प्रधानमंत्री मोदी ने समुद्री भारत शिखर सम्मेलन 2016 का उद्घाटन किया
समुद्री परिवहन परिवहन का सबसे व्यापक माध्यम बन सकता है। यह परिवहन का सबसे पर्यावरण के अनुकूल माध्यम भी है: प्रधानमंत्री
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारत में पानी और नदी नेविगेशन नीति के जनक है: प्रधानमंत्री
मैं इस शुभ दिन पर डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर को सम्मानपूर्वक नमन करता हूँ: प्रधानमंत्री
बाबासाहेब ने पानी, नेविगेशन और बिजली से संबंधित दो मजबूत संस्थानों का निर्माण किया: प्रधानमंत्री
सात प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर की जीडीपी के साथ भारत आज सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था: प्रधानमंत्री
हम भारतीय एक शानदार समुद्री विरासत के वारिस: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
वैश्विक समुद्री क्षेत्र में भारत की स्थिति को फ़िर से मजबूत करने और इसे पुराना गौरव दिलाने के लिए हमारी सरकार प्रयासरत: प्रधानमंत्री
हमारा विजन है - 2025 तक बंदरगाह की क्षमता 1400 लाख टन से बढ़ाकर 3000 लाख टन करना: प्रधानमंत्री
भारत का एक शानदार समुद्री इतिहास रहा है। हम समुद्र तटीय क्षेत्र के भविष्य को और बेहतर करने की दिशा में अग्रसर हैं: प्रधानमंत्री

आदरणीय महाराष्ट्र के राज्यपाल महोदय;

आदरणीय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री;

कोरिया के महामहिम मंत्री श्री किम यंग-सक

हमारे केंद्रीय जहाजरानी मंत्री, श्री नितिन गडकरी

मंच पर विराजमान अन्य पदाधिकारीगण;

प्रतिनिधियों, देवियों और सज्जनों!

मेरीटाइम इण्डिया समिट में आपके साथ होकर एवं आपका स्वागत कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है। यह प्रथम अवसर है जब भारतवर्ष द्वारा इतने बड़े स्तर पर एक वैश्विक आयोजन किया जा रहा है। भारत के समुद्रीय केंद्र में इस आयोजन में हि्सा ले रहे सभी सम्मानित अतिथियों का मैं तहेदिल से स्वागत करता हूं। मैं आश्वस्त हूं कि सम्मेलनों एवं प्रदर्शनियों समेत यह आयोजन मेरीटाइम क्षेत्र में नये अवसरों एवं प्रचलनों को दिखाएगा।

हम सभी जानते हैं कि समुद्र पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा कवर करते हैं। हम यह भी जानते है कि पृथ्वी पर मौजूद पानी का सत्तानवे प्रतिशत समुद्रों में पाया जाता है। इसलिये समुद्री परिवहन आवागमन का सर्वाधिक विस्तृत साधन हो सकता है। पर्यावरण के लिहाज से भी यह सबसे अच्छा परिवहन है। हालांकि, इस तथ्य में एक पक्ष और है। वह यह है कि हमारे ग्रह पर रहने योग्य स्थानों का निन्यानवे प्रतिशत समुद्र में है। इसका अर्थ यह है कि हमारी जीवनचर्या, परिवहन के साधन एवं व्यापार का आचार समुद्रों के पारिस्थितिकी तंत्र को हानि न पहुंचाए। साथ ही समुद्री सुरक्षा, आवागमन की स्वतंत्रता एवं समुद्री रास्तों की संरक्षा एवं सुरक्षा भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों ने दर्शाया है कि समुद्रों एवं हिमनदों की पारिस्थितिकी में परिवर्तन मानव व्यवहार तक में बदलाव ला सकता है। द्वीप देशों एवं विशेषकर समुद्रवर्ती समाजों में यह पहले ही चिंता का कारण बना हुआ है। मैं आशा करता हूं कि इस समिट में समुद्र संबंधी आर्थिक मसलों पर चर्चा के दौरान इन बिंदुओं पर चर्चा होगी। समुद्र में होने वाली डकैती का खात्मा इसका अच्छा उदाहरण है कि समुद्रवर्ती देशों के संयुक्त प्रयासों से किस प्रकार उत्कृष्ट नतीजे पाए जा सकते हैं।

