मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। देश के हर कोने में ज़्यादातर परिवार अपने बच्चों की exam में जुटे हुए होंगे, जिनके exam ख़त्म हो गए होंगे, वहाँ कुछ relief का माहौल होगा और जहाँ exam चलते होंगे, उन परिवारों में अभी भी थोड़ा-बहुत तो pressure होगा ही होगा। लेकिन ऐसे समय मैं यही कहूँगा कि पिछली बार मैंने जो ‘मन की बात’ में विद्यार्थियों से जो-जो बातें की हैं, उसे दोबारा सुन लीजिए, परीक्षा के समय वो बातें ज़रूर आपको काम आएँगी।
आज 26 मार्च है, 26 मार्च बांग्लादेश का स्वतंत्रता का दिवस है। अन्याय के ख़िलाफ़ एक ऐतिहासिक लड़ाई, बंग-बन्धु के नेतृत्व में बांग्लादेश की जनता की अभूतपूर्व विजय। आज के इस महत्वपूर्ण दिवस पर मैं बांग्लादेश के नागरिक भाइयों-बहनों को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ। और यह कामना करता हूँ कि बांग्लादेश आगे बढ़े, विकास करे और बांग्लादेशवासियों को भी मैं विश्वास दिलाता हूँ कि भारत बांग्लादेश का एक मज़बूत साथी है, एक अच्छा मित्र है और हम कंधे-से-कंधा मिला करके इस पूरे क्षेत्र के अन्दर शांति, सुरक्षा और विकास में अपना योगदान देते रहेंगे।
हम सबको इस बात का गर्व है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर, उनकी यादें, हमारी एक साझी विरासत है। बांग्लादेश का राष्ट्रगान भी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचना है। गुरुदेव टैगोर के बारे में एक बहुत interesting बात यह है कि 1913 में वे न केवल नोबेल (Nobel) पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे, बल्कि उन्हें अंग्रेज़ों ने ‘Knighthood’ की भी उपाधि दी थी। और जब 1919 में जलियांवाला बाग़ पर अंग्रेज़ों ने क़त्ले-आम किया, तो रवीन्द्रनाथ टैगोर उन महापुरुषों में थे, जिन्होंने अपनी आवाज़ बुलंद की थी और यही कालखंड था; जब 12 साल के एक बच्चे के मन पर इस घटना का गहरा प्रभाव हुआ था। किशोर-अवस्था में खेत-खलिहान में हँसते-कूदते उस बालक को जलियांवाला बाग़ के नृशंस हत्याकांड ने जीवन की एक नयी प्रेरणा दे दी थी। और 1919 में 12 साल का वो बालक भगत हम सबके प्रिय, हम सबकी प्रेरणा - शहीद भगतसिंह, आज से तीन दिन पूर्व, 23 मार्च को भगतसिंह जी को और उनके साथी, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेज़ों ने फांसी पर लटका दिया था। और हम सब जानते हैं 23 मार्च की वो घटना - भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु के चेहरे पर माँ-भारती की सेवा करने का संतोष - मृत्यु का भय नहीं था; जीवन के सारे सपने, माँ-भारती की आज़ादी के लिए समाहित कर दिए थे। और ये तीनों वीर आज भी हम सबकी प्रेरणा हैं। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान की गाथा को हम शब्दों में अलंकृत भी नहीं कर पाएँगे। और पूरी ब्रिटिश सल्तनत इन तीनों युवकों से डरती थी। जेल में बंद थे, फांसी तय थी, लेकिन इनके साथ कैसे आगे बढ़ा जाये, इसकी चिंता ब्रिटिशों को लगी रहती थी। और तभी तो 24 मार्च को फांसी देनी थी, लेकिन 23 मार्च को ही दे दी गयी थी; चोरी-छिपे से किया गया था, जो आम तौर पर नहीं किया जाता। और बाद में उनके शरीर को आज के पंजाब में ला करके, अंग्रेजों ने चुपचाप जला दिया था। कई वर्षों पूर्व जब पहली बार मुझे वहाँ जाने का मौका मिला था, उस धरती में एक प्रकार के vibration मैं अनुभव करता था। और मैं देश के नौजवानों को ज़रूर कहूंगा - जब भी मौका मिले तो, पंजाब जब जाएँ, तो भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, भगतसिंह की माताजी और बटुकेश्वर दत्त की समाधि के स्थान पर अवश्य जाएँ।
