"हमारा संविधान एक स्वतंत्र भारत की सोच के रूप में हमारे सामने आया, जो देश की कई पीढ़ियों के सपनों को पूरा कर सकता है"
“संविधान केवल एक पुस्तक नहीं है। यह एक विचार, प्रतिबद्धता और स्वतंत्रता में विश्वास है"
"अधिकारों और कर्तव्यों का समन्वय ही हमारे संविधान को इतना विशेष बनाता है"
“भारत स्वभाव से एक स्वतंत्र सोच वाला देश रहा है। जड़ता हमारे मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं है"

नमस्कार! 

हमारे यहाँ सामान्य जनमानस को प्रेरणा देने के लिए ऋषियों ने मंत्र दिया था - 'चरैवेति- चरैवेति'। 

एक पत्रकार के लिए तो ये मंत्र, नए विचारों की खोज, और समाज के सामने कुछ नया लाने की लगन, यही उसकी सहज साधना होती है। मुझे खुशी है कि रामबहादुर राय जी जिस तरह अपनी लंबी जीवन यात्रा में इस साधना में लगे रहे हैं, आज उसकी एक और सिद्धि हम सबके सामने है। मैं आशा करता हूँ कि 'भारतीय संविधान - अनकही कहानी', आपकी ये पुस्तक अपने शीर्षक को चरितार्थ करेगी और देश के सामने संविधान को और भी व्यापक रूप में प्रस्तुत करेगी। मैं इस अभिनव प्रयास के लिए रामबहादुर राय जी को, और इसके प्रकाशन से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई देता हूँ। 

साथियों,

आप सभी देश के बौद्धिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग हैं। स्वाभाविक है कि आपने इस पुस्तक के लोकार्पण के लिए समय और दिन भी खास चुना है! ये समय देश की आज़ादी के अमृत महोत्सव का है। आज के ही दिन 18 जून को मूल संविधान के पहले संशोधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी ने हस्ताक्षर किए थे। यानी, आज का दिन हमारे संविधान की लोकतान्त्रिक गतिशीलता का पहला दिन था। और इसी दिन आज हम संविधान को एक विशेष दृष्टि से देखने वाली इस किताब का लोकार्पण कर रहे हैं। यही हमारे संविधान की सबसे बड़ी ताकत है, जो हमें विचारों की विविधता और तथ्य-सत्य के अन्वेषण की प्रेरणा देती है। 

साथियों,

हमारा संविधान, आज़ाद भारत की ऐसी परिकल्पना के रूप में हमारे सामने आया था जो देश की कई पीढ़ियों के सपनों को साकार कर सके। संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई थी। यानी, आजादी से भी कई महीने पहले! इस बैठक के पीछे एक बड़ा ऐतिहासिक संदर्भ था, समय और परिस्थितियाँ थीं! आप सब इतिहास और संविधान के जानकार लोग उससे परिचित हैं। लेकिन, मैं इसके पीछे एक भावनात्मक पहलू को भी देखता हूँ। अनिश्चितताओं से भरा वो कालखंड, कई चुनौतियों से जूझ रहा हमारा स्वतन्त्रता आंदोलन,लेकिन फिर भी हमारे देश का आत्मविश्वास कितना अडिग रहा होगा कि उसे अपनी आज़ादी, अपने स्वराज को लेकर पूरा भरोसा था। आज़ादी मिलने से इतना पहले ही देश ने आज़ादी की तैयारी शुरू कर दी थी, अपने संविधान की रूपरेखा के लिए विमर्श शुरू कर दिया था। ये दिखाता है कि भारत का संविधान केवल एक पुस्तक नहीं है, ये एक विचार है, एक निष्ठा है, स्वतंत्रता का एक विश्वास है। 

