नमस्कारम,
आप सभी का अभिनंदन।
स्वामी निर्विनानंदजी और आज यहां एकत्रित हुए श्री श्री ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के सभी भक्तों को बधाई।
मुझे श्री रामकृष्ण वचनामृत सत्रम के 7 दिवसीय सत्र के आरंभ में आप लोगों के बीच उपस्थित होने का सौभाग्य मिला।
जब मैं सोचता हूं कि बंगाल के एक महान विद्वान के शब्दों को मलयालम में अनुवाद कर केरल में पढ़ा जा रहा है और उस पर बहस हो रही है तो मैं मंत्रमुग्ध हो जाता हूं कि हमारे देश में किस प्रकार विचारों को साझा और स्वीकार किया जाता है।
एक भारत...श्रेष्ठ भारत का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है?
आपने जो यह प्रथा शुरू की है वह शास्त्रों और महान गुरुओं की शिक्षाओं को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराने की एक लंबी परंपरा पर आधारित है।
यह भारत की एक लंबी मौखिक परंपरा का हिस्सा है जो शाश्वत मूल्यों को बरकरार रखते हुए बदलते समय एवं परिस्थितियों को स्वीकार करने के लिए लगातार विकसित हुआ है।
श्रुतियों से स्मृतियों तक यह परंपरा विकसित हुई।
श्रुतियां, चार वेद और उपनिषद धर्म के स्रोत रहे हैं: ये पवित्र ज्ञान हैं जिन्हें भारतीय संतों द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रेषित किया गया।
श्रुतियों को ऐसा दिव्य ज्ञान माना जाता है जिसे मौखिक रूप से प्रेषित किया गया।
स्मृति ऐसा ग्रंथ है जो स्मृतियों और व्याख्याओं पर आधारित है।
चूंकि वेदों और उपनिषदों को समझना आम लोगों के लिए कठिन था, इसलिए बुनियादी सिद्धांतों को समझाने, व्याख्या करने और कहानियों एवं नैतिक पाठों के जरिये उसे स्पष्ट करने के लिए स्मृतियों की रचना की गई।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि महाकाव्य, पुराण और कौटिल्य का अर्थशास्त्र, ये सभी स्मृतियां हैं।
हरेक व्यक्ति तक उसके लिए सबसे उपयुक्त माध्यमों के जरिये पहुंचने का प्रयास लंबे समय से जारी है।
आम लोगों तक पहुंचने के लिए धर्म अथवा सही जीवन पद्धति को कहीं अधिक सुलभ बनाने और उसे उनके दैनिक जीवन के करीब लाने की आवश्यकता है।
भागवत में देवर्षि नारद द्वारा भगवान की स्तुति गायन का वर्णन आता है:
अहो देवर्षिर्धन्योऽयं यत्कीर्तिं शांर्गधन्वन:।
गायन्माद्यन्निदं तन्त्रया रमयत्यातुरं जगत्।।
‘अहो ! ये देवर्षि नारदजी धन्य हैं जो वीणा बजाते, हरिगुण गाते और मस्त होते हुए इस दुखी संसार को आनन्दित करते रहते हैं।’
भक्ति संतों ने भगवान को आम लोगों के करीब लाने के लिए संगीत, कविता, स्थानीय भाषा आदि का प्रयोग किया- उन्होंने जाति, वर्ग, धर्म और लिंग संबंधी बाधाओं को तोड़ दिया।
बाद में इन संतों के संदेशों का प्रसार लोक गायकों, कथा वाचकों और दस्तॉंगोइयों ने किया।
कबीर के दोहे, मीरा के भजन का प्रसार इन गायकों के जरिये गांव-गांव तक हो गया।
भारत एक ऐसी भूमि है जहां एक समृद्ध सांस्कृतिक एवं बौद्धिक वातावरण रहा है।
हमारा देश उन लेखकों, विद्वानों, संतों और सिद्धों की भूमि रही है जिन्होंने स्वतंत्र और निडर होकर अपनी अभिव्यक्ति की।
