प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंडीगढ़ के स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के 34वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया
प्रधानमंत्री मोदी ने 9/11 के हमलों में जान गंवाने वाले निर्दोष लोगों को श्रद्धांजलि दी
प्रधानमंत्री ने शिकागो में विश्व धर्म सम्मलेन में स्वामी विवेकानंद के संबोधन को याद किया
सरकारी स्कूलों के बच्चे यहाँ उपस्थित हैं। इससे उन्हें काफी प्रेरणा मिलेगी: प्रधानमंत्री
दीक्षांत समारोह का अर्थ शिक्षा प्राप्त करने या सीखने की प्रक्रिया की समाप्ति नहीं है: प्रधानमंत्री
पहले सिलेबस पर ही सारा जोर होता था लेकिन अब किताबों से निकलकर जिंदगी से जुड़ने का अवसर आ गया है: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज के चिकित्सा विज्ञान को प्रौद्योगिकी आधारित चिकित्सा विज्ञान बताया
हम जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करते हैं, वो ‘सरकार’ की वजह से नहीं बल्कि ‘समाज’ की वजह से प्राप्त करते हैं: प्रधानमंत्री
आज के समय में पूरी दुनिया निवारक एवं समग्र स्वास्थ्य पर जोर दे रही है: प्रधानमंत्री

आज जो अपने जीवन की एक नई शुरुआत करने जा रहे हैं, ऐसे सभी पदक विजेता और, डिग्री प्राप्त करने वाले साथियों, उपस्थित सभी महानुभाव,

आज 11 सितंबर है। 11 सितंबर कहने के बाद बहुत कम ध्यान में आता है, लेकिन 9/11 कहने के बाद तुरंत ध्यान आता है। इतिहास में 9/11 तारीख किस रूप में अंकित हुई है। यही 9/11 है कि जिस दिन, मानवता को ध्वस्त करने का एक हीन प्रयास हुआ। हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और वही 9/11 है आज कि जहां PGI से वो नौजवान, समाज में कदम रख रहे हैं, जो औरों की जिंदगी बचाने के लिए जूझनें वाले हैं।

मारना बहुत सरल होता है। लेकिन किसी को जिंदा रखना? पूरा जीवन खपा देना पड़ता है। और उस अर्थ में आपके जीवन में भी, आज ये 9/11 का एक विशेष महत्व बनता है। इतिहास के झरोखे में 9/11 का और भी एक महत्व है - 1893 - करीब 120 साल पहले, इसी देश का एक महापुरुष, अमेरिका की धरती पर गया था। और 9/11 कि शिकागो की धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने अपना उद्बोधन किया था। और उस उद्बोधन का प्रारम्भ था, “Sister and Brothers of America”. और उस एक शब्द ने, उस एक वाक्य ने पूरे सभागृह को लंबे अरसे तक तालियों से गूंजने के लिए मजबूर कर दिया था। उस एक पल ने पूरी मानवता को बंधुता में जोड़ने का एक एहसास कराया था। वो एक घोष वाक्य से मानवता के साथ, हर मानवीय जीवन किस प्रकार की ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है, उसका संदेश था। लेकिन 9/11, 1893 स्वामी विवेकानंद का संदेश अगर दुनिया ने माना होता, दुनिया ने स्वीकार किया होता, तो शायद वो जो दूसरा 9/11 हुआ, वो न होता। 

और उस परिपेक्ष में आज 9/11 को, चंडीगढ़ PGI में, दीक्षांत समारोह में मुझे आने का अवसर मिला है। मैं PGI से भलीभांति परिचित हूं। बहुत बार यहां आया करता था। कोई न कोई हमारे परिचित लोग बीमार होते थे तो मुझे मिलने आना होता था। क्योंकि मैं लंब अरसे तक यहीं चंडीगढ़ में रहा, मेरा कार्यक्षेत्र रहा। और इसलिए मैं भलीभांति PGI से परिचित रहा।

