• 15 सितंबर से 10 मई तकनरेन्द्र मोदी 5827 रैलियों/ कार्यक्रमों/ घटनाओं/ 3-डी/ चाय पे चर्चा को संबोधित कर लेंगें।
  • 3 लाखकिलोमीटर से अधिक दौरा किया गया
  • 25 से अधिक राज्यों का दौरा किया गया
  • प्रत्येक राज्य के लिए अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया
  • 3-डी रैलियों और चाय पे चर्चा आदि नवीनतम प्रयोगों से ज्यादा जीवंत हो गया चुनाव प्रचार
  • प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ कई इंटरव्यू किए गए

जब पूरा भारत बेसब्री से 16 मई को आने वाले चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहा है के रूप में, तब 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान के कुछ बहुत ही ज्यादा यादगार पहलुओं को बयान करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है। जब भी इस चुनाव का इतिहास लिखा जाएगा, उसमें सबसे पहला नाम नरेन्द्र मोदी का होगा जिन्होंने विकास और सुशासन का संदेश देने के क्रम में भारत के लोगों तक पहुंचने के लिए ऐतिहासिक अभियान चलाया। भारत के चुनावी इतिहास में इससे पहले कभी भी कोई नेता लोगों के लिए आशा की ऐसी उज्जवल किरण बनकर नहीं उभरा है। इससे पहले कभी भी कोई अभियान इतनी नवीनता और परिशुद्धता के साथ नहीं शुरू किया गया है।

यह वर्णन करना एक अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चुनाव प्रचार के इतिहास में श्री मोदी का चुनाव अभियान अब तक का सबसे बड़ा जन लामबंदी अभियान था। इस अभियान का पैमाने और तीव्रता तब और भी बड़ा हो जाता है जब कोई व्यक्ति भारत की एक बड़ी आबादी और इसके वृहद भौगोलिक प्रसार को समझ पाता है। हाँ , अतीत में कई राजनीतिक नेताओं ने मैराथन अभियान का नेतृत्व किया है लेकिन जिस पैमाने पर इस अभियान को किया गया, उसने बाकी सारे चुनाव अभियानों को मीलों पीछे छोङ दिया है!

 Largest Mass Outreach Campaign in Electoral History of a Democracy

15 सितंबर 2013 से शुरू करके, जब नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में अभिषेक होने के बाद पहली रैली को संबोधित किया था, से लेकर 10 मई 2014 तक, जब वो 2014 के लोकसभा चुनाव समाप्त होने तक अंतिम चरण के लिए चुनाव प्रचार करेंगे, नरेन्द्र मोदी भारत भर में जम्मू से कन्याकुमारी तक, अमरेली से अरुणांचल प्रदेश तक 437 ऐतिहासिक रैलियों को संबोधित कर चुके होंगे। 15 सितम्बर से 10 मई तक वह लगभग 3 लाख किलोमीटर कर चुके होंगें! इसके अलावा देश भर में 3-डी तकनीक के माध्यम से भी 1350 रैलियाँ की गई हैं।

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1787 रैलियाँ और लगभग 3,00,000 किलोमीटर ! क्या आपने इतने बड़े पैमाने पर हुई किसी जनसम्पर्क अभियान के बारे में सुना है?

इस सारे आँकङों को एक सरल और स्पष्ट भाषा में समझाने के लिए हम रैलियों को 3 अलग चरणों में विभाजित करेंगें :

  • प्रारंभिक चरण का जनसम्पर्क
  • 2013 विधान सभा चुनाव से संबंधित तथा अन्य रैलियाँ
  • 26 मार्च के बाद हुईं भारत विजय रैलियाँ

प्रारंभिक चरण का जनसम्पर्क : चुनाव अभियान को आधार देने के लिए की गईं 38 मेगा रैलियाँ

