नरेन्द्र मोदी ने 6 अप्रैल, 2013 को अहमदाबाद में कार्यकर्ता महासम्मेलन के दौरान कार्यकर्ताओं से कहा-

भाजपा की यात्रा भारत के लोगों के बीच आशा की किरण पैदा करने की यात्रा है। आज भाजपा जहां भी पहुँची है, वह एक व्यक्ति की वजह से नहीं है, बल्कि कार्यकर्ताओं की कई पीढ़ियों की कड़ी मेहनत, पसीने और बलिदान के कारण है। हमारे लिए देश हमेशा पार्टी से ऊपर रहेगा। भाजपा पहले भारतके अपने आदर्श वाक्य के साथ आगे बढ़ती ही रहेगी!

Organiser par excellence: Man with the Midas Touch

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिन्होंने एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपनी यात्रा आरंभ की और देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचे, इसकी वजह यह है कि उनमें लगभग एक गुणी कलाकार की तरह संगठनात्मक भावना तथा किसी भी उत्तरदायित्व को कुशलता से सफलतापूर्वक निभाने की गहरी क्षमता कूट-कूट कर भरी है। यहां तक कि जब वे एक पार्टी कार्यकर्ता थे तब भी अपनी संगठनात्मक भूमिका के तौर पर किसी भी कार्यभार को लाजवाब तरीके से पूरा करने की अपनी योग्यता के लिए वे जाने जाते थे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें ऐसे क्षेत्रों में समस्याओं का निवारण करने के लिए भेजा जो कि पार्टी के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे। जब भी उन्हें पार्टी में कोई जिम्मेदारी दी गई – चाहे वह किसी चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में एक रैली या एक चुनाव अभियान का आयोजन करना हो – वे हमेशा उम्मीद से अधिक खरे उतरे।

आज तक वह हर स्तर पर कार्यकर्ताओं की संगठनात्मक भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर जोर देते हैं और अक्सर इसके बारे में बोलते भी हैं।

यह वह भाषण है जो कि नरेन्द्र मोदी ने अहमदाबाद में उमस भरी सितम्बर की एक दोपहर को उस समय दिया था जब वे भाजपा की युवा शाखा यानी ‘भारतीय जनता युवा मोर्चा’ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए मंच पर आसीन थे। इस भाषण का मुख्य संदेश बूथ प्रबंधन के महत्व पर केंद्रित था।

“बूथ प्रबंधन चुनाव के दौरान बहुत महत्वपूर्ण है। जिस तरह आप एक किला जीते बिना एक युद्ध नहीं जीत सकते, उसी तरह आप मतदान बूथ पर एक जीत हासिल किए बिना कोई चुनाव नहीं जीत सकते। मतदान बूथ पर विजयी होना चुनाव की असली परीक्षा है।” इसी भाषण में उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी कार्यकर्ता खुशी और दु:ख के समय लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहें और व्यक्तिगत तौर पर उनके साथ निजी प्रगाढ़ता विकसित करें।

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आज दुनिया एक गतिशील विकास पुरुष के रूप में नरेन्द्र मोदी को जानती है। जिन्होंने अपने गृह राज्य गुजरात के परिदृश्य को पूरी तरह बदल डाला है। लेकिन अपने ज़बर्दस्त प्रबंधन कौशल के कारण ‘मिट्टी को सोने में बदल देने वाला व्यक्ति’ होने की प्रतिष्ठा अर्जित करने से पहले उन्होंने भाजपा के लिए जिस भी क्षेत्र में काम किया, उसमें सफलता के नए प्रतिमान गढ़ दिए। भारत और विश्व की जानी-मानी हस्तियों से घिरे तथा एक आलीशान चैम्बर में बैठे इस व्यक्ति को देखते हुए यह जानकर आप बुरी तरह से आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में नरेन्द्र मोदी का पहला दायित्व अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय के फर्श पर पोछा लगाने का था। उनके ‘कर्तव्यों’ में सुबह के समय दूध लेकर आना और कार्यालय परिसर को स्वच्छ रखना शामिल था। यहां तक कि सम्मान की दृष्टि से वे कई बार वरिष्ठ प्रचारकों के कपड़े भी धोते थे।

