Khel Mahakumbh - Celebrating sports as a mass movement!

Published By : Admin | December 12, 2011 | 10:01 IST

मित्रो,

मौजूदा वर्ष का खेल महाकुंभ समग्र गुजरात के लिए आनंद और उपलब्धियों का गौरवपूर्ण उत्सव साबित हुआ। एथेंस में आयोजित विकलांगों के स्पेशल ओलंपिक में भारत को गौरवांवित करने वाले गुजरात के विकलांग खिलाडिय़ों की एक टीम ने इस वर्ष की शुरुआत में मुझसे मिलने की अभिलाषा जतायी। मैं उनसे मिलने को आतुर था। मैनें उन्हें अपने निवासस्थान पर आमंत्रित किया और उनके साथ दो घंटों का वक्त बीताया। यह मुलाकात मेरे लिए अत्यंत आनंददायक और अविस्मरणीय रही। इन दो घंटों के दौरान मैने गौर किया कि, इन एथलीटों में दुनिया को जीतने की महत्वाकांक्षा कूट-कूट कर भरी है। अपने अद्भुत कार्यों से दुनिया को चकित कर देने का जज्बा उनमें झलक रहा था। उनका अद्वितीय उत्साह मेरे ह्रदय को छू गया। इस मुलाकात के बाद मैनें  इन प्रतिभाशाली बच्चों के लिए कुछ करने का संकल्प किया। मैनें खेलकूद विभाग की मेरी टीम के साथ चर्चा की साथ ही इस दिशा में काम कर रहे एनजीओ सहित अन्य संगठनों के साथ भी विचार-विमर्श किया।

इस वर्ष के खेल महाकुंभ को हमने इन प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों के जौहर प्रदर्शन का एक अवसर बना दिया। खेल महाकुंभ में इस वर्ष पहली बार करीब 60,000 विकलांग खिलाडिय़ों ने शिरकत की। इस बात से मुझे जो संतोष मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मुमकिन नहीं! इतनी बड़ी तादाद में विकलांग खिलाडिय़ों ने भाग लिया, यह अपने आप में एक रिकार्ड है। उद्घाटन समारोह में विकलांग खिलाडिय़ों की एक टुकड़ी ने मार्च पास्ट का नेतृत्व किया, वह हम सभी के लिए अत्यंत गौरव का क्षण था। उनकी सफलता महज उनके परिवार तक ही सीमित नहीं बल्कि समग्र गुजरात की सफलता है। यह जानकर मुझे खुशी हुई कि इनमें से कई खिलाडिय़ों ने अपने खेल में श्रेष्ठता के स्तर को हासिल किया है।

वीरेन्द्र सहवाग ने जब अपने दोहरे शतक से राष्ट्र को अभिभूत किया, ठीक उसी वक्त गुजरात ने 16 वर्षीय कोकिला मोटपिया के क्रिकेट में लाजवाब प्रदर्शन का भी जश्न मनाया। आंशिक दृष्टि होने के बावजूद कोकिला ने खेल महाकुंभ के तहत एक क्रिकेट स्पर्धा में 215 रनों का अंबार लगा दिया। कोकिला गुजरात के सुदूरवर्ती डांग जिले का प्रतिनिधित्व करती है। उसने अपने खेल और खेलकूद को लेकर अपने अदम्य उत्साह से सभी का दिल जीत लिया। भौगोलिक इलाका और अपूर्ण दृष्टि भी उसके कदम रोक न सकी।

खेल महाकुंभ में विकलांगों की क्रिकेट स्पर्धा के सेमिफाइनल के दौरान सरफराज नामक अत्यंत विकलांग खिलाड़ी ने एक ही मैच में 9 छक्के ठोक दिए। जब-जब ऐसे खिलाड़ी अपनी श्रेष्ठता का मुजाहिरा करते हैं, तब मेरा ह्रदय अवर्णनीय आनंद से छलक उठता है।

मौनेश भावसार की कहानी ऐसी है जो खिलाडिय़ों की आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणास्पद बन सकती है। इस क्रिकेटप्रेमी खिलाड़ी ने 14 वर्ष की उम्र में एक दुर्घटना में अपनी कलाई गवां दी थी। लेकिन क्रिकेट के प्रति उसका जोश बरकरार था। ताजिंदगी का यह जख्म भी उसे क्रिकेट से दूर न कर सका। खेल महाकुंभ में विकलांग क्रिकेट के फाइनल मैच के रोमांचक क्षणों के दौरान इस खिलाड़ी ने अपने एक ही ओवर में महज चार रन देते हुए विरोधी टीम के दो विकेट उड़ा दिए, नतीजतन उसकी टीम ने जीत को गले लगाया। मौनेश ने साबित कर दिया कि वह जिन्दगी से मुंह मोड़ लेने वाला इनसान नहीं। अपने यशस्वी प्रदर्शन की बदौलत उसने भी इस जगत में अपना स्थान अंकित कर बताया है।

