माननीय। भारत के मुख्य न्यायाधीश,
मंच पर उपस्थित अन्य गणमान्य व्यक्तियों,
भारत और विदेशों से आए न्यायिक जन
आमंत्रित व्यक्तियों, प्रतिनिधिगणों, देवियों और सज्जनों!
मैं कानून के शासन और सतत विकास पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए बहुत हर्ष महसूस कर रहा हूं। मैं विदेश से आए अपने सभी मित्रों का स्वागत करता हूं और उन्हें उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए धन्यवाद देता हूं।
यह कार्यशाला 2015 के दौरान आयोजित दो प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तुरंत बाद आयोजित की जा रही है। इनमें से एक जलवायु परिवर्तन पर आयोजित पेरिस समझौता है और दूसरा सतत विकास लक्ष्यों पर किया गया करार है। यह सम्मेलन आगे चर्चा करने के लिए उचित समय पर एक लाभदायक अवसर प्रदान करता है। यह कार्यशाला न केवल राष्ट्रीय संदर्भ में बल्कि वैश्विक संदर्भ में भी बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे उम्मीद है कि आप इस कार्यशाला में मानवता के कल्याण और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं को ध्यान में रखेंगे।
सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में आने वाले दिनों में नियमों और कानून की बहुत अहम भूमिका है। इसलिए कानून ऐसे होने चाहिए जिनसे इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिले। दुर्भाग्य से पर्यावरण संबंधी चिंताओं को कभी-कभी कम आंक लिया जाता है। हमें यह महसूस करना चाहिए कि अगर इस संबंध में कोई विवाद है तो इससे किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। मुझे उम्मीद है कि आप कानून के साथ-साथ सामाजिक ढांचे पर आधारित पर्यावरण न्याय की पूरी दुनिया में स्थापना सुनिश्चित करने के लिए कोई रास्ता सुझाएंगे।
मैं पिछले वर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में शामिल हुआ, जहां 2030 के लिए स्थायी विकास लक्ष्यों को अपनाया गया। ये लक्ष्य हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय जुड़ाव की समझ को प्रतिबिंबित करते हैं।
ऐसा सीओपी-21 के बाद हुआ जहां हमने सार्थक कदम उठाने के लिए अहम योगदान दिया। सीओपी-21 में हमारी प्रतिबद्धताएं भारतीय लोकाचार को रेखांकित करती हैं जिनका उद्देश्य मानव जीवन की शैली में बदलाव लाने के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों के तरीके में परिवर्तन भी है। पर्यावरण की समस्याएं मुख्य रूप से हमारी विनाशकारी जीवनशैली के कारण हैं। अगर हम सार्थक प्रभाव बनाना चाहते हैं तो हम सभी को कानून की किताबें पढ़ने से पहले अपने अंदर झांकने की जरूरत है।
मित्रों!
मैंने हमेशा अनुभव किया है कि कोई भी चीज जो टिकाऊ नहीं है उसे विकास नहीं कहा जा सकता। हमारी संस्कृति में विकास का अर्थ 'बहुजन सुखाय बहुजन हिताय' 'सर्वे भवन्तु सुखिनो' और 'लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु' है। ऐसा तब नहीं हो सकता जब तक विकास की प्रक्रिया समावेशी और टिकाऊ न हो। भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए योग्यता के साथ किसी भी तरह के समझौते को विकास नहीं कहा जा सकता। भारत ने सदैव स्थायित्व में विश्वास किया है। हमारे लिए प्रकृति के नियमों की बहुत महत्ता है। अगर हम सभी उनका पालन करें तो मानव निर्मित कानूनों की जरूरत ही नहीं पढ़ेगी। केवल सह-जीवन और सह-आस्तित्व की आदत ही हमारी मदद के लिए पर्याप्त होगी। आधुनिक शब्दावली में हितधारक नामक एक शब्द है। कोई रास्ता तभी स्थायी बनता है जिससे हितधारकों को लाभ पहुंचे। मैं यहां पर थोड़ा सचेत भी करना चाहूंगा कि हिस्सेदारी स्वाभाविक होनी चाहिए। यह अंतर्निहित होनी चाहिए। प्रकृति शुद्ध है। इसलिए शुद्ध इरादे ही इसे बरकरार रख सकते हैं।