और जब भी मानव सभ्यता का इतिहास ज्ञान के युग में प्रवेश किया, भारत ने उसका पथ प्रदर्शन किया है।
भारत के बारे में एक गलत धारणा बनाई गई थी कि भारत को बाहरी लोगों द्वारा शुरू किए गए सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है।
यह भी उपनिवेशवाद का औचित्य साबित करने के लिए एक कारण बन गया।
इस तरह के विचार बिल्कुल बेबुनियाद हैं क्योंकि भारत की मिट्टी एक ऐसी मिट्टी है जहां से परिवर्तन शुरू होता है।
और यह परिवर्तन हमारे भीतर केंद्रित है जो हमारे संतों एवं सिद्धों द्वारा संचालित होता है जिन्होंने समाज को बदलने का अभियान छेड़ा और हमारे समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए सामाजिक आंदोलन का नेतृत्व किया।
हमारे संतों ने सामाज सुधार के लिए अपने अभियान में हरेक नागरिक को शामिल किया।
किसी को भी उस दायरे से बाहर नहीं छोड़ा गया।
यही कारण है कि हमारी सभ्यता सभी बाधाओं को पार करते हुए आज भी समृद्ध है।
जिन सभ्यताओं ने समय के साथ खुद को नहीं बदला, वे खत्म हो गईं।
जबकि हम अपनी प्रथाओं को सदियों से बदलते रहे।
कुछ प्रथाएं सदियों पहले तक प्रचलित थीं लेकिन यदि महसूस किया गया कि वे अनावश्यक हो चुकी हैं तो उन्हें बदल दिया गया।
नए विचारों के लिए हमारा दरवाजा हमेशा से खुला रहा है।
हमारे इतिहास में, हमारे संतों द्वारा किए गए कार्य भले ही छोटे दिखते हैं लेकिन उनका प्रभाव काफी व्यापक रहा और उसने हमारे इतिहास की धारा बदल दी।
किसी भी धर्म, किसी भी संस्कृति से काफी पहले, भारत में ऐसी महिला संत हुई हैं जिन्होंने लैंगिक समानता के मुद्दे को उठाया था।
उन्होंने निडर होकर लिखा और अपने दमदार लेखन के जरिये खुद को अभिव्यक्त किया।
हिंदू दर्शन में समय और स्थान की निरपेक्ष स्थिति के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में समय को स्वीकार किया गया है और हम लोग दिक-काल-बाधित हैं।
गुरु की भूमिका समय के संदर्भ में शाश्वत मूल्यों की व्याख्या करने के लिए है ताकि नदी की प्रवाह की तरह ज्ञान की धारा हमेशा ताजी और जीवंत बनी रहे।
शास्त्रों में कहा गया है:
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
जो लोग आपको प्रेरित करते हैं, जो लोग आपको सूचित करते हैं, जो लोग आपको सत्य बताते हैं, जो लोग आपको सिखाते हैं, आपको सही रास्ता दिखाते हैं और आपको जगाते हैं, वे सभी आपके गुरु हैं।
हमें केरल को बदलने में श्री नारायण गुरु की भूमिका को याद करना चाहिए।
पिछड़ी जाति से आने वाले एक संत और समाज सुधारक ने जाति की बाधाओं को पार कर सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया।
जब शवगिरि तीर्थयात्रा शुरू हुई थी तो उन्होंने शिक्षा, साफ-सफाई, भगवान के प्रति समर्पण, संगठन, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्य की घोषणा की थी।
समाज की उन्नति के लिए एक शिक्षक द्वारा मानकों की स्थापना का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है?