चुनावी राजनीति की जटिलताओं में कूदने के प्रति मोदी की अनिच्छा के बावजूद उन्‍हें 1987 में एक महासचिव के रूप में भाजपा में शामिल होने का आदेश संघ नेतृत्व द्वारा दिया गया। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, और अनवरत् रूप से एक चुनाव के बाद दूसरा चुनाव जीतते रहे व भाजपा के दूसरे नेताओं की चुनाव जीतने में सहायता भी करते रहे।

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नगर निगम चुनाव: छोटा लेकिन महत्वपूर्ण

1987 में भाजपा में शामिल होने के बाद नरेन्द्र मोदी की पहली परीक्षा अहमदाबाद में उसी साल हुए नगर निगम के चुनाव थे। हालांकि 1980 के दशक के प्रारंभ में भाजपा राजकोट और जूनागढ़ निगमों में सफलता का स्वाद चख चुकी थी और विधानसभा में कुछ सीटें भी जीत चुकी थी, फिर भी अहमदाबाद नगर निगम पर जीत हासिल करना राज्य में पैर जमाने की इच्छुक एक पार्टी के लिए आवश्यक था। संसद के साथ-साथ गुजरात विधान सभा और राज्य की लगभग हर पंचायत/निगम में मजबूती से जमी हुई कांग्रेस बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी, लेकिन उसकी छल-बल की रणनीतियों के कारण उसे हरा पाना कठिन बना हुआ था।

इस चुनौती को अपने सिर पर लेते हुए नरेन्द्र मोदी ने पूरे शहर को बारीक़ी से पढ़ा तथा भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किए। अंत में, परिणाम वही निकले जो भाजपा चाहती थी। अहमदाबाद नगर निगम में सत्ताधारी पार्टी बनने के बाद भाजपा को आगामी वर्षों में लोगों की सेवा करने और अपने आधार का विस्तार करने का अवसर प्राप्त हुआ। अहमदाबाद नगर निगम में भाजपा सन् 2000 तक प्रमुख शक्ति बनी रही। विडंबना है कि यह 1987 के बाद से यह पहला नगरपालिका चुनाव था, जब नरेन्द्र मोदी गुजरात में मौजूद नहीं थे और राज्य से बाहर कहीं काम कर रहे थे।

विधान सभा में सफलता: गांधीनगर में खिला कमल

माधव सिंह सोलंकी और उनके वाम गठबंधन के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1980 के विधानसभा चुनाव में 51.04%के वोट प्रतिशत के साथ राज्य में 141 सीटें जीतीं। भाजपा को केवल 9 सीटें मिलीं। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर के साथ एक नए सामाजिक गठबंधन की युति का लाभ उठाते हुए सोलंकी 149 सीटों तथा 55.55%वोट प्रतिशत के साथ कांग्रेस को एक और शानदार जीत दिलवाने में कामयाब रहे। भाजपा के लिए यह एक बार फिर से निराशा की घड़ी थी। पार्टी को अपने वोट प्रतिशत में मामूली सुधार (14.96%)के साथ मात्र 11 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। फिर भी, कांग्रेस के पास किसी भी स्पष्ट नीति का अभाव था तथा वे सिर्फ आरक्षण को लेकर राजनैतिक खिलवाड़ करने तथा अनेक सामाजिक गठबंधनों को जोड़ने व तोड़ने के काम में माहिर थे। 1985 और 1988 के बीच के वर्षों में राज्य में गंभीर सूखा पड़ा। कई बम विस्फोटों से गुजरात का सामाजिक ढांचा छिन्न-भिन्न हो गया।

