मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पराजय के साथ 11 दिसंबर, 2018 आपके और आपकी पार्टी के लिए एक झटका था। आज 11 मई है। इस दौरान आपने 200 से ज्यादा जनसभाएं की हैं। आपको क्या लग रहा है?

हर चुनावी विश्लेषक, मीडिया, लुटियन क्लब, खान मार्केट गैंग; हमें हराने के लिए उत्सुक था और भविष्यवाणी की जा रही थी कि हम तीनों राज्यों में लगभग 40 सीटों में सिमट जाएँगे। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हम 15 साल तक सत्ता में रहे। वहाँ एक स्वाभाविक सत्ता विरोधी रुझान था। लेकिन वे (कांग्रेस) पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना सके, न तो मध्य प्रदेश में और न ही राजस्थान में... हमारे पास उनसे (मध्य प्रदेश में) अधिक वोट थे। इसलिए, परिणाम, एक तरह से, पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाले साबित हुए। जनता ने सोचा कि उन्होंने (कांग्रेस) अपने तरीके बदल लिए होंगे, लेकिन सत्ता में वापसी करते ही उनका असली रंग सामने आ गया। नोटों के बंडलों के जरिए उनकी काली कमाई प्रकट होने लगी, जिसे पूरे देश ने देखा।

 

यह 'द इंडियन एक्सप्रेस' के लिए भ्रष्टाचार नहीं हो सकता है, जो खोजी पत्रकारिता करता है...भोपाल में गरीब बच्चों के पोषक आहार के लिए आवंटित धन पर हाथ साफ़ कर दिया गया; मैं इंडियन एक्सप्रेस में समाचारों को बहुत गंभीरता से लेता हूं; कुल-मिलाकर इसने खोजी पत्रकारिता की दुनिया में अपना नाम बनाया है और उद्देश्यपरक पत्रकारिता में यह अभी भी दूसरों से आगे है।

 

समाज के पिछड़े समुदाय के खिलाफ अपराध से संबंधित मुद्दों को उठाने में आपका प्रकाशन हमेशा सबसे आगे रहा है। लेकिन राजस्थान के अलवर में हुए जघन्य बलात्कार की घटना के बाद आप जिस लगातार फॉलोअप के लिए जाने जाते हैं, वह छूट गया। आपका अखबार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने में हमेशा सबसे आगे रहा है। लेकिन जब मध्यप्रदेश में पुलिस द्वारा 'मोदी, मोदी' के नारे लगाने के लिए लोगों पर केस किया जाता है, तो यह आपके यहाँ हेडलाइन नहीं बनती है। कांग्रेस ने किसानों को कर्ज माफी, बेरोजगार युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था लेकिन वे धन उगाही में लगे हैं। इसलिए हमें अपने कैडर का मनोबल बढ़ाने के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है।

 

यह सवाल इसलिए है क्योंकि इन पराजयों के बाद आपने तेजी से कदम उठाए- आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत कोटा, 'पीएम-किसान सम्मान निधि', कर योग्य आय में 5 लाख रुपये तक की आयकर राहत और असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन। ऐसा लग रहा था कि हार का असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा।

इसका दूसरा पहलू समझिए। मीडिया को अक्सर मेरी सरकार से शिकायत रही है कि उसे सरकार के फैसलों की पहले से सूचना क्यों नहीं मिल जाती ! असल में यह आपकी समस्या है। मैंने इन सभी निर्णयों पर 11 दिसंबर के बाद विचार नहीं किया था। अगर आप इसकी गहराई में जाएंगे तो पता चलेगा कि यह सभी विषय दो साल से विचार-विमर्श की प्रक्रिया में थे।

 

जब आप मराठा, जाट, गुर्जर और पाटीदार आंदोलन देखते हैं... ऐसी अशांति बनी रही तो देश कहां जाएगा? इसलिए इसे 11 दिसंबर से जोड़ना 'पत्रकारिता' का एक संकुचित आकलन भर है बस।

 

आपने तीन समुदायों में अशांति का उल्लेख किया …

इसे केवल इन तीन समुदायों के नजरिए से न देखें। बड़ी संख्या में NGO, जो विदेशी धन के मदद से काम करते हैं, वे भी इस तरह की अशांति पैदा करने में शामिल रहे हैं।

 

आप पिछले पांच साल से लगातार चुनाव-प्रचार वाले मूड में हैं, विपक्ष पर निशाना साध रहे हैं। इसका मतलब यही हुआ कि आप भी उनके निशाने पर हैं। लोकतंत्र में सत्ता और विपक्षी खेमे के बीच बातचीत और विचारों का सार्थक आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण स्थान है। क्या यह निरंतर चुनावी अभियान का माहौल लोकतंत्र के उक्त पक्ष को कमजोर नहीं करता है?

लेकिन इसमें एक बिंदु छूट रहा है कि यह आपत्ति उनकी ओर से है जो विज्ञान भवन और कैबिनेट कक्षों से सरकार चलाने के आदी रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए, यदि प्रधानमंत्री देश भर में यात्रा नहीं करेगा तो देश में क्या हो रहा है, इसके बारे में पता कैसे चलेगा? यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि यह प्रधानमंत्री छुट्टी के दिन भी आराम नहीं करता है। अगर मैं पानी से जुड़े किसी आयोजन में जाता हूं तो मैं वहाँ पानी के अलावा किसी और चीज पर नहीं बोलता। यदि यह सरकार से संबंधित आयोजन है, तो मैं सरकार पर ही बोलता हूं। मैं विकास के अलावा किसी और चीज पर नहीं बात नहीं करता हूँ।

 

चुनाव अभियान के अलावा शायद ही आप मुझे किसी पार्टी या उसके नेताओं के खिलाफ बोलते हुए पाएंगे। जब तक कि उस दिन (विपक्ष की ओर से) कोई टिप्पणी न की गई हुई हो, जिसका जवाब देना मेरा दायित्व है। यह आप गुजरात में मेरे मुख्यमंत्रित्व काल के दिनों से मेरे भाषणों से देख सकते हैं। यह मेरी प्रतिबद्धता है...यहां तक कि संसद में भी।

 

मैं आपसे दो घटनाओं का उल्लेख करना चाहूँगा और चाहूँगा कि 'द इंडियन एक्सप्रेस' इसे सही सन्दर्भ में छापे। यह 'आईएनएस (विराट)' का विषय कहां से आया? यह कोई नया मामला नहीं है जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। यह क्यों आया? जब कांग्रेस अध्यक्ष एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहते हैं कि सेना मोदी की निजी जागीर (संपत्ति) नहीं है - आप सभी से यह छूट गया तो मुझे कहना पड़ा कि व्यक्तिगत जागीर क्या होती है ? राजीव गांधी मेरा मुद्दा नहीं है। यह आपका निजी चुनाव है कि आप राजीव गांधी की बात करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह बातें द इंडियन एक्सप्रेस ने जब रिपोर्ट की, तब भूतपूर्व नौसेना अध्यक्षों ने इस पर कुछ नहीं बोला था। कहते हैं, “बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी।”

 

दूसरी बार जब मैंने झारखंड में पढ़ा कि उन्होंने (राहुल गांधी) कहा कि वह नरेन्द्र मोदी की छवि को खत्म करना चाहते हैं। किसी भी तरह मेरी छवि को खराब करना उनका ध्येय है।

 

मोदी की छवि, खान मार्केट गैंग और लुटियंस दिल्ली ने नहीं बनाई है। यह छवि 45 साल की मोदी की तपस्या ने बनाई है। अच्छी है या बुरी है। आप इसे खत्म नहीं कर सकते। लेकिन लुटियंस और खान मार्केट गैंग ने एक पूर्व प्रधानमंत्री की छवि 'मिस्टर क्लीन, मिस्टर क्लीन' की बनाई थी; वह कैसे खत्म हुई? मेरी छवि? यह आपका काम है कि आप इसकी पड़ताल करे और लोगों बताएँ।

 

कांग्रेस ही नहीं, ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू का भी प्रचार अब इतना व्यक्तिगत हो गया है कि आश्चर्य होता है कि क्या आप सभी चुनाव के बाद राष्ट्रीय मुद्दों पर एक साथ मिलकर काम कर पाएँगे?

विपक्ष के सदस्यों से बात कर के मैंने एक साथ चुनाव कराने का लगातार प्रयास किया है, जिनमें से कुछ सहमत हैं, लेकिन उनकी पार्टियां अलग पक्ष लेती हैं। व्यक्तिगत रूप से, विपक्ष के नेता स्वीकार करते हैं कि उन्होंने किसी प्रधानमंत्री को उन्हें इतना समय देते हुए नहीं देखा है, लेकिन वे इसे सार्वजनिक रूप से कहते नहीं हैं। संसद सत्रों के दौरान तो मैं हर दिन सभी दलों के कुल 40-45 अलग-अलग सांसदों से मिलता हूं। लोकतंत्र में संवाद का बहुत महत्व है।

 

जब चक्रवात आया तो मैंने तुरंत ममता जी और नवीन जी को फोन किया। मैंने अपने एक चुनाव कार्यक्रम को स्थगित कर के आपदा प्रबंधन की बैठक ली। मैं हर दो घंटे में रिपोर्ट ले रहा था क्योंकि चक्रवात लगभग 1,000 किमी दूर था। केरल में एक मंदिर में पटाखे फटने से 18 लोगों की मौत हुई थी तब मैं वहां शीर्षस्थ डॉक्टरों के साथ गया था। यह सच्चाई है और आपको मुझे जबरन अच्छा प्रस्तुत करने की कोई जरूरत नहीं।

 

शायद ही कभी हमने अपने फोटो डेस्क पर एक ही फ्रेम में आपकी और विपक्ष के शीर्ष नेताओं की तस्वीर देखी हो, जिसमें आप सभी मुस्कुरा रहे हों...

