको लगता है कि भई 5-50 व्‍यक्‍तियों का समूह जरूर कुछ कर दिखा सकता है। लेकिन भारत जैसे देश ने पीढ़ियों तक आगे बढ़ने के लिए, प्रभाव पैदा करने के लिए तेज गति से चलना है तो आने वाली पीढ़ियों को तैयार करना होगा और वो एक टीचर तैयार कर सकता है और ये उनके सिर्फ शब्‍द नहीं थे, उनके पूरे जीवन में ही नजर आता है।

राष्‍ट्रपति पद से मुक्‍ति के दूसरे दिन... ये छोटी बात नहीं है। इतने बड़े पद पर रहने के बाद कल क्‍या करूं, कल कैसा जाएगा, कल से कैसा होगा? आप सब को मालूम है जब अफसर retired होता है तो क्‍या हो जाता है। यानी आज कहां खड़ा है और दूसरे दिन वो अपने आपको कहां महसूस करता है, वो अपने आपको एक खालीपन महसूस करता है। एकदम से वो लगता है बस, अब जीवन का अंत शुरू हो गया है, ऐसा ही मान लेता है। दिमाग में retirement भर जाता है। कलाम साहब की विशेषता देखिए कि राष्‍ट्रपति पद, इतनी बड़ी ऊंचाई और निवृत्‍ति भी आदर्श और गौरव के साथ। दूसरे ही दिन जहाज पकड़ के चैन्‍नई जाना, चैन्‍नई में क्‍लासरूम में पढ़ाना शुरू करना। ये भीतर के commitment के बिना संभव नहीं होता है। एक व्‍यक्‍ति ने अपने जीवन में उसको inherent कर दिया होता है, तब होता है और जीवन का अंत भी देखिए। कहां रामेश्‍वरम्, कहां दिल्‍ली, कहां दुनिया में जय-जयकार और कहां नॉर्थ ईस्‍ट। किसी को कहा जाए कि नॉर्थ ईस्‍ट जाओ तो कहे अरे साहब, किसी और का भेज दो। ऐसा करो अगली बार मैं जाऊंगा इस बार जरा कोई और को। वहां पर इस उम्र में जाना और student के साथ अपने आखिरी पल बिताना। ये उनके भीतर का एक जो एक सातत्‍य था, एक commitment था, उसको प्रतिबिंबित करता है।

भारत शक्‍तिशाली हो, लेकिन सिर्फ शस्‍त्रों से शक्‍तिशाली हो ये कलाम साहब की सोच नहीं थी। शस्‍त्रों का सामर्थ्‍य आवश्‍यक है और उसमें कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए और उसमें उन्‍होंने जितना योगदान दे सकते थे, दिया। लेकिन वो इसे मानकर के चलते थे कि देश सरहदों से नहीं, देश कोटि-कोटि लोगों से पहचाना जाता है। देश की पहचान सीमाओं के आधार पर तय नहीं होती है। देश की ताकत उसके जन कैसे सामर्थ्‍यवान है, उस पर होती है और इसलिए कलाम साहब उन दोनों धाराओं को साथ लेकर के चलते थे कि एक तरफ innovation हो, research हो, रक्षा के क्षेत्र में भारत अपने पैरों पर खड़ा हो और Third World Countries, गरीब देशों का भी उपकारक हो, उस दिशा में भारत अपनी जगह बनाए और दूसरी तरफ भारत का मानव समुदाय संपन्‍न हो।

वे शिक्षा के बड़े आग्रही थे। वे हमेशा कहते थे, योग का महत्‍व समझाते थे और उसके साथ वो commitment भी था उनका। religion को spiritualism में convert करना चाहिए। spiritualism को प्राधान्‍य देना चाहिए। ये उनका conviction था। यानी, एक प्रकार से समाज जीवन में किन मूल्‍यों की आवश्‍यकता है, उन मूल्‍यों पर वो बल देते थे। शायद ये बड़ी हिम्‍मत का काम है, लेकिन वो करते थे। किसी भी समारोह में जाते थे और वहां student मिल गए तो फिर वो खिलते थे। उनका लगता था कि हां, एक ऐसे में बगीचे में आया हूं जहां ये फूल खिलने वाले हैं। उनको तुरंत feel होता था, एकदम से उनका natural connect होता था और ऐसे समारोह में वो बाद में संकल्‍प करवाते थे। एक-एक वाक्‍य बच्‍चों से बुलवाते थे। ये कठिन इसलिए है आज के जमाने में क्‍योंकि इस प्रकार की बात करो तो दूसरे दिन पता नहीं कितने-कितने विवाद खड़े हो जाते हो। लेकिन वे कभी इन चिंताओं में नहीं रहे। हर बार उस संकल्‍प को दोहराते रहे। क्‍या हम जब भी कलाम साहब को याद करेंगे, जहां भी कलाम साहब की चर्चा होगी, उन संकल्‍प के संबंध में, उसको लोगों में सार्वजनिक रूप से बार-बार कैसे लाए? उनका संकल्‍प था, जो हमें बताया जाता था, उसको चरितार्थ करना, ये हमारा दायित्‍व बनता है। उस दायित्‍व को पूरा करने के लिए हमारी नई पीढ़ी को हम कैसे तैयार करें? उस संकल्‍प को बार-बार दोहराते जाए कि ये परंपरा चलती रहे और चेतना जगाने का प्रयास निरंतर चलता रहे, उस दिशा में हम कैसे प्रयास करे।