मित्रों! 14 अप्रेल 2016 को इस महत्वपूर्ण समिट को आयोजित करने का एक कारण है। आज भारत के एक महान पुत्र जो मुंबई में भी रहे थे एवं कार्य किया था, की 125 वीं जन्मशती है। मैं डॉक्टर बी आर अम्बेडकर की बात कर रहा हूं जो हमारे संविधान के शिल्पकार हैं। वह भारत में जलक्षेत्र एवं नदियों में होने वाली परिवहन नीति के निर्माता भी हैं। आज के शुभ दिन मैं डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को अगाध सम्मान देता हूं। मैं यह अभिलाषा भी रखता हूं एवं प्रार्थना करता हूं कि उनकी शिक्षाएं देश निर्माण हेतु हमारा मार्ग प्रशस्त करती रहें।

हम में से बहुत लोगों को यह पता नहीं है कि बाबासाहब ने पानी, नौपरिवहन एवं विद्युत संबंधी दो शक्तिशाली संस्थाओं की रचना की है। यह थेः केंद्रीय जलमार्ग, सिंचाई एवं नौपरिवहन आयोग एवं केंद्रीय तकनीकी वैद्युत बोर्ड। इन संस्थाओं का निर्माण करते समय उनके विचार उनकी ज़बरदस्त दूरदर्शिता का उदाहरण हैं।

3 जनवरी, 1945 को उनके संबोधन से मैं उद्वरण देता हूंः

"इन दो संस्थाओं की रचना हेतु निहित उद्देश्य इस पर सुझाव देना है कि जल संसाधन किस प्रकार बेहतर इस्तेमाल किये जा सकते हैं एवं एक परियोजना का सिंचाई के अतिरिक्त अन्य कार्य हेतु किस तरह उपयोग हो सकता है।"

डॉक्टर अम्बेडकर ने हमारे देश के लाखों निर्धनों की ख़ुशहाली के अध्याय की नींव के तौर पर नयी नौपरिवहन नीति की महत्ता पर ज़ोर दिया था। मैं यह बता कर प्रसन्न हूं कि बाबासाहब की दूरदर्शिता एवं अग्रदृष्टि के अनुरूप हमने राष्ट्रीय जलमार्गों की शुरुआत की है। सात प्रतिशत से अधिक की विकास दर के साथ भारत आज तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक ने आने वाले दिनों में और बेहतर संभावनाएं जताई हैं। हमारी विकास दर को तेज़ एवं समावेशी बनाना सुनिश्चित करने के लिये हम सक्रिय कदम उठा रहे हैं। यह समिट भारत को आर्थिक तौर पर शक्तिसम्पन्न, सामाजिक एवं तकनीकी तौर पर समृद्ध बनाने के बाबासाहब के सपनों को सच करने की दिशा में एक और कदम है। 

मेरी समझ में लगभग चालीस देशों से 4500 से भी अधिक पदाधिकारी एवं प्रतिनिधि इस समिट में हिस्सा ले रहे हैं। मैं विशेषकर प्रसन्न हूं कि कोरियाई गणतंत्र इस आयोजन में साझीदार देश है। मैं कोरिया के राष्ट्रपति को एवं यहां उपस्थित वरिष्ठ मंत्री श्री किम यंग-सक को धन्यवाद देता हूं।   

मित्रों! हम भारतीय शानदार समुद्री विरासत के उत्तराधिकारी हैं। लगभग 2500 ईस्वी पूर्व हड़प्पा सभ्यता के दौर में गुजरात के लोथल में विश्व का प्रथम बंदरगाह बनाया गया था। यह बंदरगाह जहाज़ों को जगह देने एवं उनकी देखभाल करने की सुविधाओं से युक्त था। इसका निर्माण ज्वारीय प्रवाहों के अध्ययन के बाद किया गया था।  

दो हज़ार वर्ष पहले लोथल के अतिरिक्त कुछ अन्य भारतीय बंदरगाह भी थे जो वैश्विक समुद्री व्यापार के प्रधान चालक थे। इनमें यह शामिल थेः  

. बैरिगज़ा- जो आज गुजरात में भरूच के तौर पर जाना जाता है;

. मुज़ीरिस- जो आज केरल में कोचीन के निकट कोडुंगालुर के तौर पर जाना जाता है।

. कोरकाई- जो आज तूतीकोरिन है;

. कावेरीपत्तिनम जो तमिलनाडु के नागपट्टिनम जनपद में स्थित है;

. एवं अरिकमेडु जो पुद्दुचेरी के अरियाकुप्पम जनपद में स्थित है। 

रोम, ग्रीक, मिस्र एवं अरब देशों के साथ भारत के जोशपूर्ण समुद्री व्यापार के कई उद्वरण भारत के प्राचीन साहित्य में एवं ग्रीक और रोमन साहित्य में मिलते हैं। प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय व्यापारियों ने दक्षिणपूर्वी एवं पूर्वी एशियाई देशों, अफ्रीका, अरब एवं यूरोप के साथ संपर्क बनाया हुआ था।

