दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं और 185 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं, क्या आपको लगता है कि सत्ता में पांच साल रहने के बावजूद अभी भी मोदी लहर है?
दो चरणों के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और सबसे पहले मैं अपने मतदाताओं का हृदय से आभार व्यक्त करना चाहता हूं। मैं मतदाताओं का आभारी हूं क्योंकि उन्होंने लोकतंत्र के इस पर्व में पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लिया। यह सही है कि मई का महीना मतदान के लिए बहुत अनुकूल नहीं होता है, क्योंकि एक तरफ मार्च-अप्रैल में छात्रों की परीक्षा होती है, दूसरी तरफ गर्मी होती है। पर अब इस प्रकार का एक टाइम-टेबल चलना में आ चुका है लेकिन जिस उत्साह से लोगों ने वोट डाला है, इस देश की जनता बधाई की पात्र है।
मैं विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं को बधाई देना चाहता हूं, वहाँ मतदान बहुत शांतिपूर्ण रहा है। लेकिन इसके साथ ही लोकतंत्र में आस्था रखने वालों के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है कि चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में खून-खराबा हुआ। आज पश्चिम बंगाल हम सबके लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जहां तक चुनाव परिणामों का सवाल है, यह केवल पहले चरण और दूसरे चरण के बारे में नहीं है, पांच वर्षों तक हमने जो काम किया है, जो पहल की है, उन सभी के कारण, मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस देश के लोगों ने भाजपा में अपना विश्वास दोहराया है। जनता को हमारी योजनाओं और नीयत पर भरोसा है और उसके कारण भाजपा को अधिक समर्थन मिला है। मैं अपने अभियान के दौरान जहां भी गया, मुझे वही समर्थन देखने को मिला। और इस चुनाव की एक विशेषता और है जिस पर मीडिया की नजर नहीं गई है और यह संभव है कि भविष्य में शायद 'टाइम्स नाउ' इसका लाभ उठा सके। मैं आपसे जानना चाहूंगा कि 2014 के चुनाव की खास बात और 2019 के चुनाव की खास खूबी क्या है ?
मैं बताता हूँ, 2014 का चुनाव परिणाम आजादी के बाद से लड़े गए किसी भी चुनाव में कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन था। लोकसभा में उनके सांसदों की संख्या 44 तक सिमट गई थी।
और वहीं 2019 के चुनावों में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस इतनी कम सीटों से लड़ रही है। उसके पास चुनावी मैदान में उतारने के लिए उम्मीदवार तक नहीं हैं। वे बाहर से सहयोगियों और भागीदारों को खोजने के लिए मजबूर हो गए हैं। यह एक ऐसा मामला है जिस पर भारत की मीडिया की अब तक नजर नहीं पड़ी है।
यह सच है कि कांग्रेस को सहयोगियों की तलाश करनी होगी और देखना होगा कि गठबंधन कितनी दूर तक जाता है। लेकिन आप हमेशा देश की जनता के सीधे संपर्क में रहते हैं। 2014 में आपने अपनी चुनावी रैलियों की शुरुआत महीनों पहले ही कर दी थी और आपने सामान्य जन से जुड़ाव बना लिया था। 2014 में लोगों की आंखों में एक चमक हुआ करती थी, जिसने मोदी-मैजिक को खड़ा किया, वे कांग्रेस के एक दशक लंबे शासन से थक चुके थे। 2019 में लोग कह रहे हैं कि शायद वह जादू अब नहीं चलेगा, क्योंकि अब वे पांच साल के शासन का जवाब चाहते हैं और उनमें निराशा हुई तो चुनाव परिणामों पर इसका असर दिखेगा।
देखिए, अगर आप यह कहें कि मैं चुनावी रैलियां करता हूं तो मुझे लगता है ऐसा कहना मेरे साथ अन्याय होगा। मेरा 18 साल का रिकॉर्ड देखिए, 2001 से लेकर, जब मैंने प्रशासन की दुनिया में कदम रखा, तो एक भी शुक्रवार, शनिवार या रविवार ऐसा नहीं होगा, जब मैं लोगों के बीच नहीं होता। मैं पिछले पांच साल से देश के किसी न किसी कोने में जा रहा हूं और इसके पीछे मेरी ऐसी मान्यता है कि लोकतंत्र में आप एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर बाबुओं के जरिए देश नहीं चला सकते। देश बहुत बड़ा है और अनेक गुणों से भरा हुआ है, इसलिए हमें आम आदमी के बीच जाकर बात करने का प्रयास करना होगा। और मैं लगातार इस काम को कर रहा हूं।
अब, जब मैं चुनाव लड़ने जा रहा हूँ तो यह मेरे लिए धन्यवाद देने का भी दायित्व है। पिछले पांच वर्षों में हमें दिए गए निरन्तर समर्थन के लिए उन सब लोगों को धन्यवाद देने जा रहा हूँ जिन्होंने हमें अपना आशीर्वाद दिया। कठिन से कठिन समय में भी देश मेरे साथ खड़ा रहा है। मुझे ठीक-ठीक याद है कि अपने स्वार्थ में लिपटे उन लोगों के गिरोह, जिनके नोट गुम हो रहे थे और खेल खत्म हो रहा था, टीवी चैनलों के साथ मिलकर, लम्बी कतारें दिखाकर नोटबंदी के समय उन्होंने इस देश के लोगों को भड़काने की हर सम्भव कोशिश की। सरकार के प्रति आम आदमी का विश्वास ही था कि ऐसी कोई कोशिश कामयाब नहीं हुई। 80% करेंसी बदली और देश की जनता ने हमें हृदय से समर्थन दिया।
पुलवामा के बाद लगातार कई ऐसे पल आए, जहाँ सरकार शायद नहीं टिक पाती। सरकार भले न बचे, 40 जवानों का बलिदान कोई छोटी बात नहीं है। लेकिन देश को भरोसा था, उन्होंने धैर्य दिखाया, उन्होंने सोचा 'मोदी जी हैं और वो जरूर कुछ करेंगे, उनकी गलती नहीं होगी, उन्होंने कुछ गलत नहीं किया होगा' और राष्ट्र ने इसे दिखाया और जहां तक आंखों में चमक की बात है तो मुझे देश के लोगों की आंखों में अब ज्यादा चमक दिख रही है। इस बार यह चमक उनके आत्मविश्वास की है। पहले वाली चमक में जो लालिमा दिखती थी, वह तत्कालीन सरकार के खिलाफ गुस्से की थी। इस बार की चमक में चाँदनी की शीतलता है, यह मोदी सरकार के लिए उनका आशीर्वाद है।
आपने कहा कि नोटबंदी के दौरान लोगों ने आपका समर्थन किया था। उनके सामने आई परेशानियों को उन्होंने अपना लिया लेकिन विशेषज्ञों का कहना ये भी है कि नोटबंदी से बेरोजगारी बढ़ने के साथ ही अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हुआ, वे कहते हैं कि हम आर्थिक रूप से वहां नहीं हैं जहां हम अभी हो सकते थे। लोग कहते हैं कि आपका 10 करोड़ नौकरियों का वादा पूरा नहीं हुआ तो मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि वे आपको वोट क्यों दें?
