प्रश्न 1: प्रधानमंत्री महोदय, एएनआई से बात करने के लिए धन्यवाद, सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर आपको बधाई। 1-10 के पैमाने में आप अपनी सरकार को कितने अंक देंगे?

उत्तर: यह अधिकार इस देश के लोगों का है और वे ही हमारा मूल्यांकन करेंगे। मैं उनके अधिकार कैसे छीन सकता हूँ? मैंने देश को अपना रिपोर्ट कार्ड दे दिया है। हाल ही में, मीडिया ने कुछ सर्वेक्षणों के निष्कर्ष प्रकाशित किये हैं। आपने पहले ही देख लिया होगा। मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि हमने एक ठोस नींव रखी है जिस पर लोग हमारा मूल्यांकन कर सकते हैं।

प्रश्न 2: आप “अच्छे दिन” लाने के वादे के साथ आये थे। क्या आपकी सरकार उन लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम हो पाई जो आपने अपने पहले साल में निर्धारित किये थे?

उत्तर: हां। हमने जितना काम किया है, उससे मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूँ। सबसे संतोषजनक बात यह रही कि हमने जो वादे किये थे कि हम ईमानदारी से काम करेंगे, हमारे इरादे बिल्कुल स्पष्ट होंगे और हम जो भी कार्य करेंगे वो देश के हित में होगा और इससे देश को दीर्घकालीन लाभ मिलेगा, हम इन वादों पर खड़े उतरे। एक साल पहले की स्थिति को याद कीजिये। सरकार में विभिन्न स्तरों पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला हुआ था और रोज नए-नए घोटाले सामने आते थे। कुछ व्यक्ति-विशेष हमारे कीमती प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे थे। इसके विपरीत, मेरी सरकार पर न ही भ्रष्टाचार का आरोप लगा है और न ही कोई घोटाले की बात सामने आई है। भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या थी। हम एक साफ़-सुथरी, पारदर्शी और कुशल सरकार लेकर आए हैं। बुरे दिनों की विदाई हुई है। क्या यह देश के लिए “अच्छे दिन” नहीं है? 

प्रश्न 3: पिछले वर्ष आपकी सबसे बड़ी सफलता क्या रही?

उत्तर: मेरी सरकार की उपलब्धियां और सफलताएं अनेक हैं। हालांकि, मैं यह मानता हूँ कि एक सरकार की सफलता इस बात में निहित है कि दूरदराज के गाँव के लोगों तक उसकी पहुँच हो। इसलिए, हम गरीब और वंचितों के हितों के लिए प्रयास कर रहे हैं। हमने देश के दूरस्थ गांवों में रहने वाले लोगों पर विशेष ध्यान दिया है। हमारा उद्देश्य जीवन, बुनियादी ढांचे और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाना है। हमने सभी मोर्चों पर एक साथ काम किया है ताकि आम आदमी के चेहरे पर एक मुस्कान लाई जा सके। उदाहरण के तौर पर, कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए खाद्य पदार्थों की कीमतों को नियंत्रित करना; सड़क एवं रेलवे में सुधार; बिजली उत्पादन एवं इसकी 24x7 उपलब्धता; आईआईटी, आईआईएम और एम्स की स्थापना; स्कूलों में शौचालयों का निर्माण; हेरिटेज सिटी का निर्माण; बेघर के लिए घरों का निर्माण; साफ़-सफाई; सबको डिजिटल रूप से जोड़ना, विश्व स्तर के उत्पाद बनाने से लेकर कौशल विकास एवं रोजगार सृजन; जिनके पास फण्ड नहीं है, उन्हें फण्ड देना; बैंकिंग प्रणाली को मजबूत बनाना; आम आदमी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने से लेकर श्रम कल्याण सुनिश्चित करना; खेतों की सिंचाई से लेकर नदियों की स्थिति में सुधार लाना; राज्यों के साथ सहयोग बढ़ाने से लेकर विदेशी संबंधों को मजबूत बनाना; हमने एक नई सोच और तेज गति से अपने सारे कार्य किये हैं।

प्रश्न 4: चुनाव के समय आपने काले धन को वापस लाने का वादा किया था, लेकिन फिर आपकी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने इसे ‘चुनावी जुमला’ कह दिया और अरुण शौरी ने भी वित्त मंत्रालय की प्रक्रियाओं की आलोचना की। काले धन को वापस लाने में आपकी सरकार कितनी प्रतिबद्ध है?

उत्तर: मेरी सरकार काले धन को वापस लाने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध है। हमने कर चोरी और काले धन पर सख्त कदम उठाए हैं। मैंने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दुनिया के नेताओं के समक्ष इस मुद्दे को उठाया था। अपनी पहली कैबिनेट की बैठक में हमने एसआईटी का गठन किया। हमने संसद में एक नया एवं सख्त कानून पास कराया किया है। हम ऐसे उपाय करना चाहते हैं जिसके बाद कोई भी करों के भुगतान से बचने और विदेश में धन जमा करने की न सोचे। हम विदेशी बैंकों में अवैध रूप से धनराशि जमा करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कारवाई कर रहे हैं। हाल ही में कुछ ऐसे व्यक्तियों के नामों का खुलासा भी हुआ है। हम नकदरहित लेनदेन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। हम अपने कर ढांचे में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग करना चाहते हैं।

साथ-ही-साथ हम एकाधिकार को समाप्त करना चाहते हैं जो काला धन और भ्रष्टाचार का कारण है। इसलिए हम कोयला और खनन जैसे क्षेत्रों में अध्यादेश लेकर आए। यह एक अच्छा कदम साबित हुआ। कोयला खदानों की पारदर्शी नीलामी के माध्यम से अब तक 3.30 लाख करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। यही स्थिति स्पेक्ट्रम की नीलामी में भी है। मैं तो यही मानता हूँ कि अगर आपके इरादे नेक हैं, तो आप आवश्यक सहयोग और सफलता अवश्य मिलेगी।

प्रश्न 5: भूमि अधिग्रहण विधेयक जैसे महत्वपूर्ण बिलों का विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है। वे सरकार की मंशा के बारे में लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया है। इस पर आप को क्या कहना है?