इस सभा में श्री रामकृष्ण के बारे में बोलना न्यूकैसल तक अंगारों को ले जाने की तरह लगता है, लेकिन मैं उन विशेषताओं के बारे में बताने से खुद को रोक नहीं सकता जिन्होंने उन्हें आज के समय में भी इतना अधिक प्रासंगिक बनाया है।
वह भक्ति संतों की परंपरा के थे और कथामृत में हमें चैतन्य महाप्रभु के कई संदर्भ- उनकी समाधि, उनके गाने, उनकी भक्ति- मिलते हैं।
लेकिन उन्होंने उस परंपरा को नवीनीकृत किया और उसे मजबूत बनाया।
उन्होंने मानसिक बाधाओं को तोड़ा जो हमें धर्म एवं जाति संबंधी बाधाओं से दूर रखता है।
वह सामाजिक समरसता के संत थे।
उनका संदेश सहिष्णुता, समर्पण और विभिन्न नामों- ज्ञानी, योगी और भक्त- से एक ईश्वर के सामने खुद को समर्पित कर देना है। ज्ञानी जिसे निरपेक्ष व्रह्म कहते हैं, योगियों द्वारा उसे ही आत्मा कहा जाता है और भक्त उसे दिव्य गुणों से संपन्न भगवान कहते हैं।
वह मुसलमान जीवन शैली में रहे, ईसाइयों की जीवन पद्धति को अपनाया और उन्होंने तंत्र साधना की।
उन्होंने पाया कि ईश्वर तक पहुंने के कई रास्ते हैं लेकिन भक्ति के साथ चलने पर वे सभी एक ही लक्ष्य तक पहुंचते हैं।
उन्होंने कहा, 'सत्य एक और समान है। अंतर केवल नाम और रूप में है।' उन्होंने कहा कि वह जल की तरह है जिसे विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे जल, नीर, पानी आदि।
इसी तरह जर्मन भाषा में इसे 'वासेर', फ्रांसिसी भाषा में 'इएवु', इटली की भाषा में 'एक्वा' और जापानी भाषा में 'मिजु' कहा जाता है।
केरल में आप इसे 'वेल्लम' कहते हैं।
ये सभी शब्दों से एक ही चीज निरूपित होता है जबकि केवल उसका नाम अलग-अलग है।
इसी प्रकार कुछ लोग सत्य को 'अल्लाह' कहते हैं, तो कुछ लोग 'गॉड', कुछ लोग उसे 'काली' पुकारते हैं तो कुछ अन्य लोग उसे 'राम', 'जीसस', 'दुर्गा', 'हरि' आदि नाम देते हैं।
उनकी शिक्षा हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है खासकर ऐसे समय में जब हम देखते हैं कि लोग जाति, धर्म के नाम पर विभाजन और दुश्मनी पैदा करते हैं।
महात्मा गांधी ने कहा था: रामकृष्ण का जीवन हमें ईश्वर का आमना-सामना करने में समर्थ बनाता है।
केवल ईश्वर सत्य है और बाकी सब भ्रम है, इसे समझे बिना कोई भी उनके जीवन की कहानी पढ़ नहीं सकता।
श्री रामकृष्ण प्राचीन और आधुनिक समय की कड़ी हैं।
उन्होंने दिखाया कि किस प्रकार प्राचीन आदर्शों और अनुभवों को आधुनिक जीवन शैली में भी ढ़ाला जा सकता है।
उन्होंने बड़ी सरलता से उपाख्यानों और संदेशों का प्रसार किया। लेकिन बेहद सरल होने के कारण वे श्रोताओं के दिमाग में बैठ गए।
यदि हमारे पास उनके जैसा गुरु नहीं होता तो क्या स्वामी विवेकानंद जैसे शिष्य होते क्या?
इस महान कर्मयोगी ने अपने गुरु के विचारों को आगे बढ़ाया- यत्र जीव, जत्र शिव- यानी जहां जीव है वहीं शिव है। और जीवे दया नोय, शिव ज्ञाने जीव सेबा- यानी जीव पर दया मत दिखाओ बल्कि खुद शिव की तरह उनकी सेवा करो। वह दरिद्र नारायण की सेवा के लिए जीवनभर समर्पित रहे।
स्वामी विवेकानंद ने कहा- भगवान की तलाश के लिए आपको कहां जाना चाहिए?