यही तो कालखंड था, जब आज़ादी की ललक, उसकी तीव्रता, उसका व्याप बढ़ता ही चला जा रहा था। एक तरफ़ भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे वीरों ने सशस्त्र क्रांति के लिये युवकों को प्रेरणा दी थी। तो आज से ठीक सौ साल पहले, 10 अप्रैल, 1917 - महात्मा गाँधी ने चंपारण सत्याग्रह किया था। यह चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी का वर्ष है। भारत की आज़ादी के आन्दोलन में, गाँधी विचार और गाँधी शैली, इसका प्रकट रूप पहली बार चंपारण में नज़र आया। आज़ादी की पूरी आंदोलन यात्रा में यह एक turning point था, ख़ास करके संघर्ष के तौर-तरीक़े की दृष्टि से। यही वो कालखंड था, चंपारण का सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह, अहमदाबाद में मिल-मज़दूरों की हड़ताल, और इन सबमें महात्मा गाँधी की विचार और कार्यशैली का गहरा प्रभाव नज़र आता था। 1915 में गाँधी विदेश से वापस आए और 1917 में बिहार के एक छोटे से गाँव में जाकर के उन्होंने देश को नई प्रेरणा दी। आज हमारे मन में महात्मा गाँधी की जो छवि है, उस छवि के आधार पर हम चंपारण सत्याग्रह का मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं। कल्पना कीजिए कि एक इंसान, जो 1915 में हिन्दुस्तान वापस आए, सिर्फ़ दो साल का कार्यकाल। न देश उनको जानता था, न उनका प्रभाव था, अभी तो शुरुआत थी। उस समय उनको कितना कष्ट झेलना पडा होगा, कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी, इसका हम अंदाज़ कर सकते हैं। और चंपारण सत्याग्रह ऐसा था कि जिसमें महात्मा गाँधी के संगठन कौशल, महात्मा गाँधी की भारतीय समाज की नब्ज़ को जानने की शक्ति, महात्मा गाँधी अपने व्यवहार से अंग्रेज सल्तनत के सामने ग़रीब से ग़रीब, अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति को संघर्ष के लिये संगठित करना, प्रेरित करना, संघर्ष के लिये मैदान में लाना, ये अद्भुत शक्ति के दर्शन कराता है। और इसलिये जिस रूप में हम महात्मा गाँधी की विराटता को अनुभव करते हैं। लेकिन अगर सौ साल पहले के गाँधी को सोचें, उस चंपारण सत्याग्रह वाले गाँधी को, तो सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए चंपारण सत्याग्रह एक बहुत ही अध्ययन का विषय है। सार्वजनिक जीवन की शुरुआत कैसे की जा सकती है, ख़ुद कितना परिश्रम करना होता है और गाँधी ने कैसे किया था, यह हम उनसे सीख सकते हैं। और वो समय था, जितने बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं के हम नाम सुनते हैं, गाँधी ने उस समय राजेंद्र बाबू हों, आचार्य कृपलानी जी हों; सबको गाँवों में भेजा था। लोगों के साथ जुड़ करके, लोग जो काम कर रहे हैं, उसी को आज़ादी के रंग से रंग देना - इसके तरीक़े सिखाए थे। और अंग्रेज़ लोग समझ ही नहीं पाए कि ये गाँधी का तौर-तरीका क्या है। संघर्ष भी चले, सृजन भी चले और दोनों एक साथ चले। गाँधी ने जैसे एक सिक्के के दो पहलू बना दिए थे, एक सिक्के का एक पहलू संघर्ष, तो दूसरा पहलू सृजन। एक तरफ़ जेल भर देना, तो दूसरी तरफ़ रचनात्मक कार्यों में अपने आप को खपा देना। एक बड़ा अद्भुत balance गाँधी की कार्य-शैली में था। सत्याग्रह शब्द क्या होता है, असहमति क्या हो सकती है, इतनी बड़ी सल्तनत के सामने असहयोग क्या होता है - एक पूरी नई विभावना गाँधी ने शब्दों के द्वारा नहीं; एक सफल प्रयोग के द्वारा प्रस्थापित कर दी थी।
आज जब देश चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी मना रहा है, तब भारत के सामान्य मानव की शक्ति कितनी अपार है, उस अपार शक्ति को आज़ादी के आन्दोलन की तरह, स्वराज से सुराज की यात्रा भी, सवा-सौ करोड़ देशवासियों की संकल्प शक्ति, परिश्रम की पराकाष्ठा, ‘सर्वजन हिताय – सर्वजन सुखाय’ इस मूल मन्त्र को ले करके, देश के लिये, समाज के लिये, कुछ कर-गुज़रने का अखंड प्रयास ही आज़ादी के लिये मर-मिटने वाले उन महापुरुषों के सपनों को साकार करेगा।