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15 सितंबर, 2013 की दोपहर को नरेन्द्र मोदी द्वारा हरियाणा के रेवाड़ी में एक ऐतिहासिक रैली में पूर्व सैनिकों को संबोधित करने के साथ ही इस अभियान रथ की शुरूआत हुई। 15 सितंबर से 20 मार्च 2014 को को इस क्षेत्र में जो महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे, वर्धा के साथ बहुत करीबी से जुड़ा हुआ है, एक रैली करके, नरेन्द्र मोदी ने अब तक पार्टी के पदाधिकारियों के साथ ही समर्थकों को उत्साहित करने के लिए अब तक ऐसी 38 रैलियों को संबोधित किया है।

इन 38 रैलियों को भारत के 21 राज्यों करवाया गया, नरेन्द्र मोदी इन रैलियों के दौरान उन राज्यों में भी गए, जो पारंपरिक रुप से भाजपा के गढ़ नहीं माने जाते हैं, पर हर स्थान में लोगों ने बहुत ही गर्मोजोशी से श्री मोदी का स्वागत किया इन रैलियों का प्रदेशवार आँकङा इस तरह से है:

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औसतन, बड़े राज्यों में इन रैलियों में से प्रत्येक में 4 लाख लोगों का जनसमूह आया और उत्तर प्रदेश तथा अन्य कई स्थानों में यह संख्या इससे भी ज्यादा थी। पूर्वोत्तर और गोवा में जुटा विशाल जनसमूह भी ऐतिहासिक और अभूतपूर्व था।

इस प्रकार से इन 38 रैलियों में कुल मिलाकर लगभग एक करोड़ लोगों को संबोधित किया गया!

नरेन्द्र मोदी द्वारा 27 अक्टूबर 2013 को पटना में संबोधित की गई हुंकार रैली को कौन भूल सकता है! वहाँ जमीन पर जिंदा बम फट रहे थे, लेकिन कोई भी अपनी जगह से नहीं हिला। अपने संबोधन में नरेन्द्र मोदी हिंदू और मुसलमान को आपस में लड़ने के बजाय एक साथ गरीबी से लड़ने की बात करते हुए शांति और एकता का संदेश दिया। अंत में उन्होंने लोगों से शांतिपूर्वक रैली स्थल से बाहर जाने का आग्रह किया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था और इसने बिहार के लोगों और भारत के बाकी जगहों के लोगों को यह विश्वास दिला दिया कि एक नेता है जो भारत माता की खातिर, किसी भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पङे, यहां तक कि अपने जीवन की बाजी लगाकर भी, लोगों की सेवा करेगा।

भारत विजय रैलियाँ : 45 दिन में 196 रैलियाँ

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भारत विजय रैलियों की शुरुआत 26 मार्च 2014 की सुबह जम्मू एवं कश्मीर के सुरम्य परिवेश से हुई जब नरेन्द्र मोदी ने वैष्णो देवी मंदिर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद ऊधमपुर में एक बड़ी रैली को संबोधित किया। भारत विजय रैलियाँ में नरेन्द्र मोदी ने 25 से अधिक राज्यों के196 स्थानों में लोगों को संबोधित किया। यहां तक कि कई लोगों को यह पढ़ते ही झटका लग सकता है!

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भारत विजय रैलियों के प्रति जनता का प्यार ऐतिहासिक था। वह जहाँ भी गए, पूरा जनसैलाब 'मोदी मोदी मोदी' की गूँज से भरा हुआ था! सभी आयु, समूहों, जाति और धर्म के लोगों ने इन रैलियों में भाग लिया।

पहले 38 रैलियों के विपरीत इन रैलियों को एक निश्चित लक्ष्य क्षेत्र के लिए जैसे एक लोकसभा सीट और आसपास के लोगों के लिए आयोजित की गई थी, जिससे रैली में औसत उपस्थिति 1 से 2 लाख के बीच रहे। अगर इतनी कम संख्या में भी लोग रैलियों में पहुँचे, वैसे रैली में जाने वाले लोगों की संख्या इससे बहुत ही ज्यागा है, तो भी इन रैलियों के माध्यम से नरेन्द्र मोदी से मिलने वाले लोगों की संख्या करीब 5 से 10 करोड़ होगी।

