आज आपकी सरकार ने 75 दिन पूरे कर लिए हैं। प्रत्येक सरकार ऐसे पड़ाव पर आती है और उठाए गए कदमों की बात करती है। ऐसा क्या है जिस से हमें यह सोचना चाहिए कि आपकी सरकार कुछ अलग है?
हमने अपनी सरकार के शुरुआती कुछ दिनों में ही एक अभूतपूर्व गति हासिल की है। इस दौरान हमने जो कुछ प्राप्त किया, वह हमारी 'स्पष्ट नीति, सही दिशा' का परिणाम है। हमारी सरकार के पहले 75 दिनों में बहुत कुछ हुआ है। बच्चों की सुरक्षा से लेकर चंद्रयान-2 तक, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से लेकर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्त कराने तक, कश्मीर से लेकर किसान तक, हमने दिखाया है कि जनता के मजबूत जनादेश वाली दृढ़ सरकार क्या हासिल कर सकती है। जल आपूर्ति में सुधार और जल संरक्षण को बढ़ाने के लिए एक मिशन मोड और एकीकृत दृष्टिकोण के लिए जल शक्ति मंत्रालय के गठन के साथ, हमने अपने समय की सबसे ज्वलंत समस्या से निपटने की दिशा में एक शुरुआत की है।
क्या अभूतपूर्व जनादेश ने आपको भारत के लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने में मदद की है, इस दृढ़ संकल्प के साथ कि रिफॉर्म को नीचे तक ले जाना है? और आपने कार्यपालिका से परे जाकर और विधायिका में जनादेश का उपयोग करके अपने राजनीतिक कद का इस्तेमाल किया है?
एक तरह से यह मजबूत जनादेश के साथ सरकार की वापसी का भी नतीजा है। हम पहले 75 दिनों में जो हासिल करने में सक्षम थे, वह पिछले पांच वर्षों में हमारे द्वारा बनाए गए मजबूत आधार का परिणाम था। पिछले पांच वर्षों में सैकड़ों सुधारों ने यह सुनिश्चित किया है कि लोगों की आकांक्षाओं के बल पर देश अब उड़ान भरने के लिए तैयार है।17वीं लोकसभा का पहला सत्र रिकॉर्ड बनाने वाला रहा है - यह 1952 के बाद से सबसे अधिक उत्पादक सत्र था। यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है, बल्कि मेरे विचार में, बेहतरी की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ है, जो हमारी संसद को लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाएगा। किसानों और व्यापारियों के लिए पेंशन योजनाएं, चिकित्सा क्षेत्र में सुधार, इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोडमें महत्वपूर्ण संशोधन, श्रम सुधारों की शुरुआत जैसी कई महत्वपूर्ण पहल की गई हैं....इस प्रकार एक लम्बी लिस्ट है। लेकिन सार यह है कि जब इरादे नेक हों, उद्देश्य तथा कार्यान्वयन की स्पष्टता हो, और लोगों का समर्थन हो, तो हम असीमित कार्य कर सकते हैं।
अलग-अलग समूहों से मेडिकल रिफॉर्म्स को लेकर कुछ प्रश्न उठ रहे हैं। क्या आपको लगता है कि लाए गए बदलाव भली-भांति विचार किए गए हैं?
जब हम 2014 में सरकार में आए, तब मेडिकल एजुकेशन की मौजूदा व्यवस्था को लेकर कई चिंताएं थीं। इससे पहले, अदालतें भारत में चिकित्सा शिक्षा की देखरेख करने वाली संस्था को 'भ्रष्टाचार का अड्डा' बताते हुए कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर चुकी हैं। एक संसदीय समिति ने गहन अध्ययन किया और चिकित्सा शिक्षा के मामलों की स्थिति के बारे में निराशाजनक स्थिति का खुलासा किया। इसने कुप्रबंधन, पारदर्शिता की कमी और मनमानी की ओर इशारा किया। पहले की सरकारों ने भी इस क्षेत्र में सुधार के बारे में सोचा था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हमने इस स्थिति को ठीक करने का निर्णय लिया क्योंकि यह एक गम्भीर विषय है, क्योंकि इससे हमारे लोगों के स्वास्थ्य और हमारे युवाओं का भविष्य जुड़ा है। इसलिए, हमने इस विषय की तह तक जाने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया। विशेषज्ञ समूह ने इस पूरी प्रणाली का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया और समस्याओं और सुधार के प्रारूप को सामने लाए। यह विशेषज्ञों के सुझावों पर आधारित कवायद है, जिसके तार्किक परिणामस्वरुप हम वर्तमान विधेयक ले कर आए।
फिर इस बिल को लेकर इतना हो-हल्ला क्यों है?
'राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग' इस क्षेत्र में एक दूरगामी सुधार है और व्याप्त समस्याओं को दूर करने का प्रयास करता है। इसमें कई सुधार शामिल हैं जो भ्रष्टाचार के रास्ते पर अंकुश लगाते हैं और पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं। एक ऐसे समय में जब दूसरे सभी देश भारत को दुनिया में प्रगति की अगली लहर के रूप में देख रहे हैं तब हमें यह भली-भाँति जानना चाहिए कि स्वस्थ आबादी के द्वारा ही यह सम्भव है। गरीबी के चलते कभी न खत्म होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के दुष्चक्र से गरीबों को निजात दिलाना बहुत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग इस उद्देश्य को भी अच्छी तरह से पूरा करता है। यह देश में चिकित्सा शिक्षा के संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित करेगा। इसका उद्देश्य छात्रों पर बोझ कम करना, मेडिकल सीटों की संख्या में वृद्धि करना और चिकित्सा शिक्षा की लागत को कम करना है। इसका मतलब है कि अधिक प्रतिभाशाली युवा पेशे के रूप में चिकित्सा क्षेत्र को अपना सकते हैं और इससे हमें चिकित्सा पेशेवरों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी। 'आयुष्मान भारत' स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में क्रांति ला रहा है। यह विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल के प्रति जागरूकता के साथ-साथ सामर्थ्य में वृद्धि कर रहा है।
हम यह सुनिश्चित करने के लिए भी काम कर रहे हैं कि प्रत्येक 3 जिलों के बीच कम से कम एक मेडिकल कॉलेज हो। स्वास्थ्य सेवा के बारे में बढ़ती जागरूकता, बढ़ती आय और लोगों के बीच आकांक्षी लक्ष्यों पर अधिक ध्यान देने के साथ, हमें मांग को पूरा करने के लिए हजारों डॉक्टरों की आवश्यकता होगी, खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग सभी हितधारकों के लिए बेहतर परिणाम के लिए इन मुद्दों का समाधान करना चाहता है। आपने यह भी पढ़ा होगा कि शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में लगभग 2 दर्जन नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के साथ एक ही वर्ष में सरकारी कॉलेजों में मेडिकल सीटों की सबसे बड़ी वृद्धि होगी। हमारा रोडमैप स्पष्ट है - बेहतर स्वास्थ्य देखभाल वाली एक पारदर्शी, सुलभ और सस्ती चिकित्सा शिक्षा प्रणाली की स्थापना।
युवा-प्रधान देश के लिए शिक्षा का विशेष महत्व है। हालांकि, आपकी सरकार के ईर्दगिर्द चलते विमर्श में शिक्षा गायब लगती है। क्या सरकार इस पर कुछ कर रही है ?