भारत में प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने का लंबा इतिहास रहा है। हम प्रकृति की पूजा करते हैं। हम सूर्य, चंद्रमा, नदियों, पृथ्वी, पेड़, पशु, वर्षा, वायु और अग्नि की भी पूजा करते हैं। प्रकृति के इन तत्वों को हमारी संस्कृति ने देवताओं का दर्जा दिया है। इसके अलावा भारतीय पौराणिक कथाओं में अधिकांश देवी और देवताओं का संबंध किसी ना किसी पशु और पेड़ के साथ है। इस प्रकार प्रकृति के प्रति सम्मान हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और ऐसा पीढ़ियों से चलता आ रहा है। पर्यावरण की सुरक्षा हमारे लिए स्वाभाविक है। यह मजबूत परंपरा हम सभी के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।
संस्कृत में एक प्रसिद्ध उक्ति है:
सर्वेशां पुर्णंभवतु । सर्वेशां मङ्गलंभवतु ।।
जिसका मतलब है:
हम हमेशा सभी स्थानों पर हर समय सभी के कल्याण, शांति, मनोकामना पूर्ति और स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते हैं।
यह हमारी प्रतिबद्धता है; आज की नहीं, बल्कि कालातीत से। अगर हम इसे याद रखें, इसका अनुसरण करें और इसके अनुसार कार्य करें तो भारत टिकाऊ विकास में विश्व का नेतृत्व कर सकता है। उदाहरण के लिए योगाभ्यास का उद्देश्य मानसिकता और भौतिक इच्छाओं के बीच संतुलन स्थापित करना है। इसका उद्देश्य बेहतर जीवन शैली का निर्माण करना है। जब मैं योग की बात करता हूं तो इसके केंद्र में सिर्फ शरीर नहीं होता। योग बहुत परिपूर्ण है। यम, नियम, प्रत्याहार के विचार हमें अनुशासन, संयम और नियंत्रण सिखाते हैं।
टिकाऊ विकास पर चर्चा शुरू होने के काफी पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि हमें ‘न्यासी’ के रूप में काम करना चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम यह सुनिश्चित करें कि हमारी भावी पीढ़ी के लिए एक स्वास्थ्यवर्द्धक दुनिया छोड़ कर जाएं।
मित्रो !
मुझे विश्वास है कि हम सभी इस बात पर सहमत हैं कि गरीबी पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसलिए गरीबी मिटाना मेरी सरकार का एक बुनियादी लक्ष्य है। अपने महत्वपूर्ण मूल्यों से निर्देशित होकर हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रहे हैं। हम 1.25 अरब भारतीयों के लिए एक ऐसा मददगार माहौल बनाना चाहते हैं जिसमें वे विकास कर सकें और समृद्ध हो सकें। हम शिक्षा, कौशल विकास, डिजिटल संपर्कता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि हम युवाओं के लिए बेहतरीन ईको-प्रणाली विकसित हो सकें। हम इसे टिकाऊ तरीके से करना चाहते हैं।
हम यह जानते हैं कि अपने विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ऊर्जा मांग को पूरा करना बहुत जरूरी है। यही कारण है कि जिन चुनौतियों को हमने सबसे पहले लिया है, उनमें 175 गीगा वॉट नवीकरणीय ऊर्जा का सृजन है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम अग्रसर हैं।
हमने स्वच्छ भारत और अविरल गंगा पहल को भी शुरू किया है। मुझे यह जानकार प्रसन्नता है कि देश के लाखों लोग इस स्व्च्छता अभियान से जुड़ गए हैं। मैं इस अवसर पर प्रतिभागियों को आमंत्रित करता हूं कि वे इस पर विचार करें कि सामूहिक प्रयासों को हम कैसे मजबूत बना सकते हैं। मुझे यह जानकार प्रसन्नता है कि इस कार्यशाला में प्रदूषण और कचरा प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाएगी। यह ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें सक्रिय रूप से हल करने की आवश्यकता है। मैं आशा करता हूं कि इस तरह की पहलों को मजबूत करने के लिए आपकी सिफारिशें मिलेंगी।
मित्रो!