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1990 के विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य में जोरदार कांग्रेस विरोधी माहौल था लेकिन पार्टी की छल-बल की रणनीतियां पहले की ही तरह क़ायम थीं। नरेन्द्र मोदी ने अपने काम का स्वरूप स्पष्ट कर लिया – लोगों से जनादेश प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक मजबूत संगठन खड़ा करने का निश्चय किया जो पार्टी के राजनीतिक नेतृत्व का पूरक बने। 27 फ़रवरी 1990 को कांग्रेस शासन के एक दशक के बाद, गुजरात में नए विधान सभा चुनाव हुए। चुनाव परिणामों ने 70 सीटों और 29.36% वोट प्रतिशत के साथ चिमनभाई पटेल के जनता दल को महत्वपूर्ण स्थिति में ला दिया। भाजपा 67 सीटों और 26.69%वोट प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर रही।

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मुश्किल से अपनी उपस्थिति रखने वाली पार्टी से यहां तक पहुंच कर भाजपा ने एक ऐसी दुर्जेय शक्ति का रूप हासिल कर लिया, जिसे अब यहां लंबे समय तक मजबूती से बने रहना था। नरेन्द्र मोदी के राज्य इकाई में एक आयोजक के रूप में बहुत सक्रिय रहने के दौरान गुजरात भाजपा के सामने आने वाली दूसरी परीक्षा की घड़ी 1995 के विधानसभा चुनाव थे। 1995 के चुनावों में यह पहली बार हुआ था कि जब भाजपा ने सभी 182 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। यह भी पहली बार था कि पार्टी कांग्रेस से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। गुजरात की जनता ने भाजपा को 121 सीटों पर जीत के रूप में ज़बर्दस्त विजय दिलवाई। भाजपा का वोट प्रतिशत 42.51%तक बढ़ गया। कांग्रेस के लिए यह निराशाजनक समय था। उसे केवल 45 सीटों पर कामयाबी मिली थी। नरेन्द्र मोदी ने सफलतापूर्वक संगठन को मज़बूत किया और कांग्रेस के किले में कई दरारों को उजागर किया। वर्ष 1995 में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ। सत्ता में आने के बाद भी राज्य भाजपा में गुटबाजी एवं अंतर्विरोधों की वजह से गुजरात में शासन व्यवस्था पर पकड़ कमज़ोर होती गयी एवं अंततः पार्टी सरकार से बाहर हो गयी। उस समय श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय सचिव के रूप में दिल्ली में सक्रिय थे।

1996 में भाजपा के विद्रोही नेताओं द्वारा कांग्रेस से गठबंधन कर सरकार का गठन किया गया। परन्तु 1998 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने सरकार में अपनी वापसी की। 1998 से 2001 तक समय गुजरात राज्य के लिए कठिनाइयों भरा रहा। बाढ़, तूफ़ान, सुखा एवं कच्छ में आये विनाशकारी भूकंप एवं राहत कार्यों में नाकामी के कारण जनता में भाजपा सरकार के विरुद्ध माहौल बनने लगा था। राज्य में विशेषकर सहकारिता के क्षेत्र में भ्रष्टाचार की शिकायतें प्राप्त हो रही थीं। इन विपरीत परिस्थितियों में दिनांक 7 अक्टूबर 2001 को श्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। एक ऐसा सामाजिक कार्यकर्ता जिसने हमेशा स्वयं को सत्ता की राजनीति दूर रखा, उस कार्यकर्ता के सामने सिर्फ यह लक्ष्य था कि किसी तरह से गुजरात में भाजपा सरकार की गिरती हुई प्रतिष्ठा को बचाया जाए। राज्य में मार्च 2003 में विधानसभा के चुनाव संभावित थे एवं यह एक कठिन लक्ष्य जान पड़ता था। गोधरा एवं उसके बाद राज्य में हुई अप्रिय घटनाओं के बाद श्री नरेन्द्र मोदी ने यह निश्चय किया कि राज्य का समग्र विकास ही प्रदेश की जनता को सही मायने में राहत प्रदान करेगा। भाजपा समग्र विकास की अवधारणा के प्रति समर्पित पार्टी है एवं श्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए दिसंबर 2002 में विधानसभा को भंग करते हुए फिर से जनादेश प्राप्त करने का निर्णय लिया। चुनाव अभियान के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी को मीडिया एवं विपक्षी राजनैतिक दलों द्वारा लक्ष्य बना कर अपमानित करने का प्रयास किया जाता रहा। राजनैतिक पंडितों द्वारा एवं सर्वेक्षण में इस चुनाव को कांग्रेस के पक्ष में प्रचारित किया गया। श्री नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव अभियान को सक्षम नेतृत्व प्रदान करते हुए कड़ी मेहनत की एवं सम्पूर्ण राज्य का दौर कर आशा की नई किरण दिखाई। विपरीत परिस्थितियों के उपरान्त भी भाजपा ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते 49.85 प्रतिशत मत प्राप्त करते हुए 127 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस को मात्र 51 सीटें ही प्राप्त हुईं।