मित्रों! जबसे मेरी सरकार ने कार्यभार संभाला है, अन्य कार्यों के साथ, हमने भविष्य की अवसंरचना पर भी ज़ोर दिया है। इसमें कई क्षेत्रों में आने वाले वक्त़ में होने वाला ढांचागत निर्माण सम्मिलित है। पोत, जहाज एवं समुद्र संबंधी अवसंरचना इनमें मुख्य है। यह मेरी सरकार की कोशिश है कि वैश्विक समुद्री क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठा पुनर्जीवित हो।

हमारी शानदार समुद्री विरासत पर कार्य करते हुए हम इस क्षेत्र में नयी ऊंचाइयां छूने के लिये प्रयासरत हैं। हमारी सरकार के शुरुआती दिनों में हमने सागरमाला कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य हमारी लंबी समुद्री सीमा एवं प्राकृतिक समुद्री अनुकूलता का फायदा उठाना था। इसमें पत्तन आधारित विकास को प्रोत्साहित करने, तटवर्ती अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना एवं इन क्षेत्रों में ढांचागत व्यवस्था के विकास पर भी ज़ोर दिया गया था। हम विशेषकर हमारे पत्तनों का विकास कर उनको विशेष आर्थिक क्षेत्रो, पत्तन आधारित छोटे शहरों, औद्योगिक पार्कों, भंडारगृहों, साज़ोसामान पार्कों एवं परिवहन गलियारों के साथ समेकित करना चाहते हैं।

यहां यह बताना दीगर होगा कि 7500 किलोमीटर लंबी हमारी विशाल समुद्री सीमा बहुत बड़े निवेश की संभावनाओं से भरी है। समुद्री सीमा की लम्बाई के अलावा समुद्र में भारत की संभावनाएं सभी समुद्री राजमार्गों पर इसकी रणनीतिक स्थिति पर टिकी है। इसके अतिरिक्त हमारे पास विशाल एवं उत्पादक भीतरी प्रदेश है जिससे होकर बड़ी नदियों की मंडली बहती है। हमारा समुद्री एजेण्डा भीतरी क्षेत्रों में समानांतर रूप से जारी महत्वाकांक्षी ढांचागत योजनाओं का पूरक होगा।

मैं विश्व के व्यवसाई समाज से आग्रह करता हूं कि हमारे पत्तन आधारित विकास की प्रक्रिया को आकार देने में हमारे साथ साझीदार बनें। मैं आश्वस्त हूं कि भारत की लंबी तटरेखा के साथ-साथ विविध तटवर्ती क्षेत्र एवं तटवर्ती क्षेेत्रों में रहने वाला श्रमवान समाज भारत के विकास का आधार बन सकता है।

पत्तनों एवं संबंधित क्षेत्रों के विकास को संभव कर दिखाने के लिये हमने कई नये क़दम उठाए हैं एवं सुधार किये हैं:

· हमारी मेक इन इण्डिया एप्रोच के तहत हमने भारत को एक विश्वस्तरीय निर्माण केंद्र बनाने के लिये कई कदम उठाए हैं।

·हाल ही में मूडी ने मेक इन इण्डिया पहल की प्रशंसा की है।

·हमने व्यापार को सुगम बनाने के मोर्चे पर कई सुधार किये हैं- हमने इस मामले में विश्व रैंकिंग में 12 अंकों का सुधार किया है।

·सीमा पार होने वाले व्यापार की प्रक्रियाओं में काफी सरलीकरण हुआ है।

·हमने लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को उदार बनाया है, जिसमें रक्षा क्षेत्र एवं जहाज निर्माण भी शामिल हैं।

·शिपिंग पर सेवा कर में मिलने वाली छूट 70 प्रतिशत तक बढ़ा दी गई है।

·जहाज के निर्माण में हमने कस्टम ड्यूटी में छूट प्रदान की है।

· जहाजों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिये वित्तीय योजनाएं स्वीकृत की गई हैं।

· बंकर ईंधन हेतु भारतीय झंडा लगे कंटेनर जहाजों के लिये कस्टम एवं एक्साइज ड्यूटी में छूट दी जाती है।

· समुद्र में लगने वाले करों से जुड़े मुद्दों का समाधान किया गया है।

· पत्तनों पर अंतिम दूरी तय करने के लिये इण्डियन पोर्ट रेल कॉर्पोरेशन नाम से एक नयी कम्पनी स्थापित की गई है।

