विदेशी मीडिया के साथ इस दुर्लभ इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने ग्लोबल साउथ और पश्चिमी दुनिया के बीच एक सेतु के रूप में भारत की भूमिका पर जोर दिया। पीएम मोदी ने ‘Les Echos’ को बताया कि लंबे समय से ग्लोबल साउथ को उसके वाजिब अधिकारों से वंचित रखा गया है। उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप इन देशों में पीड़ा की भावना है। ब्रेटन वुड्स अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के व्यापक फेरबदल के प्रबल समर्थक, भारतीय प्रधानमंत्री ने दावा किया कि उनका देश, जो कि अब दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश है, को अपना सही स्थान हासिल करने की आवश्यकता है। पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि यह केवल संयुक्त राष्ट्र के लिए विश्वसनीयता का मुद्दा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद दुनिया की आवाज होने का दावा कैसे कर सकती है जबकि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश और सबसे बड़ा लोकतंत्र इसका स्थायी सदस्य नहीं है? उन्होंने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक रणनीतिक भागीदार फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इंटरनेशनल ऑर्डर पर अपने विचार साझा किए हैं।


2014 से पीएम मोदी ने अपने देश की स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ 2047 तक, भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था में बदलने के उद्देश्य से बड़े आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। भारत अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बहुत जल्द तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।


मोदी ने पश्चिमी मूल्यों की सार्वभौमिक अपील पर सावधानी बरतते हुए कहा कि दुनिया के हर कोने के दर्शन पर विचार किया जाना चाहिए और दुनिया तभी तेजी से प्रगति करती है जब वह किसी भी तरह की अनैतिक और पुरानी धारणाओं को छोड़ना सीखती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक पृथ्वी है लेकिन एक दर्शन नहीं है। मोदी ने देश के सिनेमा और संगीत की वैश्विक पहुंच, आयुर्वेद चिकित्सा के लिए नए सिरे से रुचि और एक प्रैक्टिशनर के रूप में, योग की सार्वभौमिक सफलता, जो अब एक घरेलू शब्द बन गया है, की ओर इशारा करते हुए भारतीय सॉफ्ट पावर पर भी बात की।


निम्नलिखित, इस इंटरव्यू का फुल ट्रांसक्रिप्ट है जिससे फ्रेंच संस्करण संपादित किया गया है...


भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। वैश्विक परिदृश्य पर इससे देश की स्थिति में किस प्रकार का बदलाव देखते हैं?

भारत एक समृद्ध सभ्यता है जो हजारों साल पुरानी है। आज भारत दुनिया का सबसे युवा राष्ट्र है। भारत की सबसे बड़ी संपत्ति हमारे युवा हैं। ऐसे समय में जब दुनिया के कई देश उम्रदराज हो रहे हैं और उनकी आबादी कम हो रही है, भारत का युवा और कुशल वर्कफोर्स, आने वाले दशकों में दुनिया के लिए एक संपत्ति होगा। ख़ास बात यह है कि यह वर्कफोर्स, खुलेपन और लोकतांत्रिक मूल्यों से लैस है, टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए उत्सुक है और बदलती दुनिया में खुद को ढालने के लिए तैयार है। 

आज भी प्रवासी भारतीय, चाहे वे कहीं भी हों, उस ‘मातृभूमि’ की समृद्धि में योगदान करते हैं। मानवता के छठे हिस्से की प्रगति से दुनिया को अधिक समृद्ध और टिकाऊ भविष्य मिलेगा। 

अद्वितीय सामाजिक और आर्थिक विविधता के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, हमारी सफलता यह प्रदर्शित करेगी कि लोकतंत्र परिणामोन्मुखी है। कि विविधता के बीच सद्भाव का होना संभव है। साथ ही, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सही स्थान देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम और संस्थानों में समायोजन की स्वाभाविक अपेक्षा है।

 

क्या आप विस्तार से बता सकते हैं आपके कहने का मतलब कि भारत दुनिया में अपना उचित स्थान हासिल कर रहा है?

बल्कि मैं इसे अपने सही स्थान को पुनः प्राप्त करने के रूप में कहूंगा। अनादिकाल से भारत वैश्विक आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति और मानव विकास में योगदान देने में सबसे आगे रहा है। आज दुनिया भर में हम बहुत सारी समस्याएं और चुनौतियों को देख रहे हैं। मंदी, खाद्य सुरक्षा, मुद्रास्फीति, सामाजिक तनाव उनमें से कुछ हैं। ऐसी वैश्विक पृष्ठभूमि में, मैं अपने लोगों में एक नया विश्वास, भविष्य के बारे में एक आशावाद और दुनिया में अपना सही स्थान लेने की उत्सुकता देखता हूं। 