यह मैनेज करना मेरे हाथ में नहीं है। अन्यथा मैं एक खुशमिजाज व्यक्ति हूं...मेरी कैबिनेट की बैठकें भी हल्के-फुल्के पलों से भरी होती हैं। लेकिन इसे राजनीतिक रंग दे दिया गया है।

 

लेकिन छवि की ताकत ये आप से बेहतर कोई नेता नहीं जानता।

(जब मैं काम कर रहा होता हूं) मैं गतिविधियों पर केंद्रित होने में भरोसा करता हूं, मैं पूरी तरह उसमें शामिल हो जाता हूं। और जब मैं फ्री हो जाता हूं तो वास्तव में खुद को फ्री रखता हूं।

 

कहा यह जाता है कि नरेन्द्र मोदी सबको हमेशा नियंत्रण में रखना चाहते हैं। प्रश्न यह है, क्या आप असहमति को स्थान देते हैं? क्या आप कभी कैबिनेट अथवा पार्टी बैठकों में असहमति का पात्र बने हैं?

मैं, आपको गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दिनों का उदाहरण दे सकता हूँ। मैंने आठ-नौ विधायकों को एक साथ रखा, जिनमें से एक मंत्री को उनके संपर्क में रहने के लिए रखा गया था। मंगलवार, मेरा विधायक दिवस हुआ करता था, जब वे सब लोग मुझे व अन्य सरकारी पदाधिकारियों से मिलने के लिए बिना समय लिए आ सकते थे। मंत्री; अपने विधायकों से मिलकर जमीनी हकीकत की प्रतिक्रियाएं लेते थे। कैबिनेट की बैठकें बुधवार को होती थीं। कैबिनेट की हर बैठक से पहले 45 मिनट का शून्य काल होता था, जहां ये मंत्री मंगलवार को हुई मुलाकातों पर चर्चा करते थे, बैठक में मेरे सम्बोधन से पहले वह खुलकर अपनी राय व्यक्त करते थे।

 

शुरुआती 15 मिनट में मुझे इन चर्चाओं के बारे में बताया जाता, जिसमें किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से बचने हेतु मेरा आग्रह रहता था कि मुझे यह न बताया जाए कि अमुक रिपोर्ट कहां से आ रही है। अपने मंत्रालयों और कैग के बीच एक मैंने वर्कशॉप कराई, ताकि इसके लिए उनके मतभेद कहां थे, इस पर खुली चर्चा का माहौल बने। इस प्रयास से मेरी टीम तो शिक्षित हुई ही साथ ही स्वयं में भी सुधार किया। क्या यह लोकतंत्र नहीं है?

 

ठीक इसी प्रकार प्रश्नकाल के दौरान, विपक्ष; सरकार की आलोचना करेगा और सरकार के सदस्य उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे। यह मीडिया में दिखाई देता है कि अधिकारी मौज कर रहे हैं। विधानसभाएं, वस्तुतः कार्यकारी प्रणाली पर दबाव बढ़ाने के लिए होती हैं। बजाय इसके, वह राजनीति के लिए एक अखाड़ा बन गए हैं जो अगले दिन अखबारों में प्रकाशित हो जाता है। यह मेरा मानना है कि विधानसभाएं इसके लिए नहीं हैं।

 

आपको बस मनमोहन सिंह सरकार में हुई कैबिनेट बैठकों का औसतन समय पता करना है...यह 20 मिनट था। मेरी कैबिनेट की बैठकों का औसत समय तीन घंटे है। आपको क्या लगता है कि उस समय क्या होता है? कैबिनेट के अनेक प्रस्ताव आए जो वापस ले लिए गए हैं। कई को अस्थायी GoM (मंत्रियों का समूह) समीक्षा के लिए भेजा गया है। इसके अतिरिक्त, मीडिया से दूरी रखकर मैंने मंत्रिपरिषद की बैठकें पूरी की हैं, जहाँ सभी को बोलने और विचार-विमर्श करने के लिए आमंत्रित किया जाता है और प्रस्तुतियां दी जाती हैं।

 

लेकिन हमें जो खबरें मिलती हैं, उसका क्या?

वह आपकी समस्या है। मैं अलोकतांत्रिक नहीं हूँ। मैंने दिल्ली में 250 लोगों से तीन-तीन घंटे तक अनौपचारिक चर्चाएं की हैं। मेरा मानना है कि सरकार की सोच के साथ-साथ मीडिया के लोगों की सोच भी पारदर्शी होनी चाहिए। समाचार प्रकाशित हो या न हो, यह लोकतंत्र में एकमात्र नियामक नहीं है।

 

282 (सीटों) के बहुमत के बाद भी आपकी सरकार के लिए क्या असम्भव था?

इंडियन एक्सप्रेस को मोदी की आलोचना में निष्पक्ष बनाना (मुस्कुराते हुए)।

 

हमने यह बात बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से भी पूछी कि अटल बिहारी वाजपेयी के पास संख्या बल नहीं था, उनके पास मांग करने वाले सहयोगी और एक अशांत संघ था। आप इन तीनों पहलुओं पर सुरक्षित हैं। स्वर्णिम चतुर्भुज, निवेश-वापसी, विद्युत सुधार, पोखरण...उनकी विरासत आज से 20 साल बाद भी याद की जाएगी। आपके पास इस प्रकार की संभावित सम्पदा क्या है?

इस सन्दर्भ में मैं जो भी कहूँ वह अनुचित होगा इसलिए मैं इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहूंगा। दुर्भाग्य से, हमने सरकारों को केवल एक या दो चीजों के साथ जोड़कर परखने की कोशिश की है, समग्र रूप से नहीं! यह, सरकारों के लिए याद किए जाने के लिए एक या दो काम करने का प्रलोभन पैदा करता है। मैं अनेक स्तंभों पर देश का निर्माण करना चाहता हूँ। यदि कोई कहे कि स्वच्छता आपकी विरासत है, तो मैं कहूंगा कि मैंने बड़े पैमाने पर शौचालय बनवाए। कोई स्वास्थ्य सेवा को विरासत बताने का दावा करेगा, मैं आपको आयुष्मान भारत स्मरण कराऊंगा।

 

जैसे अटलजी की सरकार ने किया, हमने अर्थव्यवस्था की ऊँची विकास दर को कायम रखा है और इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना दिया है। हमारी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम किया है, जिसे हमारे घोर आलोचक भी स्वीकार करते हैं। हमने विरासत में मिली गति से दोगुनी गति से ग्रामीण सड़कों और राजमार्गों का निर्माण किया। वास्तव में भारत आज विश्व में सबसे तेज गति से राजमार्ग बनाने वाला देश है।

 

विपक्ष ने अटलजी की सरकार पर रक्षा घोटाले के मनगढ़ंत आरोप लगाने की कोशिश की, लेकिन ये सभी आरोप झूठे निकले। अब, वे इसी प्रकार एक घोटाले के गढ़े हुए आरोपों के साथ हमें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार फिर सच हमारे साथ है।

 

कांग्रेस और उसके साथी दलों ने भ्रामक आँकड़ों के साथ; बेरोजगारी और नौकरियों की कमी का माहौल रचने की कोशिश की। जबकि सच यह सामने आया कि अटलजी की कार्यकाल वाली सरकार ने यूपीए के दो कार्यकालों की तुलना में कई गुना अधिक नौकरियां पैदा कीं। हमारी सरकार के खिलाफ भी ऐसा ही माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।

 

अगर आप मेरी सरकार की उपलब्धियों को एक-दो मुद्दों तक सीमित रखना चाहेंगे तो यह मेरे साथ न्याय नहीं होगा। वे (कांग्रेस) अपनी पूरी सरकार के बारे में बात करते समय मनरेगा के जाप से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। मैं इस प्रकार के किसी भी क्षेत्र तक खुद को सीमित नहीं करना चाहता। मैं 13 साल गुजरात का मुख्यमंत्री रहा, आप वहाँ भी किसी एक चीज को चिन्हित नहीं कर सकते, बल्कि आपको लगभग हर क्षेत्र में किए गए काफी काम मिलेंगे। इस प्रकार, सरकार कैसे काम करे, मैंने एक मॉडल बनाने की कोशिश की है।

 

2014 के चुनावों में गुजरात मॉडल की चर्चा हुई थी। यूपीए कार्यकाल में हमने एक अधिकार-आधारित मॉडल भी देखा - सूचना का अधिकार, ग्रामीण रोजगार, शिक्षा, भोजन आदि। फिलहाल केंद्र में हम एक स्पष्ट मॉडल नहीं देख पा रहे हैं। एक तरफ, आप मुद्रा, ऋण को स्वरोजगार के साधन के रूप में मुख्यतः रखते हैं, वहीं दूसरी ओर खैरात के तौर पर पीएम-किसान योजना को।

यदि मैं 'द इंडियन एक्सप्रेस' को विज्ञापन देता हूँ और इससे मुझे कोई फायदा नहीं होता, तो क्या यह खैरात है? अखबारों के इश्तहार ख़ैरात की परिभाषा में फिट होते होंगे। 11 दिसंबर के बाद डीएवीपी की दरें बढ़ाई गईं। क्या यह एक ख़ैरात है? यदि अगर मैं गरीबों के लिए घर बनवा रहा हूँ तो क्या यह खैरात हुई? तब मुझे परिभाषा समझ नहीं आती।

 

स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है। लेकिन अगर क्लाइंट ही नहीं होगा तो इंफ्रास्ट्रक्चर कौन बनाएगा? अब, जब हमने एक कड़ी बनाई है जिसके ऊपर स्वास्थ्य क्षेत्र खड़ा होगा - यह सशक्तिकरण है या खैरात? मैंने भोजन और शिक्षा के अधिकार को कभी खैरात नहीं कहा। लेकिन मैंने इसे चुनावी स्टंट बताया। जरा देखिए कि मोदी के सत्ता में आने से एक दिन पहले 25 मई 2014 को भोजन के अधिकार की क्या स्थिति थी? उस पर चर्चा होनी चाहिए।

 

हम ऐसा इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि आपके “मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस” के चुनावी नारे ने संकेत किया था कि आप बाजार व्यवस्था में सहयोगी आवश्यक शक्तियों को अधिक अवसर देंगे, लेकिन...