पहली बात- नोटबंदी पर लोग सवालों से भाग रहे हैं लेकिन मुझे इनका सामना करने का भरोसा है। अपने गैराज में नोटों से भरी हुई बोरियां इकट्ठा करने वाले नोटों के ढेर पर सोए वह लोग जिन्होंने अपना पैसा खो दिया –आप उनके नजरिए से नोटबंदी का विश्लेषण नहीं कर सकते। इसका विश्लेषण करना हो तो उस गरीब के नजरिए से देखना होगा, जिसने जीवन भर मेहनत की लेकिन एक हजार रुपये का नोट तक नहीं देखा। आपको इसे उनके नजरिए से देखना होगा। आपको, इसे एक सरकारी अधिकारी के नजरिए से देखना होगा, जो अपने जीवन के 20 साल मेहनत करने के बाद भी साइकिल चलाता है और अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजता है।
जो, अपने बच्चों को छुट्टियों पर अपने ही राज्य में अपने रिश्तेदारों के यहां ले जाने से आगे सोच ही नहीं पाता है, जब ऐसा व्यक्ति देखता है कि उसके सामने वाले घर में उसी दर्जे का एक अधिकारी है, जिसके बच्चे महंगे स्कूलों में कारों से जाते हैं और जो इलाज के लिए अच्छे-अच्छे अस्पतालों में जाता है, छुट्टियों में दुबई और सिंगापुर जाता है। नोटबंदी का मूल्यांकन उस सरकारी सेवक के दृष्टिकोण से कीजिए जो साइकिल चलाता है। जब आप इसे उनके नजरिए से देखेंगे तो आपको फैसले की अहमियत का एहसास होगा। पैसे गंवाने वालों के आंसू अभी सूखे नहीं लेकिन गरीबों की आंखों में उम्मीद जरूर है।
सभी विपक्षी नेताओं ने नोटबंदी की आलोचना की थी, तीन साल बाद अगर आपको उनसे नजरें मिलाकर यह बताना पड़े कि आपका फैसला सही था तो क्या आप ऐसा करेंगे?
यह फैसला बहुत सोच-विचार के बाद किया गया था। मैंने देश के हित में काम किया और फैसले के बाद मेरी ईमानदारी पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। यही कारण है कि किसी की हिम्मत नहीं होती कि मेरी आंखों में देखे और मुझसे इस बारे में सवाल करे।
तो आपके प्रतिद्वंद्वी कौन हैं? क्या राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती या चंद्रबाबू नायडू हैं ?
मोदी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी स्वयं मोदी है। मैंने, अपने पूरे जीवन में सदैव स्वयं को ही चुनौती दी है। खुद को मैंने हमेशा कहा है कि जब मैं बहुत कुछ करने में सक्षम हूँ तो इतना करने के बाद रुकना कैसा! जब आप यदि बहुत अधिक चल सकते हैं तो यहाँ क्यों रुके हैं? क्या आप अपने विचारों को यहीं तक सीमित रखेंगे – बड़ा सोचें! मोदी ने हर बार खुद को चुनौती देकर खुद को ही पार किया है। मोदी ने हमेशा स्वयं को बेहतर बनाने का प्रयास किया है और इस समय भी- मोदी, मोदी को ही चुनौती दे रहा है। मैं, खुद को चुनौती दे रहा हूं कि मैं आगामी पांच वर्षों में जनता के सपने साकार करने के लिए तेजी से काम करूंगा और मैं चीजों को अलग तरीके से कैसे कर सकता हूँ ? आने वाले पांच सालों में दुनिया को किस प्रकार साथ लेकर आगे बढूंगा? यह मोदी के लिए एक चुनौती है। मोदी खुद मोदी को चुनौती देता आया है और आगे भी ऐसा ही होगा।
नोटबंदी को लेकर आपकी आलोचना में बहुत से लोगों ने कहा कि असंगठित मजदूर, एमएसएमई सेक्टर इससे प्रभावित हुए हैं। क्या आप अपने आप से पूछते हैं कि आपका निर्णय- जो भ्रष्टाचार पर एक तरह की सर्जिकल स्ट्राइक था, लेकिन इसमें कुछ अन्तर्निहित नुकसान भी थे?
पिछले 3-4 दशकों से 'आर्थिक कदाचार' का सबसे बड़ा नुकसान गरीब जनता को उठाना पड़ा है...हो सकता है कि कुछ समय के लिए नोटबंदी का निर्णय असुविधाजनक रहा हो, और मैंने उस समय भी सार्वजनिक रूप से यह बात कही थी। हालांकि, मैंने यह भी कहा कि यह लंबे समय में फायदेमंद होगा, यह आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षा देगा। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था; औपचारिक अर्थव्यवस्था में बदली। मध्यम वर्ग की आकांक्षाएं पूरी हो रही हैं। गरीबों को संतोष मिला- कि अब कोई है जो हमारे काम की अहमियत समझता है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि यह आलोचना विशुद्ध रूप से राजनीतिक है और मुट्ठी भर लोगों द्वारा की गई है जो स्वार्थी हैं और इस कवायद से जिन्होंने कुछ गंवाया है।
लोग कहते हैं कि भारत में दो प्रकार की शासन शैली है, एक मोदी जी की शासन शैली है। दूसरी, राहुल गांधी की, जिसे वे कांग्रेस शासित राज्यों में लागू कर रहे हैं। वह कहते हैं कि वे लोगों को जोड़ते हैं, जबकि मोदी जी लोगों को तोड़ते हैं। उन्होंने NYAY और कृषि ऋण माफी के रूप में सब्सिडी का वादा किया है जिसमें उनका यह भी कहना है कि यह मोदी सरकार प्रदान नहीं करती है। इस बारे में आपका क्या पक्ष है?
सबसे पहले तो मैं टाइम्स नाउ का आभारी हूं कि उन्होंने एक ऐसा सवाल पूछा, जिसके बारे में आमतौर पर बड़े से बड़े राजनीतिक विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और शासन के जानकारों ने अभी तक सोचा भी नहीं है। मैं आपके प्रश्न पर बहुत सकारात्मक ढंग से विचार व्यक्त कर रहा हूँ – आजादी के बाद भारत में शासन के विभिन्न मॉडल रहे हैं और मैं चाहूंगा कि राजनीतिक विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री भी इस पर विचार करें। शासन का एक मॉडल वही है जो वामपंथियों के पास था- त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और केरल में। दूसरे वे हैं जो वैचारिक रूप से कांग्रेस के समान ही हैं लेकिन किन्हीं वजहों के चलते पार्टी से अलग हो गए। पारिवारिक राजनीति और क्षेत्रीय राजनीति उसी का हिस्सा है और वे अलग से एक समूह बनाते हैं।
तीसरी है कांग्रेस और चौथी है भाजपा। भारत ने सरकार के इन चार प्रकार के स्वरूपों को देखा है। मैं चाहूंगा कि सौ पैमाने किए जाएं और इन चार प्रकार के राजनीतिक समूहों के शासन को इसके अनुसार आंका जाए। इसे प्रदर्शन के आधार पर देखा जाना चाहिए, धारणा के आधार पर नहीं। दूसरे, उनकी कार्य संस्कृति, नैतिकता, लोकाचार और नेतृत्व गुणों को आंका जाना चाहिए। टीवी पर किसे ज्यादा स्क्रीन स्पेस मिलता है, अखबारों में किसकी तस्वीरें ज्यादा छपती हैं- इस आधार पर फैसले नहीं लिए जाते। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आपने अभी जो सवाल किया है, उस पर अगर आगे विचार किया जाए तो देश को बहुत लाभ होगा।
आपको लोगों से इस बारे में शोध करने के लिए भी कहना चाहिए और फिर देखना चाहिए कि शासन का कौन सा रूप सबसे अच्छा है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि महात्मा गांधी के जो सिद्धांत थे कि आप जब भी कोई निर्णय लें तो देखें कि आम आदमी पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है, यह आपको हमारे वादों में दिखाई देगा। हमने विकास को गति दी है, हमने एक मजबूत नींव रखने पर ध्यान केंद्रित किया है, हमने चुनावी तिकड़मों के तौर पर मुद्दों को अलग नहीं किया है न ही कभी चुनाव जीतने के एकमात्र उद्देश्य से सरकार चलाई है।
मैं सिर्फ चुनाव जीतने के लिए सरकारें चलाने के पक्ष में नहीं हूँ। हम देश के लिए सरकारें चलाते हैं, अपनी पार्टी के लिए नहीं। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हम जो भी करते हैं देश के 130 करोड़ लोगों के लिए करते हैं।