आज जब हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, तब कौन हिन्दुस्तानी ऐसा होगा, जो भारत को बदलना नहीं चाहता होगा; कौन हिन्दुस्तानी होगा, जो देश में बदलाव के लिये हिस्सेदार बनना नहीं चाहता हो। सवा-सौ करोड़ देशवासियों की ये बदलाव की चाह, ये बदलाव का प्रयास, यही तो है, जो नये भारत, New India, इसकी मज़बूत नींव डालेगा। New India न तो कोई सरकारी कार्यक्रम है, न ही किसी राजनैतिक दल का manifesto है और न ही ये कोई project है। New India सवा-सौ करोड़ देशवासियों का आह्वान है। यही भाव है कि सवा-सौ करोड़ देशवासी मिलकर के कैसा भव्य भारत बनाना चाहते हैं। सवा-सौ करोड़ देशवासियों के मन के अन्दर एक आशा है, एक उमंग है, एक संकल्प है, एक चाह है।
मेरे प्यारे देशवासियो, अगर हम थोड़ा सा अपनी निजी ज़िन्दगी से हट करके संवेदना-सभर (संवेदना से भरी) नज़र से समाज में चल रही गतिविधियों को देखेंगें, हमारे अगल-बगल में क्या हो रहा है, उसको जानने-समझने का प्रयास करेंगे, तो हम हैरान हो जाएँगे कि लक्षावधि लोग निस्वार्थ भाव से अपनी निजी ज़िम्मेवारियों के अतिरिक्त समाज के लिये, शोषित-पीड़ित-वंचितों के लिये, ग़रीबों के लिये, दुखियारों के लिये कुछ-न-कुछ करते हुए नज़र आते हैं। और वे भी एक मूक सेवक की तरह जैसे तपस्या करते हों, साधना करते हों, वो करते रहते हैं। कई लोग होते हैं, जो नित्य अस्पताल जाते हैं, मरीज़ों की मदद करते हैं; अनेक लोग होते हैं, पता चलते ही रक्तदान के लिए दौड़ जाते हैं; अनेक लोग होते हैं, कोई भूखा है, तो उसके भोजन की चिंता करते हैं। हमारा देश बहुरत्ना वसुन्धरा है। जन-सेवा ही प्रभु-सेवा, यह हमारी रगों में है। अगर एक बार हम उसको सामूहिकता के रूप में देखें, संगठित रूप में देखें, तो ये कितनी बड़ी शक्ति है। जब New India की बात होती है, तो उसकी आलोचना होना, विवेचना होना, भिन्न नज़रिये से उसे देखना, ये बहुत स्वाभाविक है और ये लोकतंत्र में अवकार्य है। लेकिन ये बात सही है कि सवा-सौ करोड़ देशवासी अगर संकल्प करें, संकल्प को सिद्ध करने के लिये राह तय कर लें, एक-के-बाद-एक क़दम उठाते चलें, तो New India सवा-सौ करोड़ देशवासियों का सपना हमारी आँखों के सामने सिद्ध हो सकता है। और ज़रूरी नहीं है कि ये सब चीज़ें बजट से होती हैं, सरकारी project से होती हैं, सरकारी धन से होती हैं। अगर हर नागरिक संकल्प करे कि मैं traffic के नियमों का पालन करूँ, अगर हर नागरिक संकल्प करे कि मैं मेरी ज़िम्मेवारियों को पूरी ईमानदारी के साथ निभाऊँगा, अगर हर नागरिक संकल्प करे कि सप्ताह में एक दिन मैं petrol-diesel का उपयोग नहीं करूँगा अपने जीवन में; चीज़ें छोटी-छोटी होती हैं। आप देखिए इस देश को, जो New India का सपना सवा-सौ करोड़ देशवासी देख रहे हैं, वो अपनी आँखों के सामने साकार होता देख पाएँगे। कहने का तात्पर्य यही है कि हर नागरिक अपने नागरिक धर्म का पालन करे, कर्तव्य का पालन करे। यही अपने आप में New India की एक अच्छी शुरुआत बन सकता है।
आइए, 2022 - भारत की आज़ादी के 75 साल होने जा रहे हैं। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को याद करते हैं, चंपारण के सत्याग्रह को याद करते हैं; तो क्यों न हम भी ‘स्वराज से सुराज’ की इस यात्रा में अपने जीवन को अनुशासित करके, संकल्पबद्ध करके क्यों न जोड़ें। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ – आइए।
मेरे प्यारे देशवासियो, मैं आज आपका आभार भी व्यक्त करना चाहता हूँ। पिछले कुछ महीनों में हमारे देश में एक ऐसा माहौल बना, बहुत बड़ी मात्रा में लोग digital payment डिजिधन आंदोलन में शरीक़ हुए। बिना नक़द कैसे लेन-देन की जा सकती है, उसकी जिज्ञासा भी बढ़ी है, ग़रीब से ग़रीब भी सीखने का प्रयास कर रहा है और धीरे-धीरे लोग भी बिना नक़द कारोबार कैसे करना, उसकी ओर आगे बढ़ रहे हैं। Demonetisation नोटबंदी के बाद से digital payment के अलग-अलग तरीक़ों में काफ़ी वृद्धि देखने को मिली है। BHIM-App इसको प्रारंभ किए हुए अभी दो-ढाई महीने का ही समय हुआ है, लेकिन अब तक क़रीब-क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों ने इसे download किया है।
