आप दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं...क्या आप इस चुनाव में जीत के प्रति आश्वस्त हैं? और अगर ऐसा है तो उसकी वजह क्या हैं?

बीते लोकसभा चुनावों की तुलना में पिछले पांच वर्षों में हमारे द्वारा किए गए अभूतपूर्व कार्यों को देखते हुए, इस बार हम कहीं अधिक आश्वस्त हैं। पिछले पांच वर्षों में हम समाज में अंतिम छोर पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में सक्षम हुए हैं। मुद्रा लोन, प्रधानमंत्री आवास योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना तथा पांच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा कवर देने वाली 'आयुष्मान भारत' जैसी हमारी योजनाओं से लोगों में ऐसा माहौल बना है कि यह सरकार हमें सशक्त कर रही है। मुझे लगता है कि हमारे देश में संतुलित विकास होना चाहिए। यदि केवल पश्चिमी भारत का विकास हो रहा है तो वह संतुलित विकास नहीं है। केरल से लेकर पंजाब तक पश्चिमी भारत का विकास हो रहा है, इसी तरह पूर्वी भारत; जो प्राकृतिक और मानव संसाधनों से भरपूर है, उसका भी समान रूप से विकास किया जाना चाहिए। मैंने पूर्वी भारत के विकास पर ध्यान दिया। मुझे लगता है कि निकट भविष्य में, पश्चिमी और पूर्वी भारत एक दूसरे के साथ बराबरी पर खड़े होंगे। देश के पूर्वोत्तर हिस्से से हमें व्यापक समर्थन है। लोगों ने महसूस किया है कि हमने परिवहन सुविधाओं को बेहतर बनाने पर विशेष ध्यान दिया है। अब बिहार के घरों में पाइप लाइन से रसोई गैस मिल रही है। इससे लोगों में उम्मीद जगी है।

कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। वे कौन सी तीन चीजें हैं जो सर्वोच्च प्राथमिकता सूची में हैं, जिन्हें आप अगले पांच वर्षों में पूरा करने की योजना बना रहे हैं?

मैं आपसे दोनों घोषणापत्रों के अवलोकन करने का आग्रह करता हूं, तब आपको अंतर पता चलेगा। एक घोषणापत्र; जिम्मेदारी से सरकार चलाने वाली पार्टी (बीजेपी) द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जबकि दूसरा; अन्य एक पार्टी (कांग्रेस) द्वारा केवल चुनाव मैदान में बने रहने के लिए जारी किया गया है। कांग्रेस ने इसमें कश्मीर, देशद्रोह के आरोप सहित देशहित के तमाम मुद्दों पर नरम और समझौतावादी रुख अपनाया है, इसके विपरीत ऐसे तमाम विषयों पर भाजपा ने कड़ा रुख स्पष्ट किया है। हमने नागरिकता कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। कई सिख, ईसाई, बौद्ध, हिन्दू, जैन; पाकिस्तान और बांग्लादेश से खदेड़े गए, मेरा दृढ़ मत है कि हमें उन्हें स्वीकार करने की आवश्यकता है। कांग्रेस धारा 35(ए) को खत्म नहीं कर सकती। 2014 से 2019 तक; हमने पिछले पांच वर्षों में; आम आदमी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का काम किया है, जो आजादी के 70 वर्षों में भी नहीं हुआ था। कई कमियां थीं और उन पर काम करने की जरूरत थी। मेरे पास अगले पांच वर्षों के लिए एकदम स्पष्ट विजन है। लोगों की प्राथमिक जरूरतों को पूरा करने के बाद अब हम उनके सपनों को पूरा करने का काम करेंगे। हमने विकास की दौड़ में पीछे रह गए 150 जिलों की पहचान की है। इन जिलों में जिला अस्पताल भी नहीं था। हमें इन जिलों को अन्य जिलों के बराबर लाने की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो देश में बदलाव आएगा। आपने मुझसे तीन प्राथमिकताएं पूछी हैं, पहली प्राथमिकता गरीबों को सशक्त बनाना और फिर रोजगार के अधिक अवसर पैदा करना और तीसरी महिलाओं का विकास सुनिश्चित करना है।

महाराष्ट्र में एनडीए का प्रदर्शन कैसा रहेगा? आप राज्य में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के प्रदर्शन को कैसे आंकेंगे? ऐसी अफवाहें हैं कि अगर केंद्र में फिर से एनडीए की सत्ता में वापसी होती है, तो नई कैबिनेट में महाराष्ट्र के सीएम को लिया जाएगा?

