प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रद मोदी ने 30 जून को ‘स्वराज्य’ को दिए साक्षात्कार में वर्ष 2014 में यूपीए से सत्ता हासिल करने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की मौजूदा चुनौतियों, आर्थिक सुधार विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण एवं भारतीय बैंकिंग को वापस पटरी पर लाने की कोशिशों को लेकर इसके रुख, 2019 में एनडीए को महागठबंधन से मिलने वाली सियासी चुनौतियों, एनडीए के अपने सहयोगी दलों की समस्या, कश्मीर संकट, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में सत्ता के कथित केन्द्रीकरण और भारतीय जनता पार्टी में प्रतिभा की कमी सहित कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बातें कहीं।
प्रधानमंत्री के साक्षात्कार का दूसरा और अंतिम हिस्साः-
महागठबंधन के पास मोदी को हटाने के अलावा कोई एजेंडा नहीं
स्वराज्यः अब हम अर्थशास्त्र से राजनीति की ओर चलें। 2019 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और विपक्ष के महागठबंधन की चर्चा जोरों पर है। क्या आप ऐसे गठबंधन के बनने से चिंतित हैं? ऐसे गठबंधन अल्पावधि में सफल दिखते हैं जैसा कि 1977 और 1989 में हुआ था।
मोदीः भाजपा विकास और सुशासन के मुद्दे पर चुनाव लड़ती है। विभिन्न क्षेत्रों खासकर आर्थिक, सुरक्षा, सामाजिक न्याय, विदेश नीति में हमारी सरकार ने अच्छा काम किया है। 2014 के बाद देश के सभी हिस्सों में लोगों ने हमें बार-बार अपना आशीर्वाद दिया है। एक के बाद एक कई राज्यों में हमें ऐतिहासिक जनादेश मिले हैं, इसलिए हमें विश्वास है कि लोग हम पर फिर भरोसा जताएंगे।
जहां तक महागठबंधन का सवाल है, वर्ष 1977 और 1989 से तुलना करना ही गलत है। 1977 में गठबंधन का साझा उद्देश्य अपने लोकतंत्र की सुरक्षा करना था जो आपातकाल की वजह से खतरे में पड़ गया था। 1989 में बोफोर्स में भारी भ्रष्टाचार से पूरा देश आहत था।
आज, यह गठबंधन राष्ट्र हित से प्रेरित नहीं है, यह महज व्यक्तिगत अस्तित्व, को बचाने और सत्ता हथियाने की राजनीति है। इनके पास मोदी को हटाने के अलावा दूसरा कोई एजेंडा नहीं है।
स्वराज्यः गठबंधन राजनीति के मामले में विपक्ष भाजपा से एक कदम आगे दिखता है।
मोदीः भारत के लोगों को यह समझना होगा कि कांग्रेस गठबंधन की राजनीति को लेकर क्या सोचती है। 1998 में कांग्रेस का पचमढ़ी में सम्मेलन हुआ था जहां खुद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने ही गठबंधन राजनीति को ‘बीता हुआ दौर’ कहा था और कांग्रेस ने एकदलीय शासन की अपनी इच्छा जाहिर की थी।
पचमढ़ी के अहंकार से हटकर कांग्रेस अब सहयोगियों की खोज में जहां-तहां दौड़ लगा रही है। वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसा भारत की जनता की वजह से हो रहा है जिन्होंने कांग्रेस को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है।
हर गठबंधन को जोड़ने वाले कारक या एक मजबूत पार्टी की जरूरत होती है। आज कांग्रेस की हैसियत एक क्षेत्रीय दल की रह गयी है। कांग्रेस का शासन सिर्फ पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में है। दिल्ली, आंध्र प्रदेश और सिक्किम की विधानसभा में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व तक नहीं है। बिहार और उत्तर प्रदेश में उसकी ताकत भी जगजाहिर है, तो इस गठबंधन को जोड़ने वाला तत्व कौन है?
भारत के लोग यह भी जानते हैं कि कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ कैसा व्यवहार करती है। वे धोखा देने और दूसरों को अपमानित करने के लिए जाने जाते हैं, चाहे वह चौधरी चरण सिंह जी या एचडी देवगौडा जी जैसे किसान नेता हों या चन्द्रशेखर जी और वीपी सिंह जी जैसे समाजवादी हों। अपने स्वार्थ में कांग्रेस किसी का भी त्याग कर सकती है।
स्वराज्यः लेकिन वे अभी एक महागठबंधन में एकजुट दिख रहे हैं।
मोदीः विपक्ष में कोई महागठबंधन नहीं है, वहां सिर्फ प्रधानमंत्री बनने की होड़ लगी है। राहुल गांधी कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं, लेकिन टीएमसी इससे सहमत नहीं है। ममता जी प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं, लेकिन वाम दलों को इसमें दिक्कत है। एसपी सोचती है कि उनके नेता प्रधानमंत्री बनने के लिए अन्य नेताओँ की तुलना में अधिक सक्षम हैं। विपक्ष का पूरा ध्यान सत्ता की राजनीति में है, लोगों के विकास से उसका कोई सरोकार नहीं है।
विपक्ष के लिए मोदी से नफरत ही एकमात्र जोड़ने वाली ताकत है और ऐसा नहीं है कि उन्होंने 2014 और इसके बाद विभिन्नर राज्यों में हुए चुनावों में महागठबंधन की कोशिश नहीं की थी। नतीजे सबके सामने हैं।
इन दलों और नेताओं की नापसंद और अविश्वास कब तक इनको एक साथ जोड़े रखेगी? विपक्ष विभिन्न राज्यों में एक-दूसरे से सीधे कड़े मुकाबले में है जैसा कि पश्चिम बंगाल और केरल में है। पिछली बार (1993 में) इन दलों ने सरकार बनाई थी जो दो साल तक भी नहीं चली। इस तरह की अस्थिरता देश के विकास को बुरी तरह से प्रभावित करती है।
स्वराज्यः लेकिन उन्होंने हाल ही में कर्नाटक में सरकार बनाई है।
मोदीः भविष्य में क्या होने वाला है, उसकी एक झलक कर्नाटक में देखी जा सकती है। जनादेश को धता बताकर वहां सरकार बनाई गई लेकिन गठबंधन में खींचतान जारी है। आप मंत्रियों से यह उम्मीद करते हैं कि वे विकास से जुड़े मुद्दों का समाधान निकालने के लिए मिलते हैं लेकिन कर्नाटक में वे अंतर्कलह को दबाने के लिए मिलते हैं। ऐसे में विकास पीछे छूट गया है।
किसी भी चुनाव में गैर-सैद्धांतिक और अवसरवादी गठबंधन से अराजकता आना तय है। आगामी चुनाव में विकल्प के रूप में एक तरफ सुशासन और विकास होगा, तो दूसरी तरफ अराजकता होगी।
स्वराज्यः विपक्ष की राजनीति में उभार जारी रहेगा, लेकिन जब एनडीए की बात आती है तो सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। 2014 में भाजपा को ऐतिहासिक बहुमत मिला था और एनडीए को अब तक का सर्वश्रेष्ठत आंकड़ा प्राप्तऔ हुआ था लेकिन सहयोगी दलों की स्थिति भाजपा जैसी नहीं है। क्या आज का एनडीए एक कमजोर एनडीए है?