मेरे प्यारे देशवासियो, काले धन, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई को हमें आगे बढ़ाना है। सवा-सौ करोड़ देशवासी इस एक वर्ष में ढाई हज़ार करोड़ digital लेन-देन का काम करने का संकल्प कर सकते हैं क्या? हमने बजट में घोषणा की है। सवा-सौ करोड़ देशवासियों के लिये ये काम अगर वो चाहें, तो एक साल का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं, छः महीने में कर सकते हैं। ढाई हज़ार करोड़ digital transaction, अगर हम स्कूल में fee भरेंगे तो cash से नहीं भरेंगे, digital से भरेंगे; हम रेलवे में प्रवास करेंगे, विमान में प्रवास करेंगे, digital से payment करेंगे; हम दवाई ख़रीदेंगे, digital payment करेंगे; हम सस्ते अनाज की दुकान चलाते हैं, हम digital व्यवस्था से करेंगे। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ये कर सकते हैं हम। आपको कल्पना नहीं है, लेकिन इससे आप देश की बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं और काले धन, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई के आप एक वीर सैनिक बन सकते हैं। पिछले दिनों लोक-शिक्षा के लिये, लोक-जागृति के लिये डिजिधन मेला के कई कार्यक्रम हुए हैं। देश भर में 100 कार्यक्रम करने का संकल्प है।80-85 कार्यक्रम हो चुके हैं। उसमें इनाम योजना भी थी। क़रीब साढ़े बारह लाख लोगों ने उपभोक्ता वाला ये इनाम प्राप्त किया है; 70 हज़ार लोगों ने व्यापारियों के लिये जो इनाम था, वो प्राप्त हुआ है। और हर किसी ने इस काम को आगे बढ़ाने का संकल्प भी किया है।14 अप्रैल डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्म-जयंती है। और बहुत पहले से जैसे तय हुआ था, 14 अप्रैल को बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्म-जयंती पर इस डिजि-मेला का समापन होने वाला है। सौ दिन पूरे हो करके एक आख़िरी बहुत बड़ा कार्यक्रम होने वाला है; बहुत बड़े draw का भी उसमें प्रावधान है। मुझे विश्वास है कि बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्म-जयंती का जितना भी समय अभी हमारे पास बचा है, BHIM-App का हम प्रचार करें। नक़द कम कैसे हो, नोटों का व्यवहार कम कैसे हो, उसमें हम अपना योगदान दें।
मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे ख़ुशी है कि मुझे हर बार, जब भी ‘मन की बात’ के लिये लोगों से सुझाव माँगता हूँ, अनेक-अनेक प्रकार के सुझाव आते हैं। लेकिन ये मैंने देखा है कि स्वच्छता के विषय में हर बार आग्रह रहता ही रहता है।
मुझे देहरादून से गायत्री नाम की एक बिटिया ने, जो कि 11वीं की छात्रा है, उसने फ़ोन करके एक message भेजा है: -
“आदरणीय प्रधानाचार्य, प्रधानमंत्री जी, आपको मेरा सादर प्रणाम। सबसे पहले तो आपको बहुत बधाइयाँ कि आप इस चुनाव में आपने भारी मतों से विजय हासिल की है। मैं आपसे अपने मन की बात करना चाहती हूँ। मैं कहना चाहती हूँ कि लोगों को यह समझाना होगा कि स्वच्छता कितनी ज़रूरी है। मैं रोज़ उस नदी से हो कर जाती हूँ, जिसमें लोग बहुत सा कूड़ा-करकट भी डालते हैं और नदियों को दूषित करते हैं। वह नदी रिस्पना पुल से होते हुए आती है और मेरे घर तक भी आती है। इस नदी के लिये हमने बस्तियों में जा करके हमने रैली भी निकाली और लोगों से बातचीत भी की, परन्तु उसका कुछ फ़ायदा न हुआ। मैं आपसे ये कहना चाहती हूँ कि अपनी एक टीम भेजकर या फिर न्यूज़पेपर के माध्यम से इस बात को उजागर किया जाए, धन्यवाद।”