इनके अलावा दो कार्यक्रम, वो दो ऐतिहासिक रोड शो थे, जो नरेन्द्र मोदी ने अपने नामांकन पत्र दाखिल करते समय वाराणसी और वडोदरा में किए थे। पूरा शहर नरेन्द्र मोदी का समर्थन करने के लिए सड़कों पर आ जुटा था। हर कोई इस रोड शो के इतने विशाल पैमाने पर होता देकर अचम्भे से भर गया था।

अन्य कार्यक्रम, आयोजन और रैलियाँ

इन रैलियों के अलावा नरेन्द्र मोदी सितंबर और मार्च 2014 के बीच कई अन्य रैलियों और कार्यक्रमों में शामिल हुए। इनकी संख्या 241 है।

इसमें 4 राज्यों छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में नवंबर और दिसंबर 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान संबोधित की गईं 52 रैलियां भी शामिल है। इन राज्यों के चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से भाजपा के पक्ष में गए। पार्टी, राजस्थान में एक ऐतिहासिक जनादेश के साथ सत्ता में आई, मध्य प्रदेश में इसकी सीट संख्या में और भी सुधार हुआ, छत्तीसगढ़ में सत्ता में बरकरार रही और दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी बन गई।

अन्य कार्यक्रमों में वकीलों, चार्टर्ड एकाउंटेंटों, सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गजों, के साथ हुई बैठकों के अलावा, सांस्कृतिक पुरस्कार वितरण और अन्य नियमित प्रतिनिधिमंडलों और आगंतुकों से भेंट सहित सहित घटनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। यह ध्यान देने वाली बात है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित होने से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव से संबंधित आदर्श आचार संहिता की घोषणा तक श्री मोदी ने, इतनी रैलियों में भाग लेने के बावजूद, सभी कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता की, विधानसभा सत्र में भाग लिया और साथ ही राज्य के बजट की प्रस्तुति में भी शामिल हुए।

नरेन्द्र मोदी कुछ विशेष कार्यक्रमों में भी भाग लिया जैसे आडवाणी जी के साथ एकता की प्रतिमा का शिलान्यास, पुणे में दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल का उद्घाटन और चार्टेड एकाउण्टेंटों और अधिवक्ताओं को संबोधित करना। एक बहुत ही मर्मस्पर्शी घटनाक्रम में उन्होंने पटना में हुँकार रैली के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण धमाकों में जान गंवाने वाले सभी लोगों के परिवारों से मुलाकात की। वे देशभक्ति के गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' की 51 वीं वर्षगांठ के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए जहाँ स्वयं लता मंगेशकर ने, कार्यक्रम में आए पूर्व सैनिकों और दर्शकों के साथ गीत के कुछ हिस्सों गाया।

प्रौद्योगिकी में अग्रणी: 3-डी रैलियाँ और चाय पे चर्चा

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नरेन्द्र मोदी ने लोगों तक पहुंचने के अपने ऐतिहासिक अभियान में जिस तरह से प्रौद्योगिकी और नवीनतम उपकरणों का इस्तेमाल किया उसने वास्तव में एक इतिहास रच दिया है।

इस का सबसे प्रमुख उदाहरण 3-डी रैलियाँ हैं। सबसे पहले गुजरात में, एक छोटे पैमाने पर ही सही, की जाने वाली 3-डी रैलियाँ में एक ही समय में कई स्थानों पर बैठे लोगों के साथ एक साथ जुङने का एक ऐतिहासिक माध्यम है। प्रौद्योगिकी के इस तरह के उपयोग का दुनिया भर में यह एक ही उदाहरण है।

11 अप्रैल से 30 अप्रैल तक कश्मीर से केरल, तथा असम से लेकर महाराष्ट्र तक लगभग 750 स्थानों को जोङते हुए 3-डी रैलियों के कई दौरों का आयोजन किया गया है। जिन लोगों ने 3-डी रैलियों में भाग लिया है उन सभी का मानना है कि यह एक ऐसा अनुभव है जो सारे जीवन याद रहेगा। 1 मई से 10 मई 2014 तक इसके अतिरिक्त 600 से अधिक 3-डी रैलियों का आयोजन किया जाएगा।