मोदीः आपका सवाल दो दशक पुराना है। ऐसा लगता है कि आप नब्बे के दशक में चले गये हैं जब एक अहम राजनीतिक सवाल था कि क्या अटल जी को सहयोगी मिलेंगे? क्या दूसरे दल कभी बीजेपी को समर्थन देंगे? 1996 में बीजेपी सरकार नहीं बना सकी थी लेकिन बाद में दो साल के भीतर अटल जी के नेतृत्व में विस्तासरित एनडीए ने 6 साल तक देश की सेवा की।
आज स्थिति पहले से बेहतर है। 20 दलों के साथ एनडीए एक विशाल और खुशहाल परिवार है। यह भारत के विभिन्न राज्यों में मजबूत गठबंधन है। ऐसा कौन अन्य प्रभावकारी सदस्यता वाला गठबंधन है जो कई राज्यों में शासन कर रहा है।
मैं आपको अभी से पीछे वर्ष 2014 के चुनावी प्रचार वाले समय में ले जाना चाहता हूं जब लोग पूछते थे कि क्या मोदी को सहयोगी मिलेंगे? सही बात यह है कि उस वक्त हमारे गठबंधन में 20 से अधिक दल शामिल थे।
हां, यह सच है कि 2014 में बीजेपी को विशेष जनादेश मिला था। उस वक्त हम आसानी से अपने बल पर सरकार बना सकते थे। लेकिन, हमने ऐसा नहीं किया और एनडीए सहयोगियों को हमने अपनी सरकार का हिस्सा बनाया।
आपको समझना होगा हम बीजेपी के लोग एनडीए को किस रूप में देखते हैं। एनडीए हमारी बाध्यता नहीं है। यह विश्वास का मामला है। एक विशाल और विविध एनडीए भारत के लोकतंत्र के लिए अच्छा है।
हमारे जैसे देश में क्षेत्रीय अपेक्षाओं को सम्मान देना काफी महत्वपूर्ण है। पूरे भारत में इन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए एनडीए प्रतिबद्ध है।
स्वराज्यः अब हम भाजपा की बात करते हैं, अपना सामाजिक आधार बढ़ाने के लिए भाजपा क्या कर रही है? कारोबारी समुदाय जैसे कुछ आपके पुराने समर्थक जीएसटी की वजह से नाखुश हैं। आपको अक्सर हिंदी बेल्ट की पार्टी माना जाता है।
मोदीः यह एक पुराना मिथक है कि भाजपा का सामाजिक आधार नहीं है, जो कुछ खास लोगों द्वारा फैलाया गया है। हमें ब्राह्मण-बनिया की पार्टी कहा जाता था, उसके बाद यह कहा गया कि हम शहरी पार्टी हैं और अब हमें उत्तर भारत आधारित पार्टी कहा जाता है। यह बिल्कुल गलत है।
हमारी पार्टी को सभी सामाजिक समूहों का समर्थन प्राप्त है। हमारा सामाजिक दायरा काफी बढ़ा हुआ है। ये परिवारों द्वारा चलाई जा रही पार्टियां हैं जिन्हें सिर्फ कुछ ही सामाजिक समूहों का समर्थन हासिल है।
सच्चाई यह है कि 1984 में जब भाजपा ने केवल 2 सीटें जीती थीं तो उनमें से एक सीट दक्षिण की थी और दूसरी सीट पश्चिम से (दोनों गैर हिंदी भाषी राज्यों से) थी।
चूंकि आपने मुझसे भाजपा और इसके सामाजिक आधार के बारे में पूछा है तो आपको गुजरात में भाजपा के प्रदर्शन का अध्ययन करना चाहिए। वहां हम लगातार जीत रहे हैं। इस बार भी हमें 49 प्रतिशत मत मिले हैं। यह किसी एक दल के लिए सामान्य बात नहीं है कि वह किसी राज्य में 27 वर्षों तक सत्ता में बना रहे।
स्वराज्य: ऐसा विचार बनता जा रहा है कि भाजपा उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य में पिछड़ रही है जहां आपने 2014 में लोकसभा की और 2017 में विधानसभा की काफी सीटें जीती थीं।
मोदी: इस मुद्दे पर, आपको दो तरह के विचार मिलेंगे। एक, पार्टी के पक्ष में अब भी ‘हवा’ है। दूसरा, यह लहर बहुत पहले ही खत्मप हो चुकी है।
आप लोग राजनीति के वरिष्ठ पर्यवेक्षक रहे हैं। मैं इसे आपके विवेक पर छोड़ता हूं, इस मुद्दे पर आप अपनी राय विकसित करें।
मुझे आपसे एक बात साझा करनी है। 1998 के गुजरात चुनाव से पहले भाजपा ने पूरे गुजरात में कुछ स्थानीय चुनावों में बहुत अच्छास प्रदर्शन नहीं किया था। बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा था कि क्या हम विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं। पहले मैंने संदर्भ समझाने की कोशिश की और यह बताया कि स्थानीय चुनाव किस तरह विधानसभा चुनाव से भिन्न होते हैं। आखिरकार हमने चुनाव के स्वारूप से जुड़े ब्यौरों का एक छोटा सा फोल्डर बनाया। जब भी कोई पूछता था तो उसे मैं एक फोल्डर दे देता था और कहता था कि इसे पढ़कर मेरे पास आओ।
जब 1998 में चुनाव हुआ, तो भाजपा ने गुजरात में दो-तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाई।
स्वराज्यः क्या आपको लगता है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का आपका आइडिया निकट भविष्य में साकार हो पाएगा? इस पर कोई आपका समर्थन क्यों नहीं कर रहा है?