भारत में हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे अभूतपूर्व नहीं हैं। अन्य सभ्यताओं ने भी ऐसी ही समस्याओं का सामना किया है और उन पर विजय प्राप्त की है। मुझे विश्वास है कि हम अपने सामूहिक प्रयासों से इस काम में सफल होंगे। ऐसा करते समय हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने विकास की आवश्यकताओं और टिकाऊ विकास के बीच विरोधाभास को टालें। हमारी संस्कृति हमें व्यष्टि और समष्टि के बीच एकता सिखाती है। यदि हम ब्रह्मांड के साथ एकाकार होंगे तो हितों का टकराव नहीं होगा।
इसलिए मेरी सरकार जलवायु परिवर्तन को समस्या के बजाय चुनौतियों को दूर करने के लिए एक अवसर के रूप में देखती है। हमें योग: कर्मसु कौशलम् के दर्शन को अपनाने की आवश्यकता है। जब मैं ‘जीरो डिफेक्ट एंड जीरो इफेक्ट’ निर्माण की बात करता हूं, तो मेरा मंतव्य इस दर्शन से होता है। मैंने इस विषयवस्तु पर अपनी पुस्तक ‘कन्वीनियंट ऐक्शन: कंटीन्यूटी फॉर चेंज’ में अपने विचार व्यक्त किए हैं।
मित्रो!
कानून की सत्ता यह कहती है कि किसी दूसरे की गलतियों के लिए किसी अन्य को दंडित नहीं किया जा सकता है। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जो जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए बिल्कुल जिम्मेदार नहीं हैं। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो अब भी आधुनिक सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं। उनके ऊपर किसी भी अन्य की तुलना में जलवायु परिवर्तन का अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। इनमें चक्रवात, सूखा, बाढ़, लू और समुद्र का बढ़ता जलस्तर शामिल हैं। जलवायु संबंधी आपदाओं का सामना करने के लिए गरीब, कमजोर और वंचित समूह के लोगों के पास बहुत कम संसाधन हैं। दुर्भाग्य से उनकी वर्तमान और भावी पीढि़यों को भी पर्यावरण संबंधी समझौतों और कानूनों का भार उठाना पड़ता है। इसीलिए मैं हमेशा ‘जलवायु न्याय’ की बात करता हूं। इसके अलावा एक देश के नियम, कानून और सिद्धांत हूबहू दूसरे देश पर लागू नहीं हो सकते। हर देश की अपनी चुनौतियां हैं और उनसे लड़ने के अपने उपाय हैं। अगर हम नियमों को समान रूप से सभी देशों और लोगों पर लागू करेंगे, तो उससे काम नहीं बनेगा।
टिकाऊ विकास हमारी जिम्मेदारी है। मुझे पूरा विश्वास है कि हम मिलकर इसे प्राप्त कर सकते हैं। मुझे यह भरोसा भी है कि हम प्रकृति के साथ तादात्म्य बिठाकर विकास के रास्ते खोल सकते हैं। हम उन्हें अपने पुरखों के बताये रास्ते पर चलकर हासिल कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि इस कार्यशाला के दौरान होने वाली चर्चा से इन चुनौतियों को समझने के लिए एक साझा दृष्टिकोण सामने आएगा।
मैं इस सम्मेलन की भारी सफलता के लिए कामना करता हूं।
धन्यवाद।
I hope that you will show the way to build and ensure climate justice across the globe based on legal as well as social frameworks: PM Modi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
I have always felt that anything which is not sustainable cannot be called development: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
Join Live: https://t.co/Iy8hu3Nre5
In our culture, development means ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’,‘सर्वे भवन्तु सुखिनो’ and 'लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
We in India have a strong tradition of living in harmony with nature. We worship nature: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
We always pray for welfare, peace, fulfillment and sustainability of all; at all places and for all times: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
Much before debate on sustainable development began Gandhi ji said that we must act as trustees and use natural resources wisely: PM Modi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
It is our moral responsibility to ensure that we leave a healthy planet for future generations: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
Poverty is the biggest challenge for environment. Therefore eradication of poverty is one of the fundamental goals of my government: PM Modi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016
Sustainable development is our responsibility. I am confident that we can achieve it collectively: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) March 4, 2016