शिक्षा न केवल जरूरी है, बल्कि टेक्नोलॉजी- ओरिएंटेड,समावेशी, जन-केंद्रित और लोगों द्वारा ही संचालित विकास मॉडल के लिए कुशल मानव संसाधन की समग्रता में सबसे महत्वपूर्ण कारक है। जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने की शैक्षणिक क्षमता का राष्ट्र के भविष्य पर भी गहरा असर पड़ता है। शिक्षा के सभी पहलुओं पर हम काम कर रहे हैं। स्कूल स्तर पर, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, सीखने के परिणामों में सुधार, नवाचार और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने, बुनियादी ढांचे में सुधार, छात्रों के बीच समझ में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। हम स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग जैसी तकनीक का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उच्च शिक्षा में, हम लगातार सीटें बढ़ाने, देश भर में प्रमुख संस्थानों की मौजूदगी बढ़ाने, संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने और अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। हमने 2022 तक एक लाख करोड़ रुपये तक के फंड प्रदान करने के उद्देश्य से हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी (HEFA) की स्थापना की है। अब तक 21,000 करोड़ रुपये स्वीकृत भी किए जा चुके हैं। 52 विश्वविद्यालयों सहित 60 उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान की गई है।
ये विश्वविद्यालय यूजीसी के दायरे में रहेंगे, लेकिन नए पाठ्यक्रम, ऑफ कैंपस सेंटर, कौशल विकास पाठ्यक्रम, अनुसंधान पार्क और किसी भी अन्य नए शैक्षणिक कार्यक्रम को शुरू करने की स्वतंत्रता होगी। उन्हें विदेशी फैकल्टी को हायर करने, विदेशी छात्रों को दाखिला देने, फैकल्टी को प्रोत्साहन-आधारित परिलब्धियां देने, अकादमिक सहयोग में प्रवेश करने और ओपन डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम चलाने की भी छूट होगी। 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' के मिशन को आगे बढ़ाने में भी प्रगति हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के पहले मसौदे में ब्लॉक और पंचायत स्तर से लाखों इनपुट और सुझाव मिले हैं।
विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रिया और रुचि को देखते हुए, समिति परामर्श के दूसरे चरण में है। इस तरह के व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार किए गए शिक्षा नीति के नवीनतम मसौदे को अंतिम दौर के इनपुट के लिए फिर से पब्लिक डोमेन में रखा गया है। शिक्षा में सभी हितधारकों - राज्यों, माता-पिता, शिक्षकों, छात्रों, परामर्शदाताओं को कई बार सुना गया है। हमारा ध्यान इस बात पर है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और हितधारकों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए ताकि यह नीति न रहकर जल्द से जल्द व्यवहार में अपनाई जाए। भारत अपने विशाल जनसांख्यिकीय पूँजी के साथ, दुनिया में एक अग्रणी ज्ञान अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता रखता है।
भ्रष्टाचार से जुड़े कुछेक निर्णयों ने अफसरशाही में अफरा-तफरी सी मचा दी थी...आप क्या संदेश भेजना चाह रहे थे?
भारत की स्वतंत्रता के बाद से, हमारे आगे बढ़ने की राह की सबसे बड़ा रोड़ा भ्रष्टाचार ही है। अमीर हो या गरीब; भ्रष्टाचार की मार का असर सभी पर पड़ता है। लोग या तो किसी लालचवश या एक झटके में पैसा कमाने के लिए या किसी मजबूरी के कारण भ्रष्टाचार के दलदल में उतर पड़ते हैं। लेकिन ये लोग भी चाहते थे कि भ्रष्टाचार रुके। सबके मन में सवाल था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत कौन करेगा और कहां से करेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को हमेशा लोगों, मीडिया, संस्थानों का समर्थन मिला, क्योंकि हर कोई इस बात पर सहमत था कि भारत की विकास यात्रा में भ्रष्टाचार एक बड़ी बाधा है। और यह केवल पैसे से जुड़ा मामला नहीं था। सरकारी दफ्तर हो या बाजार भ्रष्टाचार ने समाज से भरोसा तोड़ा है। थाने जाने वाला व्यक्ति सोचता है कि क्या उसे न्याय मिलेगा और इसी प्रकार बाजार से कुछ खरीदने वाला व्यक्ति मिलावट के डर से आशंकित रहता है।