उत्तर: हमारे भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध पूरी तरह से अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण है। हमने निजी उद्योग के लिए कोई परिवर्तन नहीं किया है। इसके अलावा, अगर आपके पास पैसा है तो आपको जमीन खरीदने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून की जरूरत नहीं है। कुछ व्यक्तियों ने राजस्थान, हरियाणा, शिमला, दिल्ली आदि में ऐसा किया भी है। सरकार द्वारा संचालित सामरिक और विकास गतिविधियों, खासकर अविकसित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण आवश्यक हो जाता है। और यह भी ज्यादातर राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। हमने केवल वो बदलाव किये हैं जिनकी मांग राज्यों ने की थी। गाँव के गरीबों को इन परिवर्तनों का लाभ सिंचाई, आवास, विद्युतीकरण के रूप में मिलेगा और गाँवों के समस्त बुनियादी ढांचे में भी विकास होगा।

इस देश में भूमि अधिग्रहण अधिनियम लगभग 120 साल पुराना था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें आजादी के बाद उसी पुराने कानून का प्रयोग करती रही। अचानक पिछले संसदीय चुनावों से पहले कांग्रेस ने आनन-फानन में एक ऐसा कानून बना दिया जो न ही किसानों के हित में है और न ही देश के विकास के हित में। अब वे इस पर बैठ कर चर्चा भी नहीं करना चाहते हैं। हम सभी राजनीतिक दलों के साथ बातचीत में विश्वास करते हैं। मैंने व्यक्तिगत रूप से संसद में अपील की है कि हम राजनीतिक दलों के साथ बातचीत करने और उनके सुझावों पर विचार करने के लिए तैयार हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि विभिन्न पार्टियां राजनीतिक हित न देखते हुए देश के इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर हमारा सहयोग करेंगे।

प्रश्न 6: आप किसानों को कैसे आश्वस्त करेंगे कि आप उनके हित में कार्य कर रहे हैं?

उत्तर: प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक किसानों के लाभ और राष्ट्र के दीर्घकालिक हितों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए तैयार किया गया है। दुनिया तेजी से बदल रही है। किसानों को सिंचाई के लिए नहरों और उत्पादों को खेतों से बाजार तक ले जाने के लिए सड़कों की जरूरत है। उन्हें अस्पतालों, स्कूलों और घरों की जरूरत है। किसान भी अपने क्षेत्र में आधुनिक सुविधाएं चाहते हैं और अपने बेटे-बेटियों के लिए औपचारिक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर चाहते हैं। मैं हमेशा यह मानता हूँ कि अगर हम समावेशी विकास चाहते हैं, तो हमें सुख-सुविधाओं की जरूरत है। हमें कृषि के विकास के साथ-साथ इन सुविधाओं के विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इस विधेयक में किसानों के हितों की रक्षा के साथ-साथ इन चीजों पर भी ध्यान दिया गया है। 2013 के कानून में जो नौकरशाही संबंधी बाधाएं हैं, हमने अपने संशोधन में उन्हें दूर करने का प्रयास किया है। मुझे विश्वास है कि हमारे देश के किसान यह समझ पाएंगे कि उनका वास्तविक कल्याण किसमें निहित है।

प्रश्न 7: देश में कृषि संकट है। बहुत हद तक यह समस्या स्थानिक है और दशकों से कुप्रबंधन इस वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार है लेकिन किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या को रोकने और खेती के तनाव को दूर करने के लिए आपकी सरकार की क्या योजनाएं हैं?

उत्तर: इस समस्या का मूल कारण आपके अपने प्रश्न में ही निहित है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है और सरकार इसे लेकर चिंतित है। हमने हाल के कृषि संकट को देखते हुए तत्परता से कई कदम उठाए हैं। हमने कई सुधार किये हैं। केंद्र सरकार ने फसल में हुई हानि के लिए दिये जाने वाले मुआवजे की रकम में 50% की बढ़ोतरी की है। मुआवजे के लिए फसल के नुकसान की न्यूनतम सीमा को भी 50% से घटाकर 33% कर दिया गया है। ख़राब हुए खाद्यान्नों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दरों पर खरीद के लिए मानदंड आसान बना दिए गए हैं। हमारे लगातार दो बजट में कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ाया गया है।

लेकिन जैसा कि आपने कहा, कृषि क्षेत्र में समस्या स्थानिक है। पिछले छह दशकों से कुछ खास किया नहीं गया। लेकिन हमने कृषि क्षेत्र के लिए ऐसे कदम उठाए हैं जिससे दीर्घकालीन लाभ मिलेगा। हर खेत के लिए सिंचाई की समस्या को हल करने और पानी के कुशल उपयोग के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू की गई है। मत्स्य पालन के क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता में सुधार लाने के लिए नीली क्रांति भी एक महत्वपूर्ण कदम है। हमने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की है। खराब होने वाली वस्तुओं के लिए 500 करोड़ रुपये का मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाया गया है। स्वदेशी पशु के नस्लों के संरक्षण और विकास के उद्देश्य से राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरूआत की गई है। हमने गांवों के विकास के लिए ईमानदारी से और गंभीरतापूर्वक प्रयास किये हैं। मैंने हाल ही में किसान चैनल का शुभारंभ किया है जिससे किसानों को कृषि संबंधी एवं बाजारों के बारे में समय पर जानकारी मिल सकेगी। आने वाले दिनों में, मैं कृषि उत्पादकता बढ़ाने, ग्रामीण औद्योगिकीकरण, ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास और कोल्ड चेन सहित ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से निवेश आदि पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ।

प्रश्न 8: विपक्ष आपकी सरकार को सूट-बूट की सरकार कहती है। इस आरोप पर आपको क्या कहना है?

