प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज मैसूर विश्वविद्यालय में 103वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में उद्घाटन भाषण दिया। इस साल की कांग्रेस का विषय ‘भारत में स्वदेशी विकास के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर 103वीं आईएससी पूर्ण कार्यवाही और टेक्नोलॉजी विज़न 2035 दस्तावेज भी जारी किया। उन्होंने वर्ष 2015-16 के लिए आईएससीए पुरस्कार भी प्रदान किए।
प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ निम्नलिखित हैः-
कर्नाटक के राज्यपाल श्री वजुभाई वाला
कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैया
मेरे मंत्रिमंडलीय सहयोगीगण, डॉ. हर्षवर्धन और श्री वाई.एस. चौधरी
भारत रत्न प्रोफेसर सी.एन.आर. राव
प्रोफेसर ए.के. सक्सेना
प्रोफेसर के.एस. रंगप्पा
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित महानुभावों और फील्ड मेडलिस्ट
विशिष्ट वैज्ञानिकों एवं प्रतिनिधियों,
भारत और विश्व के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अग्रणी महानुभावों के साथ वर्ष की शुरूआत करना बेहद सौभाग्य की बात है।
भारत के भविष्य के प्रति हमारे विश्वास की वजह आप पर हमारा भरोसा है।
मैसूर विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष में 103वीं साइंस कांग्रेस को संबोधित करने का अवसर पाना बेहद सम्मान और सौभाग्य की बात है।
भारत के कुछ महान नेताओं ने इसी प्रतिष्ठित संस्थान से विद्या प्राप्त की है।
महान दार्शनिक और देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन और भारत रत्न प्रोफेसर सी.एन.आर. राव उन्हीं में से हैं।
साइंस कांग्रेस और मैसूर विश्वविद्यालय का इतिहास करीब-करीब एक ही दौर में प्रारंभ हुआ।
वह समय भारत में नव जागरण का था। उसने केवल भारत में स्वाधीनता नहीं, बल्कि मानव प्रगति की भी मांग की।
वह सिर्फ स्वतंत्र भारत ही नहीं चाहता था, बल्कि एक ऐसा भारत चाहता था, जो अपने मानव संसाधनों, वैज्ञानिक क्षमताओं और औद्योगिक विकास की ताकत के बल पर स्वतंत्र रूप से खड़ा रह सके।
यह विश्वविद्यालय भारतीयों की महान पीढ़ियों के विज़न का साक्षी है।
अब, हमने भारत में सशक्तिकरण और अवसरों की एक अन्य क्रांति प्रारंभ की है।
इतना ही नहीं, हमने मानव कल्याण और आर्थिक विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक बार फिर से अपने वैज्ञानिकों और अन्वेषकों का रूख किया है।
विश्व ने ज्ञान के लिए मनुष्य की पड़ताल और अन्वेषण की प्रवृति की वजह से, लेकिन साथ ही, मानव चुनौतियों से निपटने के लिए प्रगति की है।
दिवंगत राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से ज्यादा किसी अन्य ने इस भावना को परिलक्षित नहीं किया।
उनका जीवन बेमिसाल वैज्ञानिक उपलब्धियों से भरपूर था और वे मानवता के प्रति असीम करूणा और चिंता का भाव रखते थे।
उनके लिए, विज्ञान का सर्वोच्च उद्देश्य कमजोर, सुविधाओं से वंचित लोगों तथा युवाओं के जीवन में बदलाव लाना था।
और, उनके जीनव का मिशन आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरपूर भारत था, जो मजबूत हो और अपने नागरिकों की सरपरस्ती करे।
इस कांग्रेस के लिए आपका विषय उनके विजन को उपयुक्त श्रद्धांजलि है।
और, प्रोफेसर राव और राष्ट्रपति कलाम जैसे राह दिखाने वालों और आप जैसे वैज्ञानिकों ने भारत को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के बहुत से क्षेत्रों में सबसे अग्रणी स्थान दिलाया है।
हमारी सफलता का दायरा छोटे से अणु के केन्द्र से लेकर अंतरिक्ष की विस्तीर्ण सीमा तक फैला है। हमने खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा में वृद्धि की है और हमने दुनिया में अन्य लोगों में अच्छी जिंदगी का विश्वास जगाया है।
जब हम अपनी जनता की महत्वकांक्षाओं के स्तर में वृद्धि करते हैं, तो हमें अपने प्रयासों का स्तर भी बढ़ाना पड़ता है।