इसके दो भाग हैं। चार धाम मोक्ष के लिए पर्याप्त बताए जाते हैं, लेकिन सरकार में 32 जगहों से गुजरने के बाद भी फाइलें अपने मोक्ष अथवा मंजिल तक नहीं पहुँच पाती थीं। मुझे इसे बदलना पड़ा। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फाइलें बीच में महज चार-छह पड़ाव के बाद मेरे पास पहुंचती हैं। कैबिनेट नोट में पहले छह महीने लगते थे। अब 15 दिन लगते हैं।

 

किसी मीटिंग के मिनट्स मुझे मुझे छह महीने बाद मेरे हस्ताक्षर के लिए प्राप्त हों, यह कितनी बेतुकी बात है ! अब यह नियम है कि बैठक के 15 दिनों के भीतर मिनटों को मंजूरी दी जानी चाहिए। यही गवर्नेंस है। इससे समय और प्रयास की बचत होती है।

 

जहां तक विनिवेश का संबंध है, सरकार को व्यवसाय में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। विनिवेश एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे हमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि हम जिस चीज को बेचने के लिए रख रहे हैं उसके लिए कोई लेने वाला है या नहीं। हम एक धारणा बनाते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा विनिवेश इसी सरकार के दौरान हुआ है।

लेकिन आपने एक हाथ से बेचा है, दूसरे हाथ से खरीदा है। ONGC (Oil and Natural Gas Corporation); HPCL (Hindustan Petroleum Corporation Ltd) खरीदता है, PFC (Power Finance Corporation); REC (Rural Electrification Corporation) का अधिग्रहण करता है...

आप ऐसे उदाहरण दे सकते हैं। लेकिन मैं आपको दूसरा उदाहरण देता हूँ - 'द इंडियन एक्सप्रेस' के एक बार के कर्ता-धर्ता ने एक बड़े सुधार के रूप में देश में बैंकों के विलय पर एक लेख लिखा था। मैंने पांच बैंकों का स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) में विलय किया है और तीन अन्य बैंकों का विलय भी किया गया है। कहाँ है यह खबर? जहां यूनियन मौजूद हैं, वहां बैंकों का विलय करना कोई छोटी बात नहीं है। ये चीजें रातों रात नहीं होती हैं। एक आदमी पांच साल में वह कर रहा है, जो पिछले 70 साल में नहीं हुआ। क्या यह आपके लिए मायने नहीं रखता है?

 

 

नोटबंदी के फैसले का स्वभाव क्या था? आप इसके गोल पोस्ट बदलते रहे।

यहां गोल पोस्ट बदलने का कोई सवाल ही नहीं है। क्या हमने नोटबंदी को पहले दिन से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ और काले धन की पहचान कर उस पर नकेल कसने के उपक्रम के रूप में नहीं बताया था? काले धन के खिलाफ हमारी पहल के माध्यम से क्या हम 1.30 लाख करोड़ रुपये की अघोषित आय को कर के दायरे में नहीं लाए हैं? क्या 3.38 लाख शेल कंपनियों का पता लगाकर उनका पंजीकरण रद्द कर के उनके निदेशकों को अयोग्य घोषित नहीं नहीं किया गया है? इसके अलावा, जैसा कि मैं कहता रहता हूं, अब व्यवस्था में हर रुपये के साथ एक टैग जुड़ा हुआ है, जो पहले हमारे पास नहीं था। विमुद्रीकरण भी औपचारिकता को बढ़ावा देने, कर चोरी पर अंकुश लगाने और डिजिटल भुगतान के माध्यम से एक स्वच्छ अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने का एक अच्छा साधन था। 2013-14 में दाखिल हुए रिटर्न्स की संख्या 3.8 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 6.8 करोड़ हो गई, जो कर आधार में 80% की वृद्धि दर्शाती है। डिजिटल पेमेंट में हुई बढ़ोतरी से आंकड़ों और जीने के तरीके दोनों में सुधार हुआ है।


जीएसटी, आईबीसी और संसाधन आवंटन में सुधारों पर महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। अगला सुधार क्षेत्र क्या होगा?

आप GST, IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) और संसाधन आवंटन में सुधारों के बीच मनमानी भरे तरीकों से एक नियम-आधारित आदेश की ओर बढ़ते हुए आप एक सामान्य सूत्र देख सकते हैं, जो सबको एक समान अवसर प्रदान करता है। हम GST के साथ इंस्पेक्टर राज की संभावना को कम करते हुए करदाताओं के लिए अधिक पारदर्शिता, तकनीक लेकर आए हैं। जीएसटी का मतलब लोगों के लिए कम दरें भी हैं।IBC ने यह सुनिश्चित किया है कि कोई चाहे वह कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो, भारत के लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई के बैंकों में जमा पैसे की जवाबदेही से नहीं बच सकता है...“ आगे क्या होगा?”, इस प्रश्न पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ कि अधिक, व्यापक और दूरगामी सुधार होगा।

 

आपके पूरे कार्यकाल में महंगाई कम रही है लेकिन किसान नाखुश हैं। भविष्य में आप इस उपभोक्ता बनाम उत्पादक तनाव में सामंजस्य के लिए क्या करने जा रहे हैं?

देश के गरीबों के लिए महंगाई पर काबू पाना ज़रूरी है, नहीं तो हम उन पर छिपे हुए टैक्स का बोझ डाल देंगे, जो उनकी आय पर कुठाराघात करेगा। साथ ही किसानों की आय बढ़ाना महत्वपूर्ण है। प्रचलित समझ बताती है कि दोनों एक साथ नहीं हो सकते, लेकिन हम यह सुनिश्चित करने के लिए लीक से हटकर सोच रहे हैं कि उत्पादक और उपभोक्ता दोनों खुश रहें। सबसे पहले, ऐतिहासिक एमएसपी (Minimum Support Price) वृद्धि कृषि आय बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब अहम सवाल यह है कि क्या एमएसपी में बढ़ोतरी काफी है ! हरगिज़ नहीं। यदि एमएसपी पर खरीद नहीं होती है तो एमएसपी में बढ़ोतरी कागजों पर ही रह जाती है। इस संबंध में, मैं कुछ आंकड़ों को रेखांकित करता हूं जिन्हें मैं अक्सर उद्धृत करता हूं और मैं चाहता हूं कि ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक विश्लेषक इसके बारे में बात करें।

 

यूपीए कार्यकाल के दौरान 2009-14 तक पांच वर्षों में लगभग 7 लाख मीट्रिक टन दलहन और तिलहन एमएसपी पर खरीदे गए थे। 2014-19 के दौरान, एनडीए के अंतर्गत एमएसपी पर 94 लाख मीट्रिक टन दलहन और तिलहन की खरीद हुई। यह पिछले से तकरीबन 15 गुना की छलांग है। खरीद में इतना बड़ा उछाल आया और पहले से अधिक उत्पादन के लिए महंगाई को काबू में रखने के साथ-साथ एमएसपी सुनिश्चित किया गया।e-NAM (National Agriculture Market) जैसी पहल से किसानों के पास और अधिक पैसा आएगा। कृषि लाभ सुनिश्चित करने का एक अन्य महत्वपूर्ण तरीका प्रत्यक्ष आय समर्थन है, जो छोटे और सीमांत किसानों को उनकी जेब से खर्च होने वाली लागत का कुछ हिस्सा कम करने में भी मदद करते हुए कुछ आय समर्थन का आश्वासन देता है। हमने अपने घोषणापत्र में इस योजना को सभी किसानों तक पहुंचाने की मंशा जारी की है।

 

क्या हमारी जनसांख्यिकीय पूंजी; जनसांख्यिकीय निराशा में बदलने के खतरे में है?