हमारा डेमोग्राफिक डिविडेंड, लोकतंत्र में हमारी गहरी जड़ें और हमारी सिविलाइज़ेशनल स्पिरिट; भविष्य की ओर बढ़ने के पथ पर हमारा मार्गदर्शन करेगी। हम वैश्विक चुनौतियों से निपटने, एक अधिक सामंजस्यपूर्ण दुनिया के निर्माण, कमजोरों की आकांक्षाओं को आवाज देने और वैश्विक शांति और समृद्धि को आगे बढ़ाने में योगदान करने में अपनी जिम्मेदारी को पहचानते हैं। भारत वैश्विक विमर्श में अपना अनूठा और विशिष्ट दृष्टिकोण और आवाज लाता है और यह हमेशा शांति, एक बेहतर आर्थिक व्यवस्था, एक साथ काम करने के पक्ष में खड़ा है। 

बहुपक्षीय कार्रवाई में भारत का विश्वास गहरा है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस, डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अलायंस, वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड पहल, भारत की हिंद प्रशांत महासागर पहल, ये सभी इस विजन के उदाहरण हैं। या फिर 100 से अधिक देशों के साथ कोविड टीकों की हमारी आपूर्ति और हमारे ओपन सोर्स डिजिटल प्लेटफॉर्म कोविन को दूसरों के साथ स्वतंत्र रूप से साझा करना । आज एक वैश्विक मान्यता है कि भारत, दुनिया में भलाई की एक शक्ति है और दुनिया में बड़ी उथल-पुथल और विखंडन के जोखिम के समय वैश्विक एकता, सामंजस्य, शांति और समृद्धि के लिए अपरिहार्य है। जैसे-जैसे भारत बढ़ेगा, वैश्विक भलाई के लिए हमारा योगदान और बढ़ेगा और हमारी क्षमताएं और संसाधन मानवता के व्यापक कल्याण की दिशा में निर्देशित होते रहेंगे, न कि दूसरों के खिलाफ दावा करने या अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती देने के लिए।

 

आपके विचार में भारत की सॉफ्ट पावर के स्तंभ क्या हैं?

यह हमारी सभ्यता का लोकाचार और विरासत है जो आधार प्रदान करती है जिसे भारत की सॉफ्ट पावर कहा जा सकता है। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास यह बहुतायत में है। हमारा निर्यात कभी भी युद्ध और अधीनता नहीं रहा है, बल्कि योग, आयुर्वेद, आध्यात्मिकता, विज्ञान, गणित और खगोल विज्ञान रहा है। हम हमेशा वैश्विक शांति और प्रगति में योगदान देते रहे हैं। 

हमारा मानना है कि जब हम प्रगति करते हैं और एक आधुनिक राष्ट्र बनते हैं, तो हमें अपने अतीत से गर्व और प्रेरणा लेनी चाहिए और हम तभी प्रगति कर सकते हैं जब हम इसे अन्य देशों के साथ मिलकर करेंगे। हमारा सौभाग्य है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता में नए सिरे से रुचि पैदा हुई है। योग आज एक घरेलू शब्द है। आयुर्वेद की हमारी पारंपरिक चिकित्सा को स्वीकृति मिल रही है। भारतीय सिनेमा, व्यंजन, संगीत और नृत्य की मांग दुनिया भर में है। 

प्रकृति के साथ हमारा सह-अस्तित्व हमारे क्लाइमेट एक्शन और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल के लिए अभियान को प्रेरित करता है। लोकतांत्रिक आदर्शों में हमारा सहज विश्वास और हमारे जीवंत लोकतंत्र की सफलता अंतर्राष्ट्रीय शासन की एक अधिक जवाबदेह, समावेशी और प्रतिनिधि प्रणाली देखने की हमारी इच्छा को प्रेरित करती है और कई लोगों को आशा और प्रेरणा प्रदान करती है। शांति, खुलेपन, सद्भाव और सह-अस्तित्व के हमारे गहरे मूल्य; हमारे जीवंत लोकतंत्र की सफलता; हमारी संस्कृति, परंपराओं और दर्शन की असाधारण समृद्धि; एक शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण विश्व के लिए एक सुसंगत आवाज; और अंतर्राष्ट्रीय कानून और शांति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, ये कारण हैं कि भारत के उदय का स्वागत किया जाता है, जिससे दुनिया में डर नहीं है। ये भारतीय सॉफ्ट पावर के भी स्तंभ हैं।

 

पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अब ऐसा क्यों हो रहा है और इसके पीछे भारत का क्या तर्क है?

