अब समय आ गया है कि देश के विकास की नीति पर दोबारा रिसर्च किया जाए: प्रधानमंत्री मोदी
सबके लिए विज्ञान, इसका मतलब है कि समाज के आखिरी व्यक्ति को भी इसका लाभ मिले। उनकी जिंदगी अलग कैसे हो। समाज को आगे बढ़ाने और उनके कल्याण के लिए काम करना चाहिए: पीएम मोदी
मैं वैज्ञानिकों से अपील करुंगा कि हर साल करीब 100 घंटे स्कूली बच्चों के साथ बिताएं, इससे भारत का उज्जवल भविष्य तैयार होगा: प्रधानमंत्री
7 पूर्वोत्तर राज्यों में राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र स्थापित किए गए हैं: प्रधानमंत्री मोदी
आज के समय में समाज के लिए विज्ञान की काफी जरूरत है. क्या हमारे देश में बच्चों को सही तरीके से विज्ञान की जानकारी है, इस बात पर सोचना होगा: पीएम मोदी
हम 2030 तक 40% से अधिक बिजली के मिश्रण में गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षमता का हिस्सा बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं: प्रधानमंत्री
हमने 2022 तक 100 गीगावॉट की क्षमता की स्थापित सौर ऊर्जा का लक्ष्य तय किया है: प्रधानमंत्री मोदी
देश के विकास और भविष्य के लिए यह जरूरी है कि प्रौद्योगिकी का विस्तार तेजी से हो: पीएम मोदी
प्रधानमंत्री ने देश के वैज्ञानिकों से अपने अनुसंधान का विस्तार करने का अनुरोध किया

मणिपुर की राज्‍यपाल डॉ. नजमा हेपतुल्‍ला,

मणिपुर के मुख्‍यमंत्री श्री एन.बीरेन सिंह 

मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी डॉ. हर्षवर्धन,

मंच पर विराजमान गणमान्‍य अतिथिगण

प्रतिनिधिगण,

देवियो और सज्‍जनो,

आरंभ में मैं अपने उन तीन विशिष्‍ट महान भारतीय वैज्ञानिकों- पद्म विभूषण प्रो. यशपाल, पद्म विभूषण डॉ. यू. आर. राव तथा पद्मश्री डॉ. बलदेव राज के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि व्‍यक्‍त करता हूं, जिन्‍हें हमने हाल में खो दिया है। इन सभी वैज्ञा‍निकों ने भारतीय विज्ञान और शिक्षा में असाधारण योगदान किया। आइए हम सब अपने समय के महानतम भौतिक शास्‍त्री स्‍टीफन हॉकिंग के निधन से विश्‍व शोक में शामिल हों। वे आधुनिक अंतरिक्ष के सर्वाधिक प्रकाशवान सितारा थे। वह भारत के मित्र थे और उन्‍होंने हमारे देश की दो बार यात्रा की थी। आम व्‍यक्ति हॉकिंग का नाम जानता है इसलिए नहीं कि उन्‍होंने ब्‍लैक होल पर काम किया बल्कि इसलिए कि उन्‍होंने असामान्‍य रूप से उच्‍च संकल्‍प व्‍यक्‍त किया और सभी बाधाओं के बावजूद दृढ़ भावना के साथ काम किया। वे विश्‍व के सर्वकालिक महानतम प्रेरक के रूप में याद किए जाएंगे।

मित्रो,

मैं आज भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 105वें अधिवेशन के अवसर पर इम्‍फाल आकर हर्ष का अनुभव कर रहा हूं। मैं वैज्ञानिकों के बीच आकर प्रफुल्लित हूं, जिनका काम बेहतर कल का मार्ग प्रशस्‍त करने का रहा है। मुझे यह देखकर प्रसन्‍नता हुई कि सम्‍मेलन की मेजबानी मणिपुर विश्‍वविद्यालय कर रहा है। विश्‍वविद्यालय पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में उच्‍च शिक्षा के महत्‍वपूर्ण केन्‍द्र के रूप में उभर रहा है। मुझे बताया गया है कि सदी में यह दूसरा अवसर है, जब भारतीय विज्ञान कांग्रेस का सम्‍मेलन पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में हो रहा है। यह पूर्वोत्‍तर क्षेत्र की आगे बढ़ती भावना का साक्ष्‍य है।