देखिए भाइयो-बहनो, 11वीं कक्षा की एक बेटी की कितनी पीड़ा है। उस नदी में कूड़ा-कचरा देख कर के उसको कितना गुस्सा आ रहा है। मैं इसे अच्छी निशानी मानता हूँ। मैं यही तो चाहता हूँ, सवा-सौ करोड़ देशवासियों के मन में गन्दगी के प्रति गुस्सा पैदा हो। एक बार गुस्सा पैदा होगा, नाराज़गी पैदा होगी, उसके प्रति रोष पैदा होगा, हम ही गन्दगी के खिलाफ़ कुछ-न-कुछ करने लग जाएँगे। और अच्छी बात है कि गायत्री स्वयं अपना गुस्सा भी प्रकट कर रही है, मुझे सुझाव भी दे रही है, लेकिन साथ-साथ ख़ुद ये भी कह रही है कि उसने काफ़ी प्रयास किए; लेकिन विफलता मिली। जब से स्वच्छता के आन्दोलन की शुरुआत हुई है, जागरूकता आई है। हर कोई उसमें सकारात्मक रूप से जुड़ता चला गया है। उसने एक आंदोलन का रूप भी लिया है।गन्दगी के प्रति नफ़रत भी बढ़ती चली जा रही है। जागरूकता हो, सक्रिय भागीदारी हो, आंदोलन हो, इसका अपना महत्व है ही है। लेकिन स्वच्छता आंदोलन से ज़्यादा आदत से जुड़ी हुई होती है। ये आंदोलन आदत बदलने का आंदोलन है, ये आंदोलन स्वच्छता की आदत पैदा करने का आंदोलन है, आंदोलन सामूहिक रूप से हो सकता है। काम कठिन है, लेकिन करना है। मुझे विश्वास है कि देश की नयी पीढ़ी में, बालकों में, विद्यार्थियों में, युवकों में, ये जो भाव जगा है, ये अपने-आप में अच्छे परिणाम के संकेत देता हैI आज की मेरी ‘मन की बात’ में गायत्री की बात जो भी सुन रहे हैं, मैं सारे देशवासियों को कहूँगा कि गायत्री का संदेश हम सब के लिये संदेश बनना चाहिए।
मेरे प्यारे देशवासियो, जब से मैं ‘मन की बात’ कार्यक्रम को कर रहा हूँ, प्रारंभ से ही एक बात पर कई सुझाव मुझे मिलते रहे हैं और वो ज़्यादातर लोगों ने चिंता जताई है food wastage के संबंध में। हम जानते हैं कि हम परिवार में भी और सामूहिक भोजन समारोह में भी ज़रूरत से ज़्यादा plate में ले लेते हैं। जितनी चीज़ें दिखाई दे, सब सारी की सारी plate में भर देते हैं और फिर खा नहीं पाते हैं। जितना plate में भरते हैं, उससे आधा भी पेट में नहीं भरते हैं और फिर वहीं छोड़ कर निकल जाते हैं। आपने कभी सोचा है कि हम जो ये जूठन छोड़ देते हैं, उससे हम कितनी बर्बादी करते हैं; क्या कभी सोचा है कि अगर जूठन न छोड़ें, तो ये कितने ग़रीबों का पेट भर सकता है। ये विषय ऐसा नहीं है कि जो समझाना पड़े। वैसे हमारे परिवार में छोटे बालकों को जब माँ परोसती है, तो कहती है कि बेटा, जितना खा सकते हो, उतना ही लो। कुछ-न-कुछ तो प्रयास होता रहता है, लेकिन फिर भी इस विषय पर उदासीनता एक समाजद्रोह है, ग़रीबों के साथ अन्याय है। दूसरा, अगर बचत होगी, तो परिवार का भी तो आर्थिक लाभ है। समाज के लिये सोचें, अच्छी बात है, लेकिन ये विषय ऐसा है कि परिवार का भी लाभ है। मैं इस विषय पर ज़्यादा आग्रह नहीं कर रहा हूँ, लेकिन मैं चाहूँगा कि ये जागरूकता बढ़नी चाहिए। मैं कुछ युवकों को तो जानता हूँ कि जो इस प्रकार के आंदोलन चलाते हैं, उन्होंने Mobile App बनाए हैं और कहीं पर भी इस प्रकार की जूठन पड़ी है, तो लोग बुलाते हैं, वो लोग सब इकठ्ठा करते हैं और इसका सदुपयोग करते हैं, मेहनत करते हैं और हमारे ही देश के नौजवान ही करते हैं। हिंदुस्तान के हर राज्य में कहीं-न-कहीं आपको ऐसे लोग मिलेंगे। उनका जीवन भी हम लोगों को प्रेरणा दे सकता है कि हम जूठन न करेंI हम उतना ही लें, जितना खाना है।