महाराष्ट्र, देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमें जितना हो सके राज्य को मजबूत करने की जरूरत है क्योंकि यह हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है। हम यहाँ अस्थिरता बर्दाश्त नहीं कर सकते। राज्य के लोगों को वर्तमान में उस कड़वे अतीत का अनुभव नहीं करना पड़ रहा है, जो उन्होंने पूर्ववर्ती गठबंधन शासन के दौरान अनुभव किया था। सभी भाजपा शासित राज्यों में सरकार का प्रदर्शन अच्छा रहा है। नए अवसर सृजित हो रहे हैं। इनमें देवेन्द्र फडणवीस की सरकार भी शामिल है। महाराष्ट्र में उल्लेखनीय काम हुआ है। महाराष्ट्र को स्थिरता चाहिए और अस्थिरता पैदा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

पिछले कुछ दिनों में बीजेपी में अन्य पार्टियों से कई नेताओं को शामिल किया गया है, एक तरफ आप वंशवादी राजनीति की आलोचना करते हैं और दूसरी तरफ आप कांग्रेस से वंशवादी पृष्ठभूमि के नेताओं को लाते हुए दिखाई दे रहे हैं, आप इसे कैसे देखते हैं?

हमें वंशवादी राजनीति का अर्थ समझने की जरूरत है। मैं नहीं मानता कि अगर किसी सांसद का बेटा विधायक बन जाता है तो यह वंशवादी राजनीति की श्रेणी में आ जाता है। अव्वल तो ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन अगर ऐसा होता है, तो हम इसे वंशवादी राजनीति का नाम नहीं दे सकते। अगर किसी पार्टी में पिता के बाद; पुत्र, भतीजे या चचेरे भाई का एकछत्र राज स्थापित हो जाता है और वह नेता बन जाता है तथा पूरी पार्टी को किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाता है तो इसे हम वंशवादी राजनीति कह सकते हैं। यह देश के कई हिस्सों में हो रहा है। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल से दो भाइयों में भारी विवाद हुआ और पार्टी दो भागों में बंट गई। तब इसका खामियाजा 'जिंदाबाद' के नारे लागने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ा। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने 1937 में कहा था कि राजनीति की सबसे बड़ी दुश्मन वंशवादी राजनीति है। अगर एक परिवार के पांच विधायक हैं तो मैं इसे वंशवाद की राजनीति नहीं कहूंगा, लेकिन जब किसी पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया जाता है तो मैं इसे वंशवाद की राजनीति मानता हूँ।

पार्टी बदलने वाले अपनी मूल विचारधारा के साथ आते हैं, क्या आपको लगता है कि जो लोग कांग्रेस से भाजपा में आए हैं, वे ईमानदारी से भाजपा की विचारधारा को आत्मसात करेंगे?

हमारा अनुभव तो यही कहता है। विभिन्न दलों के कई नेता और कई पेशेवर हमारी पार्टी में शामिल हुए हैं और उन्होंने हमारी विचारधारा और संस्कृति को स्वीकार किया है। कुछ अपवाद हो सकते हैं।

हाल ही में आप राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शरद पवार के खिलाफ आक्रामक हो गए हैं, क्या कारण रहे हैं?