यह भविष्‍य के लिए शुभ है। विज्ञान अनगिनत समय से प्रगति और समृद्धि का पर्याय रहा है। अपने देश के श्रेष्‍ठ वैज्ञानिक मस्तिष्‍क के रूप में यहां एकत्र आप सभी ज्ञान, नवाचार और उद्यम के भंडार हैं और इस परिवर्तन के वाहक के रूप में आप समुचित रूप से लैस हैं।

 ‘आरएंडडी’ को फिर से परिभाषित करने का उचित समय आ गया है। समय आ गया है कि  ‘अनुसंधान एवं विकास’ को राष्‍ट्र के ‘विकास’ के लिए ‘अनुसंधान’ के रूप में पुन: परिभाषित किया जाए। यही इसका वास्‍तविक अर्थ भी है। आखिरकार विज्ञान अधिक महान उद्देश्‍य को पूरा करने का साधन है-दूसरों की जिंदगी में बदलाव करना, मानव प्रगति और कल्‍याण को आगे बढ़ाना। शक्ति तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की क्षमता के जरिए 125 करोड़ भारतीयों के जीवन को  सहज बनाने के लिए भी संकल्‍प व्‍यक्‍त करने का सही समय आ गया है। मैं आज यहां मणिपुर की वीर भूमि पर हूं जहां नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस ने अप्रैल 1944 में आईएनए की स्‍वतंत्रता का आह्वान किया था। जब आप मणिपुर से जाएंगे तो मुझे विश्‍वास  है कि आप अपने साथ देश के लिए कुछ करने की समर्पण भावना के साथ यहां से जाएंगे। मुझे यह भी विश्‍वास है कि आप उन वैज्ञानिकों के साथ घनिष्‍ठता से काम करेंगे, जिनसे आप यहां मिले हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बड़ी समस्‍याओं के कारगर समाधान के लिए भी विविध धाराओं के वैज्ञानिकों के बीच सहयोग और समन्‍वय की आवश्‍यकता होती है। केन्‍द्र सरकार ने विज्ञान के क्षेत्र में पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के लिए अनेक नए कार्यक्रमों की शुरूआत की है। ग्रामीण कृषि  मौसम सेवा के अंतर्गत कृषि मौसम सेवाएं दी जा रही हैं। इससे पांच लाख से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं।  हम अब इस नेटवर्क को पूर्वोत्‍तर के सभी जिलों तक बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। अनेक केन्‍द्र पूर्वोत्‍तर के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रासंगिक बना रहे हैं। मणिपुर में एक ‘इथनो मेडिसनल रिसर्च सेंटर’ स्‍थापित किया गया है। यह केन्‍द्र पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में उपलब्‍ध उन जड़ी बूटियों पर शोध करेगा, जिनके औषधीय और सुगंध-चिकित्‍सकीय गुण अनूठे हैं।

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में राज्‍य जलवायु परिवर्तन केन्‍द्र स्‍थापित किए गए हैं। ये केन्‍द्र जोखिम विश्‍लेषण करेंगे और जलवायु परिवर्तन के बारे में लोगों को जागरूक बनाएंगे। हमने बांस को ‘पेड़’ की श्रेणी से अलग कर दिया है और इसका वर्गीकरण ‘घास’ के रूप में किया है, जोकि वैज्ञानिक है। इसके लिए हमने दशकों पुराने कानून को बदल दिया। यह संशोधन बांस की मुक्‍त आवाजाही की अनुमति देगा। यह सुनिश्चित करेगा कि उत्‍पादक और खपत केन्‍द्र अबाध रूप से एकीकृत हो सकें। इससे बांस इको-प्रणाली के संपूर्ण वैल्‍यूचेन की क्षमता का किसान उपयोग कर सकेंगे। सरकार 12 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ राष्‍ट्रीय बांस मिशन को नया रूप दे रही है। इस निर्णय से मणिपुर जैसे राज्‍यों को लाभ मिलेगा। 