आज विश्‍व में भारत अपना एक विशेष स्‍थान बनाता जा रहा है। दुनिया किसी जमाने में भारत को एक बड़े market के रूप में देखती थी। आज विश्‍व ने भारत को एक सहयात्री के रूप में देखना शुरू किया है। भारत की तरफ देखने का दुनिया का नजरिया बदला है। लेकिन आर्थिक संपन्‍नता ही या सिर्फ market ही हमें drive करेगा क्‍या?

आने वाले दिनों में हमारे पास innovation के लिए बहुत संभावनाएं हैं। Eight hundred million, Thirty Five से नीचे जनसंख्‍या जहां हो, 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 से नीचे हो। आज IT के कारण दुनिया में हमने अपनी जगह बना दी उसका कारण innovation था। हम innovation को बल कैसे दें। हम कलाम साहब की हर जन्‍म जयंती पर DRDO में एक ऐसा seminar organize कर सकते हैं क्या? एक दिन, दो दिन, तीन दिन जो भी हो इसमें young scientist हो, innovation करने वाले लोग हो या जिनका scientific temper का spark जिसके अंदर हो, ऐसे बच्‍चे हो। कभी स्‍कूल के बच्‍चों का एक-आध दिन कार्यकाल हो, कभी innovation में लगे हुए 35 से नीचे young scientist. इनको बुला करके इन्‍हीं विषयों पर सेमीनार हमेशा-हमेशा, कलाम साहब को याद करना मतलब innovation को promote करना। यह हमें परंपरा बना सकती है। तो उनकी जन्‍म जयंती को बनाने में हम एक नई जिम्‍मेदारी की ओर भी समाज को लेते चले जाएंगे और वह उनके लिए सबसे बड़ा संतोष का विषय बन सकता है, ऐसा मुझे लगता है।

दुनिया में अब भारत को उस विषय पर सोचने की आवश्‍यकता है कि हम विश्‍व को क्‍या दे सकते हैं। हम क्‍या बन सकते हैं? क्‍या हो सकते हैं? या कोई हमारे लिए क्‍या कर सकता है? उससे थोड़ा ऊपर जा करके थोड़ा हट करके हमारी वो ऐसी कौन सी विरासत है, जो हम विश्‍व को दे सकते हैं। और जो विश्‍व सहज रूप से स्‍वीकार करेगा और जो विश्‍व के कल्‍याण के लिए काम आयेगा। हमने उन पहलुओं पर धीरे-धीरे अपने आप को तैयार करना चाहिए।

आज पूरा विश्‍व cyber crime को ले करके बड़ा परेशान है। क्‍या हमारे नौजवान वो innovation करे, जिसमें cyber security की गारंटी के लिए भारत की पहल हो। भारत एक ऐसी जगह हो जहां cyber security के लिए पूरी संभावनाएं है। जितनी सीमा सुरक्षा महत्‍व की बनी है, उतनी ही cyber की security महत्‍व पर बनी है। तभी भी विश्‍व बदलता चला जाता है, उसमें हम किस प्रकार से contribute कर सकते हैं? हमारी खोज, हमारे विज्ञान, हमारे संसाधन, common man की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं। quality of life में कोई change ला सकते हैं। भारत गरीब देश रहा है। हमारे यह सारे संसाधन, संशोधन यह सब कुछ गरीब की quality of life में बदलाव लाने के लिए हो सकता है। अब हमने 2022 तक हर गरीब को घर देने का सोचा है। अब उसमें हमें नई टेक्‍नोलॉजी, नई चीजें लानी पडेंगी। वो कौन से material से अच्‍छे मकान बन सकते हैं, वो नई खोज करनी पड़ेगी। वो कौन सी technique होगी कि जिसके कारण fastest मकान बना सकते हैं। वो कौन सी technique होगी जिससे हम low cost मकान बना सकते हैं। क्‍यों न हो? कलाम साहब चाहते थे देश के किसान का कल्‍याण करना है। देश के गरीब का कल्‍याण है, तो हमारी नदियों को जोड़ना। यह नदियों को जोड़ना सिर्फ परपरागत engineering work से होने वाला नहीं है। हमें innovation चाहिए, expertise चाहिए, space science की मदद चाहिए। इन सारी बातों को करके हम क्‍या लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं? यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है, जिसमें हमें बदलाव लाना है।