मैं व्यक्तिगत रूप से शरद पवार के खिलाफ नहीं हूं। मुझे लगता है कि वह बहुत चतुर राजनीतिक ऑब्जर्वर हैं, इसलिए जब वह प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का समर्थन करते हैं, तो कुछ सवाल खड़े होते हैं। उनकी पार्टी के नाम में 'राष्ट्रवादी' शब्द है। मुझे आश्चर्य है कि एक राष्ट्रवादी व्यक्ति, एक देश में दो प्रधानमंत्री होने की मांग का समर्थन कैसे कर सकता है! कोई राष्ट्रवादी AFSPA क़ानून को कमजोर बनाकर सेना का मनोबल गिराने का समर्थन कैसे कर सकता है? लेकिन अगर कुछ कश्मीरी नेता कहते हैं कि देश में दो पीएम होने चाहिए और दोनों आपके दोस्त होंगे, तो मैं सवाल पूछता हूं शरदराव आप से भी! तब मुझे उसके खिलाफ बोलना होगा।

भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया लेकिन हाल ही में पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को साइट पर ले गया और दिखाया कि कोई नुकसान नहीं हुआ है। आप इसके बारे में क्या सोचते हैं?

सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान 250 किलोमीटर के दायरे में आने वाले इलाकों में कई बटालियनें तैनात थीं। उनमें से कुछ पाँच किलोमीटर की दूरी पर थे, जबकि कुछ दो किलोमीटर की दूरी पर थे। फिर भी उनके पास एक संपूर्ण तालमेल था। बाद में पाकिस्तानी मीडिया ने राष्ट्रीय टेलीविजन के माध्यम से दिखाया कि कुछ भी नहीं हुआ है, वे ऐसा दिखा सकते थे क्योंकि इस विशाल क्षेत्र के अंतर्गत कई निर्जन इलाके थे, ऐसा दिखाना उनके लिए आसान था। उन्होंने किसी को भी हमले की वास्तविक साइट पर 43 दिनों तक जाने की अनुमति नहीं दी थी। पत्रकारों को भी नहीं जाने दिया गया। वहाँ के ग्रामीण इस हमले की पुष्टि करते हैं। बाद में पाकिस्तान ने भी घोषणा की कि हमला हुआ था। हमने सुबह हमले की घोषणा करने का फैसला किया था, लेकिन पाकिस्तान ने उससे पहले यह घोषणा कर दी कि कोई हमारे क्षेत्र में आया और हम पर हमला किया। अब इन 43 दिनों में या तो उन्होंने उस क्षेत्र की सफाई की है, नई चीजों का निर्माण किया है या मीडिया को बिल्कुल नए स्थान पर ले गए होंगे क्योंकि पहाड़ियों के बीच यह एकमात्र इमारत थी। वे दिखा रहे हैं कि भारत में चुनाव को देखते हुए 250 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई। पाकिस्तान,चुनाव के समय भारत को अपने गेम प्लान में उलझाना चाहता है और इसलिए इस तरह के बयान दे रहा है।

ऐसा कहा गया था कि बालाकोट में लगभग 600 से 700 लोग थे। क्या इसीलिए आप लोगों ने अनुमान लगाया कि स्ट्राइक में 300 लोग मारे गए?

आपने देखा होगा कि एक अमेरिकी पत्रकार ने पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को नागरिकों को सांत्वना देते हुए एक वीडियो पोस्ट किया था। उन्हें यह कहते हुए दिखाया गया कि जो मारा गया, उसे जरूर जन्नत मिलेगी और यह जिहाद है। वे रोते हए और उनके बच्चों को गले लगाते नजर आए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस हमले में कितने लोग मारे गए होंगे।

पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के हालिया बयान पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है कि अगर आप फिर से पीएम बनते हैं, तो भारत-पाक संबंध बेहतर होंगे?

जब इमरान खान पाकिस्तान में चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने अपने फायदे के लिए मेरे नाम का इस्तेमाल किया। आपको समझना चाहिए कि उन्होंने नवाज शरीफ को कैसे निशाना बनाया। क्या आपको याद है कि तब उनका क्या नारा था- 'मोदी का जो यार है, वो गद्दार है, गद्दार है'। इमरान मूल रूप से क्रिकेटर हैं। वह गुगली खेलना जानते हैं। यह इमरान द्वारा भारतीय चुनावों में गड़बड़ी पैदा करने के लिए खेली जा रही गुगली है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

आप राष्ट्रवाद पर जोर दे रहे हैं, क्या यह अन्य प्रासंगिक मुद्दों से ध्यान हटाने का प्रयास है?