यह सच है कि सदी के अंत से हमारे संबंध सकारात्मक रूप से बढ़ रहे हैं। पिछले नौ वर्षों में इसमें तेजी आई है और यह नए स्तर पर पहुंच गया है। हमारे संबंधों को गहरा करने के लिए दोनों देशों में सभी हितधारकों से व्यापक समर्थन है, चाहे वह सरकार हो, संसद हो, उद्योग हो, शिक्षाविद हो और निश्चित रूप से लोग हों। अमेरिकी कांग्रेस ने हमारे संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए लगातार द्विदलीय समर्थन दिया है। 

पिछले नौ वर्षों में मैंने व्यक्तिगत रूप से विभिन्न प्रशासनों में अमेरिकी नेतृत्व के साथ एक उत्कृष्ट संबंध का आनंद लिया है। जून में संयुक्त राज्य अमेरिका की मेरी राजकीय यात्रा के दौरान, राष्ट्रपति जो बाइडेन और मैं इस बात पर सहमत हुए थे कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच असाधारण रूप से मजबूत लोगों के बीच संबंधों के साथ साझेदारी, इस सदी की परिभाषित साझेदारी हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह साझेदारी हमारे समय की चुनौतियों का समाधान करने और वैश्विक व्यवस्था को आकार देने के लिए महत्वपूर्ण तरीके से योगदान करने के लिए हितों, दृष्टि, प्रतिबद्धता और अनुपूरकताओं के संदर्भ में पूरी तरह से स्थापित है। 

जैसे-जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के समक्ष चुनौतियां बढ़ी हैं, हमारी भागीदारी अत्यावश्यकता और उद्देश्य की भावना के साथ प्रतिक्रिया दे रही है। भरोसा, आपसी विश्वास और संबंधों में विश्वास महत्वपूर्ण घटक रहे हैं। मुक्त, खुले, समावेशी और संतुलित भारत-प्रशांत क्षेत्र को आगे बढ़ाना एक साझा लक्ष्य है। हम इस क्षेत्र और उससे परे अन्य भागीदारों के साथ इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

हम मानकों और मानदंडों को आगे बढ़ाने, महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों सहित मजबूत ग्लोबल सप्लाई चेन का निर्माण करने, एक सफल ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन को आगे बढ़ाने, प्रमुख क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग को उत्प्रेरित करने, एक मजबूत रक्षा औद्योगिक साझेदारी बनाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। हम इस क्षेत्र और उससे बाहर के अन्य देशों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और बहुपक्षीय संस्थानों को पुनर्जीवित कर रहे हैं। ये सभी महत्वपूर्ण साझा लक्ष्य हैं जो साझेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं। बहुत कुछ है जो हमारे दोनों देशों को एक साथ बांधता है, और हमें अपने समय की चुनौतियों का सामना करने और वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण तरीके से योगदान करने में रचनात्मक भूमिका निभाने की अनुमति देता है।

क्या आप मानते हैं कि भारत, ग्लोबल साउथ का नैचुरल लीडर है?

मुझे लगता है कि लीडर शब्द काफी भारी है और भारत को अहंकार नहीं करना चाहिए या कोई पद नहीं लेना चाहिए। मैं वास्तव में महसूस करता हूं कि हमें संपूर्ण ग्लोबल साउथ के लिए सामूहिक शक्ति और सामूहिक नेतृत्व की आवश्यकता है, ताकि इसकी आवाज अधिक मजबूत हो सके और पूरा समुदाय अपने लिए नेतृत्व कर सके। इस प्रकार के सामूहिक नेतृत्व का निर्माण करने के लिए, मुझे नहीं लगता कि भारत को एक नेता के रूप में अपनी स्थिति के संदर्भ में सोचना चाहिए और न ही हम उस अर्थ में सोचते हैं। 

यह भी सच है कि ग्लोबल साउथ के अधिकारों को लंबे समय से नकारा गया है। परिणामस्वरूप, ग्लोबल साउथ के सदस्यों में पीड़ा की भावना है कि उन्हें एक्शन लेने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन जब निर्णय लेने की बात आती है तो उन्हें अपने लिए कोई जगह या आवाज नहीं मिलती है। ग्लोबल साउथ के संदर्भ में लोकतंत्र की सच्ची भावना का सम्मान नहीं किया गया है। मुझे लगता है कि अगर हमने लोकतंत्र की सच्ची भावना से काम किया होता और ग्लोबल साउथ को भी वही सम्मान और समान अधिकार दिए होते, तो विश्व एक अधिक शक्तिशाली और मजबूत हो सकता था। जब हम ग्लोबल साउथ का गठन करने वाले विशाल बहुमत की चिंताओं को संबोधित करते हैं तो हम इंटरनेशनल ऑर्डर में विश्वास बहाल करने की अधिक संभावना रखते हैं। हम अपने वैश्विक संस्थानों को रेजिलिएंट बनाएंगे। 

दूसरा, यह देखें कि ग्लोबल साउथ में भारत अपने बारे में कैसे सोचता है। मैं भारत को वह मजबूत कंधा देखता हूं कि अगर ग्लोबल साउथ को ऊंची छलांग लगानी है, तो भारत उसे आगे बढ़ाने के लिए वह कंधा बन सकता है। तो, उस अर्थ में, यह कंधा एक प्रकार का पुल बन सकता है। इसलिए, मुझे लगता है कि हमें इस कंधे, इस पुल को मजबूत करने की जरूरत है ताकि नॉर्थ और साउथ के बीच संबंध मजबूत हो सकें और ग्लोबल साउथ खुद मजबूत हो सके।
 

आपने कई बार कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में ग्लोबल साउथ की आवाज़ नहीं सुनी जाती। अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में ग्लोबल साउथ की उपस्थिति बढ़ाने के लिए आपकी क्या योजना है?