आज भी दुनिया में प्रति हेक्‍टर जो crop है उसकी तुलना में हमारा बहुत कम है। आज दुनिया में प्रति cattle जितना milk मिलता है, उसकी तुलना में हमारा कम है। वो कौन से वैज्ञानिक तरीके हों, वो कौन सा वैज्ञानिक temper हो जो किसान के घर तक पहुंचे, पशुपालक के घर तक पहुंचे? ताकि उसकी जिंदगी में बदलाव आए। और इसलिए विज्ञान को हमने सामान्‍य मानव की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए उस applicable science को कैसे लाया जाए? उस technology को कैसे हम innovate करें। यह ठीक है DRDO में जो लोग बैठे हैं उनका क्षेत्र अलग है। लेकिन उसके बावजूद भी, यह वो बिरादरी है, जिसका innovation, विज्ञान, खोज यह उसके सहज प्रकृति के हिस्‍से हैं। हम धीरे-धीरे उसको expand करते हुए, अब्‍दुल कलाम जी को याद करते हुए, हम देश को क्‍या दे सकते है? और यही ताकत दुनिया को देने की ताकत बन सक‍ती है।

और कभी-कभार हम पढ़ते है जब सुनते हैं कि भई, हमारे यहां किसान अन्‍न पैदा करता है, लेकिन काफी मात्रा में बर्बाद हो जाता है। क्‍या उपाय हो सकते हैं? हर प्रकार के उपाय हो सकते हैं। temporary भी क्‍यों न हो उसके रख-रखाव की व्‍यवस्‍था क्‍या हो सकती हैं? ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिसमें हमने हमारी परंपरा की पुरानी पद्धतियों में से प्रेरणा लेना, नई innovation करना और उसमें से नए equipment तैयार करना, व्‍यवस्‍थाएं खड़ी करना, जो विज्ञान के द्वारा समाज जीवन में परिवर्तन का एक कारण बन सकते हैं, सहारा बन सकते हैं।

विश्‍व जिस प्रकार से बदल रहा है, उसमें सामूहिक सुरक्षा एक बहुत बड़ा विषय बनता जा रहा है। Blue Economy की तरफ दुनिया बढ़ रही है। अब जब Blue Economy की तरफ बढ़ रही है, तब समुद्रिक जीवन में उसके साथ जुड़े हुए व्‍यापार से भी संबंध है, सामुद्रिक खोज एक बहुत बड़ा क्षेत्र अधूरा पड़ा है। संपदाओं का अपरंपार भंडार सामुद्रिक संपत्ति में पड़ा हुआ है। लेकिन at the same time मानव जात के सामने चुनौती है Blue Sky, Environment, Climate दुनिया में आज चिंता और चर्चा के विषय है। और इसलिए Blue Economy जो सामुद्रिक शक्ति की चिंता भी करें और Blue Sky बचा रहे हैं उसकी भी चिंता करे। उस प्रकार की technology का हमारा innovation कैसा है? हमारा manufacturing जब हम कहते हैं कि zero defect-zero effect. हम ग्‍लोबली जाना चाहते हैं कि हमारे innovation की स्थिति कैसे बने कि हमारे manufacture में कोई defect भी न हो और उसके कारण environment पर कोई effect भी न हो। जब हम इन चीजों को ले करके चलेंगे, मैं समझता हूं कि हमारे युवा वैज्ञानिकों के सामने चुनौतियां हैं। और देश के युवा वैज्ञानिक अब्‍दुल कलाम साहब ने जो हमें रास्‍ता दिखाया, अब्‍दुल कलाम साहब के जीवन की स्‍वयं की यात्रा तो सामान्‍य गरीब परिवार से निकले यहां तक पहुंचे, लेकिन वो जिस क्षेत्र में गए वहां भी वैसे ही हाल था। अभी हमने देखा रॉकेट का एक Part साइकिल पर ले जा रहे थे। यानी institute भी इतनी गरीब थी, इस गरीबी वाले institute से जुड़ करके इतनी बड़ी विशाल संस्‍था का निर्माण कर दिया। सिर्फ पूरा अपनी व्‍यक्ति का जीवन गरीब झोपड़ी से ले करके राष्‍ट्रपति भवन तक आए ऐसा नहीं, जहां गए वहां, जहां था उसको उत्‍तम और बड़ा बनाने का भरपूर सफल प्रयास किया। यह अपने आप में बहुत बड़ा योगदान है। और उस अर्थ में हम भी जहां हो वहां, नई ऊंचाईयों को पार करने वाली अवस्‍था कैसे पैदा कर सकते हैं। उसके लिए हम और योगदान क्‍या दे सकते हैं?