राष्ट्रवाद आपके देश को गंदा नहीं कर रहा है और सिर्फ 'भारत माता की जय' के नारे लगा रहा है। मेरे विचार से स्वच्छता ही राष्ट्रवाद है। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नया रूप दिया था, खादी का उपयोग करने वाले को भी स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता था। चरखे पर सूत कातने वाले को भी स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता था या जो प्रौढ़ शिक्षा के निमित्त योगदान कर रहा था, वह भी स्वतंत्रता सेनानी था। मैं मानता हूँ कि गरीबों के लिए घर बनाना भी राष्ट्रवाद है। भारत को उत्कृष्टता के पथ पर ले जाने के लिए हमें समस्याओं को सुलझाना होगा और अपने लिए उत्कृष्टता के वैश्विक मानदंड निर्धारित करने होंगे।

'वसुधैव कुटुम्बकुम' की आपकी परिभाषा क्या है? मुझे लगता है कि हमारी परंपराओं को देखते हुए हमारी विदेश नीति द्वारा दुनिया को नई दिशा दी जानी चाहिए? आप क्या सोचते हैं?

दुनिया में कहीं भी भारतीय व्यक्ति उपद्रवी नहीं है। विदेश में रहने वाले भारतीयों ने यह साबित कर दिया है। वे कानून और व्यवस्था का सम्मान करते हैं, अपने प्रवास के देश की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। यह हमारी परंपरा 'वसुधैव कुटुम्बकुम' का प्रभाव है। दूसरे, भारत किसी समूह का पिछलग्गू नहीं हो सकता। हमें अपनी पूरी ताकत से पूरे विश्व को अपने में समाहित करना है। आज अमेरिका और चीन के बीच तनाव है लेकिन भारत दोनों देशों का मित्र है। ईरान हमारा मित्र है, अरब हमारे मित्र हैं। फ़िलिस्तीन और इजराइल के बीच लड़ाई है, लेकिन दोनों हमारे दोस्त हैं। मुझे लगता है कि हमें भारत के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए सभी के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है।

'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' के जरिए आपने योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। हम देख रहे हैं कि बीमारियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए आपकी रणनीति क्या है? चीनी दवाओं ने पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है। जब मैं जर्मनी की यात्रा करता हूं, तो मुझे पता चलता है कि लोग आयुर्वेदिक दवाएं चाहते हैं, योग सीखना चाहते हैं। जर्मनी ने योग सिटी परियोजना भी विकसित की है।

देखिए, भारत में 5,000 साल पुरानी परंपराएं हैं। पूरी दुनिया जड़ों की तरफ वापस जा रही है। विश्व होलिस्टिक हेल्थकेयर की ओर बढ़ रहा है। इसलिए लोग भारत की ओर आकर्षित होते हैं। मैं आयुर्वेद पर आपके विचार से सहमत हूँ। चीनी पारंपरिक दवाएं और आयुर्वेद बिल्कुल अलग हैं। चीनी दवाएं पशु-आधारित दवाएं हैं, जबकि हमारी वनस्पति आधारित हैं। जामनगर में हमारे पास सबसे पुराना आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय है। यह एक अनूठी संस्था है जो जर्मन संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रही है। पंडित नेहरू के कार्यकाल में जयसुखलाल हाथी के नेतृत्व में हाथी आयोग का गठन यह अध्ययन करने के लिए किया गया था कि आयुर्वेद का विश्व में प्रचार-प्रसार कैसे किया जा सकता है। हाथी आयोग के अनुसार हमें सबसे पहले आयुर्वेद की पैकेजिंग में बदलाव करने की जरूरत है। हमारी आयुर्वेदिक दवाएं एलोपैथी जैसी हो गई हैं। दूसरा, हमें चिकित्सा के इस क्षेत्र में मानव संसाधन सृजित करने की आवश्यकता है। जब मैं गुजरात में था, हमने बाली, इंडोनेशिया में आयुर्वेद कॉलेज शुरू किया। हमें ऐसे संस्थान शुरू करने की जरूरत है जहां भारतीय मूल के लोग हों। तीसरा, हमें अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर काम करने की जरूरत है। वर्तमान में, हमारी दवाइयां फूड सप्लीमेंट के रूप में निर्यात की जाती हैं न कि दवाओं के रूप में। जब हम एक शक्तिशाली राष्ट्र बनेंगे तो हम इन कानूनों में संशोधन कर सकेंगे।

क्या आप स्वयं आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करते हैं ?