मित्रो,

भारतीय विज्ञान कांग्रेस की समृद्ध विरासत रही है। आचार्य जे.सी. बोस, सी.वी रमण, मेघनाद साहा तथा एस.एन. बोस जैसे भारत के दिग्‍गज वैज्ञानिकों द्वारा इसका नेतृत्‍व किया गया है। इन महान वैज्ञानिकों द्वारा तय किए गए उत्‍कृष्‍टता के मानकों से नए भारत को प्रेरणा लेनी चाहिए। विभिन्‍न अवसरों पर वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में मैंने वैज्ञानिकों को अपनी सामाजिक, आर्थिक समस्‍याओं का समाधान ढूंढ़ने का आह्वान किया है।  मैंने उनसे आग्रह किया है कि वे गरीब और समाज के वंचित वर्गों के लाभ के लिए नई चुनौतियों को स्‍वीकार करें।

इस संदर्भ में इस वर्ष की भारतीय विज्ञान कांग्रेस का विषय ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्‍यम से अगम्‍य तक पहुंचना’ है। यह विषय मेरे हृदय के बहुत निकट है।

2018 में पद्मश्री से सम्‍मानित राजा गोपालन वासुदेवन के मामले को लें। वह मदुरै के प्रोफेसर हैं जिन्‍होंने सड़कों के निर्माण में प्‍लास्टिक कचरे का पुनर्पयोग का नवाचारी तरीका विकसित किया और इसे पेटेंट कराया। इस तरह से बनाई गई सड़कें अधिक टिकाऊ, जलरोधी और अधिक भार वहन करने वाली हैं। साथ-साथ उन्‍होंने प्‍लास्टिक कचरे के फूल कर बिखरने की समस्‍या के समाधान के लिए इसके सकारात्‍मक उपयोग की खोज की। प्रोफेसर वासुदेवन ने इस प्रौद्योगिकी को नि:शुल्‍क रूप से सरकार को दिया है। इस प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल 11 राज्‍यों में पांच हजार किलोमीटर सड़के बनाने के काम में किया जा रहा है।

इसी तरह 2018 में अरविन्‍द गुप्‍ता को पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया, जिन्‍होंने बच्‍चों को घरेलू सामान और कचरे से वैज्ञानिक प्रयोग के लिए विज्ञान सिखने की प्रेरणा दी। लक्ष्‍मी एयूवी मशीन के अविष्‍कार के लिए चिंताकिंदी मालेशम को 2017 में पद्मश्री दिया गया। यह मशीन साड़ी की सिलाई में लगने वाले समय और श्रम में कमी लाती है। इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप अपने शोध और नवाचार की दिशा समय की समस्‍याओं के समाधान करने की ओर दें और हमारे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। वैज्ञानिक सामाजिक दायित्‍य समय की आवश्‍यकता है।

मित्रो,

सत्र की विषय वस्‍तु ने भी कुछ सवाल खड़े किए हैं। क्‍या हमने यह सुनिश्‍चत करने के पर्याप्‍त उपाय कर लिए हैं कि भारत में समुचित मात्रा में बच्‍चों को विज्ञान की जानकारी मिल रही है?  क्‍या हम उन्‍हें उनके अंदर मौजूद प्रतिभा को विकसित करने के लिए हितकर माहौल दे रहे हैं? हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियों की जानकारी तेजी से समाज तक पहुंचनी चाहि। इससे युवाओं में वैज्ञानिक मनोवृत्ति पैदा करने में मदद मिलेगी। हमारे युवाओं के मन में विज्ञान में करियर बनाने के प्रति उत्‍साह और आकर्षण पैदा होगा। हमें अपने राष्‍ट्रीय संस्‍थाओं और प्रयोगशालाओं को बच्‍चों के लिए खोलना होगा। मैं वैज्ञानिकों का आह्वान करता हूं कि वे स्‍कूली बच्‍चों के साथ बातचीत के लिए एक उपयोगी तंत्र विकसित करें। मैं उनसे यह भी आग्रह करता हूं कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्‍न पहलूओं पर विचार-विमर्श करने के लिए 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षाओं के 100 छात्रों के साथ हर वर्ष 100 घंटे बिताएं। कल्‍पना कीजिए कि 100 घंटों और 100 छात्रों से हम कितने वैज्ञानिक पैदा कर सकते हैं!  

