डॉ. पद्म सुब्रमण्यम जी,
श्री एन. रवि,
श्री जी. विश्वनाथन,
श्री एस. रजनीकांत,
श्री गुरुमूर्ति,
तुगलक के पाठकों,
स्वर्गीय श्री चो. रामास्वामी के प्रशंसकों
और तमिलनाडु के लोग।
वानेक्कम; इनिया पोंगल नलवाजथुक्कल।
हम लोग काफी शुभ समय में यहां एकत्रित हैं।
मेरे तेलुगु भाई-बहनों ने कर भोगी त्योहार मनाया। उत्तर भारत के मित्रों खासकर पंजाब के लोगों ने लोहड़ी मनाया। आज मकर संक्रांति है।
गुजरात में इस दिन आसमान पतंगों से भर जाता है जिसे उत्तरायण के रूप में जाना जाता है।
असम के लोग माघ बिहू उत्सव मना रहे हैं। और तमिलनाडु में, जहां आप हैं, पोंगल मनाया जा रहा है।
पोंगल कृतज्ञता का त्योहार है। इसके जरिये हम सूर्य भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं, कृषि कार्यों में मदद के लिए पशुओं को धन्यवाद देते हैं और हमारी जिंदगी के लिए जरूरी प्राकृतिक संसाधन प्रदान करने के लिए प्रकृति को धन्यवाद देते हैं।
प्रकृति के प्रति सद्भाव हमारी संस्कृति, हमारी परंपराओं की ताकत है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक, हम यह देख सकते हैं कि देश भर में त्योहारी भावना कैसी है।
त्योहार हमारे जीवन के उत्सव हैं। त्योहार के साथ एकजुटता की भावना आती है। वह हमें एकता के सुंदर धागे में पिरोती है। इन सब त्योहारों के लिए मैं देशभर के लोगों को शुभकामनाएं देता हूं।
मकर संक्रांति खगोलीय पथ पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करता का द्योतक है। अधिकतर लोगों के लिए मकर संक्रांति का मतलब भयावह ठंड से निजात पाने और अपेक्षाकृत गर्म दिनों में प्रवेश करना होता है।
आज मनाये जाने वाले कुछ त्योहार फसलों का त्योहार है। हम प्रार्थना करते हैं कि ये त्योहार हमारे किसानों, जो हमारे देश को खिलाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, के जीवन में समृद्धि और खुशियां लाएं।
मित्रों,
मैं व्यक्तिगत तौर पर आपके समक्ष उपस्थित होना चाहता था लेकिन काम की अनिवार्यता के कारण ऐसा नहीं हो सका। मैं तुगलक के 47वें वर्षगांठ पर अपने मित्र श्री चो रामास्वामी को श्रद्धांजलि देता हूं।
चो के निधन से हम सब ने एक ऐसा मित्र खो दिया है जिन्होंने अपने तरीके से अपने अमूल्य ज्ञान की पेशकश की। मैं व्यक्तिगत तौर पर उन्हें करीब चार दशक से जानता था। यह मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है।
वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वह एकसाथ अभिनेता, निर्देशक, पत्रकार, संपादक, लेखक, नाटककार, राजनेता, राजनीतिक चिंतक, सांस्कृतिक आलोचक, जबरदस्त प्रतिभाशाली लेखक, धार्मिक एवं सामाजिक समालोचक, वकील और भी बहुत कुछ थे।
उनकी इन सभी भूमिकाओं में तुगलक पत्रिका के संपादक के तौर पर उनकी भूमिका ताज के हीरे की तरह थी। अपने 47 साल की यात्रा में तुगलक पत्रिका ने राष्ट्रीय हितों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में जबरदस्त भूमिका निभाई है।
तुगलक और चो की एक-दूसरे के बिना कल्पना करना मुश्किल है। करीब पांच दशक तक वह तुगलक के कर्ताधर्ता रहे। यदि कोई भारत का इतिहास लिखना चाहेगा तो वह चो रामास्वामी और उनकी राजनैतिक टिप्पणी के बिना नहीं लिख सकता।
चो की प्रशंसा करना आसान है लेकिन चो को समझना उतना आसान नहीं है। उन्हें समझने के लिए उनकी साहस, दृढ़ विश्वास, उनकी राष्ट्रीयता की भावना जो संकीर्णता से परे है, क्षेत्रीय, भाषाई एवं अन्य मुद्दों पर उनके विचार को समझना होगा।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने तुगलक को सभी विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एक हथियार बनाया। उन्होंने साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक प्रणाली के लिए लड़ाई की। उस संघर्ष में उन्होंने कभी भी किसी को नहीं बख्शा।