मोदीः सबसे पहले मैं आपको बता दूं कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का मुद्दा नरेन्द्र मोदी का विचार नहीं है। यह ऐसा मुद्दा है जिसे कई लोग अलग-अलग समय पर उठाते रहे हैं। श्री प्रणब मुखर्जी और श्री लालकृष्ण आडवाणी जैसे राजनीतिज्ञों ने इसके बारे में कहा है। हाल ही में श्री नवीन पटनायक ने इस विचार का समर्थन किया है।
दरअसल, यदि आप 1947 के बाद के इतिहास पर गौर करें तो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे, इसका मतलब यह है कि इसके एक साथ होने के दृष्टांत भी हैं।
क्या आपको पता है कि भारत में एक साझा मतदाता सूची नहीं है, इसका मतलब संसदीय, विधानसभा और स्थानीय स्तर के चुनावों के लिए मतदाता सूचियां अलग-अलग हैं।
बार-बार चुनाव होना और चुनाव के तौर-तरीकों से यह जाहिर होता है कि मतदाता सूची के नवीकरण के लिए एक प्रतिबद्ध संसाधन होते हैं। इसकी कोई गारंटी नहीं होती कि पहले स्थान पर जिस चुनाव के लिए इसका नवीकरण किया गया था उसके बाद के चुनाव में इसका इस्तेमाल होगा कि नहीं।
मतदाताओं को यह जांच करते रहना पड़ता है कि सूची में उनके नाम हैं कि नहीं। एक साझा मतदाता सूची और एक साथ चुनाव इसे बदल सकता है। इससे गलतियों और मतदाताओं के नाम छूट जाने की संभावना भी काफी कम हो जाएगी।
स्वराज्यः इस विचार के फायदे क्या-क्या हैं?
मोदीः एक जनसेवक के रूप में हमारी अहम भूमिका सुशासन सुनिश्चित करने और उन लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करना है जिन्होंने हम पर विश्वास जताया है। एक साथ चुनाव न होने की वजह से बार-बार चुनाव आचार संहिता लागू होने के साथ-साथ लंबे समय तक प्रचार अभियान चलने के कारण विकास से जुड़े फैसले लेने में देरी होती है।
पूरी चुनावी प्रक्रिया में व्याचपक संसाधन लगते हैं। अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर भी भार पड़ता है।
चुनाव में उचित सुरक्षा उपाय करने की भी जरूरत पड़ती है। एक साथ चुनाव कराने से हमारे सुरक्षा कर्मचारियों की कम समय के लिए चुनावी ड्यूटी लगेगी और वे अपने राज्यों में अधिक समय ड्यूटी कर सकेंगे और सुरक्षा पर ध्या न केन्द्रित करेंगे।
मेरा ऐसा मानना है कि चुनाव का जो मौजूदा स्वरूप है उससे संघीय ढांचा कमजोर होता है। ऐसा चुनाव के दौरान प्रचार अभियान में आक्रामक तरीका अपनाने और राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के दलों के एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में खड़े होने से होता है।
चुनाव पर एक खास समय बिताने के बाद चुनाव के बाद की अवधि पूरे देश में चुनी हुई सरकारों के लिए शासन और विकास पर ध्यान रखने की होती है।
लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराने से संसाधनों की बर्बादी कम होगी और इससे भारत की प्रगति के साझा उद्देश्य को हासिल करने के लिए सहकारी संघवाद की भावना के साथ काम करने की स्वस्थ संस्कृति पैदा होगी।
मैं आप जैसे मीडिया संगठनों, नीति निर्माताओं और युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे जितना अधिक हो सके, इस मुद्दे पर चर्चा करें और ऐसे प्रभावी रूपरेखा के साथ सामने आएं जिससे कि एक साथ चुनाव कराने का आइडिया सफल हो।
माओवादी खतरे, पूर्वोत्तर में उग्रवाद और जम्मू-कश्मीर में प्राथमिकताओं पर विचार
स्वराज्यः क्या अब राजनीति से हट कर आंतरिक सुरक्षा पर बात करें? क्याा माओवादी खतरे को कम करने के लिए सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियां कारगर साबित हो रही हैं?
मोदीः चूंकि आपने आंतरिक सुरक्षा की बात पूछी है इसलिए मैं सबसे पहले अपने बहादुर सुरक्षाबलों को नमन करता हूं जो सदा सतर्क रहते हैं और 125 करोड़ भारतीयों की शांति और समृद्धि सुनिश्चित करते हैं। आप हमारी सुरक्षा व्यवस्था का आकलन इस आधार पर कर सकते हैं कि यूपीए शासन के दौरान लगातार होते रहे आतंकी हमले अब इतिहास बन चुके हैं।
पिछले चार साल के दौरान माओवादी हिंसा की घटती संख्या से हर भारतीय को खुश होना चाहिए। 2013 की तुलना में 2017 में माओवादी हिंसा में मौतों की संख्या में 34 प्रतिशत की कमी के साथ नक्सल प्रभावित राज्यों में माओवादी हिंसा 20 प्रतिशत घटी है।
भौगोलिक स्तर पर माओवादी हिंसा का प्रभाव क्षेत्र काफी सिमट गया है।
स्वराज्यः क्या यह केवल सुरक्षा और बल के बारे में ही है या विकास के बारे में भी?