इसलिए, मेरे लिए सुशासन का आशय नीति बनाना और निर्णय लेना, पारदर्शिता और जवाबदेही मात्र नहीं है, बल्कि हमारे विकल्पों और रणनीतियों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को शामिल करना भी है।
हमारे डिजिटल नेटवर्क गुणवत्ता बढ़ा रहे हैं तथा जन सेवाओं और सामाजिक लाभ को गरीबों तक पहुंचा रहे हैं। इतना ही नहीं, प्रथम राष्ट्रीय अंतरिक्ष सम्मेलन में हमने शासन, विकास और संरक्षण के लगभग प्रत्येक पहलु को छूने वाले 170 अनुप्रयोगों की पहचान की।
हम स्टार्टअप इंडिया लांच करने जा रहे हैं, जो नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहन देगा। हम अकादमिक संस्थानों में टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेटर बना रहे हैं। मैंने सरकार में वैज्ञानिक विभागों और संस्थानों में वैज्ञानिक लेखा परीक्षा की रूपरेखा तैयार करने को कहा है।
यह सहयोगपूर्ण संघवाद की भावना के अनुरूप है, जो प्रत्येक क्षेत्र में केन्द्र राज्य संबंधों को आकार दे रही है, जो मैं केन्द्रीय और राज्य स्तरीय संस्थाओं और एजेंसियों के बीच व्यापक वैज्ञानिक सहयोग को प्रोत्साहन दे रहा हूं।
हम विज्ञान के लिए अपने संसाधनों का स्तर बढ़ाने की कोशिश करेंगे और उन्हें हमारी रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप लगाएंगे।
हम भारत में विज्ञान और अनुसंधान को सुगम बनाएंगे, विज्ञान प्रशासन में सुधार करेंगे और आपूर्ति का दायरा बढ़ाएंगे तथा भारत में विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार लाएंगे।
उसी समय, नवाचार सिर्फ हमारे विज्ञान का ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए। नवाचार वैज्ञानिक प्रक्रिया को भी अवश्य गति प्रदान करे। किफायती नवाचार और
क्राउडसोर्सिंग प्रभावी और कारगर वैज्ञानिक उद्यम के उदाहरण हैं।
और, दृष्टिकोण में नवाचार सिर्फ सरकार का ही दायित्व नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र और शैक्षणिक समुदाय की भी जिम्मेदारी है।
ऐसे विश्व में जहां संसाधनों की बाध्यताएं और प्रतिस्पर्धी दावे हैं, हमें अपनी प्राथमिकताओं को बुद्धिमानी से परिभाषित करना होगा। और, भारत के लिए यह खासतौर पर महत्वपूर्ण है, जहां कई और बड़े पैमाने पर चुनौतियां हैं – स्वास्थ्य और भूख से लेकर ऊर्जा और अर्थव्यवस्था तक।
माननीय प्रतिनिधियों,
आज मैं आप के साथ जिस विषय पर चर्चा करना चाहता हूं वह दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है और उसने पिछले साल प्रबलता से विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया- हमारी दुनिया के लिए ज्यादा समृद्ध भविष्य तथा हमारे ग्रह के लिए ज्यादा टिकाऊ भविष्य के मार्ग को परिभाषित करना।
वर्ष 2015 में विश्व ने दो ऐतिहासिक कदम उठाए।
पिछले सितंबर, संयुक्त राष्ट्र ने 2030 के लिए विकास के एजेंडे को स्वीकार किया। यह 2030 तक गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास को हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखता है, लेकिन साथ ही यह हमारे पर्यावरण और हमारे पर्यावासों पर समान रूप से बल देता है।
और, पिछले नवंबर पेरिस में विश्व ने एकजुट होकर हमारे ग्रह की धारा बदलने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया।
लेकिन, हमने कुछ और भी हासिल किया, जो इतना ही महत्वपूर्ण है।
हम जलवायु परिवर्तन के विचार विमर्श के केन्द्र में नवाचार और प्रौद्योगिकी को लाने में सफल रहे।
हमने तर्कसंगत रूप से यह संदेश दिया कि सिर्फ लक्ष्यों और अंकुश के बारे में बोलना ही काफी नहीं होगा। ऐसे समाधान ढूंढना अनिवार्य है, जो हमें स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य में सुगमता से ले जाने में मदद करे।
हमने पेरिस में यह भी कहा कि नवाचार सिर्फ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ही नहीं, बल्कि जलवायु न्याय के लिए भी महत्वपूर्ण है।
