त्यौहार जीवन का उत्सव हैं, त्यौहारों से ही एकजुटता की भावना आती है: प्रधानमंत्री
तुगलक के 47वीं वर्षगांठ पर मैं अपने मित्र चो रामास्वामी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं: प्रधानमंत्री
पिछले 47 वर्षों से तुगलक मैगजीन का लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्र हित की सुरक्षा करने में अहम योगदान रहा है: नरेंद्र मोदी
यदि कोई भारत का राजनीतिक इतिहास लिखना चाहता है तो, वह चो रामास्वामी को शामिल किए बगैर नहीं लिख सकता: प्रधानमंत्री
चो के व्यंग्य ने उनकी आलोचनाओं को लोकप्रिय बनाया, खासकर उनमें जिनकी वो आलोचना करते थे: प्रधानमंत्री
हास्य हमारे जीवन में खुशियां लेकर आता है। हास्य सबसे उत्तम दवा है: प्रधानमंत्री मोदी
एक मुस्कान और हंसी में अपशब्दों से कई गुना ज्यादा ताकत होती है: प्रधानमंत्री
हमें लोगों, समुदायों और समाज के बीच एक पुल के निर्माण करने की आवश्यकता: प्रधानमंत्री

डॉ. पद्म सुब्रमण्यम जी,

श्री एन. रवि,

श्री जी. विश्वनाथन,

श्री एस. रजनीकांत,

श्री गुरुमूर्ति,

तुगलक के पाठकों,

स्वर्गीय श्री चो. रामास्वामी के प्रशंसकों

और तमिलनाडु के लोग।

 

वानेक्कम; इनिया पोंगल नलवाजथुक्कल।

हम लोग काफी शुभ समय में यहां एकत्रित हैं।

मेरे तेलुगु भाई-बहनों ने कर भोगी त्योहार मनाया। उत्तर भारत के मित्रों खासकर पंजाब के लोगों ने लोहड़ी मनाया। आज मकर संक्रांति है।

गुजरात में इस दिन आसमान पतंगों से भर जाता है जिसे उत्तरायण के रूप में जाना जाता है।

असम के लोग माघ बिहू उत्सव मना रहे हैं। और तमिलनाडु में, जहां आप हैं, पोंगल मनाया जा रहा है।

पोंगल कृतज्ञता का त्योहार है। इसके जरिये हम सूर्य भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं, कृषि कार्यों में मदद के लिए पशुओं को धन्यवाद देते हैं और हमारी जिंदगी के लिए जरूरी प्राकृतिक संसाधन प्रदान करने के लिए प्रकृति को धन्यवाद देते हैं।

प्रकृति के प्रति सद्भाव हमारी संस्कृति, हमारी परंपराओं की ताकत है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक, हम यह देख सकते हैं कि देश भर में त्योहारी भावना कैसी है।

त्योहार हमारे जीवन के उत्सव हैं। त्योहार के साथ एकजुटता की भावना आती है। वह हमें एकता के सुंदर धागे में पिरोती है। इन सब त्योहारों के लिए मैं देशभर के लोगों को शुभकामनाएं देता हूं।

मकर संक्रांति खगोलीय पथ पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करता का द्योतक है। अधिकतर लोगों के लिए मकर संक्रांति का मतलब भयावह ठंड से निजात पाने और अपेक्षाकृत गर्म दिनों में प्रवेश करना होता है।

आज मनाये जाने वाले कुछ त्योहार फसलों का त्योहार है। हम प्रार्थना करते हैं कि ये त्योहार हमारे किसानों, जो हमारे देश को खिलाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, के जीवन में समृद्धि और खुशियां लाएं।

मित्रों,

मैं व्यक्तिगत तौर पर आपके समक्ष उपस्थित होना चाहता था लेकिन काम की अनिवार्यता के कारण ऐसा नहीं हो सका। मैं तुगलक के 47वें वर्षगांठ पर अपने मित्र  श्री चो रामास्वामी को श्रद्धांजलि देता हूं।

चो के निधन से हम सब ने एक ऐसा मित्र खो दिया है जिन्होंने अपने तरीके से अपने अमूल्य ज्ञान की पेशकश की। मैं व्यक्तिगत तौर पर उन्हें करीब चार दशक से जानता था। यह मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है।

वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वह एकसाथ अभिनेता, निर्देशक, पत्रकार,  संपादक, लेखक, नाटककार, राजनेता, राजनीतिक चिंतक, सांस्कृतिक आलोचक, जबरदस्त प्रतिभाशाली लेखक, धार्मिक एवं सामाजिक समालोचक, वकील और भी बहुत कुछ थे।

उनकी इन सभी भूमिकाओं में तुगलक पत्रिका के संपादक के तौर पर उनकी भूमिका ताज के हीरे की तरह थी। अपने 47 साल की यात्रा में तुगलक पत्रिका ने राष्ट्रीय हितों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में जबरदस्त भूमिका निभाई है।