साथियों,

आज़ादी के अमृत महोत्सव में देश आज स्वतन्त्रता आंदोलन के अनकहे अध्यायों को सामने लाने के लिए सामूहिक प्रयास कर रहा है। जो सेनानी अपना सर्वस्व अर्पण करने के बाद भी विस्मृत रह गए, जो घटनाएँ आज़ादी की लड़ाई को नई दिशा देने के बाद भी भुला दी गईं, और जो विचार आज़ादी की लड़ाई को ऊर्जा देते रहे, फिर भी आज़ादी के बाद हमारे संकल्पों से दूर हो गए, देश आज उन्हें फिर से एक सूत्र में पिरो रहा है, ताकि भविष्य के भारत में अतीत की चेतना और मजबूत हो सके। इसीलिए, आज देश के युवा, अनकहे इतिहास पर शोध कर रहे हैं, किताबें लिख रहे हैं। अमृत महोत्सव के तहत अनेकों कार्यक्रम हो रहे हैं। 'भारतीय संविधान- अनकही कहानी', ये किताब देश के इसी अभियान को एक नई ताकत देने का काम करेगी। आज़ादी के इतिहास के साथ साथ हमारे संविधान के अनकहे अध्याय देश के युवाओं को एक नई सोच देंगे, उनके विमर्श को व्यापक बनाएँगे। रामबहादुर जी ने अपनी इस किताब की एक प्रति बहुत पहले मुझे भेजी थी। मैं उसके कुछ पन्ने पलट रहा था तो मैंने कई रोचक बातें और विचार देखे। जैसे कि एक जगह पर आपने लिखा है कि - ''भारत के संविधान के इतिहास को स्वतन्त्रता संग्राम की लुप्तधारा मान लिया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है''। ''संविधान से परिचित होना हर नागरिक का कर्तव्य है''। किताब की शुरुआत में आपने ये भी लिखा है कि संविधान को लेकर आपकी विशेष रुचि आपातकाल के समय जगी थी, जब मीसा में आपको जेल में बंद किया गया था। यानी, संविधान ने आपको आपके अधिकारों से परिचित कराया, और जब आप इसकी गहराई में उतरे तो आपने संविधान के बोध की पहचान नागरिक कर्तव्य के रूप में की। अधिकार और कर्तव्यों का ये तालमेल ही हमारे संविधान को इतना खास बनाता है। हमारे अधिकार हैं तो कर्तव्य भी हैं, और कर्तव्य हैं तो ही अधिकार भी उतने ही मजबूत होंगे। इसीलिए, आजादी के अमृत काल में आज देश कर्तव्यबोध की बात कर रहा है, कर्तव्यों पर इतना जोर दे रहा है। 

साथियों,

जब हम कोई नए संकल्प लेकर निकलते हैं तो हमारी जानकारी ही हमारी जागरूकता बनती है। बोध ही हमारा प्रबोध कराता है। इसलिए, एक राष्ट्र के रूप में हम संविधान के सामर्थ्य का उतना ही विस्तृत उपयोग कर पाएंगे, जितना हम अपने संविधान को गहराई से जानेंगे। हमारे संविधान की अवधारणा को किस तरह से गांधी जी ने एक नेतृत्व दिया, सरदार पटेल ने धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन प्रणाली को खत्म करके भारतीय संविधान को सांप्रदायिकता से मुक्त कराया, डॉ अंबेडकर ने संविधान की उद्देशिका में बंधुता का समावेश करके 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' को आकार दिया, और किस तरह डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे विद्वानों ने संविधान को भारत की आत्मा से जोड़ने का प्रयास किया, ये किताब ऐसे अनकहे पहलुओं से हमें परिचित कराती है। ये सभी पहलू हमें इस बात के लिए दिशा भी देंगे कि हमारे भविष्य की दिशा क्या होनी चाहिए। 

साथियों, भारत स्वभाव से ही एक मुक्त-विचार देश रहा है। जड़ता हमारे मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं है। संविधान सभा के गठन से लेकर उसकी बहसों तक, संविधान को अपनाने से लेकर आज के इस मुकाम तक, हमने लगातार एक गतिशील और प्रगतिशील संविधान के दर्शन किए हैं। हमने तर्क किए हैं, सवाल उठाए हैं, बहसें की हैं, बदलाव किए हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि यही निरंतरता हमारे जनगण में, और जन-मन में लगातार बनी रहेगी। हम सतत शोध करते रहेंगे, पहले से बेहतर भविष्य को गढ़ते रहेंगे। आप सब प्रबुद्ध लोग इसी तरह देश की इस गतिशीलता को नेतृत्व देते रहेंगे। इसी विश्वास के साथ, आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद!

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PM to attend Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India
December 22, 2024
PM to interact with prominent leaders from the Christian community including Cardinals and Bishops
First such instance that a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India

Prime Minister Shri Narendra Modi will attend the Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) at the CBCI Centre premises, New Delhi at 6:30 PM on 23rd December.

Prime Minister will interact with key leaders from the Christian community, including Cardinals, Bishops and prominent lay leaders of the Church.

This is the first time a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India.

Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) was established in 1944 and is the body which works closest with all the Catholics across India.