देखिए, बदलाव के लिये यही तो रास्ते होते हैं। और जो लोग शरीर स्वास्थ्य के संबंध में जागरूक होते हैं, वो तो हमेशा कहते हैं - पेट भी थोड़ा ख़ाली रखो, प्लेट भी थोड़ी ख़ाली रखो। और जब स्वास्थ्य की बात आई है, तो 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस है, World Health Day. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक Universal Health Coverage यानि कि सबको स्वास्थ्य का लक्ष्य तय किया है। इस बार United Nations ने 7 अप्रैल विश्व स्वास्थ्य दिवस पर Depression विषय पर focus किया है। Depression ये इस बार की उनकी theme है। हम लोग भी Depression शब्द से परिचित हैं, लेकिन अगर शाब्दिक अर्थ करना है, तो कुछ लोग उसको अवसाद भी कहते हैं। एक अनुमान है कि दुनिया के अन्दर 35 करोड़ से ज़्यादा लोग मानसिक रूप से, Depression से पीड़ित हैं। मुसीबत ये है कि हमारे अगल-बगल में भी इस बात को हम समझ नहीं पाते हैं और शायद इस विषय में खुल कर के बात करने में हम संकोच भी करते हैं। जो स्वयं Depression महसूस करता है, वो भी कुछ बोलता नहीं, क्योंकि वो थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करता है।
मैं देशवासियों से कहना चाहूँगा कि Depression ऐसा नहीं है कि उससे मुक्ति नहीं मिल सकती है। एक मनोवैज्ञानिक माहौल पैदा करना होता है और उसकी शुरुआत होती है। पहला मंत्र है, Depression के suppression की बजाय इसके expression की ज़रूरत है; अपने साथियों के बीच, मित्रों के बीच, माँ-बाप के बीच, भाइयों के बीच, teacher के साथ; खुल कर के कहिए आपको क्या हो रहा है। कभी-कभी अकेलापन ख़ास कर के hostel में रहने वाले बच्चों को तकलीफ़ ज़्यादा हो जाती है। हमारे देश का सौभाग्य रहा कि हम लोग संयुक्त परिवार में पले-बढ़े हैं, विशाल परिवार होता है, मेल-जोल रहता है और उसके कारण Depression की संभावनायें ख़त्म हो जाती हैं, लेकिन फिर भी मैं माँ-बाप को कहना चाहूँगा कि आपने कभी देखा है कि आपका बेटा या बेटी या परिवार का कोई भी सदस्य - पहले जब आप खाना खाते थे, सब लोग साथ खाते थे, लेकिन एक परिवार का व्यक्ति - वो कहता है - नहीं, मैं बाद में खाऊंगा - वो table पर नहीं आता है। घर में सब लोग कहीं बाहर जा रहे हैं, तो कहता है - नहीं-नहीं, मुझे आज नहीं आना है - अकेला रहना पसंद करता है। आपका कभी ध्यान गया है कि ऐसा क्यों करता है? आप ज़रूर मानिए कि वो Depression की दिशा का पहला क़दम है, अगर वो आप से समूह में रहना पसंद नहीं करता है, अकेला एक कोने में चला जा रहा है; तो प्रयत्नपूर्वक देखिए कि ऐसा न होने दें। उसके साथ खुल कर के जो बात करते हैं, ऐसे लोगों के साथ उसको बीच में रहने का अवसर दीजिए। हँसी-ख़ुशी की खुल कर के बातें करते-करते-करते उसको expression के लिये प्रेरित करें, उसके अन्दर कौन-सी कुंठा कहाँ पड़ी है, उसको बाहर निकालिए; ये उत्तम उपाय है। और Depression मानसिक और शारीरिक बीमारियों का कारण बन जाता है। जैसे Diabetes हर प्रकार की बीमारियों का यजमान बन जाता है, वैसे Depression भी टिकने की, लड़ने की, साहस करने की, निर्णय करने की, हमारी सारी क्षमताओं को ध्वस्त कर देता है। आपके मित्र, आपका परिवार, आपका परिसर, आपका माहौल - ये मिलकर के ही आपको Depression में जाने से रोक भी सकते हैं और गए हैं, तो बाहर ला सकते हैं। एक और भी तरीक़ा है , अगर अपनों के बीच में आप खुल करके अपने expression नहीं कर पाते हों, तो एक काम कीजिए, अगल-बगल में कही सेवा-भाव से लोगों की मदद करने चले जाइए; मन लगा के मदद कीजिए, उनके सुख-दुःख को बाँटिए, आप देखना, आपके भीतर का दर्द यूँ ही मिटता चला जाएगा उनके दुखों को अगर आप समझने की कोशिश करोगे, सेवा-भाव से करोगे, आपके अन्दर एक नया आत्मविश्वास पैदा होगा। औरों से जुड़ने से, किसी की सेवा करने से, और निःस्वार्थ भाव से अगर सेवा करते हैं, तो आप अपने मन के बोझ को बहुत आसानी से हल्का कर सकते है।