तुगलक और चो की एक-दूसरे के बिना कल्पना करना मुश्किल है। करीब पांच दशक तक वह तुगलक के कर्ताधर्ता रहे। यदि कोई भारत का इतिहास लिखना चाहेगा तो वह चो रामास्वामी और उनकी राजनैतिक टिप्पणी के बिना नहीं लिख सकता।

चो की प्रशंसा करना आसान है लेकिन चो को समझना उतना आसान नहीं है। उन्हें समझने के लिए उनकी साहस, दृढ़ विश्वास, उनकी राष्ट्रीयता की भावना जो संकीर्णता से परे है, क्षेत्रीय, भाषाई एवं अन्य मुद्दों पर उनके विचार को समझना होगा।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने तुगलक को सभी विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एक हथियार बनाया। उन्होंने साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक प्रणाली के लिए लड़ाई की। उस संघर्ष में उन्होंने कभी भी किसी को नहीं बख्शा।

वह उन लोगों के भी आलोचक रहे जिनके साथ उन्होंने दशकों काम किया, उन्होंने उन लोगों की भी आलोचना की जो दशकों तक उनके दोस्त रहे थे और वह उन लोगों के भी आलोचक रहे जो उन्हें अपना संरक्षक मानते थे। उन्होंने किसी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने व्यक्तित्व पर नहीं बल्कि मुद्दों पर ध्यान दिया।

राष्ट्र उनके संदेश का केंद्र होता था। इसकी झलक उनकी लेखनी, सिनेमा, नाटक और उनके द्वारा निर्देशित टेलीविजन धारावाहिकों में मिलती है। उन्होंने जिन सिनेमाओं के लिए पटकथा लिखी उसमें भी इसकी झलक मिलती है।

उनके व्यंग्यों ने उनकी आलोचनाओं को सुंदर बना दिया और यहां तक कि जिनकी वह आलोचना करते थे उन्हें भी अच्छा लगता था। यह गुण को पैदा नहीं किया जा सकता। उन्हें यह ईश्वर से उपहार में मिला था जिसका इस्तेमाल उन्होंने आम लोगों के हितों को बढ़ावा देने में किया। उन्हें यह भी उपहार मिला था कि वह पूरे विचार को एक ही कार्टून अथवा एक ही वाक्य में पिरो देते थे जो आमतौर पर पूरी किताब में भी नहीं दिखता।

मुझे चो की एक कार्टून याद आती है जिसमें लोग मेरे ऊपर बंदूक ताने हुए हैं और आम लोग मेरे सामने खड़े हैं; चो पूछते हैं कि असली निशाना कौन हैं? मैं या आम लोग? वह कार्टून आज के संदर्भ में कितना प्रासंगिक है!

मैं चो से जुड़ी एक घटना बताता हूं। एक बार कुछ लोग चो से नाराज होकर उन पर अंडे फेंक रहे थे। इस पर चो ने कहा, ‘अइया, मेरे ऊपर कच्चे अंडे क्यों फेंक रहे हो जब आप मुझे ही ऑमलेट बना सकते हो।’ इस पर अंडे फेंकने वाले हंसने लगे। उनमें परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेने की जबरदस्त क्षमता थी।

तुगलक इन सब के लिए एक प्लेटफॉर्म थी। चो अपनी पत्रिका में विरोधी और यहां तक कि शत्रुतापूर्ण विचारों को भी जगह देते थे। इससे तुगलक में सबका समावेश हो गया, कोई इससे बाहर नहीं रहा। यहां तक कि वह जिनकी आलोचना करते थे उनके विचारों को भी तुगलक में चो की तरह समान प्राथमिकता दी जाती थी। यही मीडिया और सार्वजनिक जीवन का वास्तविक लोकतांत्रिक मूल्य है।

मेरे विचार से उनके योगदान और विचारों का दायरा केवल तमिल परिवेश एवं तमिल लोगों तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने भारत के कई समाजों में पत्रकारों और राजनेताओं की कई पीढ़ियों को पे्ररित किया है। और हम सब जानते हैं कि तुगलक पत्रिका में केवल राजनीति टिप्पणी नहीं होती थी। यह लाखों तमिल लोगों की आंख और कान थी। चो ने तुगलक के जरिये शासक और आमलोगों के बीच संपर्क कायम किया।

मुझे खुशी है कि तुगलक चो द्वारा स्थापित वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता की यात्रा को आगे बढ़ा रही है। जिन्हें तुगलक की विरासत मिली है उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है। चो की दृष्टि और प्रतिबद्धता से निर्देशित होना एक बड़ी चुनौती होगी। इस दृष्टि का पालन तमिलनाडु के लोगों के लिए एक बड़ी सेवा होगी।