मित्रो,

हम 2030 तक विद्युत मिश्रण में गैर-जीवाश्‍म ईंधन आधारित क्षमता की हिस्‍सेदारी बढ़ा कर 40 प्रतिशत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत बहुदेशीय अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन और मिशन नवोन्‍मेष में अग्रणी है। इस समूहीकरण ने स्‍वच्‍छ ऊर्जा के लिए अनुसंधान और विकास के लिए प्रेरित किया है। परमाणु ऊर्जा विभाग 700-700 मेगावाट क्षमता के 10 नए घरेलू दाब भारी जल रिएक्‍टर स्‍थापित कर रहा है। इससे घरेलू परमाणु उद्योग को बढ़ावा मिला है। इसने प्रमुख परमाणु निर्माता राष्‍ट्र के रूप में भारत की साख को मजबूत किया है। हाल में सीएसआईआर ने दूध का परीक्षण करने के लिए का एक दस्‍ती उपकरण विकसित किया है, जिससे प्रत्‍येक परिवार को कुछ सेंकड के भीतर ही दूध की गुणवत्‍ता का परीक्षण करने में मदद मिलेगी। सीएसआईआर ने असाधारण आनुवांशिक बीमारियों के निदान के लिए किट विकसित करने में भी सफलता हासिल की है। किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सुगंधित और औषधीय पादपों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। 

हम भारत से तपेदिक (टीबी) को पूरी तरह से समाप्‍त करने के लिए समेकित प्रयास कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व नई दिल्‍ली में तपेदिक उन्‍मूलन शिखर सम्‍मेलन में हमने 2025 तक भारत से टीबी को समाप्‍त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। यह समय-सीमा डब्‍ल्‍यूएचओ द्वारा रखे गए 2030 के लक्ष्‍य से 5 वर्ष पूर्व है। हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम के पास एक ही समय में अंतरिक्ष में 100 उपग्रहों को सफलतापूर्वक स्‍थापित करने की क्षमता है। यह भारतीय वैज्ञानिकों के कठोर परिश्रम और समर्पण से संभव हुआ है।

चंद्रयान-1 की सफलता के बाद हम आने वाले महीनों में चंद्रयान-2 को छोड़ने की योजना बना रहे हैं। पूरी तरह से स्‍वदेशी इस प्रयास में एक रोवर द्वारा चंद्रमा की सतह पर उतरने और उस पर चलना शामिल है। पिछली सदी के महान वैज्ञानिक एलबर्ट आइंस्‍टाइन ने ‘’गुरूत्‍वाकर्षी तरंगों’’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। हम सभी के लिए यह भारी गर्व का विषय है कि नौ भारतीय संस्‍थानों से 37 भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतर्राष्‍ट्रीय लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविएशनल वेव ऑब्‍सरवेटरी (लीगो) में भाग लिया और 3 वर्ष पहले इस सिद्धांत को सही साबित किया। हमारी सरकार पहले ही देश में तीसरा लीगो डिटेक्‍टर स्‍थापित करने की मंजूरी दे चुकी है।  इससे हमारी लेजर, हल्‍की तरंगों और कम्‍प्‍यूटिंग के क्षेत्र में मूलभूत विज्ञान की जानकारी बढ़ सकेगी। मुझे बताया गया है कि हमारे वैज्ञानिक इसे हकीकत में बदलने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। मैंने शहरों, महत्‍वपूर्ण संस्‍थानों के आस-पास विज्ञान में उत्‍कृष्‍टता के कलस्‍टर विकसित करने के बारे में बात की। इसका उद्देश्‍य शहरों पर आधारित अनुसंधान और विकास का समूह बनाना है, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सभी साझेदारों, शिक्षकों से लेकर संस्‍थानों, उद्योगों से लेकर स्‍टार्टअप तक सभी को एक स्‍थान पर ले आएगा। इससे नई खोजों को बढ़ावा देने और विश्‍व के साथ प्रतिस्‍पर्धा करने योग्‍य अनुसंधान केन्‍द्र बनाने में मदद मिलेगी।