जनवरी 2023 में G20 की हमारी अध्यक्षता की शुरुआत में मैंने ग्लोबल साउथ का एक शिखर सम्मेलन बुलाया। 125 देशों ने भाग लिया। इस बात पर सर्वसम्मति थी कि भारत को ग्लोबल साउथ के मुद्दों को मजबूती से उठाना चाहिए। 

हमारी G20 अध्यक्षता के दौरान, वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर की थीम के तहत, हमने ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनना एक प्रमुख लक्ष्य बनाया है। हमने ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं और हितों को G20 के विचार-विमर्श और निर्णयों के केंद्र में लाने का प्रयास किया है। मैंने अफ़्रीकी यूनियन को G20 में स्थायी सदस्यता देने का प्रस्ताव रखा है। 

ग्लोबल साउथ के लिए बोलते हुए हम 'नॉर्थ' के साथ किसी भी प्रतिकूल रिश्ते में खुद को स्थापित करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। वास्तव में यह वन वर्ल्ड, वन फ्यूचर के अप्रोच को आगे बढ़ाने के लिए है। दूसरा विकल्प एक ऐसी दुनिया है जो दिशाहीन है, जो और अधिक खंडित हो गई है, वेस्ट बनाम बाकी की दुनिया, एक ऐसी दुनिया जिसमें हम उन लोगों को जगह देते हैं जो हमारे वर्ल्ड व्यू को साझा नहीं करते हैं और जो एक वैकल्पिक व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि राष्ट्रपति मैक्रों इस विचार से सहमत हैं। न्यू ग्लोबल फाइनेंसिंग पैक्ट समिट की मेजबानी के पीछे उनकी यही भावना थी।

 

आप संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत करते रहे हैं। क्या इस परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता दांव पर है?

मुद्दा सिर्फ विश्वसनीयता का नहीं है, बल्कि इससे भी बड़ा कुछ है। मेरा मानना है कि दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी बहुपक्षीय गर्वनेंस स्ट्रक्चर के बारे में ईमानदार चर्चा करने की ज़रूरत है। 

संस्थानों के निर्माण के लगभग आठ दशक बाद, दुनिया बदल गई है। सदस्य देशों की संख्या चार गुना बढ़ गई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था का चरित्र बदल गया है। हम नई तकनीक के युग में रहते हैं। नई शक्तियों का उदय हुआ है जिससे वैश्विक संतुलन में सापेक्ष बदलाव आया है। हम जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद, अंतरिक्ष सुरक्षा, महामारी सहित नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। मैं ऐसे कई बदलावों को गिना सकता हूं।
 

इस बदली हुई दुनिया में कई सवाल उठते हैं - क्या ये आज की दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं? क्या वे उन भूमिकाओं का निर्वहन करने में सक्षम हैं जिनके लिए उन्हें स्थापित किया गया था? क्या दुनिया भर के देशों को लगता है कि ये संगठन मायने रखते हैं, या प्रासंगिक हैं?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विशेष रूप से, इस विसंगति का प्रतीक है। हम इसे ग्लोबल बॉडी के प्राथमिक अंग के रूप में कैसे बात कर सकते हैं, जब अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के पूरे महाद्वीपों को नजरअंदाज कर दिया जाता है? वह दुनिया की ओर से बोलने का दावा कैसे कर सकता है जब उसका सबसे अधिक आबादी वाला देश और उसका सबसे बड़ा लोकतंत्र इसका स्थायी सदस्य नहीं है? और इसकी विषम सदस्यता से निर्णय लेने की प्रक्रिया अपारदर्शी हो जाती है, जो आज की चुनौतियों से निपटने में इसकी बेबसी को बढ़ा देती है। 

मुझे लगता है कि अधिकांश देश इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में क्या बदलाव देखना चाहते हैं, जिसमें भारत की भूमिका भी शामिल है। हमें बस उनकी आवाज सुनने और उनकी सलाह मानने की जरूरत है।' मुझे इस मामले में फ्रांस द्वारा अपनाई गई स्पष्ट और सुसंगत स्थिति की सराहना करनी चाहिए।

 
2047 में भारत के लिए आपका विजन क्या है? ग्लोबल बैलेंस में भारत के योगदान को आप किस प्रकार देखते हैं?