आज आपने समारोह मे देखा होगा, जो पहले कभी नहीं देखा होगा, सरकारी स्कूल के under privileged कुछ बच्चे यहां बैठे हैं। मैंने एक आग्रह रखा है कि जहां भी मुझे convocation में जाने का अवसर मिलता है, तो मैं आग्रह करता हूं उस शहर के गरीब बस्ती के जो सरकारी स्कूल हैं, वहां के बच्चों को लाकर के इस कार्यक्रम के साक्षी बनाइए। ये दृश्य जब देखेंगे तो उनके भीतर एक aspiration जगता है, उनके भीतर भी एक विश्वास पैदा होता है, “कभी हम भी यहां हो सकते हैं।“

तो ये दीक्षांत समारोह में दो चीज़ें हैं। एक जिन्‍होंने शिक्षा प्राप्‍त करके जीवन के एक नये क्षेत्र में कदम रखना है वो है। और दूसरे वो हैं, जो आज इस कदमों पर चलने का कोई संकल्‍प लेकर करके शायद ये दृश्‍य देखकर करके यहां से जाएंगे। एक शिक्षक जितना नहीं सिखा सकता है उससे ज्‍यादा एक दृश्‍य मन में अंकित होता है और किसी की जिदंगी को बदलने का कारण बन सकता है। और उस अर्थ में मेरा आग्रह रहता है कैसे हमारे गरीब परिवार के बच्‍चे भी ऐसे समारोह में साक्षी हों। और उसी के तहत मैं PGI का आभारी हूं कि उन्‍होंने मेरे इस सुझाव को स्‍वीकार किया और इन छोटे-छोटे बालकों को आज इस समारोह का साक्षी बनाने का अवसर दिया। एक अर्थ में आज के समारोह के ये मुख्य अतिथि हैं। वे हमारे real Chief Guest हैं।

जब दीक्षांत समारोह हो रहा है तो मैं दो और शब्दों का भी उल्लेख करना चाहूंगा, कि जब ये दीक्षांत समारोह होता है तो कहीं हमारे मन में ये भाव तो नहीं होता है कि शिक्षांत समारोह है? कहीं ये भाव तो नहीं होता है कि विद्यांत समारोह है? अगर हमारे मन में ये भाव उठता है कि शिक्षांत समारोह या विद्यांत समारोह है तो ये सही अर्थ में दीक्षांत समारोह नहीं है।

ये शिक्षांत समारोह नहीं है, यहां शिक्षा का अंत नहीं होता है। ये विद्यांत समारोह नहीं है, ये विद्या की उपासना का अंतकाल ये नहीं है। ये दीक्षांत समारोह है। हमारे मानवीय इतिहास की ओर नजर करें तो ऐसा ध्यान में आता है कि सबसे पहला दीक्षांत समारोह करीब 2500 हजार वर्ष पहले हुआ, ऐसा लिखित उल्लेख प्राप्त होता है। 2500 वर्ष पुरानी ये परंपरा है। तैत्रेयी उपनिषद में सबसे पहले दीक्षांत समारोह की चर्चा है। यानि ये घटना 2500 वर्ष से चली आ रही है। और इसी धरती से, ये संस्कार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है।

जब दीक्षांत समारोह होता है तब कुछ पल तो लगता है, “हां चलो यार, बहुत हो गया, कितने दिन postmortem room में निकालते थे! वो कैसे दिन ते, चलो अब छुट्टी हो गई! पता नहीं laboratory में कितना time जाता था और पता नहीं हमारे साहब भी कितना परेशान करते थे। रात-रात को duty पर बुला लेते थे। Patient को खांसी भी नहीं होती थी, लेकिन उठाते थे, चलो देखो जरा क्या हुआ है।“ 

आपको लगता होगा कि सब परेशानियों से मुक्ति हो गई। हकीकत में जो आपने सीखा, समझ है, पाया है, अनुभव किया है, उसे अब कसौटी पर कसने का सच्चा वक्त प्रारंभ होता है। किसी अध्यापक के द्वारा आपकी की गई कसौटी और उसके कारण मिले हुए marks, उसके कारण मिला हुआ प्रमाण-पत्र और उसके कारण जीवन यापन के लिए खुला हुआ रास्ता वहीं से बात समाप्त नहीं होती है, बात एक प्रकार से शुरू होती है कि अब हर पल कसौटी शुरू होती है। पहले आप patient को देखते थे तो एक student के रूप में, patient कम नजर आता था, syllabus ज्यादा याद आता था कि किताब में लिखा था कि इतना pulse rate है तो ऐसा होता है, तो हमें वो patient भी याद नहीं आता था, उसकी pulse भी ध्यान में नहीं रहती थी लेकिन teacher ने जो बताया गया कि “यार इसका कैसा है जरा देखो तो फिर किताब देखते थे उसकी pulse का जो हो हो, लेकिन हम किताब देखते हैं यार क्‍या हुआ।“