सभी के लिए स्वच्छ ऊर्जा को उपलब्ध, गम्य और किफायती बनाने के लिए हमें अनुसंधान और नवाचार करना होगा।
पेरिस में राष्ट्रपति होलांद, राष्ट्रपति ओबामा और मैंने एक नवाचार शिखर सम्मेलन के लिए विश्व के कई नेताओं को साथ जोड़ा।
हमने नवाचार और सरकारों के उत्तरदायित्व को निजी क्षेत्र की नवीन क्षमता के साथ जोड़ने वाली वैश्विक भागीदारी कायम करने के लिए राष्ट्रीय निवेश दोगुना करने का संकल्प लिया।
मैंने ऊर्जा के उत्पादन, वितरण और उपभोग करने के हमारे तरीकों में बदलाव लाने पर अगले दस वर्षों तक ध्यान केंद्रित करने के लिए 30-40 विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क तैयार करने का भी सुझाव दिया। हम जी-20 में भी इसका अनुसरण करेंगे।
हमें नवीकरणीय ऊर्जा को और ज्यादा किफायती, ज्यादा विश्वसनीय और ट्रांसमिशन ग्रिड्स के साथ जोड़ना सुगम बनाने के लिए नवाचार की आवश्यकता है।
भारत के लिए यह विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है कि हम 2022 तक 175 जीडब्ल्यू नवीकरणीय उत्पादन जोड़ने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
हमें आवश्यकत तौर पर कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन को स्वच्छ और ज्यादा प्रभावी बनाना होगा। साथ ही हमें महासागर की लहरों से लेकर भूतापीय ऊर्जा तक नवीकरणीय ऊर्जा के नए स्रोतों का उपयोग करना होगा।
ऐसे समय में, जब औद्योगिक युग को ईंधन प्रदान करने वाले ऊर्जा के स्रोतों ने हमारे ग्रह को संकट में डाल दिया है और विकासशील देशों को अब अरबों लोगों को समृद्ध बनाना है, तो ऐसे में विश्व को भविष्य की ऊर्जा के लिए सूर्य की ओर रुख करना होगा।
इसलिए, पेरिस में, भारत ने सौर ऊर्जा समृद्ध देशों के बीच भागीदारी कायम करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन प्रारम्भ किया है।
हमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकता मात्र स्वच्छ ऊर्जा को हमारे अस्तित्व का अभिन्न अंग बनाने के लिए ही नहीं है, बल्कि हमारे जीवन पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए भी है।
हमें कृषि को जलवायु के मुताबिक ढलने वाली (क्लाइमेट रिज़िल्यन्ट) बनाना होगा। हमें हमारे मौसम, जैव विविधता, हिमनदों और महासागरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उनसे सामंजस्य बनाने के तरीके को समझना होगा। हमें प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने की योग्यता को भी अवश्य मजबूत बनाना होगा।
माननीय प्रतिनिधियों,
हमें तेज रफ्तार से हो रहे शहरीकरण की उभरती चुनौतियों से भी हर हाल में निपटना होगा। धारणीय विश्व के लिए यह महत्वपूर्ण होगा।
मानव इतिहास में पहली बार, हम एक शहरी सदी में हैं। इस सदी के मध्य तक विश्व की दो-तिहायी आबादी शहरों में बसने लगेगी। 3.0 बिलियन से कुछ कम लोग शहरों में बसे मौजूदा 3.5 बिलियन लोगों के साथ आ जुड़ेंगे। इतना ही नहीं, इस वृद्धि का 90 प्रतिशत विकासशील देशों में होगा।
एशिया के कई शहरी क्लस्टरों की आबादी दुनिया के अन्य मझोले आकार के देशों की आबादी से ज्यादा हो जाएगी।
2050 तक 50 फीसदी से ज्यादा भारत शहरों में रह रहा होगा और 2025 तक वैश्विक शहरी आबादी का 10 फीसदी भारत से हो सकता है।
अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 40 फीसदी वैश्विक शहरी आबादी अनौपचारिक आश्रय स्थलों या बस्तियों में रहती है, जहां उन्हें कई स्वास्थ्य और पोषण संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
आर्थिक वृद्धि, रोजगार के अवसरों और संपन्नता को गति शहरों से ही मिलती है। लेकिन शहरों से ही दो तिहाई वैश्विक ऊर्जा मांग निकलती है और नतीजतन 80 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। यही वजह है कि मैं स्मार्ट शहरों (स्मार्ट सिटी) पर इतना ज्यादा जोर दे रहा हूं।