इसलिए वर्षों से आर्थिक स्थिति से निर्धन लोग जो मांग कर रहे हैं कि हमें उनकी समस्याओं को भी सुनना चाहिए क्योंकि हम सब एक ही समाज का हिस्सा हैं। हमारे पास उन्हें 10% आरक्षण देने की क्षमता थी, आरक्षण को लेकर पहले भी जो भी फैसले हुए हैं, विरोध और हिंसा हुई है। हमने इतना बड़ा फैसला लिया लेकिन देश में कोई हिंसा नहीं हुई। वाजपेयी जी के शासनकाल में मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़, बिहार से झारखंड, उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश बनाया और सुचारू रूप से ये छोटे-छोटे राज्य विकास के प्रतीक बन गए। केवल आंध्र प्रदेश को कांग्रेस के शासन में विभाजित किया गया था और आज तक लोग इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। यह, काम करने के तरीके में अंतर के कारण है। आप कोई और उदाहरण देखिए, आपको फिर वही बात मिलेगी।
आपने आंध्र प्रदेश की बात की। आपने गरीबों के लिए निर्णायक फैसले लिए हैं लेकिन लोग आज तक कह रहे हैं कि काले धन पर कोई लगाम नहीं लगी क्योंकि इस चुनाव में ही इतनी नकदी जब्ती की गई है। लोग यह कहते हैं कि अगर मोदी जी वापस आते हैं तो यह इतने बहुमत के साथ नहीं होगा और आपको नए गठबंधन की आवश्यकता होगी। चर्चा में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और तेलंगाना में केसीआर हैं।
बहुत बड़ा अंतर है, और इसे स्वीकार करने की जरूरत है। पहले लोगों ने स्वीकार किया था कि काले धन के बिना जीवित रहना संभव नहीं है, यह सर्वव्यापी है और भ्रष्टाचार जीवन का एक तरीका है। आज लोग जानने लगे हैं कि आप ईमानदारी के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। और इसके कारण ईमानदारी को अधिक बल देकर बेईमानी का त्याग किया जा रहा है। जो चीजें आज तुरंत पकड़ में आ रही हैं वो 25 साल पहले पकड़ में भी नहीं आती होंगी। मध्य प्रदेश की नई सरकार बने कुछ ही महीने हुए हैं और कई गलतियां सामने आई हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वातावरण को पूर्णतः ईमानदार बना दिया गया है। नहीं तो यह करप्शन कुछ साल छुपा रह जाता और जब खुलता भी तो कागजों में जांच होती और अपराधी बच निकलते।
आज यह सबूतों के साथ पकड़ा जा रहा है। दूसरा मुद्दा यह है कि चुनाव के बाद जो फैसले लिए जाते हैं उनका क्या? बीजेपी पूर्ण बहुमत में पहले से ज्यादा वोट और सीटों से जीतेगी। यहां तक कि हमारे गठबंधन सहयोगियों को भी अधिक संख्या में सीटें मिलेंगी और विभिन्न राज्यों में हमारा वोट शेयर बढ़ेगा। मैं हमारे कार्यो के परिणाम की कसौटी पर जनता के उस समर्थन को देख सकता हूँ तो ऐसी कोई आवश्यकता होने का सवाल ही नहीं उठता। देश ने पूर्ण बहुमत से मजबूत सरकार के रूप में फिर से भाजपा को चुनने का फैसला किया है।
यद्यपि, हम कांग्रेस की तरह अहंकारी नहीं हैं – उन्होंने 'पचमढ़ी' में कहा कि उन्हें किसी सहयोगी की जरूरत नहीं है। सरकारें, बहुमत से बनती हैं और बहुमत से चलती हैं लेकिन कार्य आम सहमति से ही होता है। यदि भारत जैसे विशाल देश को चलाना है तो एक सदस्य वाली पार्टी भी महत्वपूर्ण है और इसलिए हमें पुनः अवसर मिलेगा, लेकिन एक राजनेता के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि हम निर्णय लेते समय अपने वैचारिक विरोधियों की राय को भी ध्यान में रखें।
हमारे द्वारा किये गए कुछ सर्वेक्षणों में एक बात यह सामने आई कि जिस हिन्दी पट्टी में आपने 2014 में 90% से अधिक सीटें जीती थीं, वहां एंटी-इनकम्बेंसी के कारण आप दोबारा उतनी सीटें नहीं जीत सकते हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में आप नतीजे देख ही चुके हैं। हिन्दी हार्टलैंड में नुकसान की भरपाई के लिए आपको कहीं और सीटें जीतने की जरूरत पड़ेगी। पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां बीजेपी का ध्यान केंद्रित रहा है, बंगाल में आपके जीतने की कितनी संभावना है?
सर्वप्रथम यह बात गलत है कि हमने राजनीतिक रूप से बंगाल पर ध्यान केंद्रित किया है। आपने 2013 में राष्ट्रीय परिषद में मेरा भाषण सुना होगा। उस भाषण में मैंने भारत के लिए एक विजन रखा था, तब मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी नहीं था। भारत के पश्चिमी भाग में काफी आर्थिक गतिविधियां देखी गई हैं चाहे वह महाराष्ट्र हो, गुजरात हो, राजस्थान हो, पंजाब हो या फिर दिल्ली।
लेकिन पूर्व में, जहां बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन और जनशक्ति मौजूद हैं वहाँ बहुत सारे विचार भी हैं। नौकरशाही पर नजर डालें तो इनमें बड़ी संख्या पूर्वी भारत की है। कई न्यूज़ एंकर पूर्वी भारत से हैं। अवसरों से भरा ऐसा क्षेत्र विकास के मामले में पीछे रह गया है। मैं भारत के पूर्वी हिस्से का विकास करना चाहता हूँ। मैं वहां विकास के अवसर पैदा करना चाहता हूँ। पूर्वी भारत को विकास के मामले में पश्चिमी भारत की तरह ही होना चाहिए। इसके लिए कोलकाता को विकास का केंद्र बनने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह सपना संभव नहीं है। इसलिए पूर्वी भारत के विकास हेतु बंगाल और प्रमुखतः कोलकाता हमारे विजन का अहम हिस्सा हैं। पहले हमने बंगाल में राज्य सरकार की यथासंभव मदद करने की कोशिश की, लेकिन विकास उनकी प्राथमिकता नहीं है। उन्हें सिर्फ अपनी राजनीति और अपने वोटबैंक की चिंता है। तब हमने महसूस किया कि बंगाल के महान नेताओं को केवल यही श्रद्धांजलि होगी कि हम राज्य का विकास करें जिससे कि बंगाल, भारत में विकास की प्रेरक शक्ति बनकर उभरे। हम उसी दिशा में काम कर रहे हैं। वहां सरकार कौन बनाता है यह एक छोटी सी बात है।
हमने कल मतदान के दौरान बंगाल में जारी हिंसा पर रिपोर्ट की है!
अगर मीडिया में जरा सी भी तटस्थता बची है तो उन्हें दो राज्यों की तुलना जरूर करनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर, जो अक्सर आतंकी हमलों के लिए चर्चा में रहता है। हरेक गांव में पंचायत चुनाव हुए, हजारों की संख्या में प्रत्याशी चुने गए लेकिन हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई। लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में कोई हिंसक घटना नहीं हुई। बंगाल में पंचायत चुनाव हुए और कई लोग मारे गए। एक भाजपा कार्यकर्ता को फांसी पर लटका दिया गया लेकिन मीडिया ने इस पर चर्चा नहीं की।
1980 के दशक में जिस तरह कश्मीर से हिंदुओं को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया था ठीक उसी दिशा में बंगाल हिंसा की ओर बढ़ रहा है और ऐसा करने वालों को शह दी जा रही है। बंगाल में इस तरह की घटनाओं की शुरुआत को गंभीरता से देखा जाना चाहिए।
आप एक लम्बे समय से राजनीतिक विमर्श देख रहे हैं। तब विरोधी जिस तरह से प्रतिक्रिया करते थे, आज उसमें अंतर है, आज व्यक्तिगत हमले ज्यादा हो रहे हैं। राजनीतिक विमर्श में अधिक कटुता है। दूसरी बात; आप 2014 में राजस्थान, एमपी और यूपी जैसे कई राज्यों में अपने प्रदर्शन के चरम पर थे। अगर इस बार स्थिति बदलती है, तो लोग कह रहे हैं कि आप कुछ सीटों पर हार सकते हैं और नंबर गेम बदल सकता है। क्या आपको लगता है कि ऐसी स्थिति निर्मित होती है तब बातचीत के लिए जगह होगी?
