प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इजरायल के प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहू को केरल से पुरावशेष के दो सेट की प्रतिकृतियां उपहार स्वरूप भेंट की जिन्हें भारत में यहूदियों के लंबे इतिहास में प्रमुख कलाकृतियों के तौर पर जाना जाता है।
इनमें तांबे के प्लेटों के दो अलग-अलग सेट शामिल हैं। समझा जाता है कि इन पर 9-10वीं शताब्दी सी. ई. में लिखा गया होगा।
तांबे के प्लेटों का पहला सेट भारत में कोचीन यहूदियों के लिए एक महत्वपूर्ण पुरावशेष है। इसे हिंदू राजा चेरामन पेरुमल (भास्कर रवि वर्मा के रूप में चर्चित) द्वारा यहूदी नेता जोसेफ रब्बन को दिए गए वंशानुगत शाही विशेषाधिकारों और सुविधाओं का वर्णन करने वाला चार्टर माना जाता है। यहूदियों के पारंपरिक विवरणों के अनुसार, जोसेफ रब्बन को बाद में शिंघली के राजकुमार के रूप में ताज पहनाया गया था। सिंघली उस समय क्रांगानोर के समकक्ष एक स्थान था। क्रांगानोर वही जगह है जहां यहूदियों ने कोच्चि एवं मालाबार में अन्य जगहों की ओर कूच करने से पहले सदियों तक धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वायत्तता का आनंद उठाया था। स्थानीय यहूदियों ने एक बार शिंघली/क्रांगानोर की एक मुट्ठी मिट्टी हरेक ताबूत में डाल दिया था क्योंकि उसे एक पवित्र स्थान और 'दूसरा यरूशलेम' के रूप में माना जाता है। इन प्लेटों की प्रतिकृति को कोच्चि के मट्टानचेरी में परदेशी सिनेगॉग के सहयोग से तैयार किया गया है।
तांबे की प्लेटों का दूसरा सेट भारत के साथ यहूदी व्यापार के इतिहास का सबसे प्राचीन दस्तावेज माना जाता है। इन प्लेटों में स्थानीय हिंदू शासक द्वारा भूमि आवंटन एवं कर विशेषाधिकार अनुदान का वर्णन एक चर्च से किया है। साथ ही इसमें पश्चिम एशियाई एवं भारतीय व्यापारिक संगठनों को कोल्लम में व्यापार की निगरानी का भी वर्णन किया गया है। पश्चिमी एशियाई संगठनों में मुस्लिम, ईसाई, जोरोऑट्रियंस आदि शामल हैं। साथ ही इसमें यहूदियों के एक समूह को भी शामिल किया गया है जिसने जुडियो-फारसी और संभवतः अरबी एवं पहलवी (मध्य फारसी) में भी में हस्ताक्षर किए थे। ऐसा लगता है कि इन प्लेटों पर उनके हस्ताक्षर उकेरे गए हैं जिन्हें उस लिपि से अपरिचित किसी स्थानीय कामगार द्वारा काटा गया होगा। इन प्लेटों की प्रतिकृति को तैयार करने में केरल के तिरुवल्ला स्थित मालंकरा मार थोमा सीरियन चर्च के सहयोग उल्लेखनीय रहा।
साथ ही प्रधानमंत्री ने इजरायल के प्रधानमंत्री को एक टोरा स्क्रॉल भी भेंट किया जिसे केरल के परदेसी यहूदी समुदाय ने दान दिया था। करीब सौ साल पहले हस्तलिखित यह स्क्रॉल कोच्चि के परदेसी सिनेगॉग को समर्पित किया गया था जिसे 1568 में बनाया गया था। टोरा लकड़ी के एक बक्से में लकड़ी के दांतों से घिरा है जो चांदी की चादर से ढंका हुआ है और धातु का मुकुट पुष्प आभूषण की तरह सोने की चादरों से ढंका है। इसे दक्षिण्ा भारत की सजाबटी वस्तुओं से क्राउन को ठेठ तरीके से सजाया गया है।
PM Modi presented PM Netanyahu replicas of 2 sets of relics from Kerala that, regarded as key artifacts in the long Jewish history in India. pic.twitter.com/OywLabMQoO
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They comprise two different sets of copper plates that are believed to have been inscribed in 9-10th century C.E.
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The first set of copper plates is a cherished relic for the Cochini Jews in India. pic.twitter.com/ZcR2AmICyW
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It is regarded as a charter describing the grant of hereditary royal privileges and prerogatives (1/2)
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By the Hindu King, Cheraman Perumal (often identified as Bhaskara Ravi Varma) to the Jewish leader Joseph Rabban. (2/2)
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According to traditional Jewish accounts, Joseph Rabban was later crowned as the Prince of Shingli, a place in or equated with Cranganore.
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Cranganore is where Jews enjoyed religious and cultural autonomy for centuries, before they moved to Cochin and other places in Malabar.
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Local Jews once placed in each coffin a handful of earth from Shingli/Cranganore that was remembered as a holy place & a “second Jerusalem”.
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The replica of these plates was made possible with the cooperation of the Paradesi Synagogue in Mattancherry, Kochi.
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The second set of copper plates is believed to be the earliest documentation of the history of Jewish trade with India. pic.twitter.com/GmWGQPHp1M
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These plates describe the grant of land and tax privileges by the local Hindu ruler to a church. (1/2)
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And oversight of trade in Kollam to West Asian and Indian trading associations. (2/2)
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West Asian association included Muslims, Christians, Zoroastrians, as also a group of Jews. (1/2)
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Who signed in Judeo-Persian and possibly also in Arabic and Pahlavi (Middle Persian). (2/2)
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The plates bear their signatures that appear to have been cut into the plates by a local workman unfamiliar with the script.
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The replica of these plates was made possible with the cooperation of Malankara Mar Thoma Syrian Church in Thiruvalla, Kerala.
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Handwritten over a hundred years ago, the scroll had been dedicated to the Paradesi Synagogue in Kochi that had been built in 1568.
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The Torah is enclosed on wooden staves in a wooden case adorned with silver sheets. (1/n)
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And a metal crown covered in gold sheets in floral ornament style, bearing motifs typical of lamps and decorations of south India. (2/2) pic.twitter.com/KWNXltBYBY
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