वैसे योग भी अपने मन को स्वस्थ रखने के लिये एक अच्छा मार्ग है। तनाव से मुक्ति, दबाव से मुक्ति, प्रसन्न चित्त की ओर प्रयाण - योग बहुत मदद करता है। 21 जून अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, ये तीसरा वर्ष होगा। आप भी अभी से तैयारी कीजिए और लाखों की तादाद में सामूहिक योग उत्सव मनाना चाहिए। आपके मन में तीसरे अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के संबंध में अगर कोई सुझाव है, तो आप मेरे mobile application के माध्यम से अपने सुझाव मुझे ज़रूर भेजें, मार्गदर्शन करें। योग के संबंध में जितने गीत, काव्यमय रचनायें आप तैयार कर सकते हैं, वो करनी चाहिए, ताकि वो सहज रूप से लोगों को समझ आ जाता है।
माताओं और बहनों से भी मैं ज़रूर आज एक बात करना चाहूँगा, क्योंकि आज health की ही चर्चा काफ़ी निकली है, स्वास्थ्य की बातें काफ़ी हुई हैं। तो पिछले दिनों भारत सरकार ने एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है। हमारे देश में जो working class women हैं, कामकाजी वर्ग में जो हमारी महिलायें हैं और दिनों-दिन उनकी संख्या भी बढ़ रही है, उनकी भागीदारी बढ़ रही है और ये स्वागत योग्य है, लेकिन साथ-साथ, महिलाओं के पास विशेष ज़िम्मेवारियाँ भी हैं। परिवार की ज़िम्मेवारियाँ वो संभालती हैं, घर की आर्थिक ज़िम्मेवारियाँ भी उसकी भागीदारी भी उसको करनी पड़ती है और उसके कारण कभी-कभी नवजात शिशु के साथ अन्याय हो जाता है। भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा फ़ैसला किया है। ये जो कामकाजी वर्ग की महिलायें हैं, उनको प्रसूति के समय, pregnancy के समय, delivery के समय, maternity leave जो पहले 12 सप्ताह मिलती थी, अब 26 सप्ताह दी जाएगी। दुनिया में शायद दो या तीन ही देश हैं, जो हम से आगे हैं। भारत ने एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण फ़ैसला हमारी इन बहनों के लिये किया है। और उसका मूल उद्देश्य उस नवजात शिशु की देखभाल, भारत का भावी नागरिक, जन्म के प्रारम्भिक काल में उसकी सही देखभाल हो, माँ का उसको भरपूर प्यार मिले; तो हमारे ये बालक बड़े हो करके देश की अमानत बनेंगे। माताओं का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और इसलिये ये बहुत बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय है। और इसके कारण formal sector में काम करने वाली क़रीब 18 लाख महिलाओं को इसका फ़ायदा मिलेगा।
मेरे प्यारे देशवासियो, 5 अप्रैल को रामनवमी का पावन पर्व है, 9 अप्रैल को महावीर जयंती है, 14 अप्रैल को बाबा साहब अम्बेडकर की जन्म-जयंती है; ये सभी महापुरुषों का जीवन हमें प्रेरणा देता रहे, New India के लिये संकल्प करने की ताक़त दे। दो दिन के बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वर्ष प्रतिपदा, नव संवत्सर, इस नववर्ष के लिये आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें। वसन्त ऋतु के बाद फ़सल पकने के प्रारंभ और किसानों को उनकी मेहनत का फल मिलने का ये ही समय है। हमारे देश के अलग-अलग कोने में इस नववर्ष को अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में गुड़ी-पड़वा, आंध्र-कर्नाटक में नववर्ष के तौर पर उगादी, सिन्धी चेटी-चांद, कश्मीरी नवरेह, अवध के क्षेत्र में संवत्सर पूजा, बिहार के मिथिला में जुड़-शीतल और मगध में सतुवानी का त्योहार नववर्ष पर होता है। अनगिनत, भारत इतनी विविधताओं से भरा हुआ देश है। आपको भी इस नववर्ष की मेरी तरफ़ से बहुत-बहुत शुभकामनायें। बहुत-बहुत धन्यवाद।
PM @narendramodi extends his greetings to the people of Bangladesh on their Independence Day. #MannKiBaat pic.twitter.com/1ku2W7s7p1
— PMO India (@PMOIndia) March 26, 2017
PM @narendramodi pays tributes to the respected Sheikh Mujibur Rahman. #MannKiBaat pic.twitter.com/VKbGsmAaVD
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India will always stand shoulder to shoulder with the people of Bangladesh. #MannKiBaat pic.twitter.com/kzM1vFV2GU