यह लुटियंस मीडिया द्वारा गढ़ा गया एक नैरेटिव है। कुछ मासूम लोग इसके बहकावे में आ जाते हैं। वे वही सवाल पूछ रहे हैं जो आप पूछ रहे हैं। इन भविष्यवाणियों और जमीनी हकीकत के बीच कोई संबंध नहीं है। हम पहले से ज्यादा सीटें जीतेंगे, हमारा वोट शेयर बढ़ेगा। जिन राज्यों में हम कमजोर नहीं थे, वहां भी हमारी मौजूदगी बढ़ेगी। इसलिए मेरा मानना है कि ये अगर-मगर की स्थिति केवल भ्रम पैदा करने के लिए है। जमीनी हकीकत से इनका कोई लेना-देना नहीं है
उत्तर प्रदेश में भी, जहां गठबंधन है, आप आश्वस्त हैं?
मैं आपसे पूरे विश्वास के साथ बार-बार कहना चाहता हूं। अगर 10 रिपोर्टर मुझसे पूछेंगे तो भी मैं यही कहूंगा। अगर मुझसे 1000 बार भी पूछा जाए तो भी मैं यही कहूंगा।
लेकिन आप कितनी सीटें जीतेंगे?
आप देख रहे हैं कि यह चर्चा 2014 के चुनावों से पहले हो रही थी, यह यूपी में राज्यों के चुनावों से पहले हुई थी जब कांग्रेस-सपा एक साथ आए थे। राष्ट्र ऐसे नहीं चलता, समय बदल गया है। युवा मतदाता अलग सोचते हैं, महिला मतदाता स्वतंत्र रूप से मतदान करती हैं। गांवों में बदलाव हुआ है।
आप भविष्यवाणी नहीं करेंगे?
मैं ज्योतिषी नहीं हूं, मैं राजनीति विज्ञान का छात्र हूं। मैंने भारत के गांवों की यात्रा की है। मैं अकेला राजनीतिक कार्यकर्ता हो सकता हूं जिसने 450 से अधिक लोकसभा क्षेत्रों में काम किया है। इसलिए मैं जमीनी हकीकत जानता हूं।
अब पुलवामा के बारे में बात करते हैं। पुलवामा में जो हुआ वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। प्रतिक्रिया में देखने को मिला कि आपके द्वारा कार्रवाई के कई पहलुओं को संज्ञान में लिया गया, यह कैसे संभव हुआ ?
आपको यह समझना चाहिए कि पुलवामा के कायराना हमले के बाद कोई भी देशभक्त भारतीय आराम से बैठना स्वीकार नहीं कर सकता था। एक चीज है तुरंत गुस्सा आना, लेकिन ऐसे समय में अगर हम चुप रहेंगे तो दोषियों को यह सोचने की आदत हो जाएगी कि सरकार मजबूत नहीं है और वे बच सकते हैं। अगर 26/11 के मुंबई हमले के बाद कार्रवाई की गई होती तो पुलवामा नहीं होता।
अमेरिका में 9/11 का हमला हुआ था। 9/11 के बाद से कुछ व्यक्तिगत कार्रवाइयों के अलावा एक भी बड़ी घटना नहीं हुई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी सरकार ने अपनी ताकत दिखाई। भारत में अतीत में जब भी ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब कश्मीर घाटी से पंडितों को खदेड़ दिया गया था, तब भी अगर कड़े कदम उठाए गए होते तो हमें 40 साल के आतंकवाद का सामना नहीं करना पड़ता और न हजारों सैनिकों को खोना पड़ता, लेकिन उस समय राजनीति बीच में आ गई, वोट बैंक आड़े आ गया। मेरा जीवन; सत्ता, राजनीति और चुनाव के घेरे तक ही सीमित नहीं है। चुनाव हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं। यह मेरे सहित सभी की जिम्मेदारी है। लेकिन चुनाव के लिए देश को बर्बाद नहीं होने दिया जा सकता। चुनाव के लिए हमारे वीर जवानों के जीवन को नष्ट नहीं किया जा सकता है। यह मेरा सिद्धांत है।
क्या आप ऐसा उन लोगों के लिए कह रहे हैं जो कहते हैं कि 'बालाकोट' इसलिए हुआ क्योंकि आपको चुनाव जीतना था?
यह उनकी सोच का परिचायक है। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि राष्ट्रीय नीति नाम की कोई चीज होती है जो राजनीति से बहुत बड़ी होती है। यह उनकी समझ से परे है। मुझे इस तरह के तर्क-वितर्क में पड़ना भी बहुत पीड़ादायक लगता है। मेरे लिए उनके तर्क में न पड़ना ही अच्छा है। लेकिन 40 जवानों के बलिदान का मतलब राष्ट्र के सामने खतरे की एक नई चेतावनी की घंटी बजना था। इसका जवाब देना था। आप देख रहे हैं कि हर दिन एनकाउंटर हो रहे हैं और हर हफ्ते आतंकी मारे जा रहे हैं। आपने देखा होगा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार प्रो-एक्टिव रही है।
सरकार सक्रिय रूप से आतंकवादियों की पहचान करती है और उन्हें मुठभेड़ में ढेर करती है। हमारे लोग भी शहीद हुए हैं लेकिन कुल-मिलाकर सरकार प्रो-एक्टिव है। मैंने उरी हमले के बाद तय कर लिया था कि जहां आतंकियों को पनाह, हथियार और ट्रेनिंग मिल रही है, वहाँ स्ट्राइक करने का समय आ गया है। इसलिए मैंने पहले ही दिन सेना को फ्री हैंड दे दिया। मैंने इसे सार्वजनिक रूप से कहा था, मैंने यह नहीं छुपाया कि उनके पास खुली छूट है। उन्होंने इंटेलिजेंस जुटाया। मैंने उनसे कहा कि मुझे पाकिस्तान के लोगों से कोई दिक्कत नहीं है। मैं पाकिस्तान के लोगों को चोट नहीं पहुंचाना चाहता। मैंने कहा कि हमारा ऑपरेशन ऐसा होना चाहिए कि पाकिस्तान के लोगों को कोई नुकसान न हो। हमने बड़ी सावधानी से ऑपरेशन को अंजाम दिया। बालाकोट एक बहुत ही सफल ऑपरेशन था। इससे हमारे सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा है। अब आतंकियों को कुछ भी करने से पहले 50 बार सोचना होगा।
ऐसा माना जाता है कि हमारी नीति में सामरिक संयम का एक तत्व मौजूद रहा है, जब आपने बालाकोट एयर स्ट्राइक करने का फैसला लिया तो क्या आपने दुनिया के नेताओं को भरोसे में लिया? क्या हमने सामरिक संयम की उस नीति को त्याग दिया है?
पहली बात तो यह कि यह सामरिक संयम' शब्द अपनी कमियों को छिपाने का जरिया है। दुनिया सिर्फ ताकतवर को ढूंढती है। दुनिया से पूछकर फैसले नहीं लिए जाते। भारत अपने स्वतंत्र निर्णय लेता है। मैंने साफ कहा था कि सेना को फ्री हैंड दिया गया है। कार्रवाई दस दिन बाद हुई। मैं दुनिया को पूछने नहीं गया था। लेकिन मैंने इसे दुनिया से छुपाया भी नहीं। मैंने साफ कहा था कि मैंने सेना के हाथ नहीं बांधे हैं और मैंने उन्हें खुली छूट दी है।
उन लोगों के बारे में क्या कहेंगे, जो कहते हैं कि उन्हें बालाकोट हवाई हमले के सबूत चाहिए और जो लोग कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ, यह पर्यावरणीय आतंकवाद था, हवाई हमले के दौरान केवल कुछ पेड़ गिरे?