उत्तर: सूट-बूट कम-से-कम सूटकेस से तो बेहतर है। साठ साल शासन करने के बाद अचानक कांग्रेस को गरीबों की याद आ गई। कांग्रेस की अल्पकालीन एवं अदूरदर्शी नीतियों के कारण इस देश के लोगों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा और गरीब तो गरीब ही रह गए। दुनिया के कई देश गरीबी उन्मूलन सहित कई क्षेत्रों में हमसे आगे बढ़ गए। कांग्रेस ने सारे काम ऐसे किये जिससे कि अगले चुनाव तक प्रासंगिक मुद्दे वैसे के वैसे ही रहें। क्या कोयला और स्पेक्ट्रम घोटालों या सीडब्ल्यूजी की असफलता से गरीबों को लाभ मिला? हर कोई जानता है कि इसका लाभ किसे मिला - कुछ चुने हुए उद्योगपतियों और ठेकेदारों को। कांग्रेस की राजनीति और साठ साल के उनके शासन का परिणाम यह रहा कि गरीबी अभी भी हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। एक-चौथाई परिवार बिना घरों के रह रहे हैं। अभी भी इस देश के बहुत सारे लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, बिजली और सड़क आदि मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। आपको उनसे पूछना चाहिए – “अगर आप गरीबों के समर्थक थे तो आज भी भारत में गरीबी क्यों है?”

प्रश्न 9: विपक्ष कहता है कि आपकी सरकार उद्योगपतियों के हित के लिए कार्य करती है?

उत्तर: जिन लोगों ने कोयला जैसे कीमती प्राकृतिक संसाधनों और स्पेक्ट्रम को अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को दे दिया हो, उन्हें यह कहने का कोई अधिकार नहीं है। हम देश के आम आदमी के लिए काम कर रहे हैं।

हमारी सरकार ने अपने शुरूआती महीनों में ही सभी स्कूलों में शौचालय उपलब्ध कराने का कार्य शुरू किया। क्या गरीबों के बच्चे इन पब्लिक स्कूलों में नहीं पढ़ते हैं क्या?

हमने जन-धन योजना के माध्यम से वित्तीय समावेशन के लिए 14 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले। पहले भी बैंक थे और लोगों के पास बैंक खाता भी नहीं था। उन्होंने इतने वर्षों से क्या किया?

तथाकथित गरीब समर्थक सिर्फ यह दोहराते रहे कि सब्सिडी संबंधी समस्याएं हैं। हमने प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए यह सुनिश्चित किया कि एलपीजी सब्सिडी सीधे संबंधित व्यक्ति के पास पहुंचे।

हमने मुद्रा बैंक की शुरुआत की ताकि 6 करोड़ छोटे दुकानदारों और व्यवसायों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके जिनमें से 61% अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक हैं।

हमने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत की जिसके बारे में कांग्रेस ने साठ साल में नहीं सोचा।

हमने 2022 तक सभी बेघर परिवारों को घर उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

कृषि उत्पादकता बढ़ाने और किसानों के खर्च को कम करने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की गई। इसके फलस्वरूप उनकी आय में भी वृद्धि होगी।

हम गरीबों और वंचितों, वृद्ध नागरिकों एवं कम आय वाले लोगों के लिए  व्यापक सामाजिक सुरक्षा योजना लेकर आए।

हमने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की ताकि गरीब स्वस्थ रहें और उनके आस-पास का वातावरण स्वच्छ रहे जिससे गरीब और श्रमिक पूरी कार्य क्षमता से अपना कार्य कर सकें।

यात्रा के लिए आम जनों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भारतीय रेल की सुविधाओं को बेहतर बनाया जा रहा है।

युवाओं में रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल विकास मंत्रालय का गठन किया है ताकि ‘मेक इन इंडिया’ के माध्यम से युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराये जा सकें। अतीत में, देश में ऐसी अर्थव्यवस्था थी जिसमें रोजगार नहीं था।

हमने केन्द्र शासित प्रदेशों के पुलिस बलों में महिलाओं को आरक्षण दिया है। और यह तब किया है जब फ़िलहाल कोई चुनाव नहीं हैं।

हमारे आने से पहले कोयले नीलामी की कितनी बदतर स्थिति थी, यह सबको पता है, हमने इसके बावजूद भारत के कम विकसित राज्यों से तीन लाख करोड़ रुपये जमा किये हैं। यह पैसा उन राज्यों के गरीबों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

ये तो सिर्फ़ कुछ उदाहरण भर हैं। पिछले साठ सालों में यह सब चीजें क्यों नहीं की गईं? किसने उन्हें रोका? उनकी चिंता यह नहीं है कि हम गरीब समर्थक नहीं हैं। उनकी चिंता यह है कि वे गरीब समर्थक नहीं हैं और अब यह बात सबको पता चल रही है। लोग उन्हें पूछ रहे हैं: “अगर मोदी सरकार ऐसा सोच सकती है और छह से नौ महीने में ये सब कर सकती है तो आप क्यों नहीं सोच सके और साठ साल में ऐसा क्यों नहीं कर सके।”

प्रश्न 10: आपने 12 महीनों में 17 देशों की यात्रा की...इसके बारे में किसी ने आपसे अपेक्षा नहीं की थी क्योंकि आपको विदेश नीति मामलों में एक नौसिखिये के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन ऐसा लग रहा है कि देश की विदेश नीति को आगे बढ़ाने में आपको काफी आनंद आ रहा है। कोई टिप्पणी?