इसके अलावा चुनाव के दौरान एक अन्य नवीन प्रयोग चाय पे चर्चा के दौरान देखा गया। नरेन्द्र मोदी ने चाय के एक कप पर कृषि और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर भारत भर के लोगों से बातचीत की। चर्चाएँ विभिन्न दौरों में 24 राज्यों में 4000 स्थानों पर आयोजित की गई थीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह 15 देशों में 50 स्थानों पर आयोजित की गई थी। लगभग 10 लाख लोगों ने इन चर्चाओं में भाग लिया।

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कुल:

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मोदी रैलियाँ अतिविशिष्ट क्यों हैं?

अद्वितीय दृष्टिकोण

नरेन्द्र मोदी रैलियों के दौरान जहाँ भी गए, उस क्षेत्र की समस्याओं को लोगों के सामने रखा और हर समस्या के समाधान के लिए उस क्षेत्र के हिसाब से एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इस दृष्टिकोण ने नरेन्द्र मोदी को वहां के लोगों के साथ जोङ दिया और लोगों को ये विश्वास हुआ कि मोदी जी ही एकमात्र नेता हैं जो लोगों के सर्वाधिक हित को देखते हुए सुशासन और विकास के लिए कोई नया कदम उठा सकते हैं।

उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर में श्री मोदी द्वारा किए गए दौरों को लिया जा सकता है। यह ध्यान रखते हुए कि भाजपा उस क्षेत्र में बहुत मजबूत नहीं है, नरेन्द्र मोदी इस क्षेत्र का कई बार दौरा किया और पूरे क्षेत्र में कई रैलियों को संबोधित किया। वहाँ, उन्होंने इस क्षेत्र का वर्णन ठीक ही 'अष्ट लक्ष्मी' के रूप में किया जो भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने वहाँ पर उन मुद्दों पर लोगो को संबोधित किया जिन मुद्दों से अन्य राजनीतिक पार्टियाँ दूर भागती हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार, पर्यटन के लिए विभिन्न तरह की नई योजनाओं, मणिपुर में होने वाली फर्जी मुठभेड़ों, बांग्लादेश से आने वाले अवैध शरणार्थियों, बांग्लादेशी हिंदुओं को सताए जाने जैसे मुद्दों पर लोगों को संबोधित किया। अरुणाचल प्रदेश से उन्होंने सीमा मुद्दे पर चीन को एक कड़ा संदेश दिया।

इसी तरह, आंध्र प्रदेश में वह राज्य के लिए एक बहुत जरूरी रामबाण बनकर सामने आए। यह प्रदेश कांग्रेस के 'बांटो और राज करो’की राजनीति का एक प्रमुख उदाहरण बन गया है। 'जय तेलंगाना और जय सीमांध्रा' का आह्वान देने वाले वे पहले नेता थे और जिन्होंने तेलंगाना के विकास और सीमांध्रा के लिए न्याय की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।

नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्यों में, पर्यटन के विकास और राज्य द्वारा दी जाने वाली मदद के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों तक पहुंच को सुनिश्चित करके, तेजी से विकास करने की अपनी प्रतिबद्धता को मजबूती से सामने रखा। नरेन्द मोदी तथा भाजपा की ऐसी ही अलग सोच तब सामने आई जब नरेन्द्र मोदी ने पहाड़ी राज्यों के मुख्यमंत्रियों था प्रधानमंत्री से मिलकर बनने वाली पहाङी राज्यों की परिषद का विचार रखा इसके साथ ही तटीय राज्यों की परिषद का विचार सामने जो इसी प्रकार से तटीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री से मिलकर बनेगी। इस तरह की परिषदों से इन क्षेत्रों के छोटे से छोटे मुद्दे को भी प्रभावी ढंग से निपटाया जा सकता है।