· हमने 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के लिये एक क़ानून बनाया है।

· हमने कौशल विकास गतिविधियों को सक्रियतापूर्वक उठाया है।

हमारे शुरुआती प्रयासों के नतीजे स्पष्तः सामने हैः

· इस सरकार के आने के बाद एफडीआई में 44 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वस्तुतः वर्ष 2015-16 में अब तक का सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश हुआ है।

· भारत के बड़े पत्तनों द्वारा कार्गो संभालने की सर्वकालिक बड़ी मात्रा वर्ष 2015 में थी।

· पत्तनों की गुणवत्ता के मापदंडों में बहुत अच्छा सुधार हुआ है।

· पत्तनों में भारत का सबसे तेज़ औसत टर्नअराउंड समय 2015 में था।

· पिछले दो वर्षों में हमारे बड़े पत्तनों ने 165 मिलियन टन क्षमता हासिल की है जिसमें इस वर्ष रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है।

· अकेले वर्ष 2015-16 में इन पत्तनों द्वारा 94 मिलियन टन क्षमता जोड़ी गई जो अब तक सर्वाधिक है।

· वैश्विक मंदी के बावजूद पिछले दो सालों में बड़े बंदरगाहों पर ट्रेफिक में चार प्रतिशत से अधिक का विकास हुआ है।

· बड़े बंदरगाहों का पिछले दो सालों में प्रदर्शन बेहद अच्छा रहा है।

· ऑपरेटिंग प्रोफिट मार्जिन, जो घट रहे थे, बढ़े हैं।

· अकेले वर्ष 2015-16 में 12 बड़े बंदरगाहों का ऑपरेटिंग प्रोफिट क़रीब 6.7 बिलियन रुपये बढ़ा है।

· वर्ष 2015-16 के दौरान गुजरात के कांडला बंदरगाह ने 100 मिलियन ट्रेफिक के पड़ाव को पार किया और क्षमता में 20 प्रतिशत की बेहतरी की।

· जवाहरलाल नेहरू पत्तन ट्रस्ट ने दस बिलियन रुपये का नेट प्रोफिट दर्ज किया साथ ही कार्यक्षमता में बारह प्रतिशत की बढ़ोतरी भी।

· बीते वर्षों के मुकाबले हमारी फ्लैगशिप कम्पनियों जैसे शिपिंग कॉर्पोरेशन, ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन एवं कोचीन शिपयार्ड ने अधिक मुनाफा कमाया।

हालांकि यह सिर्फ शुरुआत है। हम और अधिक करना चाहते हैं। हम क्रियान्वयन एवं अमलीजामे की हमारी अपनी क्षमताओं में इज़ाफा कर रहे हैं। सागरमाला परियोजना की राष्ट्रीय योजना आज जारी हो गई है। पिछले दो वर्षों के दौरान बड़े बंदरगाहों ने 250 बिलियन रुपये से अधिक की 56 नई परियोजनाएं शुरू की हैं। इससे वार्षिक तौर पर 317 मिलियन टन की अतिरिक्त पत्तन क्षमता जनित होगी। हमारे दृष्टिकोण में 2025 तक पत्तनों की क्षमता 1400 मिलियन टन से बढ़ाकर 3000 मिलियन टन करने की है। इस विकास को संभव करने के लिये हम चाहते हैं कि पत्तन क्षेत्र में एक लाख करोड़ का निवेश हो। भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुपात में बढ़ते एक्ज़िम ट्रेड की आवश्यकताओं को देखते हुए पांच नये पत्तनों की योजना है। भारत के बहुत से समुद्रवर्ती राज्य नये बंदरगाहों का विकास कर रहे हैं।

तटीय जहाजरानी को प्रोत्साहित करने के लिए उठाए गए बहुपक्षीय कदम तथा घरेलू कोयला उत्पादन में वृद्धि की आशा से 2025 तक कोयले की तटीय आवाजाही बढ़ेगी। हम निकटतम और क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ शिपिंग तथा समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के बारे में काम कर रहे हैं। भारत ने हाल में बंग्लादेश के साथ तटीय शिपिंग समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते से दोनों देशों को लाभ होगा। भारत ईरान में चाहबहर बंदरगाह विकसित करने के काम में लगा है। विदेशों में समुद्री परियोजनाओं को देखने के लिए इंडिया पोट्स ग्लोबल लिमिटेड के नाम से स्पेशल परपस वेकिल स्थापित किया गया है।