“क्या देश जनसांख्यिकीय पूंजी या जनसांख्यिकीय अवसाद की ओर बढ़ना चाहता है?” इस चुनाव में शायद यही सबसे अहम मुद्दा है। यहां, समझने के लिए दो अलग-अलग बिंदु हैं। एक दृष्टि, भारत में प्रत्येक परिवार में हरेक युवा के लिए विकास अवसर पैदा करने पर केंद्रित है। दूसरी दृष्टि, केवल कुछ राजनीतिक परिवारों के युवाओं के लिए अवसर पैदा करने की है। वह कौन सी दृष्टि है जो भारत के लिए जनसांख्यिकीय पूंजी सुनिश्चित कर सकती है? किसने एक ख़ाका तैयार किया है, जो युवाओं के लिए उस पैमाने पर अवसर पैदा करेगा जिसकी भारत को जरूरत है? वह हम ही हैं, जो भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में 100 लाख करोड़ रुपये निवेश करने, कृषि प्रधान ग्रामीण क्षेत्रों में 25 लाख करोड़ रुपये निवेश करने, सक्रिय हवाईअड्डों और राजमार्गों की संख्या व लम्बाई दोगुनी कर के नए भारत के निर्माण का विज़न रखते हैं।

 

जनसांख्यिकीय पूँजी का उपयोग करने का अर्थ देश को नवाचार का केंद्र बनाना है। आप मुझे बताओ, किसने इसके लिए एक विज़न की रूपरेखा तैयार की है? यह हम ही हैं जिन्होंने कहा है कि हम भारत को व्यापारिक सुगमता के पायदान में शीर्ष 50 तक ले जाएंगे। हमने यह भी कहा है कि 2024 तक भारत में 50,000 स्टार्ट-अप्स की स्थापना की सुविधा प्रदान करेंगे और हमारे युवाओं को 50 लाख रुपये तक का कोलेटरल फ्री लोन प्रदान करने का वादा किया है, जो रोजगार सृजक बनना चाहते हैं।

 

आज के युवा अतीत का कोई बोझ नहीं ढो रहे हैं। युवा, भविष्य से डरते भी नहीं हैं क्योंकि वे इसे बनाना चाहते हैं। वे बड़े सपने देखते हैं और ऐसा नेतृत्व चाहते हैं जो उनके लिए बड़ा काम कर सके। नौजवानों को वही पुरानी, थकी हुई और पुरानी जुमलेबाजी नहीं चाहिए, जो एक परिवार द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी दोहराई जाती रही है जिसने भारत को छह दशकों तक पीछे धकेला था। हम जनसांख्यिकीय पूंजी के लिए एक दृष्टि प्रदान करते हैं जबकि विपक्ष, विभाजन और निराशा की पेशकश करता है।

 

सामाजिक मुद्दों पर आगे बढ़ते हुए, राष्ट्रवाद को चुनावी विमर्श का हिस्सा बनाना आपका विशेषाधिकार है, लेकिन, विषय राष्ट्रवाद की प्रकृति का है। आबादी के एक तबके के लिए, पाकिस्तान और कश्मीर के चश्मे से राष्ट्रवाद की कल्पना करने वाली मुट्ठीभर एक ऐसी आवाज़ है जो उनके राष्ट्रवाद पर संदेह करती है ... इन चुनावों को कवर करते हुए, झुंझुनू से बीना तक, गांवों में हमारे सहयोगियों ने पाया, लोगों को हमारी विदेश विदेश नीति पसंद है. कि इसने उन्हें सम्मान दिया। हमने इसे किसी अन्य लोकसभा अभियान में नहीं सुना है। यह राष्ट्रवाद का एक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, लेकिन एक ऐसा राष्ट्रवाद जो आलोचना पर सवाल उठाता है जैसे, नोटबंदी को लेकर कई अर्थशास्त्रियों के सवाल थे लेकिन आपने कहा कि नोटबंदी के खिलाफ सिर्फ दो तरह के लोग हैं - एक तो भ्रष्टाचारी या फिर कांग्रेस से सुपारी लेने वाले। तो ऐसे सवालों को राष्ट्रवाद से जोड़ने के लिए...

सरदार सरोवर बांध की नींव पंडित नेहरू ने रखी थी। इसका उद्घाटन मेरे द्वारा हाल ही में किया गया था। इस परियोजना पर 6,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन अंततः इसकी लागत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई। अगर मैं कहूं कि देशद्रोहियों ने देश को बर्बाद किया है, तो इससे आपको क्या परेशानी होनी चाहिए?

 

सरकार के समक्ष विदेशी धन का खुलासा करने के लिए एक कानून है। यह मेरे द्वारा नहीं बनाया गया था। इसे इसी राजनीतिक परिवार ने बनाया था। मैंने केवल हिसाब मांगा, जो कि प्रदान नहीं किया गया था। स्वचालित रूप से, 20,000 (एनजीओ) बंद हो गए। मैं तो कहूंगा कि ये देशद्रोह है। आपको क्यों बुरा लगता है जी)?

 

इसी संदर्भ में है। आर्थिक आधार पर विश्लेषण करके नोटबंदी की आलोचना करने पर मेरे द्वारा कोई आपत्ति नहीं की गई है। आप मेरे 20 साल पुराने भाषण को भी देख सकते हैं, जब मैं सीएम भी नहीं था; बीजेपी यूथ विंग के एक कार्यक्रम के दौरान कहा था - कि भारत माता की जय का नारा लगाना बेकार है, अगर आप जाकर उसी भारत-माता पर अपना पान-गुटखा थूकते हैं; यह मेरा राष्ट्रवाद और देशभक्ति है। आपके दिमाग में पाकिस्तान भरा पड़ा है (आप पाकिस्तान से आगे नहीं सोच सकते)।

 

क्या इंडियन एक्सप्रेस, जो खोजी पत्रकारिता करता है, ने लिखा है कि राज्यपाल शासन (जम्मू-कश्मीर में) के बाद 100 प्रतिशत विद्युतीकरण हासिल कर लिया गया है। क्या यह खबर नहीं है? जम्मू-कश्मीर में चुनाव के दौरान हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा में सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे। वहां एक भी चुनाव बिना हिंसा के नहीं गुजरता। मेरी देशभक्ति जम्मू और कश्मीर में दिखती नहीं आपको क्या? उग्रवाद से जूझ रहा पूर्वोत्तर शांतिपूर्ण रहा है। क्या हमने वहां राष्ट्रवाद की भावना नहीं डाली है? उन्हें मुख्य धारा में लाए।

 

बेशक, कानून को भ्रष्टाचारियों के खिलाफ चलना चाहिए, लेकिन क्या वह देशद्रोह है?

हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि सरकारी चीजें हमारी (सरकार की) हैं। वे हम सबकी हैं। मेरी देशभक्ति का यही एक स्वर है। आपने देखा होगा कि कैसे लोग सरकारी बस की सीटों को नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि हम अपने सबसे पुराने स्कूटर को चार बार साफ करते हैं लेकिन हम सरकारी बसों और संपत्तियों को नुकसान करते हैं। क्या यही राष्ट्रवाद है? यह हम क्यों करते है? यह कैसा राष्ट्रवाद है? “ये सब देश का है” मतलब आपका है, ये भाव जगाना चाहिए कि नहीं चाहिए? देशभक्ति की मेरी परिभाषा यही है।

 

आपका साक्षात्कार करते हुए हम इस परिभाषा से भयभीत महसूस नहीं कर सकते हैं, मगर बहुत से मुस्लिम परिवार के लोगों को लगता है कि अब उन्हें अपने राष्ट्रवाद के इम्तेहान से गुजरना होगा। चुनाव कवरेज के दौरान हमने उनमें से कईयों के बीच एक भाव यह पाया कि अब वे किसी गिनती में ही नहीं हैं।

उनके लिए यह हालात वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने पैदा किए हैं कि उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया और मुख्यधारा में नहीं लाए।

 

वे उन्हें (पूर्व राष्ट्रपति एपीजे) अब्दुल कलाम को अपना क्यों नहीं मानते? यह सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए। वे सानिया मिर्जा को अपना क्यों नहीं मानते? अब्दुल हमीद (1965 के युद्ध नायक) को अपना क्यों नहीं मानते? यह सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए। क्या उन्हें शिक्षित करना हमारा काम नहीं है? खुद को सेक्युलर कहने वाले इन सांसदों/विधायकों ने क्या किसी मुसलमान को नेतृत्व दिया है?

 

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हैं। क्या यह पद किसी मुसलमान को नहीं दिया जा सकता? उन्होंने यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया? जहां तक दलितों/आदिवासियों की बात है, मेरी राय है कि दलितों/आदिवासियों/मुस्लिमों को लायंस क्लब का अध्यक्ष क्यों नहीं बनना चाहिए। सब कुछ राजनीति में ही क्यों होना चाहिए? पत्रकारिता में मुसलमानों को शीर्ष पद क्यों नहीं दिए जा रहे हैं? आपने अभी तक ऐसी व्यवस्था क्यों बना कर रखी? क्या हम जिम्मेदार हैं ? हम तो अभी आए हैं।

 

हमने अब्दुल कलाम के लिए दूसरा कार्यकाल मांगा था। उनमें क्या खराबी थी? हमारा मानना था कि उन्हें सर्वसम्मति से एक और कार्यकाल दिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

 

आपकी पार्टी और विचारधारा के स्वघोषित समर्थक ऑनलाइन नफरत फैलाते हैं।

कृपया मुझे एक भी घटना बताएं, जहां हमारी सरकार ने संस्थागत रूप से किसी भी समुदाय के साथ भेदभाव किया हो। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मेरे तेरह और प्रधानमंत्री के रूप में पाँच साल के कार्यकाल में आपको ऐसा कोई संस्थागत भेदभाव नहीं मिलेगा, जो एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़ा करता हो। हालांकि, ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां अन्य पार्टियों के नेता स्पष्ट रूप से कहते हैं और यहां तक कि संसाधनों के विभाजन को समुदाय देखकर लागू भी करते हैं। वे उच्च पदों से यह दावा करते हैं कि केवल कुछ समुदायों का ही राष्ट्रीय संसाधनों पर पहला अधिकार होना चाहिए। अभद्र भाषा क्या होती है, इसकी परिभाषा खान मार्केट की आम सहमति के आधार पर हैं कि किसे बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए और किसे नहीं। अगर 'खान मार्केट' की आम सहमति मंजूर करती है, तो आप कुछ भी बोल सकते हैं और इसके लिए आपकी सराहना की जाएगी। लेकिन, अगर 'खान मार्केट' की आम सहमति आपको पसंद नहीं करती है, तो आप जो कुछ भी कहते हैं, वह हेट-स्पीच कहलाता है। मिसाल के तौर पर, हिरासत में यातना के अपने अनुभव को साझा करना अभद्र भाषा माना जाता है। किंतु जब कोई हिंदुओं को आतंकवादी कहता है, तो वह अभद्र भाषा नहीं है। और जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी आतंकवादी को मौत की सजा मिलती है, तो “उन्होंने उसे फांसी पर लटका दिया” किस्म की हैडलाइन रखी जाती है मगर वह तो अभद्र भाषा थी, है न?

