प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए समयबद्ध, तुरंत कदम उठाने और एकाग्रचित्त होकर पूर्ण प्रयास करने का आह्वान किया है। श्री मोदी आज यहां ''नमामि गंगे'' परियोजना की एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने 'नमामि गंगे' का उल्लेख करते हुए कहा कि मुख्यत: गंगा के स्रोत पर ही प्रदूषण रोकने के लिए दो प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना जरूरी है। इसमें शहरों की गंदगी और औद्योगिक कचरे का प्रवाह शामिल है। उन्होंने जोर देते हुए कहा ''गंगा को गंदा न करें।''
प्रधानमंत्री को नदी के आसपास के उन स्थानों की जानकारी दी गई जहां सबसे अधिक प्रदूषण होता है। इस दौरान अपशिष्ट शोधन की क्षमता की खामियों के बारे में भी उल्लेख किया गया। गंगा के किनारे स्थित कुल 764 ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान की गई, जहां से गंगा में सर्वाधिक प्रदूषण फैलता है। गंगा नदी में सर्वाधिक तीन-चौथाई कचरा तो चमड़ा उद्योग, कागज और चीनी उद्योग ही फैलाते हैं।
प्रधानमंत्री ने उद्योगों के अपशिष्ट जल का फिर से इस्तेमाल करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण रोकने के लिए प्रेरित करना चाहिए और ऐसा न करने पर मौजूदा कानून के दायरे में उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने निजी तौर पर किए जाने वाले प्रयासों और उद्यमियों के सहयोग से गंगा के किनारे आधुनिक और पर्यावरण अनुकूल दाह संस्कार गृह बनाये जाने की संभावना खोजने का आह्वान किया।
गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए 'गंगा वाहिनी' नामक स्वयं सेवकों का दल बनाये जाने को स्वीकृति दी गई है और स्वयं सेवकों के इस संगठन को बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं। प्रदूषण रोकने के लिए 118 नगर निकायों को चिन्हित किया गया है, जिन्हें प्रदूषण रोकने के लक्षित दायरे में अगले 5 साल में शामिल कर लिया जाएगा।
प्रधानमंत्री को इस समय जारी सीवरेज और नदी आधारित विकास परियोजनाओं की भी जानकारी दी गई।
बैठक में मंत्रीगण श्री वैंकेया नायडू, श्री नितिन गडकरी, सुश्री उमा भारती, श्री प्रकाश जावड़ेकर और एवं अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी उपस्थित थे।