उत्तर: प्रधानमंत्री का यह अंतरराष्ट्रीय दायित्व होता है कि वह विदेशी गतिविधियों से जुड़ा रहे। सभी प्रधानमंत्रियों को यह करना होता है। यह एक एकीकृत दुनिया है। हमें अंतरराष्ट्रीय, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय सम्मेलनों में भाग लेना होता है और अपने पड़ोसियों और अन्य देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाना होता है। हमारी विदेश नीति परिपक्व है और इसे आगे बढ़ाने के लिए एक पूर्ण व्यवस्था है। मैं केवल इसमें गतिशीलता प्रदान की है। हम एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हमारे आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़तापूर्वक प्रयासरत हैं। हम नए-नए आर्थिक भागीदारी बनाने और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से ऊर्जा, खनिज, प्रौद्योगिकी और वित्त से जुड़े सहयोग प्राप्त करने और इन क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत हैं।

प्रश्न 11: वास्तविक रूप में देखा जाए तो क्या आपको लगता है कि वित्तीय मामले में चीन ने जो वादा किया है, वो उसे पूरा करेगा, क्या अमेरिकी बाजार में भारत को जगह मिलेगी और क्या पाकिस्तान अपना भारत विरोधी रूख छोड़ेगा? क्या हमारे छोटे-छोटे पड़ोसी देश हमें एक ऐसे देश के रूप में देखेंगे जो उनके साथ खड़ा हो न कि उनका दमन करता हो?

उत्तर: हाँ, मुझे विश्वास है कि जो भी वादे और समझौते हुए हैं, वे पूरे होंगे। जापान सरकार ने अगले पांच वर्षों में सार्वजनिक और निजी वित्त पोषण हेतु 3.5 ट्रिलियन येन अर्थात लगभग 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सहयोग देने का वादा किया है; दो औद्योगिक पार्कों और 20 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश के लिए चीन के साथ हमारा समझौता हुआ है; अगले पांच वर्षों में अमेरिकी कंपनियों से लगभग 42 अरब अमरीकी डॉलर के निवेश की योजना है। रूस ने भारत में हेलीकॉप्टर का निर्माण करने का प्रस्ताव दिया है। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौते और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अन्य समझौते हुए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हम असैन्य परमाणु समझौते के क्रियान्वयन की दिशा में आगे बढ़े हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से ऊर्जा के विस्तार के लिए अक्षय ऊर्जा का उपयोग करने हेतु दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर हुआ है। कोरिया, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से पेंशन फंड के साथ-साथ वित्तीय संस्थानों ने अच्छी प्रतिक्रिया दी है। सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने हमारे ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का जबर्दस्त समर्थन किया है।

पड़ोसी देशों की बात की जाए तो पिछले 25 साल से अटकी हुई नेपाल में 5600 मेगावाट की पंचेश्वर परियोजना आगे बढ़ी है। इसी तरह बांग्लादेश के साथ हमने भूमि सीमा विवाद सुलझाया है। हम आपसी लाभ की भावना के साथ काम कर रहे हैं। किसी का भी दमन करने का कोई सवाल ही नहीं है। हाल ही में नेपाल में आई प्राकृतिक आपदा के दौरान हमने वहां हरसंभव मदद पहुंचाई जो हमारे भाईचारे के दृष्टिकोण को दिखाता है। पाकिस्तान के साथ भी हम अपने दीर्घकालीन दृष्टिकोण को जारी रखेंगे। हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए बिना सहयोग और कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहेंगे।

प्रश्न 12: अगर हम घरेलू मुद्दों पर लौटें तो कईयों ने आपकी इस बात के लिए आलोचना की है कि आप अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले अपनी पार्टी के लोगों पर ही लगाम लगाने में सक्षम नहीं हैं। आपका क्या कहना है?

उत्तर: हमारे संविधान में हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है और उसमें कोई समझौता नहीं होगा। सभी धर्मों का स्वागत करने और उनका सम्मान करने की परंपरा यहाँ उतनी ही पुरानी है जितना पुराना हमारा देश है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था: हम न केवल सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास करते हैं, लेकिन हम सभी धर्मों को दिल से स्वीकार करते हैं। सभी धर्मों के लिए समान सम्मान का सिद्धांत हजारों साल से भारत के लोकाचार का एक अंग रहा है। और इसी कारण यह भारत के संविधान का अभिन्न अंग है। हमारा संविधान यूँ ही नहीं बना है। यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित है। मैं उम्मीद करता हूँ कि हर कोई इसे समझेगा और इसका सम्मान करेगा।

प्रश्न 13: आपकी पार्टी में क्यों कुछ लोग ऐसी अपमानजनक बातें बोलने में गौरवान्वित महसूस करते हैं जबकि वे जानते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल में किसी धर्मांध का समर्थन नहीं कर सकते हैं?

उत्तर: जैसा कि मैंने पहले भी कहा है और मैं इसे फिर से कहता हूँ: किसी भी समुदाय के खिलाफ कोई भेदभाव या हिंसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस पर मेरी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है: सबका साथ, सबका विकास। हम बिना किसी जातिगत या धार्मिक भेदभाव के 1.25 अरब भारतीयों के साथ खड़े हैं और हम उनमें से प्रत्येक की प्रगति के लिए काम करेंगे। हमारे देश में सभी धर्मों के पास समान अधिकार है; और सभी धर्म न सिर्फ़ कानून की नजर में बल्कि समाज की नजर में भी समान हैं।

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
India’s Biz Activity Surges To 3-month High In Nov: Report

Media Coverage

India’s Biz Activity Surges To 3-month High In Nov: Report
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
प्रधानमंत्री मोदी की ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत
May 31, 2024

सवाल : चुनाव खत्म होने में गिनती के दिन शेष हैं। मौजूदा चुनावों में आप किस तरह का बदलाव देखते हैं?