कलाम साहब का जीवन सदा-सर्वदा हमें प्रेरणा देता रहेगा। और हम सब अपने संकल्‍पों को पूरा करने के

PM Modi pays tribute to former President Dr. APJ Abdul Kalam
Dr. APJ Abdul Kalam was a "Rashtra-Ratna" before a "Rashtrapati": PM Modi
GoI to build a memorial for Dr. Kalam at Rameswaram, Tamil Nadu: PM
Dr. Kalam always sought fresh challenges to overcome in life, says PM Modi
Dr. Kalam always wanted to be remembered as a teacher: PM Narendra Modi
Dr. Kalam worked for the welfare of poor & farmers: PM Modi
On the birth anniversary of Dr. Kalam, we must explore how we can encourage innovation in India: PM
Dr. Kalam's life continues to be an inspiration for all of us: PM
PM Narendra Modi unveils a statue of Dr. APJ Abdul Kalam at DRDO Bhavan in New Delhi
Prime Minister Modi releases commemorative postal stamp on Dr. Kalam

 

आज 15 अक्‍तूबर, श्रीमान अब्‍दुल कलाम जी की जन्‍म जयंती पर आप सब इकट्ठे हुए है। आज DRDO के परिसर में उनकी एक प्रतिमा का अनावरण करने का मुझे सौभाग्‍य मिला। यह बात सही है कि कलाम साहब का जीवन इतना व्‍यापक, विशाल और गहरा रहा है कि उनको याद करने का गर्व होता है, लेकिन साथ में एक कसक भी रहती है कि काश! वो हमारे साथ होते तो। तो ये जो कमी महसूस होती है, इसको कैसे भरना है, ये हम सब के लिए एक चुनौती है और मुझे विश्‍वास है कि अब्‍दुल कलाम जी के आशीर्वाद से उन्‍होंने हम देशवासियों को जो शिक्षा-दीक्षा दी है, उससे हम अवश्‍य उसको पूरा करने का भरपूर प्रयास करेंगे और वही उनको सबसे बड़ी अंजलि होगी।

वे राष्‍ट्रपति बने, मैं समझता हूं कि उससे पहले वे राष्‍ट्र रत्‍न थे। ऐसा बहुत कम होता है कि एक व्‍यक्‍ति पहले राष्‍ट्र रत्‍न बने और बाद में राष्‍ट्रपति पद को स्‍वीकार करे और वह उनके जीवन की ऊंचाइयों से जुड़ा हुआ था। भारत सरकार ने तय किया है कि जहां पर उनका जन्‍म हुआ और जहां पर उनकी अंत्‍येष्‍टि हुई, उस गांव में एक आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दे, ऐसा स्‍मारक बनाया जाएगा। सरकार ने already वो जमीन acquire कर ली है। मैंने मंत्रियों की एक कमेटी भी बनाई है जो आने वाले दिनों में इसका आखिरी रूप तय करके, ऐसा कैसा स्‍मारक हो जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहे और कलाम साहब का जीवन हमेशा-हमेशा हम सबके लिए मार्गदर्शक बनता रहे।



दो बातें जो कलाम साहब की स्‍वाभाविक नजर आती हैं – एक तो उनके बाल। दूर से भी किसी को पता चलता है कि अब्‍दुल कलाम जी जा रहे हैं। और कुछ न बनाया हो, सिर्फ उनके बालों को किसी ने पेंट किया तो कह देगा कि हां, बाकी चेहरा कलाम साहब का होगा। लेकिन साथ-साथ एक और भी बात थी। जैसे उनके बाल थे, वैसा उनके भीतर एक बालक था। तो उनके बाल और उनके भीतर का बालक, ये दोनों, मैं समझता हूं हमेशा-हमेशा जो उनके निकट गए हैं उनको याद रहता है। इतनी सहजता, इतनी सरलता।