हम 2047, हमारी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ, के लिए एक स्पष्ट विजन के साथ काम कर रहे हैं। हम 2047 में भारत को एक विकसित देश बनते देखना चाहते हैं। एक विकसित अर्थव्यवस्था जो अपने सभी लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, इफ्रांस्ट्रक्चर और अवसरों की जरूरतों को पूरा करती है। 

भारत एक जीवंत और सहभागी संघीय लोकतंत्र बना रहेगा, जिसमें सभी नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सुरक्षित हों, राष्ट्र में अपने स्थान के प्रति आश्वस्त हों और अपने भविष्य के प्रति आशावान हों। 

भारत इनोवेशन और टेक्नोलॉजी में ग्लोबल लीडर बनेगा। सस्टेनेबल लाइफस्टाइल, स्वच्छ नदियां, नीला आसमान और जैव विविधता से भरपूर और वन्य जीव से भरपूर जंगलों वाला देश। हमारी अर्थव्यवस्था अवसरों का केंद्र, वैश्विक विकास का इंजन और कौशल और प्रतिभा का स्रोत होगी। हम अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित और बहुपक्षवाद के अनुशासन पर आधारित एक अधिक संतुलित बहुध्रुवीय दुनिया को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे।

 

क्या आप मानते हैं कि वेस्टर्न वैल्यूज का अभी भी सार्वभौमिक आयाम है या अन्य देशों को अपना रास्ता स्वयं खोजना चाहिए?

मुझे लगता है कि जब हम देखते हैं कि दुनिया आज कहाँ है, तो दुनिया के हर कोने से थॉट प्रोसेस, दुनिया के हर कोने से प्रयास और दुनिया के हर कोने के दर्शन की अपने-अपने समय में प्रासंगिकता रही है और उन्होंने मिलकर हमें वहां पहुंचाया है जहां दुनिया आज है। लेकिन दुनिया तभी तेजी से प्रगति करती है जब वह पुरातनपंथी और पुरानी धारणाओं को छोड़ना सीखती है। जितना अधिक हम पुरानी धारणाओं को छोड़ेंगे, उतना अधिक हम नई चीजों को अपना सकेंगे। 

इसलिए, मैं इस आधार पर नहीं देखता कि पश्चिम बेहतर है या पूर्व, क्या एक थॉट प्रोसेस दूसरे से बेहतर है। हजारों साल पहले लिखे गए हमारे वेदों में सभी अच्छे विचारों को हर तरफ से आने देने की बात कही गई है। हम अपने आप को बंद नहीं करते, संसार में जो कुछ भी अच्छा है, उसे सराहना करने, स्वीकार करने और अपनाने की क्षमता हमारे अंदर होनी चाहिए। यही कारण है कि हमने हमारे G20 ध्येय वाक्य में वसुधैव कुटुंबकम - वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर कहा है लेकिन हमने एक दर्शन नहीं कहा है।

 

आपने 2014 के बाद से कई आर्थिक सुधार लागू किए। आप अर्थव्यवस्था के विकास को कैसे आगे बढ़ाने का इरादा रखते हैं?


हमारा आर्थिक विकास हमेशा जन-केंद्रित अप्रोच द्वारा निर्देशित रहा है। हमने ऐसे निर्णयों को लागू करने का प्रयास किया है जो सबसे वंचित लोगों को साथ लेकर चलते हैं। हर घर तक पहुंचने और अंतिम मील तक कनेक्टिविटी पर हमारा ध्यान बेहद सफल रहा है। इसमें डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग एक प्रमुख तत्व रहा है। 

हमने अभूतपूर्व स्तर पर सामाजिक और आर्थिक समावेशन और सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया है। अब तक, हमने गरीबों के लिए 40 मिलियन से अधिक घर और उचित स्वच्छता के लिए 110 मिलियन शौचालय बनाए हैं। हमने लगभग 500 मिलियन लोगों के लिए बैंक खाते खोले हैं और 400 मिलियन माइक्रोक्रेडिट लोन प्रदान किए हैं। हमने 90 मिलियन परिवारों को रसोई गैस कनेक्शन दिए हैं और 500 मिलियन लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा कवरेज मिलता है। 

डिजिटल टेक्नोलॉजी के उपयोग और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में भारत की क्रांति ने भारत में यूनिवर्सल बैंकिंग स्थापित कर दी है। इसने लोगों को प्रत्यक्ष लाभ के रूप में 300 बिलियन यूरो से अधिक वितरित करने और कोविड की शुरुआत के बाद से 800 मिलियन लोगों को मुफ्त भोजन प्रदान करने में मदद की है। आज वैश्विक स्तर पर 46% रियल टाइम डिजिटल पेमेंट भारत में होता है। 

2014 से हमने आर्थिक सुधार लागू किए हैं जिनका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को अनलॉक करना है। हमने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और प्रत्येक भारतीय में उद्यमशीलता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया है। हमने इनोवेशन और स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा दिया है। भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप इकोसिस्टम है। 

हम निवेशकों की मदद के लिए एक पूर्वानुमानित, पारदर्शी और स्थिर नीति व्यवस्था सुनिश्चित कर रहे हैं। हमने टेक्नोलॉजी और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है, जो लॉन्ग टर्म ग्रोथ और डेवलपमेंट की आधारशिला हैं। हमारा लक्ष्य टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बनना और भारत को एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर, स्पेस, डिफेंस में अग्रणी प्लेयर बनाना है। 