यानी हमने उसकी प्रकार से अपने समय को बिताया है। लेकिन अब जब हम Patient की pulse पकड़ते है तो किताब ध्‍यान में नहीं आती है। एक जिंदा इंसान आपके सामने बैठा होता है, pulse rate ऊपर नीचे हुआ तो आपकी धड़कन भी ऊपर-नीचे हो जाती है। इतनी एकामता जुड़ जाती है किताब से निकलकर के जिंदगी से जुड़ने का एक अवसर आज से प्रारंभ होता है।

और, आप डॉक्‍टर हैं आप mechanic नहीं है। एक mechanic का भी कारोबार पुर्जों के साथ होता है। आजकल डाक्‍टर का भी कारोबार पुर्जों के साथ ही होता है। सारे spare part का उसको पता होता है। technology ने हर spare part का काम क्‍या है वो भी बता दिया है लेकिन उसके बावजूद भी हम एक मशीन के साथ कारोबार नहीं करते हैं, एक जिंदा इंसान के साथ करते हैं और इसलिए सिर्फ ज्ञान enough नहीं होता है। हर पुर्जे के संबंध में, उसके काम के संबंध में आई हुई कठिनाई के संबंध में सिर्फ ज्ञान होना sufficient नहीं होता है, हमारे लिए आवश्यक होता है मानवीय संवेदनाओं का सेतु जोड़ना। आप देखना, सफल डॉक्टरों का जरा history देखिए, बीमारी को focus करने वाले डॉक्टर बहुत कम सफल होते हैं। लेकिन बीमार पर focus करने वाले डॉक्टर ज्यादा सफल होते हैं। जो बीमारी में ज्यादा सटा हुआ है, जो सिर्फ बीमारी को address करता है, वो न patient को ठीक कर पाता है और न ही अपने जीवन को सफल कर पाता है। लेकिन जो बीमार को address करता है, उसकी मनोवैज्ञानिक अवस्था को address करता है, उसकी अवस्था को सोचता है, गरीब से गरीब patient आ गया, पता है, payment नहीं दे पाएगा। लेकिन डॉक्टर ने अगर एक बीमार को देखा, बीमारी को बाद में देखा तो आपने देखा तो 20 साल के बाद भी वो गरीब patient मजदूरी करके डॉक्टर के घर वापस आकर के अपना कर्ज चुका देगा। क्यों? क्योंकि आपने बीमारी को नहीं, बीमार को अपना बना लिया था। और एक बार बीमार को हम अपना बना लेते हैं, तो उसकी बीमारी को जानने का कारण भी बहुत बन जाता है।

आजकल medical science एक प्रकार से technology से overpowered है। Technology-driven medical science है। आज कोई डॉक्टर बीमार व्यक्ति आ जाए तो देखकर के, चार सवाल पूछकर के दवाई नहीं देता है। वो कहता है जाओ पहले laboratory में, blood test करवाओ, urine test करवाओ। सारी technology उसकी चीर-फाड़ करके, चीजें छोड़कर के, उसको कागज पर डाल दे तो फिर आप ऐसा करते हैं कि “अच्छा ऐसा करो, वो लाल वाली दवाई दे दे, ये दे दो, ये दो दो”, अपने कपाउंडर के बता देते हैं। यानी डॉक्टर को निर्णय करने की इतनी सुविधा बन गई है, उसको इतनी चीजें उपलब्ध हैं। और थोड़ा सा भी experience उसको expertise की ओर ले जाने के लिए बहुत बड़ी ताकत देता है। और जब मैं सुनता हूं कि PGI एक digital initiative वाला institute है, इसका मतलब आप most modern technology के साथ जुड़े हुए परिचित डॉक्टर हैं। और अगर आप most modern technology के साथ जुड़े हुए डॉक्टर हैं तो आपके लिए अब उस patient को समझना, उसकी बीमारी को समझना, उस बीमारी को ठीक करने के रास्ते तय करना, technology आपको मदद करती है।