आमतौर पर वैज्ञानिकों के विषय में एक सोच ऐसी रहती है कि वो बड़े गंभीर चेहरा, उदासीन, Lab में ही डूबे रहने वाले, साल में कितनी बार मुस्‍कुराए वो भी शायद हिसाब लगाना पड़े। लेकिन कलाम साहब, हर पल एक बड़े जीवंत व्‍यक्‍तिव नज़र आता था। मुस्‍कुराते रहना, दौड़ते रहना और। दो प्रकार के लोग होते हैं, एक वो होते हैं जो Opportunity खोजते हैं, एक वो होते हैं जो Challenge खोजते हैं। कलाम साहब Challenges की तलाश में रहते थे। कौन-से नए Challenge है? उस Challenge को कैसे उठा ले और उस Challenge को पार कैसे करे और यही उनके हर पल जीवन में रहता था। आखिर तक!

जब भी मेरा बहुत निकट संबंध रहा क्‍योंकि जब मैं मुख्‍यमंत्री था तब भी उनका गुजरात बार-बार आना होता था। अहमदाबाद से उनका विशेष लगाव था क्‍योंकि उनके career की पहली शुरूआत उन्‍होंने अहमदाबाद में शुरू की थी और विक्रम साराभाई के साथ उन्‍होंने काम किया। तो उसके कारण उनका लगाव भी गुजरात के साथ बहुत था। तो मेरा भी उस समय उनसे संबंध बहुत रहता था। कच्‍छ का भूकंप हो या आपत्‍ति की इतनी बड़ी घटना हो, वो आना, छोटी-छोटी चीजों में guide करना और उस समय भूकंप की परिस्‍थिति के पुनरनिर्माण के काम में विज्ञान और technology का सहारा कैसे लिया जाए ताकि relief तेज गति से हो, rehabilitation तेज गति से हो, reconstruction तेज गति से हो, ऐसी हर बारीक चीज में वो मार्गदर्शन करते थे वो सहायता करते थे।

जीवन भर उनकी एक विशेषता रही है और किसी ने उनको पूछा था कि आपको कैसे याद रखा जाए और उन्‍होंने जवाब में कहा था कि मुझे शिक्षक के रूप में याद रखा जाए। ये शिक्षक का तो सम्‍मान है लेकिन साथ-साथ उनके जीवन का conviction क्‍या था, commitment क्‍या था, उसका भी परिचायक था। उनको लगता है कि भई 5-50 व्‍यक्‍तियों का समूह जरूर कुछ कर दिखा सकता है। लेकिन भारत जैसे देश ने पीढ़ियों तक आगे बढ़ने के लिए, प्रभाव पैदा करने के लिए तेज गति से चलना है तो आने वाली पीढ़ियों को तैयार करना होगा और वो एक टीचर तैयार कर सकता है और ये उनके सिर्फ शब्‍द नहीं थे, उनके पूरे जीवन में ही नजर आता है।

राष्‍ट्रपति पद से मुक्‍ति के दूसरे दिन... ये छोटी बात नहीं है। इतने बड़े पद पर रहने के बाद कल क्‍या करूं, कल कैसा जाएगा, कल से कैसा होगा? आप सब को मालूम है जब अफसर retired होता है तो क्‍या हो जाता है। यानी आज कहां खड़ा है और दूसरे दिन वो अपने आपको कहां महसूस करता है, वो अपने आपको एक खालीपन महसूस करता है। एकदम से वो लगता है बस, अब जीवन का अंत शुरू हो गया है, ऐसा ही मान लेता है। दिमाग में retirement भर जाता है। कलाम साहब की विशेषता देखिए कि राष्‍ट्रपति पद, इतनी बड़ी ऊंचाई और निवृत्‍ति भी आदर्श और गौरव के साथ। दूसरे ही दिन जहाज पकड़ के चैन्‍नई जाना, चैन्‍नई में क्‍लासरूम में पढ़ाना शुरू करना। ये भीतर के commitment के बिना संभव नहीं होता है। एक व्‍यक्‍ति ने अपने जीवन में उसको inherent कर दिया होता है, तब होता है और जीवन का अंत भी देखिए। कहां रामेश्‍वरम्, कहां दिल्‍ली, कहां दुनिया में जय-जयकार और कहां नॉर्थ ईस्‍ट। किसी को कहा जाए कि नॉर्थ ईस्‍ट जाओ तो कहे अरे साहब, किसी और का भेज दो। ऐसा करो अगली बार मैं जाऊंगा इस बार जरा कोई और को। वहां पर इस उम्र में जाना और student के साथ अपने आखिरी पल बिताना। ये उनके भीतर का एक जो एक सातत्‍य था, एक commitment था, उसको प्रतिबिंबित करता है।