मोदीः यह सच है कि माओवादी हिंसा ने मध्य एवं पूर्वी भारत में कई जिलों की प्रगति को बाधित किया था। यही वजह है कि 2015 में हमारी सरकार ने माओवादी हिंसा के उन्मूलन के लिए एक व्यापक ‘राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना’ बनाई। हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता के साथ, हमने इन क्षेत्रों में रहने वाले गरीब लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बुनियादी ढांचे एवं सामाजिक अधिकारिता को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने पर भी ध्यान केन्द्रित किया है।
विकास पर अद्वितीय फोकस के सार्थक परिणाम नजर आ रहे है।
माओवाद प्रभावित 34 जिलों में लगभग 4,500 किलोमीटर सड़कों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है। पहले, इतनी गति और इतने बड़े पैमाने पर काम करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
लगभग 2,400 मोबाइल टावर लगाए गए हैं और कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अतिरिक्त 4,072 टावरों का अनुमोदन किया गया है।
जब हमने कार्यभार संभाला तो हमें पता चला कि माओवादी हिंसा से सबसे ज्याादा प्रभावित 35 जिलों में से 11 में कोई भी केंद्रीय विद्यालय नहीं है। 8 नए केंद्रीय विद्यालय और 5 जवाहर नवोदय विद्यालय बच्चोंै को गुणवत्ताकपरक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
ये बड़े आवासीय विद्यालय हैं और इनमें विज्ञान, आईटी शिक्षा तथा पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियों के संदर्भ में प्रशिक्षित शिक्षक और शानदार बुनियादी ढांचा है। युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इन स्थायनों पर 15 आईआईटी और 43 कौशल विकास केन्द्र स्थाइपित किये गये हैं।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की बैंकों तक सीमित पहुंच थी। अप्रैल 2015 और दिसम्बथर 2017 के बीच नक्सल हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित 35 जिलों में लगभग 430 नई बैंक शाखाएं और 1045 एटीएम खोले गये।
मैंने व्यक्तिगत रूप से कई अवसरों पर छत्तीासगढ़, झारखंड और पश्चिम बंगाल का दौरा किया। 14 अप्रैल (अम्बेेडकर जयंती) को आयुष्माबन भारत (प्रत्येवक चयनित परिवार को 5 लाख रुपये का स्वा्स्य्रत बीमा) के पहले चरण की शुरूआत बस्तकर से हुई जो भारत के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
स्वराज्यः क्या वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूईई) से प्रभावित क्षेत्र का दायरा सिमट गया है ?
मोदी : किसी भी क्षेत्र को एलडब्यूया ई से प्रभावित क्षेत्र नहीं कहा जाता है। इससे स्थाानीय आबादी के दिलो दिमाग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बदली हुई जमीनी हकीकत के आधार पर एलडब्यूा ई प्रभावित 126 जिलों की सूची में से 44 जिलों को हटा दिया गया है। ये वो जिले हैं जिनमें पिछले चार सालों के दौरान किसी भी तरह की हिंसा नहीं देखी गई है।
सरकार की नीतियों की बदौलत, विकास के प्रति प्रतिबद्धता तथा किसी भी हिंसा को कतई बर्दाश्तो नहीं करने की नीति के चलते 2014 से 2017 के बीच 3,380 माओवादियों ने समर्पण किया जबकि, 2010 से 2013 कि बीय यह आंकड़ा 1,380 था।
भारत महात्मा गांधी, भगवान बुद्ध और भगवान महावीर की भूमि है, जिसका अहिंसा और भाईचारे का एक समृद्ध इतिहास है।
लोगों की समस्या का समाधान हिंसा से नहीं बल्कि विकास से किया जा सकता है। इसीलिए हमारा दृष्टिकोण (किसी भी तरह की हिंसा और गड़बड़ी को कतई बर्दाश्तृ नहीं करना) हिंसाग्रस्त क्षेत्रों के विकास की दिशा में संसाधनों को बढ़ाना है।
स्वराज्यः जब हम सुरक्षा की बात करते हैं तो हम आपकी व्यदक्तिगत सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठाना चाहते हैं। आपके शुभचिंतक जब आपको रोड शो, जिनकी संख्याा बढ़ती जा रही है, करते हुए देखते हैं तो वे परेशानी महसूस करते हैं।
मोदी : जब भी मैं यात्रा करता हूं तो देखता हूं कि समाज के सभी आयु वर्ग के कई लोग गलियों में आकर मेरा अभिवादन और स्वा गत करते हैं।
उनके स्ने ह और प्याेर को देखते हुए मैं अपनी कार पर बैठे नहीं रह सकता। इसी कारण मैं नीचे उतरता हूं और जितनी कोशिश हो सके, लोगों से मिलता हूं और बातचीत करता हूं।
स्वराज्यः जम्मूी-कश्मीर में गठबंधन ने उस तरह का कार्य नहीं किया जैसी आपने परिकल्पयना की थी। अब वहां राज्यपाल शासन लागू है, राज्यआ के लिए क्यान उद्देश्यर है?
मोदी : कश्मीर में हमारा लक्ष्य सुशासन, विकास, जिम्मेादारी और उत्त रदायित्वक है।
स्वराज्यः क्या् वहां संबंधित पक्षों के साथ बातचीत होगी?
मोदी : हमने एक वार्ताकार नियुक्त् किया है जो कई लोगों के संपर्क में हैं। वह अंदरूनी इलाकों में यात्रा कर लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं।
स्वराज्यः राजनीतिक रूप से भाजपा ने पूर्वोत्तंर में अपने कदम बढ़ाये हैं लेकिन क्याा सुरक्षा हालात अब बेहतर हैं?
मोदी : पूर्वोत्तरर के सुरक्षा हालात में काफी सुधार हुआ है। 2017 में पिछले 20 सालों की तुलना में उग्रवाद संबंधित घटनाएं और सुरक्षाबलों तथा आम नागरिकों में हताहतों की संख्यान न्यूानतम रही है।
त्रिपुरा और मिजोरम में उग्रवाद लगभग खत्मह हो चुका है। मेघालय में 31 मार्च 2018 से राज्य के सभी हिस्सों से सशस्त्रह बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम हटा दिया गया है और अरुणाचल प्रदेश में यह केवल आठ पुलिस स्टे शनों में बाकी है।
पूर्वोत्तुर में हमारे भाइयों और बहनों की सुरक्षा के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पुलिस के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है। जब भी जरूरत होती है तो अतिरिक्ती भारतीय रिजर्व बटालियनें बनाई जाती हैं।
यह बेहद परेशान कर देने वाली स्थितति होती है जब गुमराह युवक हिंसा का दामन थामते हैं। हम इन युवाओं को मुख्य धारा में वापस लाना चाहते हैं, ताकि ये भारत के विकास में योगदान दे सकें। पूर्वोत्तेर में आत्म समर्पण–सह-पुनर्वास नीति है। अप्रैल 2018 में हमने नीति को संशोधित किया ताकि अधिक से अधिक ऐसे युवा मुख्यद धारा में वापस आ सकें जो आतंकवाद की तरफ चले गये थे।
जैसा कि मैंने नक्सेली हिंसा के बारे में बताया था कि विकास पर विशेष जोर देने के अच्छे नतीजे आ रहे हैं।
पूर्वोत्तर से संबंधित मंत्रालय वहां के सर्वांगीण विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। यहां तक कि एक नियम बनाया गया है जो यह सुनिश्चिरत करता है कि हर 15 दिन में एक मंत्री या एक वरिष्ठा अधिकारी पूर्वोत्तर का दौरा करेगा। मैं खुद इस क्षेत्र की 30 यात्राएं कर चुका हूं।
स्वराज्यः पूर्वोत्तार भी बाकी भारत से बेहतर तरीके से जुड़ रहा है ...