हमने भ्रष्टाचार की बुराई पर हमला करने के लिए पहले दिन से ही फैसला किया। कहीं न कहीं किसी को तो शुरुआत करनी ही थी, हमने राजनीतिक परिणामों की परवाह किए बिना ऐसा करने का फैसला किया। परिणाम दिखाते हैं कि हम सफल हो रहे हैं। आज न केवल भ्रष्टाचार कम हो रहा है लोगों का व्यवस्था में भरोसा बढ़ रहा है। पिछले 5 सालों में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। हमने व्यवस्थित रूप से भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसा है और टैक्स फाइलिंग और रिफंड प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है। आयकरदाताओं के बैंक खातों में रिफंड अब बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के सीधे जमा किए जा रहे हैं।
इससे भी आगे जाकर हमारा लक्ष्य आयकर रिटर्न के 'फेसलेस मूल्यांकन' को समग्रता से लागू करना है। यह व्यवस्था कर प्रणाली में पारदर्शिता के एक नए युग की शुरुआत करने में अहम भूमिका अदा करेगी। हम अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग हैं कि न तो हम भ्रष्टाचार होने देंगे और न ही किसी तरह के अनुचित उत्पीड़न को बर्दाश्त करेंगे। इसलिए हमने सख़्त कदम उठाए नतीजतन पिछले कुछ हफ्तों में कुछ कर अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया। ठोस आधार पर पहले कार्यकाल में भी सैकड़ों सरकारी अधिकारियों को सेवा से हटा दिया गया था। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से प्रौद्योगिकी की क्षमता का भी लाभ उठाया है, जिसके परिणामस्वरूप 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई।
अनुच्छेद 370 पर आपके फैसले का कई लोगों ने स्वागत किया है और कुछ ने इसका विरोध भी किया है। इस समय वहां एक शांति प्रतीत हो रही है। आपको क्यों लगता है कि जम्मू-कश्मीर के लोग आपके साथ खड़े होंगे?
आप कृपा कर; कश्मीर पर लिए गए निर्णयों का विरोध करने वालों की सूची देखिए – इसमें निजी स्वार्थों में निहित समूह, राजनीतिक वंशवाद, आतंक से सहानुभूति रखने वाले लोग और विपक्ष के कुछ साथी शामिल हैं। राजनीतिक दंगल के इतर यह एक गंभीर महत्व वाला राष्ट्रीय मुद्दा है। भारत की जनता देख रही है कि कठिन लेकिन आवश्यक निर्णय जो पहले असंभव माने जाते थे, अब हकीकत बन रहे हैं। अब यह सब के सामने आ रहा है कैसे अनुच्छेद 370 और 35 (ए) ने जम्मू, कश्मीर और लद्दाख को पूरी तरह से अलग-थलग किया हुआ था। सात दशकों की यथास्थिति स्पष्ट रूप से लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी। लोगों को विकास की मुख्य धारा से दूर रखा गया। आर्थिक गतिविधियों के अभाव का समाज पर नकारात्मक असर पड़ा। गरीबी के दुष्चक्र और अधिक आर्थिक अवसरों की आवश्यकता को लेकर हमारा दृष्टिकोण अलग है।
नई व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए आपका क्या संदेश है?
वहाँ वर्षों तक भय और आतंक का राज रहा। आइए, अब विकास को एक मौका दें। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के मेरे भाई-बहन हमेशा अपने लिए एक बेहतर भविष्य चाहते थे लेकिन धारा 370 के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा था। महिलाओं और बच्चों, एसटी और एससी समुदायों को उनका वाजिब हक नहीं मिला और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों के अभिनव उत्साह का सदुपयोग नहीं किया गया। अब बीपीओ से लेकर स्टार्टअप तक, खाद्य प्रसंस्करण से लेकर पर्यटन तक, कई उद्योग निवेश का लाभ उठा सकते हैं और स्थानीय युवाओं के लिए अवसर पैदा कर सकते हैं।
शिक्षा और कौशल विकास को नया विस्तार मिलेगा। मैं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के अपने बहनों-भाइयों को स्पष्ट रूप से आश्वस्त करना चाहता हूं कि स्थानीय लोगों की इच्छा, उनके सपनों और महत्वाकांक्षा के अनुरूप इन क्षेत्रों का विकास होगा। इन क्षेत्रों के विकास की कमान स्थानीय लोगों के हाथों में ही होगी। धारा 370 और 35(ए) बेड़ियों की तरह थी, जिसमें यहाँ की जनता जकड़ी हुई थी।
ये जंजीरें अब टूट चुकी हैं, लोग इसके बंधन से मुक्त हो चुके हैं और अब वे अपनी तकदीर खुद तय करेंगे। जो लोग जम्मू-कश्मीर पर फैसले का विरोध कर रहे हैं, उन्हें एक बुनियादी सवाल का जवाब देना चाहिए - अनुच्छेद 370 और 35(ए) का बचाव वे किस आधार पर कर रहे है?
इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं होगा और, ये वही लोग हैं जो आम लोगों की मदद करने वाली किसी भी बात का विरोध करने के आदी हैं। लोगों को पानी उपलब्ध कराने की परियोजना है, वे इसका विरोध करेंगे। कहीं रेलवे ट्रैक बन रहा है, वे उसका विरोध करेंगे। उनका दिल सिर्फ उन आतंकवादियों और माओवादियों के लिए धड़कता है, जिन्होंने आम लोगों पर अत्याचार करने के अलावा कुछ नहीं किया। आज हर भारतीय जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के साथ मजबूती के साथ खड़ा है और मुझे विश्वास है कि वे विकास को बढ़ावा देने और शांति लाने के उद्देश्य से सरकार के साथ भी खड़े रहेंगे।
लेकिन क्या लोकतंत्र चिंताजनक का विषय नहीं है? क्या कश्मीर के लोगों की आवाज सुनी जाएगी?
कश्मीर में लोकतंत्र के समर्थन में ऐसी मजबूत प्रतिबद्धता कभी नहीं देखी गई। पंचायत चुनाव के दौरान हुआ मतदान याद है? लोगों ने बड़ी संख्या में मतदान किया और वे दबाव के आगे नहीं झुके। 2018 के नवंबर और दिसंबर में 35,000 सरपंच चुने गए थे और पंचायत चुनाव में रिकॉर्ड 74 फीसदी मतदान हुआ था। पंचायत चुनाव के दौरान कोई हिंसा और रक्तपात नहीं हुआ। वह भी उन स्थितियों में, जब वहां की प्रमुख पार्टियां इस पूरी कवायद को लेकर उदासीन थीं।
यह बहुत संतोषजनक है कि अब पंचायतें विकास और जन कल्याण को आगे बढ़ाने में सबसे आगे हैं। सोचिए, इतने सालों तक सत्ता में रहने वालों ने पंचायतों को मजबूत करने की दिशा में काम करना जरूरी नहीं समझा और याद रखिए, उन्होंने लोकतंत्र पर बड़े-बड़े उपदेश दिए, लेकिन कथनी को कभी करनी की ओर नहीं ले गए। मुझे आश्चर्य हुआ और दुख भी कि 73वां संशोधन जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। ऐसा अन्याय कैसे सहन किया जा सकता है? जम्मू-कश्मीर में पंचायतों को विगत कुछ वर्षों में लोगों की प्रगति हेतु काम करने के लिए अधिक शक्तियां मिलीं और 73वें संशोधन के अंतर्गत पंचायतों को हस्तांतरित किए गए विभिन्न विषयों को जम्मू और कश्मीर की पंचायतों को स्थानांतरित कर दिया गया।
अब मैंने माननीय राज्यपाल से अनुरोध किया है कि ब्लॉक स्तर पर पंचायत चुनाव आयोजित करने की दिशा में काम करें। हाल ही में, जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने 'बैक टू विलेज' कार्यक्रम किया, जहां लोगों की समस्याएँ सुनने और उन्हें दूर करने की मंशा के साथ प्रशासन लोगों के दरवाजे तक पहुँचा। आम नागरिकों ने इस अभियान और सोच की सराहना की। ऐसे प्रयासों के परिणाम सबके सामने हैं। स्वच्छ भारत, ग्रामीण विद्युतीकरण और ऐसी अन्य योजनाएँ जमीनी स्तर तक पहुंच रही हैं। सही मायने में लोकतंत्र यही है।