इन राज्यों की तरह नरेन्द्र मोदी बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड के पूर्वी राज्यों का विकास करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अटल हैं। उन्होंने इन राज्यों को दूसरे विकसित राज्यों के साथ बराबरी के स्तर पर लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया और कहा कि इसके लिए राजग जो कुछ भी संभव है, वो सारे विकास कार्य करेगी।

टीम इंडिया 

भारत का संघीय ढांचा भाजपा के लिए एक सम्पूर्ण विश्वास का आलेख है। अफसोस की बात यह है कि यह संघीय ढांचा यूपीए सरकार द्वारा समय-समय पर बेरहमी के साथ कुचला जा चुका है। एक मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी केंद्र सरकार द्वारा किए जाने वाले ऐसे कामों में निहित खतरों को बहुत ठीक ढंग से समझते हैं और उन्होंने घोषणा कि है प्रधानमंत्री के रूप में वे संबंधित राज्यों के विकास के लिए उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ एक टीम के रूप में काम करेंगे। उनका यही विजन 'टीम इंडिया' के रूप में जाना जाता है। इस तरह से टीम इण्डिया के रूप में काम करने से देश में केंद्र सरकार राज्यों के बीच कोई भेदभाव नहीं करेगी। एक राजनेता के रूप में टिप्पणी करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस दृष्टिकोण से काम करने में राज्य में चाहे राजग, संप्रग या किसी भी अन्य दल की सरकार हो, उनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सब लोग एक साथ मिलकर काम करेंगे।

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गठबंधन 

यह माना जाता था कि दिल्ली के लिए नरेन्द्र मोदी को सफर अकेले ही तय करना होगा। इस विषय पर लिखे गए संपादकीय, खुले-लेखों, और अन्य लेखों की संख्या की तो गिनती ही नहीं की जा सकती है। इस तरह की विद्वतापूर्ण सोच को नरेन्द्र मोदी द्वारा गलत साबित कर दिया गया है क्योंकि आज राजग के विकास के एजेंडे के साथ कई पार्टियों के महत्वपूर्ण नेता जुङ रहे हैं और भारत को एक मजबूत और स्थिर नेतृत्व प्रदान करने के लिए 25 पार्टियों के एक मजबूत गठबंधन के रूप में सामने आए हैं।

राजग भारत के सभी भागों में अपने नए सहयोगी तैयार कर रही है। बिहार में श्री राम विलास पासवान और श्री उपेंद्र कुशवाहा गठबंधन में शामिल हो गए हैं। तमिलनाडु में श्री विजयकांत, श्री वाइको और डॉ. रामदास जैसे नेताओं के साथ 5 पार्टियों का गठबंधन उभर कर आया है। सीमांध्रा और तेलंगाना में भाजपा श्री चंद्रबाबू नायडू और श्री पवन कल्याण के साथ मिल कर काम कर रही है। उत्तर प्रदेश में अपना दल ने समर्थन देने का वायदा किया है। महाराष्ट्र में श्री रामदास अठावले गठबंधन में शामिल हो गए हैं।

इसी समय शिवसेना और अकाली दल जैसे मौजूदा सहयोगियों और पुराने दोस्तों के साथ संबंधों में भी बहुत मजबूती आई है।

इसके परिणामस्वरूप भाजपा राज्यों में भी एक विकल्प के रूप में उभर रही है जहाँ विश्वास किया जाता था कि यहाँ कमल खिल ही नहीं सकता है। तमिलनाडु में राजग अन्नाद्रमुक और द्रमुक चुनौती दे रहा है, पश्चिम बंगाल में वाम दलों और तृणमूल देख रहे हैं कि वहाँ एक पार्टी आ गई है जो उनका एकाधिकार तोङ देगी। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा से आगे अन्य विकल्प तलाश रहे हैं और केरल में लोग यूडीएफ और एलडीएफ से आगे बढ़कर सोचने लगे हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।

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विशाल दर्शक समूह 

यह माना जाता था कि एक रैली का आयोजन करना एक बोझिल प्रक्रिया है। रैली करने वाले को भीड़ "जुटानी" होती है और अन्य कई तरह की व्यवस्था करनी होती हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने इन सबको गलत साबित कर दिया है।

अगर लोग कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों रैलियों में भाग लेने वालों को भुगतान करती हैं तो उन्होंने श्री मोदी रैलियों नहीं देखा है जहाँ रैली में भाग लेने वालों ने स्वेच्छा से खुद पैसों का भुगतान किया और रैली से हुई इस तरह की आय उत्तराखंड त्रासदी के लिए चलने वाले राहत कार्य के लिए भेजी गई!