क्या ये सभी गरीब, लाचार, कमजोर भगवान नहीं हैं? सबसे पहले उनकी पूजा क्यों नही करते? ये सभी लोग ही आपके भगवान हैं।
उन्होंने आह्वान किया- 'दिल में जबरदस्त साहस और अदम्य शक्ति के साथ तीव्र कर्म-योग करने की जरूरत है। उसके बाद ही देश के लोगों को जागृत किया जा सकता है।' इससे हमें लगातार कार्य के प्रति प्रोत्साहन और उत्साह मिलता है।
रामकृष्ण मिशन का रिकॉर्ड इस प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
मिशन को हम गरीब क्षेत्रों में आदिवासियों के बीच काम करते हुए और आपदा से प्रभावित लोगों की पीड़ा कम करते हुए देख सकते हैं।
यह मायने नहीं रखता है कि व्यक्ति किस समुदाय से है, उसकी जाति अथवा धर्म क्या है। बल्कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नि:स्वार्थ भाव से उनकी सेवा की जा सकती है।
मिशन की वेबसाइट पर हमने यह ब्रह्मवाक्य देखा-
आत्मनो मोक्षार्थम जगत हिताय च
अपने उद्घार और दुनिया के कल्याण के लिए।
सेवा परमो धर्म:
पृथिवीं धर्मणा धृतां शिवां स्योनामनु चरेम विश्वहा।
(धर्म के द्वारा धारण की गई इस मातृभूमि की सेवा हम सदैव करते रहें)
मैत्री करुणा मुदितोपेक्षाणां। सुख दु:ख पुण्यापुण्य विषयाणां।वनातश्चित्तप्रासादनम्।
(दूसरे का दु:ख देखकर मन में करुणा, दूसरे का पुण्य (समाज सेवा आदि) देखकर आनंद का भाव,तथा किसी ने पाप कर्म किया तो मन में उपेक्षा का भाव 'किया होगा छोडो' प्रातिक्रियाएँ उत्पन्न होनी चाहिए।)
आज जो लौ प्रज्ज्वलित किया गया है- इस सत्रम की शुरुआत हुई है- वह हमारे दिलों को रौशन कर रहा है।
एक दीप से जले दूसरा, जलते दीप हजार।
हमारे सम्माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी कहते थे:
आओ फिर से दीया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दीया जलाएं।
आज श्री श्री ठाकुर रामकृष्ण के शब्द हमें सभी चीजों में ईश्वर को देखने के लिए और सबसे गरीब एवं सबसे कमजोर लोगों की सेवा करने के लिए खुद को और अपने अहंकार को दूर करने प्रेरित करते हैं ताकि हम अधिक से अधिक सत्य की तलाश कर सकें जो सभी धर्मों का सार है।
पुन: मैं उस महान शिष्य के शब्दों को दोहराना चाहूंगा जिनसे मैं प्रेरणा लेता हूं: आइये काम करें, जो कुछ भी हो रहा है उसे हम अपना कर्तव्य समझकर काम करते जाएं और भार उठाने के लिए अपने कंधों को हमेशा तैयार रखें।
तब निश्चित तौर पर हमें वह प्रकाश दिखेगा!
धन्यवाद,
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Privileged to be present among you at the beginning of the 7 day session of Sri Ramakrishna Vachanamrita Satram: PM https://t.co/Iy8hu3vQmx
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2017
India's oral tradition has evolved constantly to adapt to changing times and circumstances, keeping the eternal values intact: PM
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2017
To reach the common people, there was a need to make dharma, or right living, more accessible, closer to their daily lives: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2017
Bhakti saints used music, poetry, local languages to bring God closer to people - they broke barriers of caste, class, religion & gender: PM
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India is a land that is blessed with a rich cultural and intellectual milieu: PM @narendramodi
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Our land is home to writers, scholars, saints and seers who have expressed themselves freely and fearlessly: PM @narendramodi
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And whenever the history of human civilization entered into the era of knowledge, it is India that has always shown the way: PM
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A false perception was created about India that India needed social, political and economic reform initiated by outsiders: PM
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India’s soil is that soil from where change has always originated: PM @narendramodi
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Our Saints integrated each and every citizen in their quest for social reform. Nobody was left outside the ambit: PM @narendramodi
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Our civilization stands tall, overcoming obstacles: PM @narendramodi
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Our Saints did things that may seem seemingly small but the impact was very big and this altered the course of our history: PM
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We all remember the role of Shri Narayana Guru in transforming Kerala: PM @narendramodi
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Sri Sri Thakur Ramakrishna broke the mental barriers that keep us apart: PM @narendramodi
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He lived the Muslim way of life, he lived the Christian way of life, he practised tantra: PM @narendramodi
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"The Reality is one and the same;" he said, " the difference is in name and form" : PM @narendramodi
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His teachings are relevant to us today, when we are confronted with people who use religion, caste to divide & create animosity: PM
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Mahatma Gandhi said: “His (Ramakrishna’s) life enables us to see God face to face. (1/2)
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No one can read the story of his life without being convinced that God alone is real and that all else is an illusion." (2/2)
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If we had not a teacher like this, would there have been a disciple like Swami Vivekananda: PM @narendramodi
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एक दीप से जले दीप दूसरा और दीप जले हज़ार: PM @narendramodi
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Let Sri Sri Thakur Ramakrishna's words inspire us to see the divine in all things: PM @narendramodi
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To harness self & the ego in the service of the poorest & weakest so that we find the greater truth that is the essence of all religions: PM
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