सिर्फ शहरों को ही ज्यादा कुशल, सुरक्षित और सेवाओं की डिलिवरी के लिहाज से बेहतर बनाने की योजना नहीं है, बल्कि उनकी ऐसे टिकाऊ शहरों के विकास की भी योजना है जिनसे हमारी अर्थव्यवस्थाओं को गति मिले और जो स्वस्थ जीवन शैली के लिए स्वर्ग की तरह हों।
हमें अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहतर नीतियों की जरूरत है, लेकिन हम रचनात्मक समाधान उपलब्ध कराने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निर्भर होंगे।
हमें स्थानीय पारिस्थितिकी और विरासत के प्रति संवेदनशीलता के साथ शहरी योजना में सुधार के लिए बेहतर वैज्ञानिक उपकरण विकसित करने चाहिए, जिससे परिवहन की मांग में कमी आए, गतिशीलता में सुधार हो और भीड़-भाड़ में कमी आए।
हमारे अधिकांश शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण होना अभी बाकी है। हमें वैज्ञानिक सुधारों के साथ स्थानीय सामग्री का इस्तेमाल अधिकतम करना चाहिए; और इमारतों को ऊर्जा के लिहाज से ज्यादा कुशल बनाना चाहिए।
हमें ठोस कचरा प्रबंधन के लिए किफायती और व्यावहारिक समाधान तलाशने हैं; कचरे से निर्माण सामग्री और ऊर्जा बनाने; और दूषित जल के पुनर्चक्रीकरण पर भी ध्यान देना है।
शहरी कृषि और पारिस्थितिकी पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। और हमारे बच्चों को सांस लेने के लिए स्वच्छ शहरी हवा मिलनी चाहिए। साथ ही हमें ऐसे समाधानों की जरूरत है जो व्यापक और विज्ञान व नवाचार से जुड़े हुए हों।
हमें अपने शहरों को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति ज्यादा प्रतिरोधी और अपने घरों को ज्यादा लचीला बनाने के लिए आपके सहयोग की जरूरत है। इसका मतलब इमारतों को ज्यादा किफायती बनाना भी है।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
इस ग्रह का टिकाऊ भविष्य सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करेगा कि हम धरती पर क्या करते हैं, बल्कि इस पर भी निर्भर करेगा कि हम अपने समुद्रों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
हमारे ग्रह के 70 प्रतिशत हिस्से पर समुद्र हैं; और 40 फीसदी से ज्यादा आबादी और दुनिया के 60 फीसदी बड़े शहर समुद्र तट के 100 किलोमीटर के दायरे में आते हैं।
हम नए युग के मुहाने पर हैं, जहां समुद्र हमारी अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहद अहम हो जाएंगे। उनका टिकाऊ इस्तेमाल संपन्नता ला सकता है और हमें सिर्फ मछली पकड़ने के अलावा स्वच्छ ऊर्जा, नई दवाएं व खाद्य सुरक्षा भी दे सकता है।
यही वजह है कि मैं छोटे द्वीपीय राज्यों को बड़े समुद्री राज्यों के तौर पर उल्लेख करता हूं।
समुद्र भारत के भविष्य के लिए भी काफी अहम है, जहां 1,300 द्वीप, 7,500 किलोमीटर लंबा समुद्र तट और 24 लाख वर्ग किलोमीटर विशेष आर्थिक क्षेत्र आते हैं।
यही वजह है कि बीते साल हमने समुद्र या नीली अर्थव्यवस्था पर अपना ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। हम सामुद्रिक विज्ञान में अपने वैज्ञानिक प्रयासों के स्तर को बढ़ाएंगे।
हम समुद्र जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के लिए एक उन्नत शोध केंद्र की स्थापना करेंगे और भारत व विदेश में एक तटीय व द्वीप शोध स्टेशनों का एक नेटवर्क भी स्थापित करेंगे।
हमने कई देशों के साथ सामुद्रिक विज्ञान और समुद्र अर्थव्यवस्था पर समझौते किए हैं। हम 2016 में नई दिल्ली में ‘ओसीन इकोनॉमी एंड पैसिफिक आइसलैंड कंट्रीज’ (समुद्री अर्थव्यवस्था और प्रशांत द्वीपीय देशों) पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करेंगे।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
समुद्रों की तरह नदियों की मानव इतिहास में एक अहम भूमिका रही है। सभ्यताएं नदियों के द्वारा ही पली-बढ़ी हैं। और नदियां हमारे भविष्य के लिए भी अहम रहेंगी।
इसलिए नदियों का पुनरुद्धार मेरी अपने समाज के लिए एक स्वच्छ और सेहतमंद भविष्य, हमारे लोगों के लिए आर्थिक अवसरों और हमारी धरोहर के नवीकरण के लिए प्रतिबद्धता का अहम हिस्सा है।