मैं आमतौर पर दवाओं पर निर्भर नहीं हूं, लेकिन मेरा झुकाव प्राकृतिक उपचार की तरफ है।

हम आयुर्वेद की कुछ दवाओं पर पश्चिमी मानकों को लागू नहीं कर सकते! हमारे पास 'सुवर्णसिद्ध जल' जैसा प्राकृतिक उपचार है, क्या हम उस पर पश्चिमी मानकों को लागू नहीं कर सकते?

यह जरूरी नहीं है। हमें अपने मानक खुद बनाने होंगे। अगर किसी को कब्ज की दवा जरूरत हो और अगर आपके पास हरड़ या इसबगोल हो तो आपको पता चलेगा कि बिना किसी साइड इफेक्ट के आपकी समस्या का समाधान हो गया है तो व्यक्ति उसे खोजेगा। और एक बड़ा समूह है, जो पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में विश्वास करता है।

क्या आप कल्याणकारी योजनाओं के दम पर चुनाव जीतने के प्रति आश्वस्त हैं?

मुझे लगता है कि सत्ता पक्ष को अपनी उपलब्धियों के आधार पर वोट मांगना चाहिए और हम भी अपनी उपलब्धियों के आधार पर वोट मांग रहे हैं। मुझे विश्वास है कि हमने 22 करोड़ लोगों को किसी न किसी योजना के माध्यम से लाभ पहुँचाया है। ये योजनाएं मुफ्त रेवड़ी वितरण नहीं हैं, इनका उद्देश्य सशक्तिकरण है। हमने पांच साल में 1.5 करोड़ घर दिए जबकि कांग्रेस 10 साल में सिर्फ 25 लाख घर दे पाई। उज्ज्वला और ऊर्जा योजनाओं का भी व्यापक सफलता मिली है। कांग्रेस के शासन में एक एलईडी बल्ब के लिए 350 रुपये खर्च करने पड़ते थे, लेकिन हमने इस 40-50 रुपये उपलब्ध कराया है। हमने करोड़ों एलईडी बल्ब बांटे हैं, अगर हम एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का अध्ययन करें, तो इन एलईडी बल्बों ने उनके बिजली-बिल में कम से कम 1,500 रुपये की कमी की है। दूसरी बात है महंगाई; मुझे याद है, 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान मैं 15 मिनट से अधिक समय तक दालों की महंगाई पर बोलता था। लेकिन अब देश में एक भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसने महंगाई को चुनावी मुद्दा बनाया हो। यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है। जरा सोचिए कि अगर महंगाई दर 10 फीसदी रहती तो एक व्यक्ति के लिए एक दिन का पेट भर पाना संभव नहीं होता।

विपक्ष का आरोप है कि आपके कार्यकाल में कई भगोड़े देश से भागने में सफल रहे, आपका इस पर क्या कहना है?

एक बात तय है कि अगर हम सत्ता में नहीं होते तो ये सारे भगोड़े भागे नहीं होते और अगर सरकार बदली तो वे खुशी-खुशी घर लौट आएंगे। यह पैसे का एक दुष्चक्र है। कांग्रेस के शासन काल में 'फोन बैंकिंग' चल रही थी। हमने यह सब बंद करवाया। उन्हें देश से भागना पड़ा, क्योंकि उन्हें लगा कि देश छोड़ने पर ही वे सुरक्षित रहेंगे लेकिन हमने क़ानून में बदलाव किया। अब हम भारत में कहीं भी उनकी संपत्ति जब्त कर सकते हैं। जब हम इन भगोड़ों के बारे में चर्चा करते हैं, तो इस बात की भी चर्चा हो कि हमने उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया है और कड़े कानून लागू कर दिए हैं। हमने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि उन्हें दूसरे देशों में भी जेल में सड़ना पड़ेगा। पहले यह स्थिति नहीं थी। हमने क्रिश्चियन मिशेल का प्रत्यर्पण करवाया। हमें उन लोगों पर भी चर्चा करने की जरूरत है जिन्हें सफलतापूर्वक भारत लाया गया है। हमें उनमें से तीन मिल गए हैं और यकीन है कि हमें 13 भी मिलेंगे।