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वर्ष 2002 – 2007 के मध्य श्री नरेन्द्र मोदी ने विकासोन्मुख एवं स्वच्छ प्रशासन के माध्यम से गुजरात के विकास में नए आयाम जोड़े। इस सफल कार्यकाल के कारण विपक्षी दलों एवं उसके नेताओं में हताशा का वातावरण बन गया। इसी हताशा में वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी पर फिर से व्यक्तिगत हमले किए गए। कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा उन्हें ‘मौत का सौदागर’ तक बोला गया परन्तु इस सब से अलग श्री नरेन्द्र मोदी ने अपना ध्यान अपनी विकास योजनाओं एवं गुजरात के समग्र विकास के मिशन पर ही केंद्रित किया। अंततः गुजरात की जनता ने उन्हें अपना आशीर्वाद देते हुए 49.12प्रतिशत मत के साथ भाजपा को 117 सीटों पर विजय दिलाई। इस चुनाव में भी कांग्रेस की करारी हार हुई एवं उसको मात्र 49 सीटें ही प्राप्त हुई। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भी गुजरात की जनता ने श्री नरेन्द्र मोदी को उत्साहजनक आशीर्वाद प्रदान किया एवं भाजपा ने तीसरी बार श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बड़ी जीत दर्ज़ की। वर्ष 2001 से हाल तक गुजरात में पंचायत, नगर पालिकाओं एवं हर स्तर के चुनावों में भाजपा ने अपनी जीत दर्ज़ की है। इतने वर्षों में श्री नरेन्द्र मोदी ने अथक परिश्रम, लगन एवं सक्षम नेतृत्व के माध्यम से प्रत्येक चुनाव अभियान को अभिनव तरीके से संपादित किया एवं भाजपा की जीत सुनिश्चित की।

लोकसभा चुनाव

श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ने अपने संगठनात्मक कौशल का परिचय देते हुए पिछले लोकसभा चुनाव में गुजरात से सर्वाधिक संसद सदस्यों की जीत सुनिश्चित की। वर्ष 1984 में भाजपा ने गुजरात में मात्र 1 सीट पर विजय प्राप्त की थी परन्तु 1989 के चुनाव में यह संख्या बढ़ कर 12 हुई एवं 1991 के चुनाव में गुजरात से 20 लोकसभा सांसद चुन कर आये।

1996, 1998 एवं 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को 20 से ज्यादा संसदीय क्षेत्रों में विजय प्राप्त हुई। श्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयासों से 2004 एवं 2009 के चुनावों में भी भाजपा को उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई।

राजनैतिक यात्राएं - राष्ट्र को सर्वोच्च प्राथमिकता

गुजरात भाजपा के महामंत्री के पद पर रहते हुए श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 1987 में न्याय यात्रा एवं 1989 में लोकशक्ति यात्रा का आयोजन किया गया। इन यात्राओं के माध्यम से गुजरात की जनता को कांग्रेस के भ्रष्ट शासन के खिलाफ आंदोलन मुखर करने का अवसर मिला।

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राष्ट्रीय स्तर पर भी श्री नरेन्द्र मोदी ने सोमनाथ से अयोध्या की श्री लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा एवं डॉ. मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा के सफल संचालन में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि एकता यात्रा उस समय आयोजित की गई जब कश्मीर घाटी में आतंकवाद चरम पर था और घाटी में आतंकवादियों द्वारा भय का ऐसा माहौल बना दिया गया था कि घाटी में तिरंगा फ़हराने से भी लोग डरते थे। इस हेतु श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सम्पूर्ण यात्रा कार्यक्रम के स्थानों का व्यक्तिगत स्तर पर अवलोकन कर सफलता सुनिश्चित की गयी।