 

आप गैर-बीजेपी वोटर को कैसे देखते हैं?

एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह असंभव है कि हरेक मतदाता आपसे हर समय सहमत हो। जब हम चुने गए थे, मैंने कहा था कि यह उन सभी की सरकार होगी जिन्होंने हमें वोट दिया और उन सभी की भी जिन्होंने हमें वोट नहीं दिया। मैं प्रत्येक गैर-बीजेपी मतदाता को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता हूं जिसकी आकांक्षाओं को हमें समझना चाहिए और पूरा करना चाहिए। मैं प्रत्येक गैर-बीजेपी वोटर को एक ऐसे कारण के रूप में देखता हूँ जिसके लिए हमें कड़ी मेहनत और तेजी से काम करने की जरूरत है।

 

आपके कई नेता ऐसा कहते हैं कि जनता ने बीजेपी/नरेन्द्र मोदी को जनादेश दिया है, आप कौन होते हैं हमें गलत बताने वाले। लेकिन लोकतंत्र को जांच और संतुलन के लिए न्यायपालिका और मीडिया जैसी अनिर्वाचित संस्थाओं की जरूरत है। ऐसा लगता है कि सत्तारूढ़ दल को अनिर्वाचित संस्थानों के असहज प्रश्नों पर असुविधा होती है!

असहजता भरे प्रश्न पूछे जाने चाहिए। मेरा मानना है कि आलोचना होनी चाहिए, आरोप नहीं। जैसे, आपको लोकतंत्र की ख़ातिर हमसे (सरकार से) कुछ सवाल पूछने चाहिए, वैसे ही जांच के सवाल दूसरों से भी लोकतंत्र के लिए पूछने चाहिए। नहीं ? यही मेरा चिंता का विषय है। हमसे पूर्व 10 साल के लिए एक रिमोट कंट्रोल सरकार थी। आपने रिमोट कंट्रोल रखने वालों से कितनी प्रेस कॉन्फ्रेंस की मांग की? एक अवैध संस्था बनाई गई, जो 'प्रधानमंत्री' पर हावी थी। जिस प्रकार आप मुझसे सवाल पूछ रहे हैं, क्या आपने लोकतंत्र के बारे में उनसे पूछा? मैंने तो जवाब दे दिया है कि मेरी कैबिनेट कैसे काम करती है। कैबिनेट के एक निर्णय को विरोधी दल ने फाड़ दिया था। “लोकतंत्र, आप मुझे सिखाओगे क्या?” उनसे कभी पूछा क्या? मेरे ऐसा कहने पर आप कहोगे कि मुझे आप पर गुस्सा आ रहा है। ऐसा कतई नहीं है!

 

मैंने (आपके सवालों का) विनम्रता से जवाब दिया है। लेकिन आपको भी कुछ सवालों के जवाब देने होंगे। अलवर में एक दलित लड़की के साथ बलात्कार की घटना और यह 6 मई तक (जब राजस्थान में चुनाव संपन्न हुआ) द इंडियन एक्सप्रेस में हेडलाइन नहीं बनती, यह इंडियन एक्सप्रेस की तटस्थता पर सवाल उठाएगा। छह मई तक यह खबर नदारद रही क्योंकि तब तक मतदान था। अपनी पसंद और नापसंद से परे क्या आप यह सुन सकते हैं ? आप मुझसे सभी प्रश्न पूछ सकते हैं, लेकिन यदि हम कोई पलट कर प्रश्न करते हैं, तो इसे हमारा आक्रामक रुख करार दिया जाता है।

 

आप ही बताइये पिछले एक साल से 'चोर' लोकतान्त्रिक शब्द है लेकिन 'भ्रष्ट' आपके लिए अपमानजनक शब्द है। यह किस प्रकार की डिक्शनरी है आपकी? मैंने सार्वजनिक तौर पर सिर्फ इतना ही कहा था कि राजीव गांधी के साथ एक ख़ास प्रकार की छवि चस्पा कर दी गई थे, और एक आदमी की छवि को तार-तार करने के लिए 'चोर-चोर....' की रटंत लगाई हुई है, क्या आपको इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता है!

 

कोई रोते हुए अपनी यातना, नग्न कर के हुए दुराचार का वर्णन करती है तो आप उसे हेट-स्पीच कहते हैं और एक पूरी जमात को जब आतंकवादी, हिंदू आतंकवाद आदि कहा गया, क्या वह हेट स्पीच नहीं है? ये जो दो तराजू है न, तटस्थता से मेरा झगड़ा इसी बात का है। अब आप हमें मीडिया के पर्दे से डरा नहीं सकते। स्वतंत्रता संग्राम के समय समाचार पत्र एक प्रकार का सत्याग्रह था। इससे अखबार चलाने वालों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। मीडिया की विरासत उसी संघर्ष से पैदा हुई है। पहले जब मैं 'द इंडियन एक्सप्रेस' उठाता था तो मुझे फर्क नहीं पड़ता था कि रिपोर्ट रवीश की है या राहुल की या किसी और की। क्योंकि जो मायने रखता था वह 'द इंडियन एक्सप्रेस' था, लेकिन सोशल मीडिया के आगमन के बाद मैं रवीश के 50 ट्वीट देख सकता हूँ और अपना आकलन कर सकता हूँ। आज आप सभी पत्रकार बेनकाब हो गए हैं।

 

आपके व्यक्तिगत विचार सोशल मीडिया सार्वजनिक हैं। लोग अब विश्लेषण करते हैं कि मीडिया में जो व्यक्तिगत विचार प्रकट हो रहे हैं, वह मीडिया की तटस्थता नहीं है। इसलिए, आज आपकी प्रतिष्ठा जो दाँव पे लगी है, इसके कारण ही लगी है।

 

अपनी इस प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए आपको संयम बरतना होगा। यह समूचे मीडिया जगत को करना होगा। पहले जब कुछ गोष्ठियों में संपादक अपने विचार रखते थे तो उसे अन्यथा नहीं लिया जाता था। आज ऐसा नहीं है। विश्वसनीयता का संकट मीडिया का नहीं बल्कि वहां काम करने वाले व्यक्ति का है। इसलिए हमें गाली मत दीजिए, क्या मैंने यहां आपके सवालों को सेंसर किया?

 

लेकिन आपने मेरी एक ऐसी छवि बना दी है, जो सेंसर करेगा। अगर कोई जातिवादी है तो आपको कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर मैं कहता हूँ कि हम इस साल 250 घरों में से केवल 50 ही बना सकते हैं, एक तरफ से शुरू करते हुए, चरणबद्ध तरीके से, तो आपको क्या समस्या है? अगर सशक्तिकरण होना है, तो सबका होना चाहिए। वह मंदिर जाता है या मस्जिद, इससे फर्क नहीं करना चाहिए। क्या यह लोकतंत्र नहीं है? मैंने सऊदी अरब के बादशाह से क्या मांगा? दो चीजें: एक, रमजान के दौरान 850 भारतीय कैदियों को शाही क्षमा के माध्यम से रिहा करें। इसे स्वीकार कर लिया गया। लेकिन मैंने इसे तमगा नहीं पहनाया। दूसरा, मैंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हमारा मध्यवर्ग किस प्रकार विस्तार कर रहा है, अधिक लोग हज के लिए जाना चाहेंगे। उन्होंने मुझे बताया कि वह देशों के लिए कोटा नहीं बढ़ा रहे है क्योंकि इसे मैनेज करना मुश्किल है। मैंने कहा कि हम सबसे बड़ी इस्लामिक आबादी वाले देशों में से एक हैं, और आपको हमारे लिए इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए। मैंने एक दोस्त के तौर पर उनसे ऐसा कहा। आप हैरान रह जाएंगे, उन्होंने हमारे लोगों के लिए हज कोटा बढ़ाकर 2 लाख कर दिया है।

 

मैं यह किसके लिए करता हूँ? चूंकि मैं इसे प्रेस में प्रचारित नहीं करता, क्योंकि मैं इस प्रकार के सेकुलरिज्म में विश्वास नहीं करता…

 

भारत की राजनीति में बागियों का हिस्सेदार बनने का रिकॉर्ड रहा है। ऐसा लगभग सभी विद्रोहों में हुआ है। इस लिहाज से आप कश्मीर को कैसे देखते हैं?