हम इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर भी काफी ध्यान दे रहे हैं। ट्रांसफॉर्मेशन की गति और पैमाना, चाहे वह सड़कें हों, रेलवे हों, हवाई अड्डे हों, बंदरगाह हों, पाइपलाइनें हों या बिजली स्टेशन हों, अभूतपूर्व है। गति-शक्ति प्रोग्राम, लॉजिस्टिक्स की लागत को कम कर रहा है और नियोजित (Planned) विकास को सुविधाजनक बना रहा है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन परियोजना जैसी पहलों ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया है। हमारी अर्थव्यवस्था अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। 

दुनिया के साथ जुड़ाव हमारी आर्थिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मेक इन इंडिया के हमारे विजन का उद्देश्य भारत को दुनिया से दूर करना नहीं है। हम एकमात्र G20 देश भी हैं जो 2030 से 9 साल पहले जलवायु पर पेरिस प्रतिबद्धताओं तक पहुंच गया। हम 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
 

चीन अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भारी मात्रा में धन लग रहा है। क्या इससे क्षेत्र में सुरक्षा को ख़तरा है?

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हमारे हित व्यापक हैं और हमारा जुड़ाव गहरा है। मैंने इस क्षेत्र के लिए अपने विजन को एक शब्द में वर्णित किया है - SAGAR, जिसका अर्थ है क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास। हालाँकि हम जिस भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं उसके लिए शांति आवश्यक है, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं है। 

भारत हमेशा बातचीत और कूटनीति के माध्यम से मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान और सभी देशों की संप्रभुता, अंतर्राष्ट्रीय कानून और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का सम्मान करने के पक्ष में खड़ा रहा है। आपसी विश्वास और भरोसा बनाए रखने के लिए यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। हमारा मानना है कि इसके माध्यम से स्थायी क्षेत्रीय और वैश्विक शांति और स्थिरता की दिशा में सकारात्मक योगदान दिया जा सकता है।

 

क्षेत्र में तनाव बढ़ता जा रहा है। भारत समेत कई देश आक्रामक चीन की समस्या से जूझ रहे हैं। चीन के साथ इस गतिरोध में रणनीतिक समर्थन के मामले में आप फ्रांस से क्या उम्मीद करते हैं?

भारत और फ्रांस के बीच एक व्यापक आधार और रणनीतिक साझेदारी है जिसमें राजनीतिक, रक्षा, सुरक्षा, आर्थिक, मानव-केंद्रित विकास और स्थिरता सहयोग शामिल है। जब समान विजन और वैल्यू वाले देश एक साथ, द्विपक्षीय रूप से, बहुपक्षीय व्यवस्था में या क्षेत्रीय संस्थानों में काम करते हैं, तो वे किसी भी चुनौती से निपट सकते हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र सहित हमारी साझेदारी किसी भी देश के खिलाफ या उसकी कीमत पर आधारित नहीं है। हमारा उद्देश्य हमारे आर्थिक और सुरक्षा हितों की रक्षा करना, नेविगेशन और कारोबार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कानून के शासन को आगे बढ़ाना है। हम अन्य देशों की क्षमताओं को विकसित करने और स्वतंत्र संप्रभु विकल्प चुनने के उनके प्रयासों का समर्थन करने के लिए उनके साथ काम करते हैं। अधिक व्यापक रूप से, हमारा लक्ष्य क्षेत्र में शांति और स्थिरता को आगे बढ़ाना है।

 

सितंबर में आपने व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि आज का युग युद्ध का नहीं है। युद्ध अब लंबा खिंच रहा है और "ग्लोबल साउथ" पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। क्या भारत, यूक्रेन युद्ध पर अपना रुख कड़ा करने जा रहा है?

मैंने राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति जेलेंस्की से कई बार बात की है। मैं हिरोशिमा में राष्ट्रपति जेलेंस्की से मिला। हाल ही में, मैंने राष्ट्रपति पुतिन से दोबारा बात की। भारत का रुख स्पष्ट, पारदर्शी और Consistent रहा है। मैंने कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। हमने दोनों पक्षों से बातचीत और कूटनीति के जरिए मुद्दों को सुलझाने का आग्रह किया है।' मैंने उनसे कहा कि भारत उन सभी वास्तविक प्रयासों का समर्थन करने के लिए तैयार है जो इस संघर्ष को समाप्त करने में मदद कर सकते हैं। 

हमारा मानना है कि सभी देशों का दायित्व है कि वे दूसरे देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें, अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करें और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करें। 

हम व्यापक दुनिया, विशेषकर ग्लोबल साउथ पर संघर्ष के प्रभाव को लेकर भी चिंतित हैं। पहले से ही कोविड महामारी के प्रभाव से पीड़ित देशों को अब एनर्जी, फूड, स्वास्थ्य संकट, आर्थिक मंदी, मुद्रास्फीति और बढ़ते कर्ज के बोझ का सामना करना पड़ रहा है। संघर्ष ख़त्म होना चाहिए. हमें उन चुनौतियों का भी समाधान करना चाहिए जिनका ग्लोबल साउथ के देश सामना कर रहे हैं।


इस वर्ष फ्रांस और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ है। आप दोनों देशों के बीच संबंधों का वर्णन कैसे करेंगे?