हमनें हाल ही में एक नई ‘’प्रधानमंत्री अनुसंधान फैलो’’ योजना को मंजूरी दी है। इस योजना के अंतर्गत देश के सर्वश्रेष्‍ठ संस्‍थानों जैसे भारतीय विज्ञान संस्‍थान, आईआईटी, एनआईटी, आईआईएसईआर तथा आईआईआईटी के प्रतिभावान छात्रों को आईआईटी और भारतीय विज्ञान संस्‍थान में पीएचडी कार्यक्रम में सीधे दाखिले की पेशकश की जाएगी। इस योजना से देश से प्रतिभाओं के पलायन की समस्‍या से निपटने में मदद मिलेगी। इससे विकास की उच्‍च अवस्‍था वाले विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में स्‍वदेशी अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सकेगा।

मित्रो,

भारत बड़ी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है जो हमारी आबादी के बड़े हिस्‍से को प्रभावित करता है। हमें भारत को स्‍वच्‍छ, हरित और समृद्ध  बनाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जरूरत है। मैं एक बार फिर वैज्ञनिकों से अपनी अपेक्षाओं को दोहराना चाहता हूं। हमारी जन-जातीय आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा सिकलसेल अनीमिया से प्रभावित है। क्‍या हमारे वैज्ञानिक निकट भविष्‍य में इस समस्‍या का सरल, सस्‍ता समाधान निकाल सकते हैं। हमारे बच्‍चों का एक बड़ा हिस्‍सा कुपोषण का शिकार है। इस समस्‍या से निपटने के लिए सरकार ने राष्‍ट्रीय पोषण मिशन शुरू किया। आपके सुझावों और समाधानों से हमें मिशन के उद्देश्‍यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है।

भारत में करोड़ों नए आवासों की जरूरत है। क्‍या हमारे वैज्ञानिक इस मांग को पूरा करने में हमारी मदद के लिए 3डी प्रिटिंग प्रौद्योगिकी अपना सकते हैं ? हमारी नदियां प्रदूषित हैं। इनकी सफाई के लिए आपके नए सुझावों और नई प्रौद्योगिकी की जरूरत है। हमें सौर और पवन ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण और विद्युत गतिशीलता उपायों, स्‍वच्‍छ कुकिंग, कोयले को स्‍वच्‍छ ईंधन जैसे मीथेनॉल, कोयले से स्‍वच्‍छ ऊर्जा, स्‍मार्ट ग्रिड, माइक्रो ग्रिड और जैव ईंधनों में बदलने सहित बहुविध दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

हमने 2022 तक स्‍थापित सौर ऊर्जा का 100 गीगावाट तक की क्षमता हासिल करने का लक्ष्‍य तय किया है। इस समय बाजार में 17 से 18 प्रतिशत तक सौर मॉडयूल्‍स कुशलता उपलब्‍ध है। क्‍या हमारे वैज्ञानिक सौर मॉडयूल की कुशलता बढ़ाने की चुनौती स्‍वीकार करेंगे, जो समान लागत पर भारत में उत्‍पादित की जा सके? कल्‍पना करें कि इस तरह हम कितने संसाधन बचा सकते हैं। इसरो अंतरिक्ष में उपग्रह संचालन के लिए सर्वोत्‍कृष्‍ट बैट्ररी प्रणालियों का इस्‍तेमाल करता है। अन्‍य संस्‍थान इसरो के साथ मिलकर मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक कारों के लिए सस्‍ती और कुशल बैट्ररी प्रणालियों का विकास कर सकते हैं। आवश्‍यकता है कि हम मलेरिया और जापानी बुखार जैसे खामोश हत्‍यारों से निजात पाने के लिए नई प्रक्रियाएं, दवाएं और टीकों का विकास करें। योग, खेल और पारम्‍परिक ज्ञान क्षेत्र में भी अनुसंधान करने की आवश्‍यकता है। लघु एवं मध्‍यम उद्योग इकाइयां रोजगार सृजन के महत्‍वपूर्ण स्‍तंभ हैं। वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा के मद्देनजर उन्‍हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। क्‍या हमारे वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी संस्‍थान लघु एवं मध्‍यम उद्यम क्षेत्रों के लिए काम कर सकते हैं और क्‍या वे प्रक्रियाओं तथा उत्‍पादों में सुधार लाने के लिए इन इकाइयों की सहायता कर सकते हैं?