आपने देखा कि घाटी में पंचायत चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुए। इसने हमें प्रोत्साहित किया है और लोकतंत्र के लिए आम कश्मीरियों के सद्भाव को दिखाया है। हमने, केंद्र में, यह सुनिश्चित किया है कि विकास के लिए धन पंचायतों तक पहुँचे…यह पहले होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हो सका क्योंकि घाटी में लोकतंत्र का गला मुफ्ती-अब्दुल्ला कुनबों ने घोंटा। ये दोनों, अपने राजनीतिक किस्मत को बचाने के लिए कश्मीरियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं... एक बार जब कश्मीर उनके बोझ से मुक्त हो जाएगा, तो विकास के लिए कश्मीर की लंबित इच्छाओं की तेजी से पूर्ति होगी। हमने इसे पूर्वोत्तर में हासिल कर के देखा है और अब वह क्षेत्र शांति और समृद्धि का एक नया युग देख रहा है।

 

आप नक्सल या माओवाद समस्या को किस तरह देखते हैं? सिर्फ कानून और व्यवस्था या कानून-व्यवस्था और विकास?

अक्सर एक गलत धारणा बना ली जाती है कि नक्सलवाद गरीबी का परिणाम है। दरअसल, इस विचारधारा के ध्वजवाहक सबसे कुलीन पृष्ठभूमि के हैं और अक्सर बड़ी कारों में घूमते पाए जाते हैं या फिर बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले पीएचडी होते हैं। नक्सलवाद या वामपंथी उग्रवाद विकास को नकारता और नष्ट करता है क्योंकि यह उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने में बाधा के रूप में कार्य करता है।

 

हम नक्सलवाद पर दोतरफा हमला करते रहे हैं। एक तरफ हम हिंसा के प्रति जीरो टॉलरेंस रखते हैं। 120 में से 40 से अधिक जिलों को वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों की सूची से हटा दिया गया है। 2014-2017 तक हमारे पहले तीन वर्षों में लगभग 3,400 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जो एक रिकॉर्ड संख्या है। दूसरी ओर, हम मिशन मोड पर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए संसाधन सम्पन्न कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में हजारों किलोमीटर सड़कें, हजारों मोबाइल टावर, अत्याधुनिक अस्पताल और स्कूल, आईटीआई, कौशल विकास केंद्र, बैंक शाखाएं, डाकघर सुनिश्चित किए गए हैं।

 

क्या हम पाकिस्तान के साथ फिर जुड़ गए हैं? 2014 में आपके शपथ ग्रहण समारोह में नवाज शरीफ से लेकर दिसंबर 2017 में शरीफ परिवार की शादी में शामिल होने के लिए आपके उड़ान भरने तक... पुलवामा और बालाकोट तक। आगे का रास्ता क्या है?

आगे का रास्ता पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई पर निर्भर करता है।

 

डोकलाम मुद्दे से लेकर मसूद अजहर को ब्लैकलिस्ट करने तक; भारत और चीन के संबंधों को लेकर आपका क्या कहना है?

अजहर को ब्लैक लिस्ट करना आतंक के खिलाफ वैश्विक सहमति का नतीजा है और इसे चीन केंद्रित मुद्दे तक सीमित करना ठीक नहीं होगा। चीन भी आतंकवाद को लेकर चिंतित दुनिया भर के देशों का हिस्सा है। भारत-चीन संबंध आपसी सम्मान का है। जब दुनिया इस सदी को एशिया की सदी होने की बात कर रही है, तो वे चीन और भारत दोनों के उदय की बात कर रहे हैं, जो कभी ऐतिहासिक रूप से ताकतवर हुआ करते थे। इसलिए, हम एक साथ काम कर रहे हैं, इस समझ के साथ कि हम दोनों विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भले ही कुछ मतभेद हों, दोनों देश समझते हैं कि बहुत कुछ है जिस पर हम सहमत भी हैं।

 

1989 में बर्लिन दीवार गिरने के बाद की राजनीति पर विश्लेषकों द्वारा बहुत सारा साहित्य दिया गया है, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट तक जो एक उदार व्यवस्था चली जिसने आर्थिक चिंता पैदा कर के वैश्वीकरण के विरोध का मुखर नेतृत्व किया। इसने, नरेन्द्र मोदी, डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन, रेसेप एर्दोगान जैसे मजबूत नेताओं को जन्म दिया। आप उनमें से प्रत्येक को जानते हैं। इस प्रवृत्ति के बारे में आपका क्या आकलन है?

मैं मुख्यमंत्री बनने के बाद यहाँ आया हूँ अतः मैं विशिष्ट स्थान पर हूँ। यह अनुभव मेरे बहुत काम आया है। दूसरा, मैं गुजरात से हूँ। गुजराती, एक वैश्विक समुदाय है। मैंने कई कारणों से मुख्यमंत्री बनने से पहले लगभग 45 देशों की यात्रा की। मैं एक किस्सा साझा करूंगा। डेल्टा एयरवेज के पास $500 का टिकट हुआ करता था, जिसके साथ आप पहली यात्रा के दिन से 30 दिनों तक यात्रा कर सकते थे ... मुझे संदेह है कि किसी और ने उस टिकट का उतना ही उपयोग किया होगा जितना मैंने किया था। मैंने अपने मार्ग की पूरी तरह से योजना बनाई थी, इस तरह से कि मैं रात में जहाज पर रहूँ, विमान में छह घंटे सोने में व्यतीत हों। इससे मेरा होटल का खर्च बच जाएगा। मैं सुबह एयरपोर्ट पर नहाता और फ्रेश होता था। मेरे पास एक कॉलिंग कार्ड था जिसे लेने के लिए मैं अपने मेजबानों को फोन करता था। इस तरह मैंने पूरे अमेरिका में 23 राज्यों की यात्रा की। यह मेरी जिंदगी है, मैं इसलिए इसका जिक्र करता हूँ क्योंकि विदेश नीति को ज्यादातर अकादमिक नजरिए से देखा जाता रहा है। विदेश मंत्रियों को भी शिक्षाविदों या थिंक टैंकों द्वारा निर्देशित किया गया है। मैं इससे काफ़ी अलग हूँ।

 

मेरी पृष्ठभूमि अकादमिक नहीं है और न ही मैं जनता से कटा हुआ हूँ। मेरी प्राथमिकता देश है। यही मेरी देशभक्ति है। इसलिए मैं वैश्विक नेताओं के साथ मधुर संबंध रखता हूँ। एक-दूसरे को समझने में परस्पर संबंध महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके साथ मेरी मित्रता उनकी नीतियों में भी झलकती है। वह मोदी को याद रखेंगे, ऐसा वे कहते हैं।

 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

 

 

  • Jitendra Kumar May 09, 2025

    🇮🇳🇮🇳🇮🇳
  • Ratna Roy March 11, 2025

    mujhe mudra loan ki jarurat hai please
  • कृष्ण सिंह राजपुरोहित भाजपा विधान सभा गुड़ामा लानी November 19, 2024

    जय श्री राम 🚩 जय भाजपा विजय भाजपा
  • Amrita Singh September 22, 2024

    हर हर महादेव हर हर महादेव हर
  • दिग्विजय सिंह राना September 18, 2024

    हर हर महादेव
  • CA Vinay Dwivedi June 17, 2024

    🙏🙏
  • Rajiv Kumar April 02, 2024

    tu agar mard ka baccha Hai To sole sa ka hisab de bhosdi wale nahin To Teri man chudati hai aur bahan chod bhosdi ke mere ko 6 Mahina pagal banaya bahan ke land kutte ki aulad bhosdi chod bhej chaurahe fanse dekh mere ko madrachod
  • Rajiv Kumar April 02, 2024

    sab ke sab madrachod chor Hai theek hai loade ka bar hai to mantri bahan ke laude Bihar mein jhant nahin hai Bhagalpur mein light nahin hai bhosdi ke main machhar kata raha hun Shole sa tumhari man Ko chudwa kar lenge bahan ke land bhosdi wale kutte ke aulad
  • Vaishali Tangsale February 23, 2024

    🙏🏻🙏🏻
  • Dipak Bhosale February 17, 2024

    मोदीजी देश प्रगती पर ले जा रहे है धन्यवाद!
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आज, नॉर्थ ईस्ट ‘ग्रोथ का फ्रंट-रनर’ बन रहा है: राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट में पीएम मोदी
May 23, 2025
Quoteहमारे विविधतापूर्ण राष्ट्र का पूर्वोत्तर सबसे विविध क्षेत्र है: प्रधानमंत्री
Quoteहमारे लिए, ईस्ट का अर्थ है- सशक्त बनाना, कार्य करना, मजबूत बनाना और बदलाव लाना: प्रधानमंत्री
Quoteएक समय था जब पूर्वोत्तर को केवल सीमांत क्षेत्र कहा जाता था... आज, यह 'विकास के अग्रणी' क्षेत्र के रूप में उभर रहा है: प्रधानमंत्री
Quoteपूर्वोत्तर पर्यटन के लिए एक संपूर्ण पैकेज है: प्रधानमंत्री
Quoteअशांति फैलाने वाले चाहे आतंकवादी हो या माओवादी, हमारी सरकार शून्य-सहिष्णुता की नीति पर चलती है: प्रधानमंत्री
Quoteपूर्वोत्तर ऊर्जा और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों के लिए एक प्रमुख गंतव्य बन रहा है: प्रधानमंत्री

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया जी, सुकांता मजूमदार जी, मणिपुर के राज्यपाल अजय भल्ला जी, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा जी, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू जी, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा जी, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा जी, सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग जी, नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो जी, मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा जी, सभी इंडस्ट्री लीडर्स, इन्वेस्टर्स, देवियों और सज्जनों!