मोदी : कनेक्टिविटी एक क्षेत्र के विकास को बेहतर तरीके से बढ़ावा देता है। यह हमारी सरकार थी जिसने त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय को भारत के रेलवे मानचित्र पर आने का गौरव प्रदान किया।
इसके अलावा मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा भी देश के ब्रॉड-गेज मानचित्र पर हैं।
कुछ सप्ता ह पहले तीन दशकों में पहली बार वाणिज्यिक उड़ान अरुणाचल प्रदेश पहुंची थी। सड़क नेटवर्क का विस्तावर किया जा रहा है और जलमार्गों का भी उपयोग किया जा रहा है।
केन्द्रल सरकार पूर्वोत्तोर की जैविक खेती की क्षमता का उपयोग करने के लिए संसाधन प्रदान कर रही है। इस क्षेत्र में सिक्किम ने बहुत अच्छाए प्रदर्शन किया है और इस क्षेत्र में अन्य राज्यों के पास भी बेहतर करने की क्षमता है।
विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ बेहतर सुरक्षा हालात भी लोगों को हिंसा और अस्थिरता के खतरों के बारे में जागरूक कर रहे हैं। इससे राज्यर के युवाओं की आकांक्षाएं भी पूरी हो रही हैं।
पीएमओ की उत्प्रे रक भूमिका, सरकार में ‘प्रतिभा की कमी’ और, कांग्रेस की ‘आपातकालीन संस्कृभति’
स्वराज्यःचलिए, अब सरकार के बारे में बात करते हैं? ऐसा कहा जा रहा है कि यह हाल के वर्षों में सबसे ताकतवर पीएमओ है? एक कार्यालय के हाथों में सभी अधिकार आ जाना हमारे देश के लिए अच्छाा नहीं है।
मोदी : आपके प्रश्नध का उत्त र भी आपके प्रश्न में ही छिपा हुआ है। यदि आप पिछले पीएमओ की तुलना वर्तमान पीएमओ से करेंगे तो तब मुझे नहीं लगता है कि किसी को भी आश्चमर्य नहीं होगा कि कौन ज्याुदा निर्णायक और शक्तिशाली है। हर कोई जानता है कि यूपीए सरकार के दौरान कैसे चीजें चलती थी। सुशासन को बढ़ावा देने की बजाय पीएमओ राजनीतिक दाव पेंच में उलझा हुआ था। जब भी राजनीति हावी हो जाती है तो शासन पीछे चला जाता है।
इस एनडीए सरकार के तहत कोई भ्रम या कोई गलत प्राथमिकता नहीं है। प्रत्येेक संस्थाकन और शासन के हर स्त र को अधिकार सम्पछन्नप बनाया गया है ताकि वो जो करना चाहता है कर सके। पीएमओ भी सुशासन और विकास की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए आवश्य क स्पाष्टकता, निर्णायकता की अपनी जिम्मेकदारी को ईमानदारी और प्रभावी ढंग से पूरा कर रहा है।
स्वराज्यः यह बहुत ही सामान्य स्परष्टी करण है ...
मोदी : केवल सामान्य बातों से परे जाने से पहले आपको हमारी सरकारी प्रणाली में अंतर्निहित संरचना को गहराई से समझना होगा। कार्य के नियमों को आवंटन में प्रत्ये क कार्यालय की भूमिका और जिम्मेकदारियां स्पमष्ट रूप से निर्धारित की गई हैं। पीएमओ का अधिदेश प्रधानमंत्री को सचिवालय संबंधी सहायता प्रदान करना है। मंत्रालय अपने संबंधित क्षेत्रों में सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं जबकि नीति आयोग, कैबिनेट सचिवालय और पीएमओ जैसे कार्यालय अंत: क्षेत्रवार, दीर्घकालिक और बड़ा परिप्रेक्ष्या प्रदान करते हैं।
इसलिए, एक उत्प्रेरक की तरह कार्य करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ‘टीम इंडिया’ – एक ऐसी टीम जो न केवल हमारे केन्द्रीय मंत्रालयों से निर्मित है, बल्कि जिसमें प्रत्येक राज्य सरकार भी शामिल है- के एजेंडे एवं प्राथमिकताओं को सुगम बनाती है, संयोजित करती है तथा समन्वित करती है। हमारी प्रगति पहल का उदाहरण लें, जिसमें प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए हम प्रत्येक महीने सभी केन्द्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और यहां तक की जिला प्रशासनों को समस्याओं एवं लम्बे समय से चल रहे मुद्दों तथा चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक मंच पर ले आते हैं, कई बार तो ऐसी चुनौतियां दशकों पुरानी होती हैं। आप इसे केन्द्रीकरण या हस्तक्षेप कहेंगे या निर्णायक युक्तियां कहेंगे, जो सक्रिय तथा सक्षम बनाती है।
आइए, आपको हम स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित एक और उदाहरण दें। आज भारत में इस क्षेत्र में एक रूपांतरण देखा जा रहा है। भारत के प्रयासों को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के शानदार टीमवर्क से ऊर्जा मिल रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय इतने सारे मंत्रालयों एवं विभागों को एक साथ लाने तथा समन्वित करने में सहयोग देता है। पहले अलग-थलग काम करने के कारण, जो एक पृथक कार्य क्षेत्र बन जाया करता था, अब हम एकीकरण के जरिए उनका समाधान करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, कुछ चुने हुए ‘ताकतवर’ लोगों की सनक पर काम करने वाली पुरानी व्यवस्था की जगह अब निर्णायक रूप से एक संस्थागत और लोकतांत्रिक अभिशासन प्रक्रिया ने ले ली है, जो हमारे संविधान में हमारे पूर्ववर्तियों द्वारा वर्णित सिद्धांतों के अनुरूप पूर्ण मनोयोग से कार्य कर रही है।
इस प्रधानमंत्री कार्यालय में, 125 करोड़ लोग हमारे ‘आलाकमान’ हैं।
स्वराज्यः ऐसा लगता है कि आपके मंत्रालय में प्रतिभाओं की कमी है....कुछ मंत्री अच्छा प्रदर्शन करते नहीं प्रतीत हो रहे.....