हमें प्रौद्योगिकियों के क्रियान्‍वयन के संबंध में भविष्‍य के लिए तैयार होना होगा, जो राष्‍ट्र के विकास और समृद्धि के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी के जरिए शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा और बैंकिंग के क्षेत्र में हमारे नागरिकों को बेहतर सुविधाएं प्राप्‍त होंगी। भारत को 2020 तक 5-जी ब्रॉडबैंड दूरसंचार नेटवर्क के विकास के लिए प्रौद्योगिकियों, उपकरणों, मानकों और निर्माण के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए। कृत्रिम बौद्धिकता, बिग डाटा विश्‍लेषण, मशीन लर्निंग और साइबर-फिजिकल प्रणालियों और कुशल संचार की एकीकृत क्षमता, स्‍मार्ट निर्माण, स्‍मार्ट सिटी और उद्योग की सफलता के लिए प्रमुख घटक हैं। आइए, 2030 तक वैश्विक नवाचार सूचकांक में 10 शीर्ष देशों के बीच भारत को स्‍थापित करने का लक्ष्‍य तय करें।  

मित्रो

आज से चार साल बाद हम अपना 75वां स्‍वतंत्रता दिवस मनाएंगे। हमने सामूहिक रूप से प्रण किया है कि 2022 तक नव-भारत का निर्माण करेंगे। हमें ‘सबका साथ सबका विकास’ की भावना के तहत समृद्धि को बांटने की दिशा में अग्रसर होने की आवश्‍यकता है। इस लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए आप में से हरेक को पूरे हृदय से योगदान करना होगा। भारत की अर्थव्‍यवस्‍था विकास के ऊंचे मार्ग पर अग्रसर है। परंतु मानव विकास संकेतकों में हम नीचे हैं। इसके महत्‍वपूर्ण कारणों में से एक कारण यह है कि राज्‍यों में असमानता है और विकास में उतार-चढ़ाव है। इसे दूर करने के लिए हमने 100 से अधिक आकांक्षी जिलों के कामकाज में सुधार लाने के लिए समेकित प्रयास शुरू किया है। हम स्‍वास्‍थ्‍य एवं पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल संसाधन, वित्‍तीय समावेश, कौशल विकास और आधारभूत संरचना जैसे महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्‍यान देंगे। इन सभी क्षेत्रों के लिए नवाचार माध्‍यमों की जरूरत है, जो स्‍थानीय चुनौतियों का सामना तथा आवश्‍यकताओं को पूर कर सके। इस मामले में ‘सबके लिए सुलभ समान आकार’ की अवधारणा काम करेगी। क्‍या हमारे वैज्ञानिक संस्‍थान इन आकांक्षी जिलों की सहायता करेंगे? क्‍या वे कौशल तथा उद्यमशीलता पैदा करने के लिए उचित प्रौद्योगिकियों का सृजन और निरूपण करेंगे?

यह भारतमाता की महान सेवा होगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की खोज और उसके उपयोग के संबंध में भारत की एक समृद्ध परम्‍परा और लम्‍बा इतिहास रहा है। समय आ गया है कि हम इस क्षेत्र में अग्रणी रार्ष्‍टों के बीच अपने स्‍थान को फिर से प्राप्‍त करें। मैं वैज्ञानिक समुदाय का आह्वान करता हूं कि वे शोध को अपनी प्रयोगशालाओं से निकाल कर जमीनी स्‍तर पर लाएं। मुझे विश्‍वास है कि हमारे वैज्ञानिकों के समर्पित प्रयासों से हम बेहतर भविष्‍य के मार्ग पर चल पड़ेंगे। हम अपने लिए और अपने बच्‍चों के लिए उज्‍ज्‍वल भविष्‍य की कामना करते हैं।

धन्‍यवाद । 

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PM Modi visits the Indian Arrival Monument
November 21, 2024

Prime Minister visited the Indian Arrival monument at Monument Gardens in Georgetown today. He was accompanied by PM of Guyana Brig (Retd) Mark Phillips. An ensemble of Tassa Drums welcomed Prime Minister as he paid floral tribute at the Arrival Monument. Paying homage at the monument, Prime Minister recalled the struggle and sacrifices of Indian diaspora and their pivotal contribution to preserving and promoting Indian culture and tradition in Guyana. He planted a Bel Patra sapling at the monument.

The monument is a replica of the first ship which arrived in Guyana in 1838 bringing indentured migrants from India. It was gifted by India to the people of Guyana in 1991.