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इतने बड़े एवं भव्य स्तर पर यात्राओं का आयोजन हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। यात्रा मार्ग के निर्धारण से लेकर यात्रा की सम्पूर्ण योजना एवं उसके सफल क्रियान्वयन की जिम्मेदारी यात्रा के आयोजकों की रहती है एवं श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस कार्य को पूर्ण सफ़लता के साथ सम्पादित किया जाता रहा है। बतौर मुख्यमंत्री भी श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कई यात्राओं का आयोजन किया गया। वर्ष 2012 में स्वामी विवेकानंद के सन्देश को जन–जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से उनके द्वारा विवेकानंद युवा विकास यात्रा का आयोजन सम्पूर्ण गुजरात में किया गया।

उत्तर भारत में सफल नेतृत्व 

वर्ष 1995 में श्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। राष्ट्रीय सचिव के रूप में उन्हें जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ जैसे राज्यों का प्रभार दिया गया था। इन सभी राज्यों में भाजपा की स्थिति कमजोर थी एवं संगठन हताश स्थिति में था। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर पिछले 15 वर्षों से आतंकवाद के शिकार थे। वर्ष 1987 में जम्मू एवं कश्मीर में अनुचित तरीके से चुनाव संपन्न करवाए गए, वहीं सम्पूर्ण विपक्ष द्वारा 1992 के पंजाब विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया गया। हरियाणा में कांग्रेस का एक छत्र राज था एवं हिमाचल प्रदेश में 1993 में भाजपा की करारी हार हुई थी।

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इन विपरीत परिस्थितियों में श्री नरेन्द्र मोदी से अपने संगठन कौशल एवं सूझबूझ से कार्य किया। हरियाणा में 1996 के विधानसभा चुनावों के पूर्व भाजपा ने बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए सत्ता में वापसी की। इस चुनाव में गठबंधन को 44 क्षेत्रों में विजय प्राप्त हुई। भाजपा ने 25 क्षेत्रों में चुनाव लड़ते हुए 11 क्षेत्रों में जीत दर्ज की। उल्लेखनीय है कि 1991 के चुनाव में भाजपा ने 90 सीटों में से 89 क्षेत्रों में चुनाव लड़ते हुए मात्र 2 स्थानों पर विजय प्राप्त की थी। चौधरी देवी लाल एवं बंसी लाल के साथ गठबंधन को असंभव माना जाता था, लेकिन श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी राजनैतिक समझ और दक्षता का परिचय देते हुए यह असंभव कार्य भी कुशलतापूर्वक संपन्न किया। आतंकवाद के कारण जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति राजनैतिक तौर पर बहुत ही संवेदनशील रही है। वर्ष 1987 में हुए चुनाव पक्षपातपूर्ण एवं विवादित परिस्थितियों के लिए जाने जाते रहे है एवं 1990 से राज्य राष्ट्रपति शासन के अंतर्गत रहा था। 1996 में विधानसभा चुनावों में फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस ने बहुमत प्राप्त किया एवं 87 में से 57 क्षेत्रों में विजय प्राप्त की। इन चुनावों में भाजपा 8 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही एवं वह कांग्रेस एवं जनता दल जैसी पार्टियों से ज्यादा स्थान पाने में सफल रही। श्री नरेन्द्र मोदी के प्रभार वाले एक अन्य राज्य हिमाचल प्रदेश में पूरी तरह से अलग राजनैतिक परिस्थितियां थी। वर्ष 1990 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 46 सीटें प्राप्त कर सरकार का गठन किया था, परन्तु बाबरी विध्वंस के बाद 1992 में यह सरकार बर्खास्त कर दी गयी। 1993 में हुए चुनावों में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा एवं वह मात्र 8 सीटें ही बचा पाने में सफल रही। 1998 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा एवं कांग्रेस दोनों दलों को 31–31सीटें प्राप्त हुई एवं श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने राजनैतिक कौशल कर परिचय देते हुए पूर्व टेलीकॉम मंत्री श्री सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ तालमेल कर श्री प्रेम कुमार धूमल को राज्य का मुख्यमंत्री बनवाया एवं राज्य में एक नए नेतृत्व के हाथ में बागडोर सौपी। आगे चलकर श्री धूमल ने 2007 में भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाते हुए पार्टी को जीत दिलाई।

