मित्रो,
मौजूदा वर्ष का खेल महाकुंभ समग्र गुजरात के लिए आनंद और उपलब्धियों का गौरवपूर्ण उत्सव साबित हुआ। एथेंस में आयोजित विकलांगों के स्पेशल ओलंपिक में भारत को गौरवांवित करने वाले गुजरात के विकलांग खिलाडिय़ों की एक टीम ने इस वर्ष की शुरुआत में मुझसे मिलने की अभिलाषा जतायी। मैं उनसे मिलने को आतुर था। मैनें उन्हें अपने निवासस्थान पर आमंत्रित किया और उनके साथ दो घंटों का वक्त बीताया। यह मुलाकात मेरे लिए अत्यंत आनंददायक और अविस्मरणीय रही। इन दो घंटों के दौरान मैने गौर किया कि, इन एथलीटों में दुनिया को जीतने की महत्वाकांक्षा कूट-कूट कर भरी है। अपने अद्भुत कार्यों से दुनिया को चकित कर देने का जज्बा उनमें झलक रहा था। उनका अद्वितीय उत्साह मेरे ह्रदय को छू गया। इस मुलाकात के बाद मैनें इन प्रतिभाशाली बच्चों के लिए कुछ करने का संकल्प किया। मैनें खेलकूद विभाग की मेरी टीम के साथ चर्चा की साथ ही इस दिशा में काम कर रहे एनजीओ सहित अन्य संगठनों के साथ भी विचार-विमर्श किया।
इस वर्ष के खेल महाकुंभ को हमने इन प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों के जौहर प्रदर्शन का एक अवसर बना दिया। खेल महाकुंभ में इस वर्ष पहली बार करीब 60,000 विकलांग खिलाडिय़ों ने शिरकत की। इस बात से मुझे जो संतोष मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मुमकिन नहीं! इतनी बड़ी तादाद में विकलांग खिलाडिय़ों ने भाग लिया, यह अपने आप में एक रिकार्ड है। उद्घाटन समारोह में विकलांग खिलाडिय़ों की एक टुकड़ी ने मार्च पास्ट का नेतृत्व किया, वह हम सभी के लिए अत्यंत गौरव का क्षण था। उनकी सफलता महज उनके परिवार तक ही सीमित नहीं बल्कि समग्र गुजरात की सफलता है। यह जानकर मुझे खुशी हुई कि इनमें से कई खिलाडिय़ों ने अपने खेल में श्रेष्ठता के स्तर को हासिल किया है।
वीरेन्द्र सहवाग ने जब अपने दोहरे शतक से राष्ट्र को अभिभूत किया, ठीक उसी वक्त गुजरात ने 16 वर्षीय कोकिला मोटपिया के क्रिकेट में लाजवाब प्रदर्शन का भी जश्न मनाया। आंशिक दृष्टि होने के बावजूद कोकिला ने खेल महाकुंभ के तहत एक क्रिकेट स्पर्धा में 215 रनों का अंबार लगा दिया। कोकिला गुजरात के सुदूरवर्ती डांग जिले का प्रतिनिधित्व करती है। उसने अपने खेल और खेलकूद को लेकर अपने अदम्य उत्साह से सभी का दिल जीत लिया। भौगोलिक इलाका और अपूर्ण दृष्टि भी उसके कदम रोक न सकी।
खेल महाकुंभ में विकलांगों की क्रिकेट स्पर्धा के सेमिफाइनल के दौरान सरफराज नामक अत्यंत विकलांग खिलाड़ी ने एक ही मैच में 9 छक्के ठोक दिए। जब-जब ऐसे खिलाड़ी अपनी श्रेष्ठता का मुजाहिरा करते हैं, तब मेरा ह्रदय अवर्णनीय आनंद से छलक उठता है।
मौनेश भावसार की कहानी ऐसी है जो खिलाडिय़ों की आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणास्पद बन सकती है। इस क्रिकेटप्रेमी खिलाड़ी ने 14 वर्ष की उम्र में एक दुर्घटना में अपनी कलाई गवां दी थी। लेकिन क्रिकेट के प्रति उसका जोश बरकरार था। ताजिंदगी का यह जख्म भी उसे क्रिकेट से दूर न कर सका। खेल महाकुंभ में विकलांग क्रिकेट के फाइनल मैच के रोमांचक क्षणों के दौरान इस खिलाड़ी ने अपने एक ही ओवर में महज चार रन देते हुए विरोधी टीम के दो विकेट उड़ा दिए, नतीजतन उसकी टीम ने जीत को गले लगाया। मौनेश ने साबित कर दिया कि वह जिन्दगी से मुंह मोड़ लेने वाला इनसान नहीं। अपने यशस्वी प्रदर्शन की बदौलत उसने भी इस जगत में अपना स्थान अंकित कर बताया है।