मोदी: यह एक गलत धारणा है। सिर्फ इसलिए कि केवल कुछ ही मंत्री और मंत्रालय अखबार के प्रथम पेज और टीवी पर प्राइम-टाइम में दिखाए जाने वाले वाद-विवाद में छाए रहते हैं, इसलिए उन्हें प्रतिभाशाली मान लिया जाता है, जबकि दूसरों को इनके ठीक विपरीत समझ लिया जाता है। परंपरागत सोच के तहत भी मंत्रालयों का वर्गीकरण कर दिया जाता है और फिर उसके अनुसार ही उन्हें प्रभावशाली मान लिया जाता है।
हालांकि, हमारी सरकार की कार्य शैली अलग है। मैं कुछ उदाहरणों के साथ अपनी बात को स्पसष्टा करना चाहता हूं।
हम सबसे पहले ग्रामीण आवास के बारे में बात करते है। यह ऐसा क्षेत्र नहीं है जो शहरों या डिजिटल दुनिया से जुड़ा हुआ है।
पिछले चार वर्षों में ग्रामीण इलाकों में एक करोड़ से भी अधिक मकान बनाए गए हैं। यह एक बड़ा आंकड़ा है। करोड़ों भारतीय जिनके सिर पर छत नहीं थीं, अब उनके अपने घर हो गए हैं।
ग्रामीण आवास पर कार्यरत टीम द्वारा किए गए काम के बारे में आपको थोड़ा सा संकेत देते हुए मैं यह बताना चाहूंगा कि यूपीए ने 2010 से 2014 तक के अपने अंतिम चार वर्षों में 25 लाख मकान बनाए थे। यह आंकड़ा एनडीए सरकार द्वारा बनाए गए मकानों की कुल संख्या का मात्र एक चौथाई है। किसी के द्वारा किए गए इस काम को मीडिया में कई लोग 'गैर-प्रतिभाशाली' कहेंगे।
मैं आपको सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से संबंधित एक और उदाहरण देना चाहता हूं।
पारंपरिक तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह मंत्रालय "तड़क-भड़क" वाला नहीं है, इसलिए यह उतनी ज्यािदा सुर्खियां नहीं बटोर पाता है जितना इसे हासिल करना चाहिए। हालांकि, मैं इस विभाग द्वारा किए गए असाधारण कार्यों की एक झलक आपके समक्ष पेश करता हूं।
इस साल एससी और एसटी समुदायों के कल्याण के लिए बजट आवंटन 95,000 करोड़ रुपये रहा, जबकि ओबीसी के कल्याण के लिए बजट में 41 प्रतिशत की भारी-भरकम वृद्धि की गई।
यह इस 'गैर-प्रतिभाशाली मंत्री' के नेतृत्व का ही परिणाम है कि हमारी सरकार को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम में सबसे मजबूत संशोधन सुनिश्चित करने का गौरव प्राप्त हुआ।
भारत सरकार डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर से जुड़े पांच उल्लेखनीय स्थतलों को 'पंचतीर्थ' के रूप में विकसित कर रही है। इनमें से दो स्थतलों की आधारशिला रखने के साथ-साथ वहां निर्मित इमारतों का उद्घाटन करने का भी गौरव मुझे प्राप्त हुआ है जिनमें दिल्ली में 26, अलीपुर रोड स्थित महापरिनिर्वाण भूमि और 15, जनपथ स्थित डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर शामिल हैं।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांगता के प्रकार को 7 से बढ़ाकर 21 के स्त र पर पहुंचा दिया गया। पहली बार तेजाब हमलों के पीड़ितों को इस सूची में शामिल किया गया है। अधिनियम में 6 से 18 वर्ष तक की आयु के दिव्यांग बच्चों के लिए नि:शुल्कल शिक्षा के अधिकार के प्रावधान शामिल हैं।
सरकारी नौकरियों में दिव्यांगजनों के लिए आरक्षण को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे हमारी दिव्यांग बहनों और भाइयों को कई और अवसर प्राप्तद होंगे।
पिछले चार वर्षों में मंत्रालय ने 7,200 से भी अधिक शिविर लगाए हैं जिनके माध्यम से 11 लाख दिव्यांगजन लाभान्वित हुए हैं।
दिव्यांगजनों के लिए गरिमा और समान अवसर सुनिश्चित करने के उद्देश्यज से ‘सुगम्य भारत अभियान’ के तहत उल्ले्खनीय प्रयास किए गए हैं। इन सक्रिय प्रयासों की बदौलत सरकारी भवनों को दिव्यांगजनों के लिए सुगम्य बनाने की गति अद्वितीय रही है। इसी तरह सभी 34 अंतरराष्ट्रीय और 48 घरेलू हवाई अड्डों को दिव्यांगजनों के लिए सुगम्य बना दिया गया है। इसी प्रकार 709 ‘ए1’, ‘ए’ और ‘बी’ श्रेणी के रेलवे स्टेशनों में से 644 स्टेाशनों को दिव्यांगजनों के उपयोग के लिए सुगम्य बनाया जा चुका है।
ये सभी कार्य उत्तम आइडिया और अन्यर विभागों से उचित समन्वय दोनों ही के संदर्भ में मंत्रालय की सक्रिय भूमिका की बदौलत संभव हो सके हैं।
इसी साक्षात्कार में मैंने कृषि क्षेत्र में हुई उल्लेवखनीय प्रगति के बारे में विस्ताकर से बात की है। एक 'गैर-प्रतिभाशाली' मंत्री के नेतृत्व में विभाग ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी अत्यादधुनिक पहल हैं, जिससे करोड़ों किसानों तक लाभ पहुंच रहा है।
मैंने सिर्फ ये तीन उदाहरण दिए हैं....मुझे अपने सभी सहयोगियों और उनके काम पर गर्व है।
स्वराज्य: कुछ ऐसे अतिवादी विचार जोर पकड़ रहे हैं कि भाजपा सरकार में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विभिन्नड संस्थानों की अखंडता कमजोर पड़ रही है। आप इसका जवाब किस प्रकार से देना चाहेंगे?