त्रिची में पुलिस ने रैली के एक दिन बाद खाली शराब की बोतल की खोज करने वाले युवाओं को पकड़ा लेकिन युवाओं ने उन्हें बताया कि उनकी पूरी जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ कि इस तरह की राजनीतिक रैली में एक भी शराब की बोतल नहीं पाई गई! दरअसल, भाजपा द्वारा त्रिची में एक रैली करना अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

उत्तर प्रदेश और बिहार में रैलियाँ दोमंजिला हो गई थीं ! यह असामान्य नहीं था यहाँ कई लोग मोदी को देखने के लिए और उनकी एक स्पष्ट छवि पाने के लिए खंबों पर चढ़ गए।. सच यह है कि मोदी एक 'चढ़ते हुए ध्रुव तारे' हैं!

साक्षात्कार

पूरे अभियान के दौरान नरेन्द्र मोदी ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और स्थानीय मीडिया को अनगिनत साक्षात्कार दिए हैं। उनके साक्षात्कार विविध प्रकार के थे, कुछ एक पत्रकार द्वारा लिए गए साक्षात्कार थे, कुछ पत्रकारों के एक पैनल द्वारा लिए गए साक्षात्कार थे, यहाँ तक कि जनता की "अदालत" में भी उनसे प्रश्न पूछे गए।

इस सूची में इंडिया टीवी पर 'आप की अदालत', जी न्यूज को दिए गए साक्षात्कार, एबीपी का घोषणा पत्र आदि कार्यक्रम शामिल हैं। उन्होंने एएनआई के साथ एक विस्तृत साक्षात्कार भी किया था, जिसमें उन्होंने राजनीति, नीति और विदेशी संबंधों आदि के बारे में बात की थी।

हिंदुस्तान टाइम्स, हिंदुस्तान, जागरण, नवभारत टाइम्स आदि समाचार पत्रों ने भी नरेन्द्र मोदी का साक्षात्कार किया है। सीएनबीसी टीवी-18 के साथ हुए एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण को सूचीबद्ध किया था, जो भारत के पुनुरुद्धार की पटकथा लिखेगा। क्षेत्रीय समाचार चैनलों जैसे ईटीवी, टीवी-9 आदि ने भी श्री मोदी का साक्षात्कार किया है। इसी समय अन्य लोगों के अलावा पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और गुजरात के स्थानीय अखबारों ने भी श्री मोदी का साक्षात्कार किया है।

क्या आप भारत के इतिहास में इस तरह के एक व्यापक और विविध जनसम्पर्क कार्यक्रम को याद कर सकते हैं? उनका दिन सुबह 5 बजे शुरू होता है और कभी-कभी आधी रात चलता रहता है, लेकिन इससे केवल नरेन्र्द मोदी की ऊर्जा और समर्पण और बढ़ जाता है। नरेन्द्र मोदी के ये शब्द सही मायनों में उनकी दिनचर्या और उनके दृढ़ संकल्प को समेटते हैं: " दौड़ रहा हूँजनता का प्यार दौड़ा रहा है। न थका हूँ, न रुका हूँ और देश विरोधी ताकतों के सामने झुकने कातो सवाल ही नहीं "

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ऐतिहासिक जनादेश
May 22, 2014