आज जब मैं राइज़िंग नॉर्थईस्ट के इस भव्य मंच पर हूँ, तो मन में गर्व है, आत्मीयता है, अपनापन है, और सबसे बड़ी बात है, भविष्य को लेकर अपार विश्वास है। अभी कुछ ही महीने पहले, यहां भारत मंडपम् में हमने अष्टलक्ष्मी महोत्सव मनाया था, आज हम यहां नॉर्थ ईस्ट में इन्वेस्टमेंट का उत्सव मना रहे हैं। यहां इतनी बड़ी संख्या में इंडस्ट्री लीडर्स आए हैं। ये दिखाता है कि नॉर्थ ईस्ट को लेकर सभी में उत्साह है, उमंग है और नए-नए सपने हैं। मैं सभी मंत्रालयों और सभी राज्यों की सरकारों को इस काम के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आपके प्रयासों से, वहां इन्वेस्टमेंट के लिए एक शानदार माहौल बना है। नॉर्थ ईस्ट राइजिंग समिट, इसकी सफलता के लिए मेरी तरफ से, भारत सरकार की तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

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साथियों,

भारत को दुनिया का सबसे Diverse Nation कहा जाता है, और हमारा नॉर्थ ईस्ट, इस Diverse Nation का सबसे Diverse हिस्सा है। ट्रेड से ट्रेडिशन तक, टेक्सटाइल से टूरिज्म तक, Northeast की Diversity, ये उसकी बहुत बड़ी Strength है। नॉर्थ ईस्ट यानि Bio Economy और Bamboo, नॉर्थ ईस्ट यानि टी प्रोडक्शन एंड पेट्रोलियम, नॉर्थ ईस्ट यानि Sports और Skill, नॉर्थ ईस्ट यानि Eco-Tourism का Emerging हब, नॉर्थ ईस्ट यानि Organic Products की नई दुनिया, नॉर्थ ईस्ट यानि एनर्जी का पावर हाउस, इसलिए नॉर्थ ईस्ट हमारे लिए ‘अष्टलक्ष्मी’ हैं। ‘अष्टलक्ष्मी’ के इस आशीर्वाद से नॉर्थ ईस्ट का हर राज्य कह रहा है, हम निवेश के लिए तैयार हैं, हम नेतृत्व के लिए तैयार हैं।

साथियों,

विकसित भारत के निर्माण के लिए पूर्वी भारत का विकसित होना बहुत जरूरी है। और नॉर्थ ईस्ट, पूर्वी भारत का सबसे अहम अंग है। हमारे लिए, EAST का मतलब सिर्फ एक दिशा नहीं है, हमारे लिए EAST का मतलब है – Empower, Act, Strengthen, and Transform. पूर्वी भारत के लिए यही हमारी सरकार की नीति है। यही Policy, यही Priority, आज पूर्वी भारत को, हमारे नॉर्थ ईस्ट को ग्रोथ के सेंटर स्टेज पर लेकर आई है।

साथियों,

पिछले 11 वर्षों में, जो परिवर्तन नॉर्थ ईस्ट में आया है, वो केवल आंकड़ों की बात नहीं है, ये ज़मीन पर महसूस होने वाला बदलाव है। हमने नॉर्थ ईस्ट के साथ केवल योजनाओं के माध्यम से रिश्ता नहीं जोड़ा, हमने दिल से रिश्ता बनाया है। ये आंकड़ा जो मैं बता रहा हूं ना, सुनकर के आश्चर्य होगा, Seven Hundred Time, 700 से ज़्यादा बार हमारे केंद्र सरकार के मंत्री नॉर्थ ईस्ट गए हैं। और मेरा नियम जाकर के आने वाला नहीं था, नाइट स्टे करना कंपलसरी था। उन्होंने उस मिट्टी को महसूस किया, लोगों की आंखों में उम्मीद देखी, और उस भरोसे को विकास की नीति में बदला, हमने इंफ्रास्ट्रक्चर को सिर्फ़ ईंट और सीमेंट से नहीं देखा, हमने उसे इमोशनल कनेक्ट का माध्यम बनाया है। हम लुक ईस्ट से आगे बढ़कर एक्ट ईस्ट के मंत्र पर चले, और इसी का परिणाम आज हम देख रहे हैं। एक समय था, जब Northeast को सिर्फ Frontier Region कहा जाता था। आज ये Growth का Front-Runner बन रहा है।

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साथियों,

अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर, टूरिज्म को attractive बनाता है। जहां इंफ्रास्ट्रक्चर अच्छा होता है, वहां Investors को भी एक अलग Confidence आता है। बेहतर रोड्स, अच्छा पावर इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक नेटवर्क, किसी भी इंडस्ट्री की backbone है। Trade भी वहीं Grow करता है, जहाँ Seamless Connectivity हो, यानि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, हर Development की पहली शर्त है, उसका Foundation है। इसलिए हमने नॉर्थ ईस्ट में Infrastructure Revolution शुरू किया है। लंबे समय तक नॉर्थ ईस्ट अभाव में रहा। लेकिन अब, नॉर्थ ईस्ट Land of Opportunities बन रहा है। हमने नॉर्थ ईस्ट में कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर पर लाखों करोड़ रुपए खर्च किए हैं। आप अरुणाचल जाएंगे, तो सेला टनल जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर आपको मिलेगा। आप असम जाएंगे, तो भूपेन हज़ारिका ब्रिज जैसे कई मेगा प्रोजेक्ट्स देखेंगे, सिर्फ एक दशक में नॉर्थ ईस्ट में 11 Thousand किलोमीटर के नए हाईवे बनाए गए हैं। सैकड़ों किलोमीटर की नई रेल लाइनें बिछाई गई हैं, नॉर्थ ईस्ट में एयरपोर्ट्स की संख्या दोगुनी हो चुकी है। ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों पर वॉटरवेज़ बन रहे हैं। सैकड़ों की संख्या में मोबाइल टावर्स लगाए गए हैं, और इतना ही नहीं, 1600 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन का नॉर्थ ईस्ट गैस ग्रिड भी बनाया गया है। ये इंडस्ट्री को ज़रूरी गैस सप्लाई का भरोसा देता है। यानि हाईवेज, रेलवेज, वॉटरवेज, आईवेज, हर प्रकार से नॉर्थ ईस्ट की कनेक्टिविटी सशक्त हो रही है। नॉर्थ ईस्ट में जमीन तैयार हो चुकी है, हमारी इंड़स्ट्रीज को आगे बढ़कर, इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए। आपको First Mover Advantage से चूकना नहीं है।

साथियों,

आने वाले दशक में नॉर्थ ईस्ट का ट्रेड पोटेंशियल कई गुना बढ़ने वाला है। आज भारत और आसियान के बीच का ट्रेड वॉल्यूम लगभग सवा सौ बिलियन डॉलर है। आने वाले वर्षों में ये 200 बिलियन डॉलर को पार कर जाएगा, नॉर्थ ईस्ट इस ट्रेड का एक मजबूत ब्रिज बनेगा, आसियान के लिए ट्रेड का गेटवे बनेगा। और इसके लिए भी हम ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर पर तेज़ी से काम कर रहे हैं। भारत-म्यांमार-थाईलैंड ट्रायलेटरल हाईवे से म्यांमार होते हुए थाईलैंड तक सीधा संपर्क होगा। इससे भारत की कनेक्टिविटी थाईलैंड, वियतनाम, लाओस जैसे देशों से और आसान हो जाएगी। हमारी सरकार, कलादान मल्टीमोडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट को तेजी से पूरा करने में जुटी है। ये प्रोजेक्ट, कोलकाता पोर्ट को म्यांमार के सित्तवे पोर्ट से जोड़ेगा, और मिज़ोरम होते हुए बाकी नॉर्थ ईस्ट को कनेक्ट करेगा। इससे पश्चिम बंगाल और मिज़ोरम की दूरी बहुत कम हो जाएगी। ये इंडस्ट्री के लिए, ट्रेड के लिए भी बहुत बड़ा वरदान साबित होगा।

साथियों,

आज गुवाहाटी, इम्फाल, अगरतला ऐसे शहरों को Multi-Modal Logistics Hubs के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। मेघालय और मिज़ोरम में Land Custom Stations, अब इंटरनेशनल ट्रेड को नया विस्तार दे रहे हैं। इन सारे प्रयासों से नॉर्थ ईस्ट, इंडो पेसिफिक देशों में ट्रेड का नया नाम बनने जा रहा है। यानि आपके लिए नॉर्थ ईस्ट में संभावनाओं का नया आकाश खुलने जा रहा है।