जो भी हो, मैंने लोगों को भरोसा दिलाया है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी और इन क्षेत्रों के लोग ही यहाँ की जनता का प्रतिनिधित्व करेंगे। हां, जिन लोगों ने कश्मीर पर शासन किया, यह सोचकर कि ऐसा करना उनका दैवीय अधिकार है, वे लोकतंत्रीकरण के इस सशक्त प्रयास को नापसंद करेंगे और लोगों में भ्रम फैलाएंगे। वे नहीं चाहते कि स्वावलंबी, युवा नेतृत्व को उभरने का मौका मिले। ये वही लोग हैं जिनका 1987 के चुनाव में खुद का आचरण संदेहास्पद रहा है। अनुच्छेद 370 की आड़ में स्थानीय राजनीतिक तबका पारदर्शिता और जवाबदेही से बचता रहा है। इसे हटाने से लोकतंत्र और भी अधिक सशक्त होगा।
आप 'मैन वर्सेज वाइल्ड' टीवी शो में नजर आ चुके हैं। एक राजनेता के लिए इस बेहद अपरंपरागत शो में आने के लिए आपको किस चीज ने प्रेरित किया?
कभी-कभी किसी परंपरागत विषय पर बात करने के लिए अपरंपरागत माध्यम का सहारा लेना अच्छा होता है। मेरा मानना है कि जरूरी मुद्दे पर बोलने और कार्य करने के लिए हर समय अच्छा होता है। प्रत्येक समुदाय, हरेक राज्य, देश, और क्षेत्र का कोई न कोई पसंदीदा विषय होता है। जहाँ तक मेरा मानना है कि 'पर्यावरण संरक्षण' का मुद्दा लोगों के गिने-चुने समूहों को प्रभावित करने वाले सभी मुद्दों से भी बड़ा है। यह आज धरती पर हर एक इंसान, पेड़-पौधे, हर एक जीव-जन्तु को प्रभावित करता है। यह मानव जाति की परीक्षा है कि हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर वैश्विक हित के बारे में कितनी तेजी से और कितनी प्रभावी ढंग से सोच सकते हैं। भारत में प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने की एक महान परंपरा रही है। देश भर में, राज्यों और संस्कृतियों में, प्रकृति के अलग-अलग स्वरूपों को पवित्र माना जाता है, जो स्वतः ही इसके संरक्षण में मदद करता है। यह एक तरह से हमारे देश में अंतर्निहित प्राकृतिक संरक्षण तंत्र है।
हमारी परवरिश ऐसी है कि हमें प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। हमें बस इन आदर्शों को याद रखने की जरूरत है। मुझे लगता है कि हम सफल भी हो रहे हैं, क्योंकि हाल ही में जारी आंकड़े बाघों की आबादी में प्रभावशाली वृद्धि दर्शाते हैं। यह कार्यक्रम भारत की वनस्पतियों और जीवों के साथ-साथ इसकी सुंदरता और इसकी समृद्धि को दुनिया को दिखाने का एक अच्छा माध्यम था। प्रकृति से प्रेम करने वाले लोगों के लिए भारत में असंख्य स्थान हैं, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से समृद्ध स्थान हैं, विभिन्न प्रकार के वन्य जीवन से समृद्ध स्थान हैं। पिछले पांच वर्षों में हमारे देश में विदेशी पर्यटकों के आगमन में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मुझे विश्वास है कि बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं के साथ हम 'अतुल्य भारत' की सुंदरता का अनुभव करने के लिए दुनिया भर से और भी अधिक पर्यटकों को देखेंगे।
आप कांग्रेस पार्टी में गतिविधियों को कैसे देखते हैं, जहां राहुल गांधी के सार्वजनिक रूप से कहने के बाद कि वह नहीं चाहते कि किसी गांधी को यह पद मिले; सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं?