जवाब : सबसे बड़ा बदलाव यह है कि आज मतदाता 21वीं सदी की राजनीति देखना चाहता है। इसमें परफॉर्मेंस की बात हो, देश को आगे ले जाने वाले विजन की बात हो और जिसमें विकसित भारत बनाने के रोडमैप की चर्चा हो। अब लोग जानना चाहते हैं कि राजनीतिक दल हमारे बच्चों के लिए क्या करेंगे? देश का भविष्य बनाने के लिए नेता क्या कदम उठाएंगे?

राजनेताओं से आज लोग ये सब सुनना चाहते हैं। लोग पार्टियों का ट्रैक रिकॉर्ड भी देखते हैं। किसी पार्टी ने क्या वादे किए थे, और उनमें से कितने पूरे कर पाई, इसका हिसाब भी मतदाता लगा लेता है। लेकिन कांग्रेस और ‘इंडी गठबंधन’ के नेता अब भी 20वीं सदी में ही जी रहे हैं। आज लोग ये पूछ रहे हैं कि आप हमारे बच्चों के लिए क्या करने वाले हैं तो ये अपने पिता, नाना, परदादा, नानी, परनानी की बात कर रहे हैं। लोग पूछते हैं कि देश के विकास का रोडमैप क्या है तो ये परिवार की सीट होने का दावा करने लगते हैं। वे लोगों को जातियों में बांट रहे हैं, धर्म से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं, तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं। ये ऐसे मुद्दे ला रहे हैं, जो लोगों की सोच और आकांक्षा से बिल्कुल अलग हैं।
 
सवाल : क्या आपको लगता नहीं कि चुनाव व्यवस्था और राजनीतिक आचार-व्यवहार में सुधार की आवश्यकता है। अपनी ओर से कोई पहल करेंगे?

जवाब : देश के लोग लगातार उन राजनीतिक दलों को खारिज कर रहे हैं जो नकारात्मक राजनीति में विश्वास रखते हैं। जो सकारात्मक बात या अपना विजन नहीं बताते, वो जनता का विश्वास भी नहीं जीत पाते। जो सिर्फ विरोध की राजनीति में विश्वास रखते हैं, जो सिर्फ विरोध के लिए विरोध करते हैं, ऐसे लोगों को जनता लगातार नकार रही है। ऐसे में उन लोगों को जनता का मूड समझना होगा और अपने आप में सुधार लाना होगा। मैं आपको कांग्रेस का उदाहरण दे रहा हूं। कांग्रेस आज जड़ों से बिलकुल कट चुकी है। वो समझ ही नहीं पा रही है कि इस देश की संस्कृति क्या है। इस चुनाव के दौरान पार्टी नेताओं ने जैसी बातें बोली हैं, उससे पता चलता है कि वो भारतीय लोकतंत्र के मूल तत्व को पकड़ नहीं पा रही।

कांग्रेस नेता विभाजनकारी बयानबाजी, व्यक्तिगत हमले और अपशब्द बोलने से बाहर नहीं निकल पा रहे। उन्हें लग रहा होगा कि उनके तीन-चार चाटुकारों ने अगर उस पर ताली बजा दी तो इतना काफी है। वो इसी से खुश हैं, लेकिन उनको ये नहीं पता चल रहा है कि जनता में इन सारी चीजों को लेकर बहुत गुस्सा है। कांग्रेस तो अहंकारी है, जनता की बात सुनने वाली नहीं है। वो तो नहीं बदल सकती। लेकिन जो उनके सहयोगी दल हैं, वो देखें कि जनता का मूड क्या है, वो क्या बोल रही है। उन्हें समझना होगा कि इस राह पर चले तो लगातार रिजेक्शन ही मिलने वाला है। मुझे लगता है कि लोग इन्हें रिजेक्ट कर-कर के इनको सिखाएंगे। राजनीति में जो सुधार चाहिए वो लोग ही अपने वोट की शक्ति से कर देते हैं। लोग ही राजनीतिक दलों, खासकर नकारात्मक राजनीति करने वालों को सिखाएंगे और बदलाव लाएंगे।
 
सवाल : क्या इस चुनाव में जातीय और धार्मिक विभाजन के सवाल ज्यादा उभर आए हैं? जब चुनाव शुरू हुआ था तो एजेंडा अलग था, आखिरी चरण आने तक अलग?

जवाब : ये सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए, जिन्होंने पहले धर्म के आधार पर देश का विभाजन कराया। अब भी 60-70 साल से ये विभाजन की राजनीति ही कर रहे हैं। एक तरफ उनकी कोशिश होती है कि किसी समाज को जाति के आधार पर कैसे तोड़ा जाए? दूसरी तरफ वो देखते हैं कि कैसे एक वोट बैंक को जोड़कर मजबूत वोट बैंक बनाए रखा जाए। दूसरा, ये सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जो सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति के लिए एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीनकर धर्म के आधार आरक्षण देना चाहते हैं। इसके लिए वो संविधान के विरुद्ध कदम उठाने को तैयार हैं।

ये सवाल कांग्रेस और ‘इंडी गठबंधन’ वालों से पूछा जाना चाहिए, क्योंकि वही हैं जो वोट जिहाद की बात कर रहे हैं। ये सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जो अपने घोषणा पत्र में खुलेआम ये लिख रहे हैं कि वो जनता की संपत्ति छीन लेंगे और उसका बंटवारा दूसरों में कर देंगे। ये जो बंटवारे की राजनीति है, विभाजन की सोच है उसे अब विपक्ष खुलकर सामने रख रहा है। अब वो इसे छिपा भी नहीं रहे हैं। वो खुलकर इसका प्रदर्शन कर रहे हैं, तो ये सारे सवाल उनसे पूछे जाने चाहिए। देश और समाज को बांटने वाले ऐसे लोगों को जनता इस चुनाव में कड़ा सबक सिखाएगी।
 
सवाल :  एक देश, एक चुनाव के लिए आपने पहल की थी। क्या आपको लगता है कि इतने बड़े देश में यह संभव है। अगर हां..तो किस तरह से ये लागू हो सकेगा?

