यदि इंसान के द्वारा बनाई गई कोई चीज अजर-अमर है, तो वह है हमारा संविधान: प्रधानमंत्री मोदी 
देश को एक सूत्र में बांधने वाला संविधान बनाना आसान नहीं है: पीएम मोदी 
हमारा संविधान सिर्फ एक किताब नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक दर्शन भी शामिल है: प्रधानमंत्री 
हमारे संविधान से ही हम लोकतंत्र के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं: प्रधानमंत्री मोदी 
जीएसटी ने देश को एकजुट किया है और 'एक राष्ट्र, एक कर' के सपने को सच करके दिखाया है: पीएम मोदी 
सरकार और न्यायपालिका को एक परिवार के रूप में मिलकर लोगों की सेवा करनी चाहिए: प्रधानमंत्री 
लोक अदालतों में मुकदमे से पूर्व वाले लगभग 18 लाख मामलों और 22 लाख लंबित मुकदमों का निपटारा किया गया: प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज राष्‍ट्रीय विधि दिवस - 2017 के अवसर पर नई दिल्‍ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम के समापन सत्र को संबोधित किया।

उन्‍होंने संविधान को हमारे जनतांत्रिक ढांचे की आत्‍मा के रूप में वर्णित किया। उन्‍होंने कहा कि यह दिन संविधान निर्माताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है। उन्‍होंने कहा कि संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है और उन लोगों को गलत साबित कर दिया जो इसे संभव नहीं मानते थे।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान डॉ. बी. आर. अम्‍बेडकर, डॉ. सच्चिदानंद सिन्‍हा, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. सर्वपल्‍ली राधा‍कृष्‍णन सहित कई नेताओं के कथनों का व्यापक तौर पर उल्‍लेख किया। संविधान एवं शासन के महत्‍वपूर्ण पहलुओं को उजागर करने के लिए इन कथनों को उद्धृत किया गया। इन विषयों में संविधान की लंबी आयु (अथवा अमरता), इसकी कार्यक्षमता और लचीलापन शामिल थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान हमारे लिए एक अभिभावक रहा है। उन्होंने जोर दिया कि 'वी, द पीपल' यानी हम लोगों को भी उन अपेक्षाओं के अनुसार काम करना चाहिए जो हमारे अभिभावक - संविधान - का हमसे है। उन्होंने कहा कि देश की जरूरतों और उसकी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शासन के विभिन्न संस्थानों को एक-दूसरे को समर्थन और मजबूती देना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि अगले पांच साल के दौरान हमें एक नए भारत- एक ऐसा देश जो हमारे स्‍वतंत्रता सेनानियों का सपना था- के निर्माण के लिए अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान को एक सामाजिक दस्‍तावेज के रूप में भी वर्णित किया गया है। उन्‍होंने कहा कि यह वास्‍तव में दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि आजादी की शुरुआत में जिन कमजोरियों की पहचान की गई थी उन्‍हें आज तक पूरी तरह खत्‍म नहीं किया जा सका है। उन्‍होंने कहा कि वर्तमान समय को स्‍वर्णकाल कहा जा सकता है जब भारत आत्‍मविश्‍वास से परिपूर्ण हो। उन्‍होंने कहा कि इस रचनात्‍मक माहौल का इस्‍तेमाल तेजी से नए भारत के निर्माण में किया जाना चाहिए।

'जीवन-यापन की सुगमता' के महत्‍व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार की भूमिका नियामक से कहीं अधिक एक समन्‍वयक के रूप में होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने 'जीवन-यापन की सुगमता' के लिए पिछले तीन साल के दौरान उठाए गए कदमों के उदाहरण दिए जैसे, तीव्र आयकर रिफंड, तीव्र पासपोर्ट डिलिवरी आदि। उन्‍होंने कहा कि इन सब कदमों से समाज के सभी वर्गों पर सकारात्‍मक प्रभाव पड़ा है। उन्‍होंने कहा कि करीब 1,200 पुराने एवं बेकार कानूनों को खत्‍म कर दिए गए हैं। उन्‍होंने कहा कि 'जीवन-यापन की सुगमता' से 'कारोबारी सुगमता' पर भी सकारात्‍मक प्रभाव पड़ा है। उन्‍होंने कहा कि न्‍यायपालिका के पास लंबित मामलों को तेजी से निपटाने में लोक अदालत एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। उन्‍होंने 'न्‍याय तक आसान पहुंच' में सुधार के लिए उठाए जा तमाम कदमों का कदमों का भी उल्‍लेख किया।

बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ने, सुरक्षा बलों एवं नागरिक कर्मचारियों कर तैनाती और विकास कार्यक्रमों के प्रभावित होने जैसे अन्‍य मुद्दों का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने केंद्र एवं राज्‍य सरकारों के लिए एक साथ चुनाव कराने की संभावनाओं पर रचरात्‍मक चर्चा के लिए आह्वान किया।

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन संविधान की रीढ़ है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय के फैसलों को भी उद्धृत किया।

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