कांग्रेस पार्टी में जो हुआ, वह उनके परिवार का आंतरिक मामला है। मैं उस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।
2014 में माना गया था कि आप खाड़ी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित नहीं कर पाएंगे, लेकिन हमने देखा है कि 2014 से खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों में सुधार हो रहा है। वर्तमान में यह कहना गलत नहीं होगा कि खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंध; पिछले 7 दशकों में अब तक से सबसे बेहतरीन दौर में हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?
मुझे लगता है कि इसके दो पहलू हैं। सबसे पहले, लोगों के एक निश्चित तबके का मानना था कि मेरी सरकार और मैं, व्यक्तिगत रूप से; विदेश नीति के मोर्चे पर न केवल खाड़ी क्षेत्र में, बल्कि व्यापक संदर्भ में भी विफल होंगे। वास्तविकता यह है कि दुनिया भर में विदेश नीति पर मेरी सरकार का सफल ट्रैक रिकॉर्ड हर किसी के सामने है। वास्तव में, 2014 में पदभार ग्रहण करने के बाद, मेरी सरकार की आधिकारिक यात्रा पर आने वाले पहले विदेश मंत्री ओमान सल्तनत से थे। इसलिए दूसरे मेरे बारे में क्या राय रखते हैं और वास्तविकता क्या है, यह उनके लिए आत्मनिरीक्षण करने का विषय है। मैं इसके बजाय दूसरे जरूरी पहलू पर ध्यान देना चाहता हूं - भारत के लिए खाड़ी क्षेत्र का महत्व। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसका भारत के साथ गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध है। यह लगभग 90 लाख भारतीयों का ठिकाना है, जिनके परिश्रम का हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है और उन्होंने इस क्षेत्र की समृद्धि में भी अत्यधिक योगदान दिया है। मैंने हमेशा पाया है कि खाड़ी देशों के नेता भारतीय प्रवासियों की समृद्ध उपस्थिति को महत्व देते हैं और एक अभिभावक की तरह उनकी देखभाल करते हैं। यह क्षेत्र हमारी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी हमारा प्रमुख भागीदार है। उनके साथ हमारे संबंध क्रेता-विक्रेता की परिधि से आगे निकल गए हैं। संयुक्त अरब अमीरात ने हमारे सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व प्रोग्राम में भाग लिया है, और संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब दोनों भारत में दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी परियोजना में निवेश करने वाले हैं। पहली बार, भारतीय कंपनियों ने खाड़ी इलाकों के गैर-समुद्रीय तेल क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त किया है।
मैंने इस क्षेत्र के सभी देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने पर हमारी विदेश नीति पर ध्यान केंद्रित करने का विशेष प्रयास किया है। आधिकारिक स्तर से लेकर राजनीतिक स्तर तक; इस क्षेत्र में हमारी पहुंच अभूतपूर्व रही है। मैंने खुद कई बार इस क्षेत्र का दौरा किया है और हमने भारत में इस क्षेत्र के कई नेताओं की मेजबानी भी की है। दुनिया में कहीं भी मेरी सबसे करीबी और गर्मजोशी भरी बातचीत खाड़ी क्षेत्र के नेताओं के साथ है। हम नियमित रूप से संपर्क में हैं। और, मुझे लगता है कि इस दृष्टिकोण, इस निरंतर जुड़ाव के कारण हमारी नीति काफी हद तक सफल रही है। हमने किसी भी किस्म की गलतफहमी, संदेह आदि से इसे खराब नहीं करने दिया। हम सभी देशों के साथ बहुत खुले हुए हैं, और उन्होंने भी गर्मजोशी और मित्रता के साथ प्रत्युत्तर दिया है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत और खाड़ी देशों ने न केवल एक साझेदारी की वास्तविक क्षमता का पता लगाना शुरू ही किया है जो आपसी लाभ से बहुत आगे तक जाएगी और न केवल हमारे साझा और विस्तारित पड़ोस में बल्कि वृहद दुनिया में भी शांति, प्रगति और समृद्धि को आधार प्रधान कर सकती है।
2019 के चुनाव के दौरान बहुत से लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि आपको बहुमत नहीं मिल सकता है। कुछ ने कहा कि 2014 एक ‛ब्लैक स्वान’ पल था। जब आप चुनाव प्रचार कर रहे थे तो आपका अंतर्मन क्या कह रहा था और आप जीत को लेकर कितने आश्वस्त थे?