नरेन्‍द्र मोदी ने राष्‍ट्रीय राजनीति को नया आयाम दिया है

भारत में राजनीतिक आन्‍दोलनों की उत्‍पति चार वैचारिक मार्गों से हुई है। सबसे पहला ऐतिहासिक वैचारिक मार्ग था भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस जो आज की कांग्रेस पार्टी के रूप में मौजूद है। कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन जिसकी उत्‍पत्ति तत्‍कालीन रूसी गणराज्‍य और कुछ हद तक आज के चीन से हुई, लेकिन आज यह व्‍यवहारिक रूप से भारत में अप्रसांगिक हो गया है। समाजवादी आन्‍दोलन की उत्‍पत्ति राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण से जुड़ी है लेकिन यह उत्‍तरोत्‍तर संकीर्ण क्षेत्रीय या जाति आधारित पार्टियों में बंट गया और आज राष्‍ट्रीय स्‍तर पर इसकी अहमियत मामूली है। क्षेत्रीय दल और हाल में बनी राजनीतिक पार्टियां भी राष्‍ट्रीय स्‍तर पर दावा पेश नहीं कर सकते। 2014 के चुनाव से पूर्व भारत में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर राजनीतिक परिदृष्‍य कुछ ऐसा था कि जिसमें कांग्रेस हावी थी और भाजपा की स्थिति एक सुपर क्षेत्रीय दल जैसी थी।

2014 के लोक सभा चुनाव के नतीजे नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में भाजपा के पक्ष में रहे। किसी भी व्‍यक्ति को इन नतीजों को समझने के लिए यह मानना जरूरी है कि किस तरह भाजपा राष्‍ट्रीय परिदृष्‍य पर काबिज हुई और कैसे उसने दक्षिण में अपनी खोयी हुई जमीन फिर हासिल की और पूर्वोत्‍तर में अपनी जगह बनायी। इसके ठीक उलट कांग्रेस की तस्‍वीर बन गयी है। कांग्रेस सीटें उसके इतिहास में अब तक की न्‍यूनतम हैं और कांग्रेस अब एक सुपर क्षेत्रीय दल बनकर रह गयी है जिसकी बड़े राज्‍यों में कोई उपस्थित नहीं है।

कांग्रेस एक सुपर-क्षेत्रीय दल के रूप में सिमट गयी है, उसकी बड़े राज्‍यों में उपस्थित भी नहीं है

कांग्रेस के खात्‍मे पर विचार कीजिए-

An Epochal Mandate


  • जम्‍मू कश्‍मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्‍तराखंड और राष्‍ट्रीय राजधानी जैसे उत्‍तरी राज्‍यों में इसका एक भी लोक सभा  सदस्‍य नहीं है।

  • कांग्रेस उत्‍तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में सिमटकर सिंगल डिजिट में आ गयी है।

  • पश्चिमी भारत में देखें तो राजस्‍थान, गुजरात और गोवा में इसका एक भी सदस्‍य नहीं है। जबकि कभी कांग्रेस का गढ़ रहे महाराष्‍ट्र में पार्टी सिंगल डिजिट में ही है।

  • दक्षिण में तमिलनाडु और सीमांध्रा में उसकी एक भी सीट नहीं है जबकि कर्नाटक और तेलंगाना में वह सिंगल डिजिट में सिमट गयी है।

  • पूर्व में झारखंड, नागालैंड, उड़ीसा, त्रिपुरा और सिक्‍कम में कांग्रेस की एक भी लोक सभा सीट नहीं है/ अधिकांश संघ शासित राज्‍यों ने भी कांग्रेस को पीठ दिखा दी है।

  • कांग्रेस का आज इस कदर अपयश है कि किसी भी राज्‍स में इसकी सीटें डबल डिजिट में नहीं हैं, वहीं जयललिता की अन्‍नाद्रमुक और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस लोक सभा में मुख्‍य विपक्षी पार्टी बनने के लिए इसे चुनौती दे रही हैं।

नरेन्‍द्र मोदी के प्रचार अभियान ने कांग्रेस को इस तरह तहस-नहस कर दिया है। इस तरह नरेन्‍द्र मोदी ने भाजपा के चुनावी परिदृष्‍य को पूरी तरह बदल दिया है।