मैं श्री गुरुमूर्ति और उनकी टीम को इस ओर बेहतर प्रयास करने के लिए बधाई देता हूं। गुरुमूर्ति जी को जानकार मुझे विश्वास है कि वह सफल होंगे।

चो ने हास्य-व्यंग्य की जिस कला में महारत हासिल की थी उसे अतिरंजित करने की जरूरत नहीं है। मैं समझता हूं कि हमें और अधिक हास्य-व्यंग्य की आवश्यकता है। हास्य हमारे जीवन में खुशियां लाता है। हास्य सबसे अच्छा मरहम होता है।

मुस्कुराहट और हंसी में किसी गाली या हथियार से अधिक ताकत होती है। हास्य पुलों को तोड़ने के बजाय उन्हें जोड़ता है। और हमें बिल्कुल उसी- पुल तैयार करने की जरूरत है। लोगों के बीच पुल बनाने की। समुदायों के बीच पुल बनाने की। समाज के बीच पुल बनाने की।

हास्य मानव रचनात्मकता को बाहर लाता है। हम एक ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां किसी भाषण या घटना का आगे चलकर कई प्रभाव हो सकते हैं।

 

मित्रों,

मैंने इससे पहले चेन्नई में आयोजित तुगलक के वार्षिक रीडर्स मीट में व्यक्तिगत तौर पर भाग लिया था। चूंकि आपकी परंपरा है कि किसी कार्यक्रम का समापन चो की आवाज में श्रीमद्भगवद गीता के किसी श्लोक से होता रहा है। इसलिए चो के सम्मान मैं भी एक श्लोक के साथ अपनी बात खत्म करना चाहता हूं:

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति नरोपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।

(आत्मा एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाती है बल्कि वह एक व्यक्ति से दूसरे में प्रवेश करती है।)

हम उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए धन्यवाद देते हैं। कुल मिलाकर हम उन्हें महान चो रामास्वामी- एक और केवल एक चो, होने के लिए धन्यवाद देते हैं।

 

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November 22, 2024

गुटेन आबेन्ड

स्टटगार्ड की न्यूज 9 ग्लोबल समिट में आए सभी साथियों को मेरा नमस्कार!

मिनिस्टर विन्फ़्रीड, कैबिनेट में मेरे सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस समिट में शामिल हो रहे देवियों और सज्जनों!

Indo-German Partnership में आज एक नया अध्याय जुड़ रहा है। भारत के टीवी-9 ने फ़ाउ एफ बे Stuttgart, और BADEN-WÜRTTEMBERG के साथ जर्मनी में ये समिट आयोजित की है। मुझे खुशी है कि भारत का एक मीडिया समूह आज के इनफार्मेशन युग में जर्मनी और जर्मन लोगों के साथ कनेक्ट करने का प्रयास कर रहा है। इससे भारत के लोगों को भी जर्मनी और जर्मनी के लोगों को समझने का एक प्लेटफार्म मिलेगा। मुझे इस बात की भी खुशी है की न्यूज़-9 इंग्लिश न्यूज़ चैनल भी लॉन्च किया जा रहा है।

साथियों,

इस समिट की थीम India-Germany: A Roadmap for Sustainable Growth है। और ये थीम भी दोनों ही देशों की Responsible Partnership की प्रतीक है। बीते दो दिनों में आप सभी ने Economic Issues के साथ-साथ Sports और Entertainment से जुड़े मुद्दों पर भी बहुत सकारात्मक बातचीत की है।

साथियों,

यूरोप…Geo Political Relations और Trade and Investment…दोनों के लिहाज से भारत के लिए एक Important Strategic Region है। और Germany हमारे Most Important Partners में से एक है। 2024 में Indo-German Strategic Partnership के 25 साल पूरे हुए हैं। और ये वर्ष, इस पार्टनरशिप के लिए ऐतिहासिक है, विशेष रहा है। पिछले महीने ही चांसलर शोल्ज़ अपनी तीसरी भारत यात्रा पर थे। 12 वर्षों बाद दिल्ली में Asia-Pacific Conference of the German Businesses का आयोजन हुआ। इसमें जर्मनी ने फोकस ऑन इंडिया डॉक्यूमेंट रिलीज़ किया। यही नहीं, स्किल्ड लेबर स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया उसे भी रिलीज़ किया गया। जर्मनी द्वारा निकाली गई ये पहली कंट्री स्पेसिफिक स्ट्रेटेजी है।