अपनी विचारधारा, अन्य किसी उद्देश्य या पूर्वाग्रह से ग्रसित जमीनी हकीकत को झुठलाने वाले लोगों का एक समूह है, जो उन्हें हराने के लिए तर्क गढ़ता है, जिन्हें वे नापसंद करते हैं। लेकिन, एक वक्त ऐसा भी आता है जब जमीनी हकीकत सामने आ ही जाती है। वे, लोग इसी श्रेणी के हैं।
लोगों के मन में भ्रम पैदा करने के लिए झूठा डेटा इस्तेमाल करते हैं और ऐसी भ्रांति भी गढ़ते हैं कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिलेगा, बीजेपी सरकार तो बनाएगी मगर उसे नए नेता की जरूरत होगी, बीजेपी को नए सहयोगियों की जरूरत होगी वगैरह-वगैरह। यह समूह बार-बार पकड़े गए हैं पर अपने व्यवहार में वह अडिग हैं। हमारे देश में, इस तरह के लोगों द्वारा जनता की आकांक्षाओं की अनदेखी की कीमत पर चुनावी विश्लेषण; पार्टियों, संभावित गठबंधनों, दशकों पुराने गठजोड़ पर आधारित परिवारों की चमक-दमक को ध्यान में रख कर किया जाता है।
2014 और 2019 में, जिन्होंने लोगों से संवाद और उनकी प्राथमिकताओं को समझने का विकल्प चुना, वे जानते थे कि क्या हो रहा है। जहां तक हमारी बात है, हम चुनाव जीतने के लिए काम नहीं करते, हम जनता का विश्वास जीतने के लिए काम करते हैं। यदि हम उनका विश्वास नहीं जीतते हैं तो केवल सरकारी लक्ष्यों को पूरा करने से बहुत कुछ हासिल नहीं होगा।
“सरकारी धन से ज्यादा जनता के मन की ताकत होती है” और हम लोगों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हैं; चुनाव परिणाम तो उसका एक सह-उत्पाद हैं। पिछले 20 वर्षों से मैं कई अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल रहा हूँ और एक भी चुनाव ऐसा नहीं गया, जिसमें मेरी हार की भविष्यवाणी न की गई हो। विषवमन करने वाले लोग हैं और मैं उनके सकुशल होने की कामना करता हूं। विशेषकर, 2019 के बारे में बात करते हुए, मैं आपको बता सकता हूँ कि हम अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर बहुत आश्वस्त थे।
यह विश्वास हमारी सरकार की उपलब्धियों तथा जिस प्रकार हमने सुशासन और विकास के एजेंडे पर काम किया है, उससे उपजा है। मैं जहां भी गया, मुझे बीजेपी और एनडीए के लिए समर्थन की लहर ही दिखी। जनता ने मन बना लिया था कि 21वीं सदी के भारत में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, वंशवाद की राजनीति स्वीकार्य नहीं है। हम विकास और परिणामों से निर्धारित राजनीति के युग में रहते हैं न कि पुरानी बयानबाजी और कोरे दिखावे के। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस पार्टी ने न्याय (NYAY) योजना के बारे में बात की। शायद यह अब तक का उनका सबसे बड़ा चुनावी वादा था, मगर जनता ने ऐसे खोखले वादों को भी परख लिया। उन्होंने कांग्रेस में इस तरह की योजना को पूरा करने की ईमानदारी और क्षमता नहीं देखी तो कोई आश्चर्य भी नहीं कि 72,000 रुपये का वादा करने वाले 72 सीट भी नहीं जुटा सके!