मुझे बताया गया है कि शिपिंग मंत्रालय समुद्री क्षेत्र में निवेश अवसर वाली 250 परियोजनाएं की प्रदर्शनी लगा रहा है। इन परियोजनाओं में 12 बड़े बंदरगाह परियोजनाएं, 08 समुद्री राज्यों में परियोजनाएं और एजेंसियां शामिल हैं। इनमें 100 से अधिक परियोजनाओं की पहचान सागर माला कार्यक्रम के अंतर्गत की गई है। देश में 14,000 किलोमीटर समुद्री मार्ग है और इसमें विकास की अपार संभावनाएं हैं। मेरी सरकार अवसंरचना एकीकरण के लिए संकल्पबद्ध है। हम निवेशकों के लिए सहज और सहायक वातावरण बनाने और खुले मन से निवेश में सहायता पहुंचाने के लिए संकल्पबद्ध हैं।

मित्रों, यह सब कुछ सामान्य लोगों के लाभ के लिए किया जा रहा है। यह युवाओं को रोजगार देने के लिए किया जा रहा है और विशेषकर तटीय समुदाय के लोगों को सशक्त बनाने के लिए किया जा रहा है। भारत की आबादी का लगभग 18 प्रतिशत 72 तटीय जिलों में रहती है और यह समुदाय भारत के भू-क्षेत्र के 12 प्रतिशत हिस्से में बसा है। इसलिए तटीय क्षेत्रों तथा तटीय समुदायों का समग्र विकास आवश्यक है। तटीय समुदाय विशेषकर मुछआरा समुदाय के विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सागरमाला कार्यक्रम के हिस्से के रूप में हम व्यापक दृष्टिकोण अपनाएंगे जिसका बल क्षमता सृजन तथा प्रशिक्षण, टेक्नोलॉजी उन्नयन तथा भौतिक और सामाजिक अवसंरचना में सुधार पर होगा। यह काम तटीय राज्यों के साथ मिलकर किया जाएगा।

इन कार्यक्रमों से अगले 10 वर्षों में लगभग 10 मिलियन रोजगार सृजन होगा। इसमें 04 मिलियन प्रत्यक्ष तथा 06 मिलियन अप्रत्यक्ष रोजगार होंगे। आजीविका के अवसरों को और व्यापक बनाने के लिए हम मछली मारने के लिए आधुनिक जहाज विकसित करने की योजना बना रहे हैं। इससे मछुवारा समुदाय को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र के संसाधनों के उपयोग का अवसर मिलेगा। इसके अतिरिक्त हम मछली पालन, जल संस्कृति तथा शीत भंडार चेन विकसित करने पर भी बल दे रहे हैं। भारत के बंदरगाह क्षेत्र में निजी और सार्वजनिक बंदरगाह हैं और दोनों समुद्री क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं। इस क्षेत्र में विकास का पीपीपी मॉडल काफी सफल रहा है और इससे आधुनिक टेक्नोलॉजी और श्रेष्ठ व्यवहारों को अपनाने में मदद मिली है। निजी क्षेत्र के बंदरगाह काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और उनकी क्षमता पिछले पांच वर्षो में दोगुनी हो गई है। कुल कार्गों का 45 प्रतिशत काम वही करते हैं।  अधिकतर बंदरगाह नए हैं और उनमें आधुनिक सुविधाएं हैं। ये बंदरगाह कार्य प्रदर्शन और अवसंरचना के मामले में अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों के स्तर के हैं।

मित्रों, भारत का समुद्री इतिहास गौरवशाली रहा है। हम और बेहतर समुद्री भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। समुद्री क्षेत्र से न केवल आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं बल्कि इससे देश और सभ्यताएं एक दूसरे से जुड़ती हैं। यह ग्रह तथा आने वाली पीढ़ियों का भविष्य है। लेकिन इस क्षेत्र में कोई भी देश अलग रहकर वांछित परिणाम प्राप्त नहीं कर सकता। राष्ट्रों को इस क्षमता का लाभ उठाने के लिए एक दूसरे से सहयोग करना होगा और इस क्षेत्र की चुनौतियों से निपटना होगा। इस सम्मेलन का उद्देश्य ऐसे सहयोग के लिए मंच प्रदान करना है।

और अंत में मैं कहना चाहूंगा किः

  • यह भारत आने का सही समय है।
  • समुद्री मार्ग से आना और बेहतर है।
  • भारतीय जहाज लंबी दौड़ के लिए सुसज्जित हैं।
  • मत खोईए यह अवसर
  • इसे खोने का अर्थ है शानदार यात्रा और बड़े गंतव्य को खोना

आपके यहां आ जाने के बाद मैं व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करूंगा कि आपका यहां रहना सुरक्षित और संतोषजनक हो।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!