हमें उन लोगों से सवाल करना चाहिए जो रहते यहाँ हैं और गुणगान पाकिस्तान का करते हैं। वे पाकिस्तान की भाषा क्यों बोलते हैं? 26/11 के हमले के बाद भी उन्होंने लगभग पाकिस्तान को क्लीन चिट देने वाली एक किताब जारी कर दी थी। यह कैसी मानसिकता है? यहां तक कि पाकिस्तान ने भी स्वीकार किया था कि उसके लोग आतंकी हमले में शामिल थे, लेकिन यहां भारत में वे कह रहे थे कि इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है। दुख होता है कि इस देश में रहने वाले लोग सवाल करते हैं और ऐसे बयान देते हैं। जहां तक प्रमाण की बात है तो सबसे पहले हवाई हमले की घोषणा सबसे पहले किसने की?
पाकिस्तान ने की...कुछ नहीं होता तो वे अनाउंसमेंट क्यों करते? दूसरी बात उरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने मीडिया को दिखाया कि 24 घंटे के अंदर कुछ नहीं हुआ, क्योंकि 250 किलोमीटर के दायरे में कोई भी कोना दिखाया जा सकता है। यह आसान है। पाकिस्तान ने 43 दिनों तक मीडिया को बालाकोट एयर स्ट्राइक साइट पर जाने क्यों नहीं दिया? आज भी आम नागरिकों को वहां जाने की इजाजत नहीं है। ऐसा क्यों?
तीसरा, यदि आप पाकिस्तान द्वारा जारी किए गए बयानों को देखें, तो उन्होंने कहा है कि वे प्रधानमंत्री से बात करना चाहते हैं, वे संयम के बारे में बात करना चाहते हैं, वे अपने F-16 विमान को मार गिराए जाने के बाद इतने बौखला गए थे कि उन्होंने इससे इनकार किया और कहा कि यह एक भारतीय विमान था, उनका पायलट मारा गया, उनका दावा है कि एक भारतीय पायलट मारा गया, उनका पायलट अस्पताल में था, वे कहते हैं कि हमारा पायलट अस्पताल में था। हमें पाकिस्तान पर भरोसा क्यों करना चाहिए? और असली त्रासदी यह है कि भारत में रहने वाले लोग भारत पर विश्वास नहीं करेंगे, सेना पर विश्वास नहीं करेंगे, हमारे जवानों या हमारी उपलब्धियों पर विश्वास नहीं करेंगे बल्कि कुछ पाकिस्तानियों के बयानों पर विश्वास करेंगे।
जब हम पाकिस्तान द्वारा दिए गए बयानों के बारे में बात करते हैं, तो इमरान खान ने पहले कहा था कि जब तक मोदी सरकार सत्ता में है, तब तक दोनों देशों के बीच शांति नहीं हो सकती है और जब कांग्रेस ने इमरान खान का हवाला दिया, तो बीजेपी ने कहा कि वो पाकिस्तान की भाषा बोल रही है और अब पाकिस्तान कहता है कि मोदी सरकार दोनों देशों के बीच के मुद्दों को सुलझा सकती है, तो आप यह कहेंगे कि यह एक मिलीभगत है!
देखिए, चुनाव प्रचार के दौरान वे क्या कह रहे थे? वे कह रहे थे 'जो मोदी का यार है, वो गद्दार है', यही उनका नारा था। दूसरी बात, क्या आपको लगता है कि मतदाता उनकी ऐसी चालाकियों से प्रभावित हो जाएगा? उनके और पाकिस्तान के बीच मैच फिक्सिंग है। वे यहां भारत में एक बयान देते हैं और पाकिस्तान में यह सुर्खियां बन जाती हैं, तभी आपको पता चलता है कि वहां मैच फिक्सिंग हो रही है।
आप आतंकवाद के मुद्दे को लेकर बहुत सख्त हैं, जीरो टॉलरेंस के सिद्धांत में भरोसा रखते हैं तो लोग ये सवाल पूछते हैं कि क्या आपने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन करने के बाद विचारधारा से समझौता नहीं किया? आप जानते हैं कि उनकी नीतियां क्या हैं। फिर भी आप उसके साथ आए। क्या यह एक गलती थी?
सबसे पहले, जम्मू और कश्मीर के परिणामों ने खंडित जनादेश दिया था। हमने सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं लेकिन हम सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थे। हमने इसके लिए दावा तक नहीं किया। हमने सोचा था कि पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाकर लोगों के हित में राज्य में सरकार बनाएगी और हम विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। महीनों तक राज्य में राज्यपाल शासन लगा रहा। कोई प्रगति नहीं हुई। उसके बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सोचा कि इस दिशा में कुछ किया जाना चाहिए, तो उन्होंने एक प्रस्ताव रखा। उस दिन हमने सार्वजनिक रूप से कहा था कि विचारधारा के स्तर पर हम दो अलग-अलग छोर पर खड़े हैं, हमारी विचारधारा एक नहीं है- हमने देश को इसके बारे में बताया था, किसी से कुछ भी छिपा नहीं था. हमने सोचा था कि प्रदेश के विकास कार्यों को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ेंगे। हम एक न्यूनतम कार्यक्रम लेकर आए और उसके साथ आगे बढ़े।
जब तक मुफ्ती जी थे, तब तक विकासात्मक परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाती रही। सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण में तेजी आई। हमें भी लगा कि अगर हम दूसरे मुद्दों को किनारे रखकर इन मुद्दों पर ध्यान दें तो इसका सीधा लाभ आम लोगों मिलेगा। दुर्भाग्य से उनका निधन हो गया। महबूबा जी सत्ता में आईं। वह तरह-तरह की दुविधा में थी। राज्यपाल शासन लगा दिया गया था, वह सत्ता में वापस नहीं आना चाहती थीं। हम इस निर्णय के साथ गए। हमने सोचा था कि अगर राज्यपाल शासन लगाया जाता है तो देश भर में एक और तरह का प्रतिरोध होगा। विधानसभा निलंबित रही। महबूबा जी कुछ महीनों के बाद मान गईं। और हम फिर से आगे बढ़े।
पंचायत चुनाव का मुद्दा उठा। हमारा मानना था कि यदि राज्य को प्रगति करनी है तो पंचायतों को कुछ अधिकार देना जरूरी है। उन्हें सीधे केंद्र से फंड देना होगा। हमें उन्हें अपने स्तर पर विकास कार्य कराने की जिम्मेदारी सौंपनी होगी। वह इसके लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने कहा कि इससे हिंसा और खून-खराबा होगा, हजारों उम्मीदवार होंगे, वे उम्मीदवारों को सुरक्षा नहीं दे पाएंगी, 5000 से ज्यादा लोग शहीद हो जाएंगे। वह हमें डराने की कोशिश कर रहीं थी।
कैबिनेट की तीन से अधिक बैठकों के बाद भी निर्णय लंबित बना रहा। आखिर में हमने कहा कि वे जो चाहती हैं, वह करने के लिए स्वतंत्र हैं और हम अपने रास्ते पर चलेंगे। इसलिए हमने गठबंधन छोड़ दिया, वह भी बिना किसी बहस में पड़े। आपने देखा हम सही थे। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। हमने पंचायत चुनाव कराये, 70-80 प्रतिशत मतदान हुआ, पंचायतें अस्तित्व में आयीं। केंद्र सरकार का पैसा सीधे पंचायतों को जा रहा है। उनकी जरूरतों का ख्याल रखा जा रहा है। हमने गठबंधन करते समय भी यही कहा था- कि हम तेल और पानी की तरह हैं- हमने तब भी कहा था और मैं इस बात से सहमत हूं कि ऐसे महामिलावट (गठबंधन) बहुत लंबे समय तक नहीं चलते हैं। यह समय की मांग थी और हम इसके साथ आगे बढ़े।
क्या आप इसे महामिलावट कह रहे हैं?