जवाब : एक देश, एक चुनाव भाजपा का और हमारी सरकार का विचार रहा है, लेकिन हम ये चाहते हैं कि इसके आसपास एक आम सहमति बने। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें विस्तार से एक देश एक चुनाव के बारे समझाया गया है। इस पर पूरे देश में चर्चा हो, वाद हो, संवाद हो, इसके लाभ और हानि पर बात हो, इसमें क्या किया जा सकता है और कैसे किया जा सकता है। फिर इस पर एक आम सहमति बने। इससे हम एक अच्छे सकारात्मक समाधान पर पहुंच सकते हैं। जो अभी का सिस्टम है उसमें हर समय कहीं ना कहीं चुनाव होता रहता है। ये जो वर्तमान सिस्टम है, ये उपयुक्त नहीं है। ये गवर्नेंस को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसे बदलने की जरूरत तो है ही, पर हम कैसे करेंगे, इस पर संवाद की जरूरत है।

आपने ये भी पूछा कि क्या हमारे देश में ये संभव है। तो आप इतिहास में देख लीजिए कि जब संसाधन, टेक्नॉलजी कम थी तब भी हमारे देश में एक देश, एक चुनाव हो रहे थे। आजादी के बाद पहले के कुछ चुनाव इसी तरह हुए। उसके कुछ वर्ष बाद ही बदलाव हुए हैं। अब भी एक-दो राज्यो में लोकसभा के साथ राज्य विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं। चुनाव आयोग एक चुनाव कराने के लिए पूरे देश में काम कर रहा है तो उसी में राज्यों का चुनाव भी कराया जा सकता है। इसमें कोई समस्या नहीं है, ये संभव है।
 
सवाल : गर्मी के कारण कम मतदान के चलते फिर से मांग उठी है कि इस मौसम में चुनाव नहीं होना चाहिए। क्या आप भी चुनाव के कैलेंडर में किसी तब्दीली के पक्षधर हैं?

जवाब : गर्मी के कारण कुछ समस्याएं तो होती हैं। आप देख सकते हैं कि मैंने अपनी पार्टी में सभी उम्मीदवारों को और सामान्य लोगों को जो पत्र लिखा है, उसमें मैंने गर्मी का जिक्र किया है। पत्र में लिखा है कि गर्मियों में बहुत समस्या होती है, आप अपने आरोग्य का ख्याल रखें। फिर भी लोकतंत्र के लिए जो हमारा कर्तव्य है, हमें उसे निभाना चाहिए।

मुझे पता है कि गर्मियों में क्या समस्या होती है। लेकिन इसमें क्या होना चाहिए, क्या बदलाव होना चाहिए, होना चाहिए या नहीं होना चाहिए, ये किसी एक व्यक्ति का, एक पार्टी का या सिर्फ सरकार का निर्णय नहीं हो सकता। पूरे सिस्टम, लोगों, मतदाता, राजनीतिक दलों, कार्यकर्ताओं की सहमति बननी चाहिए। जब एक सामूहिक राय बनेगी कि इसमें कुछ बदलाव लाना चाहिए या नहीं लाना चाहिए, तभी कुछ हो सकता है।

सवाल : आखिरी चरण में पूर्वी उत्तर प्रदेश की 13 और बिहार की 8 सीटों पर चुनाव शेष है। आपने कहा है कि गरीबी और अभाव झेलने वाला पूर्वांचल दस साल से प्रधानमंत्री चुन रहा है। इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। वह बहुत कुछ क्या है, बताना चाहेंगे?

जवाब : देखिए, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रति पिछली सरकारों का रवैया बहुत ही निराशाजनक रहा है। इन इलाकों से वोट लिए गए, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी की गयीं पर जब विकास की बारी आई तो इन्हें पिछड़ा कहकर छोड़ दिया गया। पूर्वांचल में बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए लोगों को तरसाया गया। देश के 18000 गांवों में बिजली नहीं थी। इनमें पूर्वांचल और बिहार के बहुत से इलाके थे। जब मैंने बहनों-बेटियों की गरिमा के लिए टायलेट्स का निर्माण कराया तो बड़ी संख्या में उसका लाभ हमारे पूर्वांचल के लोगों को मिला।

आज हम इसी इलाके में विकास की गंगा बहा रहे हैं। एक्सप्रेसवे से लेकर ग्रामीण सड़क तक हम इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार रहे हैं, बदल रहे हैं। हम हेल्थ इंफ्रा भी बना रहे हैं। आज पूर्वांचल और बिहार दोनों ही जगह पर एम्स है। इसके अलावा हम इन इलाकों में मेडिकल कॉलेज का नेटवर्क बना रहे हैं। हम पुराने इंफ्रा को अपग्रेड भी कर रहे हैं। अब हम यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दे रहे हैं। हमें आगे बढ़ना है, लेकिन हमारा बहुत सारा समय, संसाधन और ऊर्जा पिछले 60-70 वर्षों के गड्ढों को भरने में खर्च हो रही है। हम इसके लिए लगातार तेजी से काम कर रहे हैं। मैं वो दिन लाना चाहता हूं, जब शिक्षा और रोजगार के लिए इन इलाकों के युवाओं को पलायन ना करना पड़े। उनका मन हो तो चाहे जहां जाएं पर उनके सामने किसी तरह की मजबूरी ना हो।   

सवाल : गंगा निर्मलीकरण योजना के साथ ही वरुणा, असि और अन्य नदियों की सफाई की कितनी जरूरत मानते हैं आप?