वह उन लोगों के भी आलोचक रहे जिनके साथ उन्होंने दशकों काम किया, उन्होंने उन लोगों की भी आलोचना की जो दशकों तक उनके दोस्त रहे थे और वह उन लोगों के भी आलोचक रहे जो उन्हें अपना संरक्षक मानते थे। उन्होंने किसी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने व्यक्तित्व पर नहीं बल्कि मुद्दों पर ध्यान दिया।
राष्ट्र उनके संदेश का केंद्र होता था। इसकी झलक उनकी लेखनी, सिनेमा, नाटक और उनके द्वारा निर्देशित टेलीविजन धारावाहिकों में मिलती है। उन्होंने जिन सिनेमाओं के लिए पटकथा लिखी उसमें भी इसकी झलक मिलती है।
उनके व्यंग्यों ने उनकी आलोचनाओं को सुंदर बना दिया और यहां तक कि जिनकी वह आलोचना करते थे उन्हें भी अच्छा लगता था। यह गुण को पैदा नहीं किया जा सकता। उन्हें यह ईश्वर से उपहार में मिला था जिसका इस्तेमाल उन्होंने आम लोगों के हितों को बढ़ावा देने में किया। उन्हें यह भी उपहार मिला था कि वह पूरे विचार को एक ही कार्टून अथवा एक ही वाक्य में पिरो देते थे जो आमतौर पर पूरी किताब में भी नहीं दिखता।
मुझे चो की एक कार्टून याद आती है जिसमें लोग मेरे ऊपर बंदूक ताने हुए हैं और आम लोग मेरे सामने खड़े हैं; चो पूछते हैं कि असली निशाना कौन हैं? मैं या आम लोग? वह कार्टून आज के संदर्भ में कितना प्रासंगिक है!
मैं चो से जुड़ी एक घटना बताता हूं। एक बार कुछ लोग चो से नाराज होकर उन पर अंडे फेंक रहे थे। इस पर चो ने कहा, ‘अइया, मेरे ऊपर कच्चे अंडे क्यों फेंक रहे हो जब आप मुझे ही ऑमलेट बना सकते हो।’ इस पर अंडे फेंकने वाले हंसने लगे। उनमें परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेने की जबरदस्त क्षमता थी।
तुगलक इन सब के लिए एक प्लेटफॉर्म थी। चो अपनी पत्रिका में विरोधी और यहां तक कि शत्रुतापूर्ण विचारों को भी जगह देते थे। इससे तुगलक में सबका समावेश हो गया, कोई इससे बाहर नहीं रहा। यहां तक कि वह जिनकी आलोचना करते थे उनके विचारों को भी तुगलक में चो की तरह समान प्राथमिकता दी जाती थी। यही मीडिया और सार्वजनिक जीवन का वास्तविक लोकतांत्रिक मूल्य है।
मेरे विचार से उनके योगदान और विचारों का दायरा केवल तमिल परिवेश एवं तमिल लोगों तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने भारत के कई समाजों में पत्रकारों और राजनेताओं की कई पीढ़ियों को पे्ररित किया है। और हम सब जानते हैं कि तुगलक पत्रिका में केवल राजनीति टिप्पणी नहीं होती थी। यह लाखों तमिल लोगों की आंख और कान थी। चो ने तुगलक के जरिये शासक और आमलोगों के बीच संपर्क कायम किया।
मुझे खुशी है कि तुगलक चो द्वारा स्थापित वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता की यात्रा को आगे बढ़ा रही है। जिन्हें तुगलक की विरासत मिली है उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है। चो की दृष्टि और प्रतिबद्धता से निर्देशित होना एक बड़ी चुनौती होगी। इस दृष्टि का पालन तमिलनाडु के लोगों के लिए एक बड़ी सेवा होगी।
मैं श्री गुरुमूर्ति और उनकी टीम को इस ओर बेहतर प्रयास करने के लिए बधाई देता हूं। गुरुमूर्ति जी को जानकार मुझे विश्वास है कि वह सफल होंगे।
चो ने हास्य-व्यंग्य की जिस कला में महारत हासिल की थी उसे अतिरंजित करने की जरूरत नहीं है। मैं समझता हूं कि हमें और अधिक हास्य-व्यंग्य की आवश्यकता है। हास्य हमारे जीवन में खुशियां लाता है। हास्य सबसे अच्छा मरहम होता है।
मुस्कुराहट और हंसी में किसी गाली या हथियार से अधिक ताकत होती है। हास्य पुलों को तोड़ने के बजाय उन्हें जोड़ता है। और हमें बिल्कुल उसी- पुल तैयार करने की जरूरत है। लोगों के बीच पुल बनाने की। समुदायों के बीच पुल बनाने की। समाज के बीच पुल बनाने की।
हास्य मानव रचनात्मकता को बाहर लाता है। हम एक ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां किसी भाषण या घटना का आगे चलकर कई प्रभाव हो सकते हैं।