अशांति से ग्रस्त पंजाब में श्री नरेन्द्र मोदी ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। वर्ष 1997 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली – भाजपा गठबंधन ने 117 में से 93 सीटों पर सफलता प्राप्त की। भाजपा ने 22 में से 18 क्षेत्रों में अपना परचम फ़हराया एवं रिकॉर्ड 48.22 प्रतिशत मत प्राप्त किए। इसके लगभग एक वर्ष पूर्व चंडीगढ़ स्थानीय निकाय के चुनावों में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त कर रिकॉर्ड बनाया था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि चंडीगढ़ एक केंद्र शासित क्षेत्र है एवं वहां पर कुछ सदस्यों को उप राज्यपाल द्वारा नामांकित किया जाता है, जिन्हें गैर-भाजपा सरकार ने नियुक्त किया था। श्री नरेन्द्र मोदी ने विस्तृत एवं योजनाबद्ध तरीके से श्री सत्यपाल जैन को आगे बढ़ाया एवं 1998 के लोकसभा चुनाव में श्री जैन ने श्री पवन कुमार बंसल को पराजित किया गया।

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श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी संगठनात्मक कार्य क्षमता का परिचय विभिन्न लोकसभा चुनावों के समय भी दिया है। उनके प्रभार वाले राज्यों में तीन बार हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। अपने प्रभार के अंतर्गत हुए प्रथम लोकसभा चुनाव में पार्टी को जम्मू एवं कश्मीर में 1, हरियाणा में 4 सीटें प्राप्त हुईं परन्तु पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश में पार्टी अपना  खाता भी नहीं ख़ोल पायी। इसके उपरान्त श्री नरेन्द्र मोदी ने पार्टी के स्तर पर सफलतापूर्वक कार्य करते हुए 1999 में हुए चुनाव में जम्मू एवं कश्मीर में दो, हिमाचल प्रदेश में तीन, पंजाब में एकएवं हरियाणा में पांचसीटों पर विजय प्राप्त की।

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श्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव का दायित्व वर्ष 1998 में दिया गया। भाजपा में संगठन के राष्ट्रीय महासचिव का पद अत्यंत महत्वपूर्ण होता है एवं इसमें पूरे देश में पार्टी की गतिविधियों के समन्वय का कार्य प्रमुख होता है। उनसे पूर्व इस पद को श्री कुशाभाऊ ठाकरे एवं श्री सुन्दर सिंह भंडारी जैसे कुशल संगठक नेताओं ने सुशोभित किया था। श्री नरेन्द्र मोदी के संगठन के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर रहते समय ही भाजपा ने 182 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की थी।

जून 2013 में श्री नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोकसभा में चुनाव अभियान की महती जिम्मेदारी दी गयी एवं 13 सितम्बर 2013 को उन्हें भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधान मंत्री पद उम्मीदवार घोषित किया गया।

श्री नरेन्द्र मोदी ने छोटे से छोटे काम से लेकर पंचायतों एवं लोकसभा के चुनावों का सफलता पूर्वक संचालन किया है। अपने कौशल, परिश्रम एवं लगन के बल पर श्री मोदी ने विपरीत परिस्थितयों में भी संगठन को नयी ऊँचाईयां प्रदान की हैं।

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डिस्कलेमर :

यह उन कहानियों या खबरों को इकट्ठा करने के प्रयास का हिस्सा है जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और लोगों के जीवन पर उनके प्रभाव पर उपाख्यान / राय / विश्लेषण का वर्णन करती हैं।

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September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)