सबसे पहले 1.4 अरब भारतीयों की ओर से मैं 14 जुलाई के राष्ट्रीय दिवस समारोह में सम्मानित अतिथि के रूप में भारत को आमंत्रित करने के लिए फ्रांस, उसकी सरकार और व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति मैक्रों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहता हूं। इस अवसर पर फ्रांस आकर मैं कृतज्ञ महसूस कर रहा हूं। यह एक विशेष वर्ष है क्योंकि यह हमारी रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ का प्रतीक है। यह भारत के लिए सम्मान और भारत-फ्रांस मित्रता के लिए एक सम्मान है। 

जहां तक रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्षों का सवाल है, मुझे लगता है कि अब हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। यदि हम महामारी के बाद के वर्ल्ड ऑर्डर और इसके आकार को देखें, तो मुझे लगता है कि हमारी रणनीतिक साझेदारी का सकारात्मक अनुभव एक महत्वपूर्ण कदम है। इसलिए, हम रणनीतिक साझेदारी के अगले 25 वर्षों के रोडमैप पर काम करने के लिए उत्सुक हैं, जो मुझे लगता है कि रिश्ते के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

रिश्ता बेहतरीन स्थिति में है। यह मजबूत, भरोसेमंद और एक समान है। यह सबसे गहरे तूफानों में भी स्थिर और रेजिलिएंट रहा है। अवसरों की तलाश में यह साहसी और महत्वाकांक्षी रहा है। 

हमारे बीच आपसी विश्वास और भरोसे का स्तर बेजोड़ है। यह साझा वैल्यूज और विजन से उत्पन्न होता है। हम रणनीतिक स्वायत्तता की मजबूत भावना साझा करते हैं। दोनों की अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति गहरी प्रतिबद्धता है। हम दोनों एक बहुध्रुवीय विश्व चाहते हैं। हम दोनों का बहुपक्षवाद में अटूट विश्वास है। 

स्पेस और डिफेंस जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में हमारी साझेदारी पांच दशक और उससे भी अधिक पुरानी है। यह वह दौर था जब पश्चिम का भारत के प्रति मैत्रीपूर्ण स्वभाव नहीं था। इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फ्रांस पहला पश्चिमी देश था जिसके साथ, हमने रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की थी। वह भारत सहित दुनिया के लिए एक कठिन समय था। तब से हमारा रिश्ता एक साझेदारी में बदल गया है जो न केवल हमारे दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि महान जीओ-पॉलिटिकल परिणाम भी है। 

2014 में कार्यालय में आने के बाद से मैंने फ्रांस के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी पर विशेष जोर दिया है। प्रधानमंत्री बनने के एक साल के भीतर, मैंने अप्रैल 2015 में फ्रांस की अपनी पहली यात्रा की। मैं उस तरीके का बहुत सम्मान करता हूं जिस तरह से फ्रांस के लोग 140,000 भारतीय सैनिकों की सेवा का सम्मान करते हैं जिन्होंने फ्रांस में स्वतंत्रता और शांति की रक्षा के लिए प्रथम विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ी थी। यह देखना भावुक कर देने वाला है कि फ्रांस के 163 कब्रिस्तानों में 9000 भारतीयों की यादें किस तरह से जिंदा रखी गई हैं। मुझे 2015 में न्यूवे-चैपेल में कब्रिस्तान का दौरा करने का मौका मिला था। मैंने इस साझेदारी को विकसित करने के लिए, न केवल द्विपक्षीय ढांचे में, बल्कि ग्लोबल गुड के लिए, फ्रांसीसी नेतृत्व के साथ मिलकर काम किया है, खासकर जब से मैक्रों राष्ट्रपति चुने गए।

 

फ्रांस के साथ किन क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने पर विचार कर रहे हैं?