ये जो बदलाव आया है, वो बदलाव पूरे medical science में किस प्रकार से बदलाव आए। और मुझे विश्वास है कि यहां जो शिक्षा-दीक्षा आपने पाई है... हम ये भी समझे कि हम डॉक्टर बन गए, हमें डॉक्टर किसने बनाया? इसलिए बने कि हमारा दिमाग बहुत तेज था, entrance exam में बहुत अच्छे marks ले आए थे, उस समय हमारा coaching बहुत बढ़िया हुआ था? इसलिए हम डॉक्टर बन गए? हम इसलिए डॉक्टर बन गए कि 5 साल, 7 साल, जो भी बिताना था, वो बहुत अच्छे ढंग से बिताया, इसलिए डॉक्टर बन गए? अगर ये हम सोचते हैं तो शायद हम अधूरी सोच के हैं, हमारे खयालात अपूर्ण हैं।

हमें डॉक्टर बनाने में एक ward boy का भी role रहा होगा। हमें डॉक्टर बनाने में exam के समय देर रात चाय बेचने वाले को जाकर के कहा होगा कि “देखो यार रात को देर तक पढ़ना है, उठ जाओ यार चाय बना दो”। उसने कहा होगा “साहब, ठंड बहुत है सोने दो”। आपने कहा होगा “नहीं-नहीं यार, चाय बना दे, कल exam है”। और उस गरीब आदमी, पेड़ के नीचे सोए हुए व्यक्ति ने उठकर के चाय बनाई होगी, चाय पिलाई होगी। और आपने रात को फिर 2 घंटे पढ़ाई की होगी और फिर दूसरे दिन exam दिए होंगे और कुछ marks पाएं होंगे, क्या उस चाय वाले का कोई contribution नहीं है?

और इसलिए हम जो कुछ भी बनते हैं, हमारी अपनी बदौलत नहीं बनते हैं। हर प्रकार के समाज के लोगों का कुछ न कुछ योगदान होता है। हर किसी ने हमारे जीवन में बदलाव लाने के लिए role अदा किया होता है। मतलब ये हुआ, कि हम सरकार के कारण डॉक्टर नहीं बने हैं, हम समाज के कारण बने हैं। और समाज के ऋण, ये चुकता करना हमारा दायित्व बनता है। 

आप में से बहुत लोग होंगे जिनके passport तैयार होंगे। बहुत लोग होंगे जो शायद visa के application करके आए होंगे। लेकिन ये देश हमारा है। आज हम जो कुछ भी है, किसी न किसी गरीब के हक की कोई चीज उससे लेकर के हमें दी गई होगी। तभी तो हम यहां पहुंचे हैं। और इसलिए जीवन में कोई भी निर्णय करें, महात्‍मा गांधी हमेशा कहा करते थे कि “मेरे जीवन का निर्णय या मेरी सरकार का कोई भी निर्णय - सही है या गलत - अगर मैं उलझन में हूं, तो मैं एक बार पल भर के लिए समाज के आखिरी इंसान को जरा याद कर लूँ, जरा उसका चेहरा स्‍मरण कर लूँ, और तय करूं जो मैं कर रहा हूँ, उसकी भलाई में है या नहीं है”। आपका निर्णय सही हो जाएगा। मैं भी आपसे आज यही आग्रह करूंगा कि दीक्षांत समारोह में आप एक जीवन की बड़ी जिम्‍मेदारी लेने जा रहे हो। लेकिन आप एक ऐसी व्‍यवस्‍था से जुड़े हो, एक आप ऐसे क्षेत्र से जुड़े हो, कि जहां आज के बाद आप सिर्फ अपने जीवन का निर्णय नहीं करते हैं, आप समाज जीवन की जिम्‍मेदारी उठाने का भी निर्णय कर रहे हो। और इसलिए जीवन में कभी उलझन में हो, कभी निर्णय करने के अवसर आये कि ये करूं ये वो करूं पल भर के लिए कोई न कोई गरीब ने आपकी जिदंगी बनाने में role play किया हो। किसी ने आपकी चिंता की हो आपके कारण कोई न कोई काम किया हो। जरा पल भर उसको याद कर लीजिए और सही कर रहें या गलत कर रहे हैं अपने आप फैसला हो जाएगा। और ये अगर निर्णय की प्रक्रिया रही तो हिन्‍दुस्‍तान को कभी कठिनाइयों से गुजरने का अवसर नहीं आएगा।