उद्योग एक व्यवसाय है। कुछ लोग बैंकों के माध्यम से ऋण लेते हैं, लेकिन यदि कोई कंपनी किन्हीं चुनौतियों के कारण बंद हो जाती है, तो एक ऐसा वातावरण बन जाता है जिसमें व्यवसायी को ऋण देने से मना कर दिया जाता है। अमेरिका में चैप्टर-11 नामक योजना है जहां एक व्यापारी फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। क्या आप भारत में भी इसी तरह की योजना पर विचार कर रहे हैं!

भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ अच्छे सुझाव दिए हैं। हमने कुछ साहसिक कदम भी उठाए हैं, बैंकों को तीन लाख करोड़ रुपये वापस मिल गए हैं। इससे पता चलता है कि उनके पास पैसा लौटाने की क्षमता है, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चुना। ये लोग बिजनेस क्लास से यात्रा करते हैं, हर छह महीने के बाद नई कार खरीदते हैं और अपनी जीवनशैली में बदलाव नहीं करते हैं। आम आदमी को लूट रहे हैं। हम उनके खिलाफ नरमी नहीं बरतेंगे।

क्या आप राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से हैरान हैं और राहुल गांधी द्वारा उनसे चर्चा करने के लिए बार-बार निमंत्रण देने के बारे में आपका क्या कहना है?

सुप्रीम कोर्ट ने पहले एक फैसला दिया है जो इस मुद्दे पर हमारे रुख का समर्थन करता है। मैं यह सोचकर हैरान हो रहा हूं कि भारतीय मीडिया को क्या हो गया है। राफेल में क्या हुआ! एक तो राफेल की खरीद को लेकर कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है। कैग ने हमें क्लीन चिट दे दी है। दूसरा, यह दो देशों के बीच का सौदा है। यह एक साधारण विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वे केवल उन दो-तीन दस्तावेजों पर विचार करेंगे, जिन पर चर्चा चल रही है। हमें इस बारे में कुछ नहीं कहना है। मीडिया मुद्दों को उठाने में सेलेक्टिव है। हम इसका विरोध करते हैं। अगर आप कोई स्टोरी करना चाहते हैं, तो उसे पूरी तरह से करें। यदि आप अपनी पसंद के केवल दो मुद्दे उठाने जा रहे हैं, तो हम इसका विरोध करेंगे। इसलिए, मीडिया द्वारा दिखाए गए अदालत के फैसले से हमें झटका नहीं लगा है। राहुल गांधी की बात करें तो उनके दिमाग पर जबरदस्त दबाव है। बोफोर्स के कारण उनके पिता की छवि धूमिल हुई थी। अब वह उनके पापों को धोने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन ऐसा करते हुए वह एक झूठ पर भरोसा कर रहे हैं।

भारत में नौकरियों की कमी के बारे में आप क्या सोचते हैं?