हमें अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए नियमन, नीति, निवेशों और प्रबंधन की जरूरत है। लेकिन ऐसा सिर्फ अपनी नदियों को स्वच्छ बनाकर ही नहीं, बल्कि उन्हें भविष्य में भी स्वस्थ बनाए रखकर ही संभव होगा। इसके लिए हमें अपने प्रयासों के साथ तकनीक, इंजीनियरिंग और नवाचार को जोड़ना होगा।
इसके लिए हमें शहरीकरण, कृषि, औद्योगीकरण और भूमिगत जल के इस्तेमाल और नदियों पर प्रदूषण के प्रभाव की वैज्ञानिक समझ की जरूरत है।
नदी प्रकृति की आत्मा है। उनका नवीकरण टिकाऊ पर्यावरण की दिशा में एक बड़ा प्रयास हो सकता है।
भारत में हम मानवता को प्रकृति के हिस्से के तौर पर देखते हैं, न उससे अलग या उससे ज्यादा और देवता प्रकृति में विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं।
इस प्रकार संरक्षण प्राकृतिक रूप से हमारी संस्कृति और परंपरा व भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता से गहराई से जुड़ा हुआ है।
भारत में पारिस्थितिकी ज्ञान की एक संपन्न धरोहर है। हमारे पास वैज्ञानिक संस्थान और मानव संसाधन हैं, जिनसे प्रकृति के संरक्षण पर ठोस राष्ट्रीय योजना को गति दी जा सकती है। यह वैज्ञानिक अध्ययन और प्रक्रियाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
यदि हम मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य चाहते हैं तो हमें पारंपरिक ज्ञान को पूरी तरह इस्तेमाल करना चाहिए।
दुनिया भर में समाजों ने युगों से मिले ज्ञान के दम पर अपनी संपन्नता को बढ़ाया है। और उनके पास हमारी कई समस्याओं के आर्थिक, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल समाधानों के राज हैं। लेकिन आज वे हमारी भूमंडलीकृत दुनिया में समाप्त होने के कगार पर हैं।
पारंपरिक ज्ञान की तरह विज्ञान भी मानव अनुभवों और प्रकृति की खोज के माध्यम से विज्ञान भी विकसित हुआ है। इसलिए हमें उस विज्ञान को मान्यता देनी चाहिए, जो दुनिया के बारे में अनुभवजन्य ज्ञान के रूप में तैयार नहीं होता है।
हमें पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच की दूरी को पाटना चाहिए, जिससे हम अपनी चुनौतियों के लिए स्थानीय और ज्यादा टिकाऊ समाधान तैयार कर सकते हैं।
इसलिए कृषि में जैसे हम अपने खेतों को ज्यादा उपजाऊ बनाते हैं, उसी प्रकार अपने पानी के इस्तेमाल में कमी या अपनी कृषि उपज में पोषक तत्वों को बढ़ाने पर काम करना चाहिए।
हमें पारंपरिक तकनीकों, स्थानीय पद्धतियों और जैविक कृषि को एकीकृत करना चाहिए, जिससे हमारी कृषि में कम से कम संसाधन इस्तेमाल हों और वह ज्यादा लचीली हो।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधुनिक दवाओं ने हेल्थकेयर को बदल दिया है। लेकिन हमें बेहतर जीवनशैली और उपचार के तरीकों में बदलाव के लिए वैज्ञानिक तकनीकों और तरीकों को पारंपरिक दवाओं और योग जैसी प्रक्रियाओं का भी इस्तेमाल करना चाहिए।
यह विशेष रूप से जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की बढ़ती चुनौती का सामना करने के लिहाज से अहम है, जिससे मानवीय जिंदगी और आर्थिक तौर पर बड़ा नुकसान होता है।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
एक राष्ट्र के तौर पर हम अभी तक कई दुनियाओं में बसते हैं।
हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उपलब्धियां हासिल करने के कगार पर हैं।
हम वर्तमान में अनिश्चितताओं और कई जिंदगियों में असमानता देखते हैं, इसलिए उम्मीद, अवसर, सम्मान और बराबरी की ओर देख रहे हैं।
हमें इन आकांक्षाओं को तेजी से और व्यापक स्तर पर हासिल करना चाहिए, जो मानव इतिहास में दुर्लभ रहा है।
हमारे दौर की चेतना और हमारी दुनिया के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की क्षमता को देखते हुए हमें अपनी संपन्न परंपराओं से सबसे ज्यादा संभावित टिकाऊ रास्ता चुनना चाहिए।