हमारे देश में हम परपरागत रूप holistic healthcare का जमाना है। आज दुनिया में एक बहुत बड़ा बदलाव आया है holistic healthcare का, preventive healthcare का - उसकी ओर लोग conscious हो रहे हैं। आप देखिए, अभी हमने अंतर्राष्‍ट्रीय योगा दिवस मनाया। कोई कल्‍पना कर सकता है कि United Nations के इतिहास में सभी 193 countries जिसका समर्थन करें, 193 countries दुनिया की co-sponsor बने, और सौ दिन के भीतर-भीतर UN के अन्‍दर अंतर्राष्‍ट्रीय योगा दिवस का निर्णय हो जाए – ये पूरे UN के इतिहास की सबसे बड़ी घटना है। ये क्‍यों हुआ? इसलिए हुआ कि पूरा विश्‍व medical science से भी कुछ और मांग रहा है। दवाइयों से गुजारा करने के बजाय वो अच्छे स्‍वास्‍थ्‍य की चिंता करने लगा है। जन-मन बदल रहा है।

Illness को address करने का जमाना चला गया, wellness को address करने का वक्‍त आ चुका है। हम Illness को address करेंगे कि wellness को address करेंगे? अब हमने एक comprehensive सोच के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा, जिसमें सिर्फ illness नहीं wellness के लिए address करें, हम well being के लिए करेंगे। और जब ये फर्क हम समझेंगे तब लोगों में योगा की तरफ आकर्षण क्यों बढ़ा है, उसका हमें परिचय होगा उसका हमें अंदाज आएगा। और उस अर्थ में योगा के द्वारा विश्‍व preventive healthcare, holistic healthcare, wellness की तरफ जाना - उसकी ओर कदम चल रहा है।

कभी-कभी मुझे लगता है हमारे physiotherapist... मुझे लगता है सफल physiotherapist होने के लिए अच्‍छे योग टीचर होना बहुत जरूरी है। आपने देखा होगा आपकी physiotherapy और योग की activity - इतनी perfect similarity इसमें है कि अगर जो physiotherapy का courses करते हैं, उसके साथ साथ अगर वो योग expert भी बने जाएं, तो वो शायद best physiotherapist बन सकता है।

कहने का तात्‍पर्य है कि समाज जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है। वो दवाइयों से मुक्ति चाहता है। वो side effect के चक्‍कर में पड़ना नहीं चाहता है। वो illness के चक्‍कर से बच करके wellness की दिशा में जाना चाहता है। और इसलिए हमारे पूरे health sector में इन बातों को ध्‍यान में रखकर ही अपनी आगे की नीतियां ओर रणनीतियां बनानी पड़ती हैं। मुझे विश्‍वास है आप जैसे प्रबुद्ध नागरिकों के द्वारा ये संभव होगा।

मैं आशा करता हूं कि आज इस दीक्षांत समारोह से निकलने वाले सभी महानुभाव जिन्‍होंने gold medal प्राप्‍त किया है उनको मेरी तरफ से विशेष बधाई देता हूं। कुछ लोग हो सकता है इस सारे प्रक्रिया से रहे गये होंगे। मैं उनको कहता हूं कि निराश होने का कोई कारण नहीं होता है। कभी- कभी विफलता भी सफलता के लिए एक अच्‍छा शिक्षक बन जाती है। और इसलिए जिन्‍होंने सोचा होगा कि ये पाना है, ये बनना है, कुछ रह गये होंगे उन्‍हें निराश होने की आवश्‍यकता नहीं है उन्‍हें उसी विश्‍वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। और जिन्होंने असफलता पाई है, और जीवन की नई ऊंचाईयों को पाने का जिन्हें अवसर मिला है, उन सबको मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। आप उस पद पर हैं, जहां से आपको सिर्फ patient की नहीं, आने वाले दिनों में विद्यार्थियों को भी तैयार करने का मौका मिले, उस स्थान पर आप प्राप्त हुए हैं। मैं चाहूंगा कि आपके द्वारा एक संवेदनशील डॉक्टर तैयार हो, आपके द्वारा ये पूरा health sector... क्योंकि सामान्य मानवी के लिए भगवान का दृश्य रूप जो है न, वो डॉक्टर होता है, सामान्य मानवी डॉक्टर को भगवान मानता है। क्योंकि उसने भगवान को देखा नहीं लेकिन किसी ने जिंदगी बचा ली तो मानता है कि यही मेरा भगवान है।