नौकरी से जुड़े तीन मुद्दे हैं - औपचारिक, अनौपचारिक और अलग-अलग मापदंड। सबसे पहले, औपचारिक नौकरियों के बारे में बात करते हैं। ईपीएफओ और ईएसआईसी के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में हर महीने 10 लाख नौकरियां सृजित की गईं, इस प्रकार सालाना कुल 1.2 करोड़ नौकरियां सृजित हुईं। पिछले चार वर्षों में 55 लाख लोग 'नेशनल पेंशन स्कीम' के सदस्य बने। 'प्रधानमंत्री रोजगार अनुदान योजना' से करीब एक करोड़ लोग लाभान्वित हुए। नैसकॉम के मुताबिक, आईटी सेक्टर में जॉब की अच्छी रफ्तार है। पूरे जॉब मार्केट में आईटी सेक्टर की हिस्सेदारी महज 15 फीसदी है। यदि इस क्षेत्र ने एक करोड़ नौकरियां सृजित की हैं, तो आप कुल सृजित नई नौकरियों की संख्या के बारे में अनुमान लगा सकते हैं। 'मुद्रा' जैसी योजनाओं ने अनौपचारिक क्षेत्र में नौकरियां पैदा की हैं। पिछले चार वर्षों में 17 करोड़ लोगों को मुद्रा के माध्यम से ऋण स्वीकृत हुआ। इनमें से 4.35 करोड़ लोग पहली बार कारोबार शुरू कर रहे हैं। सीआईआई के सर्वेक्षण के अनुसार एमएसएमई ने छह करोड़ नए रोजगार सृजित किए हैं। पिछले चार वर्षों में पर्यटकों की संख्या और पर्यटन के माध्यम से सृजित नौकरियों में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि पर्यटन क्षेत्र ने रोजगार के नए अवसर सृजित किए हैं! भारत में कई लाख 'सामुदायिक सेवा केंद्र' चल रहे हैं, जिससे नई नौकरियां पैदा हो रही हैं। तीसरा बिंदु विभिन्न पैरामीटर हैं। 1991 के बाद की सरकारों से तुलना करें तो हमारे कार्यकाल की विकास दर सबसे अच्छी है। गरीबी की दर कम हो रही है; ऐसा अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट कहती हैं। क्या नई नौकरियां सृजित किए बिना यह सब हासिल करना संभव है? भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सर्वाधिक है। सड़कें, हाईवे और रेलवे, घर; दोगुनी रफ्तार से बनाए जा रहे हैं। क्या रोजगार सृजित किए बिना बुनियादी ढांचा तैयार करना संभव है? स्टार्ट-अप के लिए भारत एक महत्वपूर्ण गंतव्य है। मोबाइल ऐप पर आधारित व्यवसाय बढ़ रहे हैं। बिना नौकरी के यह कैसे संभव है? पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, ओडिशा बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करने का दावा कर रहे हैं। फिर, यह कैसे कहा जा सकता है कि केंद्र नौकरियां पैदा नहीं कर रहा है जबकि राज्य सरकारें पैदा कर रही हैं!

कांग्रेस का आरोप है कि जीएसटी और नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाया और आम लोगों पर बोझ डाला। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

नोटबंदी, काले धन के खिलाफ एक कदम था। यह राजनीतिक नतीजों से भरा फैसला था। काले धन के उपयोग को रोकने के लिए दिवंगत यशवंतराव चव्हाण ने दिवंगत इंदिरा गांधी को भी ऐसा ही कदम उठाने की सलाह दी थी। लेकिन उन्होंने कहा था “हमें अगला चुनाव जीतना है। हम ऐसे कदम कैसे उठा सकते हैं? पिछले साढ़े चार साल में हमारी काले धन के खिलाफ की गई पहलकदमी ने 1,30,00 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति का पर्दाफाश किया है। हमने इस पर टैक्स और जुर्माना भी वसूला है। इसके जरिए हमने 50 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है। इस दौरान 6900 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति और 1600 करोड़ रुपये की विदेशी संपत्ति जब्त की गई। हमने उन 3.38 लाख कंपनियों की पहचान की, जो केवल कागजों पर मौजूद थीं। उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया और उनके निदेशकों को अक्षम घोषित कर दिया गया। कर आधार दोगुना हो गया है। यह सब नोटबंदी के कारण संभव हुआ है।

वहीं हम जीएसटी को दो नजरियों से देख सकते हैं...

