प्रिय मित्रों,

बसंत पंचमी के अवसर पर मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं। मां सरस्वती हमें अनंत ज्ञान और प्रज्ञा का आशीर्वाद दे। जब-जब इस दुनिया में ज्ञान के युग का आगमन हुआ है, तब भारत पथप्रदर्शक बना है। २१वीं सदी ज्ञान की सदी है और उम्मीद है कि मां सरस्वती की कृपा से हमारा देश एक बार फिर मानवजाति को राह बताएगा।

आज सुबह मैं गांधीनगर में भारतीय क्रिकेट टीम के भूतपूर्व कप्तान और महान क्रिकेटर कपिल देव से मिला। कपिल देव की कप्तानी में ही भारतीय टीम ने १९८३ का विश्व कप जीता था, जिसकी यादें आज भी प्रत्येक भारतीय के मन पर ताजी हैं।

पिछले महीने गुजरात में खेलकूद का वातावरण छाया रहा। कल ही मैनें खेल महाकुंभ २०१२-१३ के समापन समारोह में भाग लिया था। समग्र राज्य के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के बीच उपस्थित रहने का आनंद अद्भुत था। खेल और खेलभावना के जोश के प्रतिबिंब समान इस विराट खेल महोत्सव में सभी आयु वर्ग के लोगों ने उत्साह से भाग लिया था।

स्वर्णिम जयंती वर्ष के दौरान आयोजित खेल महाकुंभ में तकरीबन १३ लाख खिलाड़ियों ने विविध खेल स्पर्धाओं में भाग लिया था। आज तीन साल के बाद यह आंकड़ा बढ़कर २५ लाख तक जा पहुंचा है। करीब ८ लाख महिला खिलाड़ियों ने खेल महाकुंभ में शिरकत कर इस विराट उत्सव में नारी-शक्ति को उजागर किया। इस खेल महाकुंभ में पुरुष खिलाड़ियों के ४३ और महिला खिलाड़ियों के २९ रिकॉर्ड सहित कुल मिलाकर ७२ नये रिकॉर्ड दर्ज हुए।

इस वर्ष के खेल महाकुंभ में ९२,००० विकलांग खिलाड़ियों ने भी विविध खेलों में भाग लिया। खेल महाकुंभ के तहत मैदान पर उन्हें बेहतरीन प्रदर्शन करते देख अत्यंत संतोष की अनुभूति हुई। इनमें से प्रत्येक खिलाड़ी कई विघ्नों को पार कर यहां तक पहुंचे थे। कभी हार न मानने के उनके जज्बे को मैं दिल से सलाम करता हूं। उनका मनोबल हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है।

विकलांग लोगों के लिए खेलकूद की संस्कृति स्थापित करने के लिए हम मुकम्मल प्रयास कर रहे हैं। गत वर्ष स्पेशल ओलंपिक्स फैमिली ने एक पत्र के जरिए खेल महाकुंभ आयोजन के पीछे की वास्तविक अवधारणा की सराहना की थी। हाल ही में दक्षिण कोरिया में आयोजित वर्ल्ड विन्टर गेम (स्पेशल ओलंपिक्स) में स्वर्ण पदक अर्जित करने वाली गुजरात की बेटी माया देवीपूजक को मैनें सम्मानित किया था। अपनी सामान्य परिस्थिति के बावजूद अपनी प्रतिबद्धता के जरिए उसने सफलता का नया कीर्तिमान बनाया। आज समूचा गुजरात उसकी उपलब्धि पर गौरवांवित महसूस कर रहा है।

वर्ष २०१२ के आखिर में यदि अत्यंत लंबे दौर तक चुनाव आचार संहिता लागू न होती तो हम वर्ष २०१२ में ही खेल महाकुंभ का आयोजन कर चुके होते। हालांकि, इस साल हमें दो खेल महाकुंभ देखने को मिलेगा। एक, जिसका समापन कल हुआ और दूसरा खेल महाकुंभ इस वर्ष के आखिर में आयोजित होगा। खेल महाकुंभ से खेलकूद को प्रोत्साहन तो मिलेगा ही, साथ ही खेल के मैदान पर कौशल निर्माण की परिस्थिति भी आकार लेगी। ऐसा नहीं है कि हम महज प्रतिभावान खिलाड़ी ही पैदा करना चाहते हैं, अपितु खेलकूद के साथ जुड़े अन्य सभी अनुषंगिक पहलुओं का विकास करना भी हमारा ध्येय है।

पिछले कई दिनों से एक बात मुझे सता रही है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (आईओसी) कुश्ती के ‘आधुनिक’ नहीं होने का बेतुका कारण आगे करते हुए वर्ष २०२० के ओलंपिक्स से इसे हटाने पर विचार कर रही है, यह पढ़कर मुझे झटका लगा है। जो खेल मानव संस्कृति के अत्यंत प्राचीनकाल से खेला जा रहा है, उसे ‘आधुनिकता’ के नाम पर दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित खेल महोत्सव से हटाने से ज्यादा अपमानजनक बात और क्या होगी!

भारत में महाभारतकाल से कुश्ती का उल्लेख होता रहा है। ओलंपिक्स में भी कई एशियाई देश कुश्ती में अच्छा-खासा प्रदर्शन कर रहे हैं। लिहाजा, हमारा कर्तव्य है कि सभी एशियाई देश, सरकारें और लोग साथ मिलकर इस एकतरफा और दुर्भाग्यपूर्ण फैसले का विरोध करें। यह जरूरी नहीं कि सिर्फ कुश्ती के खिलाड़ी ही इसका विरोध करें, बतौर खेलप्रेमी हम सभी को इसका विरोध करना चाहिए। और इसके लिए हमें सितंबर, २०१३ में इस बारे में लिए जाने वाले अंतिम निर्णय के दिन तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। यदि हमें कुछ करना है तो आज ही करना होगा।

मुझे उम्मीद है कि आईओसी अन्य किसी सामान्य पहलुओं पर गौर किए बिना सिर्फ खेल और खिलाड़ियों के हित को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय लेगी।

आपका,

नरेन्द्र मोदी

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भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।