भारत शक्‍तिशाली हो, लेकिन सिर्फ शस्‍त्रों से शक्‍तिशाली हो ये कलाम साहब की सोच नहीं थी। शस्‍त्रों का सामर्थ्‍य आवश्‍यक है और उसमें कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए और उसमें उन्‍होंने जितना योगदान दे सकते थे, दिया। लेकिन वो इसे मानकर के चलते थे कि देश सरहदों से नहीं, देश कोटि-कोटि लोगों से पहचाना जाता है। देश की पहचान सीमाओं के आधार पर तय नहीं होती है। देश की ताकत उसके जन कैसे सामर्थ्‍यवान है, उस पर होती है और इसलिए कलाम साहब उन दोनों धाराओं को साथ लेकर के चलते थे कि एक तरफ innovation हो, research हो, रक्षा के क्षेत्र में भारत अपने पैरों पर खड़ा हो और Third World Countries, गरीब देशों का भी उपकारक हो, उस दिशा में भारत अपनी जगह बनाए और दूसरी तरफ भारत का मानव समुदाय संपन्‍न हो।

वे शिक्षा के बड़े आग्रही थे। वे हमेशा कहते थे, योग का महत्‍व समझाते थे और उसके साथ वो commitment भी था उनका। religion को spiritualism में convert करना चाहिए। spiritualism को प्राधान्‍य देना चाहिए। ये उनका conviction था। यानी, एक प्रकार से समाज जीवन में किन मूल्‍यों की आवश्‍यकता है, उन मूल्‍यों पर वो बल देते थे। शायद ये बड़ी हिम्‍मत का काम है, लेकिन वो करते थे। किसी भी समारोह में जाते थे और वहां student मिल गए तो फिर वो खिलते थे। उनका लगता था कि हां, एक ऐसे में बगीचे में आया हूं जहां ये फूल खिलने वाले हैं। उनको तुरंत feel होता था, एकदम से उनका natural connect होता था और ऐसे समारोह में वो बाद में संकल्‍प करवाते थे। एक-एक वाक्‍य बच्‍चों से बुलवाते थे। ये कठिन इसलिए है आज के जमाने में क्‍योंकि इस प्रकार की बात करो तो दूसरे दिन पता नहीं कितने-कितने विवाद खड़े हो जाते हो। लेकिन वे कभी इन चिंताओं में नहीं रहे। हर बार उस संकल्‍प को दोहराते रहे। क्‍या हम जब भी कलाम साहब को याद करेंगे, जहां भी कलाम साहब की चर्चा होगी, उन संकल्‍प के संबंध में, उसको लोगों में सार्वजनिक रूप से बार-बार कैसे लाए? उनका संकल्‍प था, जो हमें बताया जाता था, उसको चरितार्थ करना, ये हमारा दायित्‍व बनता है। उस दायित्‍व को पूरा करने के लिए हमारी नई पीढ़ी को हम कैसे तैयार करें? उस संकल्‍प को बार-बार दोहराते जाए कि ये परंपरा चलती रहे और चेतना जगाने का प्रयास निरंतर चलता रहे, उस दिशा में हम कैसे प्रयास करे।

आज विश्‍व में भारत अपना एक विशेष स्‍थान बनाता जा रहा है। दुनिया किसी जमाने में भारत को एक बड़े market के रूप में देखती थी। आज विश्‍व ने भारत को एक सहयात्री के रूप में देखना शुरू किया है। भारत की तरफ देखने का दुनिया का नजरिया बदला है। लेकिन आर्थिक संपन्‍नता ही या सिर्फ market ही हमें drive करेगा क्‍या?