मोदी: आपने स्वयं ही इस तरह के विचारों के लिए बिल्कु्ल सटीक शब्द का उपयोग किया है - अतिवादी!
हाल ही में देश ने आपातकाल की 43वीं वर्षगांठ मनाई है। यह प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संस्थानों की अखंडता और स्वसयं लोकतंत्र पर हमला था। हमारे कई वरिष्ठ नेताओं को आपातकाल के दौरान कड़ी यातनाएं सहनी पड़ीं क्योंकि वे इन अधिकारों हेतु लड़ने के लिए खड़े हुए थे।
असल में हमारे कुछ नेता, जिनमें कई वर्तमान कैबिनेट मंत्री, विभिन्न राज्यों के मंत्री भी शामिल हैं, आपातकाल के दौरान जेल गए और उन्ंीडत लाठियां भी खानी पड़ीं। इससे यह पता चलता है कि हम लोकतांत्रिक मूल्यों और स्वतंत्रता को कितनी अहमियत देते हैं। इसलिए भाजपा सरकार में विभिन्नर संस्था नों की छवि धूमिल होने जैसे वाद-विवाद को मैं पूरी तरह से निरर्थक और गलत मानता हूं। यह हमारी मूल्य पद्धति बिल्कुल भी नहीं है।
वास्तव में, यदि आप वर्ष 1947 से लेकर अब तक के भारत के इतिहास के पन्ने पलटेंगे, तो आप यह पाएंगे कि यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही है जिसने हमारे लोकतंत्र, न्यायपालिका और मीडिया को बार-बार नुकसान पहुंचाया है।
भारत के गणतंत्र बनने के लगभग एक दशक बाद ही वर्ष 1959 में नेहरू सरकार ने केरल में लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार को गिरा दिया था। कांग्रेस की सरकारों द्वारा जितनी बार अनुच्छेद 356 लगाया गया उसकी संख्या का विस्तृत अध्ययन करने पर यह चौंकाने वाली तस्वीर स्प ष्ट रूप से उभर कर सामने आती है कि कांग्रेस सरकार ने आखिरकार कैसे हमारे लोकतंत्र को ताक पर रख दिया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वोयं बगैर ठोस आधार के 50 से भी अधिक बार अनुच्छेद 356 लगाया था। यदि एक परिवार को कोई विशेष राज्य सरकार नहीं भाती थी, तो समस्तर संसाधनों को उसे बर्खास्तज करने या गिराने में लगा दिया जाता था।
स्वराज्यः लेकिन वह समय तो गुजर चुका है.....
मोदीः कांग्रेस पार्टी की संस्कृति आपातकाल की संस्कृति है- जो निश्चित रूप से 1947 के बाद सबसे अंधकारपूर्ण समय रहा है। मीडिया, न्यायालयों एवं सरकारी विभागों को सत्ता की राजनीति और एक अलोकतांत्रिक मानसिकता का बंधक बना दिया गया।
पिछले 7 से 8 वर्षों की घटनाओं पर भी नजर डालें। कांग्रेस ने हर संभावित संस्थान का अपमान करना शुरू कर दिया। मोदी के प्रति घृणा से लेकर वे भारत के प्रति भी घृणा का भाव रखने लगे हैं।
कांग्रेस जब सत्ता में होती है, उस वक्त उसकी अलग चालाकी होती है और जब सत्ता से बाहर होती है उस वक्त उसकी अलग धूर्तता होती है, लेकिन तब भी संस्थानों के प्रति उसका असम्मान स्पष्ट है। कांग्रेस जब सत्ता में थी, उस वक्त उसके नेताओं ने एक सेना प्रमुख एवं सीएजी का इसलिए उत्पीड़न किया क्योंकि वे कांग्रेस की राह पर नहीं चल रहे थे।
जब वे विपक्ष में हैं, तो उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए भारतीय सेना का उपहास किया, हमारे अन्य सुरक्षाबलों की त्रुटियां निकालीं। अब वे विख्यात रेटिंग एजेंसियों पर भी हमले कर रहे हैं, क्योंकि वे भारत के प्रति आशावादी है, वे भारतीय रिजर्व बैंक का भी अपमान कर रहे है....अब वे न्यायालयों के पीछे पड़े हैं।
भारत की चुनाव प्रकिया पर उनका हमला खतरनाक है। उन्हें ईवीएम में उस वक्त कोई त्रुटि नजर नहीं आई, जब उन्होंने 2009 में या विभिन्न राज्यों में जीत हासिल की। इसके बजाये कि, वे आत्म निरीक्षण करें कि आखिर एक राज्य के बाद दूसरे राज्य के लोग क्यों उन्हें नकार रहे हैं, कांग्रेस चुनाव प्रक्रिया में दोष निकाल रही है। ऐसी विचार प्रक्रिया को लेकर कोई क्या कह सकता है?