ह्रदय को छू जाए ऐसी सफलता के किस्से तो अनेक हैं! ये किस्से ऐसे हैं जिनसे इनसान की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़ें। अहमदाबाद के दीपेन गांधी नामक 20 वर्षीय शर्मीले युवक का एक हाथ और एक पैर सेरेब्रल पाल्सी नामक रोग की वजह से अपने स्थान से खिसक गया था। इस युवक ने बास्केट बाल में सुंदर प्रदर्शन कर बताया और राष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा को बिखेरा।
एक आम परिवार से आने वाले मानसिक रूप से विकलांग देवल पटेल का स्पेशल ओलंपिक में प्रदर्शन दिल में एक अनोखी भावना को जन्म देता है। घर की परिस्थिति और मानसिक अक्षमता भी उसे अपने पसंदीदा क्षेत्र में आकाश की ऊंचाइयों को छूने से न रोक सकी।
मित्रों, खेल महाकुंभ जैसे उत्सवों के जरिए हम अपने लोगों के भीतर छिपी क्षमताओं और कौशल को प्रोत्साहन देना चाहते हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि, जब तक खेल एक जन आंदोलन का स्वरूप नहीं लेता, तब तक उसके वास्तविक उद्देश्य को हासिल नहीं किया जा सकता। कुछ मुट्ठीभर खिलाडिय़ों के जरिए इस उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रत्येक वर्ग, इलाके और आयु वर्ग के लोगों को बड़े पैमाने पर इससे जुडऩा चाहिए और इसे मनाना चाहिए। इसी वजह से खेल महाकुंभ 2011 के उद्घाटन के समय मैने सभी लोगों से इस महोत्सव को मनाने का आह्वान किया था। मैने लोगों से कहा था कि, जरा बाहर निकलकर इन खिलाडिय़ों के जोश को देखो और अपने भीतर भी ऐसा ही जोश पैदा करो। खेल के मैदान में इन खिलाडिय़ों के विजयोल्लास में और हार के कारण उत्पन्न होने वाली क्षणिक निराशाओं के पलों में सहभागी बनों। इनसान जब ऐसा करता है तभी वह खेल का सच्चे तरीके से आनंद उठा सकता है और प्रतिभाशाली विजेता खिलाडिय़ों के आनंद का अनुभव कर सकता है।
इन विकलांग खिलाडिय़ों की उपलब्धि हमेशा मेरे दिल में बसी रहेगी। मैं उनमें एक ऐसा जोश देख रहा हूं जो कभी ठंडा नहीं होगा, चाहे कुछ भी हो जाए। मैं उनमें देख रहा हूं चुनौतियों को पार कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का जज्बा और अपने खेल से दुनिया को अचंभित कर देने का संकल्प। अपनी सीमाओं को इन खिलाडिय़ों ने विशेष काबिलियत में तब्दील कर श्रेष्ठतम उपलब्धियों को हासिल किया है। अपना कौशल दिखाने के लिए इन खिलाडिय़ों को अवसर प्रदान करते रहने की मेरी मंशा है। मेरी इच्छा है कि, उम्र, इलाका या शारीरिक कमजोरी जैसी कोई सीमा उनके सपनों के साकार होने में बाधारुप न बने। विशेष तौर पर मुझे इस बात की खुशी है कि, खेल महाकुंभ इन खिलाडिय़ों के लिए बड़ी उपलब्धियां हासिल करने का छोटा-सा माध्यम बन सका। इन बच्चों के माता-पिता का मैं आभार व्यक्त करता हूं और उन्हें आश्वस्त करता हूं कि उनके प्रतिभा संपन्न बच्चे अपने सफर में अकेले नहीं है। हम सभी उनके साथ हैं। यह सफर जितना उनका है, उतना ही हम सबका भी है। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि, च्च्गीता के अध्ययन के बजाय तुम फुटबाल खेलकर ईश्वर के ज्यादा निकट पहुंच सकते हो।ज्ज् खेल महाकुंभ ने इन शब्दों को सही मायनों में सार्थक कर बताया है।