मानवता के छठे हिस्से की सफलता का मतलब दुनिया के लिए ज्यादा संपन्न और टिकाऊ भविष्य होगा।
हम ऐसा सिर्फ आपके नेतृत्व और सहयोग से ही हासिल कर सकते हैं।
विक्रम साराभाई के शब्दों में हमें यह तब एहसास होगा, ‘जब हम वैज्ञानिकों को उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र के बाहर काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।’
विज्ञान का प्रभाव तब सबसे ज्यादा होगा, जब वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद् अपनी जांच और इंजीनियरिंग के केंद्र में उस सिद्धांत को रखेंगे जिसे मैं ‘पांच ई’ कहता हूं।
अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी)- जब हम लागत के लिहाज से किफायती और कुशल समाधान पाते हैं
पर्यावरण (इनवॉयर्नमेंट)- जब कार्बन उत्सर्जन कम हो जाए और पारिस्थितिकी पर उसका प्रभाव जितना संभव हो कम हो
ऊर्जा (एनर्जी)- जब हमारी संपन्नता ऊर्जा पर कम निर्भर करती है और ऊर्जा को हम आकाश को नीला रखने और धरती को हरा-भरा रखने में इस्तेमाल करते हैं।
सहानभुतू (इमपैथी)- जब हमारे प्रयास हमारी संस्कृति, परिस्थितियों और सामाजिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए किए जाएं।
समानता (इक्विटी)-जब विज्ञान समावेशी विकास को बढ़ावा देता है और कमजोरों के कल्याण में सुधार करता है
इस साल हम विज्ञान के इतिहास के एक अहम क्षण का सौवां साल मनाने जा रहे हैं, जब अलबर्ट आइंस्टीन ने 1916 में ‘द फाउंडेशन ऑफ द जनरल थिओरी ऑफ रिलेटिविटी’ को प्रकाशित किया। आज हमें मानवता याद करना चाहिए जो उनके विचारों को इस तरह जाहिर करती है, ‘सभी तकनीक पहलों में खुद मान और उनके भाग्य को हमेशा मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए।’
चाहे हम सार्वजनिक जीवन में हों, या हम निजी क्षेत्र से हों और चाहे हम कारोबार में या विज्ञान से हों, हमारे लिए इससे बड़ा कोई कर्तव्य नहीं हो सकता है कि जब हम इस ग्रह से जाएं तो अगली पीढ़ी के लिए इसे बेहतर स्थिति में छोड़कर जाएं।
चलिए विज्ञान, तकनीक और इंजीनियरिंग के विभिन्न क्षेत्रों को संयुक्त रूप से इस समान उद्देश्य में लगा दें।
आपका धन्यवाद।
Great pleasure to begin the year in the company of leaders of science, from India & world: PM at Science Congress https://t.co/ZenUvXBQL5
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We have launched yet another revolution of empowerment and opportunities in India: PM @narendramodi https://t.co/ZenUvXBQL5
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We are once again turning to our scientists and innovators to realize our goals of human welfare and economic development: PM @narendramodi
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PM @narendramodi is paying tributes to Dr. Kalam at the Indian Science Congress. https://t.co/ZenUvXBQL5
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Your theme for this Congress is a fitting tribute to Dr. Kalam's vision: PM @narendramodi at the Indian Science Congress
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Our success spans from the core of the tiny atom to the vast frontier of space: PM @narendramodi at the Indian Science Congress
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We have enhanced food and health security; and, we have given hope for a better life to others in the world: PM @narendramodi
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As we increase the level of our ambition for our people, we will also have to increase the scale of our efforts: PM @narendramodi