मैं मानता हूं कि उस समय हमारी अपनी सरकार तेल और पानी की तरह थी लेकिन यह समय की जरूरत थी।
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में AFSPA का उल्लेख किया है और कहा है कि वे इसकी समीक्षा करने जा रहे हैं या इसका दायरा कम कर देंगे। वे कहते हैं कि हीलिंग टच की आवश्यकता है क्योंकि एनडीए की नीतियों ने बहुत असंतुलन पैदा किया है, बहुत अधिक हिंसा हुई है और इसकी आवश्यकता है। क्या आपको लगता है कि जिस तरह से आपने दबाव बनाया है, उसमें कुछ सुधार की जरूरत है?
हम अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिद्धांतों पर चलते हैं - 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत'। हम इस रास्ते पर चल रहे हैं। हम और देश; जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के लिए एक्स्ट्रा हीलिंग टच के लिए तैयार हैं। आतंकियों के लिए सिर्फ हिटिंग टच हो सकता है। हमें एक स्पष्ट लकीर खींचनी होगी कि हीलिंग टच नागरिकों के लिए है और हिटिंग टच आतंकवादियों के लिए। जबकि वे इसके ठीक विपरीत सोचते हैं।
वे अलगाववादियों और आतंकवादियों के लिए हीलिंग टच चाहते हैं और केंद्र सरकार के लिए हिटिंग टच चाहते हैं। यह गलत है। हीलिंग टच की जरूरत उन पुलिसकर्मियों को है, जो कश्मीर से हैं, जो मारे जा रहे हैं, जो सेना के जवान अपने परिवारों में शादियों के लिए घर आते हैं उन्हें मारा जा रहा है- उन्हें हीलिंग टच की जरूरत है। ऐसे बच्चे हैं जो खेल प्रतियोगिताओं में देश का नाम ऊँचा कर रहे हैं, उन्हें हीलिंग टच की जरूरत है। उन्हें ज्यादा हीलिंग टच की जरूरत है। मैं उन्हें यह प्रदान करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने को भी तैयार हूं लेकिन अलगाववादियों और आतंकवादियों के लिए कोई हीलिंग टच नहीं होगा। वे हीलिंग नहीं बल्कि हिटिंग टच के पात्र हैं।
नागरिकता विधेयक पर बहुत बहस हुई है। हमने बीजेपी अध्यक्ष से बात की, जिन्होंने कहा कि यह नॉर्थ-ईस्ट तक सीमित नहीं रहेगा, इसे पूरे भारत में लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सभी घुसपैठियों को चिह्नित कर उन्हें बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ममता बनर्जी इसे मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश कहती हैं।
इस देश में कुछ अति-सेक्युलर लोगों के साथ एक समस्या है; वे बच्चों के टीकाकरण तक को सांप्रदायिक रंग दे देते हैं। जनसंख्या पर बहस को साम्प्रदायिक रंग दिया जाता है, भाषाओं पर बहस को साम्प्रदायिक रंग दिया जाता है। उनके साथ दिक्कत है, इन अति-सेक्युलर लोगों को इस बीमारी से निजात नहीं मिल पा रही है। देश उनकी सनक और कल्पना के अनुसार नहीं चल सकता। लेकिन जो कांग्रेस झूठे वादे करने की आदी है, उसके झूठे वादों की फेहरिस्त में एनआरसी भी शामिल है। हमारे नामदार नेता के पिता जब पीएम थे तब उन्होंने एनआरसी लागू करने के लिए 'असम समझौते' पर हस्ताक्षर किए थे।
कांग्रेस ने पिछले 30 साल से वादा पूरा नहीं किया, कांग्रेस ने असम के लोगों के साथ छल किया। जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने कुछ आदेश पारित किए। जब हमने केंद्र में सरकार बनाई तो हमने सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए उन आदेशों को लागू किया। एनआरसी लागू करने के बाद जो हमने पाया है वह चिंताजनक है। एनआरसी पर बहस होनी चाहिए। क्या दुनिया का कोई देश धर्मशाला हो सकता है? क्या दुनिया का कोई ऐसा देश है जिसके पास नागरिकों का रजिस्टर नहीं है? होना चाहिए या नहीं? सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जिन्होंने 70 साल तक नागरिकों का रजिस्टर रखने से इनकार किया। नागरिकों के लिए कोई राष्ट्रीय रजिस्टर नहीं था, जो 70 साल तक ऐसा करने में नाकाम रहे, वे दोषी हैं। उन्हें ही सवालों का जवाब देना चाहिए। देश के लिए ईमानदारी से काम करने वालों से अगर यह सवाल पूछा जा रहा है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। अगर देश में सभी नागरिकों का रिकॉर्ड रखने के लिए एक रजिस्टर रखा जाता है, तो यह सांप्रदायिक कैसे है?
आपने आतंकवाद से निपटने के लिए 'हिटिंग' टच की बात की थी, लेकिन आपने भोपाल में दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए एक आतंकवादी आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा है। क्या आपको नहीं लगता, यह एक विरोधाभास है क्योंकि लोग कहते हैं कि साध्वी प्रज्ञा एक विभाजनकारी ताकत हैं जो केवल हिन्दू-मुसलमान की बात करती हैं?
जब 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु हुई, तो उनके बेटे ने कहा कि 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है'। इसके बाद हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ। क्या यह आतंक नहीं था? क्या यह चंद लोगों द्वारा फैलाया गया आतंक नहीं था? उसके बावजूद उन्हें पीएम बनाया गया और तटस्थ मीडिया ने कभी ऐसा सवाल नहीं किया जैसा वह अब कर रहा है। जिन्हें चश्मदीदों ने पहचाना, हिंसक भीड़ का नेतृत्व करने वालों को सांसद बनाया, कुछ को कैबिनेट मंत्री बनाया, एक को हाल ही में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। जिन पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं उनसे कभी पूछताछ नहीं की गई। इसलिए यह चर्चा समाप्त की जानी चाहिए। जिन्हें अदालतों ने सजा दी है, लोग उनके पास जाकर गले मिलते हैं, जेल में उनसे मिलते हैं, अस्पताल में शिफ्ट होने पर उनसे मिलते हैं, क्या वे प्रचार कर सकते हैं? क्या अमेठी और रायबरेली के उम्मीदवार जो जमानत पर बाहर हैं उनसे पूछताछ नहीं की जानी चाहिए? लेकिन भोपाल से भाजपा का एक प्रत्याशी जमानत पर बाहर है और चुनाव लड़ रहा है, इसको लेकर खूब हंगामा हो रहा है। एक महिला, एक साध्वी को इस तरह से प्रताड़ित किया गया, किसी ने उंगली नहीं उठाई।
मैं गुजरात में रहा हूं, मैं कांग्रेस के तौर-तरीकों को समझता हूं। कांग्रेस फिल्म की पटकथा की तरह नैरेटिव गढ़ने का काम करती है। वे एक विषय चुनेंगे, उसमें कुछ जोड़ेंगे, प्रचार के लिए एक झूठी पटकथा बनाने के लिए कहानी में एक खलनायक जोड़ेंगे; गुजरात में जो भी एनकाउंटर होता था, वे उसी हिसाब से स्क्रिप्ट तैयार करते थे। जज लोया मामले में, उनकी स्वाभाविक मौत हुई थी, लेकिन उसी तरीके का इस्तेमाल करके यह कहानी गढ़ी गई कि उनकी हत्या कर दी गई। ईवीएम, नोटबंदी के इर्द-गिर्द वीडियो क्लिपिंग्स का उपयोग करके झूठी कहानी बनाने के लिए उन्हीं पुराने तौर-तरीकों को अपनाया गया था। यह उनकी कार्यप्रणाली है। 'समझौता' फैसला आया, क्या हुआ! उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम को मानने वाली 5000 साल पुरानी संस्कृति को बदनाम किया। उन्हें आतंकवादी कहा। इन सबका जवाब देने के लिए यह एक मिसाल है और कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी
एक और विवाद है, और मुद्दा कुछ ऐसा है जिसके बारे में आप कहते हैं कि आप इसके लिए जीरो टॉलरेंस रखते हैं, यह भ्रष्टाचार के बारे में है और यह राफेल का मामला है। 14 दिसंबर 2018 को इस मामले में फैसला आया था जिसके बाद मामले में कुछ और तथ्य सामने आए और उन्हें फिर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया। और इस मामले में आपकी सरकार की दलील थी कि चूंकि ये चुराए गए दस्तावेज़ हैं, इसलिए अदालत में स्वीकार्य नहीं हैं। कभी किसी ने यह नहीं कहा कि दस्तावेज गलत थे, केवल इतना कहा गया कि वे चोरी हो गए हैं। तब यह सवाल बनता है कि अगर राफेल सौदे में छिपाने वाली कोई बात नहीं है तो फिर उसे सार्वजनिक करने या दोबारा जांच करने में क्या आपत्ति है?