एक व्यवसायी की दृष्टि से और दूसरा आम उपभोक्ता की दृष्टि से। जीएसटी की वजह से दोनों पर टैक्स का बोझ कम हुआ है। व्यापारियों के नजरिए से देखा जाए तो जीएसटी से पारदर्शिता आई है। कई अप्रत्यक्ष कर जैसे चुंगी, बिक्री कर, प्रवेश कर आदि को समाप्त कर दिया गया। उन्हें दस्तावेजों के विभिन्न सेटों को बनाए रखने की औपचारिकता से मुक्त कर दिया गया है। जीएसटी में व्यापारियों को अपने कराधान का मूल्यांकन स्वयं करना होगा। माल की ढुलाई के मामले में उन्हें जीएसटी का मूल्यांकन खुद करना होगा। छोटे व्यापारियों के लिए कंपोजिशन स्कीम है। इस योजना के तहत 40 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये के वार्षिक कारोबार पर उसका एक प्रतिशत कर देना होगा। उन्हें सालाना एक इनकम टैक्स रिटर्न भरना होता है। सरल घोषणा के माध्यम से वे कर का भुगतान कर सकते हैं; त्रैमासिक, छोटे करदाताओं को जीएसटीएन एकाउंटिंग और बिलिंग सॉफ्टवेयर मिलेगा। 40 लाख रुपये से कम टर्नओवर वाले व्यापारियों को जीएसटी नेट से बाहर रखा गया है। अगर हम आम उपभोक्ताओं के नजरिए से जीएसटी पर विचार करें तो जीएसटी से कर का बोझ कम हुआ है, क्योंकि लोग प्रति माह चार प्रतिशत की बचत कर पा रहे हैं। जरूरी सामानों पर जीरो से पांच फीसदी तक ही जीएसटी है। पहली जुलाई 2017 को नागरिकों द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करते हुए हमने जीएसटी प्रतिशत में कई सुधार किए। खाद्यान्न, चीनी, दही, इडली-डोसा बैटर, वाशिंग पाउडर, फुटवियर, सिलाई मशीन, फर्नीचर, बिजली के उपकरण, टेलीविजन और मोबाइल फोन जैसी 80 से अधिक वस्तुओं पर जीएसटी घटाया गया।

कांग्रेस कृषि संकट को बार-बार उठा रही है। आपकी सरकार ने किसानों के लिए जो कुछ किया है क्या आप उससे संतुष्ट हैं?

हमने किसानों के लिए जो योजनाएं लागू की हैं, उनका मूल्यांकन होना चाहिए। कांग्रेस के शासन काल में 2009-2014 के बीच एमएसपी पर 3,117.38 करोड़ रुपये के भुगतान से 7.28 लाख मीट्रिक टन दलहन और तिलहन खरीदे गए। वहीं 2014 से 2018 तक हमारी सरकार ने 44,142.50 करोड़ रुपये का भुगतान कर 93.97 मीट्रिक टन दलहन और तिलहन खरीदे।

महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी ने 15 साल में 450 करोड़ रुपये खाद्यान्न खरीद पर खर्च किए, जबकि भाजपा-शिवसेना सरकार ने खाद्यान्न खरीद पर 8,500 करोड़ रुपये खर्च किए। 2022 तक हम किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास करेंगे। छोटे किसानों के लिए हम 'प्रधानमंत्री किसान योजना' लेकर आए हैं। किसानों के बैंक खातों में पैसा जमा करा दिया गया है। हमने अपने घोषणा पत्र में इस योजना का वादा किया है। हमने अपने घोषणा पत्र में किसान पेंशन योजना का जिक्र किया है। यह फैसला ऐतिहासिक है और किसानों की स्थिति में सुधार पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से हम किसानों को ब्याज मुक्त ऋण वितरित करेंगे और हम ग्रामीण कृषि क्षेत्र में 25 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने जा रहे हैं।

आपका प्रिय संस्कृत श्लोक कौन सा है?

न त्वहम् कामये राज्यम् न स्वर्गम् न पुनर्भवम्।

कामये दु:खतप्तानम् प्राणिनामार्तिनाशनम्।।

अर्थात - मुझे राज्य की कामना नहीं, स्वर्ग-सुख की चाहना नहीं तथा मुक्ति की भी इच्छा नहीं, एकमात्र इच्छा यही है कि दुख से संतप्त प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाये।

स्रोत: eSakal

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