नरेन्‍द्र मोदी ने एक नया सामाजिक गठबंधन बुना है

लोक सभा की 543 सीटो में से रिकार्ड 282 सीटें जीतकर नरेन्‍द्र मोदी पहले गैर-कांग्रेसी नेता हैं जो अपनी पार्टी को लोक सभा में सामान्‍य बहुमत दिलाने में कामयाब रहे हैं। यह ऐसी उपलब्धि है जो अब तक विशेष तौर से गांधी-नेहरु खानदान के नाम ही रही है।

अगर हवा भाजपा के राष्‍ट्रीय प्रसार की कहानी बताती है तो जीत की जनसांख्यिकीय जटिलता भाजपा की राष्‍ट्रीय गहराई की असली कहानी बयां करती है।

An Epochal Mandate


  • भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों में से 40 पर जीत दर्ज की। इस तरह एससी सीटों में से 47 प्रतिशत पर भाजपा ने जीत दर्ज की और कई सीटों पर तो दलित महिलाएं चुनकर आयीं हैं।

  • भारतीय जनता पार्टी ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 27 पर जीत दर्ज की जो कि 69 प्रतिशत हैं।

  • विभिन्‍न दलों के गठबंधन के रूप में एनडीए ने एससी के लिए आरक्षित सीटों में से 62 प्रतिशत तथा एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से 70 प्रतिशत पर जीत दर्ज की।

  • 28 महिला सांसदों के साथ भाजपा ने एक नया बेंचमार्क सेट किया कि इसके 10 प्रतिशत सदस्‍य महिलाएं हैं।
नरेन्‍द्र मोदी ने न सिर्फ भाजपा को अकल्‍पनीय जीत दिलायी है बल्कि यह कामयाबी उन्‍होंने उममीदों की लहर पर सवार होकर हासिल की है जिसे भाजपा विगत में नहीं कर सकी। नरेन्‍द्र मोदी की भाजपा ने पूर्व की सभी राजनीतिक रुढि़यों को तोड़ दिया है जो 1980 के दशक में वाजपेयी/आडवाणी के युग और तत्‍कालीन जन संघ से जुड़ी थीं। नरेन्‍द्र मोदी ने जो सामाजिक गठजोड़ बुना है वह जनसांख्यिकीय रूप, भौगोलिक विस्‍तार, लैंगिक समता और इसके जनादेश के मामले में विशेष है।

उम्‍मीद और आकांक्षाओं के इस जनादेश से ही नरेन्‍द्र मोदी की टीम को आकार मिलना चाहिए

यह जनादेश नरेन्‍द्र मोदी के लिए विभिन्‍न जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर आबादी के बड़े भाग की नयी उम्‍मीदों को पूरा करने का है। इसने उन्‍हें भारत को एक नयी दिशा में ले जाने को सशक्‍त किया है। ऐसा करते समय उन्‍हें किसी भी प्रकार के तुच्‍छ कार्य और दवाब में नहीं आना होगा।

यह जनादेश उस व्‍यापक राजनीति आन्‍दोलन में भी बदलाव के युग की शुरुआत है जिसने 1950 के दशक में जनसंघ को जन्‍म दिया और 1980 के दशक में भाजपा को। अगर इसकी पहली पीढ़ी डा. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्‍याय थे तो दूसरी पीढ़ी अटल बिहारी वाजपेयी और एल के आडवाणी का युग थी। अब नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में तीसरी पीढ़ी का आगाज हुआ है। भारत के शासन के लिए राष्‍ट्रीय जनादेश होने के साथ ही उनके पास अब राजनीतिक जनादेश भी है जिससे वह इस आन्‍दोलन को नया रूप देकर अपने सुशासन के दर्शन को प्रदर्शित कर सकते हैं।

एक अरब सपने और उम्‍मीदें अब नरेन्‍द्र मोदी की ओर देख रहे हैं। जब वह अपनी सरकार बनायेंगे तो इन्‍हीं सपनों और उम्‍मीदों से ही उनकी टीम को आकार मिलना चाहिए न कि किसी और चीज से।