देखिए, कांग्रेस पार्टी के लिए रक्षा सौदे एटीएम की तरह रहे हैं और हरेक रक्षा सौदे में कोई न कोई घोटाला होता ही है। इसलिए, मान लिया कि हमारे सत्ता में आने के बाद भी यह सिलसिला चलता रहेगा और उनके फैलाए इस झूठ को स्वीकार कर लिया जाएगा। कैग ने इसे खारिज कर दिया, सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। लेकिन वे चुनाव को मद्देनजर इस मामले को खींच रहे हैं और ‛चोरी’ का अर्थ यह नहीं है कि सचमुच चोरी हुए बल्कि चोरी करने का मतलब यह था कि उनके पास ज़ेरॉक्स कॉपी किए गए दस्तावेज़ थे और वही अदालत को दिए गए। अन्य सभी आवश्यक दस्तावेजों को हमने पहले ही एक सीलबंद लिफाफे में अदालत के सुपुर्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट से कुछ भी छुपाया नहीं गया है। और जो लोग इस पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, हम उसका विरोध करते हैं।
अखबारों में कई जगहों से आए बहुत सारे आंकड़ों के आधार पर नौकरियों के मामले में, आपसे यह जानना चाहेंगे कि आपकी सरकार ने कहा था कि वह पांच साल बाद 10 करोड़ नौकरियां देगी।
देश, इधर-उधर से आने वाले आंकड़ों से नहीं चलता। मैं, आपका सवाल समझ रहा हूँ जिसका मैंने संसद में स्पष्ट और विस्तृत जवाब दिया है। आप देखिए, CII जैसी स्वतंत्र एजेंसी ने; कितने करोड़ लोगों को नौकरी दी गई है, इसके आंकड़े दिए हैं।
आपने कहा है कि आप हिसाब देंगे।
मैंने कहा और संसद में सिलसिलेवार हिसाब भी दिया है कि रोजगार कैसे बढ़ा है। आप देखिए, 17 करोड़ लोगों को बिना बैंक गारंटी के 'मुद्रा योजना' से लोन मिला, जिनमें 4.5 करोड़ ने पहली ही बार लिया, वह पैसे क्यों लेंगे? उन्होंने पैसे कमाने के लिए कुछ शुरू किया होगा जिससे वह अपने पाँवों पर खड़े होंगे।
अगर रेलवे पहले के मुकाबले दोगुना काम कर रही है और डबल ट्रैक बिछाए गए हैं या डबल इलेक्ट्रिफिकेशन किया गया है, तो क्या यह सब बिना जॉब के होगा? दोगुनी सड़कें बन रही हैं, यह क्या बिना रोजगार के हो रहा है ? पहले के विपरीत कम समय में काम हो जाता है और दक्षता बढ़ जाती है, क्या यह बिना लोगों के हो रहा है? मेट्रो ट्रेनें बन रही हैं, क्या यह बिना मैनपॉवर के हो रहा है? इसलिए, अगर कोई ऐसी बात चलाई जाती है जिसका कोई आधार नहीं होता और लुटियंस मीडिया के साथ मिल कांग्रेस झूठ फैलाने की कोशिश कर रही है तो मैं इसे समझ सकता हूँ।
लेकिन मोदी जी इससे एक सवाल उठता है कि हमें इसके स्पष्ट आंकड़े क्यों नहीं मिल रहे हैं?
सटीक डेटा मिले इसके लिए 70 साल में कोई व्यवस्था ही नहीं बनाई नहीं, हम ऐसी व्यवस्था विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जो सही डेटा प्रदान करे
हमारे देश में 80% से अधिक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक रोजगार मौजूद है। केवल 15-16% औपचारिक है। तो आपके पास केवल इस 15-16% का खाता हो सकता है, अन्य 80% के लिए, आपके पास एक नई व्यवस्था होनी चाहिए। यह अनौपचारिक है। ये सभी लोग जो यहां खड़े हैं, उन्हें सरकारी आंकड़ों में बेरोजगार दिखाया जा सकता है।
क्योंकि वह डेटा इकट्ठा नहीं किया गया है!
बावजूद इसके फिर भी वो सब कमा रहे हैं! आप उनसे पूछिए, ऐसा नहीं है कि वो कमा नहीं रहे हैं। मेरा मानना है कि वे कमा रहे हैं, टाइम्स नाउ उनसे मुफ्त में काम नहीं करवा रहा होगा। वह उन्हें पैसा दे रहा होगा इसलिए वे कमा रहे हैं,लेकिन वे सरकार के रिकॉर्ड में नहीं होंगे।
विपक्ष का आरोप है कि बहुत छापेमारी हो रही है, और 20-22 लोग जिन पर छापे पड़े हैं, वे विपक्ष के हैं और उनमें कुछ एक ही भाजपा के हैं। तो क्या विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया जा रहा है, ऐसा आरोप लगाया गया है।
जब चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होती है, तो सभी गतिविधि चुनाव आयोग द्वारा संचालित होती है। हमारे पास उन्हें स्वतंत्र रूप से चलाने का कोई प्रावधान नहीं है। चुनाव आयोग के पास है और दूसरी बात यह है कि आचार संहिता लागू है और मान लीजिए कि एक कार दुर्घटना हो तो प्राथमिकी दर्ज की जाएगी या नहीं? और अगर उसमें किसी राजनीतिक दल का व्यक्ति बैठा है तो क्या एफआईआर नहीं होगी, क्या वह विशिष्ट हो गया है?
मान लीजिए कि एक समूह है जो ट्रेन में यात्रा कर रहा है और एक नेता उन्हें बिना टिकट ले जा रहा है, और अगर वह पकड़े जाते हैं, तो क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन है? जो कुछ भी कानून और नियमों के अनुसार हो रहा है, चुनाव आयोग उसे देखता है, इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है। ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो खुद मुझे अखबारों, टीवी या सोशल मीडिया के माध्यम से पता चलती हैं कि ऐसा कुछ हुआ है। दूसरी सबसे मजेदार बात यह है कि उन्हें सभी मामलों में सबूत मिल रहे हैं।
जो छापे हुए, वो ठोस सूचनाओं के आधार पर हुए, एजेंसियों को नोटों के बंडलों का ढेर बरामद हुआ और सबसे बड़ी बात यह है कि मध्य प्रदेश में जो पैसा बरामद किया गया वह बच्चों की देखभाल, पोषण और गरीब गर्भवती महिलाओं के हिस्से का था जिसे हड़पा जा रहा है। उस पैसे को जब्त कर लिया गया है। देश को आज इस बात पर बहस करनी चाहिए कि आख़िर कांग्रेस आज भी कहीं सत्ता में आते ही ऐसे पाप करने की जुर्रत क्यों करती है ? मध्य प्रदेश में सत्ता में आए अभी मुश्किल से कुछ महीने हुए हैं और इन्होंने अभी से यह सब करना शुरू कर दिया है। इन मुद्दों पर वाद-विवाद को दबाने के लिए छापों का रोना रोते रहते हैं। यह भूल जाइए कि किस पर छापा मारा जा रहा है, लेकिन जिन पर छापा मारा गया, क्या उनसे आपत्तिजनक पैसे की रिकवरी नहीं की जा रही है?