जवाब : हमारे देश में नदियों की पूजा होती है। हमारी परंपराओं, संस्कारों में प्रकृति का महत्व स्थापित किया गया है। इसके बावजूद नदियों की साफ-सफाई को लेकर सरकार और समाज में उदासीनता बनी रही। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि दशकों तक देश की सरकारों ने नदियों को एक डंपिंग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल किया। नदियों की स्वच्छता को लेकर कोई जागरुकता अभियान चलाने का प्रयास नहीं हुआ।

गंगा, वरुणा, असि समेत देश की सभी नदियों को स्वच्छ बनाने और उनकी सेहत को बेहतर करने के प्रयास जारी हैं। मैंने बहुत पहले नदियों के एक्वेटिक इकोसिस्टम को बदलने की जरूरत बताई थी। आज देश नदियों की स्वच्छता को लेकर गंभीर है। वाटर मैनेजमेंट, सीवेज मैनेजमेंट और नदियों का प्रदूषण कम करने के लिए लोग भी अपना योगदान देने को तैयार हैं। इस दिशा में जन भागीदारी से हमें अच्छे परिणाम मिलेंगे।

सवाल : 2014 में जब आपके पास देश के अलग-अलग हिस्सों से चुनाव लड़ने के प्रस्ताव आ रहे थे, तब आपने काशी को क्यों चुना?

जवाब : मैं मानता हूं कि मैंने काशी को नहीं चुना, काशी ने मुझे चुना है। पहली बार वाराणसी से चुनाव लड़ने का जो निर्णय हुआ था, वो तो पार्टी ने तय किया था। मैंने पार्टी के एक सिपाही के तौर पर उसका पालन किया, लेकिन जब मैं काशी आया तो मुझे लगा कि इसमें नियति भी शामिल है। काशी उद्देश्यों को पूरा करने की भूमि है। अहिल्या बाई होल्कर ने बाबा का भव्य धाम बनाने का संकल्प पूरा करने के लिए काशी को चुना था। मोक्ष का तीर्थ बनाने के लिए महादेव ने काशी को चुना। इस नगरी में तुलसीदास राम का चरित लिखने का उद्देश्य लेकर पहुंचे। महामना यहां सर्वविद्या की राजधानी बनाने आए। शंकराचार्य ने काशी को शास्त्रार्थ के लिए चुना। इन सबकी तपस्या से प्रेरणा लेकर और इनके आशीर्वाद से काशी की सेवा के काम को आगे बढ़ा रहा हूं।

मुझे काशी में जिस तरह की अनुभूति हुई, वो अभूतपूर्व है। इसी वजह से जब मैं यहां आया तो मैंने कहा कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है, अब तो मैं ये भी कहता हूं कि मां गंगा ने मुझे गोद ले लिया है। वाराणसी में मुझे बहुत स्नेह मिला। काशीवासियों ने एक भाई, एक बेटे की तरह मुझे अपनाया है। शायद काशीवासियों को मुझमें उनके जैसे कुछ गुण दिखे हों। जो स्नेह और अपनापन मुझे यहां मिला है, उसे मैं विकास के रूप में लौटाना चाहता हूं और लौटा रहा हूं।

दूसरी बात, काशी पूरे देश और दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी है। हजारों सदियों से यहां पूरे भारत से लोग आते रहे हैं। यहां के लोगों का हृदय इतना विशाल है कि जो भी यहां आता है, लोग उसे अपना लेते हैं। काशी में ही आपको एक लघु भारत मिल जाएगा। देश के अलग-अलग क्षेत्रों से यहां आकर बसे लोग काशी को निखार रहे हैं, संवार रहे हैं। वो अभी भी अपनी जड़ों से जुडे़ हैं, लेकिन दिल से बनारसी बन गये हैं। कोई कहीं से भी आए, काशी के लोग उसे बनारसी बना देते हैं। काशी और काशीवासियों ने मुझे भी अपना लिया है।
 
सवाल : हरित काशी और इको फ्रेंडली काशी के लिए आपकी क्या सोच है?

जवाब :  जब काशी के पूरे वातावरण और पर्यावरण की चर्चा होती है तो उसमें गंगा नदी की स्वच्छता एक महत्वपूर्ण बिंदु होता है। आज गंगा मां कितनी निर्मल हैं, उसमें कितने जल जीवन फल-फूल रहे हैं, ये परिवर्तन सबको दिखने लगा है। गंगा की सेहत सुधर रही है ये बहुत महत्वपूर्ण आयाम है।

हम गंगा एक्शन प्लान फेज-2 के तहत सीवर लाइन बिछाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा 3 सीवेज पंपिंग स्टेशनों और दीनापुर 140 एमएलजी के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण हुआ है। पुरानी ट्रंक लाइन का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। कोनिया पंपिंग स्टेशन, भगवानपुर एसटीपी, पांच घाटों का पुनर्रुद्धार किया गया है। ट्रांस वरुणा सीवेज योजना पर भी तेजी से काम चल रहा है। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत रमना में एसटीपी का निर्माण, रामनगर में इंटरसेप्शन, डायवर्जन और एसटीपी का निर्माण हुआ है। इस तरह की रिपोर्ट भी बहुत बार आ चुकी है कि गंगा में एक्वेटिक लाइफ सुधर रही है। गैंगटिक डॉल्फिन फिर से दिखनी शुरू हो गई हैं और उनकी संख्या बढ़ी है। इसका मतलब है कि मां गंगा साफ हो रही हैं। यहां पर सोलर पावर बोट्स देने का अभियान भी हम तेजी से चला रहे हैं। इससे पर्यावरण बेहतर होगा।