साथियों,

भारत-जर्मनी Strategic Partnership को भले ही 25 वर्ष हुए हों, लेकिन हमारा आत्मीय रिश्ता शताब्दियों पुराना है। यूरोप की पहली Sanskrit Grammer ये Books को बनाने वाले शख्स एक जर्मन थे। दो German Merchants के कारण जर्मनी यूरोप का पहला ऐसा देश बना, जहां तमिल और तेलुगू में किताबें छपीं। आज जर्मनी में करीब 3 लाख भारतीय लोग रहते हैं। भारत के 50 हजार छात्र German Universities में पढ़ते हैं, और ये यहां पढ़ने वाले Foreign Students का सबसे बड़ा समूह भी है। भारत-जर्मनी रिश्तों का एक और पहलू भारत में नजर आता है। आज भारत में 1800 से ज्यादा जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं। इन कंपनियों ने पिछले 3-4 साल में 15 बिलियन डॉलर का निवेश भी किया है। दोनों देशों के बीच आज करीब 34 बिलियन डॉलर्स का Bilateral Trade होता है। मुझे विश्वास है, आने वाले सालों में ये ट्रेड औऱ भी ज्यादा बढ़ेगा। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि बीते कुछ सालों में भारत और जर्मनी की आपसी Partnership लगातार सशक्त हुई है।

साथियों,

आज भारत दुनिया की fastest-growing large economy है। दुनिया का हर देश, विकास के लिए भारत के साथ साझेदारी करना चाहता है। जर्मनी का Focus on India डॉक्यूमेंट भी इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। इस डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि कैसे आज पूरी दुनिया भारत की Strategic Importance को Acknowledge कर रही है। दुनिया की सोच में आए इस परिवर्तन के पीछे भारत में पिछले 10 साल से चल रहे Reform, Perform, Transform के मंत्र की बड़ी भूमिका रही है। भारत ने हर क्षेत्र, हर सेक्टर में नई पॉलिसीज बनाईं। 21वीं सदी में तेज ग्रोथ के लिए खुद को तैयार किया। हमने रेड टेप खत्म करके Ease of Doing Business में सुधार किया। भारत ने तीस हजार से ज्यादा कॉम्प्लायेंस खत्म किए, भारत ने बैंकों को मजबूत किया, ताकि विकास के लिए Timely और Affordable Capital मिल जाए। हमने जीएसटी की Efficient व्यवस्था लाकर Complicated Tax System को बदला, सरल किया। हमने देश में Progressive और Stable Policy Making Environment बनाया, ताकि हमारे बिजनेस आगे बढ़ सकें। आज भारत में एक ऐसी मजबूत नींव तैयार हुई है, जिस पर विकसित भारत की भव्य इमारत का निर्माण होगा। और जर्मनी इसमें भारत का एक भरोसेमंद पार्टनर रहेगा।

साथियों,

जर्मनी की विकास यात्रा में मैन्यूफैक्चरिंग औऱ इंजीनियरिंग का बहुत महत्व रहा है। भारत भी आज दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है। Make in India से जुड़ने वाले Manufacturers को भारत आज production-linked incentives देता है। और मुझे आपको ये बताते हुए खुशी है कि हमारे Manufacturing Landscape में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा टू-व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। दूसरा सबसे बड़ा स्टील एंड सीमेंट मैन्युफैक्चरर है, और चौथा सबसे बड़ा फोर व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भी बहुत जल्द दुनिया में अपना परचम लहराने वाली है। ये इसलिए हुआ, क्योंकि बीते कुछ सालों में हमारी सरकार ने Infrastructure Improvement, Logistics Cost Reduction, Ease of Doing Business और Stable Governance के लिए लगातार पॉलिसीज बनाई हैं, नए निर्णय लिए हैं। किसी भी देश के तेज विकास के लिए जरूरी है कि हम Physical, Social और Digital Infrastructure पर Investment बढ़ाएं। भारत में इन तीनों Fronts पर Infrastructure Creation का काम बहुत तेजी से हो रहा है। Digital Technology पर हमारे Investment और Innovation का प्रभाव आज दुनिया देख रही है। भारत दुनिया के सबसे अनोखे Digital Public Infrastructure वाला देश है।

साथियों,

आज भारत में बहुत सारी German Companies हैं। मैं इन कंपनियों को निवेश और बढ़ाने के लिए आमंत्रित करता हूं। बहुत सारी जर्मन कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने अब तक भारत में अपना बेस नहीं बनाया है। मैं उन्हें भी भारत आने का आमंत्रण देता हूं। और जैसा कि मैंने दिल्ली की Asia Pacific Conference of German companies में भी कहा था, भारत की प्रगति के साथ जुड़ने का- यही समय है, सही समय है। India का Dynamism..Germany के Precision से मिले...Germany की Engineering, India की Innovation से जुड़े, ये हम सभी का प्रयास होना चाहिए। दुनिया की एक Ancient Civilization के रूप में हमने हमेशा से विश्व भर से आए लोगों का स्वागत किया है, उन्हें अपने देश का हिस्सा बनाया है। मैं आपको दुनिया के समृद्ध भविष्य के निर्माण में सहयोगी बनने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

Thank you.

दान्के !