आने वाले दिनों में हमारे पास innovation के लिए बहुत संभावनाएं हैं। Eight hundred million, Thirty Five से नीचे जनसंख्‍या जहां हो, 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 से नीचे हो। आज IT के कारण दुनिया में हमने अपनी जगह बना दी उसका कारण innovation था। हम innovation को बल कैसे दें। हम कलाम साहब की हर जन्‍म जयंती पर DRDO में एक ऐसा seminar organize कर सकते हैं क्या? एक दिन, दो दिन, तीन दिन जो भी हो इसमें young scientist हो, innovation करने वाले लोग हो या जिनका scientific temper का spark जिसके अंदर हो, ऐसे बच्‍चे हो। कभी स्‍कूल के बच्‍चों का एक-आध दिन कार्यकाल हो, कभी innovation में लगे हुए 35 से नीचे young scientist. इनको बुला करके इन्‍हीं विषयों पर सेमीनार हमेशा-हमेशा, कलाम साहब को याद करना मतलब innovation को promote करना। यह हमें परंपरा बना सकती है। तो उनकी जन्‍म जयंती को बनाने में हम एक नई जिम्‍मेदारी की ओर भी समाज को लेते चले जाएंगे और वह उनके लिए सबसे बड़ा संतोष का विषय बन सकता है, ऐसा मुझे लगता है।

दुनिया में अब भारत को उस विषय पर सोचने की आवश्‍यकता है कि हम विश्‍व को क्‍या दे सकते हैं। हम क्‍या बन सकते हैं? क्‍या हो सकते हैं? या कोई हमारे लिए क्‍या कर सकता है? उससे थोड़ा ऊपर जा करके थोड़ा हट करके हमारी वो ऐसी कौन सी विरासत है, जो हम विश्‍व को दे सकते हैं। और जो विश्‍व सहज रूप से स्‍वीकार करेगा और जो विश्‍व के कल्‍याण के लिए काम आयेगा। हमने उन पहलुओं पर धीरे-धीरे अपने आप को तैयार करना चाहिए।

आज पूरा विश्‍व cyber crime को ले करके बड़ा परेशान है। क्‍या हमारे नौजवान वो innovation करे, जिसमें cyber security की गारंटी के लिए भारत की पहल हो। भारत एक ऐसी जगह हो जहां cyber security के लिए पूरी संभावनाएं है। जितनी सीमा सुरक्षा महत्‍व की बनी है, उतनी ही cyber की security महत्‍व पर बनी है। तभी भी विश्‍व बदलता चला जाता है, उसमें हम किस प्रकार से contribute कर सकते हैं? हमारी खोज, हमारे विज्ञान, हमारे संसाधन, common man की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं। quality of life में कोई change ला सकते हैं। भारत गरीब देश रहा है। हमारे यह सारे संसाधन, संशोधन यह सब कुछ गरीब की quality of life में बदलाव लाने के लिए हो सकता है। अब हमने 2022 तक हर गरीब को घर देने का सोचा है। अब उसमें हमें नई टेक्‍नोलॉजी, नई चीजें लानी पडेंगी। वो कौन से material से अच्‍छे मकान बन सकते हैं, वो नई खोज करनी पड़ेगी। वो कौन सी technique होगी कि जिसके कारण fastest मकान बना सकते हैं। वो कौन सी technique होगी जिससे हम low cost मकान बना सकते हैं। क्‍यों न हो? कलाम साहब चाहते थे देश के किसान का कल्‍याण करना है। देश के गरीब का कल्‍याण है, तो हमारी नदियों को जोड़ना। यह नदियों को जोड़ना सिर्फ परपरागत engineering work से होने वाला नहीं है। हमें innovation चाहिए, expertise चाहिए, space science की मदद चाहिए। इन सारी बातों को करके हम क्‍या लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं? यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है, जिसमें हमें बदलाव लाना है।

आज भी दुनिया में प्रति हेक्‍टर जो crop है उसकी तुलना में हमारा बहुत कम है। आज दुनिया में प्रति cattle जितना milk मिलता है, उसकी तुलना में हमारा कम है। वो कौन से वैज्ञानिक तरीके हों, वो कौन सा वैज्ञानिक temper हो जो किसान के घर तक पहुंचे, पशुपालक के घर तक पहुंचे? ताकि उसकी जिंदगी में बदलाव आए। और इसलिए विज्ञान को हमने सामान्‍य मानव की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए उस applicable science को कैसे लाया जाए? उस technology को कैसे हम innovate करें। यह ठीक है DRDO में जो लोग बैठे हैं उनका क्षेत्र अलग है। लेकिन उसके बावजूद भी, यह वो बिरादरी है, जिसका innovation, विज्ञान, खोज यह उसके सहज प्रकृति के हिस्‍से हैं। हम धीरे-धीरे उसको expand करते हुए, अब्‍दुल कलाम जी को याद करते हुए, हम देश को क्‍या दे सकते है? और यही ताकत दुनिया को देने की ताकत बन सक‍ती है।