हमारी सरकार ने प्रकृति के साथ प्रगति का मॉडल दुनिया के सामने रखा है। हम क्लीन एनर्जी पर काम कर हैं, हम कार्बन इमिशन को लेकर अपने लक्ष्यों से आगे हैं, हम सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ काम कर रहे हैं। हमारी सरकार में देश में ग्रीन प्लांटेशन और वनों की संख्या बढ़ी है। काशी में भी हरियाली बढ़ाने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं।
 
सवाल : काशी समेत पूरे पूर्वांचल के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

जवाब : आजादी के बाद पूर्वांचल को पिछड़ा बताकर सरकारों ने इससे पल्ला झाड़ लिया था। हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर कोई काम नहीं हुआ था। स्वास्थ्य सेवाओं को बदहाल बनाकर रखा गया था। यहां पर किसी को गंभीर समस्या होती थी तो लोग लखनऊ या दिल्ली भागते थे। हमने पूर्वांचल की स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने पर जोर दिया। पिछले 10 साल में पूर्वांचल के हेल्थ इंफ्रा के लिए जितना काम हुआ है, उतना आजादी के बाद कभी नहीं हुआ। आज पूरे पूर्वांचल में दर्जनों मेडिकल कॉलेज हैं। जब मैं काशी आया तो मैंने देखा कि ये पूरे पूर्वांचल के लिए स्वास्थ्य का बड़ा हब बन सकता है। हमने काशी की क्षमताओं का विस्तार किया। आज बहुत से मरीज हैं जो पूरे यूपी, बिहार से काशी में आकर अपना इलाज करा रहे हैं। कैंसर के इलाज के लिए पहले यूपी के लोग दिल्ली, मुंबई भागते थे। आज वाराणसी में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर सेंटर है। लहरतारा में होमी भाभा कैंसर अस्पताल चल रहा है। बीएचयू में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल है।

150 बेड का क्रिटिकल केयर यूनिट बन रहा है। पांडेयपुर में सुपर स्पेशियलिटी ईएसआईसी हॉस्पिटल सेवा दे रहा है। बीएचयू में अलग से 100 बेड वाला मैटरनिटी विंग बन गया है। इसके अलावा भदरासी में इंटीग्रेटेड आयुष हॉस्पिटल, सारनाथ में सीएचसी का निर्माण हुआ है। अन्य सीएचसी में बेड की संख्या और ऑक्सीजन सपोर्ट बेड की संख्या बढ़ाई गई है। कबीर चौरा में जिला महिला चिकित्सालय में नया मैटरनिटी विंग, बीएचयू में मानसिक बीमारियों के लिए मनोरोग अस्पताल बनाए गये हैं। नवजातों की देखभाल, मोतियाबिंद ऑपरेशन जैसे तमाम काम किए जा रहे हैं।

हमारी कोशिश है कि एक होलिस्टिक सोच से हम लोगों को बीमारियों से बचा सकें और अगर उनको बीमारियां हों तो उनका खर्च कम से कम हो। इसी सोच के तहत यहां वाराणसी में करीब 10 लाख लोगों को आयुष्मान कार्ड बनाकर दिए जा रहे हैं। इस कार्यकाल में हम 70 साल से ऊपर से सभी बुजुर्गों को आयुष्मान भारत के सुरक्षा घेरे में लाने जा रहे हैं, जिससे हर साल 5 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज हो सकेगा।

पहले अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं को लग्जरी बनाकर रख दिया गया था। हम स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ, सस्ता और गरीबों की पहुंच में लाना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हों, इसके लिए हम ज्यादा से ज्यादा संस्थान बना रहे हैं। वर्तमान संस्थानों की क्षमता बढ़ा रहे हैं। इसके साथ जन औषधि केंद्र से लोगों को सस्ती दवाएं मिलने लगी हैं। हमारी सरकार ने ऑपरेशन के उपकरण सस्ते किए हैं। हम आयुष को बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं हर व्यक्ति की पहुंच में हों।

सवाल : पहली बार शहर के प्रमुख और प्रबुद्ध जनों को आपने पत्र लिखा है। वे इस पत्र को लेकर आम लोगों तक जा रहे हैं। इस पत्र का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है?

जवाब : काशी के सांसद के तौर पर मेरा ये प्रयास रहता है कि बनारस में समाज के हर वर्ग की पहुंच मुझ तक हो और मैं उनके प्रति जबावदेह रहूं। ये आज की बात नहीं है, मैंने पहले भी इस तरह के प्रयास किए हैं। लोगों से जुड़ने के लिए मैंने सम्मेलनों का आयोजन किया है। 2022 में मैंने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन किया, उससे पहले भी मैं काशी के विद्वानों और प्रबुद्ध लोगों से मिला हूं। मैंने महिला सम्मेलन किया है, मैं बुनकरों से मिला हूं। मैंने बच्चों से मुलाकात की। गोपालकों, स्वयं सहायता समूह की बहनों से भी मिल चुका हूं। मैं हर समय कोशिश करता हूं कि वाराणसी में समाज के हर वर्ग के लोगों से जुड़ सकूं। आज आप जिस पत्र की बात कर रहे हैं वो वाराणसी के लोगों से जुड़ने का, संवाद का ऐसा ही एक प्रयास है। दूसरा, ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बहुत जरूरी है कि समाज के प्रमुख और प्रबुद्ध लोगों के माध्यम से जन-जन तक लोकतंत्र में भागीदारी का संदेश पहुंचे। काशी के विकास के संबंध में संदेश जाए। जब ऐसा संदेश जाता है कि काशी के विकास के लिए वोट करना है, तो इससे लोकतंत्र समृद्ध होता है। इससे लोग मतदान के प्रति, संवैधानिक व्यवस्था के प्रति अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हैं।

Following is the clipping of the interview:

स्रोत: हिन्दुस्तान