आप कल्पना कीजिए कि आप उस क्षेत्र में हैं जहां सामान्य मानवी आपको भगवान के रूप में देखता है और वो ही आपकी प्रेरणा है, वो ही आपके जीवन को दौड़ाने के लिए सबसे बड़ी ऊर्जा है, उस ऊर्जा की ओर ध्यान देकर के हम आगे की ओर बढ़े, ये ही मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामना है। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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November 22, 2024

गुटेन आबेन्ड

स्टटगार्ड की न्यूज 9 ग्लोबल समिट में आए सभी साथियों को मेरा नमस्कार!

मिनिस्टर विन्फ़्रीड, कैबिनेट में मेरे सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस समिट में शामिल हो रहे देवियों और सज्जनों!

Indo-German Partnership में आज एक नया अध्याय जुड़ रहा है। भारत के टीवी-9 ने फ़ाउ एफ बे Stuttgart, और BADEN-WÜRTTEMBERG के साथ जर्मनी में ये समिट आयोजित की है। मुझे खुशी है कि भारत का एक मीडिया समूह आज के इनफार्मेशन युग में जर्मनी और जर्मन लोगों के साथ कनेक्ट करने का प्रयास कर रहा है। इससे भारत के लोगों को भी जर्मनी और जर्मनी के लोगों को समझने का एक प्लेटफार्म मिलेगा। मुझे इस बात की भी खुशी है की न्यूज़-9 इंग्लिश न्यूज़ चैनल भी लॉन्च किया जा रहा है।

साथियों,

इस समिट की थीम India-Germany: A Roadmap for Sustainable Growth है। और ये थीम भी दोनों ही देशों की Responsible Partnership की प्रतीक है। बीते दो दिनों में आप सभी ने Economic Issues के साथ-साथ Sports और Entertainment से जुड़े मुद्दों पर भी बहुत सकारात्मक बातचीत की है।

साथियों,

यूरोप…Geo Political Relations और Trade and Investment…दोनों के लिहाज से भारत के लिए एक Important Strategic Region है। और Germany हमारे Most Important Partners में से एक है। 2024 में Indo-German Strategic Partnership के 25 साल पूरे हुए हैं। और ये वर्ष, इस पार्टनरशिप के लिए ऐतिहासिक है, विशेष रहा है। पिछले महीने ही चांसलर शोल्ज़ अपनी तीसरी भारत यात्रा पर थे। 12 वर्षों बाद दिल्ली में Asia-Pacific Conference of the German Businesses का आयोजन हुआ। इसमें जर्मनी ने फोकस ऑन इंडिया डॉक्यूमेंट रिलीज़ किया। यही नहीं, स्किल्ड लेबर स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया उसे भी रिलीज़ किया गया। जर्मनी द्वारा निकाली गई ये पहली कंट्री स्पेसिफिक स्ट्रेटेजी है।

साथियों,

भारत-जर्मनी Strategic Partnership को भले ही 25 वर्ष हुए हों, लेकिन हमारा आत्मीय रिश्ता शताब्दियों पुराना है। यूरोप की पहली Sanskrit Grammer ये Books को बनाने वाले शख्स एक जर्मन थे। दो German Merchants के कारण जर्मनी यूरोप का पहला ऐसा देश बना, जहां तमिल और तेलुगू में किताबें छपीं। आज जर्मनी में करीब 3 लाख भारतीय लोग रहते हैं। भारत के 50 हजार छात्र German Universities में पढ़ते हैं, और ये यहां पढ़ने वाले Foreign Students का सबसे बड़ा समूह भी है। भारत-जर्मनी रिश्तों का एक और पहलू भारत में नजर आता है। आज भारत में 1800 से ज्यादा जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं। इन कंपनियों ने पिछले 3-4 साल में 15 बिलियन डॉलर का निवेश भी किया है। दोनों देशों के बीच आज करीब 34 बिलियन डॉलर्स का Bilateral Trade होता है। मुझे विश्वास है, आने वाले सालों में ये ट्रेड औऱ भी ज्यादा बढ़ेगा। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि बीते कुछ सालों में भारत और जर्मनी की आपसी Partnership लगातार सशक्त हुई है।