और कभी-कभार हम पढ़ते है जब सुनते हैं कि भई, हमारे यहां किसान अन्‍न पैदा करता है, लेकिन काफी मात्रा में बर्बाद हो जाता है। क्‍या उपाय हो सकते हैं? हर प्रकार के उपाय हो सकते हैं। temporary भी क्‍यों न हो उसके रख-रखाव की व्‍यवस्‍था क्‍या हो सकती हैं? ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिसमें हमने हमारी परंपरा की पुरानी पद्धतियों में से प्रेरणा लेना, नई innovation करना और उसमें से नए equipment तैयार करना, व्‍यवस्‍थाएं खड़ी करना, जो विज्ञान के द्वारा समाज जीवन में परिवर्तन का एक कारण बन सकते हैं, सहारा बन सकते हैं।

विश्‍व जिस प्रकार से बदल रहा है, उसमें सामूहिक सुरक्षा एक बहुत बड़ा विषय बनता जा रहा है। Blue Economy की तरफ दुनिया बढ़ रही है। अब जब Blue Economy की तरफ बढ़ रही है, तब समुद्रिक जीवन में उसके साथ जुड़े हुए व्‍यापार से भी संबंध है, सामुद्रिक खोज एक बहुत बड़ा क्षेत्र अधूरा पड़ा है। संपदाओं का अपरंपार भंडार सामुद्रिक संपत्ति में पड़ा हुआ है। लेकिन at the same time मानव जात के सामने चुनौती है Blue Sky, Environment, Climate दुनिया में आज चिंता और चर्चा के विषय है। और इसलिए Blue Economy जो सामुद्रिक शक्ति की चिंता भी करें और Blue Sky बचा रहे हैं उसकी भी चिंता करे। उस प्रकार की technology का हमारा innovation कैसा है? हमारा manufacturing जब हम कहते हैं कि zero defect-zero effect. हम ग्‍लोबली जाना चाहते हैं कि हमारे innovation की स्थिति कैसे बने कि हमारे manufacture में कोई defect भी न हो और उसके कारण environment पर कोई effect भी न हो। जब हम इन चीजों को ले करके चलेंगे, मैं समझता हूं कि हमारे युवा वैज्ञानिकों के सामने चुनौतियां हैं। और देश के युवा वैज्ञानिक अब्‍दुल कलाम साहब ने जो हमें रास्‍ता दिखाया, अब्‍दुल कलाम साहब के जीवन की स्‍वयं की यात्रा तो सामान्‍य गरीब परिवार से निकले यहां तक पहुंचे, लेकिन वो जिस क्षेत्र में गए वहां भी वैसे ही हाल था। अभी हमने देखा रॉकेट का एक Part साइकिल पर ले जा रहे थे। यानी institute भी इतनी गरीब थी, इस गरीबी वाले institute से जुड़ करके इतनी बड़ी विशाल संस्‍था का निर्माण कर दिया। सिर्फ पूरा अपनी व्‍यक्ति का जीवन गरीब झोपड़ी से ले करके राष्‍ट्रपति भवन तक आए ऐसा नहीं, जहां गए वहां, जहां था उसको उत्‍तम और बड़ा बनाने का भरपूर सफल प्रयास किया। यह अपने आप में बहुत बड़ा योगदान है। और उस अर्थ में हम भी जहां हो वहां, नई ऊंचाईयों को पार करने वाली अवस्‍था कैसे पैदा कर सकते हैं। उसके लिए हम और योगदान क्‍या दे सकते हैं?

कलाम साहब का जीवन सदा-सर्वदा हमें प्रेरणा देता रहेगा। और हम सब अपने संकल्‍पों को पूरा करने के लिए जी जान से जुटेंगे। इसी एक अपेक्षा के साथ कलाम साहब को शत-शत वंदन करता हूं और उनका जीवन सदा-सर्वदा हमें प्रेरणा देता रहे इसी एक आशा-अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

लिए जी जान से जुटेंगे। इसी एक अपेक्षा के साथ कलाम साहब को शत-शत वंदन करता हूं और उनका जीवन सदा-सर्वदा हमें प्रेरणा देता रहे इसी एक आशा-अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |
सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं | बहुत-बहुत धन्यवाद |