2014 में आपने लोगों से भ्रष्टाचार की 'एबीसीडी' गिनवाई थी, उस कड़ी में 'डी' दामाद श्री के लिए था, वह अभी तक बाहर हैं। अगस्ता मामले में कुछ ख़ास नहीं हुआ है, आरोपपत्र तैयार नहीं हुआ है। अर्थात कोई जवाबदेही नहीं रही, इसलिए मुझे लगता है कि मैं आपके विचार को आगे बढ़ा रहा हूं, इसलिए लोगों को लगता है कि भारत में अगर आप गलत काम करेंगे तो आप बच जाएंगे।
अब इस पर कोई विश्वास नहीं करता है, यह आपकी कल्पना है। दूसरी बात, आयकर विभाग जो छापेमारी करता है, तो आप कहते हैं कि राजनीतिक प्रतिशोध है। अगर मैं कोई कार्रवाई नहीं करता हूं, तो भी मैं जिम्मेदार हूं।' ये दोनों चीजें एक साथ नहीं बैठतीं। इसलिए पहले यह तय करने की जरूरत है कि आप किस तरफ होना चाहते हैं। ये सभी मामले जो चल रहे हैं, उनमें उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन हो रहा है, हम राजनीतिक बदले की भावना से कुछ नहीं करते हैं, हम कानूनी नियमों के अनुसार चलते हैं। क्या हमारे शासन में एक 'महामिलावटी' मुख्यमंत्री जेल नहीं गया था? क्या वह जेल में नहीं बैठा है? आज भी मीडिया के एक वर्ग के लिए वह हीरो हैं,लेकिन वह जेल में है या नहीं? दूसरी बात यह है कि इस कांग्रेस पार्टी ने, जिसने चार पीढ़ियों तक शासन किया है, क्या उन्होंने कभी सोचा होगा कि आज वे जमानत पर बाहर होंगे।
कौन जमानत पर बाहर होगा, ये सरकार तय नहीं करती, कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है। आपने यह देखा होगा कि जो आदमी उनका वित्त मंत्री हुआ करता था, वह हर दूसरे दिन कोर्ट में तारीख लेने जाता है और बहुत बड़ा वकील होने के कारण उसे लाभ भी मिलता है। उसे डेट मिलती रहती है, लेकिन जिस दिन उसे डेट मिलना बंद हो जाएगी, उसका भी वही हाल होगा। हमने एक निश्चित मिसाल कायम की है लेकिन कुछ लोगों ने प्रिवेंटिव बेल मांगी है, इसलिए कानून का लाभ उठाने का अधिकार हर व्यक्ति को दिया गया है। उन्होंने भी कानून का इस्तेमाल किया है और यहां तक कि सरकार भी कानून का इस्तेमाल करती है। लेकिन जल्द ही सच्चाई सामने आ जाएगी.
लोग माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी पर सवाल उठाते हैं कि वे देश छोड़कर चले गए हैं और उनके खिलाफ कार्योत्तर कार्रवाई की जा रही है और उन्हें वापस लाने की कोशिश करने की बात चल रही है लेकिन वे भागे कैसे और उन्हें कैसे भागने दिया गया?
वे इसलिए भागे क्योंकि उन्हें पता था कि ऐसी सरकार सत्ता में आ गई है कि उनका कागज पर बैंकों से कर्ज लेना और फिर बैंकों में पैसा जमा करने की मौज-मस्ती, चाल-ढाल और खेल बखूबी समझती है इसलिए यह सब मोदी राज में खत्म हो जाएगा। उन्हें पता था कि उन्हें पैसा लौटाना पड़ेगा, जब उन्हें पता था कि भुगतान करने का समय आ गया है, तो यह स्वाभाविक था कि उन्होंने व्यवस्था से लाभ उठाने की कोशिश की और भाग निकले। मगर आप लोग टीवी में इस बारे में बात क्यों नहीं करते हैं कि क्रमशः इन तीन लोगों पर जो समय बर्बाद किया गया है, उस समय के दसवें हिस्से में हम मिशेल 'मामा' और सक्सेना को वापस ले आए, उस बारे में बात करते हैं, हम सक्सेना को वापस लाए, उसके बारे में बात करते हैं।
हमने टाइम्स नाउ में इसपर चर्चा की थी
हम दीपक तलवार को वापस ले आए, उस पर बात करते हैं। देश की मीडिया उनकी भी तो कभी बात करे जिन्हें हम वापस लाए। उन लोगों की बात करें जो लंदन की जेल में सड़ रहे हैं। हमने एक नया कानून बनाया है जो देश छोड़कर भागने वालों की संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार देता है। हम, ऐसे भगौड़ों की चुराई हुई एक-एक पाई वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं। 2014 में इस देश की जनता ने मुझे सत्ता सौंपी और 2019 तक मैंने इन लोगों को जेल के दरवाजे के करीब ला दिया है और 2019 के बाद मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि ये लोग जेलों के अंदर दाखिल हों। क्योंकि जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें एक-एक पाई लौटानी पड़ेगी, मैं इस मिशन पर हूँ।
आप काफी आश्वस्त लग रहे हैं कि हम यहीं एक बार फिर मिलेंगे। 2022 में भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर के रूप में एक महत्वपूर्ण पड़ाव हमारे सामने आ रहा है।
पहली बार हमने इस तरह का घोषणापत्र दिया है, जहाँ लोग हमारे कार्यकाल के 5 साल पूरे होने से पहले ही हमें परख कर सकते हैं, केवल कार्यकाल पूरा होने के बाद ही नहीं। हमने 75 कदम तय किए हैं, जिन्हें आज़ादी के बाद के 75 सालों में पूरा करना है। हम इन 75 कदमों को भी पूरा करेंगे और 2022 से पहले जवाब देंगे। भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई सरकार अपने कार्यकाल के बीच में अपनी जनता को जवाब देने को तैयार है। इसमें ताकत लगती है। भारत के 75 साल पूरे होने का साल हमारे सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए एक पर्व जैसा होना चाहिए।
जैसा संकल्प आजादी के लिए निर्मित हुआ था, वैसा ही संकल्प विकास के लिए होना चाहिए। त्याग की जो भावना आजादी के लिए थी, विकास के लिए भी वही भावना होनी चाहिए। उदाहरण के लिए जब सफाई की बात आती है तो मीडिया ने मेरी बहुत मदद की है। 2022 के लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में; हमसे सहमत और असहमत; दोनों को भारत को आगे बढ़ने के लिए माहौल बनाना चाहिए। मैं आपके दर्शकों को शुभकामनाएं देता हूं और आपको धन्यवाद देता हूं। हो सकता है कुछ बातें मैंने कही हों जो आपको अच्छी न लगी हों, मेरा इरादा आपको ठेस पहुँचाने का नहीं था। मैं मानता हूं कि देश में तटस्थता की जरूरत है और जब कोई हमारा रिपोर्ट कार्ड मांगता है तो हम देने को हमेशा तैयार रहते हैं।
प्रश्न बहुत हैं लेकिन समय हमेशा कम होता है। उम्मीद है कि हमें 2022 के बाद आपका साक्षात्कार करने का एक और अवसर मिलेगा।
धन्यवाद।