साथियों,

आज भारत दुनिया की fastest-growing large economy है। दुनिया का हर देश, विकास के लिए भारत के साथ साझेदारी करना चाहता है। जर्मनी का Focus on India डॉक्यूमेंट भी इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। इस डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि कैसे आज पूरी दुनिया भारत की Strategic Importance को Acknowledge कर रही है। दुनिया की सोच में आए इस परिवर्तन के पीछे भारत में पिछले 10 साल से चल रहे Reform, Perform, Transform के मंत्र की बड़ी भूमिका रही है। भारत ने हर क्षेत्र, हर सेक्टर में नई पॉलिसीज बनाईं। 21वीं सदी में तेज ग्रोथ के लिए खुद को तैयार किया। हमने रेड टेप खत्म करके Ease of Doing Business में सुधार किया। भारत ने तीस हजार से ज्यादा कॉम्प्लायेंस खत्म किए, भारत ने बैंकों को मजबूत किया, ताकि विकास के लिए Timely और Affordable Capital मिल जाए। हमने जीएसटी की Efficient व्यवस्था लाकर Complicated Tax System को बदला, सरल किया। हमने देश में Progressive और Stable Policy Making Environment बनाया, ताकि हमारे बिजनेस आगे बढ़ सकें। आज भारत में एक ऐसी मजबूत नींव तैयार हुई है, जिस पर विकसित भारत की भव्य इमारत का निर्माण होगा। और जर्मनी इसमें भारत का एक भरोसेमंद पार्टनर रहेगा।

साथियों,

जर्मनी की विकास यात्रा में मैन्यूफैक्चरिंग औऱ इंजीनियरिंग का बहुत महत्व रहा है। भारत भी आज दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है। Make in India से जुड़ने वाले Manufacturers को भारत आज production-linked incentives देता है। और मुझे आपको ये बताते हुए खुशी है कि हमारे Manufacturing Landscape में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा टू-व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। दूसरा सबसे बड़ा स्टील एंड सीमेंट मैन्युफैक्चरर है, और चौथा सबसे बड़ा फोर व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भी बहुत जल्द दुनिया में अपना परचम लहराने वाली है। ये इसलिए हुआ, क्योंकि बीते कुछ सालों में हमारी सरकार ने Infrastructure Improvement, Logistics Cost Reduction, Ease of Doing Business और Stable Governance के लिए लगातार पॉलिसीज बनाई हैं, नए निर्णय लिए हैं। किसी भी देश के तेज विकास के लिए जरूरी है कि हम Physical, Social और Digital Infrastructure पर Investment बढ़ाएं। भारत में इन तीनों Fronts पर Infrastructure Creation का काम बहुत तेजी से हो रहा है। Digital Technology पर हमारे Investment और Innovation का प्रभाव आज दुनिया देख रही है। भारत दुनिया के सबसे अनोखे Digital Public Infrastructure वाला देश है।

साथियों,

आज भारत में बहुत सारी German Companies हैं। मैं इन कंपनियों को निवेश और बढ़ाने के लिए आमंत्रित करता हूं। बहुत सारी जर्मन कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने अब तक भारत में अपना बेस नहीं बनाया है। मैं उन्हें भी भारत आने का आमंत्रण देता हूं। और जैसा कि मैंने दिल्ली की Asia Pacific Conference of German companies में भी कहा था, भारत की प्रगति के साथ जुड़ने का- यही समय है, सही समय है। India का Dynamism..Germany के Precision से मिले...Germany की Engineering, India की Innovation से जुड़े, ये हम सभी का प्रयास होना चाहिए। दुनिया की एक Ancient Civilization के रूप में हमने हमेशा से विश्व भर से आए लोगों का स्वागत किया है, उन्हें अपने देश का हिस्सा बनाया है। मैं आपको दुनिया के समृद्ध भविष्य के निर्माण में सहयोगी बनने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

Thank you.

दान्के !