दोनों देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पीपुल टू पीपुल संपर्क में हमारी साझेदारी गहरी हो रही है। 2014 के बाद से हमारा व्यापार लगभग दोगुना हो गया है। इसी साल, दो इंडिन एयर करियर ने एयरबस को 750 से अधिक विमानों का ऑर्डर दिया है। दोनों देश, जनता की भलाई के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने के विजन को साकार करने के लिए अधिक निकटता से काम कर रहे हैं और सौर, पवन और स्वच्छ हाइड्रोजन सहित स्वच्छ ऊर्जा में मजबूत सहयोग हैं। 

राष्ट्रपति मैक्रों ने हमारे सहयोग को और गहरा करने के लिए कई कदम उठाए हैं। पिछले साल भारत, पेरिस बुक फेयर, कान्स फिल्म फेस्टिवल, वीवाटेक, पेरिस इंफ्रा वीक और फ्रांस में 2022 में इंटरनेशनल सीटेक वीक में वर्ष का सर्वश्रेष्ठ देश था। रक्षा सहयोग तेजी से आगे बढ़ा है। हमने एक वास्तविक इंडस्ट्रियल पार्टनरशिप शुरू की है, जिसमें को-डिज़ाइन और को-डेवलपमेंट भी शामिल है, न केवल अपने लिए बल्कि अन्य देशों के लिए भी है। 

हम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक निकटता से सहयोग और समन्वय करते हैं। हमने मिलकर इंटरनेशनल सोलर अलायंस लॉन्च किया। अब हम बायो -डायवर्सिटी, सिंगल यूज प्लास्टिक के उन्मूलन, डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर और समुद्री संसाधनों के संरक्षण की पहल पर मिलकर काम कर रहे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र में हमारा सहयोग विशेष रूप से मजबूत हुआ है, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र संस्थानों में सुधार हो, जलवायु परिवर्तन से लड़ना हो, या फिर आतंकवाद से लड़ना हो। हाल ही में हमने राष्ट्रपति मैक्रों के न्यू ग्लोबल फाइनेंसिंग पैक्ट समिट पर बारीकी से काम किया। हम दोनों 'नो मनी फॉर टेरर फाइनेंसिंग ' की पहल में अग्रणी हैं। 

मुझे लगता है कि राष्ट्रपति मैक्रों की सोच वास्तव में हमारी सोच से मेल खाती है और इसलिए हम स्वाभाविक रूप से एक साथ काम करने के लिए अनुकूल हैं और इसके लिए मेरे मन में उनके प्रति हार्दिक आभार है। हमारी साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। हम फ्रांस को अपने सबसे अग्रणी वैश्विक साझेदारों में से एक के रूप में देखते हैं।

 

फ्रांस हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का पड़ोसी भी है। भारत और फ्रांस इस क्षेत्र में किस प्रकार के सहयोग की आशा कर रहे हैं?

जैसा कि मैंने कहा है कि भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी इंडो पैसिफिक क्षेत्र की दिशा को प्रभावित करने वाली प्रमुख साझेदारियों में से एक है। हम हिंद महासागर क्षेत्र की दो प्रमुख शक्तियां हैं। 

हमारी साझेदारी का उद्देश्य क्षेत्र में हमारे विजन को साझा करने वाले अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करते हुए एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी, सुरक्षित और स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आगे बढ़ाना है। इसमें एक मजबूत रक्षा और सुरक्षा कंपोनेंट है जो समुद्र तल से लेकर अंतरिक्ष तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र के अन्य देशों की मदद करना और सुरक्षा सहयोग और मानदंड-निर्धारण के लिए क्षेत्रीय संस्थानों को मजबूत करना भी चाहता है। 

हम न केवल भारत के डिफेंस इंडस्ट्रियल बेस और हमारी ज्वाइंट ऑपरेशनल क्षमताओं को मजबूत करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। हम रक्षा उपकरणों सहित अन्य देशों की सुरक्षा जरूरतों का समर्थन करने के लिए भी सहयोग करेंगे। लेकिन, यह उससे भी आगे है। इसमें आर्थिक, कनेक्टिविटी, मानव विकास और स्थिरता पहल की पूरी श्रृंखला शामिल है। यह साझेदारी क्षेत्रीय सहयोग के लिए बड़ी संभावनाएं खोलती है। इसके अलावा, हिंद महासागर क्षेत्र से परे, हम प्रशांत क्षेत्र में भी तेजी से समन्वय और सहयोग करेंगे। हमारी साझेदारी में यूरोपियन यूनियन भी शामिल होगा, जिसकी अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति है। यूरोपियन यूनियन के साथ, हमारी पहले से ही EU-भारत कनेक्टिविटी पार्टनरशिप है।

स्रोत : Les Echos

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Under Rozgar Mela, PM to distribute more than 71,000 appointment letters to newly appointed recruits
December 22, 2024

Prime Minister Shri Narendra Modi will distribute more than 71,000 appointment letters to newly appointed recruits on 23rd December at around 10:30 AM through video conferencing. He will also address the gathering on the occasion.

Rozgar Mela is a step towards fulfilment of the commitment of the Prime Minister to accord highest priority to employment generation. It will provide meaningful opportunities to the youth for their participation in nation building and self empowerment.

Rozgar Mela will be held at 45 locations across the country. The recruitments are taking place for various Ministries and Departments of the Central Government. The new recruits, selected from across the country will be joining various Ministries/Departments including Ministry of Home Affairs, Department of Posts, Department of Higher Education, Ministry of Health and Family Welfare, Department of Financial Services, among others.