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Good governance is about integrating science and technology into the choices we make and the strategies we pursue: PM @narendramodi
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Our digital networks are expanding the quality and reach of public services and social benefits for the poor: PM @narendramodi
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I am encouraging greater scientific collaboration between Central and State institutions and agencies: PM @narendramodi at Science Congress
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We will make it easier to do science and research in India: PM @narendramodi
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Innovation must not be just the goal of our science. Innovation must also drive the scientific process: PM @narendramodi
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We succeeded in bringing innovation and technology to the heart of the climate change discourse: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 3, 2016
Innovation is important not just for combating climate change, but also for climate justice: PM @narendramodi
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We need research and innovation to make clean energy technology available, accessible and affordable for all: PM @narendramodi
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We need innovation to make renewable energy much cheaper, more reliable, and, easier to connect to transmission grids: PM @narendramodi
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We must also address the rising challenges of rapid urbanisation. This will be critical for a sustainable world: PM @narendramodi
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Cities are the major engines of economic growth, employment opportunities & prosperity: PM @narendramodi
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But, cities account for more than two-thirds of global energy demand and result in up to 80% of global greenhouse gas emission: PM
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We must develop better scientific tools to improve city planning with sensitivity to local ecology and heritage: PM @narendramodi
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We have to find affordable and practical solutions for solid waste management: PM @narendramodi
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A sustainable future for this planet will depend not only on what we do on land, but also on how we treat our oceans: PM @narendramodi
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We have increased our focus on ocean or blue economy. We will raise the level of our scientific efforts in marine science: PM @narendramodi
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We are at the global frontiers of achievements in science and technology: PM @narendramodi
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Impact of science will be the most when scientists & technologists will keep the principles of what I call Five Es: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 3, 2016
Economy, Environment, Energy, Empathy, Equity... 5 Es at the centre of enquiry and engineering: PM @narendramodi
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