जहां तक मीडिया का सवाल है तो मैंने बार-बार कहा है कि मीडिया द्वारा रचनात्मक आलोचना हमारे लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाती है तथा और अधिक रचनात्मक आलोचना का हम स्वागत है। सोशल मीडिया के उद्भव ने वास्तव में हमारे संवाद को और अधिक लोकतांत्रिक बना दिया है। इससे पहले केवल कुछ ही स्वःनियुक्त विशेषज्ञ कुछ विशेष मुद्दों के बारे में बोलते हुए देखे जाते थे, अब भारत के किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा खुद को अभिव्यक्त करने के लिए केवल एक ट्वीट या फेसबुक पोस्ट करना पड़ता है।
हमारे संस्थान और हमारा लोकतंत्र हमेशा से गतिशील रहा है। भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार को कुचला नहीं जा सकता है।
स्वराज्यः आंतरिक मामलों के बाद आइए, अब हम विदेश नीति पर चर्चा करें। यह सर्वविदित है कि विश्व के अग्रणी राजनेताओं के साथ आपने व्यक्तिगत समीकरण स्थापित कर लिए हैं, लेकिन क्या उन समीकरणों का परिणाम भारत की विदेश नीति में ठोस लाभों के रूप में सामने आया है।
मोदीः एनडीए सरकार की विदेश नीति अद्वितीय परिणामों के साथ अभूतपूर्व लोक संपर्क के लिए जानी जाती है। भारत विश्व के साथ न केवल 125 करोड़ भारतीयों के हितों के लिए, बल्कि दुनिया को हमारी अगली पीढ़ियों के लिए बेहतर स्थान बनाने के लिए जुड़ा है।
जहां तक मेरे विदेश दौरों का सवाल है, तो एक चीज, जो मैं हर जगह महसूस करता हूं, वह यह कि भारत को विश्व में एक प्रकाशमान स्थान के रूप में देखा जा रहा है।
दुनिया में भारत के प्रति आकर्षण किस तरह बढ़ रहा है, यह समझने के लिए भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या पर नजर डालें। 2017 में पहली बार भारत में 10 मिलियन से अधिक विदेशी पर्यटक आवक दर्ज कराई गई। यह 2014 की तुलना में 33 प्रतिशत से भी अधिक है और अपनी तरह का एक रिकॉर्ड है।
हमारे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक की तरफ नजर डालें। मई 2014 में, भारत में संचयी एफडीआई इक्विटी आवक लगभग 222 बिलियन डॉलर थी। 2017 के आखिर तक यह बढ़कर 368 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई, जो 65 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी दर्शाती है। भारत में एफडीआई आवक भी रिकॉर्ड ऊंचे स्थान पर है। ‘मेक इन इंडिया’ से लेकर ‘स्मार्ट सिटीज’, ‘स्वच्छ गंगा’ से ‘स्वच्छ भारत’ और ‘डिजिटल इंडिया’ से लेकर ‘स्टार्ट अप इंडिया’ तक हमने दुनियाभर में अभूतपूर्व साझेदारियां विकसित की हैं।
प्रौद्योगिकी, कौशल विकास, कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में जहां हमने दुनियाभर की कई सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों का अनुसरण किया है। कई देश भारत भर में नगरों के साथ साझेदारी कर रहे हैं और ‘स्मार्ट सिटीज’ बनने की उनकी कोशिशों में मदद कर रहे हैं।
आज भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल व्यवस्था, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप एवं वासेनार समझौता का एक सदस्य है। यह विश्व के लिए ठोस प्रभावों के साथ बेहद महत्वपूर्ण संगठन है और भारत ने पहली बार वहां जाकर अपना पक्ष रखा। चार वर्ष पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी। वास्तव में भारत वर्षों से इन संगठनों के साथ जुड़ने के लिए प्रयत्न कर रहा था।
आप यह भी देख सकते है कि विश्व किस प्रकार भारत के विचारों को अहमियत देता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के भारत के प्रस्ताव को रिकॉर्ड समय में सर्वसम्मति से स्वीकृति प्राप्त हुई। एक अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सृजित करने का प्रस्ताव एक नए वैश्विक समझौता आधारित संगठन के माध्यम से वास्तविकता में तब्दील हो गया है।
कालेधन और आतंकवाद से लड़ने की भारत की कोशिशों को जी-20 में उल्लेखनीय समर्थन प्राप्त हुआ। हमने शंघाई सहयोग संगठन का एक पूर्ण सदस्य बनने में भी सफलता पाई है। ब्रिक्स से लेकर राष्ट्रमंडल एवं पूर्व एशिया सम्मेलन तक भारत की आवाज पहले की तुलना में बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
इस वर्ष भी मैंने चीन एवं रूस में दो अनौपचारिक सम्मेलनों में भाग लिया। इन सम्मेलनों में मुझे राष्ट्रपति शी जिनपिंग एवं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ विस्तार से क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने का अवसर मिला। इन सम्मेलनों ने चीन एवं रूस के साथ हमारी मित्रता को बहुत ताकत दी है।
भारत संकट के समय विश्व के प्रत्येक नागरिक की सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहा है। यह उस वक्त दृष्टिगोचर हुआ जब नेपाल में भूकम्प आया, जब मालदीव में जल संकट पैदा हुआ या जब पश्चिम एशिया में लोग फंसे हुए थे। हम संकटग्रस्त लोगों की राष्ट्रीयता नहीं देखते, बल्कि मनुष्य की हर प्रकार से सहायता करते हैं। हम दुनियाभर में मुसीबत में फंसे 90 हजार से अधिक भारतीयों को राहत देने में सफल रहे हैं।
इसी के साथ-साथ, मेरी सरकार ने किसी भी विकास सहयोग परियोजनाओं को आरंभ करने या संपन्न करने में किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के दौरों के लिए प्रतीक्षा की वजह से उसमें देरी नहीं की है। पहले यह एक सामान्य प्रवृत्ति रही थी, लेकिन मैंने खुद परियोजनाओं का उद्घाटन करने, शिलान्यास करने, या कभी-कभी विदेशी श्रोताओं को संबोधित करने, चाहे वे प्रवासी भारतीय समुदाय हों या विदेशी व्यवसायी हों या भारत में निवेश करने के इच्छुक निवेशक हों, को संबोधित करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग किया है।
एक अन्य क्षेत्र, जो कई लोगों को दिलचस्प लगेगा, वह है शिल्पकृतियों की वापसी। 2016 में, वाशिंगटन डीसी के ब्लेयर हाउस में एक विशेष समारोह में अमेरिका ने 200 ऐतिहासिक शिल्पकृतियां वापस कीं। भारत की अपनी यात्रा के दौरान चांसलर एंजेला मर्केल ने दसवीं सदी की दुर्गा की एक प्रतिमा वापस की। ऑस्ट्रेलिया ने भी मूल्यवान शिल्पकृतियां वापस की हैं। मेरा यह सुनिश्चित करने का सतत प्रयास है कि हमारे इतिहास की इन महत्वपूर्ण कलाकृतियों को भारत में वापस लाया जाए और अधिक से अधिक भारतीय बेहतर तरीके से अपनी संस्कृति को समझने के लिए उन्हें देख पायें।
इस प्रकार, आप देख सकते हैं कि चाहे व्यापार, प्रौद्योगिकी, कौशल प्रशिक्षण का मामला हो या आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, पिछले चार वर्षों के दौरान भारत की विदेश नीति में उल्लेखनीय लाभ हासिल किए गए हैं।
समाप्त