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साथियों,

आज हम भारत को, एक ग्लोबल Health And Wellness Solution Provider के रुप में स्थापित कर रहे हैं। Heal In India, Heal In India का मंत्र, ग्लोबल मंत्र बने, ये हमारा प्रयास है। नॉर्थ ईस्ट में नेचर भी है, और ऑर्गोनिक लाइफस्टाइल के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन भी है। वहां की बायोडायवर्सिटी, वहां का मौसम, वेलनेस के लिए मेडिसिन की तरह है। इसलिए, Heal In India के मिशन में इन्वेस्ट करने के, मैं समझता हूं उसके लिए आप नॉर्थ ईस्ट को ज़रूर एक्सप्लोर करें।

साथियों,

नॉर्थ ईस्ट के तो कल्चर में ही म्यूज़िक है, डांस है, सेलिब्रेशन है। इसलिए ग्लोबल कॉन्फ्रेंसेस हों, Concerts हों, या फिर Destination Weddings, इसके लिए भी नॉर्थ ईस्ट बेहतरीन जगह है। एक तरह से नॉर्थ ईस्ट, टूरिज्म के लिए एक कंप्लीट पैकेज है। अब नॉर्थ ईस्ट में विकास का लाभ कोने-कोने तक पहुंच रहा है, तो इसका भी पॉजिटिव असर टूरिज्म पर पड़ रहा है। वहां पर्यटकों की संख्या दोगुनी हुई है। और ये सिर्फ़ आंकड़े नहीं हैं, इससे गांव-गांव में होम स्टे बन रहे हैं, गाइड्स के रूप में नौजवानों को नए मौके मिल रहे हैं। टूर एंड ट्रैवल का पूरा इकोसिस्टम डेवलप हो रहा है। अब हमें इसे और ऊंचाई तक ले जाना है। Eco-Tourism में, Cultural-Tourism में, आप सभी के लिए निवेश के बहुत सारे नए मौके हैं।

साथियों,

किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए सबसे जरूरी है- शांति और कानून व्यवस्था। आतंकवाद हो या अशांति फैलाने वाले माओवादी, हमारी सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलती है। एक समय था, जब नॉर्थ ईस्ट के साथ बम-बंदूक और ब्लॉकेड का नाम जुड़ा हुआ था, नॉर्थ ईस्ट कहते ही बम-बंदूक और ब्लॉकेड यही याद आता था। इसका बहुत बड़ा नुकसान वहां के युवाओं को उठाना पड़ा। उनके हाथों से अनगिनत मौके निकल गए। हमारा फोकस नॉर्थ ईस्ट के युवाओं के भविष्य पर है। इसलिए हमने एक के बाद एक शांति समझौते किए, युवाओं को विकास की मुख्य धारा में आने का अवसर दिया। पिछले 10-11 साल में, 10 thousand से ज्यादा युवाओं ने हथियार छोड़कर शांति का रास्ता चुना है, 10 हजार नौजवानों ने। आज नॉ़र्थ ईस्ट के युवाओं को अपने ही क्षेत्र में रोजगार के लिए, स्वरोजगार के लिए नए मौके मिल रहे हैं। मुद्रा योजना ने नॉर्थ ईस्ट के लाखों युवाओं को हजारों करोड़ रुपए की मदद दी है। एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स की बढ़ती संख्या, नॉर्थ ईस्ट के युवाओं को स्किल बढ़ाने में मदद कर रही है। आज हमारे नॉर्थ ईस्ट के युवा, अब सिर्फ़ इंटरनेट यूज़र नहीं, डिजिटल इनोवेटर बन रहे हैं। 13 हजार किलोमीटर से ज्यादा ऑप्टिकल फाइबर, 4जी, 5जी कवरेज, टेक्नोलॉजी में उभरती संभावनाएं, नॉर्थ ईस्ट का युवा अब अपने शहर में ही बड़े-बडे स्टार्टअप्स शुरू कर रहा है। नॉर्थ ईस्ट भारत का डिजिटल गेटवे बन रहा है।

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साथियों,

हम सभी जानते हैं कि ग्रोथ के लिए, बेहतर फ्यूचर के लिए स्किल्स कितनी बड़ी requirement होती है। नॉर्थ ईस्ट, इसमें भी आपके लिए एक favourable environment देता है। नॉर्थ ईस्ट में एजुकेशन और स्किल डेवलपमेंट इकोसिस्टम पर केंद्र सरकार बहुत बड़ा निवेश कर रही है। बीते दशक में, Twenty One Thousand करोड़ रुपये से ज्यादा नॉर्थ ईस्ट के एजुकेशन सेक्टर पर इन्वेस्ट किए गए हैं। करीब साढ़े 800 नए स्कूल बनाए गए हैं। नॉर्थ ईस्ट का पहला एम्स बन चुका है। 9 नए मेडिकल कॉलेज बनाए गए हैं। दो नए ट्रिपल आईटी नॉर्थ ईस्ट में बने हैं। मिज़ोरम में Indian Institute of Mass Communication का कैंपस बनाया गया है। करीब 200 नए स्किल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में स्थापित किए गए हैं। देश की पहली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी भी नॉर्थ ईस्ट में बन रही है। खेलो इंडिया प्रोग्राम के तहत नॉर्थ ईस्ट में सैकड़ों करोड़ रुपए के काम हो रहे हैं। 8 खेलो इंडिया सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, और ढाई सौ से ज्यादा खेलो इंडिया सेंटर अकेले नॉर्थ ईस्ट में बने हैं। यानि हर सेक्टर का बेहतरीन टेलेंट आपको नॉर्थ ईस्ट में उपलब्ध होगा। आप इसका जरूर फायदा उठाएं।

साथियों,

आज दुनिया में ऑर्गेनिक फूड की डिमांड भी बढ़ रही है, हॉलिस्टिक हेल्थ केयर का मिजाज बना है, और मेरा तो सपना है कि दुनिया के हर डाइनिंग टेबल पर कोई न कोई भारतीय फूड ब्रैंड होनी ही चाहिए। इस सपने को पूरा करने में नॉर्थ ईस्ट का रोल बहुत महत्वपूर्ण है। बीते दशक में नॉर्थ ईस्ट में ऑर्गेनिक खेती का दायरा दोगुना हो चुका है। यहां की हमारी टी, पाइन एप्पल, संतरे, नींबू, हल्दी, अदरक, ऐसी अनेक चीजें, इनका स्वाद और क्वालिटी, वाकई अद्भुत है। इनकी डिमांड दुनिया में बढ़ती ही जा रही है। इस डिमांड में भी आपके लिए संभावनाएं हैं।

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साथियों,

सरकार का प्रयास है कि नॉर्थ ईस्ट में फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाना आसान हो। बेहतर कनेक्टिविटी तो इसमें मदद कर ही रही है, इसके अलावा हम मेगा फूड पार्क्स बना रहे हैं, कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क को बढ़ा रहे हैं, टेस्टिंग लैब्स की सुविधाएं बना रहे हैं। सरकार ने ऑयल पाम मिशन भी शुरु किया है। पाम ऑयल के लिए नॉर्थ ईस्ट की मिट्टी और क्लाइमेट बहुत ही उत्तम है। ये किसानों के लिए आय का एक बड़ा अच्छा माध्यम है। ये एडिबल ऑयल के इंपोर्ट पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा। पाम ऑयल के लिए फॉर्मिंग हमारी इंडस्ट्री के लिए भी बड़ा अवसर है।

साथियों,

हमारा नॉर्थ ईस्ट, दो और सेक्टर्स के लिए महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन बन रहा है। ये सेक्टर हैं- एनर्जी और सेमीकंडक्टर। हाइड्रोपावर हो या फिर सोलर पावर, नॉर्थ ईस्ट के हर राज्य में सरकार बहुत निवेश कर रही है। हज़ारों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स स्वीकृत किए जा चुके हैं। आपके सामने प्लांट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश का अवसर तो है ही, मैन्युफेक्चरिंग का भी सुनहरा मौका है। सोलर मॉड्यूल्स हों, सेल्स हों, स्टोरेज हो, रिसर्च हो, इसमें ज्यादा से ज्यादा निवेश ज़रूरी है। ये हमारा फ्यूचर है, हम फ्यूचर पर जितना निवेश आज करेंगे, उतना ही विदेशों पर निर्भरता कम होगी। आज देश में सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को मजबूत करने में भी नॉर्थ ईस्ट, असम की भूमिका बड़ी हो रही है। बहुत जल्द नॉर्थ ईस्ट के सेमीकंडक्टर प्लांट से पहली मेड इन इंडिया चिप देश को मिलने वाली है। इस प्लांट ने, नॉर्थ ईस्ट में सेमीकंडक्टर सेक्टर के लिए, अन्य cutting edge tech के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं।

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साथियों,

राइज़िंग नॉर्थ ईस्ट, सिर्फ़ इन्वेस्टर्स समिट नहीं है, ये एक मूवमेंट है। ये एक कॉल टू एक्शन है, भारत का भविष्य, नॉर्थ ईस्ट के उज्ज्वल भविष्य से ही नई उंचाई पर पहुंचेगा। मुझे आप सभी बिजनेस लीडर्स पर पूरा भरोसा है। आइए, एक साथ मिलकर भारत की अष्टलक्ष्मी को विकसित भारत की प्रेरणा बनाएं। और मुझे पूरा विश्वास है, आज का ये सामूहिक प्रयास और आप सबका इससे जुड़ना, आपका उमंग, आपका कमिटमेंट, आशा को विश्वास में बदल रहा है, और मुझे पक्का विश्वास है कि जब हम सेकेंड राइजिंग समिट करेंगे, तब तक हम बहुत आगे निकल चुके होंगे। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्यवाद !