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The massacre in Amritsar in 1919 left a deep impact on Shaheed Bhagat Singh. #MannKiBaat pic.twitter.com/0rpniYbwny
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Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru were not scared of death. They lived and died for our nation. #MannKiBaat pic.twitter.com/o7MESSgexb
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Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru continue to inspire the nation. #MannKiBaat pic.twitter.com/5scXAAaEpr
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He returned to India and in two years he went to Bihar and what he did inspired the whole nation: PM on Gandhi Ji #MannKiBaat pic.twitter.com/1qHWEVTpnv
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The Champaran Satyagraha showed us how special Mahatma Gandhi was and how unique his personality was. #MannKiBaat pic.twitter.com/5l65xWjsK8
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New India manifests the strength and skills of 125 crore Indians, who will create a Bhavya and Divya Bharat. #MannKiBaat pic.twitter.com/3JhJRSoiWh
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Fulfilling the dreams and aspirations of the people of India. #MannKiBaat pic.twitter.com/vBzpu4xGYC
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India has extended support to the movement towards digital transactions. People of India have rejected corruption & black money. #MannKiBaat pic.twitter.com/mRKoeWH45L
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Whenever I ask for ideas and suggestions for #MannKiBaat, one theme on which I keep getting suggestions is Swachhata. #MannKiBaat pic.twitter.com/uhsZC6ETfx
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People of India are getting angry as far as dirt is concerned and this is a welcome sign. #MannKiBaat pic.twitter.com/ooL1l5fIEB
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Making cleanliness an integral part of our lives and ensuring a clean India. #MannKiBaat pic.twitter.com/hJUDNRuVjv
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Wastage of food is unfortunate. I know of several youngsters who are using technology & helping prevent wastage of food: PM #MannKiBaat pic.twitter.com/9d3DmEP0Hx
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The Prime Minister speaks about mental health and depression. #MannKiBaat pic.twitter.com/qy1HbLNVVt
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Depression can be overcome. We all can play a role in helping those suffering from depression overcome it. #MannKiBaat pic.twitter.com/AsKR6HeDu0
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Always good to share your feelings with others, if feeling depressed. #MannKiBaat pic.twitter.com/N94tAUwSap
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Tell us how to draw more people towards practising Yoga and how to make the 3rd International Day of Yoga memorable. #MannKiBaat pic.twitter.com/GFgiRKghUX
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PM @narendramodi speaks about the benefits of the Maternity Bill. #MannKiBaat pic.twitter.com/sPlNwxjWSf
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