ह्रदय को छू जाए ऐसी सफलता के किस्से तो अनेक हैं! ये किस्से ऐसे हैं जिनसे इनसान की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़ें। अहमदाबाद के दीपेन गांधी नामक 20 वर्षीय शर्मीले युवक का एक हाथ और एक पैर सेरेब्रल पाल्सी नामक रोग की वजह से अपने स्थान से खिसक गया था। इस युवक ने बास्केट बाल में सुंदर प्रदर्शन कर बताया और राष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा को बिखेरा।

एक आम परिवार से आने वाले मानसिक रूप से विकलांग देवल पटेल का स्पेशल ओलंपिक में प्रदर्शन दिल में एक अनोखी भावना को जन्म देता है। घर की परिस्थिति और मानसिक अक्षमता भी उसे अपने पसंदीदा क्षेत्र में आकाश की ऊंचाइयों को छूने से न रोक सकी।

मित्रों, खेल महाकुंभ जैसे उत्सवों के जरिए हम अपने लोगों के भीतर छिपी क्षमताओं और कौशल को प्रोत्साहन देना चाहते हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि, जब तक खेल एक जन आंदोलन का स्वरूप नहीं लेता, तब तक उसके वास्तविक उद्देश्य को हासिल नहीं किया जा सकता। कुछ मुट्ठीभर खिलाडिय़ों के जरिए इस उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रत्येक वर्ग, इलाके और आयु वर्ग के लोगों को बड़े पैमाने पर इससे जुडऩा चाहिए और इसे मनाना चाहिए। इसी वजह से खेल महाकुंभ 2011 के उद्घाटन के समय मैने सभी लोगों से इस महोत्सव को मनाने का आह्वान किया था। मैने लोगों से कहा था कि, जरा बाहर निकलकर इन खिलाडिय़ों के जोश को देखो और अपने भीतर भी ऐसा ही जोश पैदा करो। खेल के मैदान में इन खिलाडिय़ों के विजयोल्लास में और हार के कारण उत्पन्न होने वाली क्षणिक निराशाओं के पलों में सहभागी बनों। इनसान जब ऐसा करता है तभी वह खेल का सच्चे तरीके से आनंद उठा सकता है और प्रतिभाशाली विजेता खिलाडिय़ों के आनंद का अनुभव कर सकता है।

इन विकलांग खिलाडिय़ों की उपलब्धि हमेशा मेरे दिल में बसी रहेगी। मैं उनमें एक ऐसा जोश देख रहा हूं जो कभी ठंडा नहीं होगा, चाहे कुछ भी हो जाए। मैं उनमें देख रहा हूं चुनौतियों को पार कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का जज्बा और अपने खेल से दुनिया को अचंभित कर देने का संकल्प। अपनी सीमाओं को इन खिलाडिय़ों ने विशेष काबिलियत में तब्दील कर श्रेष्ठतम उपलब्धियों को हासिल किया है। अपना कौशल दिखाने के लिए इन खिलाडिय़ों को अवसर प्रदान करते रहने की मेरी मंशा है। मेरी इच्छा है कि, उम्र, इलाका या शारीरिक कमजोरी जैसी कोई सीमा उनके सपनों के साकार होने में बाधारुप न बने। विशेष तौर पर मुझे इस बात की खुशी है कि, खेल महाकुंभ इन खिलाडिय़ों के लिए बड़ी उपलब्धियां हासिल करने का छोटा-सा माध्यम बन सका। इन बच्चों के माता-पिता का मैं आभार व्यक्त करता हूं और उन्हें आश्वस्त करता हूं कि उनके प्रतिभा संपन्न बच्चे अपने सफर में अकेले नहीं है। हम सभी उनके साथ हैं। यह सफर जितना उनका है, उतना ही हम सबका भी है। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि, च्च्गीता के अध्ययन के बजाय तुम फुटबाल खेलकर ईश्वर के ज्यादा निकट पहुंच सकते हो।ज्ज् खेल महाकुंभ ने इन शब्दों को सही मायनों में सार्थक कर बताया है।

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भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।