मित्रों,
मैंने इससे पहले चेन्नई में आयोजित तुगलक के वार्षिक रीडर्स मीट में व्यक्तिगत तौर पर भाग लिया था। चूंकि आपकी परंपरा है कि किसी कार्यक्रम का समापन चो की आवाज में श्रीमद्भगवद गीता के किसी श्लोक से होता रहा है। इसलिए चो के सम्मान मैं भी एक श्लोक के साथ अपनी बात खत्म करना चाहता हूं:
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति नरोपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
(आत्मा एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाती है बल्कि वह एक व्यक्ति से दूसरे में प्रवेश करती है।)
हम उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए धन्यवाद देते हैं। कुल मिलाकर हम उन्हें महान चो रामास्वामी- एक और केवल एक चो, होने के लिए धन्यवाद देते हैं।
The Prime Minister extends greetings on the various festivals across India.
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
Festivals are celebrations of life. With festivals comes a spirit of togetherness: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
Some of the festivals we celebrate today are harvest festivals: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
We pray that these festivals bring prosperity and joy in the lives of our farmers, who work hard to keep our nation fed: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
I pay my tribute to my dear friend Sri Cho Ramaswamy on the 47th anniversary of Thuglak: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
In the passing away of Sri Cho, we all have lost a friend who offered his invaluable wisdom to whoever came his way: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
For 47 years Thuglak magazine played a stellar role in the cause of safeguarding democratic values and national interest: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
If someone has to write the political history of India, he cannot write it without including Cho Ramaswamy and his political commentary: PM
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
Cho's greatest achievement is that he made Thuglak a weapon against all divisive forces: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
The Nation was his central message: PM @narendramodi on Sri Cho Ramaswamy
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
Cho's satire made his criticism loveable even to those he criticized: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
Thuglak was a platform for all. Cho would carry views contrary, even hostile to him, and even abusive of him in his own magazine: PM
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
I think we need more satire and humour. Humour brings happiness in our lives. Humour is the best healer: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
The power of a smile or the power of laughter is more than the power of abuse or any other weapon: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
Humour builds bridges instead of breaking them. And this is exactly what we require today: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017
We need to build bridges between people. Bridges between communities. Bridges between societies: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 14, 2017